राधा अष्टमी -14
सितम्बर
भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी
पौराणिक कथन- राधाजी
माता की कोख से नहीं बल्कि वृषभानु जी की तपोभूमि से प्रकट हुई थीं।
राधाजी जन्म कथा –( ब्रह्मवैवर्त पुराण)-
राधा जी श्रीकृष्ण के
साथ गोलोक में निवास करती थीं।
एक बार भगवान श्रीकृष्ण
सखा सुदामा एवं अपनी सखी विराजा के
साथ गोलोक में विहार कर रहे थे। राधाजी को यह समाचार मिला तो वे क्रोधित हो
श्रीकृष्ण के पास पहुंची और क्रोध में अप्रिय शब्दों के साथ अपना विरोध व्यक्त
किया । यह दृश्य देख,सुनकर कान्हा के सखा श्रीसुदामा
के मन को ठेस पहुंची |सुदामा ने राधा को पृथ्वी पर जन्म लेने का शाप दे दिया।
श्री राधा के क्रोध
को कम करते हुए श्री कृष्ण ने कहा – ‘ आपको पृथ्वी पर देवी कीर्ति और वृषभानु जी
की पुत्री के रूप में रहना पड़ेगा । वहां आपका विवाह रायाण नामक वैश्य से होगा।
रायाण मेरा ही अंशावतार होगा | पृथ्वी पर भी आप मेरी प्रिया ही रहेंगी।
राधा के क्रोध आवेश
की भाव भंगिमा को एवं अरोपमयी अपशब्द देख सुनकर , आहात-क्रोधित सखी विराजा वहां से
नदी रूप में चली गईं।
सुदामा के शाप को
सुनकर , प्रेम अभिभूत क्रोध आवेशा राधा ने
श्रीसुदामा को राक्षस कुल में जन्म लेने का शाप दे दिया। कालांतरमें श्रीसुदामा ने शंखचूड़ राक्षस के रूप में जन्म
लिया। यही राक्षस, भगवान विष्णु का अनन्य भक्त बना | देवी राधा ने वृषभानुजी की पुत्री
के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया।
सांसारिक दृष्टि में देवी कीर्ति गर्भवती
हुईं और उन्हें प्रसव पीड़ा भी हुई । लेकिन देवी कीर्ति के गर्भ में योगमाया की
प्रेरणा से वायु का प्रवेश हुआ और उन्होंने वायु को ही जन्म दिया, देवी राधा कन्या के
रूप में प्रकट हो गईं।
पद्म पुराण - बरसाना राधा वृषभानु
नामक वैश्यय गोप की पुत्री थीं। इसीलिए उनका श्रीराधा और श्रीकष्ण की उम्र में
कितना अंतर ?
-पुराणों के अनुसार राधा
जी कृष्ण से बड़ी थी।
श्री कृष्ण की
प्रसन्नता केलिए व्रत-
राधा अष्टमी के दिन अखंड सौभाग्य, सुख-समृद्दि के लिए राधा का व्रत रखती
हैं|, संतान सुख एवं जन्म
के लिए राधा अष्टमी का व्रत रखा जाता है राधा जी को प्रसन्न
करने से श्री कृष्ण अपने आप प्रसन्न हो जाते हैं|
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