सीता ने स्वसुर
का पिंड दान किया |
गया स्थल पुराण’ -भगवान राम की पत्नी ,मिथलेश नंदनी
, सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था।
इक्ष्वाकु वंश के राजा अज और इन्दुमती के पुत्र
के मनु अर्थात महाराज दशरथ थे । जब वह मनु
थे तो उन्होंने अपनी पत्नी शतरूपा के साथ घोर तपस्या करके भगवान विष्णु को प्रसन्न
किया था उसके बाद नाम दशरथ प्रसिद्ध हुआ |
वनवास काल में , भगवान राम, लक्ष्मण
और सीता सहित पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे थे। राजा
दशरथ की पुत्र वियोग में मृत्यु के बाद
राम के अयोध्या में न होने के कारण भरत और शत्रुघ्न ने अंतिम संस्कार किया | राजा
दशरथ की आत्मा तो पुत्र राम के मोह में थी. इसलिए अंतिम संस्कार के बाद उनकी चिता की शेष
राख हवा प्रवाह में उनकी आत्मा उडाती हुई गया में फल्गु नदी के पास पहुंची , जहाँ राम और लक्ष्मण फल्गु नदी में स्नान कर रहे थे |
सीता जी नदी किनारे बैठकर रेत को हाथों में लिए भविष्य
के आगत विचारों में निमग्न थी| सीता जी को स्पष्ट आभास हुआ की मृत ससुर दशरथ की छवि रेत में उभर रही है.|
सीता जी के मन में विचार प्रस्फुटित हुआ की
ससुर महाराजा दशरथ की आत्मा राख के माध्यम से उनसे कुछ कहना चाहती है,सीताजी ने
उभरती अक्रती की और दयां केन्द्रित किया |
सीता
जी को ससुर महाराजा दशरथ का अस्फुट स्वर सुनाई दिया – ‘मेरे पास समय कम है ,तुम मुझे पिंडदान शीघ्र करो | सीता जी ने पीछे मुड़कर देखा
तो दोनों भाई जल में स्नान ध्यान मग्न थे|
समय कम था एसा ससुर ने कहा उनकी आत्मा की व्यग्रता का विचार कर,सीताजी ने समय न गवाते हुए ससुर महाराजा दशरथ की आत्मा को पिंड दान का तात्कालिक
परिस्थिति में निर्णय किया|
ससुर
महाराजा दशरथ की राख(जिसका उनको
ज्ञान नहीं था ससुर महाराजा दशरथ की राख) को रेत में मिलाकर हाथों में उठा कर ,
फाल्गुनी नदी के तात पर गाय, तुलसी, अक्षय
वट और संपी ही उपस्थित एक ब्राह्मण को इस पिंडदान का साक्षी बनाकर स्वर्गीय राजा
दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया।
स्नान उपरांत श्रीराम इस बात पर त सुनकर राम को विश्वास नहीं
हुआ अंतता: सीता जी ने राजा दशरथ की आत्मा के
पिंडदान के साक्षी पांच जीवों को बुलाकर सत्य तथ्य बताने का आग्रह किया |
अक्षय वट ने सत्य बोलते हुए सीता के वचन का
समर्थन किया ,लेकिन श्रीराम की क्रोधित
मुद्रा देख कर , फाल्गुनी नदी, गाय, तुलसी, और
ब्राह्मण ने असत्य कथन करते हुए , ऐसी
किसी भी घटना के घटित होने या साक्ष्य से असहमति व्यक्त कर दी |
वट वृक्ष के अतिरिक्त सभी की बातें सुनकर सीता जी
शोक और क्रोध आवेश एवं अवीश में व्यग्र , व्याकुल हो अन्य असत्य कथन कर्ताओं को श्राप देते हुए कहा - गाय तुम दीर्घकाल तक पूज्य नहीं रहोगी | फाल्गुनी नदी तुम निर्जल
होगी ( पानी को सूख जाने ) (इस नदी में आज भी अल्प मात्र में जल ) है | तुलसी जी तुम
गया क्षेत्र में उत्पन्न / उगोगी नहीं , और ब्राह्मण को श्राप देते हुए कहा कि तुम कभी भी जीवन
भर संतुष्ट नहीं होगे, वस्तुओं को प्राप्ति की लालसा मन में सदैव रहेगी|
अक्षय
वट को वरदान देते हुए कहा ‘तुम हमेशा पूज्य रहोगे और जो लोग भी पिंडदान करने के लिए यहाँ आएंगे वे तुम्हारा पूजन करेंगे तभी उनकी पूजा
सफल होगी|
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