अंगूठे के पास से जल तर्पण (पितरों को) का रहस्य क्या है ? (संदर्भ ग्रन्थ –नित्य कर्म पूजा प्रकाश ) हमारी हथेली में देव,.पितृ,ऋषि आदि 5 प्रकार के पूज्य वर्ग के नियत स्थान है | तर्पण(तिलक,यव.जल) कार्य दोनों हाथो से किया जाता है |यह दैनिक रूप से पित्री,देवता,एवं ऋषि वर्ग को दिया जाता है |उनके प्रति श्रद्ध एवं आभार स्वरूप ,अपने भावी कल्याण के लिए | - श्राद्ध कर्म के समय पितरों का तर्पण भी किया जाता है “ पिंडों पर अंगूठे के माध्यम से जलांजलि” दी जाती है। -क्योकि पौराणिक निदेश- पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितरों की पूर्ण तृप्ति होती है। -क्योकि तर्जनी (पहली उंगली) और अंगूठे के बीच के स्थान को पितृतीर्थ (पितरों का निवास ,आश्रय स्थल )कहते हैं। इस स्थान से पितरों को जल अर्पित किया जाता है। पितृ तीर्थ( पितरों की प्रतीकात्मक उपस्थिति ) दक्षिण दिशा की और मुख कर तर्पण कार्य पितरों की प्रसन्नता के लिए किया जाता है | इसलिए पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे के माध्यम से जल देने का नियमन किया गया है। अंगूठे से पितरों को जल देन
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