सप्तमी द्वार पूजा का विस्तृत शास्त्रीय विवरण, श्लोक एवं विधि
🚩 द्वार पूजा का शास्त्रीय महत्व
हिंदू धर्म में मुख्य द्वार (घर या व्यापार स्थल का प्रवेश द्वार) को सुख-शांति, समृद्धि और आरोग्यता का मुख्य आधार माना जाता है। द्वार से ही शुभ-अशुभ ऊर्जा का प्रवेश होता है, इसलिए इसे पवित्र और सकारात्मक बनाए रखना आवश्यक है।
शास्त्रों में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को द्वार पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। यह पूजा देवी लक्ष्मी, गणपति, और वास्तु देवताओं को प्रसन्न करने के लिए की जाती है।
📜 द्वार पूजा का शास्त्रीय प्रमाण (ग्रंथ और श्लोक)
📖 1. "कालिका पुराण"
🔹 "गृहे लक्ष्म्या स्थिरा पूज्या सप्तम्यां द्वार पूजनम्।
कलहं नाशयेत् सद्यः सुखं सौभाग्यमेव च॥"
📖 अर्थ:
👉 सप्तमी तिथि को मुख्य द्वार की पूजा करने से लक्ष्मीजी स्थायी रूप से घर में निवास करती हैं।
👉 इस पूजा से परिवार में शांति, सौभाग्य और समृद्धि बढ़ती है तथा क्लेश-कष्ट समाप्त होते हैं।
📖 2. "वास्तु तंत्र"
🔹 "अग्निद्वारे प्रदीप्तं हि दीपं यः स्थापयेत् नरः।
सर्वग्रहा प्रशस्यन्ते गृह दोषा विनश्यति॥”
📖 अर्थ:
👉 यदि कोई व्यक्ति मुख्य द्वार पर दीप जलाकर उसकी पूजा करता है, तो ग्रह बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं और गृह दोष दूर होते हैं।
📖 3. "स्कंद पुराण"
🔹 "सप्तम्यां द्वार पूजायां शुद्धे गेहे निवासिनः।
न तेषां दुःखमाप्नोति यावच्चन्द्रदिवाकरौ॥”
📖 अर्थ:
👉 सप्तमी तिथि को शुद्ध घर के द्वार की पूजा करने से घर में कभी कोई संकट नहीं आता और वहां रहने वाले लोग दीर्घायु एवं सुखी जीवन व्यतीत करते हैं।
🌿 सप्तमी द्वार पूजा विधि (विस्तृत प्रक्रिया)
🔸 (1) द्वार शुद्धि एवं तोरण सज्जा
✔ सूर्योदय से पहले मुख्य द्वार को धोकर स्वच्छ करें।
✔ मंगल तोरण (आम, पीपल, तुलसी या अशोक पत्तों का बंदनवार) लगाएँ।
✔ द्वार पर स्वस्तिक, ॐ, श्री, गणपति, लक्ष्मी चरण का चित्रांकन करें।
🔸 (2) कलश स्थापना (मुख्य द्वार पर)
✔ द्वार के बाएँ और दाएँ दो कलश स्थापित करें।
✔ कलश को लाल या पीले वस्त्र से लपेटें।
✔ कलश में गंगाजल, आम के पत्ते, आंवला, वट, पीपल, तुलसी, दूर्वा डालें।
✔ कलश के ऊपर नारियल स्थापित करें।
🔸 (3) दीप प्रज्वलन एवं वर्तिका नियम
✔ द्वार के दोनों ओर दीप जलाएं।
✔ वर्तिका नारंगी (Orange) या मौली युक्त होनी चाहिए।
✔ श्वेत (White) वर्तिका निषिद्ध है।
✔ दीपक का मुख पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
✔ घी, तिल या महुआ तेल का उपयोग करें (रिफाइंड तेल वर्जित है)।
🔸 (4) द्वार पूजा मंत्र
✔ पुष्प, रोली, अक्षत और जल लेकर द्वार पर छिड़कें और निम्न मंत्र पढ़ें:
🔹 "ओम दुर्गायै विद्महे महादेव्यै धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥"
🔹 "ह्रीं ह्रीं जयायै ह्रीं ह्रीं।
ऐं शंभू वनिता ह्रीं ऐं।
ह्रीं ऐं सुलोचनाय।
ह्रीं ह्रीं सिंहाय महाबलाय ह्रीं ह्रीं।"
✔ पुष्प अर्पण करें और द्वार पर अक्षत छिड़कें।
🔸 (5) विशेष पुष्प अर्पण
✔ जवाकुसुम, कुंद, कमल, कुमुद, बकुल, शेफालिका और पारिजात के पुष्प श्रेष्ठ माने गए हैं, इन्हें अर्पण करें।
🌟 सप्तमी द्वार पूजा की विशिष्ट तिथियाँ (2025-2026)
✅ 2025:
📅 3 मई, 2 जून, 2 जुलाई, 31 जुलाई, 30 अगस्त, 29 सितंबर, 29 अक्टूबर, 27 नवंबर, 27 दिसंबर
✅ 2026:
📅 25 जनवरी, 24 फरवरी
👉 इन विशेष तिथियों पर द्वार पूजा करने से घर, व्यापार स्थल एवं मंदिरों में शांति, समृद्धि, और रोग-नाश होता है।
🎯 सप्तमी द्वार पूजा के लाभ
✅ सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश
✅ गृह क्लेश, बाधा एवं रोगों का नाश
✅ समृद्धि एवं लक्ष्मीजी की कृपा
✅ परिवार में सुख-शांति और प्रसन्नता
✅ ग्रह दोष एवं वास्तु दोष निवारण
📌 विशेष जानकारी:
✅ सप्तमी तिथि को मुख्य द्वार की शुद्धि एवं दीपक प्रज्वलन करने से विशेष लाभ होता है।
✅ घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
✅ सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, जिससे गृह क्लेश समाप्त होते हैं।
दुर्गा सप्तमी द्वार पूजा – विधि, मंत्र एवं शास्त्रीय प्रमाण
दुर्गा सप्तमी तिथि को द्वार पूजा का विशेष महत्व है। इसे नवरात्रि के सातवें दिन किया जाता है, जब देवी दुर्गा के सप्तम स्वरूप कालरात्रि की पूजा की जाती है। इस दिन विशेष रूप से बेल शाखा, नवरात्रि के नौ पत्ते, और द्वार पूजन की परंपरा होती है। यह पूजा मुख्य द्वार पर की जाती है, जिससे घर में देवी का आह्वान किया जा सके और समस्त बाधाओं का नाश हो।
नवरात्रि के नौ दिनों में किए जाने वाले कार्यों का क्रम
(शास्त्रीय मान्यता के अनुसार नवरात्रि के प्रत्येक दिन विशेष पूजा का विधान होता है)
- प्रतिपदा (प्रथम दिन): घट स्थापना (कलश स्थापना)।
- द्वितीया (दूसरा दिन): पुस्तक पूजन।
- तृतीया (तीसरा दिन): खड्ग (अस्त्र-शस्त्र) पूजन।
- चतुर्थी (चौथा दिन): केस (केश) शोधन।
- पंचमी (पांचवां दिन): सूर्य में दुर्गा देवी की कल्पना कर पूजा।
- षष्ठी (छठा दिन): बेल वृक्ष की जड़ में पूजा।
- सप्तमी (सातवां दिन): नबपत्रिका पूजा एवं द्वार पूजा।
- अष्टमी (आठवां दिन): मूर्ति पूजा।
- नवमी (नौवां दिन): बलिदान, नारियल तोड़ना।
- दशमी (दसवां दिन): विसर्जन।
सप्तमी को बेल शाखा एवं नौ पत्तों की पूजा का महत्व
➤ द्वार पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
➤ इस दिन 9 पत्तों की पूजा की जाती
है, जिससे विभिन्न प्रकार के देवताओं का आह्वान होता है।
➤ यदि 9 प्रकार के
पत्ते उपलब्ध न हों, तो कम से कम तीन प्रकार के पत्तों का प्रयोग अवश्य करें।
➤ पूजा के
लिए प्रातः सूर्योदय से पहले, अष्टम मुहूर्त (8वां भाग)
या गोधूलि बेला (सूर्यास्त से 24 मिनट पहले या बाद) में पूजा करना श्रेष्ठ रहता है।
द्वार पूजा की विधि (Step-by-Step Process)
1. बेल शाखा का संग्रहण
बेल वृक्ष की 6 या 12 अंगुल लंबी शाखा काटी जाती है। इसे काटते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए:
📜 मंत्र:
"ॐ छिन्दि छिन्दि छेदय छेदय ॐ स्वाहा।"
इसके पश्चात इसे स्नान कराकर वस्त्र में लपेटकर पूजा स्थल पर रखें।
2. नौ वृक्षों के पत्तों का महत्व और प्रयोग
इन 9 पत्तों का शास्त्रीय रूप से विशेष महत्व बताया गया है:
- हल्दी पत्ता – रुद्र कृपा, आरोग्य और शांति प्रदान करता है।
- मेहंदी पत्ता – सौभाग्य वृद्धि करता है।
- बेल पत्र – शिव कृपा प्राप्त होती है, पवित्रता का प्रतीक।
- अनार पत्र – धन एवं सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है।
- अशोक पत्ता – शोक व दुःख दूर करता है और देवी स्थिरता देती हैं।
- अमलतास पत्ता – धार्मिक कार्यों में उपयोगी, सौभाग्य दायक।
- केला पत्ता – विष्णु कृपा, आयु वृद्धि व संतति सुख।
- पारिजात पत्ता – समृद्धि, पाप विनाशक।
- अपराजिता / विष्णुकांता पत्ता – विजय और ऐश्वर्य प्राप्ति।
📜 मंत्र:
"ॐ चल चल चालय चाल शीघ्र मंदिर मंदिरम प्रविश पूजा आलयम स्वाहा।"
➤ इन पत्तों को शंख के जल से स्नान कराकर एक पाटे (चौकी) पर रखें।
➤ इनके ऊपर
बेलपत्र की शाखा रखें।
➤ इन पर
विष्णुकांता या केले के पत्ते रखें।
➤ लाल या
पीले वस्त्र से आच्छादित करें।
📜 मंत्र:
"ॐ शारदीय इमाम इमाम पूजाम ग्रहाण
त्वम् इहागता।"
3. द्वार पूजा की विधि
➤ मुख्य द्वार के दोनों ओर दो कलश
स्थापित करें।
➤ कलश पर लाल वस्त्र लपेटें।
➤ कलश में
निम्नलिखित सामग्री डालें:
- आंवला, वट, पीपल, पारिजात, आम
के पत्ते, तुलसी
एवं दूर्वा।
➤ कलश के पीछे दीपक जलाएं।
दीपक एवं बाती के नियम
✔ दीपक की बत्ती नारंगी (Orange) या मौली
युक्त हो।
❌ श्वेत (White) बाती निषिद्ध है।
✔ दीपक पूर्व या उत्तर दिशा में रखें।
✔ दीपक में गाय का घी, महुआ तेल, या तिल का तेल प्रयोग
करें।
❌ Refined तेल का प्रयोग वर्जित है।
📜 मंत्र:
"ॐ दुर्गायै विद्महे महादेवयै धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।"
➤ द्वार पर तोरण सजाएं और जल छिड़कें।
➤ पुष्प एवं
रोली छिड़कें।
📜 द्वार पर
पुष्पार्चन मंत्र:
"ह्रीं ह्रीं जयायै ह्रीं ह्रीं।"
"ऐं शंभू वनिता ह्रीं ऐं।"
"ह्रीं ऐं सुलोचनाय।"
"ह्रीं ह्रीं सिंहाय महाबलाय ह्रीं ह्रीं।"
📜 गणेश
वंदना:
"गं गणपतये नमः।"
📜 देवी
स्तुति:
"ह्रीं ह्रीं कमल वासिन्यै नमः।"
"ह्रीं ऐं सरस्वत्यै नमः।"
"ह्रीं सां सावित्र्यै नमः।"
4. पुष्प अर्पण
➤ देवी को पुष्प अर्पित करें।
➤ विशेष
पुष्प जैसे जवाकुसुम, कुंड, कमल, कुमुद, बकुल, शेफालिका, पारिजात श्रेष्ठ माने गए हैं।
द्वार पूजा का फल
➤ सप्तमी द्वार पूजा करने से सभी
प्रकार की आपत्ति-विपत्ति का नाश होता है।
➤ देवी
दुर्गा का स्थायी वास होता है, जिससे सुख, समृद्धि
और शांति प्राप्त होती है।
➤ नकारात्मक
ऊर्जाओं एवं बाधाओं से रक्षा होती है।
दुर्गा सप्तमी पर द्वार पूजा अत्यंत शुभ एवं महत्वपूर्ण होती है। इसमें बेलपत्र, नौ पत्तों, कलश स्थापना, दीप प्रज्वलन और विशेष मंत्रों का उपयोग किया जाता है। द्वार पूजा के द्वारा देवी का आह्वान कर जीवन में शुभता, ऐश्वर्य और विजय प्राप्त की जा सकती है।
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दुर्गा सप्तमी द्वार पूजा - विस्तृत शास्त्रीय प्रमाण एवं विधि
दुर्गा सप्तमी के दिन द्वार पूजा का विशेष महत्व है, जिसका उल्लेख चण्डी तंत्र, मार्कण्डेय पुराण, देवी भागवत, कृत्यसार संग्रह, तन्त्रसार, दुर्गा सप्तशती, और अन्य तांत्रिक ग्रंथों में मिलता है। द्वार पूजा का मुख्य उद्देश्य देवी को आमंत्रित करना और नकारात्मक शक्तियों को रोकना है। यहाँ द्वार पूजा से संबंधित सभी महत्वपूर्ण शास्त्रीय प्रमाण प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
🔹 1. द्वार पूजा का महत्व (शास्त्रीय प्रमाण)
📜 श्लोक (देवी भागवत महापुराण 3.27.19-21):
🔹 "द्वारे
प्रतिष्ठिता देवी दुर्गा सर्वमङ्गला।
मङ्गलं मङ्गलानां च यः कुर्याद् द्वारपूजनम्॥"
📖 अर्थ:
यदि कोई द्वार पूजा करता है, तो देवी
स्वयं वहाँ प्रतिष्ठित हो जाती हैं और सभी प्रकार के मंगल का कारण बनती हैं।
📜 श्लोक (तन्त्रसार ग्रंथ, द्वार पूजन विधि 8.19-20):
🔹 "तोरणं
स्थापयेद् द्वारि दुर्गायै परमं शुभम्।
मङ्गलं सर्वकार्येषु सम्पत्तिं कुरुते सदा॥"
📖 अर्थ:
मुख्य द्वार पर तोरण एवं शुभ सामग्री स्थापित करने से सभी कार्य सिद्ध होते
हैं और समृद्धि प्राप्त होती है।
🔹 2. द्वार पर कलश स्थापना (शास्त्रीय प्रमाण)
📜 श्लोक (कृत्यसार संग्रह, नवरात्रि पूजा विधि 5.11):
🔹 "कुम्भं
स्थापयेत् द्वारे सर्वशुभफलप्रदम्।
अमृतं तत्प्रसादेन सर्वसिद्धिर्भवेत् ध्रुवम्॥"
📖 अर्थ:
यदि कोई मुख्य द्वार पर कलश स्थापित करता है, तो यह सभी
शुभ फलों को प्रदान करने वाला होता है और इस पूजा से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती
हैं।
📜 श्लोक (चण्डी तंत्र, सप्तमी पूजन विधि 4.18):
🔹 "अमृतं
शङ्करं सोमं कुम्भे स्थापय मे शुभम्।
मङ्गलं कुरु मे मातः सर्वदोषविनाशिनी॥"
📖 अर्थ:
कलश स्थापना से देवी की कृपा से अमृततुल्य फल प्राप्त होता है और सभी दोष
नष्ट हो जाते हैं।
🔹 3. द्वार पर दीपक प्रज्वलन का महत्व (शास्त्रीय प्रमाण)
📜 श्लोक (देवी पुराण 6.44.17):
🔹 "दीपं यः
स्थापयेद् द्वारे नवरात्रे विशेषतः।
सर्वार्थसिद्धिः तस्यैव भवेत् नात्र संशयः॥"
📖 अर्थ:
जो व्यक्ति नवरात्रि में मुख्य द्वार पर दीपक प्रज्वलित करता है, उसे सभी
प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
📜 श्लोक (मार्कण्डेय पुराण 12.14):
🔹 "घृतदीपं
प्रदीप्तं तु स्थापयेद् गृहमण्डपे।
सर्वारिष्टं विनश्येत् च लक्ष्मीः स्थायि भविष्यति॥"
📖 अर्थ:
यदि द्वार पर घी का दीपक जलाया जाए, तो समस्त
अशुभ नष्ट होते हैं और स्थायी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
🔹 4. द्वार पूजन विधि एवं नौ पत्तों की पूजा (शास्त्रीय प्रमाण)
📜 श्लोक (चण्डी तंत्र, सप्तमी पूजन विधि):
🔹 "बिल्व
पत्रं प्रदायास्मै पूजयेत सप्तमी दिने।
द्वारं रक्षार्थमायान्ति सर्वमंगलदायिनी॥"
📖 अर्थ:
सप्तमी तिथि को बेलपत्र सहित नौ पत्तों से देवी की पूजा करनी चाहिए। यह
पूजा विशेष रूप से द्वार की रक्षा एवं कल्याण के लिए की जाती है।
📜 श्लोक (नवरात्रि तंत्र, सप्तमी पूजन प्रक्रिया 6.5-6):
🔹 "अशोकपत्रं
पूजयेत् दूर्वां च तुलसीं तथा।
द्वारस्य रक्षणार्थाय सर्वकामफलप्रदम्॥"
📖 अर्थ:
मुख्य द्वार पर अशोक के पत्ते, दूर्वा और
तुलसी के पत्र से पूजा करने पर समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है।
🔹 5. द्वार पूजन का समापन मंत्र (शास्त्रीय प्रमाण)
📜 श्लोक (दुर्गा सप्तशती, अर्गला स्तोत्र 5.6):
🔹 "जयन्ती
मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥"
📖 अर्थ:
पूजा के अंत में इस मंत्र का उच्चारण करने से सभी अमंगल नष्ट होते हैं और
देवी का संरक्षण प्राप्त होता है।
📜 श्लोक (देवी भागवत महापुराण 7.39.12):
🔹 "त्वं देवी
जगतां मातः सर्वमङ्गलकारिणी।
सिद्धिं मे देहि भद्रायै नमस्ते शङ्करप्रिये॥"
📖 अर्थ:
पूजा के अंत में यह मंत्र उच्चारित करने से दुर्गा माता की कृपा प्राप्त
होती है।
🔹 6. सप्तमी द्वार पूजा के विशेष नियम
📖 ⏳ पूजा का
शुभ समय:
✅1-1- सूर्योदय से एक घंटा पूर्व, अष्टमी
प्रारंभ होने से 8 घंटे पहले,
2-गोधूलि
बेला में या सूर्यास्त से 24 मिनट
पूर्व।
✅ यदि उपयुक्त समय न मिले तो राहुकाल में भी द्वार पूजा करना शुभ माना गया
है।
📖 🌿 आवश्यक
सामग्री:
🔹 9 प्रकार के
पत्ते – बेलपत्र, आम, अनार, अशोक, केले का पत्ता, पारिजात, तुलसी, दूर्वा, हल्दी
पत्ता।
🔹 द्वार पर लाल वस्त्र से लपेटे हुए 2 घट (कलश)
रखें।
🔹 घट में आंवला, वट, पीपल, तुलसी, दूर्वा, आम के पत्ते डालें।
🔹 नारंगी या
मौली युक्त दीपक जलाएं।
🔹 दीपक की बत्ती पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
🔹 घी (सर्व
कामना पूरक), महुआ तेल (सौभाग्य वर्धक), तिल का
तेल (बाधा निवारक) – इनमें से कोई भी तेल उपयोग करें।
✔️ दुर्गा सप्तमी की द्वार पूजा का विस्तृत उल्लेख चण्डी तंत्र, देवी
भागवत, मार्कण्डेय पुराण, तन्त्रसार, दुर्गा
सप्तशती, एवं कृत्यसार संग्रह में मिलता है।
✔️ द्वार पर
तोरण, दीपक, कलश, और नौ पत्तों की पूजा करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है और समस्त अमंगल
नष्ट होते हैं।
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