#शुक्रवार + मूल नक्षत्र में नये वस्त्र, वस्तु, आभूषण (विशेषतः चूड़ी) के प्रयोग#-16.5.2025
(Use of New Clothes, Items, Ornaments like Bangles on Friday under
जातकपारिजात (Jātaka Pārijāta), अध्याय 9:
"मूलाश्लेषा कृतिका च नक्रे स्त्रिणां न शोभनम्।"
अर्थ: मूल, आश्लेषा, कृतिका — ये नक्षत्र स्त्रियों के लिए अशुभ माने गए हैं, विशेष रूप से नववस्त्र, गहनों के प्रयोग या क्रय के लिए।
🔸 मुहूर्त चिंतामणि (Muhurta Chintamani):
"मूलो नृणां स्त्रीणां च कृतान्तकृत, चूड़ाभरणे त्वशुभं स्मृतम्।"
अर्थ: मूल नक्षत्र पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिए मृत्यु तुल्य कष्टदायक हो सकता है।
नवचूड़ी, आभूषण आदि पहनना या खरीदना मूल में वर्जित कहा गया है।
🔸 कृत्तिवास संहिता:"मूलवारे न कार्या स्त्रीवस्त्रभूषण क्रिया।"
अर्थ: मूल नक्षत्र वाले दिन स्त्रियों को वस्त्र, गहने आदि नहीं पहनने चाहिए।
⚠️ परिणाम (Consequences in Hindi):
1. चूड़ी या गहनों का प्रयोग मूल नक्षत्र में करने पर स्त्री के सौंदर्य, स्वास्थ्य या वैवाहिक जीवन में विघ्न उत्पन्न हो सकता है।वस्तु का टूटना, हानि या मानसिक क्लेश संभव।यदि चूड़ी का पहला प्रयोग इस दिन हो, तो यह शुभ नहीं माना जाता।
शुक्रवार + मूल नक्षत्र + चतुर्थी तिथि के संयोग का विस्तार से शास्त्रसम्मत विवेचन
🌟 1. तिथि: चतुर्थी (शुक्ल/कृष्ण पक्ष)प्रभाव:
- चतुर्थी गणेश जी की प्रिय तिथि मानी जाती है।
- कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (संकष्टी) व्रत, बाधा निवारण और कर्ज-मुक्ति के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।
- नवीन वस्त्र या आभूषण क्रय के लिए मध्यम मानी जाती है।
चतुर्थीं
कृष्णपक्षे तु व्रतेन संकषापहाम्।
वणिज्ये नैव कुर्यात्तु, कार्यं लघुपरिग्रहम्॥
Chaturthi in Krishna Paksha removes obstacles through vrat (fasting).Avoid major purchases or business dealings; prefer small-scale activities.
🌟 2. नक्षत्र: मूल नक्षत्र (गण्डमूल)प्रभाव:
- मूल नक्षत्र गण्डमूल श्रेणी में आता है — विशेषकर पहली 7 घड़ी (लगभग 5 घंटे) तक क्रूर प्रभाव रह सकता है।
- शुक्रवार को मूल नक्षत्र हो तो स्त्री-संबंधी कार्य, सौंदर्य प्रसाधन, सजावट, श्रृंगार संबंधी वस्तु की खरीद शुभ मानी जाती है, लेकिन कार्य की शुरुआत स्थगित करने की सलाह दी जाती है।
मूल नक्षत्र शांति के लिए शास्त्रीय उपाय:
- मूल नक्षत्र में जन्मे जातकों को विशेष पूजा, मूल शांति या मूल संस्कार करने का विधान है।
श्लोक – नारद संहिता अनुसार:
मूलाश्विन्यादि जातानां
शान्तिः कार्या विशेषतः।
मूल नक्षत्रे कृते कार्ये न सिद्धिर्न च सौख्यम्॥
Works begun in Moola Nakshatra often lack success unless specific remedies or peace rituals are performed.
🌟 3. वार: शुक्रवार
- शुक्र ग्रह भोग, सौंदर्य, कला, स्त्रियों, आभूषण, प्रेम, विलासिता के कारक हैं।
- शुक्रवार को नवीन वस्त्र, साज-सज्जा, शृंगार आदि क्रय करना शुभ माना जाता है।
- नई योजनाएँ (beauty, fashion, creative fields) में प्रवेश अच्छा होता है।
शुक्रवार शुभ कार्य श्लोक:
शुक्रेण
सुप्रभाते तु,
वस्त्रालंकारदायकः।
स्त्रीभोग्येषु च कार्येषु, सौख्यदः
स्यादनेकधा॥
On Friday morning, ruled by Venus, purchasing clothes, ornaments, and engaging in creative/feminine ventures brings happiness.
🌟 4. संयुक्त प्रभाव: शुक्रवार + मूल नक्षत्र + चतुर्थी तिथि-विश्लेषण:
- यह योग सौंदर्य, श्रृंगार, वस्त्र, आभूषण, एवं कला-संबंधी कार्यों के लिए मध्यम से उत्तम है।
- यदि कार्य गंभीर, निवेश आधारित या तकनीकी है, तो यह संयोग उलझन या बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- इस दिन शुभ मुहूर्त में सीमित क्रय, शांतिपाठ, या गणेश स्तुति के साथ कार्य आरंभ करना उचित रहेगा।
✅ क्या करें (DOs):
- सफेद या गुलाबी रंग के वस्त्र, शृंगार, सौंदर्य प्रसाधन खरीदें
- किसी स्त्री या कन्या को सौंदर्य सामग्रियाँ दान करें
- कार्य से पूर्व गणेश जी का स्मरण करें (ॐ गणपतये नमः)
- शुक्र स्तोत्र या गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें
❌ क्या न करें (DON’Ts):
- जीवन के अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय (नया व्यापार, विवाह मुहूर्त निर्धारण आदि) स्थगित करें
- मूल नक्षत्र में क्रूरता, वाणी दोष, झगड़ा आदि से बचें
- निवेश या भूमि-संपत्ति संबंधी निर्णय टालें
📚 प्रमुख ग्रंथ प्रमाण:
1. मूहूर्त चिंतामणि – चतुर्थी व मूल का संयोग मध्यम
2. नारद संहिता – मूल नक्षत्र की शांति आवश्यक
3. कालामृतम् – शुक्रवार सौंदर्य व स्त्री संबंधित क्रय हेतु उत्तम
4. धर्मसिंधु – शुक्र व मूल संयोग में व्रत/दान से दोषशमन
📜 श्लोक सारांश (Summary Shlokas):
शुक्रे
मूलचतुर्थ्यां च,
स्त्रीवस्त्रादि सुवाससम्।
यः कुर्यात्क्रियया युक्तं, सुखं स लभते
ध्रुवम्॥
शुक्रवार, मूल नक्षत्र और चतुर्थी तिथि में
जो मनुष्य स्त्रियों से संबंधित कार्य, वस्त्र,
सौंदर्य आदि करता है,
वह सुख-समृद्धि प्राप्त करता है, यदि
विधिपूर्वक किया गया हो
📚 1. धर्मसिंधु (Dharmasindhu) – नये वस्त्र प्रयोग व मूल नक्षत्र संदर्भसंदर्भ: धर्मसिंधु, "वस्त्रप्रयोगकालविचारः"
"गण्डमूले च मूलाख्ये न नूतनवस्त्रप्रयोगः।"(धर्मसिंधु)
मूल नामक गण्डमूल नक्षत्र में नूतन वस्त्र का प्रयोग वर्जित है।
📌 यह श्लोक स्पष्ट करता है कि मूल नक्षत्र में नये वस्त्र पहनने या प्रयोग करने से बचना चाहिए क्योंकि यह गण्डमूल दोष के अंतर्गत आता है।
📚 2. निर्णयसिंधु (Nirnaya Sindhu) – नूतन वस्र/वस्त्र प्रयोग
निर्णयसिंधु - इस नक्षत्र में प्रथम प्रयोग, गृह प्रवेश, या नूतन कार्य अशुभ हो सकता है।
"गण्डमूल नक्षत्रे तु... वस्त्राभरणप्रयोगो वर्ज्यः"
📌 वस्त्राभरण = वस्त्र व आभूषण
📌 प्रयोगो वर्ज्यः = प्रयोग निषिद्ध है
📚 3. कालप्रदीपिका / मुहूर्त चिंतामणि – वस्त्र प्रयोग हेतु नक्षत्र विचार
"मूलादिगण्डमूलेषु न
कृत्वा नूतनं क्रियम्।"(कालप्रदीपिका, नक्षत्र विचार)
मूल व अन्य
गण्डमूल नक्षत्रों में कोई नया कार्य, विशेषकर नूतन प्रयोग, वर्जित माना गया है।
🪔 4. सारांश / निष्कर्ष(Only for वस्त्र/वस्तु First Use in Moola Nakshatra)
विषय |
शास्त्रीय निर्देश |
नया वस्त्र पहली बार पहनना |
वर्जित (धर्मसिंधु, निर्णयसिंधु) |
नवीन वस्त्र/वस्तु क्रय करना- |
विशेष सावधानी के साथ संभव, शुभ मुहूर्त देखकर |
नूतन वस्तु (phone, वस्त्र, बर्तन) का --पहला प्रयोग |
टालना चाहिए मूल नक्षत्र में |
मूल नक्षत्र का प्रभाव- |
गण्डमूल दोषयुक्त – नया प्रयोग अशुभ फल दे सकता है |
भद्रबाहु संहिता में मूल नक्षत्र के संदर्भ में केवल वस्त्र या आभूषण का प्रयोग ही नहीं, बल्कि "जल तत्व" से हानि (जैसे स्नान, यात्रा, नदी-सागर संबंधी क्रिया) और रोग, दुर्घटना आदि का विशेष रूप से वर्णन किया गया है।
📜 भद्रबाहु संहिता – मूल नक्षत्र में जल-संबंधी कार्यों से हानि का निर्देश
"मूले जलकर्म वर्जयेत्,
स्नानं न कर्तव्यम्,
नूतनवस्त्रधारणं वा,
जलात् पीड़ा, रोग, आपत्ति
संभाव्यते।"
- मूल नक्षत्र में जल से जुड़े कार्य जैसे स्नान, तैराकी, जलयात्रा, नया वस्त्र पहनना (जो स्नान पश्चात किया जाता है) — सब वर्जित हैं।
- ऐसा करने से जलदोष से पीड़ा, अचानक रोग, दुर्घटना, या जल से हानि होने की संभावना बढ़ जाती है।
⚠️ भद्रबाहु संहिता में उल्लिखित मुख्य चेतावनियाँ (विशेषकर मूल नक्षत्र में):
कार्य |
निषेध |
संभावित हानि |
स्नान (विशेषतः नदी, तालाब, समुद्र) |
❌ |
जल से रोग, दुर्घटना |
नूतन वस्त्र पहनना |
❌ |
दरिद्रता, मानसिक पीड़ा |
जलयात्रा (नाव, समुद्र, यात्रा) |
❌ |
जल आपदा, जोखिम |
गीले वस्त्र पहनना |
❌ |
वात-रोग, त्वचा रोग |
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