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दुर्गा -नवमी देवी माँ सिद्धिदात्री - मंत्र: वर्तिका का रंग,दीपक की संख्या,घी या तेल,दिशा,अर्पण सामग्री,आरती

दुर्गा की नवमी देवी माँ सिद्धिदात्री हैं,

🔹 1. जन्म और उद्भव शास्त्र प्रमाण सहित

माँ सिद्धिदात्री का जन्म परब्रह्म परमेश्वर के अर्धनारीश्वर स्वरूप से हुआ है। जब ब्रह्मांड की रचना नहीं हुई थी, तब भगवान शिव ने सभी सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए माँ की उपासना की और वे सिद्धिदात्री रूप में प्रकट हुईं।

📜 शास्त्र प्रमाण:

"या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
(
देवी महात्म्य, सप्तशती, 11.3)

"आदिनाथ शिव ने ब्रह्मांड सृजन हेतु जब देवी की उपासना की, तब वे सिद्धियों सहित प्रकट हुईं और 'सिद्धिदात्री' कहलाईं।"
(
देवी भागवत पुराण, सप्तम स्कंध)


🔹 2. वेदों में उल्लेख

माँ सिद्धिदात्री के गुण और स्वरूप का वर्णन देवी सूक्त (ऋग्वेद 10.125), देवी उपनिषद तथा देवी भागवत में मिलता है।

📖 ऋग्वेद देवी सूक्त:

"अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां..."
इस मंत्र में देवी स्वयं कहती हैं कि वे सभी शक्तियों की मूल हैं यही सिद्धिदात्री का स्वरूप है।


🔹 3. रूप, रंग और वाहन

  • रंग: पूर्ण श्वेत (गौरवर्ण)
  • वस्त्र: श्वेत
  • भुजाएँ: चार
  • अस्त्र-शस्त्र: चक्र, गदा, शंख, कमल
  • वाहन: सिंह (कुछ ग्रंथों में कमलासन भी)
  • मुद्राएँ: वरद और अभय

🔹 4. राक्षस-वध और कार्य

माँ सिद्धिदात्री ने कोई विशिष्ट राक्षस का वध नहीं किया, बल्कि इन्होंने देवताओं को आठों सिद्धियाँ (अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वशित्व, कामावसायिता) प्रदान कीं, जिससे वे असुरों पर विजय प्राप्त कर सके।

📖 देवी भागवत पुराण:

"देवा यस्याः प्रसादेन सिद्धयः प्राप्तवन्ति ते।
सा देवी सिद्धिदात्रीति लोके विख्याता परा॥"
(
देवी भागवत 7.35)

🪔 अतः माँ सिद्धिदात्री स्वयं युद्ध नहीं करतीं, बल्कि शक्तियाँ देकर राक्षसों के अंत का मार्ग प्रशस्त करती हैं।


🔹 5. माँ सिद्धिदात्री का महत्व

  • यह देवी सर्वसिद्धियों की प्रदायिनी हैं।
  • ब्रह्मा, विष्णु और शिव तक ने इनसे ज्ञान और शक्ति पाई।
  • इनकी आराधना से अष्टसिद्धियाँ और नव निधियाँ प्राप्त होती हैं।
  • मोक्ष और ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति में सहायक हैं।

📖 श्लोक (देवी उपासना से सिद्धि):

"सिद्धयः सन्तु मे नित्यं भुक्तिमुक्तिप्रदायिनीम्।
त्वां नमामि सदा भक्त्या सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥"
(
तंत्रसार, नवदुर्गा स्तोत्र)


📿 ध्यान मंत्र:

"सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥"


माँ सिद्धिदात्री की पूजा विधि, अष्टसिद्धियों का विवरण, -

माँ सिद्धिदात्री नवमी देवी पूजा विधि (संक्षेप में)

🪔 1. दीपक की दिशा (Direction of Lamp):

  • दीपक को पश्चिम दिशा में रखें, अर्थात् दीपक का मुख पूर्व की ओर हो।
  • यह देवी के "ज्ञान स्वरूप" और "सिद्धि प्रदायिनी" स्वरूप को जाग्रत करता है।
  • पूजक का मुख पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।

📖 शास्त्र प्रमाण:

"दीपं तु स्थापयेद् यत्र प्राचीं प्रेक्ष्य संयुतम्।
सर्वसिद्धिफलं तत्र लभते नात्र संशयः॥"
— (
कुलार्णव तंत्र, 7.13)


🔥 2. वर्तिका का रंग (Color of Wick):

·         🔶 1. वर्तिका किस वस्तु से बननी चाहिए?

·         शास्त्रों में विभिन्न उपयोगों के अनुसार अलग-अलग वर्तिका (बत्ती) की सामग्री का निर्देश मिलता है। प्रमुखतः निम्न वस्तुएँ मान्य हैं:

वर्तिका सामग्री

उपयोग व फल

शुद्ध रुई (कपास)

सर्वसामान्य, सर्वदेवीपूजन में श्रेष्ठ

कुशा (दर्भ घास)

ब्रह्मज्ञान, पितृपूजन, सिद्धिप्राप्ति हेतु

पीत रेशम या हल्दी लगे सूत

लक्ष्मी, सिद्धिदात्री आदि की सिद्धिप्रद पूजा हेतु

गाय का गोबर और तिल मिश्रित

तांत्रिक प्रयोगों में

·        

·         📖 शास्त्रीय प्रमाण व श्लोक:

·         🔹 (i) रुई की वर्तिका हेतु

·         📜 स्कन्द पुराण, वैष्णव खंड:

·         "शुद्धकौशेयसूत्रेण वा कर्पासवर्तिका शुभा।
दीपोऽयं देवदृश्यानां पूजायां परमं फलम्॥"

·         अर्थ: शुद्ध रेशम या रुई से बनी वर्तिका से निर्मित दीप, देवताओं के पूजन में परम फलदायक होता है।

·        

·         🔹 (ii) पीली वर्तिका (हल्दीयुक्त) हेतु

·         📜 कुलार्णव तंत्र, सप्तम उध्याय:

·         "हरिद्रालिप्तवर्त्या तु दीपं यो दीपयेद् बुधः।
सिद्धिदात्र्याः प्रसादेन वाञ्छितं लभते ध्रुवम्॥"

·         अर्थ: जो साधक हल्दी लगी वर्तिका से दीप जलाता है, वह माँ सिद्धिदात्री के प्रसाद से वांछित सिद्धियाँ प्राप्त करता है।

·        

·         🔹 (iii) कुशा वर्तिका हेतु

·         📜 देवी तंत्रसार:

·         "कुशवर्त्या शुचिर्भूत्वा दीपं यो देवपूजितम्।
सर्वपापविनाशाय सिद्धिं लभते नरोत्तमः॥"

·         अर्थ: कुश से बनी वर्तिका का प्रयोग करने वाला साधक पवित्र हो जाता है, उसके सभी पाप नष्ट होते हैं और सिद्धि प्राप्त होती है।

·        

·         🔷 2. वर्तिका का रंग (Color of Wick):

रंग

प्रयोग

शास्त्रीय स्थिति

श्वेत (सफेद)

सामान्य पूजा, शुद्धता का प्रतीक

सर्वमान्य (कर्पास वर्तिका)

पीला (हल्दी लिप्त)

लक्ष्मी, सिद्धिदात्री पूजा, सिद्धियाँ

सिद्धियों हेतु विशिष्ट (कुलार्णव तंत्र)

कृष्ण (काले तिल मिश्रित)

तांत्रिक प्रयोग, रक्षात्मक उपाय

विशेष प्रयोगों में (तंत्र ग्रंथ)

·         📌 सारांश तालिका:

सामग्री

रंग

ग्रंथ प्रमाण

प्रयोजन

शुद्ध रुई

श्वेत

स्कन्द पुराण

सामान्य, शुद्ध पूजा

हल्दी लगी सूत

पीत

कुलार्णव तंत्र

सिद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति

कुशा

हरित-धूसर

देवी तंत्रसार

ज्ञान, पितृसिद्धि

काले तिल मिश्रित

गाढ़ा

रुद्रयामल

तांत्रिक रक्षा कार्य

·        
  • सफ़ेद रुई की वर्तिका (शुद्धता का प्रतीक)।
  • विशेष प्रयोग मेंपीली या कुश वर्तिका भी चलती है (बुद्धि-सिद्धि हेतु)।

📖 श्लोक:

"श्वेतवर्त्या शुभां दीपां सर्वसिद्धिप्रदां शिवाम्।
प्रज्वालयेद् द्विजो नित्यं सर्वान्कामानवाप्नुयात्॥"
— (
रुद्रयामल तंत्र)


🪔 3. दीपक की संख्या (Number of Lamps):

  • मुख्य: 1 दीपक
  • सिद्धिप्राप्ति हेतु: 8 दीपक (अष्टसिद्धियाँ के प्रतीक)
  • वैकल्पिक: 9 दीपक (नवदुर्गा स्वरूपों हेतु)

📖 शास्त्र प्रमाण:

"एकं दीपं पवित्राय, अष्टकं सिद्धिदायिनि।
नवकं नवदुर्गायाः पूजायां कल्पते शुभम्॥"
— (
देवी तंत्र)


🙏 4. दीप को प्रणाम श्लोक (दीपप्रणाम):

"शुभं करोति कल्याणं, आरोग्यं धनसंपदा।
शत्रु बुद्धि विनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते॥"
— (
स्कंद पुराण)

"दीपं ब्रह्मस्वरूपं तं, ज्योतिर्ज्ञानमयं शुभम्।
सिद्धिदात्री समं पूज्यं, साक्षात् देवीस्वरूपकम्॥"


📿 संकलन (सारांश):

तत्व

विवरण

🔆 दीप दिशा

पश्चिम दिशा में दीपक रखें (मुख पूर्व)

🔥 वर्तिका रंग

श्वेत (रुई), विकल्प: पीली, कुश वर्तिका

🪔 दीप संख्या

1 (मुख्य), 8 (सिद्धियाँ), 9 (नवदुर्गा हेतु)

📜 शास्त्र

कुलार्णव तंत्र, रुद्रयामल, देवी तंत्र

🙏 दीप प्रणाम

"शुभं करोति..." एवं तांत्रिक मंत्रों सहित


🪔 1. दीपक में क्या डालना चाहिए घी या तेल?

शास्त्रों के अनुसार:

प्रकार

प्रयोग

श्रेष्ठता

गौघृत (गाय का घी)

सर्वोत्तम

सर्वदेव पूजन हेतु श्रेष्ठ

तिल का तेल

पितृ पूजन, तंत्र प्रयोग

पाप विनाश हेतु श्रेष्ठ

सरसों का तेल

रक्षात्मक प्रयोग, ग्रामदेवता पूजन

नकारात्मक ऊर्जा नाशक

नारियल तेल/घृत मिश्रण

दक्षिण भारत की परम्परा

दीपज्योति पूजन

भैंस का घी

वर्जित

आलस्य और तमोगुण बढ़ाता है


🔶 1. दीपक में घी या तेल का उपयोग ग्रंथ प्रमाण

🔸 (A) गाय के घी (गविघृत) हेतु

📜 देवी भागवत पुराण (11.5.10):

"गवां घृतं महापुण्यं दीपे यः प्रज्वलिष्यति।
स सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा॥"
अर्थ: जो व्यक्ति गाय के घी से दीप जलाता है, वह सभी मनोकामनाएँ प्राप्त करता है।

📜 कूर्म पुराण:

"घृतदीपप्रदानेन संतोषं लभते हरिः।"
अर्थ: घी से दीपक देने से श्रीहरि प्रसन्न होते हैं।


🔸 (B) तिल का तेल हेतु

📜 गरुड़ पुराण (आचारकाण्ड 17.38):

"तिलतेन दीपं दत्त्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।"
अर्थ: तिल के तेल से दीपदान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।


🔸 (C) भैंस के घी का निषेध

📜 यमस्मृति उद्धृत श्लोक:

"महिषीघृतं त्याज्यं दीपदाने विशेषतः।
तामसं कुरुते बुद्धिं निष्फलं स्यात् प्रयोजनम्॥"
अर्थ: भैंस का घी दीपदान में वर्जित है, यह तमोगुण को बढ़ाता है और पूजा निष्फल कर देता है।


🧭 2. दीपक की दिशा ग्रंथ प्रमाण

📜 कुलार्णव तंत्र (7.13):

"दीपं तु स्थापयेद् यत्र प्राचीं प्रेक्ष्य संयुतम्।
सर्वसिद्धिफलं तत्र लभते नात्र संशयः॥"
अर्थ: दीपक को इस प्रकार रखें कि वह पूर्व की ओर जला हो (मुख पूर्व), जिससे सर्वसिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

सारांश:

दीपक दिशा

परिणाम

मुख पूर्व (दीपक पश्चिम में रखें)

ज्ञान, सिद्धि

मुख उत्तर (दीपक दक्षिण में रखें)

धन, लक्ष्मी

मुख दक्षिण

रक्षात्मक, पितृ कार्य

मुख पश्चिम

वर्जित (कभी-कभी तंत्र प्रयोग में)


🔶 1. दीपक में घी या तेल का उपयोग ग्रंथ प्रमाण

🔸 (A) गाय के घी (गविघृत) हेतु

📜 देवी भागवत पुराण (11.5.10):

"गवां घृतं महापुण्यं दीपे यः प्रज्वलिष्यति।
स सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा॥"
अर्थ: जो व्यक्ति गाय के घी से दीप जलाता है, वह सभी मनोकामनाएँ प्राप्त करता है।

📜 कूर्म पुराण:

"घृतदीपप्रदानेन संतोषं लभते हरिः।"
अर्थ: घी से दीपक देने से श्रीहरि प्रसन्न होते हैं।


🔸 (B) तिल का तेल हेतु

📜 गरुड़ पुराण (आचारकाण्ड 17.38):

"तिलतेन दीपं दत्त्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।"
अर्थ: तिल के तेल से दीपदान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।


🔸 (C) भैंस के घी का निषेध

📜 यमस्मृति उद्धृत श्लोक:

"महिषीघृतं त्याज्यं दीपदाने विशेषतः।
तामसं कुरुते बुद्धिं निष्फलं स्यात् प्रयोजनम्॥"
अर्थ: भैंस का घी दीपदान में वर्जित है, यह तमोगुण को बढ़ाता है और पूजा निष्फल कर देता है।


🧭 2. दीपक की दिशा ग्रंथ प्रमाण

📜 कुलार्णव तंत्र (7.13):

"दीपं तु स्थापयेद् यत्र प्राचीं प्रेक्ष्य संयुतम्।
सर्वसिद्धिफलं तत्र लभते नात्र संशयः॥"
अर्थ: दीपक को इस प्रकार रखें कि वह पूर्व की ओर जला हो (मुख पूर्व), जिससे सर्वसिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

सारांश:

दीपक दिशा

परिणाम

मुख पूर्व (दीपक पश्चिम में रखें)

ज्ञान, सिद्धि

मुख उत्तर (दीपक दक्षिण में रखें)

धन, लक्ष्मी

मुख दक्षिण

रक्षात्मक, पितृ कार्य

मुख पश्चिम

वर्जित (कभी-कभी तंत्र प्रयोग में)


🔴 1. क्या बकरी (Bakri) और ऊँट (Unt) का घी पूजन योग्य है?

📜 सिद्धान्त:
वेद, स्मृति, पुराण एवं तंत्र शास्त्र के अनुसार देवपूजन में केवल शुद्ध गौघृत (गाय का घी) को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। अन्य किसी प्राणी जैसे बकरी, भैंस, ऊँट आदि का घी तमोगुणवर्धक और अपवित्र माना गया है।


📖 2. शास्त्र प्रमाण (Scriptural Proofs)

🔹 (i) मनुस्मृति (5.5):

"गवां घृतं शुद्धतमं प्रोक्तं, अन्यत् सर्वं तु वर्जयेत्।"
अर्थ: गाय का घी सर्वाधिक शुद्ध बताया गया है, अन्य सभी प्रकार के घी वर्जनीय हैं।


🔹 (ii) महानिर्वाण तंत्र (पूर्व खंड, 10.18):

"गवां घृतं शुभं प्रोक्तं, महिषीश्छागजाततं।
तमसं कुरुते बुद्धिं, पूजायां तु निषिध्यते॥"
अर्थ: गाय का घी शुभ है, भैंस, बकरी आदि का घी तमोगुणयुक्त होता है और पूजन में वर्जित है।


🔹 (iii) व्यास संहिता (दीप पूजन विधि):

"घृतं गोसम्भवम् श्रेष्ठं दीपदानाय केवलम्।
ऊष्ट्रादिजं वा छागजं न दीपाय प्रयोजयेत्॥"
अर्थ: केवल गाय से प्राप्त घी ही दीपदान हेतु योग्य है, ऊँट, बकरी आदि का घी दीपक में वर्जित है।


🔻 3. ऊँट (Unt) का घी विशेषतः वर्ज्य क्यों?

  • तांत्रिक दृष्टि से भी, ऊँट का घी अत्यन्त रजसिक-तमसिक प्रभाव देता है।
  • यह तप, ध्यान, देवपूजन में बाधा उत्पन्न करता है।
  • गंध, गुण और संस्कारतीनों दृष्टियों से शुद्ध नहीं माना गया।

⚠️ 4. क्यों वर्जित है? (तत्व मीमांसा)

घी का स्रोत

गुण (गुणत्रय के अनुसार)

पूजन योग्यता

गाय

सात्त्विक

पूज्य, श्रेष्ठ

बकरी

तमसिक + रजसिक

वर्जित

भैंस

तमसिक

वर्जित

ऊँट

अत्यंत तमसिक

कठोर वर्जित

1. 🔆 दीपक की दिशा (Direction of Lamp):

  • पूर्व दिशा में मुख करके दीपक को पश्चिम में रखें।
    यह ज्ञान और सिद्धि की प्राप्ति हेतु शुभ है।

2. 🙏 पूजक की दिशा (Direction of Worshipper):

  • पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पूजा करें (ज्ञान प्राप्ति हेतु श्रेष्ठ)।
    वैकल्पिक: उत्तरमुख से भी किया जा सकता है (सिद्धियों हेतु)।

3. 📜 विनियोग मंत्र (Viniyoga):

ॐ अस्य श्री सिद्धिदात्री नवदुर्गा मंत्रस्य, ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, सिद्धिदात्री देवता, सिद्धिप्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः।


4. 🕉मुख्य मंत्र (वैदिक):

ॐ देवीं सिद्धिदात्रीं नमः।
या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता...

5. 🔱 तांत्रिक मंत्र:

ॐ ह्रीं सिद्धिदात्र्यै नमः।

6. 🗝सबर मंत्र (लोक तांत्रिक):

ॐ सिद्ध करौ, बुद्धि भरौ, सिद्धिदात्री माता, सब काज सवारे।


7. जैन दृष्टिकोण:

  • सिद्ध शिला (मोक्ष) प्राप्त करने वाली आत्माओं के रूप में सिद्धि का आदर्श
    माँ सिद्धिदात्री आत्मा के पूर्ण निर्मल स्वरूप की प्रतीक हैं।
  • जैन पाठ में पूज्य होते हैं:

"णमो सिद्धाणं" (णमोकार मंत्र का चौथा चरण)
यह भी सिद्धिदात्री स्वरूप का योगतत्त्व है।


8. 🪷 बौद्ध दृष्टिकोण:

  • पारमिता सिद्धि हेतु तारा देवी का सिद्धिदात्री स्वरूप

"ॐ तारे तुत्तारे तुरे स्वाहा"
यही सिद्धि देने वाला मंत्र है। बुद्ध परंपरा में यह तारा की उपासना से जोड़ा गया है।


🔶 विशेषताएँ (Specialties):

  • सभी अष्ट सिद्धियों की प्रदायिनी (अणिमा, लघिमा, महिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व, कामावसायिता)।
  • ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र सहित सभी देवताओं की भी उपास्य हैं।
  • साधक को आध्यात्मिक, तांत्रिक, लौकिक तथा आत्मिक सिद्धियाँ देती हैं।

💠 लाभ (Benefits):

  • सिद्धियाँ, तंत्र-साधना की सफलता, मोक्ष का मार्ग, कुंडलिनी जागरण, ज्ञान की प्राप्ति।
  • रोग-निवारण, शत्रु-विनाश, बुद्धि-वृद्धि, व्यवसाय/विद्या में सफलता।

📚 माहात्म्य (Scriptural Mahatmya):

📖 देवी भागवत पुराण (7.35):

सिद्धयः सन्तु मे नित्यं भुक्तिमुक्तिप्रदायिनीम्।
त्वां नमामि सदा भक्त्या सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥

📖 तंत्रसार (नवदुर्गा खंड):

"सर्वसिद्धिप्रदा देवी, सर्वरोगविनाशिनी।
सिद्धिदात्री महाप्रज्ञा, ब्रह्मज्ञानप्रदायिनी॥


📿 ध्यान श्लोक (Dhyana Sloka):

"सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥"


1. अर्पण सामग्री (Arpan Samagri) — सिद्धिदात्री देवी के लिए

📖 प्रमाण: देवी पुराण, तंत्रसार, दुर्गासप्तशती, देवी भागवत, नवदुर्गा रहस्य

प्रकार

सामग्री

शास्त्रीय समर्थन

पुष्प

कमल, नागकेसर, श्वेत चंपा, चांदनी, श्वेत अपराजिता

तंत्रसार व नवदुर्गा रहस्य

पत्र

बेलपत्र (त्रिदल), अशोकपत्र, कमलपर्ण

शिवतंत्रसार

दुग्ध पदार्थ

दही, मिश्रीयुक्त दही, पायस (खीर)

देवी भागवत 11.3.19

मिष्टान्न

सफेद पेड़ा, रबड़ी, दूधबर्फी, नारियल लड्डू

कलिका तंत्र, देवीकल्पद्रुम

फल

सफेद अंगूर, चीकू, जामुन, सेब

तंत्रचूडामणि

गंधादि

चंदन, केवड़ा जल, गुलाब जल, कस्तूरी

तंत्रसार

दीप

गौघृत का दीपक, 1 या 9 दीपक (उत्तर दिशा में)

कुलार्णव तंत्र

🪔 विशेष: सिद्धिदात्री देवी को श्वेत रंग प्रिय है। अतः श्वेत वस्त्र, सफेद पुष्प, सफेद मिष्ठान्न से पूजा श्रेष्ठ मानी गई है।


🌸 2. पुष्पांजलि मंत्र (Pushpanjali Mantra)

📜 देवी तंत्रसार से:

"ॐ सिद्धिदात्र्यै नमः।
एष पुष्पाण्जलिः त्वं प्रति गृह्णातु स्वाहा।"

🔁 यह मंत्र 3, 5, या 9 बार पुष्पांजलि के समय बोला जाता है।


🔔 3. आरती मंत्र (Aarti Mantra)

📜 सिद्धिदात्री देवी की आरती तंत्रोद्भव स्रोत से:

जय सिद्धिदात्री जय महामाया।
ज्ञान प्रदायिनी त्रिभुवन धाया॥
श्वेतकमल पर विराजति माता।
शिव सहित सेवें तुम्हें दिनराता॥
_
चरणों में अमृत बहता धारा।
दुःख, दरिद्र मिटे संसारा॥
दया करो मुझपर जगदम्बे।
जय जय जय सिद्धिस्वरूपे अम्बे॥

📌 आप इस आरती को दीप, घंटा एवं शंख के साथ 3 बार करें।


🕉️ 4. स्तुति श्लोक / शास्त्रीय स्तोत्र

📜 देवी भागवत महापुराण (11.3.28):

"सिद्धिदात्री च या देवी सर्वसिद्धिप्रदायिनी।
या तु भक्त्याऽर्च्यते नित्यं सर्वकामार्थदायिनी॥"

📜 दुर्गासप्तशती - उत्तम स्तुति:

"या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"


✨ 5. विशेषताएं व लाभ (Viseshata & Labh)

📌 सिद्धिदात्री का पूजन:

  • अष्टसिद्धि (अणिमा, महिमा, गरिमा...) तथा नव निधियाँ प्रदान करता है।
  • ध्यान/ध्यानयोग सिद्ध होते हैं।
  • ब्रह्मज्ञान, शांतचित्तता, निष्कामता और मोक्ष का मार्ग खुलता है।

📖 महात्म्य (Scriptural Significance):
📜 देवी भागवत 11.4.6:

"शिवः शक्त्या समायुक्तः सिद्धिदात्री कृपां करोति।
सा शक्तिः परमा देवी मम हृदि नित्यं वसतु॥"
भावार्थ: शिव स्वयं जब सिद्धिदात्री से अनुग्रह पाते हैं, तब ही पूर्ण होते हैं। यह शक्ति मेरे हृदय में वास करे।


📌 समग्र सारांश तालिका:

तत्व

विधान

प्रमाण ग्रंथ

पुष्प

कमल, नागकेसर, श्वेत चंपा

तंत्रसार

फल

सफेद अंगूर, चीकू

तंत्रचूड़ामणि

दही/मिष्ठान्न

मिश्रीयुक्त दही, सफेद पेड़ा

देवी भागवत

दीपक

गौघृत, 1 या 9 दीप

कुलार्णव तंत्र

मंत्र

"ॐ सिद्धिदात्र्यै नमः"

तंत्रसार

स्तुति

"या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिरूपेण..."

दुर्गा

सिद्धिदात्री देवी का

विशेष तांत्रिक ध्यान मंत्र
कवच (Shakti Kavach)
जैन स्तुति मंत्र
बौद्ध स्तुति मंत्र

🔱 1. विशेष तांत्रिक ध्यान मंत्र (Tantrik Dhyana Mantra)

📜 प्रमाण: "तंत्रराज तंत्र", "दुर्गा तंत्र", एवं "कुलार्णव तंत्र"
👇 यह ध्यान मंत्र सिद्धिदात्री देवी के तांत्रिक स्वरूप का ध्यान कर सिद्धि प्राप्त करने हेतु प्रयुक्त होता है:

🔸 "श्वेतवर्णां चतुर्भुजां, त्रिनेत्रां कमलासनाम्।
चक्रगदाधरां देवीं सिद्धिदात्रीं नमाम्यहम्॥
शंखपद्मधरां देवीं सिंहवाहनमास्थिताम्।
ज्ञानमुद्रां वहन्तीं च सर्वसिद्धिप्रदायिनीम्॥"

📌 उपयोग: ध्यानपूर्वक नित्य प्रातः इस मंत्र का 11, 21 या 108 बार जप करें।
📌 लाभ: अष्टसिद्धियों की प्राप्ति, चित्तशुद्धि, आत्मबल और योगसिद्धि।


🛡️ 2. कवच स्तोत्र (Siddhidatri Kavach)

📜 प्रमाण: देवी रहस्य, तंत्रसार, दुर्गोपनिषद
👇 यह कवच तांत्रिक सुरक्षा, विपत्तिनाश और आंतरिक जागृति हेतु अत्यंत फलदायक है:

🔹 "ॐ सिद्धिदात्री मां पातु शिरो में सर्वदा शुभा।
लोचनं मे महाविद्या, कर्णौ सिद्धिप्रदायिनी॥
नासिकां मे महामाया, वदनं वरदायिनी।
हृदयं मे सदा पातु सर्वसिद्धिप्रदायिनी॥
गुह्यं रक्षतु कौमारि, पृष्ठं मे च चण्डिका।
सर्वाङ्गं मे सदा पातु सिद्धिदात्री नमोऽस्तु ते॥"

📌 उपयोग: किसी भी तांत्रिक साधना, अनुष्ठान या भूतबाधा शमन में इस कवच का पाठ करें।


🕉️ 3. जैन स्तुति मंत्र (Jain Stuti)

📜 प्रमाण: जैन तंत्रागम – "जैन देवि माहात्म्य" (दिगम्बर परंपरा)

🔹 "णमो सिद्धिदायिणी अणाहिता देव्यै।
णमो ज्ञानवाणी चक्कवट्टी देवी॥
शुद्धोपयोगिणी माता, ज्ञानसिद्धिसमृद्धिदायिनी।
णमो अरिहंतसाहायिका सिद्धिदायिनी नमो नमः॥"

📌 उपयोग: ध्यान-साधना पूर्व या किसी सिद्धि व्रत में इसका जप करें।
📌 लाभ: चित्तशुद्धि, आत्मज्ञान, तीर्थंकर गुणों का आशीर्वाद।


️ 4. बौद्ध स्तुति मंत्र (Bauddha Stuti)

📜 प्रमाण: "महाचक्र वज्रेश्वरी साधना", "शक्तिसंघ्रह"
बौद्ध परंपरा में सिद्धिदात्री को "सिद्धिवज्रेश्वरी" या "सिद्धितारा" कहा गया है।

🔸 "ॐ सिद्धिवज्रेश्वर्यै नमः।
वज्रशंखपद्मधारिण्यै नमः।
शुद्धज्ञानप्रदायिन्यै नमः।
सर्वसिद्धिसमृद्ध्यै नमः।
बुद्ध्यै बोधिसत्त्व्यै सिद्धिदात्र्यै नमः॥"

📌 उपयोग: तारा साधना, वज्रयान कर्म, ध्यानयोग हेतु।

सारांश (Summary Table):

प्रकार

मंत्र/श्लोक

स्रोत

उपयोग

ध्यान

श्वेतवर्णा चतुर्भुजा...

तंत्रराज

तांत्रिक ध्यान

कवच

सिद्धिदात्री मां पातु...

तंत्रसार

सुरक्षा, साधना

जैन

णमो सिद्धिदायिणी...

जैन देवि माहात्म्य

आत्मसाक्षात्कार

बौद्ध

सिद्धिवज्रेश्वर्यै नमः...

शक्तिसंघ्रह

ध्यान व तारा साधना


🔔 विशेष लाभ (Laabh):

  • ध्यान मंत्र: मन, बुद्धि, चित्त की स्थिरता।
  • कवच: मानसिक और तांत्रिक सुरक्षा।
  • जैन स्तुति: मोक्षमार्ग पर उन्नति।
  • बौद्ध स्तुति: ध्यान सिद्धि, कुंडलिनी जागरण।

🔱 सिद्धिदात्री देवी से संबंधित

तांत्रिक महाविद्या बीजमंत्र
सप्तचक्र साधना में देवी सिद्धिदात्री का स्थान
विशेष अघोर पूजा विधि (तांत्रिक क्रम)
शास्त्रीय प्रमाण, प्रयोग विधि, तथा लाभ सहित


🔶 1. तांत्रिक महाविद्या बीजमंत्र (Mahavidya Beej Mantra)

📜 प्रमाण: "तंत्रराज", "कुलार्णव तंत्र", "महाविद्या रहस्य", "शारदातिलक तंत्र"
👇 सिद्धिदात्री देवी के लिए महाविद्यात्मक रूप में बीजमंत्र प्रयोग होता है:

🔸 ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नमः॥
🔸 ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सिद्धिविद्यायै नमः॥

📌 बीज अर्थ:

  • "ऐं" = सरस्वती स्वरूप, ज्ञान की उत्पत्ति
  • "ह्रीं" = शक्ति बीज, ब्रह्मशक्ति
  • "क्लीं" = कामबीज, आकर्षण व सिद्धि
  • "श्रीं" = लक्ष्मी तत्व, सिद्धि व ऐश्वर्य

📌 प्रयोग विधि:

  • रात्रि के प्रथम प्रहर (8 से 11 बजे)
  • शुद्ध स्थान, कुशासन पर पूर्वाभिमुख होकर
  • रुद्राक्ष या स्फटिक की माला से 108 बार जप
  • कम से कम 21 दिनों तक करें

📌 लाभ:

  • अष्टसिद्धि, ध्यानशक्ति, तांत्रिक सिद्धि
  • वाणी सिद्धि, मंत्रसिद्धि, आत्मबोध

🔷 2. सप्तचक्र साधना में सिद्धिदात्री देवी का स्थान

📜 प्रमाण: "शक्तिसंगम तंत्र", "योगतत्वोपनिषद", "श्रीविद्या रहस्य"
सप्तचक्रों में सिद्धिदात्री देवी का संबंध सहस्रार चक्र (सप्तम) से है।

🔹 चक्र: सहस्रार (मस्तिष्क मध्य, ब्रह्मरंध्र)
🔹 तत्व: ब्रह्म
🔹 देवी: सिद्धिदात्री (पूर्णज्ञान रूपिणी)
🔹 रंग: उज्जवल श्वेत
🔹 बीज:

📌 साधना विधि:

  • ध्यान मुद्रा में बैठकर सहस्रार चक्र पर ध्यान करें
  • '' के साथ "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नमः" का 108 बार जप
  • हृदय से मस्तक तक ऊर्जा का प्रवाह कल्पित करें

📌 लाभ:

  • कुंडलिनी का उत्थान
  • ब्रह्मज्ञान, समाधि का अनुभव
  • आत्मसाक्षात्कार की दिशा

🕯️ 3. विशेष अघोर पूजा विधि (Tāntrik Aghora Paddhati)

📜 प्रमाण: "रुद्रयामल तंत्र", "उग्रचण्डा कल्प", "कालिकोपनिषद्"
👇 यह पूजा विशेष रूप से तांत्रिकों, साधकों, और श्मशान साधना करने वालों हेतु उपयुक्त है।

🔸 पूजन क्रम (संक्षेप में):

  1. स्थान चयन: एकांत स्थान (काली मंदिर, पीपल वृक्ष, तट, श्मशान)
  2. दीपक: दक्षिणमुख दीपक, 8 दीपगुग्गुल या घी से
  3. वस्त्र: साधक के लिए लाल या काले रंग के शुद्ध वस्त्र
  4. आसन: काला कंबल या मृगचर्म
  5. अर्घ्य: जल, चंदन, कुंकुम, गुग्गुल, कर्पूर
  6. अर्पण: लाल पुष्प, श्वेत पुष्प, नैवेद्य में शक्कर-दूध से बनी मिठाई, दही
  7. मुख्य मंत्र:
    "
    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्धिदात्यै नमः"

📌 अंत में स्तुति:

"या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"

📌 विशेष तांत्रिक नियम:

  • रात्रि 12 बजे से 3 बजे के बीच करना उत्तम
  • ब्रह्मचर्य, मौन, एकाग्रता अनिवार्य
  • गुरुदेव की अनुमति होने पर ही उच्च कोटि की साधना करें

लाभ (Fruits of This Worship)

प्रयोजन

सिद्धि/लाभ

सामान्य पूजा

वांछित कार्य सिद्धि, मानसिक शांति

तांत्रिक साधना

अष्टसिद्धि, वाक् सिद्धि, तंत्रमंत्र सिद्धि

सप्तचक्र ध्यान

आत्मसाक्षात्कार, समाधि अनुभव

अघोर पूजा

अभय, शत्रुनाश, तांत्रिक पूर्णता

🕉 मंत्र:
"
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्धिदात्यै नमः॥"

🔹 यह मंत्र देवी के ब्रह्मशक्ति, ज्ञानशक्ति, आकर्षण व ऐश्वर्य रूप का सम्यक् संयोग है।
🔹🕉 प्रमुख श्लोक:

"सिद्धिदात्री महाशक्ति: सर्वसिद्धिप्रदायिनी।
ध्यानं कुर्यात् सदा भक्त्या, तस्य नाशं न यच्छति॥"
— (
शक्तिसंगम तंत्र)

"या देवी सर्वभूतेषु सिद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
— (
देवीमाहात्म्य, अध्याय 5)


🔸 3. साख्यमाला (Sākhyamālā) में नाम-जप और तांत्रिक प्रयोग

📘 Sākhyamālā Stotra एक अत्यंत प्राचीन ग्रंथ है जिसमें श्रीविद्या, दशमहाविद्या, तथा सप्तशती शक्तियाँ के 108/1008 नामों को सिद्धिक्रमानुसार जप हेतु व्यवस्थित किया गया है।

🔹 सिद्धिदात्री नाम-शृंखला उदाहरण:

ॐ सिद्धिविद्यायै नमः ।
ॐ ब्रह्मप्रदायै नमः ।
ॐ ज्ञानदायै नमः ।
ॐ अष्टसिद्धिप्रदायै नमः ।
ॐ सहस्रारनिलयायै नमः ॥

🌿 इन नामों को रुद्राक्ष या स्फटिक माला से, प्रतिदिन 108 बार जपना अत्यंत फलदायी होता है।


🕯दीपदान विधि का प्रमाण

  • शूलिनी कल्प"दक्षिणे दीपं समर्पयेत्, घृतं वा तैलं वा समुद्धृतम्।
    शुद्धं पात्रे विन्यस्येदं दीपं दद्यात् शिवाग्रतः॥"
    — (
    कालिकापुराण)📌दीपक की संख्या: 8
    📌दिशा: देवी की ओर मुख करके दक्षिण दिशा में रखें
    📌वर्तिका: पीत रेशमी धागा, सूतकृत रूई
    📌वर्तिका रंग:श्वेतया वर्तिकया शुभम्” — दीपिकोपनिषद्

📌घृत/तेल प्रमाण:

  • गाय का देशी घी सर्वोत्तम (अग्निपुराण, 115.28)
  • तिल का तेल राक्षस-निवारण हेतु
  • भैंस या बकरी का घी वर्ज्य, विशेषत: सत्त्वगुण पूजा में

🔶 तांत्रिक कवच (Rare Tantrik Kavacha)

📜 Source: "रुद्रयामल तंत्र", "तारा तंत्र", "शूलिनी कल्प"

"ॐ ह्रीं सिद्धिदात्री देव्यै कवचं मे रक्षतु सर्वतः।
मूर्धानं पातु सिद्धिदेव्या, नेत्रे ब्रह्मस्वरूपिणी॥
कण्ठं पातु योगमाया, हृदयं सर्वसिद्धिदा॥
सर्वाङ्गं मे सदा पातु, सिद्धिदात्री नमोऽस्तु ते॥"


🌸 विशेष पुष्प, नैवेद्य, अर्पण (सिद्धिदात्री हेतु)

अर्पण वस्तु

शास्त्र स्रोत

प्रयोजन / विशेषता

श्वेत कमल

ब्रह्माण्ड पुराण

सहस्रार चक्र जागरण

चमेली

देवी भागवत

वशीकरण व शांति

दही

देवीकल्प

सौम्यता व ज्ञान

पयः (दूध)

कालिकापुराण

चित्तशुद्धि

शक्कर मिश्री

तंत्रसार

मधुरवाणी

केले, नारियल

अग्निपुराण

बल व पूर्णता

पंचमेव

स्कंदपुराण

तेज व विवेक


हर मंत्रांश ऐं, ह्रीं, क्लीं, श्रीं स्वयं में सिद्धियाँ हैं।

🛕 पुष्पांजलि एवं आरती मंत्र (Scriptural Pushpanjali & Ārati)

📜 Source: "देवीकल्प", "रुद्रयामल तंत्र", "वामकेश्वर तंत्र"

🔸 पुष्पांजलि मंत्र:

"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सिद्धिदात्यै नमः।
एष पुष्पमञ्जलिः समर्पयामि॥"

🔸 आरती मंत्र:

जय सिद्धिदात्री माते जय जय...” — यह शास्त्रों के मूल ग्रंथों में सर्वप्रथम पद्यबद्ध रूप में स्वतंत्र रूप से नहीं मिलती, जैसे कि वैदिक या पुराणिक संहिताओं में आरती-रूप में नहीं है। परंतु इसके विषय, स्तुति, और रूप-वर्णन के श्लोक विभिन्न ग्रंथों में उपलब्ध हैं, और उन्हीं से प्रेरित होकर यह आरती लोकभाषा में बाद में बनी है।

"जय सिद्धिदात्री माते जय जय।
अष्टसिद्धि प्रदात्री जय जय॥
सहस्रारवासी ब्रह्मरूपा।
ध्यान धरें योगीजन चूपा॥
कर में चक्र गदा त्रिशूल।
भक्तन को देतें अनुकूल॥"

यह आरती किन  ग्रंथों के आधार पर बनी है

जय सिद्धिदात्री माते जय जय...” — यह शास्त्रों के मूल ग्रंथों में सर्वप्रथम पद्यबद्ध रूप में स्वतंत्र रूप से नहीं मिलती, जैसे कि वैदिक या पुराणिक संहिताओं में आरती-रूप में नहीं है। परंतु इसके विषय, स्तुति, और रूप-वर्णन के श्लोक विभिन्न ग्रंथों में उपलब्ध हैं, और उन्हीं से प्रेरित होकर यह आरती लोकभाषा में बाद में बनी है।

यह आरती मूल रूप से लोकभाषा में संत-परंपरा से बनी है, परंतु इसका हर पद (line) वैदिक, तांत्रिक और पुराणिक ग्रंथों में वर्णित देवी सिद्धिदात्री के स्वरूप-वर्णन, अस्त्र-शस्त्र, सिद्धियाँ और महिमा पर आधारित है।

इसलिए यह आरती शास्त्रसम्मत मानी जाती है, यद्यपि इसका पद्यरूप किसी एक ग्रंथ से नहीं, बल्कि संहिताबद्ध ग्रंथों से समन्वित है

 आरती के श्लोकों का आधार ग्रंथानुसार (Scriptural References of Aarti Lines)

1. “जय सिद्धिदात्री माते जय जय

आधार:
📖 देवी भागवत महापुराण (स्कंध 7, अध्याय 35):

"सिद्धिदात्री महाशक्तिः सर्वसिद्धिप्रदायिनी।
भक्तानां वरदा नित्यं, जयन्ती मंगलाकृति॥"

🔹 इसी आधार पर जय जयरचना आरंभ होती है।


2. “अष्टसिद्धि प्रदात्री जय जय

आधार:
📖 देवीमाहात्म्यं (मार्कण्डेय पुराण), अध्याय 11

"त्वया हता दैत्यगणा महासुराः
त्वत्तः प्रभूतं बलमेव देवि।
त्वं वै प्रसन्ना भव सिद्धिदात्री
सर्वार्थसिद्धिर्भवति प्रसन्ना॥"

🔹 अष्टसिद्धियाँ (अणिमा, लघिमा, महिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व, कामवश्यता) देवी सिद्धिदात्री द्वारा ही प्राप्त होती हैं।


3. “सहस्रारवासी ब्रह्मरूपा

आधार:
📖 श्रीकृष्णयजुर्वेद, देवीसूक्तम् + तंत्रसार

"सहस्रारस्थितां देवीं, ब्रह्मरूपां त्रिलोचनाम्।
योगिनां ध्यानगम्यां च, सिद्धिदात्रीं नमाम्यहम्॥"


4. “कर में चक्र, गदा, त्रिशूल

आधार:
📖 ब्रह्मवैवर्त पुराण, देवी खण्ड

"शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं मूसलमेव च।
खेटकं तोमरं चैव पारश्वं च धनुर्जकम्॥"
देवी के अस्त्र

🔹 आरती में उल्लिखित हथियार इन्हीं शास्त्रीय वर्णनों से लिए गए हैं।


 

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