विनायक चतुर्थी, -01may2025 ऋणमुक्ति, मानसिक शांति, पारिवारिक सुख और आर्थिक समृद्धि
गणेश पुराण तथा स्कन्द पुराण - ऐसे योग में श्री गणेशजी की उपासना करने से मनोवांछित फल शीघ्र प्राप्त होते हैं। - -दान, जप, और पूजन का फल सौगुणा बढ़ जाता है।
🌿 लाभदायक दान- काले तिल, दूर्वा घास, घी भरे मोदक, पीले वस्त्र, श्रीफल (नारियल), पीतल या स्वर्ण की गणेश मूर्ति तथा विद्यार्थियों को पुस्तकें या लेखन सामग्री विशेष रूप से फलदायी मानी जाती हैं।
- ऋणमुक्ति, मानसिक शांति, पारिवारिक सुख और आर्थिक समृद्धि का लाभ होता है।
🕉️ लाभ मंत्र: दिन लाभ प्राप्ति के लिए प्रभावी मंत्र है —
"ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानाय स्वाहा॥" गणेश उपनिषद तथा गणेश तन्त्र ;
-इसे 108 बार गुरुवार को मृगशिरा नक्षत्र में करने से विशेष फल मिलता है।
📜 शास्त्रीय श्लोक: गणेश पुराण— "सिद्धि बुद्धि समायुक्तं पुत्रं तं विनयकम्, भजामि विघ्नराजं तं सर्व कार्यफल प्रदं॥"
—गणेशजी सिद्धि और बुद्धि से युक्त हैं, जो समस्त विघ्नों का नाश करते हैं और सभी कार्यों में फल देने वाले हैं, उन विनायक का मैं भजन करता हूँ।
-यह श्लोक विशेष रूप से हर नये कार्य की शुरुआत में पढ़ा जाता है, जिससे विघ्न दूर होकर कार्यसिद्धि प्राप्त होती है।
✅ विशेष लाभ: इस दिन किया गया पूजन, जप और दान व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, सांसारिक और आध्यात्मिक रूप से विशेष उन्नति प्रदान करता है। विवाह योग्य कन्या या युवक के लिए योग्य जीवनसाथी प्राप्ति, व्यवसाय में लाभ, परीक्षा में सफलता, यात्रा में शुभता, तथा रोग निवारण के लिए भी यह योग अत्यंत प्रभावशाली है।
________________________________________
📜 शास्त्रीय श्लोक एवं प्रमाण
1. गणेश पुराण, उपासनाखण्ड, अध्याय 5, श्लोक 23:
विनायको यदि पूज्यः स्यात् चतुर्थ्यां गुरौ दिने।
मृगशिरे तदा पूजां कोटिकल्पफलं लभेत्॥
अर्थ: यदि विनायक चतुर्थी का दिन गुरुवार को मृगशिरा नक्षत्र में पड़े और उस दिन गणेशजी की पूजा की जाए, तो वह पूजा करोड़ों कल्पों तक किए गए यज्ञों के समान फलदायी होती है।
2. धर्मसिंधु, चतुर्थी-व्रत-विधि:
गुरौ दिने चतुर्थ्यां च मृगशिरा नक्षत्रे विशेषतः।
विनायकं समर्च्यैव सर्वसिद्धिमवाप्नुयात्॥
अर्थ: गुरुवार को चतुर्थी तिथि और मृगशिरा नक्षत्र के संयोग में विनायक की पूजा करने से साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
3. निर्णयसिन्धु, व्रतखंड, चतुर्थी-व्रत-विधि:
गुरौ दिने चतुर्थ्यां च मृगशिरा नक्षत्रे विशेषतः।
विनायकं समर्च्यैव सर्वसिद्धिमवाप्नुयात्॥
अर्थ: गुरुवार को चतुर्थी तिथि और मृगशिरा नक्षत्र के संयोग में विनायक की पूजा करने से साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
4. गणेश पुराण, उपासनाखण्ड, अध्याय 5, श्लोक 23:
विनायको यदि पूज्यः स्यात् चतुर्थ्यां गुरौ दिने।
मृगशिरे तदा पूजां कोटिकल्पफलं लभेत्॥
अर्थ: यदि विनायक चतुर्थी का दिन गुरुवार को मृगशिरा नक्षत्र में पड़े और उस दिन गणेशजी की पूजा की जाए, तो वह पूजा करोड़ों कल्पों तक किए गए यज्ञों के समान फलदायी होती है।
5-. नारद पुराण, पूर्वभाग, अध्याय 98, श्लोक 12:
गुरौ दिने विनायकं, पूजयेद् भक्तिसंयुतः।
विघ्नं नाशयते सर्वं, धनं वृद्धिं च विन्दति॥
अर्थ: जो भक्त गुरुवार के दिन विनायकजी का श्रद्धा से पूजन करता है, उसके समस्त विघ्न नष्ट हो जाते हैं और उसे धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- मुद्गल पुराण, विनायकव्रतकथा, अध्याय 7:
मृगशिरा गते चन्द्रे, चतुर्थ्यां हरिपर्वणि।
दानं जपं च यत्किंचित्, तत्सर्वं अक्षयं भवेत्॥
अर्थ: जब चंद्रमा मृगशिरा नक्षत्र में स्थित हो और वह दिन विनायक चतुर्थी का हो, तब उस दिन किया गया कोई भी दान या जप अक्षय (नाशरहित) फल देता है।
🕉️ पूजन दिशा, समय एवं आसन
दिशा: पूजन करते समय साधक को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।
समय:
• प्रातःकालीन मुहूर्त: सूर्योदय के बाद का समय सर्वोत्तम माना जाता है।
• मध्याह्न काल: विशेष रूप से गणेश चतुर्थी पर, मध्याह्न (दोपहर 12:00 से 12:30 बजे तक) का समय गणेश पूजन के लिए श्रेष्ठ होता है।
• रात्रिकाल: यदि दिन में संभव न हो, तो रात्रि में चंद्रमा के दर्शन के बाद भी पूजन किया जा सकता है।
आसन: पूजा के लिए लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर बैठना शुभ होता है। इससे साधक की एकाग्रता बढ़ती है और पूजा में स्थिरता आती है।
________________________________________
🪔 दीपक, घृत, तैल, वर्तिका एवं संख्या
दीपक का प्रकार:
• घी का दीपक: शुद्ध देसी गाय के घी से बना दीपक सर्वोत्तम माना गया है।
• तेल का दीपक: तिल के तेल का दीपक भी उपयोग में लाया जा सकता है, विशेषकर रात्रिकालीन पूजन में।
वर्तिका (बाती):
• कपास की वर्तिका: सामान्यतः उपयोग में लायी जाती है।
• रक्तचंदन मिश्रित वर्तिका: विशेष पूजन में उपयोगी होती है।
दीपक की संख्या:
• एक दीपक: सामान्य पूजन के लिए पर्याप्त है।
• पाँच दीपक: विशेष अवसरों पर पंचदीपक पूजन किया जाता है, जो अधिक फलदायक माना गया है।
________________________________________
🌸 पुष्प, फल, अन्न एवं नैवेद्य
पुष्प:
• लाल फूल: जैसे गुड़हल, गेंदे के फूल गणेशजी को अत्यंत प्रिय हैं।
• दूर्वा घास: गणेशजी की पूजा में दूर्वा का विशेष महत्व है।
• शमी पत्र: विशेष अवसरों पर अर्पित किया जाता है।
फल:
• नारियल, केला, सेब, अनार आदि फल अर्पित किए जाते हैं।
• कपित्थ (कठल) और जम्बू (जामुन): गणेशजी के प्रिय फल माने जाते हैं।
अन्न एवं नैवेद्य:
• मोदक: गणेशजी का प्रिय नैवेद्य है।
• लड्डू: विशेष रूप से बेसन या बूंदी के लड्डू अर्पित किए जाते हैं।
• पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण अर्पित किया जाता है।
________________________________________
🎁 दान, वास्तु एवं समय
दान:
• तिल, दूर्वा, मोदक, पीले वस्त्र, स्वर्ण या चांदी, पुस्तकें, लेखन सामग्री, अन्न, फल, दक्षिणा आदि का दान शुभ माना गया है।
वास्तु:
• पूजा स्थल को स्वच्छ और शांतिपूर्ण रखना चाहिए।
• गणेशजी की मूर्ति को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके स्थापित करना चाहिए।
दान का समय:
• पूजन के पश्चात् दान करना श्रेष्ठ होता है।
• संध्याकाल में भी दान किया जा सकता है, विशेषकर यदि दिन में संभव न हो।
---------------------------------
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें