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मूल नक्षत्र कथा,नृसिंह,शिव-भीष्ममूल शांति कथा,गण्डमूल दोष

 1. मूल नक्षत्र में कथा-वाचन , शुभ हैं:क्या करें?

           शिव, नृसिंह, काली या दुर्गा से संबंधित उपाख्यानों का पाठ

  • कर्म-विनाश, रोग शमन, या पितृ दोष निवारण हेतु कथा

📖 अनुकूल कथाएँ:

  • "कृष्ण-कालिय नाग दमन कथा"जल दोष निवारण हेतु
  • "शिव-भीष्म संवाद"गण्डमूल नक्षत्र शांति हेतु
  • "नृसिंह अवतार कथा"संकटहरण हेतु
  • "मूल शांति कथा"गण्डमूल शांति के शास्त्रीय विधान के रूप में

🔸 2. शास्त्रीय दृष्टिकोण:

स्रोत

विवरण

निर्णयसिंधु

मूल नक्षत्र में यदि कोई विशेष कार्य टालना संभव न हो, तो "मूल शांति पाठ" अथवा कथा-वाचन करने से दोष शांत होता है।

भद्रबाहु संहिता

रोग, पीड़ा से बचने के लिए मूल काल में शिवकथा या स्तुति का पाठ करें।

कालप्रदीपिका

मूल नक्षत्र में महादेव कथा, नवग्रह स्तोत्र, नृसिंह कथा लाभकारी मानी गई है।

🌿 1. मूल शांति कथा (संक्षिप्त)

🕉गण्डमूल दोष शांति हेतु परंपरागत कथा

प्राचीन काल में एक पुण्यात्मा राजा के घर पुत्र उत्पन्न हुआ।
ज्योतिषियों ने बताया – "यह बालक मूल नक्षत्र में जन्मा है, अतः गण्डमूल दोष से युक्त है।"
बालक के जन्म के बाद अचानक राज्य में रोग, दरिद्रता, जल आपदा और असमय मृत्यु जैसे संकट आने लगे।
राजा चिंतित हुआ और महर्षि वशिष्ठ के पास गया।
वशिष्ठ जी ने कहा
हे राजन्! यह गण्डमूल दोष है, इसका उपाय है मूल शांति पूजा, मूल नक्षत्र के दिन बालक के नाम से कथा, हवन, और ब्राह्मण पूजन करें।
राजा ने वैसा ही किया मूल शांति कथा सुनकर, हवन कर ब्राह्मणों को दक्षिणा दी और बालक को नववस्त्र पहनाकर प्रथम बार अन्न का सेवन कराया।
उसी क्षण से समस्त संकट दूर हो गए।
बालक दीर्घायु, बलवान और तेजस्वी हुआ।

📿 फल:
जो श्रद्धा से यह कथा सुनता या सुनाता है, उसके मूल दोष शांत होते हैं, संतान सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।


🦁 2. नृसिंह अवतार कथा (संक्षिप्त)

🕉संकटहरण व रोगनाश हेतु उपयुक्त मूल नक्षत्र में वाचनीय

प्राचीन समय में हिरण्यकशिपु नामक राक्षस ने कठोर तप कर ब्रह्मा से वर प्राप्त किया कि वह न किसी मनुष्य से मरेगा, न पशु से; न दिन में, न रात में; न धरती पर, न आकाश में।
उसने अहंकारवश स्वयं को ईश्वर घोषित कर दिया।
उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।
पिता ने अनेक बार उसे मारने का प्रयास किया, परंतु वह बच गया।
अंततः एक दिन हिरण्यकशिपु ने खम्भे को लात मारी और कहा – "कहाँ है तेरा विष्णु?"
उसी क्षण खम्भे से प्रकट हुए भगवान नृसिंहअर्द्ध-मानव, अर्द्ध-सिंह रूप में।
उन्होंने हिरण्यकशिपु को संध्या के समय, अपनी गोद में रखकर, नखों से चीरकर मारा वरदान का उल्लंघन किए बिना।
उन्होंने भक्त प्रह्लाद को आशीर्वाद दिया और संसार में धर्म की पुनः स्थापना की।

📿 फल:
जो व्यक्ति संकट में नृसिंह कथा का श्रवण करता है, उसके रोग, भय, बंधन, और शत्रु का नाश होता है।

"ॐ नमो भगवते नृसिंहाय शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा।"

🌿 1. मूल शांति संक्षिप्त मंत्र

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः मूलाय नमः।
ॐ मङ्गलाय मङ्गलं कर्तुमिच्छामि।
मूल नक्षत्र शांति के लिए विशेष।


🦁 2. नृसिंह प्रार्थना मंत्र

ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं
ज्वलन्तं सर्वतोमुखं।
नृसिंहं भीषणं भद्रं
मृत्युर्मृत्युं नमाम्यहम्॥

( मैं उस नृसिंह स्वरूप महाविष्णु को नमस्कार करता हूँ जो उग्र और वीर हैं, सर्वदिशा में मुख हैं, भीषण और शुभ हैं, और मृत्यु को मृत्यु से दूर करते हैं।)


🔸 2. शास्त्रीय दृष्टिकोण:

स्रोत

विवरण

निर्णयसिंधु

मूल नक्षत्र में यदि कोई विशेष कार्य टालना संभव न हो, तो "मूल शांति पाठ" अथवा कथा-वाचन करने से दोष शांत होता है।

भद्रबाहु संहिता

रोग, पीड़ा से बचने के लिए मूल काल में शिवकथा या स्तुति का पाठ करें।

कालप्रदीपिका

मूल नक्षत्र में महादेव कथा, नवग्रह स्तोत्र, नृसिंह कथा लाभकारी मानी गई है।


🌿 1. मूल शांति संक्षिप्त मंत्र

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः मूलाय नमः।
ॐ मङ्गलाय मङ्गलं कर्तुमिच्छामि।
मूल नक्षत्र शांति के लिए विशेष।


🦁 2. नृसिंह प्रार्थना मंत्र

ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं
ज्वलन्तं सर्वतोमुखं।
नृसिंहं भीषणं भद्रं
मृत्युर्मृत्युं नमाम्यहम्॥

( मैं उस नृसिंह स्वरूप महाविष्णु को नमस्कार करता हूँ जो उग्र और वीर हैं, सर्वदिशा में मुख हैं, भीषण और शुभ हैं, और मृत्यु को मृत्यु से दूर करते हैं।)जो जल दोष निवारण और मूल नक्षत्र शांति के लिए शास्त्रसम्मत माने गए हैं।


1. कृष्ण-कालिय नाग दमन कथा

(जल दोष निवारण हेतु)

📜 कथासार:

कृष्ण ने कालिय नाग का दमन किया था जो यमुना नदी के जल को विषैला कर रहा था। यह कथा जल दोष के निवारण और शुद्धि के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।

🔱 श्लोक (भागवत पुराण 10.16.30):

स तु तदा कालियम् अभिव्याघातं गदया मघवा।
पातयामास सर्वशो रणितः ससर्ज चानलम्॥

तत्पश्चात कृष्ण ने अपने गदा से कालिय नाग पर प्रहार किया और उसे नदी से बाहर निकाल दिया। यह कृत्य जल की अशुद्धि को दूर करता है।


2. शिव-भीष्म संवाद(गण्डमूल नक्षत्र शांति हेतु)

📜 कथासार:

भीष्म पितामह ने युद्ध से पहले शिवजी से अपने पापों की शांति हेतु संवाद किया था। यह संवाद मूल नक्षत्र दोष शांति के लिए आदर्श माना जाता है।

🔱 श्लोक (शिवपुराण से संदर्भ):

नमो भगवते महादेवाय शान्ताय च विभुम्।
शिवाय त्रिनेत्राय भवभयहराय नमो नमः॥

मैं परम शिव, जो त्रिनेत्रधारी हैं और संसार के भय को हरने वाले हैं, उनका नमस्कार करता हूँ।


🔹 दोनों कथाओं का उपयोग मूल दोष निवारण और जल दोष शमन के लिए शुभ माना गया है।

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1. कृष्ण-कालिय नाग दमन कथा

(जल दोष निवारण हेतु)


🌊 कथा:

यमुना नदी के तट पर एक बड़ा विषैला नाग रहता था, जिसका नाम कालिय था। वह यमुना के जल को अत्यंत प्रदूषित कर देता था जिससे आसपास के जीव-जंतु और मनुष्य कष्ट में रहते थे। यह नाग इतना शक्तिशाली था कि कोई भी उसे हरा नहीं पाता था।

एक दिन भगवान कृष्ण, जो बचपन में गोकुल के पास रहते थे, ने इस नाग के दुष्ट प्रभाव को खत्म करने का निर्णय लिया। वे यमुना नदी में उतरे और कालिय नाग के साथ युद्ध किया। अपने दिव्य शक्ति और तेज से कृष्ण ने कालिय को हराया, उसे नदी के बाहर निकलने पर मजबूर किया और फिर नाग ने कृष्ण के चरणों में शीश नवाया।

इस घटना से यमुना का जल शुद्ध हो गया और सभी जल दोष समाप्त हो गए। यह कथा हमें सिखाती है कि बुरी शक्तियों का अंत ईश्वर की कृपा से संभव है और जल के दूषित प्रभाव से बचाव आवश्यक है।


🕉मंत्र-संहिता:

  1. कालिय दमन मंत्र:

ॐ श्रीकृष्णाय नमः।
ॐ मृदुभिर्विनम्रैः शमिभिर्भवतु शुभं।
कालियदमनाय नमः॥

2.   शुभ जल दोष निवारण मंत्र:

ॐ सोमसुदधौ जलं शुद्धिं कुरु ते।
मङ्गलाय मङ्गलं कर्तुमिच्छामि॥


2. शिव-भीष्म संवाद

(गण्डमूल नक्षत्र शांति हेतु)


🕉कथा पूरी हिंदी में:

महाभारत के युद्ध से पूर्व, भीष्म पितामह ने अपने पापों और कर्मों की शांति के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की। वे जानते थे कि उनका जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था और वहां दोष होने के कारण जीवन में संकट संभव था। उन्होंने भगवान शिव के समक्ष पूर्ण समर्पण व्यक्त किया।

शिव ने भीष्म की प्रार्थना सुनी और उन्हें आश्वासन दिया कि वे उनके सभी दोषों और बाधाओं को दूर करेंगे। भीष्म ने शिव की भक्ति में लीन होकर अपने मन की शांति पाई।

यह संवाद हमें सिखाता है कि मूल नक्षत्र दोष हो तो भी शिव की भक्ति और शांति से सभी बाधाएं दूर हो सकती हैं।


कर्म-विनाश, रोग शमन, और पितृ दोष निवारण🕉मंत्र-संहिता:

🔱 "सावर्णि मनु की मृत्यु के बाद जीवन-शांति कथा"

(🌿 गरुड़ पुराण व ब्रह्माण्ड पुराण के प्रमाण पर आधारित)


🕉कथा सारांश (हिंदी में):

एक बार सावर्णि मनु, जिन्होंने धर्मपूर्वक राज्य किया, वृद्धावस्था में शरीर त्यागकर पितृलोक चले गए। लेकिन कुछ वर्षों पश्चात, उन्हें स्वप्न में पितरों की ओर से संदेश मिला — “भविष्य के कर्मफल से मुक्त होना हो तो पृथ्वी पर पुनः यज्ञ, दान और प्रायश्चित्त करना होगा।

उन्होंने ऋषियों से परामर्श कर एक विशेष नारायण बलि, पिंडदान, और रोग शांति यज्ञ सम्पन्न कराया, जिसमें तीन उद्देश्यों की पूर्ति हुई:

1.     कर्म-विनाशपूर्व जन्मों के बंधनों से मुक्ति।

2.     रोग शमनसूक्ष्म शरीर पर पड़े रोग-दोष का निवारण।

3.     पितृ दोष शांतिअनुत्तरित पितृ तृप्त हो गए।

इस कथा को शास्त्रों में त्रिविध शांति विधानकहा गया है।


📜 शास्त्रीय प्रमाण (गरुड़ पुराण, प्रेतखण्ड, अध्याय 10):

"नारायणबलिं कृत्वा, पितृणां शान्तिकं भवेत्।
त्रिविधं दोषसम्भूतं कर्मशुद्धिं लभेन्नरः॥"

यदि कोई व्यक्ति नारायण बलि करता है, तो पितरों की शांति होती है, कर्मजनित दोष नष्ट होते हैं और शुद्धि प्राप्त होती है।


मंत्र-संहिता (संक्षिप्त जप हेतु):

1.     पितृ दोष शांति हेतु:

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय पितृशान्तिं कुरु स्वाहा॥

2.     कर्म-विनाश हेतु:

ॐ ऋणत्रय विमुक्ताय नमः॥

3.     रोग शमन हेतु:

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥


🌼 पूजन विधि सुझाव:

  • श्रावण, भाद्रपद या अमावस्या के दिन संकल्प लें।
  • तिल, कुश, जल से पिंडदान करें।
  • मंत्रों का 108 बार जप करें।
  • एक दीपक जलाकर पितरों को नमन करें।
  • रोगग्रस्त व्यक्ति का नाम लेकर त्र्यम्बकम्मंत्र का जाप करें।

 1.      शिव स्तुति मंत्र:

नमो भगवते महादेवाय शान्ताय च विभुम्।
शिवाय त्रिनेत्राय भवभयहराय नमो नमः॥

2.   मूल दोष शांति मंत्र:

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः मूलाय नमः।
ॐ मङ्गलाय मङ्गलं कर्तुमिच्छामि॥


🌟 कैसे करें प्रयोग:

  • सुबह या शाम हवन या ध्यान के दौरान इन मंत्रों का जप करें।
  • कथा के सार को ध्यान में रखते हुए श्रद्धा से पूजा करें।
  • जल दोष निवारण के लिए यमुना के जल (या स्वच्छ जल) में मन्त्रोच्चारण कर सकते हैं।
  • मूल नक्षत्र दोष शांति के लिए शिव स्तुति का नियमित पाठ करें।

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