सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अक्षय तृतीया – घटना,पूजन-व्रत विधिव्रत कथा-30.4.2025

 

 

अक्षय तृतीया घटना,पूजन-व्रत विधि - कथा

क्षय तृतीया का यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। यह अत्यंत पुण्यदायक दिन माना गया है। इस दिन किए गए जप, तप, दान, स्नान आदि का अक्षय फल मिलता है।

अक्षय तृतीया न केवल पूजा, दान व्रत का पर्व है, बल्कि यह जीवन के समस्त क्षेत्रों में अक्षय सौभाग्य, धन, आरोग्य और मोक्ष का अवसर प्रदान करने वाली तिथि है।
जो श्रद्धा से इस दिन व्रत करता है, उसका जीवन समृद्धि से परिपूर्ण हो जाता है और उसे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।

घटनाओं का वर्णन अक्षय तृतीया


१. भगवान विष्णु का नर-नारायण रूप में अवतार क्यों और कैसे?

📖 संदर्भ ग्रंथ:स्कन्दपुराण (केदारखण्ड);भविष्यपुराण

कारण:

त्रेतायुग में जब पृथ्वी पर धर्म का क्षय और अधर्म का प्रसार हुआ, तब देवताओं ने भगवान विष्णु से निवेदन किया कि वे धरती पर तप के माध्यम से धर्म की पुनर्स्थापना करें।
भगवान विष्णु ने नर और नारायण नामक दो ऋषि रूप धारण किए।
इन दोनों ने हिमालय के बदरिकाश्रम (वर्तमान बद्रीनाथ) क्षेत्र में घोर तप किया।
उनके तप से पृथ्वी पर धर्म, शांति और साधना का विस्तार हुआ।

  • नर = मनुष्य स्वरूप
  • नारायण = ईश्वर स्वरूप
    इन दोनों ने साथ मिलकर धर्म की स्थापना और तप का आदर्श प्रस्तुत किया।

"नरनारायणाख्यौ तु तपःस्थौ धर्मवर्धनौ।
जगतां कल्यणार्थं भूत्वा बदरिकाश्रमे॥" श्लोक (स्कन्दपुराण, केदारखण्ड):

अर्थ: नर और नारायण नामधारी तपस्वी धर्म की वृद्धि और संसार के कल्याण के लिए बदरिकाश्रम में प्रकट हुए।


. भगवान विष्णु का छठा अवतार परशुराम के रूप में प्राकट्य

        विष्णु का नर-नारायण रूप में बद्रीनाथ में अवतार

        भगवान विष्णु ने सत्य, तप और ज्ञान की स्थापना के लिए नर और नारायण ऋषि रूप में अवतार लिया। उन्होंने बद्रीनाथ क्षेत्र में कठोर तपस्या की। यह तप केवल मोक्ष के लिए नहीं, बल्कि लोक-कल्याण हेतु था। नर-नारायण की यह तपश्चर्या "विष्णु पुराण" एवं "स्कंद पुराण" में वर्णित है।

        श्लोक (विष्णु पुराण):

        "नरनारायणौ दृष्ट्वा तपसा तप्यतां वरौ।

स्वर्गं त्रैलोक्यमकम्पं च ताभ्यां नीतं सदाचरैः॥"

        तात्पर्य: नर-नारायण की तपस्या से तीनों लोकों में धर्म स्थिर हुआ।

        ________________________________________

क्यों और कैसे?

📖 संदर्भ ग्रंथ:विष्णुपुराण;भागवत पुराण

कारण:

त्रेतायुग के प्रारंभ में पृथ्वी पर क्षत्रियों का अत्याचार बढ़ गया था। वे अपनी शक्ति से निर्दोष ब्राह्मणों और ऋषियों का शोषण कर रहे थे।
भगवान विष्णु ने भृगु ऋषि के पुत्र जमदग्नि और माता रेणुका के घर परशुराम के रूप में अवतार लिया।

परशुरामजी ने क्षत्रियों का अत्याचार समाप्त कर धर्म की पुनर्स्थापना की।
उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियहीन किया और पुनः संतुलन स्थापित किया।

  • परशुराम क्षत्रिय वृत्ति के ब्राह्मण माने जाते हैं।
  • वे चिरंजीवी (अमर) हैं और अब भी तपस्या कर रहे हैं।

"क्षत्रियानामधर्मेण संकुलां पृथिवीमिमाम्।
दृष्ट्वा भगवान् रामो भृगुपुत्रोऽभवत् प्रभुः॥" श्लोक (विष्णुपुराण):

 

अर्थ: क्षत्रियों के अधर्म से व्याप्त पृथ्वी को देखकर भगवान विष्णु भृगुपुत्र परशुराम के रूप में अवतरित हुए।


३. माँ गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण

·         माँ गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण

·         राजा भगीरथ की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर पृथ्वी पर अवतरित किया। गंगा का अवतरण अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ जिससे सगर वंश के पितरों को मोक्ष प्राप्त हुआ।

·         "स्वर्गादागच्छता दिव्या शैलाद्विश्रान्तवाञ्छुभा।
शिवजटातटाग्रे तु गङ्गा प्राक्रामदम्बरे॥" श्लोक (रामायण, बालकाण्ड):

क्यों और कैसे?

📖 संदर्भ ग्रंथ:रामायण (बालकाण्ड); महाभारत (वनपर्व); पद्मपुराण

कारण:

प्राचीनकाल में राजा सगर के साठ हजार पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में भस्म हो गए थे।
उन्हें मोक्ष दिलाने हेतु गंगाजी का पृथ्वी पर अवतरण आवश्यक था, ताकि उनके अस्थि-अवशेषों का स्पर्श कर वे मुक्त हो सकें।

कई पीढ़ियों बाद, राजा भगीरथ ने घोर तपस्या कर ब्रह्मा और फिर शिवजी को प्रसन्न किया।
ब्रह्माजी ने गंगा को अवतरण की अनुमति दी और शिवजी ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर पृथ्वी पर अवतरित किया।
यह अवतरण वैशाख शुक्ल तृतीया

 "गंगायाः पतनं भूमौ त्रैलोक्यं मोदकारकम्।

सगरस्य सुता नां च मोक्षहेतुम् अभूत् ततः॥" श्लोक (रामायण, बालकाण्ड):

अर्थ: गंगा का पृथ्वी पर पतन त्रैलोक्य को आनंद देने वाला और सगर के पुत्रों के मोक्ष का कारण बना।

. द्रौपदी को अक्षय पात्र

महाभारत में वर्णित है कि वनवास काल में जब पांडवों को भोजन की कठिनाई हुई, तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को 'अक्षय पात्र' प्रदान किया था, जिससे भोजन कभी समाप्त नहीं होता था।
यह घटना भी अक्षय तृतीया से जुड़ी हुई है।

·         पांडवों को अक्षय पात्र की प्राप्ति

·         वनवास काल में अक्षय तृतीया के दिन सूर्य देव ने युधिष्ठिर को एक अक्षय पात्र दिया जिससे द्रौपदी जो भी पकाती, वह भोजन कभी समाप्त नहीं होता। यह पात्र द्रौपदी के आत्म-सम्मान की रक्षा और धर्म पालन के लिए वरदान था।

·         श्लोक (महाभारत, वन पर्व):

·         "अक्षयः पात्रमित्युक्त्वा सूर्यस्तत्रान्तर्धीयत।
तेन द्रौपदी च सदा पाण्डवाश्च तृप्तिं लभन्ति॥"

  • गंगाजल का एक बिंदु भी पापों का नाशक है।
  • गंगाजी का पृथ्वी पर उतरना पुण्य, मोक्ष और तर्पण हेतु विशेष माना जाता है।

·         कुबेर को धनाध्यक्ष पद प्राप्त हुआ

·         इस दिन कुबेर को धन का अधिपति और लक्ष्मी जी के कोषाध्यक्ष का पद मिला। कुबेर की आराधना से धन, वैभव, ऐश्वर्य एवं व्यापार में वृद्धि होती है।

·         "कुबेरो धनदः श्रीमान् यत्र वासं करोति सः।
तत्रैव लक्ष्मीर्नित्यं स्यात् काले न प्रयाति सा॥ श्लोक (लक्ष्मी तंत्र):


"तृतीया व्रत विधि एवं संदर्भ शास्त्रों से प्रमाण""तृतीया व्रत-पाठ संहिता"

तृतीया तिथि विधि:

१.      प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें।
२. नवीन या स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
३. पूजन स्थल को शुद्ध कर, पूर्व या उत्तर दिशा में आसन ग्रहण करें।
४. कलश स्थापना करें कलश में गंगाजल, चावल, पंचरत्न, सुपारी रखें।

२.      🔶 १. कलश स्थापना मंत्र:

३.      ॐ पृथिव्यै नमः।

४.      ॐ अद्भ्यः नमः।

५.      ॐ ब्रह्मणे नमः।

६.      ॐ विष्णवे नमः।

७.      ॐ शिवाय नमः।

८.      ॐ सर्वेभ्यो देवताभ्यो नमः।

    अर्थ: इस कलश में पृथ्वी, जल, ब्रह्मा, विष्णु, शिव और समस्त देवताओं का वास हो।
५. कलश पर नारियल स्थापित करें, स्वस्तिक का चिन्ह बनायें।
६. दीपक प्रज्वलित करें घी का दीपक हो तो श्रेष्ठ।

 🔶 २. दीपक प्रज्वलन मंत्र:
७. भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी तथा धनाध्यक्ष कुबेर का आह्वान करें।
८. संकल्प लें — "अहं समस्तकामना सिद्ध्यर्थं तृतीयाव्रतमहं करिष्ये।"
. आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, दक्षिणा अर्पित करें।

🔶 दीपक प्रज्वलन मंत्र:

ॐ दीपज्योतिः परं ब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥


🔶 श्रीविष्णु आवाहन:

ॐ श्री विष्णवे नमः, इहागच्छ, इह तिष्ठ।


🔶 महालक्ष्मी आवाहन:

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये महालक्ष्म्यै नमः, आगच्छ, तिष्ठ, पूजां गृहाण।


🔶 कुबेर आवाहन:

ॐ कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये नमः।
आगच्छ तिष्ठ पूजां गृहाण॥


🔶 श्रीसूक्त (प्रारंभिक ऋचाएं):

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्॥


🔶 षोडशोपचार पूजा मंत्र (संक्षेप रूप में):

आवाहन:
ॐ नमो भगवते महाविष्णवे श्रीं आवाहयामि।

आसन:
ॐ आसनं समर्पयामि।

पाद्य:
ॐ श्रीपादौ पाद्यं समर्पयामि।

अर्घ्य:
ॐ सुगन्धिद्रव्ययुक्तं अर्घ्यं समर्पयामि।

आचमन:
ॐ अमृतोपस्तरणं आचमनीयं समर्पयामि।

स्नान:
ॐ दिव्यगन्धोदकस्नानं समर्पयामि।

वस्त्र:
ॐ दिव्यवस्त्रं समर्पयामि।

गंध:
ॐ गंधं समर्पयामि।

पुष्प:
ॐ पुष्पं समर्पयामि।

धूप:
ॐ धूपं आग्रापयामि।

दीप:
ॐ दीपं दर्शयामि।

नैवेद्य:
ॐ नैवेद्यं निवेदयामि।

ताम्बूल:
ॐ ताम्बूलं समर्पयामि।

दक्षिणा:
ॐ ब्राह्मणे दक्षिणां समर्पयामि।


🔶 व्रत कथा प्रमाण श्लोक (स्कन्दपुराण):

यत्र तृतीया स्यात् शुक्ला सा च अक्षयतृतीया।
तस्यां दानं जपं होमं स्नानं सर्वं अक्षयं भवेत्॥


१०. तृतीयादेवी एवं कुलदेवता की भी स्तुति करें।
११. विष्णुसहस्रनाम या श्रीसूक्त का पाठ करें।
१२. पूजा के उपरांत व्रत कथा श्रवण करें अथवा कराएँ।
१३. अन्नदान, वस्त्रदान, स्वर्णदान करें।
१४. अंत में व्रत का समापन कर ब्राह्मण को भोजन कराएँ।


१. पूज्य देवता:

  • भगवान विष्णु (विशेषतः त्रिविक्रम रूप)
  • माता लक्ष्मी
  • भगवान कुबेर (धनाध्यक्ष)
  • साथ में कुलदेवता का पूजन भी अनिवार्य।

प्रमाण:
"
तृतीयायां विशेषेण विष्णुलक्ष्मीकुबेरयोः।
पूजनं कर्मणां सिद्धिं सम्प्रदाय कुरुते ध्रुवम्॥"(धर्मसिंधु)


तृतीया तिथि में विष्णु, लक्ष्मी और कुबेर का पूजन सभी कार्यों की सिद्धि हेतु अनिवार्य बताया गया है।


: पूजा की दिशा:

  • मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
  • कलश स्थापना ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में करें।
  • देवताओं की प्रतिमा या चित्र उत्तर या पूर्वाभिमुख स्थापित करें।
    "
    पूर्वस्यां वा दिशि नित्यं पूजां कुर्यान्न संशयः।
    दक्षिणाभिमुखः सर्वं निष्फलं लभते नरः॥"
    (
    धर्मसिंधु)
    पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजन करना शास्त्रसम्मत और फलदायक होता है।
  • पूजा करते समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखें।
  • कलश की स्थापना ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में करें।

३. दीपक का प्रकार (दीपक और वर्तिका के नियम):

  • शुद्ध घी का दीपक श्रेष्ठ।
  • यदि उपलब्ध न हो तो तिल का तेल भी स्वीकार्य।
  • वर्तिका (बाती) सफेद रुई की हो।
  • वर्तिका पर केसर अथवा चंदन का लेप किया जाए तो अत्यंत उत्तम।
    "
    स्निग्धदीपो गृतप्रोक्तः शुभदः सर्वकर्मणि।
    तिलदीपस्तथा तिथ्यां पापशमनकारकः॥"
    (
    स्कन्दपुराण)

४. वस्त्र, पुष्प, फल और अन्न:

१. वस्त्र:

  • श्वेत (सफेद), पीत (पीला) अथवा गौरवर्णीय (हल्का गुलाबी, क्रीम रंग)।
  • रेशमी अथवा सूती नवीन वस्त्र धारण करना श्रेष्ठ।

प्रमाण:
"
शुक्लपीतधरो भूत्वा तृतीयायां व्रतं चरेत्।"
(
नारदीय पुराण)

२. पुष्प:

  • श्वेत कमल, बेला, चमेली, गुलाब (हल्का रंग)।
  • विष्णु पूजन में तुलसी पत्र अनिवार्य।
  • लक्ष्मी पूजन में कमल पुष्प को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।

प्रमाण:
"
श्वेतं पुष्पं विशेषेण तृतीयायां प्रदीयते।
तुलसीपुष्पसम्पर्के विशेषः फलदो भवेत्॥"
(
स्कन्दपुराण)

३. फल:

  • केला, अनार, अंगूर, सेब, आम आदि मधुर फल चढ़ाना उत्तम।
    "
    मधुरं फलमादाय पूजयेत्त्रिदिनं द्विजः।
    तृतीयायां प्रदत्तं तु फलस्य फलमाप्नुयात्॥"(विष्णुधर्मोत्तर)

४. अन्न:

  • नवीन अन्न से बने व्यंजन, खीर, पूरणपोली, घृतमिश्रित मिठाई चढ़ाना उत्तम।
  • पंचामृत का नैवेद्य अवश्य अर्पित करें।
    "
    नवान्नेन समायुक्तं मधुरं नैवेद्यं शुभम्।
    तृतीयायां प्रदातव्यं विष्णुलक्ष्म्यादिपूजने॥"(नारदीय पुराण)

प्रमाण:
"
श्वेतं पुष्पं शुभं ज्ञेयं फलं मधुरमिष्टकम्।
तृतीयायां प्रयच्छेच्च विष्णवे लक्ष्म्यै तथा॥"(धर्मसिंधु)

\


६. तृतीया से संबंधित मुख्य मंत्र:

(१) विष्णु पूजन मंत्र:
"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।"

(२) लक्ष्मी पूजन मंत्र:
"
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।"

(३) कुबेर पूजन मंत्र:
"
ॐ कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये नमः।"

(४) तृतीया तिथि स्तुति:
"
ॐ तृतीयायै नमः।
यस्यां दिनं कृतं कर्म फलत्यक्षयमेव तत्।"


७. संक्षिप्त फलश्रुति (शास्त्रीय प्रशंसा):
"
तृतीयायां कृतं कर्म नश्यत्येव कदाचन।
सर्वकामसमृद्ध्यर्थं पूजनं तिथ्युत्तमे॥"
(
नारदीय पुराण)


तृतीया तिथि में किया गया कार्य कभी नष्ट नहीं होता और समस्त कामनाओं की पूर्ति हेतु यह श्रेष्ठ तिथि है।


🌸 नोट:

  • विशेष कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यवसाय, वाहन क्रय आदि तृतीया में आरंभ करना अद्वितीय फल प्रदान करता है।
  • इस दिन किए गए पुण्य कार्य (दान, जप, तप, व्रत) अनंत गुना बढ़कर फलित होते हैं।

 

पूज्य देवता

श्री लक्ष्मी-नारायण (विष्णु) प्रमुख पूज्य देवता हैं। 

    वैकल्पिक रूप से त्रेतायुग में अक्षय फलदायिनी तिथि होने के कारण भगवान परशुराम, माता अन्नपूर्णा, तथा कुलदेवताएं भी पूजनीय मानी जाती हैं।

2. पूजा दिशा

पूजा हेतु उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठें।

3. दीपक का प्रकार

पूजा में शुद्ध देसी घी का दीपक प्रयोग करें। यदि उपलब्ध न हो तो तिल का तेल भी मान्य है। 

    दीपक की बाती कपास की हो, तथा वर्तिका का रंग पीला या सफेद हो।

4. संयमित पूजन विधि

- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ श्वेत या हल्के पीले वस्त्र धारण करें। 

    - कलश स्थापित कर उसमें गंगाजल, सुपारी, पंचरत्न रखें। 

    - श्रीफल (नारियल) कलश पर स्थापित करें। 

    - भगवान विष्णु और लक्ष्मी का चित्र/विग्रह स्थापित कर पूजा करें। 

    - धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प अर्पण करें। 

    - निम्न मंत्र द्वारा पूजन आरंभ करें:

5. पूजन मंत्र

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद 

    ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः॥

    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥

6. पुष्प व वस्त्र

श्वेत, पीले, केसरिया पुष्प एवं हल्के रंग के वस्त्र विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं। 

    कमल, चंपा, चमेली के पुष्प विशेष प्रिय हैं।

7. फल व अन्न

नैवेद्य में केसरयुक्त खीर, पूरणपोली, दूध, घी, मिश्री, एवं मौसमी फल चढ़ाना शुभ। 

    नए अन्न (धान्य) का प्रयोग विशेष पुण्यदायक होता है।

8. शुभ कर्म

- नया कार्य, वस्त्र, आभूषण का प्रयोग। 

    - अध्ययन, लेखन, भूमि पूजन, विवाह हेतु व्रत। 

    - निर्धनों को अन्न, वस्त्र, स्वर्ण, गौ, भूमि दान करना।

9. दान मंत्र

ॐ लक्ष्म्यै स्वर्णदानं समर्पयामि। 

    ॐ अन्नपूर्णायै अन्नदानं समर्पयामि।

10. विशेष श्लोक

तृतीयायां शुभं कर्म कुर्याद्दत्तं धनं च यत्। 

    तस्य पुण्यफलं नित्यं न क्षयं यान्ति यत्नतः॥

   (स्कन्दपुराण)

1. अक्षय तृतीया की विशेष व्रत कथा -

राजा नृग का दान और व्रत

बहुत समय पहले की बात है, एक धर्मनिष्ठ और न्यायप्रिय राजा हुए, जिनका नाम नृग था। राजा नृग अपनी न्यायप्रियता और दान के लिए प्रसिद्ध थे। उनका मानना था कि व्यक्ति की सच्ची महानता उसके कर्मों में निहित होती है, और पुण्य के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं। राजा नृग को भगवान श्रीविष्णु की भक्ति से विशेष प्रेम था।

एक वर्ष वैशाख माह की शुक्ल तृतीया तिथि को राजा नृग ने अपने महल में विशेष पूजा और व्रत का आयोजन किया। यह तिथि बहुत ही पवित्र मानी जाती है, और राजा ने इस दिन को अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन बनाने का संकल्प लिया।

राजा नृग ने प्रातः काल में गंगा जल से स्नान किया और पूरे दिन व्रत रखने का संकल्प लिया। उन्होंने पहले भगवान विष्णु की पूजा की, फिर इस दिन का महत्व समझते हुए विभिन्न प्रकार के दान किए। उन्होंने बहुत सारे जल से भरे हुए कलश, अन्न, वस्त्र, स्वर्ण, गायें, तिल, गुड़ और अन्य दान सामग्री ब्राह्मणों को अर्पित की। राजा नृग का दान न केवल अत्यधिक था, बल्कि उनका भाव भी एकदम शुद्ध और निःस्वार्थ था।

व्रत समाप्ति के बाद राजा ने एक शास्त्रार्थ किया और फिर विष्णु सहस्रनाम का जाप शुरू किया। उनका यह जाप इतना प्रभावी था कि भगवान विष्णु उनकी भक्ति से अत्यधिक प्रसन्न हुए। परिणामस्वरूप, राजा नृग को स्वर्गलोक में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त हुआ और उनका नाम सदैव याद किया जाने लगा। अंत में, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

राजा नृग की यह कथा हमें यह सिखाती है कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए पुण्यकर्म और भगवान की भक्ति न केवल संसारिक सुख देती है, बल्कि वह व्यक्ति को आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति भी कराती है।

कुबेर का व्रत और भगवान विष्णु की कृपा

अब हम एक और अद्भुत कथा की ओर बढ़ते हैं। यह कथा एक और महान पात्र, कुबेर की है, जो स्वर्ग के कोषाध्यक्ष थे। कुबेर ने भी अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की पूजा की थी।

कुबेर पहले से ही धन और ऐश्वर्य के स्वामी थे, लेकिन उनका मन हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति में रमा रहता था। वह जानते थे कि सच्चा धन केवल भगवान की कृपा से ही मिलता है। इस दिन उन्होंने संपूर्ण तन्मयता से भगवान विष्णु का व्रत किया और पूजा अर्चना की। उन्होंने दान-पुण्य के कार्य किए, परंतु उनका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ भगवान की भक्ति था।

भगवान विष्णु उनकी भक्ति से अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने कुबेर को आशीर्वाद दिया। भगवान ने उन्हें त्रिलोकी का कोषाध्यक्ष नियुक्त किया और उनके सम्पूर्ण कार्यों में सफलता और समृद्धि दी।

कुबेर की यह कथा हमें यह सिखाती है कि जब किसी व्यक्ति की भक्ति और कार्य शुद्ध होते हैं, तो भगवान उसे अपार समृद्धि और ऐश्वर्य से नवाजते हैं। अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की भक्ति करने से न केवल व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है, बल्कि वह त्रिलोकी में सम्मानित होता है।

कथा का संदेश

राजा नृग और कुबेर की ये कथाएँ हमें यह संदेश देती हैं कि अक्षय तृतीया का दिन केवल दान और पूजा के लिए नहीं है, बल्कि यह दिन हमारी आत्मा की शुद्धता और भगवान के प्रति समर्पण का दिन है। जब हम अक्षय तृतीया के दिन अपनी निःस्वार्थ भक्ति और अच्छे कर्मों के साथ भगवान की पूजा करते हैं, तो भगवान हमें न केवल भौतिक समृद्धि देते हैं, बल्कि हमें मोक्ष और आत्मज्ञान की भी प्राप्ति कराते हैं।

अक्षय तृतीया के दिन किए गए कर्म कभी भी नष्ट नहीं होते। इसलिए इस दिन का व्रत और पूजा न केवल हमें पुण्य प्रदान करते हैं, बल्कि यह हमें जीवन की सच्चाई और परमात्मा के साथ एकता का अनुभव भी कराते हैं।

 

 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...