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श्राद्ध क्या ,क्यों ,कब ,कितने प्रकार का होता है ?


श्राद्ध क्या ,क्यों ,कब ,कितने प्रकार का होता है ?

- पितृ पूजन विधि श्राद्ध है |

पितृ ऋण / दोष  से मुक्ति या पितर प्रसन्नता का उपाय ?

श्रद्धा से किए गए (श्राद्ध पक्ष में तिथि विशेष को )शास्त्रीय विधि से पितरों को तृप्त करना |  ,

पितरों से (पूर्वज मृतकों ) से क्या सम्बन्ध हमारा और कितनी पीढ़ी तक  ?

-हमारे शरीर का निर्माण शुक्र (पुरुष ग्रंथि के स्त्राव )से हुआ है |

- शुक्र के 84 अंश होते हैं| 56 अंश हमारे पूर्वजों के होते हैं| शेष 28 अंश हमारे अपने होते हैं |

- पूर्वजों से प्राप्त 56 अंश में से 21 अंश माता-पिता से, 15 अंश बाबा / दादा (पिता के पिता ) से और शेष 20 अंश पूर्व के पूर्वजों (प्रपितामह,प्रपितामही ) से आते हैं |

-इस नियम से  सातवीं पीढ़ी तक यह क्रम / संचालन क्रिया /श्रंखला निरंतर/ अनवरत चलती है |

मृतको का ,पितरों  का श्राद्ध क्यों ?

प्राण उत्सर्जन से ,मृत्यु |मृत्यु से भौतिक शरीर समाप्त विखंडित होता है यह लौकिक मृत्यु होती है ,आत्मा की मृत्यु नहीं होती है । ।  पृथ्वी तत्व का लोप एवं वायु तत्वधारी  इच्छा-शरीर  स्वतः  क्रियाशील हो जाता है | इच्छा शरीर समाप्त /विखंडित होकर अंततः सूक्ष्म शरीर में क्रियाशील होता है 

- मृत्यु के बाद ,इच्छा शरीर (नया शरीर मिलने के पूर्व तक क्रियाशील )हमारे कार्यकलापों  का अवलोकन करता रहता है |उनके लिए किया जाने वाले शस्त्र विहित ,निदेशित हमारे कार्य,उनको आनंद ,प्रसन्नता देते है | इसलिए उनकी  अपेक्षाओं ,इच्छाओं की प्रति पूर्ति के लिए श्राद्ध कर्म करना चाहिए ।

श्राद्ध कर्म क्या और क्यों करे ?

-- पितृऋण / पितृदोष से मुक्ति के लिए ,हमारा शारीर इन पूर्वजो /पितरों से निर्मित  /सृजित इसलिए उनका का ऋण चुकाना हमारा नैतिक एवं वैदिक धर्म का दायित्व है | इस दायित्व का निर्वहन का उपाय  या विधि  “श्राद्ध” कर्म  है ।

- पितृऋण / पितृदोष के कारण उत्पन्न बाधाओं और समस्याओं को रोकने हेतु श्राद्ध कर्म उल्लेखित  हैं।

- श्राद्ध पक्ष में कब श्राद्ध तिथि क्या मानी जाना चाहिए  ? किस तिथि को मृतक की श्राद्ध है ?

मृत्यु दिन की तिथि को ही मृतक  का श्राद्ध करना चाहिए |

-.श्राद्ध करता को ,अपने जन्म दिन पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए|

-चतुर्दशी तिथि को मृत व्यक्ति का श्राद्ध, चतुर्दशी पर नहीं किया जाना चाहिए। (धर्मसिंधु)

- पूर्णिमा  को मृत व्यक्ति का श्राद्ध पूर्णिमा को नहीं वरन श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए ।

सूतक से मुक्ति / सूतक से निवृत्ति कब होती है ?

सपिण्डन कार्य  संपन्न होने के बाद ही  सूतक से निवृत्ति,मुक्ति  होती है | (संदर्भ गरुड़ पुराण - 13 अध्याय)

- पितामह (बाबा/ दादा )जीवित है पिता की मृत्यु होने पर  सपिण्डन कार्य कर सकते हैं?

- पिता का पिंड  का मेलन प्रपितामह (परदादा) के पिंड से कर सपिन्दन कार्य कर सकते हैं ।

-माता की मृत्यु की स्थिति में  उनके पिंड को पितामही ( माँ की सास के पिंड में )मिलाका सपिन्दन क्रिया पूर्ण की जा सकती है |

- मत्स्य पुराण 03 श्राद्ध  - 1- नित्य2- नैमित्तिक 3- काम्य श्राद्ध कहते हैं।

 यम स्मृति - पांच प्रकार के श्राद्धों – 1-नित्य2-, नैमित्तिक3- काम्य4- वृद्धि 5- पार्वण |

१:-नित्य श्राद्ध:- प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहा जाता है।

 जल इस श्राद्ध को सम्पन्न (विश्वेदेवों को स्थापित किये बिना) करते हैं |

२:- एकोद्दिष्ट /नैमित्तिक -श्राद्ध यह किसी की मृत्यु हो जाने पर दशाह, एकादशाह आदि एकोद्दिष्ट श्राद्ध के अन्तर्गत आता है। (विश्वेदेवों को स्थापित किये बिना)

३:- काम्य श्राद्ध:- कामना विशेष की  पूर्ति के लिए किया जाता है ।

४:- वृद्धि श्राद्ध/ नान्दी श्राद्ध या नान्दीमुख श्राद्ध:- प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में -पुत्र जन्म, वास्तु प्रवेश, विवाहादि में भी पितरों की प्रसन्नता के लिए किया जाता है|

प्रतिदिन  दैनंदिनी जीवन में देव-ऋषि-पित्र तर्पण भी किया जाता है।

५:- पर्व की तिथि को पार्वण श्राद्ध:- पितृपक्ष, अमावास्या या किसी पर्व की तिथि आदि पर जो श्राद्ध किया जाता है उसे पार्वण श्राद्ध कहलाता है। ( विश्वेदेव स्थापना कर संपन्न  होता है.!)

६:- सपिण्डन श्राद्ध:-सपिण्डन श्राद का अर्थ होता है पिण्डों को मिलाना, प्रेत पिण्ड का पितृ पिण्डों में सम्मेलन कराया जाता है। यही सपिण्डन श्राद्ध कहलता है।

७:- गोष्ठी श्राद्ध:- समूह में किया जाता है उसे ही गोष्ठी श्राद्ध कहते हैं.!

८:- शुद्धयर्थ श्राद्ध:- शुद्धि के निमित्त किया जाता है.!

९:- कर्माग श्राद्ध:- प्रधान कर्म के अंग के रूप में जो श्राद्ध किया जाता है

१०:- यात्रार्थ श्राद्ध:- तीर्थ यात्रा या  विदेश यात्रा  उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है ।

११:- पुष्ट्यर्थ श्राद्ध:- श्राद्ध शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाता है |

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