अक्षय तृतीया – घटना,पूजन-व्रत विधि - कथा
क्षय तृतीया का यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह अत्यंत पुण्यदायक दिन माना गया है। इस दिन किए गए जप, तप, दान, स्नान आदि का अक्षय फल मिलता है।
अक्षय तृतीया न केवल पूजा, दान व्रत का पर्व है, बल्कि
यह जीवन के समस्त क्षेत्रों में अक्षय
सौभाग्य, धन, आरोग्य और मोक्ष का अवसर प्रदान करने वाली तिथि है।
जो श्रद्धा से इस दिन व्रत करता है, उसका जीवन समृद्धि से परिपूर्ण हो जाता है और
उसे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
घटनाओं का वर्णन ॥ अक्षय तृतीया
१. भगवान विष्णु का नर-नारायण रूप में अवतार — क्यों और कैसे?
📖 संदर्भ ग्रंथ:स्कन्दपुराण (केदारखण्ड);भविष्यपुराण
✨ कारण:
त्रेतायुग में जब पृथ्वी पर धर्म का क्षय और अधर्म का
प्रसार हुआ, तब देवताओं ने भगवान
विष्णु से निवेदन किया कि वे धरती पर तप के माध्यम से धर्म की पुनर्स्थापना करें।
भगवान विष्णु ने नर और नारायण नामक दो ऋषि रूप धारण किए।
इन दोनों ने हिमालय के बदरिकाश्रम (वर्तमान बद्रीनाथ)
क्षेत्र में घोर तप किया।
उनके तप से पृथ्वी पर धर्म, शांति और साधना का विस्तार हुआ।
- नर = मनुष्य स्वरूप
- नारायण
= ईश्वर स्वरूप
इन दोनों ने साथ मिलकर धर्म की स्थापना और तप का आदर्श प्रस्तुत किया।
"नरनारायणाख्यौ तु तपःस्थौ
धर्मवर्धनौ।
जगतां कल्यणार्थं भूत्वा बदरिकाश्रमे॥" श्लोक (स्कन्दपुराण, केदारखण्ड):
अर्थ: नर और नारायण नामधारी तपस्वी धर्म की वृद्धि और संसार के कल्याण के लिए बदरिकाश्रम में प्रकट हुए।
२. भगवान विष्णु का छठा अवतार परशुराम के रूप में प्राकट्य —
• ✦ विष्णु का नर-नारायण रूप में बद्रीनाथ में अवतार ✦
• भगवान विष्णु ने सत्य, तप और ज्ञान की स्थापना के लिए नर और नारायण ऋषि रूप में अवतार लिया। उन्होंने बद्रीनाथ क्षेत्र में कठोर तपस्या की। यह तप केवल मोक्ष के लिए नहीं, बल्कि लोक-कल्याण हेतु था। नर-नारायण की यह तपश्चर्या "विष्णु पुराण" एवं "स्कंद पुराण" में वर्णित है।
• श्लोक (विष्णु पुराण):
• "नरनारायणौ दृष्ट्वा तपसा तप्यतां वरौ।
स्वर्गं त्रैलोक्यमकम्पं च ताभ्यां नीतं सदाचरैः॥"
• तात्पर्य: नर-नारायण की तपस्या से तीनों लोकों में धर्म स्थिर हुआ।
• ________________________________________
क्यों और कैसे?
📖 संदर्भ ग्रंथ:विष्णुपुराण;भागवत पुराण
✨ कारण:
त्रेतायुग के प्रारंभ में पृथ्वी पर क्षत्रियों का अत्याचार
बढ़ गया था। वे अपनी शक्ति से निर्दोष ब्राह्मणों और ऋषियों का शोषण कर रहे थे।
भगवान विष्णु ने भृगु ऋषि के पुत्र जमदग्नि और माता रेणुका के घर परशुराम के रूप में अवतार लिया।
परशुरामजी ने क्षत्रियों का अत्याचार समाप्त कर धर्म की
पुनर्स्थापना की।
उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियहीन किया और पुनः
संतुलन स्थापित किया।
- परशुराम क्षत्रिय वृत्ति के ब्राह्मण माने जाते हैं।
- वे चिरंजीवी (अमर) हैं और अब भी तपस्या कर रहे हैं।
"क्षत्रियानामधर्मेण
संकुलां पृथिवीमिमाम्।
दृष्ट्वा भगवान् रामो भृगुपुत्रोऽभवत् प्रभुः॥" श्लोक (विष्णुपुराण):
अर्थ: क्षत्रियों के अधर्म से व्याप्त पृथ्वी को देखकर भगवान विष्णु भृगुपुत्र परशुराम के रूप में अवतरित हुए।
३. माँ गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण —
· ✦ माँ गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण ✦
· राजा भगीरथ की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर पृथ्वी पर अवतरित किया। गंगा का अवतरण अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ जिससे सगर वंश के पितरों को मोक्ष प्राप्त हुआ।
·
"स्वर्गादागच्छता
दिव्या शैलाद्विश्रान्तवाञ्छुभा।
शिवजटातटाग्रे तु गङ्गा प्राक्रामदम्बरे॥" श्लोक (रामायण,
बालकाण्ड):
क्यों और कैसे?
📖 संदर्भ ग्रंथ:रामायण (बालकाण्ड); महाभारत (वनपर्व); पद्मपुराण
✨ कारण:
प्राचीनकाल में राजा सगर के साठ हजार पुत्र कपिल मुनि के
आश्रम में भस्म हो गए थे।
उन्हें मोक्ष दिलाने हेतु गंगाजी का पृथ्वी पर अवतरण आवश्यक
था, ताकि उनके अस्थि-अवशेषों
का स्पर्श कर वे मुक्त हो सकें।
कई पीढ़ियों बाद, राजा भगीरथ ने घोर तपस्या कर ब्रह्मा और फिर शिवजी को
प्रसन्न किया।
ब्रह्माजी ने गंगा को
अवतरण की अनुमति दी और शिवजी ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर पृथ्वी पर अवतरित
किया।
यह अवतरण वैशाख शुक्ल
तृतीया
"गंगायाः पतनं भूमौ त्रैलोक्यं मोदकारकम्।
सगरस्य सुता नां च मोक्षहेतुम् अभूत् ततः॥" श्लोक (रामायण, बालकाण्ड):
अर्थ: गंगा का पृथ्वी पर पतन त्रैलोक्य को आनंद देने वाला और सगर के पुत्रों के मोक्ष का कारण बना।
४. द्रौपदी को अक्षय पात्र
महाभारत में वर्णित है कि वनवास काल में जब पांडवों को भोजन
की कठिनाई हुई, तब भगवान श्रीकृष्ण ने
द्रौपदी को 'अक्षय पात्र' प्रदान किया था, जिससे भोजन कभी समाप्त नहीं होता था।
यह घटना भी अक्षय तृतीया से जुड़ी हुई है।
· ✦ पांडवों को अक्षय पात्र की प्राप्ति ✦
· वनवास काल में अक्षय तृतीया के दिन सूर्य देव ने युधिष्ठिर को एक अक्षय पात्र दिया जिससे द्रौपदी जो भी पकाती, वह भोजन कभी समाप्त नहीं होता। यह पात्र द्रौपदी के आत्म-सम्मान की रक्षा और धर्म पालन के लिए वरदान था।
· श्लोक (महाभारत, वन पर्व):
·
"अक्षयः पात्रमित्युक्त्वा सूर्यस्तत्रान्तर्धीयत।
तेन द्रौपदी च सदा पाण्डवाश्च
तृप्तिं लभन्ति॥"
- गंगाजल का एक बिंदु भी पापों का नाशक है।
- गंगाजी का पृथ्वी पर उतरना पुण्य, मोक्ष और तर्पण हेतु विशेष माना जाता है।
· ✦ कुबेर को धनाध्यक्ष पद प्राप्त हुआ ✦
· इस दिन कुबेर को धन का अधिपति और लक्ष्मी जी के कोषाध्यक्ष का पद मिला। कुबेर की आराधना से धन, वैभव, ऐश्वर्य एवं व्यापार में वृद्धि होती है।
·
"कुबेरो धनदः श्रीमान् यत्र वासं करोति सः।
तत्रैव लक्ष्मीर्नित्यं स्यात्
काले न प्रयाति सा॥ श्लोक
(लक्ष्मी तंत्र):
"तृतीया व्रत विधि एवं संदर्भ शास्त्रों से प्रमाण""तृतीया व्रत-पाठ संहिता"
तृतीया तिथि विधि:
१.
प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त
में उठकर स्नान करें।
२. नवीन या स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
३. पूजन स्थल को शुद्ध कर, पूर्व या उत्तर दिशा में आसन ग्रहण करें।
४. कलश स्थापना करें — कलश में गंगाजल, चावल, पंचरत्न, सुपारी रखें।
२. 🔶 १. कलश स्थापना मंत्र:
३. ॐ पृथिव्यै नमः।
४. ॐ अद्भ्यः नमः।
५. ॐ ब्रह्मणे नमः।
६. ॐ विष्णवे नमः।
७. ॐ शिवाय नमः।
८. ॐ सर्वेभ्यो देवताभ्यो नमः।
अर्थ: इस कलश में पृथ्वी, जल, ब्रह्मा, विष्णु, शिव और समस्त
देवताओं का वास हो।
५. कलश पर
नारियल स्थापित करें, स्वस्तिक का चिन्ह बनायें।
६. दीपक प्रज्वलित करें — घी का दीपक
हो तो श्रेष्ठ।
🔶 २.
दीपक प्रज्वलन मंत्र:
७.
भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी तथा धनाध्यक्ष कुबेर का आह्वान करें।
८.
संकल्प लें — "अहं समस्तकामना सिद्ध्यर्थं तृतीयाव्रतमहं करिष्ये।"
९. आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, दक्षिणा अर्पित करें।
🔶 दीपक प्रज्वलन मंत्र:
ॐ दीपज्योतिः परं ब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥
🔶 श्रीविष्णु आवाहन:
ॐ श्री विष्णवे नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ।
🔶 महालक्ष्मी आवाहन:
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये महालक्ष्म्यै नमः, आगच्छ, तिष्ठ, पूजां गृहाण।
🔶 कुबेर आवाहन:
ॐ कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये नमः।
आगच्छ तिष्ठ पूजां गृहाण॥
🔶 श्रीसूक्त (प्रारंभिक ऋचाएं):
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥
🔶 षोडशोपचार पूजा मंत्र (संक्षेप रूप में):
आवाहन:
ॐ नमो भगवते महाविष्णवे श्रीं आवाहयामि।
आसन:
ॐ आसनं समर्पयामि।
पाद्य:
ॐ श्रीपादौ पाद्यं समर्पयामि।
अर्घ्य:
ॐ सुगन्धिद्रव्ययुक्तं अर्घ्यं समर्पयामि।
आचमन:
ॐ अमृतोपस्तरणं आचमनीयं समर्पयामि।
स्नान:
ॐ दिव्यगन्धोदकस्नानं समर्पयामि।
वस्त्र:
ॐ दिव्यवस्त्रं समर्पयामि।
गंध:
ॐ गंधं समर्पयामि।
पुष्प:
ॐ पुष्पं समर्पयामि।
धूप:
ॐ धूपं आग्रापयामि।
दीप:
ॐ दीपं दर्शयामि।
नैवेद्य:
ॐ नैवेद्यं निवेदयामि।
ताम्बूल:
ॐ ताम्बूलं समर्पयामि।
दक्षिणा:
ॐ ब्राह्मणे दक्षिणां समर्पयामि।
🔶 व्रत कथा प्रमाण श्लोक (स्कन्दपुराण):
यत्र तृतीया स्यात् शुक्ला सा च अक्षयतृतीया।
तस्यां दानं जपं होमं स्नानं सर्वं अक्षयं भवेत्॥
१०. तृतीयादेवी एवं कुलदेवता की भी स्तुति करें।
११. विष्णुसहस्रनाम या
श्रीसूक्त का पाठ करें।
१२. पूजा के उपरांत व्रत
कथा श्रवण करें अथवा कराएँ।
१३. अन्नदान, वस्त्रदान, स्वर्णदान करें।
१४. अंत में व्रत का
समापन कर ब्राह्मण को भोजन कराएँ।
१. पूज्य देवता:
- भगवान विष्णु (विशेषतः त्रिविक्रम रूप)
- माता लक्ष्मी
- भगवान कुबेर (धनाध्यक्ष)
- साथ में कुलदेवता का पूजन भी अनिवार्य।
प्रमाण:
"तृतीयायां विशेषेण
विष्णुलक्ष्मीकुबेरयोः।
पूजनं कर्मणां सिद्धिं सम्प्रदाय कुरुते ध्रुवम्॥"(धर्मसिंधु)
तृतीया तिथि में विष्णु, लक्ष्मी और कुबेर का पूजन सभी कार्यों की सिद्धि हेतु
अनिवार्य बताया गया है।
: ✨ पूजा की दिशा:
- मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
- कलश स्थापना ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में करें।
- देवताओं की प्रतिमा या चित्र उत्तर या
पूर्वाभिमुख स्थापित करें।
"पूर्वस्यां वा दिशि नित्यं पूजां कुर्यान्न संशयः।
दक्षिणाभिमुखः सर्वं निष्फलं लभते नरः॥"
(धर्मसिंधु)
पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजन करना शास्त्रसम्मत और फलदायक होता है।
- पूजा करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखें।
- कलश की स्थापना ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में करें।
३. दीपक का प्रकार (दीपक और वर्तिका के नियम):
- शुद्ध घी का दीपक श्रेष्ठ।
- यदि उपलब्ध न हो तो तिल का तेल भी स्वीकार्य।
- वर्तिका (बाती) सफेद रुई की हो।
- वर्तिका पर केसर अथवा चंदन का लेप किया जाए तो
अत्यंत उत्तम।
"स्निग्धदीपो गृतप्रोक्तः शुभदः सर्वकर्मणि।
तिलदीपस्तथा तिथ्यां पापशमनकारकः॥"
(स्कन्दपुराण)
४. ✨ वस्त्र, पुष्प, फल और अन्न:
१. वस्त्र:
- श्वेत (सफेद), पीत (पीला) अथवा गौरवर्णीय (हल्का गुलाबी, क्रीम रंग)।
- रेशमी अथवा सूती नवीन वस्त्र धारण करना श्रेष्ठ।
प्रमाण:
"शुक्लपीतधरो भूत्वा तृतीयायां व्रतं चरेत्।"
(नारदीय पुराण)
२. पुष्प:
- श्वेत कमल, बेला, चमेली, गुलाब (हल्का रंग)।
- विष्णु पूजन में तुलसी पत्र अनिवार्य।
- लक्ष्मी पूजन में कमल पुष्प को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।
प्रमाण:
"श्वेतं पुष्पं विशेषेण तृतीयायां प्रदीयते।
तुलसीपुष्पसम्पर्के विशेषः फलदो भवेत्॥"
(स्कन्दपुराण)
३. फल:
- केला,
अनार,
अंगूर,
सेब,
आम आदि मधुर फल चढ़ाना उत्तम।
"मधुरं फलमादाय पूजयेत्त्रिदिनं द्विजः।
तृतीयायां प्रदत्तं तु फलस्य फलमाप्नुयात्॥"(विष्णुधर्मोत्तर)
४. अन्न:
- नवीन अन्न से बने व्यंजन, खीर, पूरणपोली, घृतमिश्रित मिठाई चढ़ाना उत्तम।
- पंचामृत का नैवेद्य अवश्य अर्पित करें।
"नवान्नेन समायुक्तं मधुरं नैवेद्यं शुभम्।
तृतीयायां प्रदातव्यं विष्णुलक्ष्म्यादिपूजने॥"(नारदीय पुराण)
प्रमाण:
"श्वेतं पुष्पं शुभं ज्ञेयं फलं
मधुरमिष्टकम्।
तृतीयायां प्रयच्छेच्च विष्णवे लक्ष्म्यै तथा॥"(धर्मसिंधु)
\
६. तृतीया से संबंधित मुख्य मंत्र:
(१) विष्णु पूजन मंत्र:
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।"
(२) लक्ष्मी पूजन मंत्र:
"ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।"
(३) कुबेर पूजन मंत्र:
"ॐ कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये नमः।"
(४) तृतीया तिथि स्तुति:
"ॐ तृतीयायै नमः।
यस्यां दिनं कृतं कर्म फलत्यक्षयमेव तत्।"
७. संक्षिप्त फलश्रुति (शास्त्रीय प्रशंसा):
"तृतीयायां कृतं कर्म नश्यत्येव कदाचन।
सर्वकामसमृद्ध्यर्थं पूजनं तिथ्युत्तमे॥"
(नारदीय पुराण)
तृतीया तिथि में किया गया कार्य कभी नष्ट नहीं होता और
समस्त कामनाओं की पूर्ति हेतु यह श्रेष्ठ तिथि है।
🌸 नोट:
- विशेष कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यवसाय, वाहन क्रय आदि तृतीया में आरंभ करना अद्वितीय फल प्रदान करता है।
- इस दिन किए गए पुण्य कार्य (दान, जप, तप, व्रत) अनंत गुना बढ़कर फलित होते हैं।
पूज्य देवता
श्री लक्ष्मी-नारायण (विष्णु) प्रमुख पूज्य देवता हैं।
वैकल्पिक रूप से त्रेतायुग में अक्षय फलदायिनी तिथि होने के कारण भगवान परशुराम, माता अन्नपूर्णा, तथा कुलदेवताएं भी पूजनीय मानी जाती हैं।
2. पूजा दिशा
पूजा हेतु उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठें।
3. दीपक का प्रकार
पूजा में शुद्ध देसी घी का दीपक प्रयोग करें। यदि उपलब्ध न हो तो तिल का तेल भी मान्य है।
दीपक की बाती कपास की हो, तथा वर्तिका का रंग पीला या सफेद हो।
4. संयमित पूजन विधि
- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ श्वेत या हल्के पीले वस्त्र धारण करें।
- कलश स्थापित कर उसमें गंगाजल, सुपारी, पंचरत्न रखें।
- श्रीफल (नारियल) कलश पर स्थापित करें।
- भगवान विष्णु और लक्ष्मी का चित्र/विग्रह स्थापित कर पूजा करें।
- धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प अर्पण करें।
- निम्न मंत्र द्वारा पूजन आरंभ करें:
5. पूजन मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥
6. पुष्प व वस्त्र
श्वेत, पीले, केसरिया पुष्प एवं हल्के रंग के वस्त्र विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं।
कमल, चंपा, चमेली के पुष्प विशेष प्रिय हैं।
7. फल व अन्न
नैवेद्य में केसरयुक्त खीर, पूरणपोली, दूध, घी, मिश्री, एवं मौसमी फल चढ़ाना शुभ।
नए अन्न (धान्य) का प्रयोग विशेष पुण्यदायक होता है।
8. शुभ कर्म
- नया कार्य, वस्त्र, आभूषण का प्रयोग।
- अध्ययन, लेखन, भूमि पूजन, विवाह हेतु व्रत।
- निर्धनों को अन्न, वस्त्र, स्वर्ण, गौ, भूमि दान करना।
9. दान मंत्र
ॐ लक्ष्म्यै स्वर्णदानं समर्पयामि।
ॐ अन्नपूर्णायै अन्नदानं समर्पयामि।
10. विशेष श्लोक
तृतीयायां शुभं कर्म कुर्याद्दत्तं धनं च यत्।
तस्य पुण्यफलं नित्यं न क्षयं यान्ति यत्नतः॥
(स्कन्दपुराण)
✨ 1. अक्षय तृतीया की विशेष व्रत कथा -
राजा नृग का दान और व्रत
बहुत समय पहले की बात है, एक धर्मनिष्ठ और न्यायप्रिय राजा हुए, जिनका नाम नृग था। राजा नृग अपनी न्यायप्रियता और दान के लिए प्रसिद्ध थे। उनका मानना था कि व्यक्ति की सच्ची महानता उसके कर्मों में निहित होती है, और पुण्य के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं। राजा नृग को भगवान श्रीविष्णु की भक्ति से विशेष प्रेम था।
एक वर्ष वैशाख माह की शुक्ल तृतीया तिथि को राजा नृग ने अपने महल में विशेष पूजा और व्रत का आयोजन किया। यह तिथि बहुत ही पवित्र मानी जाती है, और राजा ने इस दिन को अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन बनाने का संकल्प लिया।
राजा नृग ने प्रातः काल में गंगा जल से स्नान किया और पूरे दिन व्रत रखने का संकल्प लिया। उन्होंने पहले भगवान विष्णु की पूजा की, फिर इस दिन का महत्व समझते हुए विभिन्न प्रकार के दान किए। उन्होंने बहुत सारे जल से भरे हुए कलश, अन्न, वस्त्र, स्वर्ण, गायें, तिल, गुड़ और अन्य दान सामग्री ब्राह्मणों को अर्पित की। राजा नृग का दान न केवल अत्यधिक था, बल्कि उनका भाव भी एकदम शुद्ध और निःस्वार्थ था।
व्रत समाप्ति के बाद राजा ने एक शास्त्रार्थ किया और फिर विष्णु सहस्रनाम का जाप शुरू किया। उनका यह जाप इतना प्रभावी था कि भगवान विष्णु उनकी भक्ति से अत्यधिक प्रसन्न हुए। परिणामस्वरूप, राजा नृग को स्वर्गलोक में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त हुआ और उनका नाम सदैव याद किया जाने लगा। अंत में, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
राजा नृग की यह कथा हमें यह सिखाती है कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए पुण्यकर्म और भगवान की भक्ति न केवल संसारिक सुख देती है, बल्कि वह व्यक्ति को आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति भी कराती है।
कुबेर का व्रत और भगवान विष्णु की कृपा
अब हम एक और अद्भुत कथा की ओर बढ़ते हैं। यह कथा एक और महान पात्र, कुबेर की है, जो स्वर्ग के कोषाध्यक्ष थे। कुबेर ने भी अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की पूजा की थी।
कुबेर पहले से ही धन और ऐश्वर्य के स्वामी थे, लेकिन उनका मन हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति में रमा रहता था। वह जानते थे कि सच्चा धन केवल भगवान की कृपा से ही मिलता है। इस दिन उन्होंने संपूर्ण तन्मयता से भगवान विष्णु का व्रत किया और पूजा अर्चना की। उन्होंने दान-पुण्य के कार्य किए, परंतु उनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ भगवान की भक्ति था।
भगवान विष्णु उनकी भक्ति से अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने कुबेर को आशीर्वाद दिया। भगवान ने उन्हें त्रिलोकी का कोषाध्यक्ष नियुक्त किया और उनके सम्पूर्ण कार्यों में सफलता और समृद्धि दी।
कुबेर की यह कथा हमें यह सिखाती है कि जब किसी व्यक्ति की भक्ति और कार्य शुद्ध होते हैं, तो भगवान उसे अपार समृद्धि और ऐश्वर्य से नवाजते हैं। अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की भक्ति करने से न केवल व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है, बल्कि वह त्रिलोकी में सम्मानित होता है।
कथा का संदेश
राजा नृग और कुबेर की ये कथाएँ हमें यह संदेश देती हैं कि अक्षय तृतीया का दिन केवल दान और पूजा के लिए नहीं है, बल्कि यह दिन हमारी आत्मा की शुद्धता और भगवान के प्रति समर्पण का दिन है। जब हम अक्षय तृतीया के दिन अपनी निःस्वार्थ भक्ति और अच्छे कर्मों के साथ भगवान की पूजा करते हैं, तो भगवान हमें न केवल भौतिक समृद्धि देते हैं, बल्कि हमें मोक्ष और आत्मज्ञान की भी प्राप्ति कराते हैं।
अक्षय तृतीया के दिन किए गए कर्म कभी भी नष्ट नहीं होते। इसलिए इस दिन का व्रत और पूजा न केवल हमें पुण्य प्रदान करते हैं, बल्कि यह हमें जीवन की सच्चाई और परमात्मा के साथ एकता का अनुभव भी कराते हैं।
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