कर्ण को म्रत्यु के बाद श्राद्ध भोजन दान करना पड़ा (महाभारत) महाभारत कालीन , सूर्यपुत्र योद्धा कर्ण की मृत्यु होने के बाद , कर्ण का मृत्यु संस्कार भगवान् श्री कृष्ण द्वारा किया गया |जब कर्ण की आत्मा स्वर्ग पहुंची तो उन्हें बहुत सारा स्वर्ण परोसा गया । कर्ण की आत्मा ने देवराज इंद्र से पूछा मैं स्वर्ण कैसे खा सकता हूं। मुझे भी भोजन में अन्य देवात्माओं की तरह सुस्वद्पूर्ण भोज्य पदार्थ दिए जाना चाहिए । .. . देवता इंद्र ने कर्ण को कहा कि “तुमने अपने जीविन में सदैव ही सोना दान किया |इसलिए जो दान किया वही मिलेगा | अपने पूर्वजों को कभी भी भोजन का दान नहीं दिया। कर्ण ने इंद्र से कहा “जब मुझे यह ज्ञात नहीं था कि मेरे पूर्वज कौन थे तो मै किसको क्या देता ? कर्ण ने विनम्रता पूर्व कातर शब्दों में कहा, प्रभु जो हुआ, वह मेरी मुर्खता अज्ञानता थी, सामाजिक कार्य से विमुख रहा अब इसका क्या उपाय है, जिससे मुझे भी भोजन मिल सके। - इंद्र ने कर्ण की प्रार्थना स्वीकार करते हुए व्यवस्था दी कि आगामी 16 दिन अपने पूर्वजों को स्मरण कर शास्त्रीय विधि से श्राद्ध कर उन्हें उत्तम पकवान आहार दो । कर्ण ने अपने कल्याण एवं तृप्ति के लिए सहर्ष स्वीकार किया ,फलस्वरूप कर्ण को 16 दिन के लिए अपने पितरों की सेवा का अवसर दिया | पितरों को आमंत्रित कर्ण के लिए किया गया | पृथ्वी पर आकर कर्ण ने गाय, ब्राह्मण, साधु-संतो और नारायण की सेवा की और उनको अन्न दान किया। इसके पश्चात् कर्ण स्वर्ग पुनः पहुंचे | 15 दिनों के लिए समस्त पितृ आत्माएं तृप्ति के लिए अपने वंशजो /कुल ,परिवार के घर , कुल से तर्पण और अन्न की अपेक्षा आती हैं। ये ही 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कालांतर में कहा जाने लगा | इन 16दिनों में पितरों के नाम से तर्पण, यज्ञ, दान आदि करने से पितृदेव प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
कर्ण को म्रत्यु के बाद श्राद्ध भोजन दान करना पड़ा (महाभारत)
महाभारत कालीन , सूर्यपुत्र योद्धा कर्ण की मृत्यु
होने के बाद , कर्ण का मृत्यु संस्कार भगवान् श्री कृष्ण
द्वारा किया गया |जब कर्ण
की आत्मा स्वर्ग पहुंची तो उन्हें बहुत सारा स्वर्ण परोसा गया । कर्ण की आत्मा ने देवराज इंद्र से पूछा मैं स्वर्ण कैसे खा
सकता हूं। मुझे भी भोजन में अन्य देवात्माओं की तरह सुस्वद्पूर्ण भोज्य पदार्थ दिए
जाना चाहिए । ..
. देवता इंद्र ने कर्ण को कहा कि “तुमने अपने जीविन में सदैव ही सोना दान किया |इसलिए जो दान किया वही मिलेगा | अपने
पूर्वजों को कभी भी भोजन का दान नहीं दिया।
कर्ण ने इंद्र से कहा “जब मुझे यह ज्ञात नहीं
था कि मेरे पूर्वज कौन थे तो मै किसको
क्या देता ?
कर्ण ने विनम्रता पूर्व कातर शब्दों में कहा, प्रभु जो हुआ, वह मेरी
मुर्खता अज्ञानता थी, सामाजिक कार्य से विमुख रहा अब इसका
क्या उपाय है, जिससे
मुझे भी भोजन मिल सके।
- इंद्र ने कर्ण की प्रार्थना स्वीकार करते हुए
व्यवस्था दी कि आगामी 16 दिन अपने पूर्वजों को स्मरण कर शास्त्रीय विधि से श्राद्ध कर उन्हें उत्तम पकवान आहार दो ।
कर्ण ने अपने कल्याण एवं तृप्ति के लिए सहर्ष
स्वीकार किया ,फलस्वरूप कर्ण को 16 दिन के लिए अपने पितरों की सेवा का अवसर दिया |
पितरों को आमंत्रित कर्ण के लिए किया गया | पृथ्वी
पर आकर कर्ण ने गाय, ब्राह्मण, साधु-संतो और नारायण की सेवा की और
उनको अन्न दान किया। इसके पश्चात् कर्ण स्वर्ग पुनः पहुंचे | 15 दिनों के लिए समस्त पितृ आत्माएं तृप्ति
के लिए अपने वंशजो /कुल ,परिवार के घर ,
कुल से तर्पण और अन्न की अपेक्षा आती हैं।
ये ही 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कालांतर में कहा जाने लगा |
इन 16दिनों में पितरों के नाम से तर्पण,
यज्ञ,
दान
आदि करने से पितृदेव प्रसन्न होकर
आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
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