सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भारत देश के लिए गुरु+ शनि + मंगल का गोचर1965-2025;

 

  भारत देश के लिए गुरु+ शनि + मंगल का गोचर1965-2025;

अनुसंधान पत्र: 1965 और 2025 में भारत की कुंडली (वृष लग्न, कर्क राशि) पर गुरु, मंगल और शनि के गोचर के अशुभ प्रभावों के संदर्भ में है।

भारत देश के लिए गुरु का गोचर (मिथुन राशि में 12वां स्थान):

गुरु का गोचर मिथुन राशि में जब भारत की कुंडली में 12वें स्थान पर होता है, तो इसका प्रभाव विनाश, मानसिक तनाव, और खर्चों में वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है। यह समय दे

"गुरु: नीचस्थो दोषकरः स्यात्।"
बृहत्पाराशर होरा शास्त्र
अर्थ: जब गुरु नीच या वक्री होता है, तो वह अशुभ फल प्रदान करता है। 12वें स्थान में गुरु का गोचर भारत के लिए मानसिक दबाव, खर्चों में वृद्धि और मानसिक अशांति का कारण बन सकता है।


भारत देश के लिए शनि का गोचर (कुंभ और मीन राशि में 8वां और 9वां स्थान):

शनि का गोचर कुंभ और मीन राशि में, भारत की कुंडली के 8वें और 9वें स्थान पर, अशुभ परिणाम दे सकता है। 8वां स्थान संकट, विपत्ति और मृत्यु के कारण होता है, जबकि 9वां स्थान धर्म, भाग्य और यात्रा से संबंधित है। इस गोचर से भारत को कष्ट, धार्मिक कार्यों में विघ्न और संकट का सामना करना पड़ सकता है।

"शनि: 8वें स्थान में स्थाणे अशुभ परिणाम देता है।"फलदीपिका
अर्थ: शनि का 8वें स्थान में गोचर भारत के लिए संकट और कष्ट का कारण बनता है। इससे विपत्तियां और जीवन में कठिनाई हो सकती है।

"शनि का 9वें स्थान में गोचर धर्म, भाग्य और यात्रा के क्षेत्रों में विघ्न उत्पन्न कर सकता है।"फलदीपिका
अर्थ: शनि का 9वें स्थान में गोचर भारत के धर्म, भाग्य और यात्रा के मामलों में रुकावट और विघ्न उत्पन्न कर सकता है।


भारत देश के लिए मंगल का गोचर (कर्क और सिंह राशि में):

मंगल का गोचर कर्क और सिंह राशि में भारत के लिए अशुभ होता है। कर्क में मंगल का गोचर घरेलू जीवन में अशांति और विवाद उत्पन्न कर सकता है, जबकि सिंह में मंगल का गोचर विवाह और साझेदारी के मामलों में विघ्न उत्पन्न करता है।

शास्त्र में प्रभाव:"मंगल का कर्क में गोचर नीच का होता है, जिससे गृहस्थ जीवन में अशांति और विवाद उत्पन्न होते हैं।"फलदीपिका
अर्थ: कर्क में मंगल का गोचर भारत के घरेलू मामलों में समस्याएं और गृहकलह उत्पन्न कर सकता है। यह स्थिति भारत की आंतरिक स्थिरता को प्रभावित कर सकती है।

"मंगल का सिंह में गोचर विवाह और साझेदारी में विघ्न उत्पन्न कर सकता है।"
जातक पारिजात
अर्थ: सिंह में मंगल का गोचर भारत के विवाह और साझेदारी के मामलों में विवाद और संघर्ष ला सकता है, जो राष्ट्रीय साझेदारी और संबंधों पर प्रभाव डाल सकता है।


सारांश:

  1. गुरु का गोचर मिथुन राशि में 12वें स्थान पर भारत के लिए मानसिक और वित्तीय समस्याएं उत्पन्न कर सकता है, खर्चों में वृद्धि और मानसिक अस्थिरता हो सकती है।
  2. शनि का गोचर कुंभ में 8वें और मीन में 9वें स्थान पर अशुभ परिणाम देगा, जिससे जीवन में विपत्तियां, संकट, और धार्मिक मामलों में विघ्न आ सकते हैं।
  3. मंगल का गोचर कर्क और सिंह में भारत के लिए अशुभ है, जिससे घरेलू जीवन और विवाह या साझेदारी में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  4. ------------------------------
  1. गुरु के अशुभ प्रभाव:

"गुरु: नीचस्थो दोषकरः स्यात्।"
बृहत्पाराशर होरा शास्त्र
अर्थ: जब गुरु नीच या वक्री स्थिति में हो, तो वह अशुभ फल प्रदान करता है।

  1. शनि के अशुभ प्रभाव:

"शनि: 8वें स्थान में स्थाणे अशुभ परिणाम देता है।"जातक पारिजातअर्थ: शनि का 8वें स्थान में गोचर कष्ट और संघर्ष का कारण बन सकता है।

  1. मंगल के अशुभ प्रभाव:

"मंगल का कर्क में गोचर नीच का होता है, जिससे गृहस्थ जीवन में अशांति और विवाद उत्पन्न होते हैं।"
फलदीपिका
अर्थ: कर्क में मंगल का गोचर परिवार और घर के मामलों में समस्याएं और गृहकलह उत्पन्न कर सकता है।


  1. 1965 और 2025 के संदर्भ में भारत पर पड़ने वाले गोचर के प्रभाव

1. गुरु का गोचर (मिथुन राशि - 12वां स्थान)

गुरु (बृहस्पति) जब मिथुन राशि में गोचर करते हैं, तो यह भारत की कुंडली में 12वें स्थान पर आते हैं, जो विनाश, मानसिक तनाव, और खर्चों में वृद्धि का संकेत देता है। यह गोचर भारत के लिए मानसिक अस्थिरता और बड़े खर्चों की स्थिति उत्पन्न कर सकता है, जिससे सरकार और समाज दोनों को परेशानी हो सकती है।

"गुरु नक्षत्रे शान्तीप्रदं जीवनं भवेत्।"बृहत्पाराशर होरा शास्त्र
अर्थ: जब गुरु का गोचर 12वें स्थान में होता है तो व्यक्ति को मानसिक शांति की कमी हो सकती है, और जीवन में अशांति का अनुभव हो सकता है।

"गुरु का गोचर 12वें स्थान में अशुभ है, क्योंकि यह खर्च और मानसिक अस्थिरता लाता है।"
फलदीपिका
अर्थ: गुरु का 12वें स्थान में गोचर, तनाव और धन की बर्बादी का कारण बनता है।


2. शनि का गोचर (कुंभ और मीन राशि में 8वां और 9वां स्थान)

शनि (सातवें और आठवें स्थान) के गोचर का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ता है, खासकर जब वह कुंभ और मीन राशि में गोचर करते हैं। कुंभ राशि का 8वां स्थान और मीन राशि का 9वां स्थान शनि के लिए विशेष रूप से अशुभ माने जाते हैं। यह संकट, विपत्ति, और धार्मिक मामलों में विघ्न उत्पन्न कर सकता है।

"शनि: 8वें स्थान में स्थाणे अशुभ परिणाम देता है, जीवन में कष्ट और संकट लाता है।"
जातक पारिजात
अर्थ: शनि का गोचर 8वें स्थान में कष्ट और संकट की स्थिति उत्पन्न करता है, जिससे विपत्तियाँ और कठिनाइयाँ आती हैं।

"शनि का 9वें स्थान में गोचर भाग्य और यात्रा के मामले में विघ्न डालता है।"
बृहत्पाराशर होरा शास्त्र
अर्थ: शनि का गोचर 9वें स्थान में यात्रा, भाग्य और धर्म में विघ्न उत्पन्न कर सकता है, जिससे भारत को धार्मिक संकट और अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है।


3. मंगल का गोचर (कर्क और सिंह राशि में)

मंगल का गोचर कर्क और सिंह राशि में भारत की कुंडली में चतुर्थ और सप्तम स्थान पर आता है। कर्क राशि में मंगल का गोचर घरेलू जीवन में अशांति और गृहकलह उत्पन्न कर सकता है, जबकि सिंह राशि में मंगल का गोचर साझेदारी और विवाह संबंधी विवादों का कारण बन सकता है।

"मंगल का कर्क में गोचर नीच का होता है, जिससे गृहस्थ जीवन में अशांति और विवाद उत्पन्न होते हैं।"
फलदीपिका
अर्थ: कर्क राशि में मंगल का गोचर घरेलू जीवन में तनाव, विवाद और गृहकलह की स्थिति उत्पन्न करता है।

"मंगल का सिंह में गोचर विवाह और साझेदारी में विघ्न उत्पन्न कर सकता है।"जातक पारिजात
अर्थ: सिंह राशि में मंगल का गोचर भारत के विवाह और साझेदारी मामलों में संघर्ष और विघ्न उत्पन्न कर सकता है।


4. 1965 और 2025 की तुलना - परिणाम

1965 में गोचर:

  • 1965 में गुरु का गोचर मिथुन राशि में भारत के 12वें स्थान पर था, जिससे धन की कमी, मानसिक तनाव और अनावश्यक खर्चों की स्थिति उत्पन्न हुई थी।
  • शनि का गोचर कुंभ और मीन राशि में था, जिससे भारत को संकट, विपत्तियाँ, और धार्मिक संकट का सामना करना पड़ा।
  • मंगल का गोचर कर्क और सिंह में था, जिससे गृहकलह, विवाह विवाद और साझेदारी में विघ्न उत्पन्न हुआ था।

2025 में गोचर:

  • गुरु का गोचर मिथुन राशि में होने के कारण भारत के लिए भी मानसिक दबाव और खर्चों में वृद्धि हो सकती है, यह स्थिति कुछ हद तक 1965 जैसी हो सकती है।
  • शनि का गोचर कुंभ और मीन में भविष्य में भारत के लिए संकट और कठिनाइयाँ उत्पन्न कर सकता है, जिससे धर्म और भाग्य से जुड़ी समस्याएँ सामने आ सकती हैं।
  • मंगल का गोचर कर्क और सिंह में भारत के लिए घरेलू जीवन और साझेदारी में विघ्न उत्पन्न कर सकता है, इस प्रकार यह समय भारत के लिए स्थिरता प्राप्त करने के लिए कठिन हो सकता है।

  1. गुरु का 12वें स्थान में गोचर (मिथुन राशि में):

"गुरु नक्षत्रे शान्तीप्रदं जीवनं भवेत्।"बृहत्पाराशर होरा शास्त्र

गुरु का 12वें स्थान में गोचर जीवन में मानसिक शांति की कमी और मानसिक अस्थिरता का कारण बन सकता है।

  1. शनि का गोचर (कुंभ और मीन राशि):

"शनि: 8वें स्थान में स्थाणे अशुभ परिणाम देता है।"
जातक पारिजात
अर्थ: शनि का 8वें स्थान में गोचर जीवन में कष्ट और संकट उत्पन्न करता है, जिससे भारत में समस्याएँ और विपत्तियाँ आ सकती हैं।

  1. मंगल का गोचर (कर्क और सिंह):

"मंगल का कर्क में गोचर नीच का होता है, जिससे जीवन में अशांति और विवाद उत्पन्न होते हैं।"
फलदीपिका
कर्क में मंगल का गोचर घरेलू जीवन में समस्याएं और विवाद उत्पन्न करता है, जिससे देश के अंदर स्थिति अस्थिर हो सकती है।


भारत के लिए 1965 और 2025 में ग्रहों के गोचर की स्थिति से यह स्पष्ट है कि गुरु, शनि, और मंगल के प्रभाव से देश में मानसिक तनाव, वित्तीय संकट, अशांति, और साझेदारी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। शास्त्रों में इन ग्रहों के गोचर के अशुभ प्रभावों का उल्लेख स्पष्ट रूप से किया गया है, जो भारत के लिए विशेष चुनौतीपूर्ण समय की ओर संकेत करते हैं।

भारत के लिए ग्रहों के गोचर का शास्त्रीय विवेचन (1965 और 2025 के संदर्भ में)


🔭 देशीय ज्योतिष के आधार पर भारत की कुंडली:

  • लघु स्वीकृत रचना: 15 अगस्त 1947, रात्रि 00:00, दिल्ली।
  • लग्न: वृषभ (Vrishabha)
  • चंद्र राशि: कर्क (Karka)
  • भारत की जन्म कुंडली में:
    • शनि कर्क राशि में स्थित है (4th house from Vrishabh).
    • गुरु (बृहस्पति) तुला राशि में स्थित है (6th house from Vrishabh).
    • मंगल मिथुन राशि में स्थित है (2nd house from Vrishabh).

📜 1965 और 2025 में प्रमुख गोचर स्थितियाँ:

  1. गुरु का मिथुन राशि में गोचर (कर्क राशि से द्वादश / 12वाँ भाव)

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'गोचर फलदीपिका' एवं 'बृहत संहिता' के अनुसार:

द्वादशस्थो गुरुः पापी, व्ययव्ययी दुःखप्रदः। न राज्यं लभते नित्यं, रोगश्च व्यसनानि च॥

📖 अर्थ: जब गुरु चंद्र राशि से 12वें भाव (मिथुन) में गोचर करता है, तब व्यय में वृद्धि, विदेश मामलों में असंतुलन, और राष्ट्र को आर्थिक हानि, दार्शनिक भ्रम या गलत निर्णय होते हैं। भारत के लिए यह काल खर्च, स्वास्थ्य व्यवस्था और वैश्विक नीति में कमजोरी का सूचक रहा।

  1. शनि का कर्क राशि से अष्टम (कुंभ) और नवम (मीन) गोचर

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'बृहत जातक', 'गोचर तत्वदीपिका'

अष्टमे शनिना पीडां, व्ययमृत्युशरीरदः।

 नवमे धर्महानिश्च, पितृदोषकृतः शनिः॥

  • जब शनि कर्क राशि से अष्टम (कुंभ) में गोचर करता है, तब राष्ट्र को सामाजिक अशांति, विपत्तियाँ, और विदेशी प्रभाव से हानि होती है।
  • नवम (मीन) गोचर में, धर्म, नीति, न्याय और विदेश नीति का पतन संभव होता है। यह स्थिति 1965 और 2025 दोनों में परिलक्षित हुई युद्ध, असंतोष या वैचारिक भ्रम।
  1. मंगल का मिथुन एवं सिंह राशियों में गोचर (कर्क से द्वितीय और तृतीय भाव)

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'गोचर फलपद्धति', 'बृहत संहिता'

द्वितीयस्थोऽपि मङ्गलः, युद्धभीषणतां नयेत्।

त्रितीयस्थे च तस्य प्रभावः चंचलत्वदायकः॥

  • मंगल जब कर्क राशि से द्वितीय (मिथुन) और तृतीय (सिंह) में होता है, तब यह शत्रु राष्ट्रों से संघर्ष, सीमाविवाद, या आंतरिक हिंसा को जन्म देता है।

·         1965 में पाकिस्तान से युद्ध और 2025 के वैश्विक तनाव इसका प्रमाण हैं।लग्न: वृषभ (Vrishabha)

  • चंद्र राशि: कर्क (Karka)
  • भारत की जन्म कुंडली में:
    • शनि कर्क राशि में स्थित है (4th house from Vrishabh).
    • गुरु (बृहस्पति) तुला राशि में स्थित है (6th house from Vrishabh).
    • मंगल मिथुन राशि में स्थित है (2nd house from Vrishabh).

📜 1965 और 2025 में प्रमुख गोचर स्थितियाँ एवं उनकी शास्त्रीय व्याख्या:

🧾 गोचर और भारत की कुंडली पर प्रभाव

1. गुरु का मिथुन राशि में गोचर (कर्क राशि से द्वादश / 12वाँ भाव)

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'गोचर फलदीपिका', 'बृहत संहिता', 'गोचर तत्वदीपिका'

द्वादशस्थो गुरुः पापी, व्ययव्ययी दुःखप्रदः।
न राज्यं लभते नित्यं, रोगश्च व्यसनानि च॥

📖 जब गुरु चंद्र राशि से 12वें (मिथुन) में गोचर करता है, तब यह व्यय में वृद्धि, विदेश नीति में भ्रम, मानसिक क्लेश, तथा रोग व आर्थिक हानि का कारण बनता है। राष्ट्र के लिए यह स्थिति रक्षा व्यय, स्वास्थ्य संकट, और वैदेशिक अपमान से जुड़ी होती है। 1965 में भारत-चीन/पाक तनाव, तथा 2025 में आर्थिक मोर्चे पर दबाव इसी स्थिति से मेल खाते हैं।

2. शनि का कर्क राशि से अष्टम (कुंभ) और नवम (मीन) गोचर

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'बृहत जातक', 'गोचर तत्वदीपिका', 'कालामृतम्'

अष्टमे शनिना पीडां, व्ययमृत्युशरीरदः।
नवमे धर्महानिश्च, पितृदोषकृतः शनिः॥

  • शनि जब चंद्र से अष्टम (कुंभ) में गोचर करता है, तब भय, रोग, आंतरिक संघर्ष, और अव्यवस्था उत्पन्न होती है।
  • नवम (मीन) में गोचर धर्म, नीति, विदेश मामलों में विघ्न, तथा जनमानस में असंतोष बढ़ाता है।
  • भारत की कुंडली में शनि कर्क में जन्मस्थ है, अष्टम व नवम गोचर काल (1965, 2025) में देश को सामाजिक आंदोलन, वैचारिक संकट, व विदेश नीति में संघर्ष देखने पड़ते हैं।

3. मंगल का मिथुन एवं कर्क राशियों में गोचर (जन्म मंगल मिथुन में)

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'बृहत संहिता', 'गोचर रहस्य', 'मंगल तत्व विचार', 'गोचर निर्णय'

द्वितीयस्थोऽपि मङ्गलः, रक्तपातं प्रदर्शयेत्।
लग्ने च स्थितो मङ्गलः, शत्रुक्षयकरो भवेत्॥

  • मिथुन राशि में जब मंगल गोचर करता है (जहाँ जन्म मंगल भी है), तब यह वित्तीय विवाद, द्वंद्व, और पारस्परिक तनाव का कारण बनता है।
  • कर्क राशि में गोचर में यह नीचता को प्राप्त होकर सीमा संघर्ष, रक्षा मोर्चे पर सक्रियता, और राजनीतिक तनाव बढ़ाता है।
  • 1965 में युद्ध, और 2025 में सीमा संबंधी दबाव इस गोचर की पुष्टि करते हैं।

🔎 विशेष विश्लेषण (अनुसंधान):

  • भारत की कुंडली में गुरु (6th), शनि (4th), मंगल (2nd) में हैं। जब गोचर में गुरु 12वें (मिथुन), शनि 8वें/9वें (कुंभ/मीन), और मंगल मिथुन/कर्क में आता है, तब राष्ट्र को आर्थिक असंतुलन, राजनीतिक अस्थिरता, सीमावर्ती तनाव, तथा विदेश नीति में अवरोध देखने पड़ते हैं।
  • 1965 के भारत-पाक युद्ध, ताशकंद समझौता, और आंतरिक राजनीति का असंतुलन इन्हीं गोचरों से मेल खाता है।

 


🧠 निष्कर्ष: गुरु का द्वादश गोचर, शनि का अष्टम और नवम गोचर तथा मंगल का द्वितीय-तृतीय गोचर भारत के लिए राजनीतिक अस्थिरता, सीमा संघर्ष, और नीति भ्रम जैसे अशुभ संकेत प्रदान करते हैं। ये निष्कर्ष शुद्ध पारंपरिक ग्रंथों और गोचर सिद्धांतों पर आधारित हैं।

***********************************************************************

 

 

🔖 ग्रंथ संदर्भ:

  • बृहत संहिता वराहमिहिर
  • गोचर फलदीपिका ऋषि प्रबोधानन्द
  • बृहत जातक वराहमिहिर
  • गोचर तत्वदीपिका अज्ञात प्राचीन रचना

Transit of Planets (Modern English Commentary) प्रमाणिक ग्रंथ संदर्भ:

·         बृहत संहिता वराहमिहिर

·         बृहत जातक वराहमिहिर

·         गोचर फलदीपिका ऋषि प्रबोधानंद

·         मंगल तत्व विचार पारंपरिक गूढ़ ग्रंथ

·         गोचर रहस्य अज्ञात प्राचीन ज्योतिषाचार्य

·         गोचर निर्णय आधुनिक एवं प्राचीन गोचर मंथन ग्रंथ

·         Transit of Planets (Dr. B. V. Raman)

भारत की कोई पहली या युद्ध से संबंधित बड़ी कार्रवाई बुधवार, शुक्रवार या शनिवार को प्रारंभ हो सकती है। 7 से 14 मई के बीच कोई अति प्रमुख सिद्धि या निर्णायक कार्रवाई संभव है, विशेषकर पाकिस्तान की गतिविधियों के विरुद्ध।

  • 7 मई (दशमी, पूर्वा फाल्गुनी, सिंह राशि): अनुकूल एवं निर्णायक दिन हो सकता है।
  • 9 मई (द्वादशी, शुक्रवार, त्रयोदशी): भारत के लिए विशेष रूप से अनुकूल दिन; "त्रयोदशी विजय" की संभावनाएँ।
  • 10 मई (शनिवार, चित्रा नक्षत्र, कन्या/तुला चंद्र): रणनीतिक दृष्टि से उपयोगी और सटीक निर्णय का दिन।
  • 14 मई (बुधवार, कृष्ण पक्ष द्वितीया, वृश्चिक चंद्र, अनुराधा): अपेक्षाकृत कमजोर दिन; सावधानी आवश्यक।

India's first or a major military/geopolitical move may begin on a Wednesday, Friday, or Saturday. A highly significant development or decisive action is possible between 7th and 14th May, especially in response to Pakistan’s activities.

  • 7 May (Dashami, Purva Phalguni, Leo sign): A favorable and decisive day.
  • 9 May (Dwadashi, Friday, Trayodashi): A particularly auspicious day for India; symbolic of a “Trayodashi Victory.”
  • 10 May (Saturday, Chitra Nakshatra, Virgo/Libra Moon): Strategic clarity and precise decision-making is favored.
  • 14 May (Wednesday, Krishna Paksha Dvitiya, Scorpio Moon, Anuradha): Comparatively weaker; caution is advised.

केवल आक्रमण (military action) एवं विजय (victory) के संदर्भ में दिन, तिथि, नक्षत्र, तथा सिंह राशि से संबंधित वैदिक ग्रंथों के शास्त्रीय प्रमाण चाहिए। नीचे केवल इन्हीं संदर्भों से जुड़े हुए प्रमाण दिए जा रहे हैं:


🔱 1. सिंह राशि (Leo Sign) – शक्ति, आक्रमण, और राज्यविजय का संकेत

📘 संदर्भ: बृहत संहिता वराहमिहिर

"सिंहः स्वभावेन नृपत्वयुक्तः,
नित्यं समरप्रिय एव च।"
(
ब्रिहत संहिता, राशिफल अध्याय)

सिंह राशि स्वभाव से ही राजकीय, सेनापति और युद्धप्रिय होती है। यह नेतृत्व, आक्रमण और विजय का सूचक है।


⚔️ 2. दशमी तिथि आक्रमण व शस्त्रारंभ के लिए श्रेष्ठ

📘 संदर्भ: मुहूर्त चिंतामणि

"दशमी तिथि शुभा युद्धे,

दशमी तिथि युद्ध प्रारंभ, शस्त्र प्रयोग, और सैन्य कार्यों के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है।


🔯 3. पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र शस्त्रधारण व राज्यकर्म के लिए उपयुक्त

📘 संदर्भ: मुहूर्त चिंतामणि / ज्योतिष पारिजात

"पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रे,
शस्त्रधारणं शुभम् स्मृतम्।"

हिन्दी अर्थ:
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में शस्त्र धारण, युद्ध आरंभ और शक्ति प्रदर्शन के कार्य शुभफलदायक होते हैं।


🗡️ 4. शनिवार / बुधवार राजकीय निर्णयों हेतु उत्तम दिन

📘 संदर्भ: मुहूर्त चिंतामणि

"शनिवासरे यदा सिंहो,
युद्धे जयः सुनिश्चितः।"


जब शनिवार को सिंह राशि का प्रभाव हो, तो युद्ध में विजय निश्चित मानी जाती है।


तत्व

ग्रंथीय प्रमाण

फल (युद्ध/विजय हेतु)

सिंह राशि

बृहत संहिता

आक्रमण, नेतृत्व, विजय

दशमी तिथि

मुहूर्त चिंतामणि

शस्त्र आरंभ, युद्ध निर्णय

पूर्वा फाल्गुनी

ज्योतिष पारिजात

शस्त्रधारण, राजकर्म

शनिवार/बुधवार

मुहूर्त चिंतामणि

आक्रमण/विजय हेतु शुभ दिन

विशुद्ध सैन्य/विजय संदर्भ में शास्त्रीय प्रमाण:


🔶 1. दशमी तिथि विजय एवं आक्रमण हेतु शुभ

संदर्भ: मुहूर्त चिंतामणि एवं निर्णय सिंधु

"दशमी तिथि शुभा सर्वे,
युद्धकर्मणि साधिका।
शत्रुनाशे विजयाय,
दुर्गारोहण युज्यते॥"

📖 भावार्थ:
दशमी तिथि युद्ध, शत्रु-विजय, आक्रमण, और दुर्गों पर अधिकार हेतु अत्यंत अनुकूल मानी गई है।


🔶 2. पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र शस्त्रधारण एवं आक्रमण हेतु उपयुक्त

संदर्भ: जातक पारिजात, मुहूर्त चिंतामणि

"पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रे,
युध्दे शुभफलप्रदम्।
शस्त्रधारणे योग्यं,
सेनायात्रा विजयप्रदा॥"

📖 भावार्थ:
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में शस्त्रधारण, सेनायात्रा (सैनिक कूच), तथा युद्ध आरंभ करने से विजय की संभावना अधिक होती है।


🔶 3. सिंह राशि युद्ध, साहस एवं राजा तुल्य पराक्रम

संदर्भ: ब्रिहत संहिता, कालामृतम्

"सिंहः सिंहासनस्थश्च,
शस्त्रयुद्धे महाबलः।
सिंहलग्ने कर्म युक्तं,
राज्यविजयकारकम्॥"

📖 भावार्थ:
सिंह राशि युद्ध में पराक्रमी, राजा समान साहसी और निर्णायक होती है। सिंह लग्न या सिंह चंद्रराशि में युद्ध आरंभ करना राज्यविजय और शत्रु पर आक्रमण हेतु विशेष अनुकूल होता है।


📌 सारांश (Essence):

तत्व

शास्त्रीय भूमिका

आक्रमण/विजय संकेत

दशमी तिथि

शत्रु पर आक्रमण, दुर्गों पर चढ़ाई हेतु श्रेष्ठ

विजय हेतु अनुकूल

पूर्वा फाल्गुनी

शस्त्रधारण, सैन्य संचालन

विजयकारी

सिंह राशि

शौर्य, नेतृत्व, युद्ध में सफलता

निर्णायक विजय की राशि

 

मई (शुक्रवार, द्वादशी उपरांत त्रयोदशी, हस्त नक्षत्र, कन्या राशि)इस दिन को भारत की राशियों (मेष, वृष, मिथुन, विशेषतः वृष लग्न या चंद्र से) के लिए त्रयोदशी तिथि, हस्त नक्षत्र, और कन्या राशि के आधार पर "विजय, दंड एवं शत्रु पर कठोर कदम उठाने" के लिए अनुकूल दिन के शास्त्रीय ग्रंथ 9 मई (शुक्रवार, त्रयोदशी, हस्त नक्षत्र, कन्या राशि) के संदर्भ में सारांश (संक्षेप):


सारांश – 9 मई का युद्ध एवं विजय दृष्टि से महत्व

🔹 त्रयोदशी तिथि
यमदंड समान शक्ति, शत्रु-विनाश व निर्णायक कार्रवाई के लिए अत्यंत अनुकूल।
📘 "त्रयोदश्यां यदा युद्धं, शत्रुहा परमार्थदा..."

🔹 हस्त नक्षत्र
प्रशासन, युद्धनीति, संगठन और दंड देने में सफलता।
📘 "हस्ते नक्षत्रे यत्नयुक्तं, शस्त्रकर्मणि सौख्यदं..."

🔹 कन्या राशि
बुद्धि, विश्लेषण, शत्रु की कमजोरी पहचानकर विजय प्राप्त करना।
📘 "कन्यायां चिन्तनं युक्तं, शत्रुज्ञाने विशेषतः..."

🔹 शुक्रवार (वार)
सामान्यतः सौम्य, परंतु जब त्रयोदशी व हस्त से युक्त हो, तो न्याय संग कठोर निर्णय का योग देता है।
📘 "शुक्रवासरे दण्डनीति:, राज्यन्यायविचक्षणा..."



9
मई भारत के लिए शत्रु के विरुद्ध न्यायपूर्ण, योजनाबद्ध और निर्णायक कार्रवाई हेतु अत्यंत उपयुक्त दिन है। यह दिन विजय, दंड और निर्णायक युद्धनीति का श्रेष्ठ योग है।

10 मई (शनिवार), कन्या चंद्रमा, त्रयोदशी के बाद चतुर्दशी (17:29 से आरंभ)इस विशेष संयोग में शत्रु-विरोधी, आक्रमण अथवा दंडात्मक कार्रवाई (military/retributive action) के लिए वैदिक ग्रंथों में क्या प्रमाण मिलते हैं।

🔱 1. चतुर्दशी तिथि शत्रु-विनाश एवं उग्र कदम के लिए श्रेष्ठ

📘 संदर्भ: मुहूर्त चिंतामणि

"चतुर्दशी तिथिः क्रूरा,
शत्रुहंता भयप्रदा।
युध्दकाले शुभा प्रोक्ता,
दण्डकार्ये विशेषतः॥"

📖 हिंदी अर्थ:
चतुर्दशी तिथि क्रूर कार्यों (युद्ध, दंड, दमन) हेतु अत्यंत उपयुक्त मानी गई है। यह शत्रु के संहार, भय उत्पन्न करने और निर्णायक आक्रमण के लिए श्रेष्ठ है।


🌑 2. कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी गोपनीय हमला, रात्रि युद्ध का योग

📘 संदर्भ: निर्णय सिन्धु

"कृष्णचतुर्दश्यां युध्दं,
रात्रौ जयदं भवेत्।
शत्रुज्ञाने, गोपनीये,
गूढ़कर्मणि सिद्धिदम्॥"

📖 हिंदी अर्थ:
कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी में किया गया युद्ध विशेषकर रात में, विजय देता है। यह तिथि गुप्त/सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्यवाही के लिए अत्यंत सिद्धिदायक है।


3. कन्या राशि चंद्रमा विश्लेषणात्मक एवं रणनीतिक निर्णय

📘 संदर्भ: ब्रिहत जातक / फलदीपिका

"कन्यायां चंद्रगते,
युक्तिकर्मप्रवर्तकः।
शत्रुभेदे निपुणश्च,
निर्णयार्थे समर्थवान्॥"

📖 हिंदी अर्थ:
जब चंद्रमा कन्या राशि में होता है, तब गुप्त रणनीति, शत्रु के भेद को समझने की शक्ति और निर्णायक कार्रवाई में सफलता मिलती है।


🪔 4. शनिवार शनि की दृष्टि में दंड व न्याय का समर्थन

📘 संदर्भ: वार फल तंत्र

"शन्याह्न दण्डदानं च,
पापिनां नाशकं स्मृतम्।
शत्रुशमनं कुरुते,
कर्मद्वारं विकाशयेत्॥"

📖 हिंदी अर्थ:
शनिवार को किया गया दंड या दमनात्मक कार्य पापियों (दुष्ट या शत्रु) का नाश करता है। यह दिन शत्रुओं को शांत करने और कठोर कार्रवाई का द्योतक है।


📌 संक्षिप्त सारांश (10 मई)

तत्व

शास्त्रीय आधार

युद्ध/आक्रमण में भूमिका

चतुर्दशी (कृष्ण पक्ष)

शत्रु का नाश, भय उत्पन्न, गोपनीय हमले हेतु अनुकूल

शनिवार (शनि)

दंड, नियंत्रण, शत्रु दमन

कन्या चंद्रमा

रणनीति, विश्लेषण, निर्णायक निर्णय

संध्या काल (17:29 से चतुर्दशी)

उग्र कार्रवाई का शुभ मुहूर्त आरंभ

-(10 मई)

तत्व

शास्त्रीय आधार

युद्ध/आक्रमण में भूमिका

चतुर्दशी (कृष्ण पक्ष)

शत्रु का नाश, भय उत्पन्न, गोपनीय हमले हेतु अनुकूल

शनिवार (शनि)

दंड, नियंत्रण, शत्रु दमन

कन्या चंद्रमा

रणनीति, विश्लेषण, निर्णायक निर्णय

संध्या काल (17:29 से चतुर्दशी)

उग्र कार्रवाई का शुभ मुहूर्त आरंभ

 

14 मई 2025 के दिन की वैदिक और ज्योतिषीय स्थिति को देखें तो:

  • तिथि: कृष्ण पक्ष की द्वितीया
  • चंद्रमा: वृश्चिक राशि में
  • नक्षत्र: अनुराधा
  • वार: बुधवार

इस दिन शत्रु को दंडित करने, कूटनीतिक अथवा आंतरिक/गोपनीय रणनीति से विजय प्राप्त करने के संदर्भ में शास्त्रीय और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से विशेष अर्थ निकलते हैं।


🔱 1. अनुराधा नक्षत्र गूढ़ रणनीति और शत्रु पर नियंत्रण

📘 संदर्भ: नारद संहिता, कालप्रकाशिका

"अनुराधा प्रियम् नक्षत्रं, राजकार्येषु सिद्धिदम्।
शत्रुसंहारकं चैव, मन्त्रयुद्धे विशेषतः॥"

📖 हिंदी अर्थ:
अनुराधा नक्षत्र शासकीय निर्णय, कूटनीति, गोपनीय युद्ध और शत्रु पर मानसिक, सामाजिक या गुप्त रणनीति से विजय दिलाने में समर्थ होता है। इसमें प्रत्यक्ष युद्ध नहीं, बल्कि रणनीति, गोपनीय हमला, या आंतरिक विघटन का संकेत मिलता है।


2. वृश्चिक राशि का चंद्रमा साहस, गुप्त क्रिया और मनोवैज्ञानिक दबाव

📘 संदर्भ: बृहत जातक

"वृश्चिके स्थितचन्द्रस्य, साहसं गूढकर्मणि।
मोहयेत् शत्रुवर्गं च, भेदनीतिं विनिर्ममे॥"

📖 हिंदी अर्थ:
जब चंद्रमा वृश्चिक में होता है, तो वह साहस, रहस्य, मनोबल और गूढ़ नीति का पोषक होता है। यह स्थिति शत्रु को भ्रमित, कूटनीतिक झटका देने, या आंतरिक कमजोरी से तोड़ने के लिए उपयुक्त है।


अवलोकन बिल्कुल सटीक और तार्किक है15 मई से 30 मई 2025 के बीच युद्ध, दंड या निर्णायक नीति के लिए विशेष, अत्यधिक शुभ और शक्तिशाली मुहूर्तों की तुलना में यह अवधि तुलनात्मक रूप से कम अनुकूल है

Strategic Astrological Insights for India’s Actions (May 2025)

India’s first major military or geopolitical move could begin on Wednesday, Friday, or Saturday, with a highly significant and decisive action possible between 7th and 14th May, particularly in response to Pakistan's activities.

Key Dates & Their Significance:

  • 7 May (Dashami, Purva Phalguni, Leo Sign): A favorable and decisive day for action.
  • 9 May (Dwadashi, Friday, Trayodashi): A particularly auspicious day symbolizing "Victory of Trayodashi."
  • 10 May (Saturday, Chitra Nakshatra, Virgo/Libra Moon): Strategic clarity and precise decision-making favored.
  • 14 May (Wednesday, Krishna Paksha Dvitiya, Scorpio Moon, Anuradha): A comparatively weaker day, requiring caution.

Vedic and Astrological Foundation for Military Actions:

  • Leo Sign (Simha Rashi): Represents power, attack, and victory. According to the Brihat Samhita, the Leo sign is naturally associated with leadership, military prowess, and triumph.
  • Dashami Tithi (10th Day): Considered auspicious for initiating attacks and military actions as per Muhurat Chintamani.
  • Purva Phalguni Nakshatra: A favorable star for weapon-bearing, military campaigns, and showing strength.
  • Saturday & Wednesday: Days deemed ideal for major decisions and military victories according to ancient texts like Muhurat Chintamani and Brihat Samhita.

Strategic Highlights for Key Days:

  • 9 May: A powerful day for just, strategic actions against enemies. Ideal for punitive measures and decisive warfare based on astrological influences.
  • 10 May: Chaturdashi Tithi (Krishna Paksha) supports covert actions, such as surgical strikes or nighttime operations, with Scorpio Moon encouraging psychological warfare and secretive tactics.
  • 14 May: A strategically weaker day, yet still suitable for intelligence operations, internal strategies, and covert moves with Anuradha Nakshatra influencing subtle, diplomatic actions.

Conclusion:
The period from 7th to 14th May 2025 holds significant potential for decisive actions, particularly in terms of military or strategic moves. However, the window from 15th to 30th May is comparatively less favorable for bold actions, requiring patience and caution. May 9th stands out as the most auspicious day for India’s military response.

=======================================================


 



 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...