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शीतला अष्टमी (बसोड़ा) - पूजा विधि? कथाएँ, प्रचलित मान्यताएँ (पुराण) Sheetla Ashtami (Basoda) - Rituals? Stories, Popular Beliefs (Skand, Bhavishya Purana)21.4.2025

 

शीतला अष्टमी (बसोड़ा) - कौन? क्या? पूजा विधि? कथाएँ, प्रचलित मान्यताएँ (पुराण) Sheetla Ashtami (Basoda) - Who? What? Rituals? Stories, Popular Beliefs (Skand, Bhavishya Purana)

Devi  Sheetla - Goddess of Cleanliness and the Eliminator of Diseases (

स्वच्छता और अधिष्ठात्री रोग निवारिणी देवी) स्कन्द पुराण में चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की तिथियों पर शीतला देवी की पूजा का विधान बताया गया है। इन तिथियों पर विशेष खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित माना गया है, क्योंकि इससे विभिन्न रोगों की संभावना होती है।

चार अष्टमियाँ एवं निषिद्ध भोजन

  1. चैत्र अष्टमीबासी भोजन (शीतल भोजन) वर्जित
    • इसके प्रभाव से परिवार में ज्वर (बुखार), लाल-पीला बुखार, फोड़े-फुंसी, त्वचा रोग, चर्म विकार, पसयुक्त फोड़े (मवाद), नेत्र रोग और चेचक होने की संभावना रहती है।
  2. वैशाख अष्टमीघी, शक्कर और सत्तू वर्जित
    • इन पदार्थों के सेवन से शरीर में गर्मी बढ़ती है, जिससे त्वचा पर जलन और अन्य रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
  3. ज्येष्ठ अष्टमीबासी पूए (तले हुए मीठे पकवान) वर्जित
    • इसके प्रभाव से फोड़े-फुंसी, मवाद युक्त घाव, त्वचा रोग, नेत्र संबंधी समस्याएँ और शरीर में संक्रमण हो सकते हैं।
  4. आषाढ़ अष्टमीघी, शक्कर और खीर वर्जित
    • इसके सेवन से रक्त विकार, त्वचा रोग, जलन, दाद-खुजली और शरीर में गर्मी के कारण उत्पन्न समस्याएँ होती हैं।

शीतला पूजा एवं सुरक्षा

शीतला माता की पूजा इन रोगों से रक्षा प्रदान करती है।


🔱 शीतला माता कौन हैं?

शीतला माता को "रोगनिवारिणी देवी" माना जाता है। इन्हें दुर्गा का तामस रूप, अथवा हिंगलाज/महामारी निवारिणी देवी के रूप में देखा जाता है। यह एक हाथ में झाड़ू (झाड़न), दूसरे में सूप (छलनी), जल पात्र और नीम की पत्तियाँ धारण करती हैं। इन्हें शीतलता प्रदान करने वाली, शरीर को रोगों से मुक्त करने वाली देवी माना गया है।

-रुद्रयामल या तन्त्रसार में शीतला माता को "ज्वरनाशिनी देवी", "रोगहरिणी योगिनी" और "नैर्ऋत्य दिशा की अधिष्ठात्री" है।

- तंत्र-संहिता में शीतला देवी को "क्रूर रोगनाशिनी" कहा गया है, जो रोगों को नियंत्रित करती हैं।

🔱 शीतला माता कौन हैं?

शीतला माता को "रोगनिवारिणी देवी" माना जाता है। इन्हें दुर्गा का तामस रूप, अथवा हिंगलाज/महामारी निवारिणी देवी के रूप में देखा जाता है। यह एक हाथ में झाड़ू (झाड़न), दूसरे में सूप (छलनी), जल पात्र और नीम की पत्तियाँ धारण करती हैं। इन्हें शीतलता प्रदान करने वाली, शरीर को रोगों से मुक्त करने वाली देवी माना गया है।


पौराणिक - माता शीतला की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा जी से हुई -। ब्रह्मा जी ने माता शीतला को धरती पर पूजे जाने के लिए भेजा -। देवलोक से धरती पर मां शीतला अपने साथ भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर को अपना साथी मानकर लाईं। -।माँ दुर्गा का स्वरूप माना जाता है देवी पार्वती का अवतार - है।

- शीतलाका अर्थ है — "ठंडी या शांत करने वाली".

-शीतला माता के साथ चौसठ रोगों का देवता घेंटूकर्ण, त्वचा रोग का देवता,. हैज़े की देवी शीतला सात बहन हैं- ऋणिका, घृर्णिका, महला, मंगला, शीतला, सेठला और दुर्गा

शीतला माता को छोटी माता कहते हैं. बड़ी बहन देवी परमेश्वरी , चमरिया को बड़ी माता कहा जाता है और बड़ी चेचक के लिए इनकी पूजा की जाती है. -कमल, चंपा, चमेली, गुलाब, मोगरा, गेंदा और जूही गुड़हल का लाल फूल पसंद है

- ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, जाट और गुर्जर समाजो में कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है-.सोमवार ,गुरुवार - दिन अष्टमी पूज्य तिथि.

- रोग उत्पन्न और प्रकृति की उपचार शक्ति और आदिवासी मूल की अपने चार हाथों में वह चांदी की झाड़ू, पंखा, छोटा कटोरा और गंगाजल से भरा एक घड़ा रखती हैं। झाड़ू और घड़ा उठाए दो हाथ है।

देवी भागवत (आंशिक संदर्भ):

📜 देवीभागवत महापुराण, सप्तम स्कंध में लिखा है:

रोगानशेषानपहंंति तुष्टा

रुष्टा तु कामान् सकलान् भिनत्ति।

त्वामाश्रितानां न विपत्तिरस्ति

शीतालयेशि त्वयि संरताः स्यात्॥

पूजन विधि (Puja Vidhi):

🔹 1. प्रातः स्नान कर पूर्व/उत्तर दिशा की ओर मुंह कर पूजा करें।

🔹 2. एक पट पर माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

🔹 3. नीम पत्र, जल कलश, सूप, झाड़न आदि को साथ रखें।

🔹 4. दीप प्रज्वलित कर संकल्प लें:

वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।

मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्॥

Vande'haṁ Śītalāṁ devīṁ rāsabhasthāṁ digambarām

Mārjanī-kalaśopetāṁ śūrpālaṅkṛta-mastakām

 

शीतला माता ध्यान मंत्र (D   शीतलाष्टक स्तोत्र (स्कंद पुराण):

4-      "वन्देऽहं शीतलां देवीं रसभस्मास्थितां शुभाम्।

5-      मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम्॥"

6-      हिंदी अर्थ:

"मैं शीतला देवी की वंदना करता हूँ, जो रज और भस्म में स्थित हैं, शुभ्र स्वरूपिणी हैं, मार्जनी (झाड़ू) और कलश धारण करती हैं, तथा शूर्प (सूप) से अलंकृत मस्तक वाली हैं।"

 

1. व्रत संकल्प मंत्र:

"मम गेहे शीतला रोग जनित उपद्रव प्रशमन पूर्वक आयु आरोग्य

 एश्वर्य अभिवृद्धये शीतलाष्टमी व्रत करिष्ये"।

"Mum Gehe Shila disease related nuisance, age relief and health.

 Aishwarya Abhivridhaye Shitalashtami Vrat Karishye”.

  Dhyan Mantra-

वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्

Roman Lipi:
Vande'haṁ Śītalāṁ devīṁ rāsabhasthāṁ digambarām
Mārjanī-kalaśopetāṁ śūrpālaṅkṛta-mastakām

ॐ ह्रीं शीतलायै नमः
Om hrīṁ Śītalāyai namaḥ

"शीतलाष्टक स्तोत्रम्" भविष्य पुराण

यहाँ मैं आपको यह स्तोत्र उसकी पारंपरिक, प्रामाणिक प्रस्तुति के अनुसार दे रहा हूँ:

🔷 शीतलाष्टक स्तोत्रम् (लोकमान्यता अनुसार)

 शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः॥1

शीतले त्वं महामाया शीतले त्वं महेश्वरी।

शीतले त्वं जगद्वन्द्या शीतलायै नमो नमः॥2

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतले त्वं हरप्रिया।

शीतले त्वं सुरश्रेष्ठा शीतलायै नमो नमः॥3

शीतले त्वं सुराधीशि शीतले त्वं महाबला।

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः॥4

शीतले त्वं च सर्वज्ञा शीतले सर्वदा शुभा।

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः॥5

शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं हरप्रिया।

शीतले त्वं सुरश्रेष्ठा शीतलायै नमो नमः॥6

शीतले त्वं कृपासिन्धुः शीतले त्वं यशस्विनी।

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः॥7

शीतले त्वं महादेवी शीतले त्वं नमोऽस्तुते।

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः॥8

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शीतलाष्टक स्तोत्रम् स्कन्द पुराण

1.वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम्॥
🔸 मैं शीतला देवी की वन्दना करता हूँ, जो गर्दभ (गधे) पर सवारी करती हैं, दिगम्बर हैं, हाथ में झाड़ू और जल से भरा घट धारण करती हैं और जिनका सिर सूप से अलंकृत है।

2.वन्देऽहं शीतलां देवीं सर्वरोगभयापहाम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत्॥
🔸 मैं उस शीतला देवी को नमस्कार करता हूँ जो समस्त रोगों और भयों का नाश करती हैं; जिनकी शरण में जाकर विस्फोटक जैसे भयंकर रोग दूर हो जाते हैं।

3.शीतले शीतले चेति यो ब्रूयद्दाहपीडितः।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति॥
🔸 जो कोई व्यक्ति शीतले शीतलेकहकर दुःख की अवस्था में उनका स्मरण करता है, उसका विस्फोटक रोग और पीड़ा शीघ्र ही समाप्त हो जाती है।

4.यस्त्वामुदकमध्ये तु ध्यात्वा सम्पूजयेन्नरः।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते॥
🔸 जो मनुष्य जल में शीतला देवी का ध्यान करके पूजा करता है, उसके घर में विस्फोटक या अन्य संक्रमणकारी रोग उत्पन्न नहीं होते।

5.शीतले ज्वरदग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च।
प्रणष्टचक्षुषः पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम्॥
🔸 शीतला देवी को तप्त ज्वर से पीड़ित, दुर्गंध से युक्त और दृष्टिहीन हो गए मनुष्यों की जीवनदायिनी औषधि कहा गया है।

6.शीतले तनुजान् रोगान् नृणां हरसि दुस्त्यजान्।
विस्फोटकविदीर्णानां त्वमेकाऽमृतवर्षिणी॥
🔸 हे शीतला! आप मनुष्यों के कठिनतम रोगों को भी नष्ट कर देती हैं और विस्फोटक रोगों से पीड़ितों के लिए अमृत वर्षा के समान हैं।

7.
गलगण्डग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम्।
त्वदनुध्यानमात्रेण शीतले यान्ति सङ्क्षयम्॥
🔸 गलगंड, ग्रहदोष और अन्य भयंकर रोग भी आपके केवल स्मरण मात्र से समाप्त हो जाते हैं।

8.न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम्॥
🔸 हे शीतला! कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनका कोई मन्त्र या औषधि इलाज नहीं है; उनके लिए आप ही एकमात्र देवता हैं जो रक्षा करती हैं।

9.मृणालतन्तुसदृशीं नाभिहृन्मध्यसंस्थिताम्।
यस्त्वां सञ्चिन्तयेद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते॥
🔸 जो व्यक्ति आपको मृणाल (कमल डंडी) की तरह कोमल, नाभि और हृदय के मध्य स्थित ध्यान करके स्मरण करता है, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती।

10.अष्टकं शीतलादेव्या यो नरः प्रपठेत्सदा।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते॥
🔸 जो मनुष्य इस शीतलाष्टक स्तोत्र का नित्य पाठ करता है, उसके घर में विस्फोटक रोग कभी उत्पन्न नहीं होते।

11.श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभक्तिसमन्वितैः।
उपसर्गविनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत्॥
🔸 श्रद्धा और भक्ति से युक्त होकर इसका श्रवण और पाठ करने से समस्त उपसर्ग (कष्ट) समाप्त होते हैं और महान कल्याण होता है।

12.
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः॥
🔸 हे शीतले! आप जगत की माता, पिता और पालनकर्ता हैं। आपको बारंबार नमस्कार है।

13.रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः।
शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः॥
🔸 गर्दभ (गधा) ही शीतला देवी का वाहन है और उसका विभिन्न नामों से उल्लेख किया गया है जैसे रासभ, खरो आदि।

14.एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत्।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतलारुङ् न जायते॥
🔸 जो व्यक्ति शीतला देवी के सामने उनके वाहन गर्दभ के इन नामों का उच्चारण करता है, उसके घर में बच्चों को रोग नहीं होते।

15.शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्यकस्यचित्।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै॥
🔸 यह शीतलाष्टक स्तोत्र किसी अपात्र को नहीं देना चाहिए; इसे केवल श्रद्धा और भक्ति से युक्त व्यक्ति को ही देना चाहिए।

शीतला माता की आरती (Shitala Mata Aarti)

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता

तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता

रूप चतुर्भुजा धारिणि, मस्तक चंद बिराजे

दूषित रोग निवारिणि, भक्तन दुख भाजे

रथ चढ़ि गदाधारी, साथ में खप्पर लायी

गधे पर हो सवारी, झाड़ू हाथ में आयी

पान सुपारी लेवो, दूध चढ़ाऊँ प्यारा

मेवा मिश्री का भोग, दही चूरमा न्यारा

Jai Shitala Mata, Maiya Jai Shitala Mata

Tumko nishdin sevat, Har Vishnu Vidhata

Roop chaturbhuja dharini, mastak chand biraje

Dooshit rog nivarini, bhaktan dukh bhaje

Rath chadhi gadadhari, saath mein khappar laayi

Gadhe par ho sawari, jhaadu haath mein aayi

Paan supaari levo, doodh chadhaoon pyaara

Mewa mishri ka bhog, dahi choorma nyaara

मैं शीतला देवी का ध्यान करता हूँ, जो गधे पर सवार हैं, वस्त्रहीन हैं, झाड़न और कलश लिए हुए हैं, और सूप से मस्तक सुशोभित है।

तंत्रसार-शीतला देवी को नमस्कार, जो गधे को समर्पित हैं, नैर्ऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा में नित्य निवास करती हैं, और समस्त रोगों का विनाश करती हैं।

 अनुशीतलायै नमस्तुभ्यं रासभाय समर्पिता।

नैर्ऋत्यां स्थिता नित्यं सर्वव्याधिविनाशिनी॥

नमस्ते शीतले देवि ज्वररोगनिवारिणि।

पूजितासि मया नित्यं रक्तपुष्पैः सुपूजिता॥

हे शीतला देवी! आपको प्रणाम है। आप ज्वर और रोगों का निवारण करने वाली हैं। मैं आपको नित्य लाल पुष्पों से पूजता हूँ।

  (00)शीतला माता की कथा

पार्वती (Devi Parvati) और दुर्गा का अवतार , देवी शीतला( तमिलनाडु में मरियम्मन के नाम से लोकप्रिय हैं।) एक दिन माता शीतला ने सोचा, "चलो, धरती पर चलकर देखती हूँ कि कौन मेरी पूजा करता है और कौन मुझे मानता है।" यही सोचकर माता शीतला ने एक बुढ़िया का रूप धारण किया और राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई। वहां पहुँचकर उन्होंने देखा कि इस गाँव में न तो उनका कोई मंदिर था और न ही उनकी पूजा होती थी।

गाँव की गलियों में घूमते हुए, एक मकान से किसी ने उबला हुआ चावल का पानी (मांड) डाल दिया। वह उबलता पानी शीतला माता पर गिरा और उनके शरीर में छाले पड़ गए, जिससे शरीर में जलन होने लगी। दर्द में कराहते हुए माता ने गाँववालों से सहायता मांगी, लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की।

तभी एक कुम्हारिन महिला अपने घर के बाहर बैठी हुई थी। उसने यह देखा और उसे उस बूढ़ी महिला पर दया आ गई। वह माता को घर बुलाकर बैठा लाई और उनके ऊपर ठंडा जल डाला। ठंडे जल से माता को छालों की पीड़ा में राहत मिली। फिर कुम्हारिन महिला ने उन्हें रात का दही और ज्वार की राबड़ी खाने को दी। इनसे माता को शीतलता मिली।

कुम्हारिन ने माता से कहा, "आपके बाल बिखरे हुए हैं, इन्हें चोटी में गूंथ देती हूं।" जैसे ही कुम्हारिन उनके बाल गूंथ रही थी, उसकी नज़र माता के सिर पर छुपी तीसरी आँख पर पड़ी। यह देखकर वह घबराकर भागने लगी। तब माता ने कहा, "रुक जा बेटी, तुझसे डरने की कोई बात नहीं है, मैं शीतला देवी हूं।" इतना कहकर माता ने अपने असली रूप में प्रकट होते हुए चारभुजा वाली, हीरे-जवाहरात से सजी, स्वर्णमुकुट पहने रूप में दिखलाई दी।

कुम्हारिन महिला माता को देखकर भाव-विभोर हो गई। उसने कहा, "माता, मैं तो बहुत गरीब हूं, आपको कहाँ बैठाऊं? मेरे घर में न तो चौकी है और न ही बैठने का आसन।" तब माता शीतला ने प्रसन्न होकर कुम्हारिन के घर के बाहर खड़े गधे पर जाकर बैठ गई। एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में डलिया लेकर उन्होंने कुम्हारिन के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर बाहर फेंक दिया। फिर माता ने कुम्हारिन से कहा, "अब तुम कुछ वरदान मांगो।"

कुम्हारिन ने हाथ जोड़कर कहा, "**माता, अगर आप वर देना चाहती हैं, तो आप इसी (डुंगरी) गाँव में निवास करें और जो भी महिला अष्टमी के दिन आपकी श्रद्धा से पूजा करेगी, व्रत रखेगी, और आपको ठंडा जल, दही बासी भोजन का भोग लगाएगी, उसकी दरिद्रता भी दूर हो जाएगी। पूजा करने वाली महिला को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दें। साथ ही जो पुरुष इस दिन नाई के यहाँ बाल नहीं कटवाएगा और धोबी से कपड़े धोने नहीं देगा, बल्कि वह ठंडा जल, नारियल, फूल चढ़ाकर परिवार सहित बासी भोजन करेगा, उसके व्यापार में कभी दरिद्रता नहीं आएगी।"

माता शीतला ने कहा, "बेटी, ऐसा ही होगा, और यह भी कि मेरी पूजा का अधिकार इस धरती पर कुम्हार को होगा।" तब से यह परंपरा चली आ रही है। इस कथा को पढ़ने से घर की दरिद्रता का नाश होता है और सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।

शीतला माता को भगवान शिव की अर्धांगिनी शक्ति का ही स्वरूप माना जाता है।

Devi Parvati and Durga are incarnations of Devi Shitala, who is also known as Mariamman in Tamil Nadu. One day, Mata Shitala thought, "Let me go to the earth and see who worships me and who respects me." With this thought, Mata Shitala took the form of an old woman and came to the village of Dungri in Rajasthan. Upon arriving, she saw that there was neither a temple nor any worship performed for her in the village.

While roaming through the streets of the village, someone from a house poured boiling rice water (maand) outside. The boiling water fell on Mata Shitala and blisters appeared on her body, causing a burning sensation. In pain, Mata asked the villagers for help, but no one assisted her.

At that moment, a potter's wife sitting outside her house saw this and felt compassion for the old woman. She invited Mata into her home, sat her down, and poured cold water over her. The cold water brought relief to Mata from the pain of the blisters. Then, the potter’s wife gave her night curd and jowar porridge to eat, which provided Mata with further coolness.

The potter’s wife said to Mata, "Your hair is scattered, let me braid it for you." As she was braiding Mata's hair, she noticed the hidden third eye on Mata’s forehead. Seeing this, she got frightened and started to run away. Mata called out to her, "**Wait, daughter, there is no need to be afraid, I am Shitala Devi." Saying this, Mata revealed her true form, showing herself as a four-armed deity adorned with diamonds and jewels, wearing a golden crown.

The potter’s wife was overwhelmed seeing the divine form of Mata. She said, "Mother, I am very poor, where will I seat you? I do not have a platform or a place to sit in my house." Mata Shitala, pleased by her devotion, went and sat on a donkey standing outside the potter’s house. Holding a broom in one hand and a basket in the other, she swept away the poverty of the potter’s house and threw it out. Then Mata said, "Now, ask for a boon."

With folded hands, the potter's wife said, "Mother, if you wish to give a boon, please reside in this (Dungri) village, and let any woman who worships you on Ashtami day with devotion, keeps a fast, and offers you cold water, curd, and stale food, have her poverty removed. Bless her with everlasting fortune. Also, let any man who does not cut his hair at the barber's and does not wash clothes with the washerman, but instead offers cold water, coconut, and flowers to you and consumes stale food with his family, never face poverty in his business."

Mata Shitala replied, "Daughter, it will be just as you ask, and also, the right to worship me will belong to the potter on this earth." Since then, this tradition has continued. Reading this story removes poverty from the home and fulfills all desires.

Devi Shitala is considered to be the Shakti (power) of Lord Shiva, his Ardhangini (consort).

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(01):शीतला माता की कथा

एक दिन माता शीतला ने सोचा, "चलो, धरती पर चलकर देखती हूँ कि कौन मेरी पूजा करता है और कौन मुझे मानता है।" यही सोचकर माता शीतला ने एक बुढ़िया का रूप धारण किया और राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई। वहां पहुँचकर उन्होंने देखा कि इस गाँव में न तो उनका कोई मंदिर था और न ही उनकी पूजा होती थी।

गाँव की गलियों में घूमते हुए, एक मकान से किसी ने उबला हुआ चावल का पानी (मांड) डाल दिया। वह उबलता पानी शीतला माता पर गिरा और उनके शरीर में छाले पड़ गए, जिससे शरीर में जलन होने लगी। दर्द में कराहते हुए माता ने गाँववालों से सहायता मांगी, लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की।

तभी एक कुम्हारिन महिला अपने घर के बाहर बैठी हुई थी। उसने यह देखा और उसे उस बूढ़ी महिला पर दया आ गई। वह माता को घर बुलाकर बैठा लाई और उनके ऊपर ठंडा जल डाला। ठंडे जल से माता को छालों की पीड़ा में राहत मिली। फिर कुम्हारिन महिला ने उन्हें रात का दही और ज्वार की राबड़ी खाने को दी। इनसे माता को शीतलता मिली।

कुम्हारिन ने माता से कहा, "आपके बाल बिखरे हुए हैं, इन्हें चोटी में गूंथ देती हूं।" जैसे ही कुम्हारिन उनके बाल गूंथ रही थी, उसकी नज़र माता के सिर पर छुपी तीसरी आँख पर पड़ी। यह देखकर वह घबराकर भागने लगी। तब माता ने कहा, "रुक जा बेटी, तुझसे डरने की कोई बात नहीं है, मैं शीतला देवी हूं।" इतना कहकर माता ने अपने असली रूप में प्रकट होते हुए चारभुजा वाली, हीरे-जवाहरात से सजी, स्वर्णमुकुट पहने रूप में दिखलाई दी।

कुम्हारिन महिला माता को देखकर भाव-विभोर हो गई। उसने कहा, "माता, मैं तो बहुत गरीब हूं, आपको कहाँ बैठाऊं? मेरे घर में न तो चौकी है और न ही बैठने का आसन।" तब माता शीतला ने प्रसन्न होकर कुम्हारिन के घर के बाहर खड़े गधे पर जाकर बैठ गई। एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में डलिया लेकर उन्होंने कुम्हारिन के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर बाहर फेंक दिया। फिर माता ने कुम्हारिन से कहा, "अब तुम कुछ वरदान मांगो।"

कुम्हारिन ने हाथ जोड़कर कहा, "माता, अगर आप वर देना चाहती हैं, तो आप इसी (डुंगरी) गाँव में निवास करें और जो भी महिला अष्टमी के दिन आपकी श्रद्धा से पूजा करेगी, व्रत रखेगी, और आपको ठंडा जल, दही बासी भोजन का भोग लगाएगी, उसकी दरिद्रता भी दूर हो जाएगी। पूजा करने वाली महिला को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दें। साथ ही जो पुरुष इस दिन नाई के यहाँ बाल नहीं कटवाएगा और धोबी से कपड़े धोने नहीं देगा, बल्कि वह ठंडा जल, नारियल, फूल चढ़ाकर परिवार सहित बासी भोजन करेगा, उसके व्यापार में कभी दरिद्रता नहीं आएगी।"

माता शीतला ने कहा, "बेटी, ऐसा ही होगा, और यह भी कि मेरी पूजा का अधिकार इस धरती पर कुम्हार को होगा।" तब से यह परंपरा चली आ रही है। इस कथा को पढ़ने से घर की दरिद्रता का नाश होता है और सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।

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1-शीतला माता की कथा

According to one story, Mata Sheetla once thought to herself, "Let me go down to Earth and see who worships me and who believes in me." With this thought, she took the form of an old woman and came down to the village of Dungri in Rajasthan. Upon arrival, she noticed that there was neither a temple nor any worship of her in that village.

While wandering the streets of the village, someone threw boiling rice water (known as "maand") from the top of a house. The hot water fell onto Mata Sheetla, causing blisters and a burning sensation all over her body. In immense pain, Mata Sheetla asked for help from the villagers, but no one came forward to assist her.

However, a potter woman, sitting outside her house, saw this and felt great compassion for the old woman. She immediately invited Mata Sheetla inside, gave her a seat, and poured cold water over her body. The cold water brought relief to the pain caused by the blisters. The potter woman then offered her some curd and rabdi made from jowar (a type of grain) kept from the previous night. After eating this food, Mata Sheetla felt much cooler and her body was relieved.

The potter woman then said, "Your hair is disheveled. Let me comb it and braid it for you." As she began to braid the hair, she noticed a third eye hidden beneath the old woman’s hair. Startled, she began to run away. At that moment, the old woman called out, "Wait, my daughter, don’t be afraid. I am Mata Sheetla." With these words, Mata Sheetla revealed her true form: a four-armed goddess adorned with jewels and a golden crown.

The potter woman, overwhelmed with awe, fell at her feet and said, "Mata, I am very poor. Where can I offer you a seat? My home has no place to sit, nor any proper resting place." Mata Sheetla, pleased with her devotion, went and sat on a donkey in front of the potter’s house. With one hand holding a broom and the other holding a basket, she swept away the poverty from the potter’s home, filled the basket with it, and threw it out. She then asked the potter woman to make a wish.

The potter woman folded her hands and said, "Mata, if you wish to bless me, please reside in this village (Dungri) and bless anyone who worships you on Ashtami, observes fasting, and offers you cold water, curd, and cold leftover food. Remove their poverty and bless them with perpetual happiness. Also, anyone who is a man and refrains from cutting his hair at the barber's shop or from sending his clothes to the washerman on this day, but instead offers you cold water, coconut, and flowers while eating cold leftover food with their family, may their business and work always remain free from poverty."

Mata Sheetla, pleased with her devotion, replied, "It will be so. And the right to my worship on Earth will always belong to the potter." From that day on, this tradition has continued. It is believed that reading this story will remove poverty from one’s home and fulfill all wishes.

                   - एक दिन माता शीतला ने सोचा, "चलो, धरती पर चलकर देखती हूँ कि कौन मेरी पूजा करता है और कौन मुझे मानता है।" यही सोचकर माता शीतला ने एक बुढ़िया का रूप धारण किया और राजस्थान के डुंगरी गाँव में आई। वहां पहुँचकर उन्होंने देखा कि इस गाँव में न तो उनका कोई मंदिर था और न ही उनकी पूजा होती थी।

गाँव की गलियों में घूमते हुए, एक मकान से किसी ने उबला हुआ चावल का पानी (मांड) डाल दिया। वह उबलता पानी शीतला माता पर गिरा और उनके शरीर में छाले पड़ गए, जिससे शरीर में जलन होने लगी। दर्द में कराहते हुए माता ने गाँववालों से सहायता मांगी, लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की।

तभी एक कुम्हारिन महिला अपने घर के बाहर बैठी हुई थी। उसने यह देखा और उसे उस बूढ़ी महिला पर दया आ गई। वह माता को घर बुलाकर बैठा लाई और उनके ऊपर ठंडा जल डाला। ठंडे जल से माता को छालों की पीड़ा में राहत मिली। फिर कुम्हारिन महिला ने उन्हें रात का दही और ज्वार की राबड़ी खाने को दी। इनसे माता को शीतलता मिली।

कुम्हारिन ने माता से कहा, "आपके बाल बिखरे हुए हैं, इन्हें चोटी में गूंथ देती हूं।" जैसे ही कुम्हारिन उनके बाल गूंथ रही थी, उसकी नज़र माता के सिर पर छुपी तीसरी आँख पर पड़ी। यह देखकर वह घबराकर भागने लगी। तब माता ने कहा, "रुक जा बेटी, तुझसे डरने की कोई बात नहीं है, मैं शीतला देवी हूं।" इतना कहकर माता ने अपने असली रूप में प्रकट होते हुए चारभुजा वाली, हीरे-जवाहरात से सजी, स्वर्णमुकुट पहने रूप में दिखलाई दी।

कुम्हारिन महिला माता को देखकर भाव-विभोर हो गई। उसने कहा, "माता, मैं तो बहुत गरीब हूं, आपको कहाँ बैठाऊं? मेरे घर में न तो चौकी है और न ही बैठने का आसन।" तब माता शीतला ने प्रसन्न होकर कुम्हारिन के घर के बाहर खड़े गधे पर जाकर बैठ गई। एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में डलिया लेकर उन्होंने कुम्हारिन के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर बाहर फेंक दिया। फिर माता ने कुम्हारिन से कहा, "अब तुम कुछ वरदान मांगो।"

 

कुम्हारिन ने हाथ जोड़कर कहा, "माता, अगर आप वर देना चाहती हैं, तो आप इसी (डुंगरी) गाँव में निवास करें और जो भी महिला अष्टमी के दिन आपकी श्रद्धा से पूजा करेगी, व्रत रखेगी, और आपको ठंडा जल, दही व बासी भोजन का भोग लगाएगी, उसकी दरिद्रता भी दूर हो जाएगी। पूजा करने वाली महिला को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दें। साथ ही जो पुरुष इस दिन नाई के यहाँ बाल नहीं कटवाएगा और धोबी से कपड़े धोने नहीं देगा, बल्कि वह ठंडा जल, नारियल, फूल चढ़ाकर परिवार सहित बासी भोजन करेगा, उसके व्यापार में कभी दरिद्रता नहीं आएगी।"

माता शीतला ने कहा, "बेटी, ऐसा ही होगा, और यह भी कि मेरी पूजा का अधिकार इस धरती पर कुम्हार को होगा।" तब से यह परंपरा चली आ रही है। इस कथा को पढ़ने से घर की दरिद्रता का नाश होता है और सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।

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(02)शीतला माता की कथा

2-पौराणिक कथा

- देवलोक से देवी शीतला अपने हाथ में दाल के दाने लेकर भगवान शिव के पसीने से बने ज्वरासुर के साथ धरती लोक पर राजा विराट के राज्य में रहने आई थीं। लेकिन, राजा विराट ने देवी शीतला को राज्य में रहने से मना कर दिया। क्रोध से जलने लगी त्वचा।

राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हो गई। शीतला माता के क्रोध की अग्नि से राजा की प्रजा के लोगों की त्वचा पर लाल लाल दाने हो गए। लोगों की त्वचा गर्मी से जलने लगी थी। तब राजा विराट ने अपनी गलती पर माफी मांगी। इसके बाद राजा ने देवी शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया, तब माता शीतला का क्रोध शांत हुआ। तब से माता देवी को ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है।

निस्संदेह सबसे लोकप्रिय ग्रामीण देवताओं में से एक है और उसकी उत्पत्ति प्रकृति पूजा के दिनों से मानी जा सकती है।

From Devalok, Devi Sheetla came to Earth with dal grains in her hand, accompanied by Jwarasur created from Lord Shiva's sweat, to stay in the kingdom of King Virat. However, King Virat refused to let Devi Sheetla stay in his kingdom. Her skin began to burn with anger.

Because of King Virat's behavior, Devi Sheetla became angry. The fire of her anger caused red blisters to appear on the skin of the people of the kingdom. The people's skin started to burn due to the heat. Then, King Virat apologized for his mistake. After that, the King offered raw milk and cold buttermilk as offerings to Devi Sheetla, which calmed her anger. From that day, the tradition of offering cold dishes to the goddess began.

Undoubtedly, she is one of the most popular rural deities, and her origin can be traced back to the days of nature worship.


Approximately 321 years ago, Devi Sheetla was born, and her name was ‘Sita’. Her mother was named Lajwanti and her father was named Ramu. During her newborn brother's mundan ceremony, he fell into an underground food-cooking machine. The food maker is called ‘Dan’ in Hindi, and he was burned in it. At that time, she was only five years old, and soon after, unfortunately, her brother passed away. Her parents made every effort to have a child, but all their prayers and efforts failed.

Eventually, they began to worship their ‘kuldevi’ to fulfill their wishes. By the blessings of Devi Sheetla, a child was born. From that day, her parents began to worship her with great enthusiasm. This entire event was a miracle and a wondrous occurrence. It clearly shows that worshiping Devi Sheetla can fulfill all desires.

The Sheetla Mata Temple is an ancient Hindu temple dedicated to Devi Sheetla, who is considered an incarnation of Devi Durga. She is also known as Lalita and is the wife of Guru Dronacharya, the teacher of the Pandavas and Kauravas, as described in the famous Indian epic Mahabharata. She is a symbol of Devi Shakti and is renowned for her healing powers.

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लगभग 321 वर्ष पूर्व शीतला माता का जन्म हुआ और उनका नाम सीता था। उनकी माता का नाम लाजवंती और पिता का नाम रामू था। उसके नवजात भाई का मुंडन समारोह आयोजित किया गया था, जिसके दौरान वह भूमिगत भोजन बनाने वाली मशीन में गिर गई। खाना बनाने वाली को हिंदी में दानकहते हैं और वह उसी में जल गई। उस समय वह मात्र पाँच वर्ष की थी और कुछ समय बाद दुर्भाग्यवश उसके भाई की भी मृत्यु हो गयी। उसके माता-पिता ने बच्चा पैदा करने की पूरी कोशिश की, लेकिन सभी प्रार्थनाएँ और प्रयास विफल रहे।

अंततः, उन्होंने अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए अपनी कुलदेवी की पूजा करना शुरू कर दिया। शीतला माता के आशीर्वाद से एक बालक का जन्म हुआ। उस दिन से माता-पिता पूरे उत्साह से उसकी पूजा करने लगे। यह पूरा घटनाक्रम एक महान चमत्कार और विस्मयकारी घटना थी। इससे साफ पता चलता है कि माता शीतला (Sheetla) की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी हो सकती है।

शीतला माता मंदिर (Sheetla Mata Mandir) एक प्राचीन हिंदू मंदिर है जो माता शीतला देवी को समर्पित है जिन्हें देवी दुर्गा का अवतार माना जाता है। उन्हें ललिता के नाम से भी जाना जाता है और वह प्रसिद्ध भारतीय महाकाव्य महाभारत में वर्णित पांडवों और कौरवों के शिक्षक गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी हैं। देवी शक्ति का प्रतीक हैं और अपनी उपचार शक्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं।

(03)शीतला माता की कथा

एक गाँव में, एक ब्राह्मण परिवार रहता था, जिसमें माता-पिता और उनके दो बेटे तथा बहुएं थीं। कई वर्षों तक विवाह के बाद भी, दोनों बहुएं संतानहीन थीं, जिससे वे दोनों बहुत दुखी थीं। एक दिन किसी ने उन्हें शीतला सप्तमी का व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने पूरे नियमों के साथ व्रत किया और माता शीतला की कृपा से दोनों को संतान प्राप्त हुई।

अगले वर्ष जब शीतला सप्तमी का दिन आया, तो दोनों बहुओं को याद आया कि इस दिन ठंडा भोजन खाना चाहिए। लेकिन वे दोनों घबराई हुई थीं, और उन्होंने सोचा कि अगर वे ठंडा भोजन खाएँगी तो उनके बच्चे बीमार हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने चुपके से गर्म भोजन खा लिया। जब वे अपने बच्चों को उठाने गईं, तो देखा कि दोनों बच्चे मृत पड़े थे। यह देखकर वे घबरा गईं और रोते हुए अपनी सास को पूरी बात बता दी।

सास को समझ में आ गया कि यह सब माता शीतला के प्रकोप का परिणाम है। गुस्से में आकर सास ने अपनी बहुओं से कहा, "जब तक तुम्हारे बच्चे जीवित नहीं हो जाते, तब तक तुम घर वापस नहीं आ सकतीं।" दोनों बहुएं अपने मृत बच्चों को टोकरी में रखकर गाँव छोड़कर चल पड़ीं। रास्ते में उनकी मुलाकात दो बहनों, ओरी और शीतला से हुई। दोनों बहुओं ने उनके सिर से जुएं निकाल दीं, जिससे वे खुश हो गईं और उन्हें वरदान देने का वचन दिया।

जब बहुओं ने उनसे माता शीतला के बारे में पूछा, तो एक बहन ने कहा, "तुमने शीतला सप्तमी का व्रत तोड़ा और गर्म भोजन खाया, इसलिए तुम्हारे बच्चों की यह हालत हुई है।" तभी बहुओं को एहसास हुआ कि वे स्वयं देवी शीतला से बात कर रही हैं। उन्होंने माता से क्षमा याचना की और अपने अपराध के लिए पश्चाताप किया।

माता शीतला ने उनकी सच्ची भक्ति और पश्चाताप को देखकर उनके बच्चों को फिर से जीवित कर दिया।

3- In a village, there lived a Brahmin family with two sons, their wives, and the parents. Despite several years of marriage, both the daughters-in-law had no children, which caused them a great deal of sorrow. One day, someone advised them to observe the Shitala Saptami fast. They performed the fast with all the rituals, and by the grace of Mata Shitala, both of them were blessed with children.

 The next year, when Shitala Saptami arrived, both daughters-in-law remembered that they should eat cold food on this day. However, they were afraid that eating cold food might make their children sick, so they secretly ate hot food instead. When they went to pick up their children, they were shocked to find both of them lying dead. In distress, they ran to their mother-in-law and told her everything. The mother-in-law immediately realized that this was the result of Mata Shitala's wrath.

Angrily, the mother-in-law told her daughters-in-law, "Until your children come back to life, you will not return home." Both daughters-in-law took their dead children in a basket and left the village. On their way, they met two sisters, Ori and Shitala. The two daughters-in-law helped them remove lice from their hair, which made the sisters happy, and they promised to grant them a boon.

When the daughters-in-law asked them about Mata Shitala, one of the sisters said, "You broke the fast of Shitala Saptami and ate hot food, which is why your children are in this condition." At that moment, the daughters-in-law realized that they were speaking to Devi Shitala herself. They begged for her forgiveness and repented for their mistake.

Seeing their true devotion and repentance, Devi Shitala brought their children back to life.

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4-, भगवान ब्रह्मा ने माता शीतला की रचना की। माता शीतला, भगवान शिव के पसीने से उत्पन्न एक ज्वर नामक राक्षस के साथ धरती पर आईं। जब माता शीतला और ज्वर असुर रहने के लिए जगह की तलाश में धरती पर उतरे, तो वे भगवान् शिव के एक भक्त राजा विराट के दरबार में पहुँचे। राजा ने उन्हें अपने राज्य में रखने से इनकार कर दिया। राजा के इस व्यवहार से देवी शीतला क्रोधित हो गई। शीतला माता के क्रोध की अग्नि से राजा की प्रजा के लोगों की त्वचा पर लाल लाल दाने हो गए। लोगों की त्वचा गर्मी से जलने लगी थी। तब राजा विराट ने अपनी गलती पर माफी मांगी। इसके बाद राजा ने देवी शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग लगाया, तब माता शीतला का क्रोध शांत हुआ। तब से माता देवी को ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है।



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