सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सोमभद्र – श्रोमणा कथा :मोह-माया , वैराग्य का उद्घोष" "श्रोमणा – नयन पथ वैराग्या"

 

सोमभद्र श्रोमणा कथा

"श्रोमणा नयन पथ वैराग्या"

यह कथा जैन आगमों और पुरानी श्रवकाचार कथाओं में  है


🌺 सोमभद्रश्रोमणा कथा-

मोह-माया बनाम वैराग्य का उद्घोष"

 दार्शनिक रूप से गूढ़ जैन कथाचित्र-दरबार (नाट्य रूप में दृश्य) प्रस्तुत किया गया है,

 जिसमें प्रमुख पात्र सोमभद्र और श्रौमणा हैं।

 यह दृश्य वैराग्य, आत्मज्ञान, मोह और त्याग की गहन अनुभूति को प्रकट करता है, 

जिसमें जैन सिद्धांतों का सार समाहित है।

📜 पात्र:


  • श्रौमणाअतिसुंदर, विदुषी राजकुमारी, आत्मज्ञान की खोजी
  • सोमभद्र राजामोह में लिप्त, सौंदर्य का पूजक
  • युवा राजकुमार, मोह-बंधन में उलझा, अंत में वैराग्यवान
  • मंत्री, साध्वी, दासी, दर्शकगण

1: राजदरबार में श्रौमणा का आगमन

🎭 (मंच सज्जा स्वर्णमय दरबार, चंवर डोलते हैं, रत्नजड़ित सिंहासन, सभा स्तब्ध)
श्रौमणा मंद गति से प्रविष्ट होती हैं सौंदर्य की साक्षात मूर्ति, पर मुख पर वैराग्य की छाया।

राजा (मंत्रमुग्ध होकर):
"हे श्रौमणे! तुम्हारा सौंदर्य तो कामदेव को भी मोहित कर दे! क्यों तुम सदा ध्यानस्थ, विरक्त और मौन रहती हो?"

श्रौमणा (शांत स्वर में):
"राजन्! यह शरीर, यह रूप क्षणिक है। जो नश्वर है, उस पर गर्व क्यों? मेरा सौंदर्य मेरा बंधन नहीं बन सकता।"

📜 श्लोक (गवती आराधना से):
"सव्वेसिं भावणाणं, पासं य अपणिव्वुओ।
ण णिब्बाेइ कसायेसु, एस विरइव्वओ तवो॥"
वह तप असली है जो सभी आसक्तियों को त्यागकर होता है, जहाँ कषायों में लिप्तता नहीं रहती।


2: सोमभद्र का मोह और आत्मग्लानि

सोमभद्र (एकांत में):
"श्रौमणा का सौंदर्य देख मैं विचलित हो उठा। परंतु उनके वचन सुनकर मुझे आत्मग्लानि हो रही है। क्या मैं केवल शरीर को देख सका?"

श्रौमणा (सोमभद्र से):
"राजकुमार! जो केवल रूप देखता है, वह अंधा है। जो आत्मा को पहचानता है, वही ज्ञानी है।"

📜 श्लोक (तत्त्वार्थसूत्र से):
"मोहः सर्वावगाहि"
"मोह सब विकारों में व्याप्त होता है।"
"सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः॥"
"सही दृष्टि, ज्ञान और आचरण यही मुक्ति का मार्ग है।"


3: श्रौमणा का वैराग्य और दीक्षा

🎭 (श्रौमणा अपने केश त्यागती हैं, दासी विलाप करती है, किंतु श्रौमणा मुस्कराती हैं।)

श्रौमणा (दीक्षा लेते समय):
"अब यह केश, यह वस्त्र, यह नाम कुछ नहीं। मैं केवल आत्मा हूँ।

 मुझे आत्म-स्वरूप की अनुभूति चाहिए।"

📜 श्लोक (उत्तराध्ययन सूत्र):
"णज्जा व चित्तेण विणा व दंसणं,
ण संजयं पाव समण्णुजाणइ।"

"जब तक चित्त निर्मल न हो, सम्यकदर्शन नहीं होता।"


4: सोमभद्र का आत्मपरिवर्तन और संन्यास

सोमभद्र (रोते हुए):
"श्रौमणा, तुमने मुझे मेरे भीतर झाँकना सिखाया। अब मैं राजसी मोह नहीं, आत्मा का ज्ञान चाहता हूँ। मैं भी दीक्षा लूंगा।"

📜 श्लोक (आत्मानुभव आधारित):
"अण्णं च नायं अप्पाणं च नायं
ण आयं परस्स, परो ण आयं।"

"न कोई किसी का है, न कोई स्वयं का मालिक। आत्मा ही सत्य है।"


📚 कथानुभव और संदेश:

🌿श्रौमणा रूप की सीमा लांघकर आत्मा के स्वरूप तक पहुँची।
🔥सोमभद्र ने मोह से वैराग्य की ओर कूच किया।
👑राजा ने भी अंततः जीवन की क्षणभंगुरता को समझा।

 सोमभद्र श्रोम संवादात्मक कथा

🔱 1:राजकुमार की क्लांत आत्मा

सोमभद्र, अवंतिपुर के राजा की संतान, भोग-विलास के मध्य भी एक अनदेखी पीड़ा से ग्रस्त था। महल के सोने जड़े कक्ष, सुगंधित सुरा, नृत्य की स्वर लहरियाँ पर आत्मा अशांत।

स्वगत चिन्तन:
"न किञ्चित् रम्यते चित्ते, सदा मोहवशं गतम्।
किं जीवनं यदि शून्यं, आत्मबोधविवर्जितम्॥"


🌼 2: श्रोमणा का नगर आगमन

वन से नगर आई तपस्विनी श्रोमणा, जो अब आर्यिका बनने के निकट थी नारी रूप में तप और ज्ञान का ऐसा तेज़ कि दृष्टिपात मात्र से अज्ञान नष्ट हो।

उसकी चाल धीमी, पर शब्द वेद तुल्य। नगर में कोलाहल मच गया – “यह कौन है? देवी? मुनि?”


🪷 3: प्रथम दृष्टि और द्वंद्व

सोमभद्र जब पहली बार श्रोमणा को देखता है, कुछ क्षण को समय थम सा जाता है। यह प्रेम नहीं था यह चेतना का स्पर्श था।

संवाद:
सोमभद्र: तेरे नेत्रों में अपार गहराई है क्या तू आत्मज्ञानी है?”
श्रोमणा:नेत्र केवल पथ दिखाते हैं, पर जो आत्मा का पथ देखे वही ज्ञान है।

श्लोक:
"न चक्षुषा ज्ञायते आत्मा, न शब्देन न गन्धतः।
चिन्तयन् संहितां बुद्ध्या, पश्यति आत्मस्वरूपतः॥"
उपनिषद्


4: आन्तरिक संघर्ष

सोमभद्र अब रात्रि में समाधि मुद्रा में बैठने लगता है। राजसिंहासन आकर्षित नहीं करता, प्रियाओं की मधुर वाणी अब भार लगती है।

श्रोमणा कहती है:
"सत्यं शिवं सुन्दरं तत्र, यत्र रागविनाशः।
दृष्टिर्मुक्ता यदि भवति, तदा जीवः मुक्ति व्रजति॥"


🕉 5: आत्मनिर्णय और तप

एक रात्रि सोमभद्र, राजसभा में मौन खड़ा हो गया। उसने कहा
मैं अब संयम का पथ ग्रहण करता हूँ। 

श्रोमणा ने केवल दर्शन नहीं दिए, बल्कि मुझे जाग्रत किया है।

राजा ने कहा – “किंतु तू मेरा उत्तराधिकारी है।
सोमभद्र:
"राज्यं न मम, आत्मा मे धर्मपथं याचते।"
और उसी क्षण मुनि दीक्षा की ओर प्रस्थान।


🌿

  6: श्रोमणा की अंतिम शिक्षा

श्रोमणा:
जो आत्मा को जानता है, वही बंधन से छूटता है।
तू राजा नहीं तू साधक है, तू जाग्रत आत्मा है।

श्लोक:
"न स्त्री न पुरुषो बन्धुः, न राज्यं न धनं सुखम्।
अहमेव परं ब्रह्म, नान्यः शरणं मम॥"

**************************************************************

(3)

श्रोमणा आत्मबोध और वैराग्य की कथा 🔱


1: राजकुमार की क्लांत आत्मा

राजकुमार सोमभद्र, अवंतिपुर सम्राट का पुत्र, समस्त राजसी ऐश्वर्य के बीच भी भीतर एक शून्यता अनुभव करता था। भोग-विलास, नृत्य, राग, स्वाद सब व्यर्थ लगते। आत्मा जैसे भीतर से पुकार रही थी "किं कर्तव्यं?"

स्वगत श्लोक:
🔸 "न किञ्चित् रम्यते चित्ते, सदा मोहवशं गतम्।
किं जीवनं यदि शून्यं, आत्मबोधविवर्जितम्॥"


2: श्रोमणा का नगर आगमन

वनों से नगर में आगमन हुआ एक संयमित, दीप्तिमान तपस्विनी का नाम था श्रोमणा। उसके नेत्रों में शांति थी, वाणी में वैराग्य। नगरवासी चकित, राजमहल स्तब्ध।

वर्णनात्मक टीका:
वह केवल स्त्री नहीं, आत्मिक तेज की मूर्ति थी जैसे स्वयं "बुद्धि की देवी" वन से उतर आई हो।


3: प्रथम दृष्टि और आत्म-स्पर्श

राजकुमार ने पहली बार श्रोमणा को देखा दृष्टि टकराई नहीं, प्रज्ञा जाग उठी। यह प्रेम नहीं था, यह एक जागृति थी। वह कह बैठा:

संवाद:
सोमभद्र:क्या तुम तप की अग्नि में दीप्त आत्मा हो?”
श्रोमणा:मैं तो दर्पण हूँ, जो तुम्हारे भीतर की अग्नि को दिखाने आई हूँ।

श्लोक (उपनिषद्):
🔸 "न चक्षुषा ग्राह्यमिदं न वाचा न मनसा।
आत्मा ह्येवात्मना द्रष्टव्यः"_


4: आंतरिक संघर्ष

राजसी भोग अब सोमभद्र को विष लगने लगे। रात्रियाँ ध्यान में बीतने लगीं, जीवन की सार्थकता पर प्रश्न उठने लगे।

श्रोमणा का उपदेश:
त्याग वह नहीं जो वस्त्रों से हो, त्याग वह है जो अहंकार से हो

 संयम वह नहीं जो बाहर दिखे, संयम वह है जो मन को वश में करे

नीतिश्लोक:
🔸 "रागद्वेषविनिर्मुक्तैः युक्तैः पश्यति आत्मनः।
योगयुक्तो विमुच्यते बन्धनात्॥"गीता


5: आत्मनिर्णय वैराग्य की घोषणा

राजसभा में सबके समक्ष सोमभद्र ने कहा:
राज्य अब मेरा नहीं, मैं आत्मा का अनुगामी बनना चाहता हूँ। दीक्षा मेरा उत्तर है, तप मेरा मार्ग है।

श्लोक:
🔸 "राज्यं न मम, आत्मा मे धर्मपथं याचते।
राज्ये रागो हि बन्धनं, वैराग्ये मुक्तिसंश्रयः॥"


6: श्रोमणा की अंतिम शिक्षा

सोमभद्र दीक्षा को अग्रसर हुआ। जाते समय श्रोमणा ने कहा:

यात्रा कठिन है, परंतु जो स्वयं को जान ले, वह अमर हो जाता है। ब्रह्मज्ञानी वह है जो संसार के मध्य भी निर्लिप्त रहे।

श्लोक:
🔸 "नाहं देहो न मे बुद्धिर्नाहं चित्तं न मे मनः।
अहमेव परं ब्रह्म, नान्यः शरणं मम॥"



(4)

1: सोमभद्र का विलासी जीवन

एक बार वर्धमान नगर में सोमभद्र नामक राजा का पुत्र विलासिता में लिप्त था। उसके लिए स्त्रियाँ, रत्न, भोग-विलास ही जीवन का सार था।

🗣सोमभद्र (स्वगत):
"किं सुखं विद्यते त्वन्यत् सुरतैः विना?
एषा रम्या जीवनसंपदा।"

📜 "कामो रागसमुत्थोऽयं, नयति नरकं ध्रुवम्।
न जानाति यदात्मानं, सो मोहपरिवेष्टितः॥
"

🔸 (हिन्दी अर्थ: जो व्यक्ति आत्मा का ज्ञान नहीं करता और राग में फँसा रहता है, वह निश्चित ही नरक को प्राप्त करता है।)


🌸– 2: श्रोमणा से भेंट

श्रोमणा एक विदुषी ब्राह्मणी थी, जिसका रूप अनुपम था किंतु मन संयममयी था। एक दिन सोमभद्र उसे देखकर मोहित हो गया।

🗣सोमभद्र:
"हे शुभे! त्वं रूपेण मनो हृतवती।
मम कामाग्निर्दग्धुमिच्छति त्वां मां त्वया स्पृशतु।"

🗣श्रोमणा (वैराग्य भाव से):
"देहोऽयं शोणितास्थिमांसरससंघातसमुच्चयः।
मोहात्तु रुचिरो ज्ञेयो न तु तत्त्वं विचारय॥"

🔸 (हिन्दी अर्थ: यह शरीर हड्डी, रक्त और मांस का समूह है। यह मोह के कारण सुंदर प्रतीत होता है, परंतु तत्वतः विचार करने पर घृणित है।)


🪔   – 3: तत्वज्ञान का उपदेश

🗣श्रोमणा:
"मरणं निश्चितं लोके, न जाने कः कालः भवेत्।
प्रमादं त्यज सुविपाकं, आत्मानं पश्य भो नर॥"

🔸 (हिन्दी अर्थ: मृत्यु निश्चित है, पर उसका काल अज्ञात। इसलिए प्रमाद त्यागकर आत्मा की ओर देखो।)

📜 प्राकृत श्लोक:
"अइअं णरो हि दुज्जओ, जो कमे विअडं समुपेस्सइ।
जो वि ण जाणइ मरणं, सो पुडहो विण बन्धणं भवओ॥"


🧘

– 4: वैराग्य और दीक्षा

सोमभद्र को वैराग्य हुआ। उसने सभी भोगों का त्याग किया।

🗣सोमभद्र (गंभीर स्वर में):
"किं मे भोगैः विषरूपैः? किं स्त्रीणां तृणसमां तनुभिः?
त्वमेव जननि बोधाय वर्तसे अहं मुनिर्भवामि।"

📜
"कामो हि नरकस्य द्वारं, वैराग्यं मोक्षमार्गतः।
श्रोमणा चेतसा साऽस्या, सोमभद्रं चकार यतिः॥"

🔸 (हिन्दी अर्थ: काम नरक का द्वार है, वैराग्य मोक्ष का मार्ग है।

 श्रोमणा ने अपने ज्ञान से सोमभद्र को मुनि बना दिया।)


🔚– 5: श्रोमणा का संयम

कुछ समय बाद श्रोमणा ने भी वैराग्य धारण कर आर्यिका दीक्षा ले ली।

📜
"न स्त्री न पुंसां बन्धः, आत्मा वै मुक्तिभाजनम्।
तत्त्वं यदि बोधं याति, स जीवो भवबन्धनात् मुच्यते॥"

🔸 (हिन्दी अर्थ: स्त्री या पुरुष होना बंधन नहीं है। यदि आत्मा तत्वज्ञान प्राप्त कर ले, तो वह भवबन्धन से मुक्त हो जाता है।)


समापन उपदेश आत्मबोध की अमृतधारा

श्रोमणा और सोमभद्र, दोनों अपने-अपने पथ पर अग्रसर

एक संयमित आर्यिका बनी, दूसरा दीक्षित मुनि।

मिलन न होते हुए भी, आत्मा से आत्मा तक पूर्ण समर्पण।

जीवनसूत्र:

  • विषय सुख क्षणिक हैं आत्मसुख ही चिरंतन है।
  • आत्मा को जानना ही धर्म है, धर्म ही मुक्ति का द्वार है।
  • गुरु, ज्ञान और वैराग्य यही त्रिदेव हैं सच्चे साधक के लिए।

शास्त्रीय श्लोक (योगवासिष्ठ):
🔸 "आत्मा तु साक्षात्परमः स्वरूपं,
न तं क्षणेनापि विसर्जयामि।

विषयेन्द्रियेष्वेव भ्रमामि मूढो,
न मे शिवं विन्दति मोहयोगात्॥"

(आधार: जैन उपदेश साहित्य, उपदेशमाला, प्रबंध-संग्रह, श्रावकाचार)

🔹 काम और मोह का त्याग करके ही आत्मकल्याण संभव है।
🔹 एक सच्चा उपदेशक/उपदेशिका किसी को भी वैराग्य की ओर मोड़ सकता है।
🔹 यह कथा दर्शाती है कि नारी केवल मोह का कारण नहीं, अपितु वैराग्य का मार्ग भी बन सकती है।


"सोमभद्रश्रोमणा" की कथा जैन धर्म से संबंधित है, और यह विशेष रूप से श्वेतांबर जैन परंपरा में प्रसिद्ध है। यह कथा वैराग्य-प्रेरणाप्रद चरित्रों में आती है, जो काम-विजय, सम्यग्दर्शन, और संयम जीवन की ओर प्रेरित करती है।


📌 विशेष शिक्षा:

🔸 श्रृंगार नहीं, ज्ञान ही मुक्तिदाता है।
🔸 नारी उपदेशिका भी हो सकती है श्रोमणा इसका श्रेष्ठ उदाहरण है।
🔸 सोमभद्र की कथा संयम की विजय कथा है।

📖 समापन संदेश

सोमभद्र और श्रोमणा अब भिन्न पथों पर, पर एक ही लक्ष्य की ओर आत्ममोक्ष।

उपदेश:

  • आत्मा अनश्वर है, इसे जानो।
  • विषयों से नहीं, संयम से शांति मिलती है।
  • गुरु और ज्ञान यदि मिल जाएँ, तो जीवन सार्थक हो जाता है।

नमन श्रोमणा को जो आँखों से नहीं, आत्मा से दिखाती हैं।
नमन सोमभद्र को जो राजसी मोह से निकलकर आत्मा का साधक बना।


श्रोमणा नामक ब्राह्मणी (या स्त्री पात्र) के माध्यम से सम्यक दर्शन, वैराग्य और संयम की महान प्रेरणा मिलती है।

 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...