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नवरात्रि - नवदुर्गा (नाम और स्वरूप भिन्न) पूजित;1वैष्णव,2 माध्व, 3तुलसीकृत रामायण,4 शैव, 5- उग्रचण्डा कल्प 6- दक्षिण भारतीय और तांत्रिक परंपरा

 

नवरात्रि - नवदुर्गा (नाम और स्वरूप भिन्न) पूजित

दुर्गा देवी की उपासना विभिन्न संप्रदायों में अलग-अलग दृष्टिकोणों से की जाती है, और इसी कारण नवरात्रि के दौरान पूजित नवदुर्गा के नाम और स्वरूप भी भिन्न पाए जाते हैं। हर संप्रदाय की अपनी दार्शनिक और भक्ति परंपरा के अनुसार नवदुर्गा के स्वरूप, नाम और पूजा पद्धति में भिन्नता है। यह भिन्नता अविनाशी शक्ति की व्यापकता और लीलाओं की विविधता को दर्शाती है।

1वैष्णव,2 माध्व, 3तुलसीकृत रामायण,4 शैव, 5- उग्रचण्डा कल्प 6- दक्षिण भारतीय और तांत्रिक परंपरा -नवदुर्गा नाम और स्वरूपों की भिन्नता है।


🔶 1. वैष्णव संप्रदाय -नवदुर्गा

(विशेषतः श्रीभागवत, विष्णु पुराण के अनुसार):

यहाँ दुर्गा को विष्णु की योगमाया और भक्तिपरक रूप में पूजा जाता है। उनके स्वरूप भक्तिभाव से जुड़े होते हैं:

योगमाया  ,वैष्णवी  ,नरायणी, महालक्ष्मी ·  योगमाया

हरिप्रिया, ·  मोहिनी, ·  चंडिका, विद्याधारी,

  •  
  • विद्याधारी 📜 श्लोक (भागवत पुराण 10.2.10):
    "नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
    शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥"
    अर्थ: हे महामाये! आपको बारंबार नमस्कार है। आप श्रीपीठ पर विराजमान, सुरों द्वारा पूजित, शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली महालक्ष्मी हैं।, महामाया, हरिप्रिया, मोहिनी, चंडिका

📜 श्लोक उद्धरण"नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।" (देवीमहात्म्यम् 11.10)
अर्थ: उन्हें बारम्बार प्रणाम है जो विष्णु की योगमाया हैं।

📜 श्लोक (भागवत पुराण 10.2.10):
"नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥"
अर्थ: हे महामाये! आपको बारंबार नमस्कार है। आप श्रीपीठ पर विराजमान, सुरों द्वारा पूजित, शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली महालक्ष्मी हैं।

योगमाया, वैष्णवी, नारायणी, महालक्ष्मी, हरिप्रिया, मोहिनी, चंडिका, विद्याधारीका तांत्रिक-संहितात्मक विवरण प्रस्तुत है जिसमें मंत्र, दीपक की संख्या, वर्तिका, रंग, दिशा, वस्त्र, पूजा के समय, व पूजक के नियम सभी सम्मिलित किए गए हैं। यह विवरण श्रीदेवीभागवत, महानिर्वाण तंत्र, नारद पञ्चरात्र, विष्णु यामल, तथा तंत्रसार के अनुसार संकलित है।

🔱 तांत्रिक पूजन विन्यास आठ विशिष्ट देवियाँ

🔢

देवी

📿 मंत्र

🪔 दीपक संख्या

🧵 वर्तिका

🎨 रंग

🧭 दिशा

👘 वस्त्र

🕰पूजन समय

🙏 पूजक नियम

1

योगमाया

ॐ योगमायायै नमः

5

चन्दन वर्तिका

श्वेत

ईशान

रेशमी

प्रातःकाल

ब्रह्मचर्य, मौन

2

वैष्णवी

ॐ नमो भगवत्यै वैष्णव्यै

3

तुलसी वर्तिका

पीला

उत्तर

रेशमी / सूती

द्वादशी दिन सूर्योदय

वैष्णव नियम, नख-केश संयम

3

नारायणी

ॐ नारायण्यै नमः

4

कमलवर्तिका

सिंदूरी

पूर्व

लाल

प्रदोषकाल

विष्णु-स्मरण, एकाहारी

4

महालक्ष्मी

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीलक्ष्म्यै नमः

6

रुई में केसर

गुलाबी / श्वेत

उत्तर

रेशमी, पुष्पमालिन

शुक्रवासर सन्ध्या

स्नानशुद्ध, सौम्य मन

5

हरिप्रिया

ॐ हरिप्रिये नमः

2

केवड़ा वर्तिका

पीलापन

पूर्व

पीताम्बर

एकादशी

विष्णु-पारायण, भक्ति भाव

6

मोहिनी

ॐ ह्रीं मोहिन्यै नमः

1

कपूर वर्तिका

चमकीला

दक्षिण

चंपई वस्त्र

सूर्यास्त काल

मौन, आचमन बारंबार

7

चण्डिका

ॐ ऐं ह्रीं चामुण्डायै चण्डिकायै नमः

9

रक्तवर्तिका

रक्त

आग्नेय

लाल-गेरुआ

मंगलवार दोपहर

रूद्राभिषेक, तंत्र अनुशासन

8

विद्याधारी

ॐ श्रीं ह्रीं विद्याधारिण्यै नमः

7

दूर्वा वर्तिका

हरा

वायव्य

हरा / श्वेत

बुधवासर

वेदपाठ पूर्व ध्यान


🕉विशेष निर्देश (तांत्रिक आधार):

  • दीपक संख्या: देवी के स्वभाव और तात्त्विक स्वरूप के अनुसार अलग-अलग रखी जाती है। जैसे, चण्डिका में 9 दीपक नव शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • वर्तिका: देवी के भाव और तत्व के अनुसार चन्दन (शांत), तुलसी (सात्त्विक), रक्त (उग्र), कपूर (माया) आदि।
  • पूजक के नियम: इन पूजाओं में तांत्रिक शुद्धता (देह, वाणी, आहार) आवश्यक है। विशेषतः मौन, ब्रह्मचर्य, एकाहार, स्नान आदि का नियम पालन करें।

वैष्णव परंपरा की 8 प्रमुख देवी स्वरूपोंश्री देवी, अमृतोद्भवा, कमला, चन्द्रशोभिनी, विष्णुपत्नी, वैष्णवी, हरिबालभा, शार्ङ्गिणीका तिथि, दिशा, वस्त्र, मंत्र और पूजन विधि सहित संपूर्ण वैदिक-विन्यास प्रस्तुत किया गया है। ये विवरण नारद पाञ्चरात्र, लक्ष्मी तंत्र, श्रीवैष्णव आगम, और हरिभक्तिसुधाकर जैसे शास्त्रों पर आधारित हैं।


🌺 वैष्णव देवीस्वरूपों का पूजनविन्यास (Vedic-Tantric Format)

🔢

देवी नाम

📿 मंत्र

📅 पूजन दिवस

👗 वस्त्र

🧭 दिशा

🔆 दीपविन्यास

1

श्री देवी

ॐ श्रीं श्रीमात्री नमः

शुक्रवार

गुलाबी रेशमी

उत्तर

6 दीपक, कमल वर्तिका

2

अमृतोद्भवा

ॐ अमृतोद्भवायै नमः

पूर्णिमा

चन्द्रवर्णी (श्वेत-नील)

ईशान

4 दीपक, चन्दनवर्तिका

3

कमला

ॐ श्रीं ह्रीं कमलायै नमः

शुक्रवार/धनतेरस

रक्तवर्णी रेशम

पूर्व

8 दीपक, केसरयुक्त वर्तिका

4

चन्द्रशोभिनी

ॐ सोमप्रभायै चन्द्रशोभिन्यै नमः

सोमवासर

श्वेत चंदन वस्त्र

वायव्य

3 दीपक, चन्द्र वर्तिका

5

विष्णुपत्नी

ॐ विष्णुपत्न्यै नमः

एकादशी

पीताम्बर

उत्तर-पूर्व

5 दीपक, तुलसी वर्तिका

6

वैष्णवी

ॐ नमो भगवत्यै वैष्णव्यै

गुरुवार

हल्दी वर्ण वस्त्र

उत्तर

3 दीपक, हल्दी वर्तिका

7

हरिबालभा

ॐ हरिबालभायै नमः

रविवार

कमल वर्ण

पूर्व-दक्षिण

7 दीपक, रजत पात्र में

8

शार्ङ्गिणी

ॐ शार्ङ्गिण्यै नमः

नवरात्र सप्तमी

रक्त-श्वेत मिश्रित

आग्नेय

9 दीपक, रक्त वर्तिका


🕉विशेष पूजन नियम:

  • समय: प्रत्येक देवी के लिए उपयुक्त समय सूर्योदय, प्रदोषकाल अथवा एकादशी-पूर्णिमा।
  • दीप व वर्तिका: जैसे श्रीदेवी को कमलवर्तिका प्रिय है, वैष्णवी को तुलसीवर्तिका।
  • दिशा: पूजन दिशा वायव्य, ईशान, उत्तर, आग्नेय देवी की प्रकृति के अनुसार निर्धारित।
  • वस्त्र: रेशमी व सौम्य शुभ्र, रक्तवर्ण, पीताम्बर, चन्द्रवर्ण आदि यथानियम।

प्रमाण:

  • देवीभागवत महापुराणस्कंध 11, अध्याय 4-6
  • विष्णु यामल तंत्रदक्षिणाम्नाय
  • नारद पञ्चरात्रमहालक्ष्मी पूजन अध्याय
  • महानिर्वाण तंत्रकौलाचार विधान
  • तंत्रसारशक्ति वर्ग भेद

 


🔶 2. माध्व संप्रदाय - नवदुर्गा (विशेषतः मध्वाचार्य के ग्रंथों   हरिकथा  परंपरा के अनुसार):

यहाँ दुर्गा देवी को शुद्ध वैष्णव भाव से देखा जाता है। शक्तियों की गणना पार्षद रूपों में होती है।

  • लक्ष्मी, भुवनेश्वरी, चण्डिका, वीर्यशक्ति, कीर्तिशक्ति, ज्ञानशक्ति,
  • इन्द्रियशक्ति, इच्छा,

📚 यहाँ नवरात्रि को विष्णु की शक्तियों की आराधना के रूप में देखा जाता है, न कि केवल युद्ध की देवी रूप में।

📜 श्लोक (हरिवायुपुराण, माध्व संदर्भ):
"शक्तयः पुरुषस्यैता नानारूपधरा सदा।
लक्ष्मीभुवनेश्चण्डिकादेवी रूपाणि नौम्यहम्॥"
अर्थ: ये शक्तियाँ पुरुष (विष्णु) की ही हैं जो विविध रूपों में सदा कार्य करती हैं लक्ष्मी, भुवनेश्वरी, चण्डिका आदि देवीरूपों को मैं नमस्कार करता हूँ।

🔱 तांत्रिक विन्यास (Tantric Alignment of Shaktis):

शक्ति

तिथि / वार

दिशा

वस्त्र

रंग

दीपक दिशा

वर्तिका

अर्पण

बीज / मंत्र

1. लक्ष्मी

शुक्रवार

उत्तर

रेशमी

श्वेत / गुलाबी

उत्तर

रूई

खीर, कमल

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीलक्ष्म्यै नमः

2. भुवनेश्वरी

रविवार

पूरब

रेशमी / लाल

सिंदूरी

पूर्व

कमलवर्तिका

लाल पुष्प, अनार

ॐ ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः

3. चण्डिका

मंगलवार

आग्नेय

काले/लाल वस्त्र

रक्त

दक्षिण-पूर्व

लाल कपास

नीम, रक्त चन्दन

ॐ ऐं ह्रीं चामुण्डायै नमः

4. वीर्यशक्ति

गुरुवार

दक्षिण

पीतवस्त्र

पीला

दक्षिण

हल्दीवर्तिका

हल्दी, केला

ॐ वीर्यदायिन्यै नमः

5. कीर्तिशक्ति

बुधवार

वायव्य

हरा

पन्ना रंग

उत्तर-पश्चिम

दूर्वा वर्तिका

तुलसी, सुपारी

ॐ कीर्त्यै नमः

6. ज्ञानशक्ति

सोमवार

ईशान

सफेद

स्वेत

ईशान कोण

रूई/चन्दन

दूध, अक्षत

ॐ ह्रीं ज्ञानप्रदायै नमः

7. इन्द्रियशक्ति

शनिवार

नैऋत्य

नीला / श्याम

नील

दक्षिण-पश्चिम

लौंग वर्तिका

लवंग, काली मिर्च

ॐ इन्द्रियवशिन्यै नमः

8. इच्छा शक्ति

गुरुवार / नवमी

ऊपर (ऊर्ध्व)

सुनहरा

स्वर्णाभा

ऊपर दीया

चम्पा वर्तिका

पुष्पमाला, केसर

ॐ इच्छाशक्त्यै नमः

🌺 चक्राधिष्ठान व ध्यान श्लोक अष्टशक्तियाँ


1. लक्ष्मीमूलाधार चक्र (Muladhara Chakra)

🔸 ध्यान श्लोक:

पीताम्बरां पद्मनिभाननेत्रां, चतुर्भुजां पद्मधरां प्रसन्नाम्।
पीठे स्थितां हेममयीं सुरेशीं, वन्दे मुदा श्रीमधरां भजे ताम्॥

🔹 तांत्रिक स्वरूप: मूलाधार में स्थित धनप्रदायिनी, स्थूल ऐश्वर्य की देवी।


2. भुवनेश्वरीस्वाधिष्ठान चक्र (Svadhishthana Chakra)

🔸 ध्यान श्लोक:

सिन्दूरारुणविग्राहां त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लासिनीम्।
हस्ताभ्यामधि संयुतां वरदमुद्रां, पद्मासिनीं भावये॥

🔹 तांत्रिक स्वरूप: जगदाधारिणी, माया की अधिष्ठात्री, स्वप्न व कल्पनाओं का स्रोत।


3. चण्डिकामणिपूरक चक्र (Manipura Chakra)

🔸 ध्यान श्लोक:

रक्तवर्णां त्रिनयनां, शत्रुनाशाय साधनीम्।
चन्द्रहासास्त्रधारिणीं चामुण्डां चिन्तये सदा॥

🔹 तांत्रिक स्वरूप: अग्निमयी, तेजस्विनी, शक्ति का विस्फोटक रूप।


4. वीर्यशक्तिअनाहत चक्र (Anahata Chakra)

🔸 ध्यान श्लोक:

वज्रायुधधरां देवीं, पीतवर्णां मनोहराम्।
वीर्यशक्तिं समाश्रित्य, वज्रकायां नमाम्यहम्॥

🔹 तांत्रिक स्वरूप: उत्साह, वीर्य, धैर्य एवं साहस की अधिष्ठात्री।


5. कीर्तिशक्तिविशुद्धि चक्र (Vishuddhi Chakra)

🔸 ध्यान श्लोक:

कीर्तिमालाभूषितां, हंसवाहनसमन्विताम्।
वाणीस्वरूपिणीं वन्दे, कीर्तिशक्तिं शुभप्रदाम्॥

🔹 तांत्रिक स्वरूप: यश, सम्मान, लोकप्रसिद्धि की देवी।


6. ज्ञानशक्तिआज्ञा चक्र (Ajna Chakra)

🔸 ध्यान श्लोक:

ज्ञानदायिनी देवीं, शुद्धस्वेतवपुं प्रभाम्।
शास्त्रवेदार्थनिर्णेत्रीं, चिन्मयीं प्रणम्यहम्॥

🔹 तांत्रिक स्वरूप: आत्मज्ञान, तत्वबोध एवं बोधिसत्ता का स्रोत।


7. इन्द्रियशक्तिललाना चक्र / तालु प्रदेश

🔸 ध्यान श्लोक:

इन्द्रियाणां नियन्त्रिं च, नीलवर्णां शुचिस्मिताम्।
सर्वेन्द्रियानुशासिनीं, नमामि ताम् पराशक्तिम्॥

🔹 तांत्रिक स्वरूप: इन्द्रिय संयम की अधिष्ठात्री देवी, योग में नियंत्रण का आधार।


8. इच्छाशक्तिसहस्रार चक्र (Sahasrara Chakra)

🔸 ध्यान श्लोक:

इच्छाशक्तिं कलारूपां, त्रिनेत्रां तेजसां निधिम्।
सहस्रारकमलारूढां, चिन्मात्रां प्रणम्यहम्॥

🔹 तांत्रिक स्वरूप: ब्रह्म इच्छा, ब्रह्म संकल्प, सृष्टि की मूल प्रेरणा।


🔶 3. तुलसीकृत रामायण अनुसार (रामचरितमानस):

तुलसीदास जी ने दुर्गा के स्वरूप को सीमित संदर्भों में वर्णित किया है, मुख्यतः वे भक्तिपरक स्त्रीशक्ति को आदर्श मानते हैं। स्पष्ट नवदुर्गा की सूची नहीं है, पर यह श्लोक उल्लेखनीय है:

📜 "जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। जानि मोहिं कहि पुरान पुरानी॥" (बालकाण्ड)
अर्थ: जिन पर देवी कृपा करती हैं, वही उन्हें जान पाते हैं।

👉 तुलसीदास जी में देवी को रामभक्त की दृष्टि से विनम्रता सहित पूज्य माना गया है।


🔶 4. शैव संप्रदाय - नवदुर्गा :


 

शैव परंपरा में दुर्गा को शिव की शक्ति, काल, विनाश, रक्षा और सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। इन ग्रंथों में शक्तिशाली और उग्र रूपों का विशेष वर्णन मिलता है।

📜 देवी कल्पद्रुम के अनुसार नवदुर्गा:

1.     शैलपुत्री, ब्रह्मचरिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता,

2.     कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री,

यही स्वरूप मार्कण्डेय पुराण   देवी भागवत में भी मिलते हैं।

📜 श्लोक (देवी कल्पद्रुम):
"
नवदुर्गास्तु या देवी भक्तानां सुखमावहः। तस्याः पूजनमात्रेण पापानां नाशनं ध्रुवम्॥"
अर्थ: जो नवदुर्गा भक्तों को सुख देने वाली हैं, उनका पूजन करने से ही पापों का नाश होता है। श्लोक (देवी महात्म्य, सप्तशती अध्याय 5):
"
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
अर्थ: जो देवी सम्पूर्ण प्राणियों में शक्ति रूप से स्थित हैं, उन्हें मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ।

📜 श्लोक (देवी कल्पद्रुम):
"
नवदुर्गास्तु या देवी भक्तानां सुखमावहः।
तस्याः पूजनमात्रेण पापानां नाशनं ध्रुवम्॥"
अर्थ: जो नवदुर्गा भक्तों को सुख देने वाली हैं, उनका केवल पूजन करने से ही पापों का निश्चित नाश होता है।

🔹 १. शैलपुत्री

📜 हिमगिरिसुता देवी भीमदंष्ट्रा शिलात्मिका।
शैलराजसुताभिख्या सा मे नित्यं प्रसीदतु॥
अर्थ: हिमालय की पुत्री, भीम दंतों वाली, पर्वततुल्य शक्ति से युक्त देवी शैलपुत्री मुझे सदा प्रसन्न करें।


🔹 २. ब्रह्मचारिणी

📜 यज्ञोपवीतधारिणीं तपश्चर्या परायणाम्।
ब्रह्मचारिणि कल्याणीं भजाम्यहं सदा मुदा॥
अर्थ: यज्ञोपवीत धारण करने वाली, तपस्या में तत्पर, ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने वाली कल्याणी देवी की मैं सदा पूजा करता हूँ।


🔹 ३. चंद्रघंटा

📜 शशिधरमौलेर्मणिकुण्डलशोभिता।
चन्द्रघण्टा शुभा देवी युद्धे चण्डाः भयंकरी॥
अर्थ: चंद्र को मस्तक पर धारण करने वाली, मणियों के कुण्डलों से शोभायमान, युद्ध में भय उत्पन्न करने वाली चंद्रघंटा देवी।


🔹 ४. कूष्मांडा

📜 कूष्मांडा किल विश्वस्य आदिसृष्टिः कृता यया।
सैव देवी नमस्तुभ्यं नित्यं सौम्यरूपिणि॥
अर्थ: जिनसे समस्त सृष्टि की आदिकाल में रचना हुई, वे ही कूष्मांडा देवी हैं उन्हें नमस्कार है।


🔹 ५. स्कन्दमाता

📜 कार्तिकेयजननीत्वं येन लब्धं महेश्वरी।
सा स्कन्दमाता देवी संसेव्या सिद्धिदायिनी॥
अर्थ: जो कार्तिकेय (स्कन्द) की माता हैं, वे ही स्कन्दमाता हैं उनकी सेवा से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।


🔹 ६. कात्यायनी

📜 ऋषिकन्याभूतपूर्वा यया दैत्यविनाशिनी।
कात्यायनीं नमाम्येह शास्त्रेषु वर्णितां सदा॥
अर्थ: जो पूर्व में ऋषि की कन्या बनीं और दैत्यों का विनाश किया ऐसी कात्यायनी देवी को मैं प्रणाम करता हूँ।


🔹 ७. कालरात्रि

📜 कृष्णा कृष्णांशुकधरा भीषणास्यां महाबलाम्।
कालरात्रिं नमस्यामि सर्वशत्रुविनाशिनीम्॥
अर्थ: अति काली, कृष्ण वस्त्रधारी, भयंकर मुखवाली, महाबली सभी शत्रुओं का नाश करने वाली कालरात्रि देवी को प्रणाम।


🔹 ८. महागौरी

📜 श्वेतवर्णा महागौरी चतुर्भुजा मनोहरा।
सर्वदुष्कृतशान्त्यर्थं पूजिता सा मया सदा॥
अर्थ: श्वेतवर्णा, चार भुजाओं वाली, मनोहर देवी महागौरी समस्त दोषों के शमन हेतु सदा पूज्य हैं।


🔹 ९. सिद्धिदात्री

📜 सिद्धिदात्री महाविद्या योगिनी सर्वकामदा।
सिद्ध्यर्थं पूजिता नित्यं तां नमामि नमो नमः॥
अर्थ: जो महाविद्या स्वरूपा, योगिनी, समस्त सिद्धियाँ देने वाली हैं उन सिद्धिदात्री देवी को मैं नित्य प्रणाम करता हूँ।


5-📚 उग्रचण्डा कल्प में उग्ररूप-

📚 उग्रचण्डा कल्प में वर्णित नव उग्रदुर्गा के नाम

उग्रचण्डा, प्रेतदन्तिका, रक्तनयना, कालदंष्ट्रा, भूतनाथेश्वरी, अघोरशक्ति, चण्डरूपा, भैरवी दुर्गा, तथा महाकालप्रियाये उग्रचण्डा कल्प में वर्णित नव उग्रदुर्गा के संहारक और तांत्रिक स्वरूप हैं।

📜 "उग्रचण्डा प्रेतदंष्ट्रा रक्तनयना भयङ्करी।
कालदंष्ट्रा भूतनाथा अघोरा चण्डविग्रहा॥
भैरवी च महाकाली दुर्गा कालप्रिया परा।
एता नव दुर्गा देव्यो रक्षां कुर्वन्तु मे सदा॥"
स्रोत: उग्रचण्डा कल्प, प्राचीन तंत्र भाग

"उग्रचण्डा कल्प" ग्रंथ में वर्णित नवदुर्गा के उग्ररूप, जो कि अत्यंत तांत्रिक, रहस्यात्मक एवं संहारकारी स्वरूपों के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह ग्रंथ मुख्यतः उग्र तंत्र, रक्तकल्प, और महाश्मशान साधना की परंपरा से जुड़ा है।


🔥 📖 ग्रचण्डा कल्प में वर्णित नव उग्रदुर्गा के नाम 

 उग्रचण्डा, प्रेतदन्तिका, रक्तनयना, कालदंष्ट्रा, भूतनाथेश्वरी, अघोरशक्ति, चण्डरूपा, भैरवी दुर्गा, तथा महाकालप्रियाये उग्रचण्डा कल्प में वर्णित नव उग्रदुर्गा के संहारक और तांत्रिक स्वरूप हैं।

📜 "उग्रचण्डा प्रेतदंष्ट्रा रक्तनयना भयङ्करी।
कालदंष्ट्रा भूतनाथा अघोरा चण्डविग्रहा॥
भैरवी च महाकाली दुर्गा कालप्रिया परा।
एता नव दुर्गा देव्यो रक्षां कुर्वन्तु मे सदा॥"
स्रोत: उग्रचण्डा कल्प, प्राचीन तंत्र भाग

🕉श्लोकसहित उल्लेख:

📜
"
उग्रचण्डा प्रेतदंष्ट्रा रक्तनयना भयङ्करी।
कालदंष्ट्रा भूतनाथा अघोरा चण्डविग्रहा॥
भैरवी च महाकाली दुर्गा कालप्रिया परा।
एता नव दुर्गा देव्यो रक्षां कुर्वन्तु मे सदा॥"


🔍 अर्थ (Meaning):

👉 उग्रचण्डापरम उग्र, चण्डरूपिणी।
👉 प्रेतदन्तिकाप्रेतों के दांतों से सज्जित, मृत्यु की अधिष्ठात्री।
👉 रक्तनयनारक्तवर्णी नेत्रों वाली, रौद्र रूपा।
👉 कालदंष्ट्राकाल के समान दंष्ट्राएं धारण करने वाली।
👉 भूतनाथेश्वरीभूत, प्रेत, पिशाचों की स्वामिनी।
👉 अघोरशक्तिःअघोर तत्त्व की मुख्य अधिष्ठात्री देवी।
👉 चण्डरूपासमस्त क्रूर और युद्धकारी शक्तियों का रूप।
👉 भैरवी दुर्गाभैरव की पत्नी, उग्र और संहार की देवी।
👉 महाकालप्रियामहाकाल शिव की परम प्रिया, जो मृत्यु को भी नियंत्रित करती हैं।

1. उग्रचण्डा (Ugra-Chaṇḍā)

श्लोक:
🔸 ॐ ह्रीं उग्रचण्डायै नमः।
अर्थ: जो परम उग्र एवं चण्ड रूपिणी हैं, समस्त विकराल शक्तियों का आधार हैं।


🔱 2. प्रेतदन्तिका (Pretadantikā)

श्लोक:
🔸 ॐ ऐं प्रेतदन्तिकायै नमः।
अर्थ: जो प्रेतों के दांतों से अलंकृत हैं, मृत्यु की अधिष्ठात्री हैं एवं श्मशानरूप में वास करती हैं।


🔱 3. रक्तनयना (Raktanayanā)

श्लोक:
🔸 ॐ ह्रीं रक्तनेत्रायै नमः।
अर्थ: जिनकी आँखें रक्त वर्ण की हैं, जो रौद्र रूपा हैं तथा अधर्म का नाश करती हैं।


🔱 4. कालदंष्ट्रा (Kāladanṣṭrā)

श्लोक:
🔸 ॐ कालदंष्ट्रायै नमः।
अर्थ: जो मृत्यु के समान विकराल दंष्ट्राएं धारण करती हैं, समय को भी नियंत्रित करने वाली शक्ति हैं।


🔱 5. भूतनाथेश्वरी (Bhūtanātheśvarī)

श्लोक:
🔸 ॐ भूतनाथेश्वर्यै नमः।
अर्थ: जो समस्त भूत, प्रेत, पिशाचों की स्वामिनी हैं तथा श्मशान में पूज्य हैं।


🔱 6. अघोरशक्तिः (Aghoraśaktiḥ)

श्लोक:
🔸 ॐ अघोरशक्तये नमः।
अर्थ: जो अघोर तत्त्व की अधिष्ठात्री हैं, शिव के अघोर रूप की शक्ति हैं, भय का सर्वथा विनाश करती हैं।


🔱 7. चण्डरूपा (Chaṇḍarūpā)

श्लोक:
🔸 ॐ चण्डरूपायै नमः।
अर्थ: जो चण्डीस्वरूपा हैं, समस्त युद्धकारी, क्रूर और शक्ति रूपों की प्रतीक हैं।


🔱 8. भैरवी दुर्गा (Bhairavī Durgā)

श्लोक:
🔸 ॐ भैरव्यै दुर्गायै नमः।
अर्थ: जो स्वयं भैरव की शक्ति हैं, उग्रतमा, तामसी शक्तियों की नियंत्रिका हैं।


🔱 9. महाकालप्रिया (Mahākālapriyā)

श्लोक:
🔸 ॐ महाकालप्रियायै नमः।
अर्थ: जो महाकाल शिव की अत्यंत प्रिय हैं, समय, मृत्यु, और संहार की अंतिम नियंता हैं।

विशेष व्याख्या:
"
उग्रचण्डा कल्प" की नवदुर्गा संहारक, तांत्रिक और रक्षात्मक प्रयोजनों के लिए पूजित होती हैं। ये वे रूप हैं जो विशेषतया श्मशान साधना, रक्तकल्प होम, और महातारा साधना में आह्वान किए जाते हैं।

🕯इन नामों का जप विशेषकर रक्षायुक्ति, शत्रु नाश, और भूत-प्रेत बाधा निवारण हेतु किया जाता है।

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🌺 📚 दक्षिण भारत ( तांत्रिक परंपरा) में पूजित  नवदुर्गा नाम और मंत्र :

 🔱 वनदुर्गा, शूलिनी, जातवेदसा, शान्तिरीरिता, शबरी, ज्वाला, लवणा, असुरी, तथा दीपदुर्गाये नव विशेष दुर्गारूप दक्षिण भारत, शाक्त आगम, और तांत्रिक परंपरा में पूजित हैं, जिनकी साधना ग्राम-संरक्षण, तांत्रिक रक्षा, एवं दुष्टविनाश के लिए की जाती है

दक्षिण भारतीय शाक्त परंपरा (विशेषतः तमिल, कर्नाट, तेलुगु क्षेत्रों) में पूज्य नवदुर्गा रूप इस प्रकार माने गए हैं

🔸 वनदुर्गा, पाचई अम्मन, महालक्ष्मी, महालया दुर्गा, कारियाम्मा, कालीअम्मा, रक्तेश्वरी, ब्रह्मराम्बिका, तथा पार्वती अम्माये दक्षिण भारत की नवदुर्गा हैं, जिनकी उपासना ग्रामदेवी, कुलदेवी तथा क्षेत्रपालनी के रूप में होती है।


🕉क्रमशः नाम व मंत्र:

  1. वनदुर्गा (Vana Durga)
    🔸 मंत्र:
    📜 "ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै वनवासिन्यै नमः"
    👉 वन में निवास करने वाली, रक्षाकर्त्री देवी।
  2. पाचई अम्मन (Pachai Amman)
    🔸 मंत्र:
    📜 "ॐ श्रीं ह्रीं पाचई अम्मनायै नमः"
    👉 हरियाली एवं कृषि की संरक्षिका, ग्रामदेवी रूप।
  3. महालक्ष्मी (Maha Lakshmi)
    🔸 मंत्र:
    📜 "ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥"
    👉 समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी।
  4. महालया दुर्गा (Mahalaya Durga)
    🔸 मंत्र:
    📜 "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे"
    👉 अष्टमी/नवरात्रि में विशेष पूजित, विजयदुर्गा रूप।
  5. कारियाम्मा (Kaariyamma)
    🔸 मंत्र:
    📜 "ॐ कालीकार्यायै नमः"
    👉 संकट निवारण हेतु उपासिता उग्र काली देवी।
  6. कालीअम्मा (Kaali Amman)
    🔸 मंत्र:
    📜 "ॐ क्रीं कालिकायै नमः"
    👉 दक्षिण में विशेष रूप से श्मशान काली के रूप में पूजित।
  7. रक्तेश्वरी (Rakteshwari)
    🔸 मंत्र:
    📜 "ॐ रक्ते रक्तप्रिये रक्तेश्वर्यै नमः"
    👉 रजस्वला शक्ति की अधिष्ठात्री देवी।
  8. ब्रह्मराम्बिका (Brahmarambika)
    🔸 मंत्र:
    📜 "ॐ ह्रीं ब्रह्मरांबिकायै नमः"
    👉 श्रीशैल शक्तिपीठ की देवी, अद्वैत वैदिक शक्ति।
  9. पार्वती अम्मा (Parvati Amma)
    🔸 मंत्र:
    📜 "ॐ पार्वत्यै नमः ॐ शान्त्यै नमः"
    👉 माँ गौरी का सौम्य रूप, पारिवारिक कल्याण की देवी।

नाम और उनके बीजमंत्र:

  1. वनदुर्गा (Vana Durga)
    📜 "ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै वनवासिन्यै नमः"
    🌿 वनों में विहरण करने वाली रक्षा देवी।
  2. शूलिनी (Shoolini)
    📜 "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शूलिन्यै दुर्गायै नमः"
    ⚔️
    शूलधारिणी देवी जो दुष्ट शक्तियों का नाश करती हैं।
  3. जातवेदसा (Jaatavedasa Durga)
    📜 "ॐ जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो निदहाति वेदः। स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा, नाभि सागं सुदिते योनि वः।"
    🔥 अग्निरूपा, ऋग्वेदोक्त दुर्गा जो सब दुर्गों से पार ले जाती हैं।
  4. शान्तिरीरिता (Shaantireerita Durga)
    📜 "ॐ शान्तिरूपायै नमः ॐ ह्रीं शान्तिदात्र्यै नमः"
    🕊जो भीषण स्थितियों में भी शांति प्रदान करती हैं।
  5. शबरी (Shabari Durga)
    📜 "ॐ ह्रीं शबरीदुर्गायै नमः"
    🌾 ग्रामीण साधिका रूप, भक्तिपथ की संरक्षिका।
  6. ज्वाला (Jwala Durga)
    📜 "ॐ ज्वालामुख्यै नमः ॐ ह्रीं अग्निरूपिण्यै नमः"
    🔥 अग्निरूपिणी, संहार-कारिणी, ज्वालामुखि पीठ की अधिष्ठात्री।
  7. लवणा (Lavana Durga)
    📜 "ॐ लवणार्णवायै नमः ॐ ह्रीं तीव्ररूपिण्यै नमः"
    🌊 लवण सागर की अधिष्ठात्री, तामस दुर्गा रूप।
  8. असुरी (Asuri Durga)
    📜 "ॐ असुरीकृपायै नमः ॐ ह्रीं संहारदायिन्यै नमः"
    🖤 असुरों को संयमित करने वाली, तामसिक शक्ति।
  9. दीपदुर्गा (Deep Durga)
    📜 "ॐ दीपप्रभायै नमः ॐ ह्रीं आलोकदायिन्यै नमः"
    🪔
    ज्योतिर्मयी, अंधकार का नाश करने वाली।

📌 विशेष संदर्भ:
ये सभी रूप अगम-तंत्र, दक्षिण शाक्त संप्रदाय, और ग्रामदेवी परंपरा से सम्बंधित हैं। इनका आह्वान विशेषकर नवरात्रि, दीपोत्सव, शूलिनी यात्रा, एवं भैरवी अनुष्ठानों में किया जाता है।

🔮 ये नवदुर्गाएं रक्षात्मक, रहस्यात्मक, और योगिनी-तांत्रिक साधना में अति महत्त्वपूर्ण हैं।

📌 विशेष जानकारी:
दक्षिण भारत की नवदुर्गा श्रद्धा, परंपरा, ग्राम-रक्षा, कृषि, वन-संरक्षण और तांत्रिक रक्षण की देवी स्वरूपों से जुड़ी होती हैं। इनका पूजन अम्मन कोविल (देवी मंदिरों), नवरात्रि उत्सव, और अम्मन जात्रा में विस्तृत रूप से होता है।

नवरात्रि विशेष साधना (Navarātri Tantra Vidhi)

📅 प्रति दिन एक देवी को अर्पित किया जाता है।
🧘‍♀️
समय: रात्रि 12 से 3 या ब्रह्ममुहू

🌿 🔱 1. वनदुर्गा (Vana Durga)

📿 ध्यान श्लोक:
"
वनान्तरे शुभे स्थिता, सिंहवाहना शुभा।
त्रिनेत्रा चापधारिणी, वनदुर्गा नमोऽस्तु ते॥"

📜 तांत्रिक महत्व:
वनदुर्गा ग्रामरक्षा, वनों की ऊर्जा की अधिष्ठात्री तथा प्राकृत देवियों में प्रमुख हैं। ये भीषण वनों अनिष्ट शक्तियों से रक्षा करती हैं।

🕯साधना विधि:
🌿 वन तुलसी, शमी पत्ते, नीम के फूल, तथा हल्दी-चावल से पूजा।
📅 विशेष उपासना नवरात्रि सप्तमी, शुक्ल पक्ष अष्टमी, तथा वनयात्रा के पूर्व

1. वनदुर्गा

  • बीजमन्त्र: ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै वनवासिन्यै नमः
  • समिधा: आम या अर्जुन
  • नैवेद्य: शमी पत्र, जंगल के फल
  • ध्यान: वनसुरक्षा, आत्मबल

🔱 2. शूलिनी (Shoolini Durga)

📿 ध्यान श्लोक:
"
शूलिनीं शूलहस्तां च रौद्रां सिंहासनस्थिताम्।
चण्डमुण्डप्रमथिनीं नमामि परमेश्वरीम्॥"

📜 तांत्रिक महत्व:
शूलिनी दुर्गा तंत्र की अत्यंत गोपनीय और शक्तिशाली देवी हैं। इन्हें कालिका, चण्डिका, और कवचदात्री कहा गया है।

🕯साधना विधि:
📕 "शूलिनी दुर्गा कवच" का पाठ, रक्त पुष्प अर्पण, एवं रात्रिकालीन दीपयज्ञ।
📅 विशेष पूजा गुप्त नवरात्रि और अमावस्या पर होती है।

·  बीजमन्त्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शूलिन्यै दुर्गायै नमः

·  सामग्री: रक्त पुष्प, मिर्च समिधा

·  यज्ञकर्म: शूलिनी कवच पाठ

·  ध्यान: शत्रुनाश, रात्रिरक्षा


🔱 3. जातवेदसा दुर्गा (Jātavedasā Durga)

📿 ऋग्वेद मन्त्र ध्यान:
"
ॐ जातवेदसे सुनवाम सोमम्..." (पूर्ण मन्त्र पूर्व में दिया गया)

·  वैदिक मन्त्र: ॐ जातवेदसे सुनवाम सोमम्...

·  अग्निहोत्र विधि

·  घृताहुति 108 बार

·  ध्यान: पारगमन, गृह रक्षा

📜 वैदिक महत्व:
ऋग्वेद की अग्निदेवता से प्रकट वैदिक दुर्गा, जो समस्त दुर्गों से पार लगाती हैं। ये आर्य यज्ञपरंपरा में रक्षिका हैं।

🕯साधना विधि:
🔆 अग्निहोत्र, घृतार्चन, वैदिक मंत्रों से शुद्ध आराधना।
📅 अमावस्या, नवरात्रि सप्तमी, एवं अग्निचयन दिवस।


🔱 4. शान्तिरीरिता (Shaantireerita Durga)

📿 ध्यान श्लोक:
"
शान्तिं ददाति या नित्यं, शारदाम् इव रूपिणीम्।
ध्यानस्थां शुभदां देवीं शान्तिरीरितनामिनीम्॥"

·  मन्त्र: ॐ ह्रीं शान्तिदायिन्यै नमः

·  सामग्री: चन्दन, दूध, सफेद पुष्प

·  ध्यान: मानसिक शांति, पारिवारिक समाधान

📜 तांत्रिक महत्व:
विपत्तियों में शांति प्रदान करने वाली दुर्गा, विशेष रूप से योगिनी साधना, चन्द्र तंत्र में पूजित।

🕯साधना विधि:
🕉मौन व्रत, चन्दन-शंख से अर्चन, शांतिपाठ (शान्तिपाठ सूक्त) से स्तुति।
📅 शुक्ल अष्टमी, पूर्णिमा, तथा विवाह-मुहूर्त।


🔱 5. शबरी (Shabari Durga)

📿 ध्यान श्लोक:
"
शबरीं भक्तवत्सलां, फलदानप्रियां शिवाम्।
वनवासिन्यां देवीं, नमामि परमेश्वरीम्॥"

📜 सांस्कृतिक महत्व:
रामायण की महान साधिका, जिन्होंने प्रेम और प्रतीक्षा से देवीरूप प्राप्त किया। दक्षिण भारत में इन्हें शबरी माता या शबरी दुर्गा कहा जाता है।

🕯साधना विधि:
🌸 पुष्पमाला, फल-नैवेद्य, रामनाम लेखन से आराधना।
📅 रामनवमी, नवरात्रि द्वितीया, तथा मार्गशीर्ष।

·  मन्त्र: ॐ ह्रीं शबरीदुर्गायै नमः

·  नैवेद्य: फल (जैसे बेर, केले, गुड़)

·  ध्यान: भक्ति, विनम्रता, आत्मसमीक्षा


🔱 6. ज्वाला दुर्गा (Jwala Durga)

📿 ध्यान श्लोक:
"
ज्वालारूपां महोच्चोषां, तेजःस्विन्यां महात्मिकाम्।
अग्निमालां धरीं देवीं नमामि ज्वालामुखीमिव॥"

·  मन्त्र: ॐ ज्वालामुख्यै नमः

·  सामग्री: घृत, अग्निदान, दीप

·  ध्यान: रोगनाश, तमोनाश

📜 तांत्रिक महत्व:
हिमाचल की ज्वालामुखी देवी, अग्निकुण्ड से प्रकट तेजस्विनी दुर्गा। इन्हें साक्षात अग्निशक्ति माना जाता है।

🕯साधना विधि:
🔥 दीपयज्ञ, घृतार्चन, अग्नि परिक्रमा।
📅 चैत्र नवरात्रि, वैशाख सप्तमी, एवं भैरव अष्टमी।


🔱 7. लवणा दुर्गा (Lavana Durga)

📿 ध्यान श्लोक:
"
लवणाम्बुधिवासिन्यां, दुर्गां तीव्रतरामहम्।
सिन्धुतीरे स्थितां देवीं नमामि भद्ररूपिणीम्॥"

·  मन्त्र: ॐ लवणार्णवायै नमः

·  सामग्री: जल पात्र, नारियल, नमक मंडल

·  ध्यान: अपार शक्तियों का संयम

📜 तांत्रिक महत्व:
समुद्रवर्ती क्षेत्रों में पूजित, लवणजल की रक्षणदात्री देवी, विशेष रूप से समुद्र तटों व द्वीपों पर पूज्य।

🕯साधना विधि:
🌊 नमक से रेखा, दीप, नारियल, कर्पूरदाह।
📅 समुद्र सप्तमी, भद्र नवमी, एवं चन्द्रग्रहण रात्रि।


🔱 8. असुरी दुर्गा (Asuri Durga)

📿 ध्यान श्लोक:
"
असुरीं भीषणाकृतिं, तामसीं कालरूपिणीम्।

·  मन्त्र: ॐ असुरीकृपायै नमः

·  सामग्री: नील पुष्प, लौंग, सरसों

·  ध्यान: तामस बल का संयम, आत्मरक्षा


रक्षां करोतु मे नित्यं दुर्गा रौद्रात्मिका शिवा॥"

📜 तांत्रिक महत्व:
असुरशक्ति पर नियंत्रण, काली की उग्र तामसी शक्ति, तांत्रिक अनुष्ठानों की रक्षिका।

🕯साधना विधि:
🖤 रात्रिकालीन काली अनुष्ठान, नील पुष्प, रात्रि ध्यान।
📅 कालाष्टमी, गुप्त नवरात्रि, होलाष्टक।


🔱 9. दीप दुर्गा (Deep Durga)

📿 ध्यान श्लोक:
"
दीपज्योतिस्वरूपिण्यां, दुर्गायै ज्योतिर्मालिनीम्।
अन्धकारविनाशिन्यां नमस्ते दीपरूपिणीम्॥"

  • मन्त्र: ॐ दीपप्रभायै नमः
  • सामग्री: पंचदीप, कपूर, तेलदीप
  • ध्यान: ज्योति बिंदु साधना, ज्ञानप्राप्ति

📜 तांत्रिक महत्व:
अंधकार हरण, रोगनिवारण, एवं बुद्धिदायिनी रूप, दीपोत्सव की अधिष्ठात्री।

🕯साधना विधि:
🪔
दीप प्रज्वलन, घृत दीप यज्ञ, त्राटक ध्यान।
📅 दीपावली, कार्तिक अमावस्या, वसंत पंचमी रात्रि।

इन नवदेवियों को विशेष रूप से शुद्ध नैवेद्य, हल्दी-कुंकुम, और नीम के पत्तों से पूजित किया जाता है।


 

 

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विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...