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भारत देश के लिए गुरु+ शनि + मंगल का गोचर1965-2025;

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भारत देश के लिए गुरु+ शनि + मंगल का गोचर1965-2025;

अनुसंधान पत्र: 1965 और 2025 में भारत की कुंडली (वृष लग्न, कर्क राशि) पर गुरु, मंगल और शनि के गोचर के अशुभ प्रभावों के संदर्भ में है।

भारत देश के लिए गुरु का गोचर (मिथुन राशि में 12वां स्थान):

गुरु का गोचर मिथुन राशि में जब भारत की कुंडली में 12वें स्थान पर होता है, तो इसका प्रभाव विनाश, मानसिक तनाव, और खर्चों में वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है। यह समय दे

"गुरु: नीचस्थो दोषकरः स्यात्।"
बृहत्पाराशर होरा शास्त्र
अर्थ: जब गुरु नीच या वक्री होता है, तो वह अशुभ फल प्रदान करता है। 12वें स्थान में गुरु का गोचर भारत के लिए मानसिक दबाव, खर्चों में वृद्धि और मानसिक अशांति का कारण बन सकता है।


भारत देश के लिए शनि का गोचर (कुंभ और मीन राशि में 8वां और 9वां स्थान):

शनि का गोचर कुंभ और मीन राशि में, भारत की कुंडली के 8वें और 9वें स्थान पर, अशुभ परिणाम दे सकता है। 8वां स्थान संकट, विपत्ति और मृत्यु के कारण होता है, जबकि 9वां स्थान धर्म, भाग्य और यात्रा से संबंधित है। इस गोचर से भारत को कष्ट, धार्मिक कार्यों में विघ्न और संकट का सामना करना पड़ सकता है।

"शनि: 8वें स्थान में स्थाणे अशुभ परिणाम देता है।"फलदीपिका
अर्थ: शनि का 8वें स्थान में गोचर भारत के लिए संकट और कष्ट का कारण बनता है। इससे विपत्तियां और जीवन में कठिनाई हो सकती है।

"शनि का 9वें स्थान में गोचर धर्म, भाग्य और यात्रा के क्षेत्रों में विघ्न उत्पन्न कर सकता है।"फलदीपिका
अर्थ: शनि का 9वें स्थान में गोचर भारत के धर्म, भाग्य और यात्रा के मामलों में रुकावट और विघ्न उत्पन्न कर सकता है।


भारत देश के लिए मंगल का गोचर (कर्क और सिंह राशि में):

मंगल का गोचर कर्क और सिंह राशि में भारत के लिए अशुभ होता है। कर्क में मंगल का गोचर घरेलू जीवन में अशांति और विवाद उत्पन्न कर सकता है, जबकि सिंह में मंगल का गोचर विवाह और साझेदारी के मामलों में विघ्न उत्पन्न करता है।

शास्त्र में प्रभाव:"मंगल का कर्क में गोचर नीच का होता है, जिससे गृहस्थ जीवन में अशांति और विवाद उत्पन्न होते हैं।"फलदीपिका
अर्थ: कर्क में मंगल का गोचर भारत के घरेलू मामलों में समस्याएं और गृहकलह उत्पन्न कर सकता है। यह स्थिति भारत की आंतरिक स्थिरता को प्रभावित कर सकती है।

"मंगल का सिंह में गोचर विवाह और साझेदारी में विघ्न उत्पन्न कर सकता है।"
जातक पारिजात
अर्थ: सिंह में मंगल का गोचर भारत के विवाह और साझेदारी के मामलों में विवाद और संघर्ष ला सकता है, जो राष्ट्रीय साझेदारी और संबंधों पर प्रभाव डाल सकता है।


सारांश:

  1. गुरु का गोचर मिथुन राशि में 12वें स्थान पर भारत के लिए मानसिक और वित्तीय समस्याएं उत्पन्न कर सकता है, खर्चों में वृद्धि और मानसिक अस्थिरता हो सकती है।
  2. शनि का गोचर कुंभ में 8वें और मीन में 9वें स्थान पर अशुभ परिणाम देगा, जिससे जीवन में विपत्तियां, संकट, और धार्मिक मामलों में विघ्न आ सकते हैं।
  3. मंगल का गोचर कर्क और सिंह में भारत के लिए अशुभ है, जिससे घरेलू जीवन और विवाह या साझेदारी में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  4. ------------------------------
  1. गुरु के अशुभ प्रभाव:

"गुरु: नीचस्थो दोषकरः स्यात्।"
बृहत्पाराशर होरा शास्त्र
अर्थ: जब गुरु नीच या वक्री स्थिति में हो, तो वह अशुभ फल प्रदान करता है।

  1. शनि के अशुभ प्रभाव:

"शनि: 8वें स्थान में स्थाणे अशुभ परिणाम देता है।"जातक पारिजातअर्थ: शनि का 8वें स्थान में गोचर कष्ट और संघर्ष का कारण बन सकता है।

  1. मंगल के अशुभ प्रभाव:

"मंगल का कर्क में गोचर नीच का होता है, जिससे गृहस्थ जीवन में अशांति और विवाद उत्पन्न होते हैं।"
फलदीपिका
अर्थ: कर्क में मंगल का गोचर परिवार और घर के मामलों में समस्याएं और गृहकलह उत्पन्न कर सकता है।


  1. 1965 और 2025 के संदर्भ में भारत पर पड़ने वाले गोचर के प्रभाव

1. गुरु का गोचर (मिथुन राशि - 12वां स्थान)

गुरु (बृहस्पति) जब मिथुन राशि में गोचर करते हैं, तो यह भारत की कुंडली में 12वें स्थान पर आते हैं, जो विनाश, मानसिक तनाव, और खर्चों में वृद्धि का संकेत देता है। यह गोचर भारत के लिए मानसिक अस्थिरता और बड़े खर्चों की स्थिति उत्पन्न कर सकता है, जिससे सरकार और समाज दोनों को परेशानी हो सकती है।

"गुरु नक्षत्रे शान्तीप्रदं जीवनं भवेत्।"बृहत्पाराशर होरा शास्त्र
अर्थ: जब गुरु का गोचर 12वें स्थान में होता है तो व्यक्ति को मानसिक शांति की कमी हो सकती है, और जीवन में अशांति का अनुभव हो सकता है।

"गुरु का गोचर 12वें स्थान में अशुभ है, क्योंकि यह खर्च और मानसिक अस्थिरता लाता है।"
फलदीपिका
अर्थ: गुरु का 12वें स्थान में गोचर, तनाव और धन की बर्बादी का कारण बनता है।


2. शनि का गोचर (कुंभ और मीन राशि में 8वां और 9वां स्थान)

शनि (सातवें और आठवें स्थान) के गोचर का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ता है, खासकर जब वह कुंभ और मीन राशि में गोचर करते हैं। कुंभ राशि का 8वां स्थान और मीन राशि का 9वां स्थान शनि के लिए विशेष रूप से अशुभ माने जाते हैं। यह संकट, विपत्ति, और धार्मिक मामलों में विघ्न उत्पन्न कर सकता है।

"शनि: 8वें स्थान में स्थाणे अशुभ परिणाम देता है, जीवन में कष्ट और संकट लाता है।"
जातक पारिजात
अर्थ: शनि का गोचर 8वें स्थान में कष्ट और संकट की स्थिति उत्पन्न करता है, जिससे विपत्तियाँ और कठिनाइयाँ आती हैं।

"शनि का 9वें स्थान में गोचर भाग्य और यात्रा के मामले में विघ्न डालता है।"
बृहत्पाराशर होरा शास्त्र
अर्थ: शनि का गोचर 9वें स्थान में यात्रा, भाग्य और धर्म में विघ्न उत्पन्न कर सकता है, जिससे भारत को धार्मिक संकट और अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है।


3. मंगल का गोचर (कर्क और सिंह राशि में)

मंगल का गोचर कर्क और सिंह राशि में भारत की कुंडली में चतुर्थ और सप्तम स्थान पर आता है। कर्क राशि में मंगल का गोचर घरेलू जीवन में अशांति और गृहकलह उत्पन्न कर सकता है, जबकि सिंह राशि में मंगल का गोचर साझेदारी और विवाह संबंधी विवादों का कारण बन सकता है।

"मंगल का कर्क में गोचर नीच का होता है, जिससे गृहस्थ जीवन में अशांति और विवाद उत्पन्न होते हैं।"
फलदीपिका
अर्थ: कर्क राशि में मंगल का गोचर घरेलू जीवन में तनाव, विवाद और गृहकलह की स्थिति उत्पन्न करता है।

"मंगल का सिंह में गोचर विवाह और साझेदारी में विघ्न उत्पन्न कर सकता है।"जातक पारिजात
अर्थ: सिंह राशि में मंगल का गोचर भारत के विवाह और साझेदारी मामलों में संघर्ष और विघ्न उत्पन्न कर सकता है।


4. 1965 और 2025 की तुलना - परिणाम

1965 में गोचर:

  • 1965 में गुरु का गोचर मिथुन राशि में भारत के 12वें स्थान पर था, जिससे धन की कमी, मानसिक तनाव और अनावश्यक खर्चों की स्थिति उत्पन्न हुई थी।
  • शनि का गोचर कुंभ और मीन राशि में था, जिससे भारत को संकट, विपत्तियाँ, और धार्मिक संकट का सामना करना पड़ा।
  • मंगल का गोचर कर्क और सिंह में था, जिससे गृहकलह, विवाह विवाद और साझेदारी में विघ्न उत्पन्न हुआ था।

2025 में गोचर:

  • गुरु का गोचर मिथुन राशि में होने के कारण भारत के लिए भी मानसिक दबाव और खर्चों में वृद्धि हो सकती है, यह स्थिति कुछ हद तक 1965 जैसी हो सकती है।
  • शनि का गोचर कुंभ और मीन में भविष्य में भारत के लिए संकट और कठिनाइयाँ उत्पन्न कर सकता है, जिससे धर्म और भाग्य से जुड़ी समस्याएँ सामने आ सकती हैं।
  • मंगल का गोचर कर्क और सिंह में भारत के लिए घरेलू जीवन और साझेदारी में विघ्न उत्पन्न कर सकता है, इस प्रकार यह समय भारत के लिए स्थिरता प्राप्त करने के लिए कठिन हो सकता है।

  1. गुरु का 12वें स्थान में गोचर (मिथुन राशि में):

"गुरु नक्षत्रे शान्तीप्रदं जीवनं भवेत्।"बृहत्पाराशर होरा शास्त्र

गुरु का 12वें स्थान में गोचर जीवन में मानसिक शांति की कमी और मानसिक अस्थिरता का कारण बन सकता है।

  1. शनि का गोचर (कुंभ और मीन राशि):

"शनि: 8वें स्थान में स्थाणे अशुभ परिणाम देता है।"
जातक पारिजात
अर्थ: शनि का 8वें स्थान में गोचर जीवन में कष्ट और संकट उत्पन्न करता है, जिससे भारत में समस्याएँ और विपत्तियाँ आ सकती हैं।

  1. मंगल का गोचर (कर्क और सिंह):

"मंगल का कर्क में गोचर नीच का होता है, जिससे जीवन में अशांति और विवाद उत्पन्न होते हैं।"
फलदीपिका
कर्क में मंगल का गोचर घरेलू जीवन में समस्याएं और विवाद उत्पन्न करता है, जिससे देश के अंदर स्थिति अस्थिर हो सकती है।


भारत के लिए 1965 और 2025 में ग्रहों के गोचर की स्थिति से यह स्पष्ट है कि गुरु, शनि, और मंगल के प्रभाव से देश में मानसिक तनाव, वित्तीय संकट, अशांति, और साझेदारी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। शास्त्रों में इन ग्रहों के गोचर के अशुभ प्रभावों का उल्लेख स्पष्ट रूप से किया गया है, जो भारत के लिए विशेष चुनौतीपूर्ण समय की ओर संकेत करते हैं।

भारत के लिए ग्रहों के गोचर का शास्त्रीय विवेचन (1965 और 2025 के संदर्भ में)


🔭 देशीय ज्योतिष के आधार पर भारत की कुंडली:

  • लघु स्वीकृत रचना: 15 अगस्त 1947, रात्रि 00:00, दिल्ली।
  • लग्न: वृषभ (Vrishabha)
  • चंद्र राशि: कर्क (Karka)
  • भारत की जन्म कुंडली में:
    • शनि कर्क राशि में स्थित है (4th house from Vrishabh).
    • गुरु (बृहस्पति) तुला राशि में स्थित है (6th house from Vrishabh).
    • मंगल मिथुन राशि में स्थित है (2nd house from Vrishabh).

📜 1965 और 2025 में प्रमुख गोचर स्थितियाँ:

  1. गुरु का मिथुन राशि में गोचर (कर्क राशि से द्वादश / 12वाँ भाव)

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'गोचर फलदीपिका' एवं 'बृहत संहिता' के अनुसार:

द्वादशस्थो गुरुः पापी, व्ययव्ययी दुःखप्रदः। न राज्यं लभते नित्यं, रोगश्च व्यसनानि च॥

📖 अर्थ: जब गुरु चंद्र राशि से 12वें भाव (मिथुन) में गोचर करता है, तब व्यय में वृद्धि, विदेश मामलों में असंतुलन, और राष्ट्र को आर्थिक हानि, दार्शनिक भ्रम या गलत निर्णय होते हैं। भारत के लिए यह काल खर्च, स्वास्थ्य व्यवस्था और वैश्विक नीति में कमजोरी का सूचक रहा।

  1. शनि का कर्क राशि से अष्टम (कुंभ) और नवम (मीन) गोचर

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'बृहत जातक', 'गोचर तत्वदीपिका'

अष्टमे शनिना पीडां, व्ययमृत्युशरीरदः।

 नवमे धर्महानिश्च, पितृदोषकृतः शनिः॥

  • जब शनि कर्क राशि से अष्टम (कुंभ) में गोचर करता है, तब राष्ट्र को सामाजिक अशांति, विपत्तियाँ, और विदेशी प्रभाव से हानि होती है।
  • नवम (मीन) गोचर में, धर्म, नीति, न्याय और विदेश नीति का पतन संभव होता है। यह स्थिति 1965 और 2025 दोनों में परिलक्षित हुई युद्ध, असंतोष या वैचारिक भ्रम।
  1. मंगल का मिथुन एवं सिंह राशियों में गोचर (कर्क से द्वितीय और तृतीय भाव)

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'गोचर फलपद्धति', 'बृहत संहिता'

द्वितीयस्थोऽपि मङ्गलः, युद्धभीषणतां नयेत्।

त्रितीयस्थे च तस्य प्रभावः चंचलत्वदायकः॥

  • मंगल जब कर्क राशि से द्वितीय (मिथुन) और तृतीय (सिंह) में होता है, तब यह शत्रु राष्ट्रों से संघर्ष, सीमाविवाद, या आंतरिक हिंसा को जन्म देता है।

·         1965 में पाकिस्तान से युद्ध और 2025 के वैश्विक तनाव इसका प्रमाण हैं।लग्न: वृषभ (Vrishabha)

  • चंद्र राशि: कर्क (Karka)
  • भारत की जन्म कुंडली में:
    • शनि कर्क राशि में स्थित है (4th house from Vrishabh).
    • गुरु (बृहस्पति) तुला राशि में स्थित है (6th house from Vrishabh).
    • मंगल मिथुन राशि में स्थित है (2nd house from Vrishabh).

📜 1965 और 2025 में प्रमुख गोचर स्थितियाँ एवं उनकी शास्त्रीय व्याख्या:

🧾 गोचर और भारत की कुंडली पर प्रभाव

1. गुरु का मिथुन राशि में गोचर (कर्क राशि से द्वादश / 12वाँ भाव)

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'गोचर फलदीपिका', 'बृहत संहिता', 'गोचर तत्वदीपिका'

द्वादशस्थो गुरुः पापी, व्ययव्ययी दुःखप्रदः।
न राज्यं लभते नित्यं, रोगश्च व्यसनानि च॥

📖 जब गुरु चंद्र राशि से 12वें (मिथुन) में गोचर करता है, तब यह व्यय में वृद्धि, विदेश नीति में भ्रम, मानसिक क्लेश, तथा रोग व आर्थिक हानि का कारण बनता है। राष्ट्र के लिए यह स्थिति रक्षा व्यय, स्वास्थ्य संकट, और वैदेशिक अपमान से जुड़ी होती है। 1965 में भारत-चीन/पाक तनाव, तथा 2025 में आर्थिक मोर्चे पर दबाव इसी स्थिति से मेल खाते हैं।

2. शनि का कर्क राशि से अष्टम (कुंभ) और नवम (मीन) गोचर

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'बृहत जातक', 'गोचर तत्वदीपिका', 'कालामृतम्'

अष्टमे शनिना पीडां, व्ययमृत्युशरीरदः।
नवमे धर्महानिश्च, पितृदोषकृतः शनिः॥

  • शनि जब चंद्र से अष्टम (कुंभ) में गोचर करता है, तब भय, रोग, आंतरिक संघर्ष, और अव्यवस्था उत्पन्न होती है।
  • नवम (मीन) में गोचर धर्म, नीति, विदेश मामलों में विघ्न, तथा जनमानस में असंतोष बढ़ाता है।
  • भारत की कुंडली में शनि कर्क में जन्मस्थ है, अष्टम व नवम गोचर काल (1965, 2025) में देश को सामाजिक आंदोलन, वैचारिक संकट, व विदेश नीति में संघर्ष देखने पड़ते हैं।

3. मंगल का मिथुन एवं कर्क राशियों में गोचर (जन्म मंगल मिथुन में)

📘 ग्रंथ प्रमाण: 'बृहत संहिता', 'गोचर रहस्य', 'मंगल तत्व विचार', 'गोचर निर्णय'

द्वितीयस्थोऽपि मङ्गलः, रक्तपातं प्रदर्शयेत्।
लग्ने च स्थितो मङ्गलः, शत्रुक्षयकरो भवेत्॥

  • मिथुन राशि में जब मंगल गोचर करता है (जहाँ जन्म मंगल भी है), तब यह वित्तीय विवाद, द्वंद्व, और पारस्परिक तनाव का कारण बनता है।
  • कर्क राशि में गोचर में यह नीचता को प्राप्त होकर सीमा संघर्ष, रक्षा मोर्चे पर सक्रियता, और राजनीतिक तनाव बढ़ाता है।
  • 1965 में युद्ध, और 2025 में सीमा संबंधी दबाव इस गोचर की पुष्टि करते हैं।

🔎 विशेष विश्लेषण (अनुसंधान):

  • भारत की कुंडली में गुरु (6th), शनि (4th), मंगल (2nd) में हैं। जब गोचर में गुरु 12वें (मिथुन), शनि 8वें/9वें (कुंभ/मीन), और मंगल मिथुन/कर्क में आता है, तब राष्ट्र को आर्थिक असंतुलन, राजनीतिक अस्थिरता, सीमावर्ती तनाव, तथा विदेश नीति में अवरोध देखने पड़ते हैं।
  • 1965 के भारत-पाक युद्ध, ताशकंद समझौता, और आंतरिक राजनीति का असंतुलन इन्हीं गोचरों से मेल खाता है।

 


🧠 निष्कर्ष: गुरु का द्वादश गोचर, शनि का अष्टम और नवम गोचर तथा मंगल का द्वितीय-तृतीय गोचर भारत के लिए राजनीतिक अस्थिरता, सीमा संघर्ष, और नीति भ्रम जैसे अशुभ संकेत प्रदान करते हैं। ये निष्कर्ष शुद्ध पारंपरिक ग्रंथों और गोचर सिद्धांतों पर आधारित हैं।

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🔖 ग्रंथ संदर्भ:

  • बृहत संहिता वराहमिहिर
  • गोचर फलदीपिका ऋषि प्रबोधानन्द
  • बृहत जातक वराहमिहिर
  • गोचर तत्वदीपिका अज्ञात प्राचीन रचना

Transit of Planets (Modern English Commentary) प्रमाणिक ग्रंथ संदर्भ:

·         बृहत संहिता वराहमिहिर

·         बृहत जातक वराहमिहिर

·         गोचर फलदीपिका ऋषि प्रबोधानंद

·         मंगल तत्व विचार पारंपरिक गूढ़ ग्रंथ

·         गोचर रहस्य अज्ञात प्राचीन ज्योतिषाचार्य

·         गोचर निर्णय आधुनिक एवं प्राचीन गोचर मंथन ग्रंथ

·         Transit of Planets (Dr. B. V. Raman)

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28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...