गुप्त नवरात्रि -
प्रतिपदा तिथि 10
जुलाई को सुबह 07 बजकर 47 मिनट से शुरू होगी, जो कि 11 जुलाई की सुबह 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगी। घटस्थापना का अभिजीत
मुहूर्त सुबह
11 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक है।
घटस्थापना
का अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर
59 मिनट से दोपहर 12
बजकर 54 मिनट तक है।
त्रिपुर भैरवी-काल
भैरव,नरसिंह,लग्न
त्रिपुर
भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण सम्पन्न| तेरह स्वरुपवाली विद्या तत्वनी हैं| लाल
पुष्प,फल,प्रसाधन से पूजा की जाती है |
लाल वस्त्र ,कंठ में मुंड माला और कर में माला, अभय और वर मुद्रा स्वरूपा ,सौभाग्य
प्रदायनी हैं | बंधन दूर हो जाते हैं। यह करा मुक्ति,बंदी
छोड़ माता है।
भैरवी मंत्र गायत्री मंत्र : ॐ त्रिपुरायै विदमहे महा भैरव्यै धीमही
तन्नो देवी प्रचोदयात.
: ' ह्रीं भैरवी
क्लौं ह्रीं स्वाहा:'|
'ह स: हसकरी हसे।'
पार्वती जी के शारीर से उद्भूत देवी –
ऊपर
नैऋत्य
कोण में सिद्धिविद्या एवं भोगदात्री भुवनेश्वरी हैं।
वायव्य कोण में मोहिनीविद्या वाली मातंगी हैं।
ईशान कोण में सिद्धिविद्या एवं मोक्षदात्री
षोडषी |
सामने सिद्धिविद्या और मंगलदात्री भैरवी रूपा मैं स्वयं
उपस्थित हूं।
ग्रह ओर देवी
]
🔯शुक्र के लिए
:- कमला
माता
🔯शनि के लिए
:-माँ
काली
9-मातंगी-
10-कमला-विष्णु रूप,मत्स्य महाविद्या – विष्णु के अवतार
,शुक्र
दस महाविद्या विभिन्न दिशाओं की
अधिष्ठातृ शक्तियां है ..
शुक्र
- सिद्धीदात्री स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।
2.
9.
10.
माता ललिता |
देवी ललिता जी का ध्यान रुप बहुत ही
उज्जवल व प्रकाश मान है. कालिकापुराण के अनुसार देवी की दो
भुजाएं हैं, यह
गौर वर्ण की, रक्तिम
कमल पर
विराजित हैं. ललिता देवी की पूजा से समृद्धि की प्राप्त होती है. दक्षिणमार्गी शाक्तों
के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है. इनकी पूजा पद्धति में
ललितोपाख्यान, ललितासहस्रनाम,
ललितात्रिशती का पाठ किया जाता है. दुर्गा का एक रूप
ललिता के नाम से जाना गया है.
भैरवी मंत्र गायत्री मंत्र : ॐ त्रिपुरायै विदमहे महा भैरव्यै धीमही
तन्नो देवी प्रचोदयात.
ॐ सती भैरवी भैरो काल
यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की । अभय मुद्रा पीये रुधिर
नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई
सातवें पाताल, सातवें
पाताल मध्ये परम-तत्त्व
परम-तत्त्व में जोत, जोत
में परम जोत, परम
जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर-
भैरवी, समपत-प्रदा-भैरवी,
कौलेश- भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंशिनी-भैरवी, चैतन्य-भैरवी, कमेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी, जपा-अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मन्त्र
मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा शिव ने कहायी । ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत
श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट सिद्धा ले उतरेगी काल के पार,
भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हटे काल जंजाल भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ
वासा । अमर लोक में हुवा निवासा ।
प्रथम ज्योति महाकाली
प्रगटली ।
॥ भैरवी ॥
ॐ सती भैरवी भैरो काल
यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की । अभय मुद्रा पीये
रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई
सातवें पाताल, सातवें
पाताल मध्ये परम-तत्त्व
परम-तत्त्व में जोत, जोत
में परम जोत, परम
जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर-भैरवी,
सम्पत्त-प्रदा-भैरवी, कौलेश-भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंसिनि-भैरवी, चैतन्य-भैरवी, कामेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी । जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती
यही मन्त्र मत्स्येन्द्रनाथजी
को सदा शिव ने कहायी । ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट
सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश
पर, दूर हटे काल जंजाल
भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ वासा । अमर लोक में हुवा निवासा ।
ॐ
ह्सैं ह्स्क्ल्रीं ह्स्त्रौः
ॐ
धूं धूं धूमावती स्वाहा ।
नवम
ज्योति मातंगी प्रगटी ।
॥ मातंगी ॥
ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ॐ-कार, ॐ-कार में शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी,
उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे
सर्वांगधारी । बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते । ॐ मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये ।
तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे ।
ॐ
ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।
दसवीं
ज्योति कमला प्रगटी ।
॥ कमला ॥
ॐ अ-योनी शंकर ॐ-कार
रुप, कमला देवी सती
पार्वती का स्वरुप । हाथ में सोने का कलश, मुख से अभय मुद्रा । श्वेत वर्ण सेवा
पूजा करे, नारद इन्द्रा । देवी देवत्या ने किया
जय ॐ-कार । कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्र कमलों का
किया हवन । कहे गोरख, मन्त्र
जपो जाप जपो
ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान । जिसकी तीन लोक में भया मान । कमला देवी के
चरण कमल को आदेश ।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं
श्रीं सिद्ध-लक्ष्म्यै नमः ।
सुनो पार्वती हम
मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ
नाती, हम शिव स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का
योग, दस विद्या शक्ति जानो,
जिसका भेद शिव शंकर ही पायो । सिद्ध योग मर्म जो
जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका । योगी योग नित्य करे प्रातः उसे वरद भुवनेश्वरी
माता । सिद्धासन सिद्ध, भया
श्मशानी तिसके
संग बैठी बगलामुखी । जोगी खड दर्शन को कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी । नाभी स्थाने
उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी । ॐ-कार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी । पाताल जोगन
गगन को चढ़ी, जहां पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी । आलस
मोड़े, निद्रा तोड़े तिसकी
रक्षा देवी धूमावन्ती करें । हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे । जो कमला
देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे । जो दसविद्या का
सुमिरण करे । पाप पुण्य से न्यारा रहे । योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन
निवरते । मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जाये । इतना दस महाविद्या मन्त्र
जाप सम्पूर्ण भया । अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला,
अचलगढ़ पर्वत पर बैठ श्रीशम्भुजती गुरु
गोरखनाथजी ने पढ़ कथ कर सुनाया श्रीनाथजी गुरुजी को आदेश । आदेश ॥
दस महाविद्या स्तोत्र |
दुर्ल्लभं
मारिणींमार्ग दुर्ल्लभं तारिणींपदम्।
मन्त्रार्थ
मंत्रचैतन्यं दुर्ल्लभं शवसाधनम्।।
श्मशानसाधनं
योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम्।
क्रियासाधनमं
भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्।।
तव
प्रसादाद्देवेशि सर्व्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः।।
शिव ने कहा- तारिणी
की उपासना मार्ग अत्यन्त दुर्लभ है। उनके पद की प्राप्ति भी अति कठिन है। इनके
मंत्रार्थ ज्ञान, मंत्र चैतन्य, शव साधन, श्मशान साधन, योनि साधन, ब्रह्म साधन, क्रिया साधन, भक्ति साधन और मुक्ति साधन,
यह सब भी दुर्लभ हैं। किन्तु हे देवेशि! तुम जिसके ऊपर प्रसन्न होती हो, उनको सब विषय में
सिद्धि प्राप्त होती है।
नमस्ते
चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।
नमस्ते
कालिके कालमहाभयविनाशिनी।।
हे
चण्डिके! तुम प्रचण्ड स्वरूपिणी हो। तुमने ही चण्ड-मुण्ड का विनाश किया है।
तुम्हीं काल का नाश करने वाली हो। तुमको नमस्कार है।
शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।
जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।
हरार्च्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम्।।
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।
हे
शिवे जगद्धात्रि हरवल्लभे! मेरी संसार से रक्षा करो। तुम्हीं जगत की
माता हो और तुम्हीं अनन्त जगत की रक्षा करती हो। तुम्हीं जगत का संहार करने
वाली हो और तुम्हीं जगत को उत्पन्न करने वाली हो। तुम्हारी मूर्ति
महाभयंकर है।
तुम मुण्डमाला से अलंकृत हो। तुम हर से सेवित हो। हर से पूजित हो और
तुम ही हरिप्रिया हो। तुम्हारा वर्ण गौर है। तुम्हीं गुरुप्रिया हो और
श्वेत आभूषणों से अलंकृत रहती हो। तुम्हीं विष्णु प्रिया हो। तुम ही
महामाया हो। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी तुम्हारी पूजा करते हैं। तुमको
नमस्कार है।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।
मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्।।
प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्।।
तुम्हीं
सिद्ध और सिद्धेश्वरी हो। तुम्हीं सिद्ध एवं विद्याधरों से युक्त हो। तुम मंत्र सिद्धि
दायिनी हो। तुम योनि सिद्धि देने वाली हो। तुम ही लिंगशोभिता महामाया हो।
दुर्गा और दुर्गति नाशिनी हो। तुमको बारम्बार नमस्कार है।
उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।
नीलां नीलघनाश्यामां नमामि नीलसुंदरीम्।।
तुम्हीं
उग्रमूर्ति हो, उग्रगणों से युक्त हो, उग्रतारा हो, नीलमूर्ति हो, नीले मेघ के समान श्यामवर्णा हो और नील सुन्दरी हो। तुमको नमस्कार है।
श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्व्वार्थसाधिनीम्।।
तुम्हीं
श्याम अंग वाली हो एवं तुम श्याम वर्ण से सुशोभित जगद्धात्री हो, सब कार्य का साधन करने वाली हो, तुम्हीं गौरी हो। तुमको नमस्कार है।
विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।
आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम्।।
श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मा सुरेश्वरीम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्।।
तुम्हीं
विश्वेश्वरी हो, महाभीमाकार हो, विकट मूर्ति हो। तुम्हारा शब्द उच्चारण महाभयंकर है। तुम्हीं सबकी आद्या हो, आदि गुरु महेश्वर की भी आदि माता हो।
आद्यनाथ महादेव सदा तुम्हारी पूजा करते रहते हैं।
तुम्हीं
धन देने वाली अन्नपूर्णा और पद्मस्वरूपीणी हो। तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी हो, जगत की माता हो, हरवल्लभा हो। तुमको नमस्कार है।
त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम्।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्।।
सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम्।
नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम्।।
हे
देवी! तुम्हीं त्रिपुरसुंदरी हो। बाला हो। अबला गणों से मंडित हो। तुम
शिव दूती हो, शिव आराध्या हो, शिव से ध्यान की हुई, सनातनी हो, सुन्दरी तारिणी हो, शिवा गणों से अलंकृत हो, नारायणी हो, विष्णु से पूजनीय हो। तुम ही केवल
ब्रह्मा, विष्णु तथा हर की प्रिया हो।
सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम्।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्च्चितां सर्व्वसिद्धिदाम्।।
दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्।।
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।।
तुम्हीं
सब सिद्धियों की दायिनी हो, तुम नित्या हो, तुम अनित्य गुणों से रहित हो। तुम सगुणा हो, ध्यान के योग्य हो, पूजिता हो, सर्व सिद्धियां देने वाली हो, दिव्या हो, सिद्धिदाता हो, विद्या हो, महाविद्या हो, महेश्वरी हो, महेश की परम भक्ति वाली माहेशी हो, महाकाल से पूजित जगद्धात्री हो और
शुम्भासुर की नाशिनी हो। तुमको नमस्कार है।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्।
भैरवीं भुवनां देवी लोलजीह्वां सुरेश्वरीम्।।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।
त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्।।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशीनीम्।
कमलां छिन्नभालांच मातंगीं सुरसंदरीम्।।
षोडशीं विजयां भीमां धूम्रांच बगलामुखीम्।
सर्व्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम्।।
प्रणमामि जगत्तारां सारांच मंत्रसिद्धये।।
तुम्हीं
रक्त से प्रेम करने वाली रक्तवर्णा हो। रक्त बीज का विनाश करने वाली, भैरवी, भुवना देवी, चलायमान जीभ वाली, सुरेश्वरी हो। तुम चतुर्भजा हो, कभी दश भुजा हो, कभी अठ्ठारह भुजा हो, त्रिपुरेशी हो, विश्वनाथ की प्रिया हो, ब्रह्मांड की ईश्वरी हो, कल्याणमयी हो, अट्टहास से युक्त हो, ऊँचे हास्य से प्रिति करने वाली हो, धूम्रासुर की नाशिनी हो, कमला हो, छिन्नमस्ता हो, मातंगी हो, त्रिपुर सुन्दरी हो, षोडशी हो, विजया हो, भीमा हो, धूम्रा हो, बगलामुखी हो, सर्व सिद्धिदायिनी हो, सर्वविद्या और सब मंत्रों की विशुद्धि
करने वाली हो। तुम सारभूता और जगत्तारिणी हो। मैं मंत्र सिद्धि के लिए तुमको
नमस्कार करता हूं।
इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।
हे
वरारोहे! यह स्तव परम सिद्धि देने वाला है। इसका पाठ करने से सत्य ही मोक्ष
प्राप्त होता है।
कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्।
त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि।।
मंगलवार
की चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार की अमावस्या तिथि में और शुक्रवार निशा काल में यह
स्तुति पढ़ने से मोक्ष प्राप्त होता है। हे शंकरि! तीन पक्ष तक इस स्तव के
पढ़ने से मंत्र सिद्धि होती है। इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए।
चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा।
निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मंत्रसिद्धिमवाप्नुयात्।।
चौदश की रात में तथा शनि और मंगलवार की संध्या के
समय इस स्तव का पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है।
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा।
जागर्तिं सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी।।
जो
पुरुष केवल इस स्तोत्र को पढ़ता है, वह अनुत्तमा सिद्धि को प्राप्त करता है। इस स्तव के फल से चण्डिका कुल-कुण्डलिनी नाड़ी का जागरण होता है।
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