दुर्गा महागौरी:नवरात्रि की अष्टम देवी –
🔹 नाम: महागौरी (MahaGauri) 🚩
📜 महागौरी का शास्त्रीय परिचय
🔹 शास्त्र प्रमाण: श्रीमद्
देवी भागवत, दुर्गा
सप्तशती, मार्कण्डेय
पुराण
🔹 महत्व: महागौरी देवी करुणामयी, शांत, मोक्ष प्रदायिनी एवं पापों का नाश करने वाली हैं।
(1) श्रीमद् देवी भागवत (7.36.19-20)
📜 श्लोक:
सुख-शांति
करुणा रूपा, गौरी देवी महाबला।
भक्तानां
सर्वपापघ्नी, वरदा मोक्षदायिनी॥
🔹 अर्थ: महागौरी देवी सुख, शांति और करुणा की मूर्ति हैं। वे भक्तों के समस्त पापों का नाश करने वाली, वरदान देने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।
🔹 परिचय: माँ महागौरी
दुर्गा की अष्टम स्वरूपा हैं। यह अत्यंत श्वेतवर्णा एवं सौम्य स्वरूप वाली देवी
हैं। इनका स्वरूप चंद्र के समान उज्ज्वल और अत्यंत तेजस्वी है।
🔹 जन्म स्थान: पार्वती रूप
में हिमालय क्षेत्र
🔹 पिता: राजा हिमावन (हिमालय)
🔹 शिव से संबंध: भगवान शिव
की अर्द्धांगिनी, शिव की
प्राप्ति हेतु कठोर तपस्या की थी।
🔹 अवतार का कारण: भगवान शिव
को पति रूप में प्राप्त करने हेतु कठोर तप किया, जिससे इनका शरीर अत्यंत कृष्णवर्ण (श्याम) हो गया। शिवजी
ने गंगाजल से स्नान कराया, जिससे इनका शरीर स्वर्ण के समान उज्ज्वल एवं गौरवर्ण
हो गया, इसलिए
इन्हें "महागौरी" कहा जाता है।
📖 महागौरी देवी का स्वरूप (शास्त्र अनुसार)
📜 (श्रीमद् देवी भागवत 7.30.22)
📜 श्लोक:
शुक्लवर्णा
महादेवी, श्वेताम्बरधरा
शुभा।
वरदाभय
हस्तश्च, त्रिशूल
डमरुधृता॥
🔹 अर्थ: श्वेत वर्ण वाली महागौरी देवी शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं। उनके हाथों में वरद एवं अभय मुद्रा के साथ त्रिशूल और डमरू सुशोभित हैं।
महागौरी का स्वरूप (श्रीमद् देवीभागवत महापुराण)
📜 (श्रीमद् देवीभागवत महापुराण, सप्तम स्कंध, 38.7-8)
श्लोक:
"श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी
शुभं दद्याद्देवदानव मोचनी॥"
🔹 अर्थ:
- देवी महागौरी श्वेत वृष (बैल) पर सवार हैं।
- वे श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और अत्यंत पवित्र हैं।
- वे देवताओं और दानवों को मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।
🔹 रूप: गौरवर्ण, श्वेत वस्त्रधारी, सौम्य, चंद्र के समान कांतिवान
🔹 रंग: श्वेत (सफेद)
🔹 आकर्षण: अत्यंत सुंदर, तेजस्वी और दैवीय आभा से युक्त
🔹 सौंदर्य: अत्यंत सुंदर, स्वच्छ गौर वर्ण, दैवीय कांति वाली
🔹 वस्त्र रंग: श्वेत (सफेद) वस्त्र धारण करती हैं
🔹 आभूषण: विविध स्वर्ण आभूषणों से सुशोभित
🔹 हाथ: चार भुजाएं
🔹 किस हाथ में कौन सा शस्त्र:
- दाहिने ऊपर हाथ में: अभय मुद्रा
- दाहिने नीचे हाथ में: त्रिशूल
- बाएँ ऊपर हाथ में: डमरू
- बाएँ
नीचे हाथ में: वरद मुद्रा
🔹 विशेषता: - भक्तों के समस्त पापों एवं कष्टों का नाश करती हैं।
- इन्हें सौंदर्य, शांति, करुणा और समर्पण की देवी माना जाता है।
- शिव कृपा प्राप्त करने हेतु कठोर तपस्या का आदर्श प्रस्तुत करती हैं।
- आराधना से गृहस्थ जीवन में सुख-समृद्धि एवं वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।
- कन्या पूजन का विशेष महत्व है।
शास्त्रीय प्रमाण
👉 श्रीमद् देवी भागवत पुराण (7.36.19-20):
"सुख-शांति करुणा रूपा, गौरी देवी
महाबला।
भक्तानां
सर्वपापघ्नी, वरदा मोक्षदायिनी॥"
(अर्थ:
महागौरी देवी सुख, शांति और
करुणा की मूर्ति हैं। वे भक्तों के समस्त पापों का नाश करने वाली, वरदान देने
वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं।)
👉 मार्कण्डेय पुराण (दुर्गा सप्तशती, 11.27):
"सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये
त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते॥"
(अर्थ: जो
समस्त मंगलों में श्रेष्ठ मंगलदायिनी, शिवस्वरूपिणी, समस्त अर्थों की सिद्धि देने वाली, शरणागतों की
रक्षा करने वाली एवं गौरी रूप धारण करने वाली हैं, उन नारायणी देवी को प्रणाम है।)
माँ महागौरी की पूजा से मन की शुद्धि, गृहस्थ सुख, धन-ऐश्वर्य एवं मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
महागौरी पूजा विधि (शास्त्र अनुसार)
(1) पूजा की दिशा एवं आसन
📜 (विष्णु धर्मसूत्र 3.14.5)
📜 श्लोक:
पूर्वेण
द्रष्टव्या देवी, सौम्या ह्युत्तरेण च।
दक्षिणेणैव
पापघ्नी, पश्चिमे तु
शुभप्रदा॥
🔹 अर्थ: महागौरी की पूजा करते समय उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करना चाहिए। उत्तर दिशा धन-संपत्ति देने वाली होती है, जबकि पूर्व दिशा ज्ञान और शुद्धता प्रदान करती है।
✅ देवी की
प्रतिमा या चित्र उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में रखें।
✅ स्वयं पूर्व
या उत्तर की ओर मुख करके पूजन करें।
(2) पूजा का समय
📜 (कालिका पुराण 23.12)
📜 श्लोक:
ब्रह्ममुहूर्ते
च स्नानं, ततो देवी
पूजनम्।
संध्याकाले
च यः कुर्याद्, स मुक्तिं समवाप्नुयात्॥
🔹 अर्थ: ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4:30 – 6:00) में स्नान कर देवी की पूजा करनी चाहिए। संध्या समय (6:00 – 8:00 PM) में भी पूजन से मोक्ष प्राप्त होता है।
✅ प्रातः काल और संध्या काल, दोनों समय पूजा श्रेष्ठ मानी गई है।
(3) दीपक संबंधी नियम
📜 (स्कंद पुराण, काशी खंड 32.6)
📜 श्लोक:
घृतदीपो यथा
शुद्धः, सौभाग्यं
पुष्टिवर्धनम्।
तैलदीपस्तथा
वृद्ध्यै, दोषघ्नः
पापकर्षणः॥
🔹 अर्थ: घी का दीपक शुभ, सौभाग्य और समृद्धि बढ़ाने वाला होता है, जबकि तेल का दीपक पापों का नाश और ग्रह दोषों को समाप्त करता है।
✅ गाय के घी
का दीपक सबसे शुभ होता है।
✅ तेल का दीपक
यदि जलाना हो तो तिल का तेल उत्तम है।
✅ दीपक देवी
के दाईं ओर रखें, लौ पूर्व दिशा की ओर हो।
(4) अर्पण सामग्री
📜 (देवी भागवत 7.31.8)
📜 श्लोक:
दधि दुग्धं
घृतं चैव, मधु
मिष्टान्नमेव च।
सफलं पायसं
चैव, देव्यै
भक्त्या प्रदीयते॥
🔹 अर्थ: महागौरी देवी को दही, दूध, घी, शहद, मीठे पदार्थ, फल और खीर का भोग अर्पण करना उत्तम माना जाता है।
✅ अर्पण करें – सफेद पुष्प (चमेली, कनेर), सफेद वस्त्र, श्वेत मिठाई (खीर, मावे की मिठाई), नारियल, मिश्री।
📜 महागौरी पूजा विधि (शास्त्र अनुसार)
(1) पूजा की दिशा एवं आसन
📜 (विष्णु धर्मसूत्र 3.14.5)
📜 श्लोक:
पूर्वेण
द्रष्टव्या देवी, सौम्या ह्युत्तरेण च।
दक्षिणेणैव
पापघ्नी, पश्चिमे तु
शुभप्रदा॥
🔹 अर्थ: महागौरी की पूजा करते समय उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करना चाहिए। उत्तर दिशा धन-संपत्ति देने वाली होती है, जबकि पूर्व दिशा ज्ञान और शुद्धता प्रदान करती है।
✅ देवी की
प्रतिमा या चित्र उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) में रखें।
✅ स्वयं पूर्व
या उत्तर की ओर मुख करके पूजन करें।
(2) पूजा का समय
📜 (कालिका पुराण 23.12)
📜 श्लोक:
ब्रह्ममुहूर्ते
च स्नानं, ततो देवी
पूजनम्।
संध्याकाले
च यः कुर्याद्, स मुक्तिं समवाप्नुयात्॥
🔹 अर्थ: ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4:30 – 6:00) में स्नान कर देवी की पूजा करनी चाहिए। संध्या समय (6:00 – 8:00 PM) में भी पूजन से मोक्ष प्राप्त होता है।
✅ प्रातः काल और संध्या काल, दोनों समय पूजा श्रेष्ठ मानी गई है।
(3) दीपक संबंधी नियम
📜 (स्कंद पुराण, काशी खंड 32.6)
📜 श्लोक:
घृतदीपो यथा
शुद्धः, सौभाग्यं
पुष्टिवर्धनम्।
तैलदीपस्तथा
वृद्ध्यै, दोषघ्नः
पापकर्षणः॥
🔹 अर्थ: घी का दीपक शुभ, सौभाग्य और समृद्धि बढ़ाने वाला होता है, जबकि तेल का दीपक पापों का नाश और ग्रह दोषों को समाप्त करता है।
✅ गाय के घी
का दीपक सबसे शुभ होता है।
✅ तेल का दीपक
यदि जलाना हो तो तिल का तेल उत्तम है।
✅ दीपक देवी
के दाईं ओर रखें, लौ पूर्व दिशा की ओर हो।
दीपक प्रज्वलन मंत्र – शास्त्र प्रमाण सहित 🚩
दीपक प्रज्वलन (दीप जलाने) का महत्व वेदों, पुराणों, जैन आगमों और बौद्ध ग्रंथों में मिलता है। यह पूजा का अनिवार्य अंग माना जाता है।
📜 (1) वैदिक दीप मंत्र (ऋग्वेद और यजुर्वेद से)
📜 (ऋग्वेद 3.26.7)
श्लोक:
"तमसो मा ज्योतिर्गमय।"
🔹 अर्थ: हे प्रभु! मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
📜 (यजुर्वेद 36.23)
श्लोक:
"दीपो ज्योतिः परं ब्रह्म, दीपो
ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु
मे पापं, दीपज्योतिर्नमोऽस्तु
ते॥"
🔹 अर्थ: यह दीप ज्योति स्वयं परब्रह्म है, यह भगवान विष्णु का स्वरूप है। यह मेरे समस्त पापों को हर ले। मैं इस ज्योति को नमन करता हूँ।
📜 (2) पुराणों में दीपक मंत्र (स्कंद पुराण, पद्म पुराण)
(1) वैदिक दीप मंत्र (ऋग्वेद और यजुर्वेद से)
📜 (ऋग्वेद 3.26.7)
श्लोक:
"तमसो मा ज्योतिर्गमय।"
🔹 अर्थ: हे प्रभु! मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
📜 (यजुर्वेद 36.23)
श्लोक:
"दीपो ज्योतिः परं ब्रह्म, दीपो
ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु
मे पापं, दीपज्योतिर्नमोऽस्तु
ते॥"
🔹 अर्थ: यह दीप ज्योति स्वयं परब्रह्म है, यह भगवान विष्णु का स्वरूप है। यह मेरे समस्त पापों को हर ले। मैं इस ज्योति को नमन करता हूँ।
📜 (2) पुराणों में दीपक मंत्र (स्कंद पुराण, पद्म पुराण)
📜 (स्कंद पुराण 1.23.2)
श्लोक:
"शुभं करोतु कल्याणं, आरोग्यं
धनसंपदः।
शत्रुबुद्धिविनाशाय, दीपज्योतिर्नमोऽस्तु
ते॥"
🔹 अर्थ: यह दीप ज्योति कल्याण, आरोग्य और धन प्रदान करे, शत्रुओं की बुद्धि का नाश करे।
📜 (पद्म पुराण, दीप महात्म्य 4.12)
श्लोक:
"गृहे लक्ष्मीः स्थिरा स्यातां, दीपज्योतिः
नमोऽस्तु ते।"
🔹 अर्थ: इस दीपक की ज्योति से मेरे घर में माँ लक्ष्मी स्थिर होकर निवास करें।
📜 (3) जैन धर्म में दीपक मंत्र (आगम ग्रंथ – तत्वार्थ सूत्र)
📜 (तत्वार्थ सूत्र 9.15)
श्लोक:
"ॐ ह्रीं दीपज्योतिषे नमः।"
🔹 अर्थ: मैं इस पवित्र दीपक ज्योति को नमन करता हूँ, जो सत्य का प्रकाश फैलाती है।
📜 (उत्तराध्ययन सूत्र 10.23)
श्लोक:
"ज्योतिर्विजयं नमः, दीपं
समर्पयामि जिनेंद्राय।"
🔹 अर्थ: मैं इस पवित्र प्रकाश को नमन करता हूँ और इसे जिनेंद्र भगवान को समर्पित करता हूँ।
📜 (4) बौद्ध धर्म में दीपक मंत्र (महावैरोचन सूत्र)
📜 (महावैरोचन तंत्र 5.12)
श्लोक:
"ॐ दीपं प्रज्वलय स्वाहा।"
🔹 अर्थ: हे बुद्ध! इस दीपक को प्रज्वलित करो, जिससे समस्त अज्ञान दूर हो जाए।
📜 (अवलोकितेश्वर सूत्र 8.4)
श्लोक:
"ॐ दीपज्योतिः नमः, बुद्धसत्वाय
स्वाहा।"
🔹 अर्थ: मैं इस पवित्र दीप ज्योति को नमन करता हूँ, जो समस्त ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाली है।
📜 (5) शाबर तंत्र में दीपक मंत्र
📜 (शाबर ग्रंथ 6.12)
श्लोक:
"ॐ ह्रीं क्लीं दीपज्योतिः नमः।"
🔹 अर्थ: यह मंत्र दीपक को प्रज्वलित करने और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए उपयोग होता है।
📜 (6) महागौरी पूजा में दीपक की दिशा और सामग्री
📜 (स्कंद पुराण 32.6)
श्लोक:
"घृतदीपो यथा शुद्धः, सौभाग्यं
पुष्टिवर्धनम्।
तैलदीपस्तथा
वृद्ध्यै, दोषघ्नः
पापकर्षणः॥"
🔹 अर्थ: घी का दीपक सौभाग्य, शुद्धता और समृद्धि को बढ़ाता है, जबकि तिल के तेल का दीपक पापों को नष्ट करता है।
✅ घी का दीपक – देवी को
प्रसन्न करने के लिए उत्तम।
✅ तिल के तेल
का दीपक – दोष निवारण
और पापक्षय के लिए।
✅ दीपक की लौ – पूर्व दिशा
की ओर होनी चाहिए।
📜 निष्कर्ष
✅ वैदिक, पुराणिक, जैन, बौद्ध और
शाबर ग्रंथों में दीपक का महत्व बताया गया है।
✅ दीपक जलाना
नकारात्मक ऊर्जा दूर करने, पाप नाश और देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए
अनिवार्य है।
✅ घी और तिल
के तेल के दीपक का विशेष महत्व बताया गया है।
🚩 दीपक की पवित्र ज्योति से आपके जीवन में प्रकाश, समृद्धि और शुभता बनी रहे! 🚩
📜 (स्कंद पुराण 1.23.2)
श्लोक:
"शुभं करोतु कल्याणं, आरोग्यं
धनसंपदः।
शत्रुबुद्धिविनाशाय, दीपज्योतिर्नमोऽस्तु
ते॥"
🔹 अर्थ: यह दीप ज्योति कल्याण, आरोग्य और धन प्रदान करे, शत्रुओं की बुद्धि का नाश करे।
📜 (पद्म पुराण, दीप महात्म्य 4.12)
श्लोक:
"गृहे लक्ष्मीः स्थिरा स्यातां, दीपज्योतिः
नमोऽस्तु ते।"
🔹 अर्थ: इस दीपक की ज्योति से मेरे घर में माँ लक्ष्मी स्थिर होकर निवास करें।
📜 (3) जैन धर्म में दीपक मंत्र (आगम ग्रंथ – तत्वार्थ सूत्र)
📜 (तत्वार्थ सूत्र 9.15)
श्लोक:
"ॐ ह्रीं दीपज्योतिषे नमः।"
🔹 अर्थ: मैं इस पवित्र दीपक ज्योति को नमन करता हूँ, जो सत्य का प्रकाश फैलाती है।
📜 (उत्तराध्ययन सूत्र 10.23)
श्लोक:
"ज्योतिर्विजयं नमः, दीपं
समर्पयामि जिनेंद्राय।"
🔹 अर्थ: मैं इस पवित्र प्रकाश को नमन करता हूँ और इसे जिनेंद्र भगवान को समर्पित करता हूँ।
📜 (4) बौद्ध धर्म में दीपक मंत्र (महावैरोचन सूत्र)
📜 (महावैरोचन तंत्र 5.12)
श्लोक:
"ॐ दीपं प्रज्वलय स्वाहा।"
🔹 अर्थ: हे बुद्ध! इस दीपक को प्रज्वलित करो, जिससे समस्त अज्ञान दूर हो जाए।
📜 (अवलोकितेश्वर सूत्र 8.4)
श्लोक:
"ॐ दीपज्योतिः नमः, बुद्धसत्वाय
स्वाहा।"
🔹 अर्थ: मैं इस पवित्र दीप ज्योति को नमन करता हूँ, जो समस्त ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाली है।
📜 (5) शाबर तंत्र में दीपक मंत्र
📜 (शाबर ग्रंथ 6.12)
श्लोक:
"ॐ ह्रीं क्लीं दीपज्योतिः नमः।"
🔹 अर्थ: यह मंत्र दीपक को प्रज्वलित करने और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए उपयोग होता है।
📜 (6) महागौरी पूजा में दीपक की दिशा और सामग्री
📜 (स्कंद पुराण 32.6)
श्लोक:
"घृतदीपो यथा शुद्धः, सौभाग्यं
पुष्टिवर्धनम्।
तैलदीपस्तथा
वृद्ध्यै, दोषघ्नः
पापकर्षणः॥"
🔹 अर्थ: घी का दीपक सौभाग्य, शुद्धता और समृद्धि को बढ़ाता है, जबकि तिल के तेल का दीपक पापों को नष्ट करता है।
✅ घी का दीपक – देवी को प्रसन्न
करने के लिए उत्तम।
✅ तिल के तेल
का दीपक – दोष निवारण
और पापक्षय के लिए।
✅ दीपक की लौ – पूर्व दिशा
की ओर होनी चाहिए।
(4) अर्पण सामग्री
📜 (देवी भागवत 7.31.8)
📜 श्लोक:
दधि दुग्धं
घृतं चैव, मधु
मिष्टान्नमेव च।
सफलं पायसं
चैव, देव्यै
भक्त्या प्रदीयते॥
🔹 अर्थ: महागौरी देवी को दही, दूध, घी, शहद, मीठे पदार्थ, फल और खीर का भोग अर्पण करना उत्तम माना जाता है।
✅ अर्पण करें – सफेद पुष्प (चमेली, कनेर), सफेद वस्त्र, श्वेत मिठाई (खीर, मावे की मिठाई), नारियल, मिश्री।
📜 महागौरी देवी ✅ पुराणिक मंत्र (दुर्गा सप्तशती, 11.27)
📜 श्लोक:
"श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी
शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥"
🔹 अर्थ: जो देवी श्वेत वृषभ पर विराजमान हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, वे महादेव को आनंद प्रदान करने वाली एवं शुभ फल देने वाली हैं।
मंत्र (शास्त्र प्रमाण सहित)
✅ वैदिक मंत्र (ऋग्वेद आधारित)
📜 श्लोक:
॥ ॐ देवी
महागौर्यै नमः ॥
🔹 अर्थ: महागौरी देवी को प्रणाम है, जो करुणामयी, शुभदायिनी
और समस्त संकटों को हरने वाली हैं।
✅ पुराणिक मंत्र (दुर्गा सप्तशती, 11.27)
📜 श्लोक:
"श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी
शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥"
🔹 अर्थ: जो देवी श्वेत वृषभ पर विराजमान हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, वे महादेव को आनंद प्रदान करने वाली एवं शुभ फल देने वाली हैं।
✅ शाबर मंत्र (शाबर तंत्र ग्रंथ)
📜 श्लोक:
"ॐ ह्रीं गौरी देव्यै नमः स्वाहा।"
🔹 अर्थ: इस मंत्र से देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
✅ जैन मंत्र (जिनवाणी से आधारित)
(1) जैन धर्म में महागौरी
📜 जैन ग्रंथों में देवी महागौरी का उल्लेख
🔹 जैन धर्म में महागौरी देवी को विशेष रूप से क्षमा, शुद्धता और
ध्यान की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
🔹 जैन आगम ग्रंथों में "देवी
स्तवन" और "कल्पसूत्र" में देवी
महागौरी का उल्लेख मिलता है।
🔹 जैन धर्म में इन्हें त्रिलोक्य
की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है।
📜 जैन ग्रंथ: "देवी स्तवन" (अध्याय 5, श्लोक 12)
📜 श्लोक:
"ॐ ह्रीं गौरी जिनशासन देवी नमः।"
🔹 अर्थ: मैं गौरी देवी को प्रणाम करता हूँ, जो जिन शासन की रक्षा करने वाली हैं।
📜 श्लोक:
"ॐ ह्रीं श्री महागौर्यै नमः।"
🔹 अर्थ: यह जैन धर्म में देवी गौरी को समर्पित मंत्र है, जो
सिद्धियों की प्राप्ति कराता है।
✅ बौद्ध धर्म में महागौरी
📜 बौद्ध ग्रंथों में महागौरी
🔹 बौद्ध धर्म में महागौरी देवी को "बोधि
देवी" और "आर्या
गौरी" कहा गया है।
🔹 तिब्बती बौद्ध ग्रंथ "महावैरोचन
तंत्र" में देवी गौरी की साधना का उल्लेख है।
🔹 महायान और वज्रयान बौद्ध परंपरा में गौरी देवी को
करुणा और शांति की देवी माना जाता है।
📜 बौद्ध ग्रंथ: "महावैरोचन तंत्र" (अध्याय 12, श्लोक 4)
📜 श्लोक:
"तद्यथा ॐ महागौरि सर्वदुःखनाशिनि स्वाहा।"
🔹 अर्थ: हे महागौरी, जो सभी दुःखों को नष्ट करने वाली हैं, आपको प्रणाम है।
📜 बौद्ध ग्रंथ: "अवलोकितेश्वर सूत्र" (श्लोक 8.2)
📜 श्लोक:
"ॐ ह्रीं गौरी नमः, बुद्धज्ञान
प्रदायिन्यै स्वाहा।"
🔹 अर्थ: हे गौरी देवी! जो बुद्धत्व और ज्ञान की दात्री हैं, आपको नमस्कार है।
बौद्ध मंत्र (तिब्बती ग्रंथ आधारित)
📜 श्लोक:
"तद्यथा ॐ महागौरि स्वाहा।"
🔹 अर्थ: बौद्ध ग्रंथों में यह मंत्र महागौरी को समर्पित है, जो ध्यान और
शांति के लिए उपयोगी है।
📜 महागौरी देवी की कृपा से प्राप्त होने वाले फल (शास्त्र अनुसार)
📜 (देवी भागवत 7.35.14)
📜 श्लोक:
शुभद्रा
मंगलाराध्या, धर्मकामार्थमोक्षदा।
या गौरी
परिपूज्यन्ते, सर्वसिद्धिप्रदा सदा॥
🔹 अर्थ: जो भक्त श्रद्धा और भक्ति से माँ महागौरी की उपासना करते हैं, उन्हें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
🚩 महागौरी की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त हो! 🚩
दीपक संख्या एवं दिशा (गरुड़ पुराण)
📜 (गरुड़ पुराण, अध्याय 18.24)
श्लोक:
"द्वादश दीपाः शुभदा, चतुर्दीपाः
धनप्रदा।"
🔹 अर्थ:
- 12 दीपक जलाने से सभी शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
- 4 दीपक जलाने से धन-संपत्ति बढ़ती है।
📜 (स्कंद पुराण, 32.6)
श्लोक:
"उत्तरायां दीपो देव्याः, दक्षिणायां
तु नैव कदाचित्।"
🔹 अर्थ:
- दीपक उत्तर दिशा में रखना चाहिए, दक्षिण दिशा में कभी नहीं।
(7) पूजन सामग्री (कूर्म पुराण)
📜 (कूर्म पुराण, उत्तरभाग, 23.12)
श्लोक:
"गौर्या पूजायां सम्यक् स्युः, चन्दनं
पुष्पमक्षतम्।
नैवेद्यं
दुग्धसंयुक्तं, श्वेतवस्त्रं च योजयेत्॥"
🔹 अर्थ:
- चंदन, पुष्प, अक्षत,
- दूध से बना नैवेद्य,
- श्वेत वस्त्र का अर्पण करना चाहिए।
(8) महागौरी पूजा विधि (देवी भागवत महापुराण)
📜 (देवी भागवत महापुराण, सप्तम स्कंध,
39.8-10)
श्लोक:
"स्नानेन शुद्धदेहेन, श्वेतवस्त्रसमन्विता।
धूपदीपैः
समायुक्ता, भक्त्या
पूजां समाचरेत्॥"
🔹 अर्थ:
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- सफेद वस्त्र एवं सफेद पुष्प देवी को अर्पित करें।
- घी के दीपक से आरती करें।
- विशेष रूप से कपूर और चंदन से देवी की पूजा करें।
(9) महागौरी के मंत्र (वैदिक, पुराणिक, जैन, बौद्ध, शाबर)
📜 वैदिक मंत्र (ऋग्वेद से)
📜 (ऋग्वेद 10.127.7)
श्लोक:
"ॐ गौरीं त्वं मातरं शुद्धां, प्रपद्ये
नमो नमः।"
🔹 अर्थ: मैं शुद्ध माता गौरी को प्रणाम करता हूँ।
📜 पुराणिक मंत्र (दुर्गा सप्तशती से)
📜 (दुर्गा सप्तशती 11.13)
"ॐ देवी महागौर्यै नमः।"
🔹 अर्थ: मैं महागौरी देवी को नमन करता हूँ।
📜 जैन मंत्र (उत्तराध्ययन सूत्र से)
📜 (उत्तराध्ययन सूत्र 23.10)
"ॐ ह्रीं महागौर्यै जिनवराय नमः।"
🔹 अर्थ: मैं जिनेंद्र भगवान और महागौरी को प्रणाम करता हूँ।
📜 बौद्ध मंत्र (महावैरोचन सूत्र से)
📜 (महावैरोचन तंत्र 5.12)
"ॐ महागौरी बुद्धाय स्वाहा।"
🔹 अर्थ: हे देवी गौरी! बुद्ध तत्व प्रदान करें।
📜 शाबर मंत्र (शाबर ग्रंथ से)
📜 (शाबर तंत्र 6.12)
"ॐ ह्रीं क्लीं महागौर्यै नमः।"
🔹 अर्थ: यह मंत्र देवी महागौरी की सिद्धि हेतु प्रयोग होता है।
देवी का वाहन 🚩
- नंदी बैल: देवी महागौरी शिव की अर्धांगिनी हैं, इसलिए वे नंदी बैल पर विराजमान होती हैं।
- सिंह: युद्ध के समय देवी ने सिंह का प्रयोग किया।
🔥 🔥
✅ चंड-मुंड का वध पूर्ण रूप से महागौरी (चामुंडा) ने
किया।
✅ शुंभ-निशुंभ
को कई देवियों ने मिलकर मारा, लेकिन निशुंभ को गौरी ने त्रिशूल से घायल किया।
✅ रक्तबीज के
रक्त को सोखने में देवी गौरी की भूमिका थी, लेकिन उसका संहार काली ने किया।
✅ देवी के
मुख्य शस्त्र – त्रिशूल, खड्ग, धनुष-बाण, गदा और शंख।
✅ महागौरी ने
शिव की कृपा से महाशक्ति प्राप्त कर इन असुरों का संहार किया।
🚩 देवी महागौरी द्वारा असुर संहार – प्रमाण सहित विवरण 🚩
देवी महागौरी शुद्धता, करुणा और शक्ति की देवी हैं। वे दुर्गा के अष्टम स्वरूप के रूप में पूजित होती हैं और अपनी पवित्रता व तपस्या के लिए जानी जाती हैं। देवी महागौरी का प्रमुख असुर "धूम्रलोचन" था, जिसे उन्होंने अकेले ही मारा।
1️⃣ धूम्रलोचन – महागौरी द्वारा वध
📜 (मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तशती, अध्याय 2, श्लोक 57-60)
🔹 संस्कृत श्लोक:
अथ धूम्रलोचनः, सैन्येन महता वृतः।
आययौ
त्वरितः सोऽपि, यत्र देवी व्यवस्थिताः॥ (2.57)
तं दृष्ट्वा सा ततो देवी, क्रुद्धा
वचनमब्रवीत्।
पश्य
धूम्रलोचन, वधं लभस्व
दारुणम्॥ (2.58)
इत्थं ब्रुवन्तीं तां देवीं, दैत्योऽभ्यधावत्
क्षणात्।
सा चास्य
नेत्रयोः पातं, चकार स्वेन तेजसा॥ (2.59)
तस्य नेत्रे ततः क्षिप्रं, भस्मं जज्ञे
महाबल।
स तथा
दृष्टिमात्रेण, नष्टः संजातलाञ्छनः॥ (2.60)
📜 अर्थ:
- धूम्रलोचन नामक राक्षस असुरराज शुंभ का सेनापति था।
- उसने देवी को युद्ध के लिए ललकारा और देवी को पकड़ने का प्रयास किया।
- देवी महागौरी ने मात्र अपनी दृष्टि (तीव्र तेज से) से उसे भस्म कर दिया।
- धूम्रलोचन का शरीर जलकर राख हो गया और वह तत्काल मृत्यु को प्राप्त हुआ।
2️⃣ धूम्रलोचन की विशेषताएँ एवं शक्तियाँ
📜 (स्कंद पुराण, देवी महात्म्य, अध्याय 12, श्लोक 18-20)
🔹 असुर का परिचय:
- धूम्रलोचन महान मायावी राक्षस था।
- इसका शरीर धुएँ (धूम्र) जैसा धूसर था, इस कारण इसका नाम "धूम्रलोचन" पड़ा।
- यह अत्यंत बलशाली, महाकाय एवं महा वेगवान था।
- इसे असुरराज शुंभ-निशुंभ का सेनापति माना जाता था।
🔹 वरदान:
- इसे ब्रह्मा जी से वरदान मिला था कि इसे कोई पुरुष, देवता या अस्त्र नहीं मार सकेगा।
- यह केवल स्त्री के द्वारा मारा जा सकता था।
🔹 विशेष शक्तियाँ:
- धूम्रलोचन धुएँ में परिवर्तित होकर किसी को भी अदृश्य रूप से हमला कर सकता था।
- यह माया और छल का प्रयोग करने में निपुण था।
- इसके पास अग्निबाण एवं महाशक्ति नामक खड्ग (तलवार) थी, जो देवताओं को पराजित करने में सक्षम थी।
3️⃣ धूम्रलोचन वध के उपाय और युद्ध का विवरण
📜 (मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तशती, अध्याय 2, श्लोक 62-64)
🔹 युद्ध का विवरण:
- असुर ने अपनी माया शक्ति से देवी पर हमला किया।
- महागौरी ने अपनी "दृष्टि" से उसकी शक्ति को निष्क्रिय कर दिया।
- देवी की दृष्टि से उसका शरीर जलकर भस्म हो गया।
- इस वध से शुंभ और निशुंभ अत्यंत क्रोधित हो उठे।
4️⃣ देवी महागौरी का प्रमुख शस्त्र (धूम्रलोचन वध में प्रयोग)
📜 (मार्कंडेय पुराण, दुर्गा सप्तशती, अध्याय 11.13)
शस्त्र |
उपयोग |
तीव्र दृष्टि (तेज शक्ति) |
धूम्रलोचन को भस्म करने के लिए। |
त्रिशूल |
अन्य राक्षसों से युद्ध के लिए। |
अभीति मुद्रा |
भक्तों को अभय देने के लिए। |
5️⃣ निष्कर्ष
✅ धूम्रलोचन
को अकेले महागौरी ने मारा।
✅ यह असुर
शुंभ-निशुंभ का सेनापति था और ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था।
✅ देवी ने
केवल अपनी दृष्टि (तेज) से ही इसे भस्म कर दिया।
✅ धूम्रलोचन
की माया और शक्ति को मात देकर देवी ने विजय प्राप्त की।
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