दुर्गा विसर्जन - शुभ मुहूर्त.विधि, महत्व ,संकल्प ,विसर्जन मंत्र:,दिशाएँ, वस्त्र एवं दीपक,मूर्ति विर्सजन विधिःविसर्जन का कारण,लाभ (Benefits of Visarjan)
दुर्गा विसर्जन - विधि, महत्व एवं शास्त्रीय प्रमाण
1. दुर्गा विसर्जन का अर्थ एवं महत्व
2.
दुर्गा विसर्जन नवमी या दशमी तिथि को किया जाता है, जिसमें देवी
को विशेष मंत्रों के साथ विदा किया जाता है। इसे "विसर्जन" कहा जाता है, जिसका
संस्कृत में अर्थ होता है –
📖 "विसर्जनम्" = त्याग, प्रवाह में
छोड़ना, पूजन समापन
3.
📖 "विसर्जनं तु
यत्नेन पूजनान्ते विधीयते।
सर्वकामप्रदं
पुण्यं सर्वसौभाग्यवर्धनम्॥"
(देवी भागवत
महापुराण, सप्तम
स्कंध)
4. 🔹 अर्थ: विसर्जन विधिपूर्वक करने से समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है।
दुर्गा विसर्जन नवरात्रि के अंतिम दिन, नवमी या दशमी तिथि को किया जाता है। इसे "विसर्जन" कहा जाता है, जिसका संस्कृत में अर्थ है:
📖 "विसर्जनम्" = त्याग, प्रवाह में छोड़ना, पूजन समापन
📖 "विसर्जनं तु यत्नेन पूजनान्ते
विधीयते।
सर्वकामप्रदं
पुण्यं सर्वसौभाग्यवर्धनम्॥"
(देवी भागवत महापुराण, सप्तम स्कंध)
🔹 अर्थ: विधिपूर्वक विसर्जन करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
2. देवी दुर्गा के विसर्जन का पौराणिक संदर्भ
(मायके से ससुराल प्रस्थान का भाव) .
दे 📖 "आयाति च गता देवि मायया जगदीश्वरी।
भक्तानां
दर्शनं कृत्वा गच्छेद् कैलासमुत्तमम्॥"
(देवी भागवत
महापुराण)
🔹 अर्थ: देवी दुर्गा अपनी माया से धरती पर अवतरित होती हैं, भक्तों को दर्शन देकर पुनः कैलाश लौट जाती हैं।
वी दुर्गा के विसर्जन का अर्थ (मायके से ससुराल प्रस्थान का भाव)
🔹 पौराणिक मान्यता:
देवी दुर्गा नवरात्रि के
समय अपने मायके (पृथ्वी/भक्तों के पास) आती हैं और
नवमी-दशमी तिथि पर अपने ससुराल (शिवलोक/ कैलाश) लौट जाती हैं।
📖 "नवमी तिथौ देवी पूजिता भक्तवत्सला।
दशम्यां
यान्ति कैलासं नानायन्त्रैः सुपूजिता॥"
(मार्कण्डेय पुराण, दुर्गा सप्तशती)
🔹 अर्थ: नवमी तिथि को पूजित देवी भक्तों पर अनुग्रह कर दशमी तिथि को कैलाश को प्रस्थान करती हैं।
📖 "कैलासं गच्छ देवि त्वं
भक्तानामाशिषेण च।"
(श्रीदुर्गा सप्तशती, उत्तर चरित्र)
🔹 अर्थ: देवी को विसर्जन के समय "हे देवी, आप कैलाश को जाएं और भक्तों को आशीर्वाद दें" यह प्रार्थना की जाती है।
3. दुर्गा विसर्जन की विधि एवं मंत्र
(1) विसर्जन हेतु संकल्प मंत्र
📖 "ॐ सर्वमङ्ग विसर्जन विधि (Vedic Visarjan Process)
✅ (१) संकल्प
मंत्र:
📖 "ॐ दुर्गे कैलासवासिनि त्वं गच्छ
भवसौख्यदा।
भक्तानां
दर्शनं कृत्वा पुनरागमनं कुरु॥"
(देवी भागवत
महापुराण)
🔹 अर्थ: हे दुर्गा! आप कैलाश को प्रस्थान करें एवं पुनः भक्तों को दर्शन दें।
✅ (२)
पुष्पांजलि:
📖 "ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली
कपालिनी।
दुर्गा
क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥"
(मार्कण्डेय
पुराण, दुर्गा
सप्तशती)
🔹 अर्थ: जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा आदि देवी रूपों को नमस्कार है।
✅ (३) विसर्जन
मंत्र:
📖 "त्वं गच्छ देवि कैलासं शिवेन सह
मोदिनी।
भक्तानां
दर्शनं कृत्वा पुनरागमनं कुरु॥"
(श्री दुर्गा
सप्तशती, उत्तर
चरित्र)
🔹 अर्थ: हे देवी! आप प्रसन्नचित्त होकर कैलाश जाएँ एवं पुनः भक्तों को दर्शन दें।
✅ (४) जल
अभिषेक एवं विसर्जन:
📖 "ॐ गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी
सरस्वति।
नर्मदे
सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥"
🔹 अर्थ: इस जल में सप्तनदियों का आवाहन कर इसे पवित्र किया जाता है।
लमाङ्गल्ये
शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये
त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥"
(दुर्गा सप्तशती, 11.6)
🔹 अर्थ: हे नारायणी, जो समस्त मंगलों में श्रेष्ठ, शिवा स्वरूपा एवं सभी कार्यों को सिद्ध करने वाली हैं, आपको बारंबार प्रणाम है।
(2) अर्घ्य समर्पण
🔹 विधि: देवी को जल से अर्घ्य दें।
(3) देवी प्रस्थान मंत्र
📖 "त्वं गच्छ देवि कैलासं शिवेन सह
मोदिनी।
भक्तानां
दर्शनं कृत्वा पुनरागमनं कुरु॥"
(दुर्गा सप्तशती, उत्तर चरित्र)
🔹 अर्थ: हे देवी! आप प्रसन्नचित्त होकर शिव के साथ कैलाश जाएं, भक्तों को दर्शन देकर पुनः पधारें।
(4) अंतिम विसर्जन मंत्र
📖 "ॐ पुनर्जन्म भविष्यामि पुनरागमनं
कुरु।
प्रसन्ना भव
मे नित्यं सर्वसिद्धिप्रदायिनि॥"
🔹 अर्थ: हे देवी! पुनः जन्म लीजिए, पुनः हमारे बीच पधारिए, और हमें सदा प्रसन्न रहकर सिद्धि प्रदान कीजिए।
4. विसर्जन में दिशाएँ, वस्त्र एवं दीपक की संख्या
✅ विसर्जन की दिशाएँ:
- देवी प्रतिमा को उत्तर दिशा या पूर्व दिशा की ओर मुख करके विसर्जित करना श्रेष्ठ माना गया है।
- यदि नदी या जलाशय हो, तो प्रवाहमान जल में विसर्जन करें।
✅ वस्त्र एवं वस्तु अर्पण:
- देवी विसर्जन से पूर्व लाल, पीले या सफेद वस्त्र अर्पित किए जाते हैं।
- श्रीफल, चूड़ी, सिन्दूर, चंदन, पुष्प, आभूषण, सुगंधित द्रव्य आदि देवी को अर्पित किए जाते हैं।
- भक्त देवी को आईना, कंघी, सुगंधित इत्र आदि भी भेंट करते हैं।
✅ दीपक की संख्या एवं दिशा:
📖 "चतुर्दीपं प्रदायैव विसर्जनं
विधीयते।"
(तंत्रसार)
🔹 अर्थ: विसर्जन से पूर्व चार दीपक जलाने चाहिए।
✅ विसर्जन उत्तर या
पूर्व दिशा में करना
श्रेष्ठ है।
✅ नवमी-दशमी
को किया गया विसर्जन सौभाग्य एवं सिद्धियों को प्रदान
करता है।
📖 "विसर्जनं तु यत्नेन पूजनान्ते
विधीयते।
सर्वकामप्रदं
पुण्यं सर्वसौभाग्यवर्धनम्॥"
(देवी भागवत
महापुराण)
🔹 अर्थ: विधिपूर्वक किया गया विसर्जन समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाला और सौभाग्य को बढ़ाने वाला होता है।
दुर्गा विसर्जन: दिशाएँ, दीपक, शास्त्रविधान एवं महत्त्व
(Durga Visarjan: Directions, Lamp Placement, Scriptural Methods & Significance)
. विसर्जन का शास्त्र प्रमाण एवं महत्त्व
📖 "विसर्जनं तु यत्नेन पूजनान्ते
विधीयते।
सर्वकामप्रदं
पुण्यं सर्वसौभाग्यवर्धनम्॥"
(देवी भागवत
महापुराण)
🔹 अर्थ: पूजन के अंत में विधिपूर्वक किया गया विसर्जन समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाला एवं सौभाग्य को बढ़ाने वाला होता है।
📖 "नवम्यां वा दशम्यां वा दुर्गायाः
विसर्जनम्।
सर्वसिद्धिप्रदं
पुण्यं सर्वदोषविनाशनम्॥"
(देवी भागवत)
🔹 अर्थ: नवमी या दशमी को दुर्गा विसर्जन करने से सभी दोष नष्ट होते हैं एवं सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
📖 "गच्छ देवि कैलासं त्वं
भक्तानामाशिषेण च।"
(श्री दुर्गा
सप्तशती, उत्तर
चरित्र)
🔹 अर्थ: हे देवी! आप कैलाश को जाएँ और भक्तों को आशीर्वाद दें।
📖 "मायायाश्च विसर्गोऽयं
सर्वलोकप्रभावनः।"
(चण्डी
तंत्र)
🔹 अर्थ: देवी की यह विदाई संपूर्ण लोकों को प्रभावित करने वाली माया का विसर्जन है।
- पूर्व दिशा में ज्ञान दीप
- पश्चिम में रक्षा दीप
- उत्तर में समृद्धि दीप
- दक्षिण में शांति दीप
✅ विसर्जन का शुभ मुहूर्त:
- शुभ योग: अमृत योग, रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग
- शुभ नक्षत्र: श्रवण, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद
- शुभ तिथि: नवमी, दशमी
- अशुभ काल: राहुकाल, गुलिक काल, यमगंड
📖 "नवम्यां वा दशम्यां वा दुर्गायाः
विसर्जनम्।
सर्वसिद्धिप्रदं
पुण्यं सर्वदोषविनाशनम्॥"
(देवी भागवत)
🔹 अर्थ: नवमी या दशमी को दुर्गा विसर्जन करने से समस्त दोष नष्ट होते हैं एवं सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। 🚫 अशुभ दिशाएँ: दक्षिण (यम की दिशा), पश्चिम (अलक्षित उर्जा)
📖 "उत्तरं च विशुद्ध्यर्थं पूर्वं चैव
परं श्रियः।
नैऋत्यं
पातकं ज्ञेयं न च पृष्ठे सन्निधौ स्थितिः॥"
(वास्तुशास्त्र)
🔹 अर्थ: उत्तर दिशा पवित्रता हेतु एवं पूर्व दिशा समृद्धि के लिए श्रेष्ठ है। नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) पापदायक होती है।
. दीपक एवं वर्तिका (Lamp & Wick Placement)
✅ दीपक की स्थिति:
- देवी के दक्षिण में घी का दीपक रखें।
- उत्तर में तिल के तेल का दीपक हो।
- पूर्व में सरसों के तेल का दीपक श्रेष्ठ।
- वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में कर्पूर दीपक देव कृपा हेतु।
📖 "तेजो दीपोऽभिवर्धेत
सर्वदोषनिवारणः।"
(अग्नि
पुराण)
🔹 अर्थ: दीपक का प्रकाश दोषों को नष्ट करता है।
✅ वर्तिका (Wick Type) का प्रयोग:
- कपास की वर्तिका: सामान्य पूजा
- पीली रुई की वर्तिका: लक्ष्मी कृपा हेतु
- कमल गट्टे की वर्तिका: तांत्रिक पूजन
- कुशा की वर्तिका: शुद्धि व रक्षा हेतु
📖 "दीपज्योतिर्मयो देवो दीपो
दोषनिवारकः।"
(विष्णु
धर्मसूत्र)
🔹 अर्थ: दीपक की ज्योति ईश्वर का स्वरूप होती है एवं दोषों का निवारण करती है।
४. रंग एवं प्रतीकात्मक अर्थ
✅ विसर्जन में उपयोगी रंग:
- लाल (शक्ति, तेज)
- पीला (बुद्धि, ज्ञान)
- सफेद (शुद्धता, मुक्ति)
- नीला (आकाशीय तत्व, शिव संयोग)
📖 "रक्तं तेजोमयं रूपं पीतमायुः
प्रदायकम्।
शुक्लं
मोक्षप्रदं देवी नीलं शंकरसंयुतम्॥"
(तंत्रसार)
🔹 अर्थ: लाल रंग तेजस्विता का, पीला दीर्घायु का, सफेद मोक्ष का एवं नीला शिव तत्व का प्रतीक है।
विसर्जन में दिशाएँ एवं मुहूर्त
✅ विसर्जन की दिशाएँ:
- देवी प्रतिमा को उत्तर दिशा या पूर्व दिशा की ओर मुख करके विसर्जित करना श्रेष्ठ माना गया है।
- यदि नदी या जलाशय हो, तो प्रवाहमान जल में विसर्जन करें।
✅ विसर्जन का शुभ मुहूर्त:
- शुभ योग: अमृत योग, रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग
- शुभ नक्षत्र: श्रवण, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद
- शुभ तिथि: नवमी, दशमी
- अशुभ काल: राहुकाल, गुलिक काल, यमगंड
📖 "नवम्यां वा दशम्यां वा दुर्गायाः
विसर्जनम्।
सर्वसिद्धिप्रदं
पुण्यं सर्वदोषविनाशनम्॥"
(देवी भागवत)
🔹 अर्थ: नवमी या दशमी को दुर्गा विसर्जन करने से समस्त दोष नष्ट होते हैं एवं सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
5. पौराणिक कथा: दुर्गा विसर्जन का कारण
महिषासुरनाशाय
प्रादुर्भूता युगान्तरे॥"
(मार्कण्डेय पुराण)
🔹 अर्थ: महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ के वध के लिए देवी प्रकट हुई थीं। जब दैत्य संहार पूर्ण हुआ, तब देवी कैलाश को लौट गईं।
📖 "नवदुर्गे बलिं दत्त्वा तस्यै
प्रसाद्य भक्तितः।
विसर्जयेद् यथान्यायं
पुनरागमनाय च॥"
(चण्डी तंत्र)
🔹 अर्थ: भक्तजन नवदुर्गा की पूजा कर बलि अर्पण कर देवी को उचित विधि से विसर्जित करते हैं, जिससे वे पुनः अवतरित हों।
5. पौराणिक कथा: दुर्गा विसर्जन का कारण
📖 "शुम्भो निशुम्भो यज्ञघ्नौ मायया च
निहिंसितौ।
महिषासुरनाशाय
प्रादुर्भूता युगान्तरे॥"
(मार्कण्डेय पुराण)
🔹 अर्थ: महिषासुर, शुम्भ-निशुम्भ के वध के लिए देवी प्रकट हुई थीं। जब दैत्य संहार पूर्ण हुआ, तब देवी कैलाश को लौट गईं।
📖 "नवदुर्गे बलिं दत्त्वा तस्यै
प्रसाद्य भक्तितः।
विसर्जयेद्
यथान्यायं पुनरागमनाय च॥"
(चण्डी तंत्र)
🔹 अर्थ: भक्तजन नवदुर्गा की पूजा कर बलि अर्पण कर देवी को उचित विधि से विसर्जित करते हैं, जिससे वे पुनः अवतरित हों।
दुर्गा विसर्जन का लाभ (Benefits of Visarjan)
📖 "विसर्जनं यथान्यायं पुनरागमनाय च।
सर्वसिद्धिप्रदं
पुण्यं सर्वसौभाग्यवर्धनम्॥"
(देवी भागवत)
🔹 अर्थ: विधिपूर्वक विसर्जन करने से देवी कृपा से पुनः आगमन सुनिश्चित होता है एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है।
✅ विसर्जन से प्राप्त लाभ:
- पारिवारिक सुख एवं आर्थिक समृद्धि
- रोगों से मुक्ति एवं शारीरिक बल
- संतान सुख एवं गृहस्थ आनंद
- मंत्र सिद्धि एवं आध्यात्मिक उन्नति
📖 "गङ्गायामथ वा सिन्धौ सरस्वत्यां
विशेषतः।
विसर्जनं तु
यत्नेन कार्यं भवसुखप्रदम्॥"
(तंत्र
महोदधि)
🔹 अर्थ: गंगा, सरस्वती आदि पवित्र नदियों में विसर्जन विशेष लाभदायक होता है।
७. विशेष ध्यान देने योग्य बातें
✅ निषिद्ध
कार्य:
🚫 अशुभ समय (राहुकाल, यमगंड)
🚫 अपवित्र स्थान में विसर्जन
🚫 बिना मंत्रोच्चार के विसर्जन
🚫 खंडित मूर्ति विसर्जन
📖 "स्नानं तीर्थे कुर्वन् पूजां
विसर्जनं विधाय च।
देवीप्रीतिर्भवेत्
नित्यं सर्वसौख्यं लभेत् नरः॥"
(श्री दुर्गा
रहस्य)
🔹 अर्थ: तीर्थ स्थान में स्नान कर पूजन एवं विसर्जन करने से देवी की प्रसन्नता प्राप्त होती है एवं संपूर्ण सुख मिलता है।
दुर्गा विसर्जन - विधि, महत्व एवं शास्त्रीय प्रमाण
1. दुर्गा विसर्जन का अर्थ एवं महत्व
दुर्गा विसर्जन नवरात्रि के अंतिम दिन, नवमी या दशमी तिथि को किया जाता है। इसे "विसर्जन" कहा जाता है, जिसका संस्कृत में अर्थ है:
📖 "विसर्जनम्" = त्याग, प्रवाह में छोड़ना, पूजन समापन
📖 "विसर्जनं तु यत्नेन पूजनान्ते
विधीयते।
सर्वकामप्रदं
पुण्यं सर्वसौभाग्यवर्धनम्॥"
(देवी भागवत महापुराण, सप्तम स्कंध)
🔹 अर्थ: विधिपूर्वक विसर्जन करने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
दुर्गा विसर्जन,नियम-
1-स्थापना एवं विसृजन प्रात: ही उत्तम दुर्गा देवी से सम्बंधित ग्रन्थ में उल्लेख मिलता हैं.
2-दशमी तिथि में अपराह्न अथवा प्रात:काल के समय करना चाहिए.
संध्या या रात्रि उचित नहीं.
3-श्रवण नक्षत्र तथा दशमी तिथि दोनों अपराह्न के समय हो, तो अपराह्न काल विसृजन कार्य श्रेष्ठ या प्रातःकाल से अधिक उत्तम है।
4-नवमी तिथि को संध्याकाल मे श्रवण नक्षत्र होने पर किया जा सकता है|
कलश एवं मूर्ति विर्सजन विधिः।।
देवी घट में प्रधान
देवता का मूलतत्व विराजमान माने घट के पास जाकर श्रांस उपर खींचे तथा भावना करे कि
प्रधान देवता कुंभ में से अब मेरे हृदय में आकर बैठ गये हैं। मृण्यमयी प्रतिमा को
उठाकर प्रार्थना करे।
केसे करे विधि-देवी घट मे -देवी दुर्गा,वरुण,सूर्य,शिव,गणेश,विष्णु उपस्थित है , एसा स्मरण कर , घट के समीप जाकर गहरी सांस ले.मन मे यह विचार करे की ,समस्त देव जो घट मे हैं |वे सभी मेरे हृदय मे एक २ कर आकर विराज रहे हैं |
मिटटी की प्रतिमा एवं कलश उठा कर मंन्त्र /प्रार्थना करे-
उत्तिष्ठ देवी चंडेशि, शुभाम् पूजां प्रगृह्य च कुरुष्व मम त्रलोक्य मातर देवी A
त्वं सर्व भुत दयान्विते.कल्याणम अभीष्ट शक्तिभिःA
गच्छ 2 परम स्थानं ,स्व स्थानं देवी चण्डिके A
सह.दुर्गे देवी जगन्मातः स्थानं गच्छ ,पूजिते संवत्सर व्यतीते तु पुनरागमनाय वैA
मंत्र-ॐ काली काली महाकाली कालिके पाप नशनी
काली कराल निष्क्रान्ते,कालिके त्वां नामौस्तुते.AA
सिंह वाहिनी चामुंडे पिनाक धनुवल्लभे,
उपहारं ग्रुहित्वैव प्रसीद परमेश्वरी. AA
नदी या सरोवर पर ले जाएँ A जल मे स्थापित करे. देवी प्रतिमा को वस्त्र आभूषण सहित जल में प्रवेश करा कर उनके मुख को देखना नहीं चाहिए A
मंत्र- ॐ उत्तिष्ठ2 देवी चामुंडे शुभाम पूजाम प्रगृह्य च A
वज्र त्वं स्त्रोती जले वृद्धोचस्थीयता मीही A
निर्माल्य धारिणी पूज्या चंडाली गंध चन्दने. समर्पयित्वा A
मंत्रें मंत्र मेतदुदिर्येत .निमज्यम अम्मसी संपूज्या परिकाल अर्चितिते जले A
संतान पुत्रायु वर्धने वृद्द्यार्थम स्थापितासी जले मया A
6. उपसंहार
Nivedit (समर्पण):
आपकी अपनी
रीति, नीति, और नियम
किसी भी पूजा में प्राथमिक हैं।
Your own customs, principles, and rules are of primary importance in any
worship.
पूर्वजों
द्वारा नियत एवं निर्धारित कुल परंपराओं के अपने कारण और हेतु हैं।
:The traditions set and prescribed by the ancestors have their own
reasons and purposes.
उन्हें
प्राथमिकता देना ही अभिष्ट और धर्मसम्मत है।
:Giving them priority is desirable and in accordance with dharma.
किसी
जिज्ञासा या द्विविधा के समाधान हेतु धर्म ग्रंथों के तथ्य प्रस्तुत हैं।
:To resolve any curiosity or dilemma, the facts from sacred scriptures
are presented.
✅ दुर्गा विसर्जन का अर्थ देवी का मायके से ससुराल जाना है। ✅ वैदिक एवं पौराणिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। ✅ विसर्जन विधिपूर्वक करने से सौभाग्य, समृद्धि और सिद्धि प्राप्त होती है। ✅ उचित दिशाओं, मुहूर्त और मंत्रों के साथ विसर्जन करने से विशेष फल प्राप्त होता है। ✅ यह परंपरा शक्ति साधना, विजय एवं कल्याण का प्रतीक है।
📖 "कैलासं गच्छ देवि त्वं
भक्तानामाशिषेण च।"
(श्रीदुर्गा सप्तशती, उत्तर चरित्र)
🔹 अर्थ: देवी को विसर्जन के समय "हे देवी, आप कैलाश को जाएं और भक्तों को आशीर्वाद दें" यह प्रार्थना की जाती है।
🙏 शुभ दुर्गा विसर्जन! माता रानी का आशीर्वाद सभी भक्तों पर बना रहे।
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