9 ग्रहों की नक्षत्रों में शुभता –
ग्रह किस नक्षत्र पर शुभ-अशुभ -कुंडली में लग्नेश मित्र ग्रह -शुभ फल देगा; लग्नेश का शत्रु गृह नीच या कामजोर होना उत्तम होता है
ग्रह (Graha)
|
शुभ नक्षत्र |
मध्यम नक्षत्र |
वर्जित नक्षत्र |
संदर्भ ग्रंथ |
सूर्य (Surya) |
कृतिका, उत्तर फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा |
पुनर्वसु, रोहिणी, श्रवण |
अश्लेषा, मूल, पूर्वाषाढ़ा |
बृहत् जातकम्, अध्याय 6 |
चंद्र (Chandra) |
रोहिणी, हस्त, श्रवण |
अनुराधा, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा |
अश्लेषा, मूल, मघा |
जातक पारिजात, अध्याय 4 |
मंगल (Mangal) |
अश्विनी, चित्रा, धनिष्ठा |
भरणी, मृगशिरा |
मूल, कृत्तिका, पूर्व भाद्रपद |
फलदीपिका, अध्याय 5 |
बुध (Budh) |
हस्त, आश्लेषा, उत्तराफाल्गुनी |
मृगशिरा, पुनर्वसु |
मूल, कृत्तिका, आर्द्रा |
सारावली, अध्याय 8 |
गुरु (Guru) |
पूष्य, विशाखा, पुनर्वसु |
श्रवण, मृगशिरा |
मूल, अश्लेषा, भरणी |
बृहत् जातकम् |
शुक्र (Shukra) |
रोहिणी, हस्त, उत्तराफाल्गुनी |
पुनर्वसु, चित्रा |
मूल, अश्लेषा, कृत्तिका |
फलदीपिका |
शनि (Shani) |
श्रवण, उत्तराषाढा, धनिष्ठा |
विशाखा, अनुराधा |
अश्लेषा, मूल, भरणी |
जातक तत्त्व, खण्ड 4 |
राहु (Rahu) |
स्वाति, शतभिषा |
आर्द्रा, मघा |
कृत्तिका, मूल, अश्लेषा |
नाड़ी ग्रंथ, फलदीपिका |
केतु (Ketu) |
मूल, अश्विनी, मघा |
आर्द्रा, शतभिषा |
कृत्तिका, पुनर्वसु, अश्लेषा |
अगस्त्य नाड़ी, बृगु संहिता |
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें