लग्न आधारित मुहूर्त अन्य मुहूर्तों से श्रेष्ठ Lagna Aadharit Muhurat Any Muhurton Se Shresth (Ascendant-Based Muhurat Is Superior to Other Muhurats) परिचय / Introduction: लग्न आधारित मुहूर्त हमेशा अन्य प्रकार के मुहूर्तों से श्रेष्ठ माना गया है। शास्त्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि लग्न मुहूर्त में जन्म राशि, लग्न बल और शुभ ग्रह स्थिति का प्रभाव होता है, जो कार्य की सफलता एवं बाधाओं से रक्षा करता है। इसके विपरीत, केवल दिन, तिथि या नक्षत्र आधारित मुहूर्त बिना लग्न के अपूर्ण और असफलता से ग्रस्त हो सकते हैं। Ascendant-based muhurat is always considered superior to other types of muhurats. Scriptures clearly state that lagna muhurat incorporates the effects of Janma Rashi (birth sign), strength of ascendant, and favorable planetary positions which protect from obstacles and ensure success. On the other hand, muhurats based only on day, tithi, or nakshatra without lagna consideration may prove incomplete and prone to failure.लग्न मुहूर्त और दोष शमन
लग्न आधारित मुहूर्त अन्य मुहूर्तों से श्रेष्ठ
Lagna Aadharit Muhurat Any Muhurton Se Shresth
(Ascendant-Based Muhurat Is Superior to Other Muhurats)
परिचय / Introduction:
लग्न आधारित मुहूर्त हमेशा अन्य प्रकार के मुहूर्तों से श्रेष्ठ माना गया है। शास्त्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि लग्न मुहूर्त में जन्म राशि, लग्न बल और शुभ ग्रह स्थिति का प्रभाव होता है, जो कार्य की सफलता एवं बाधाओं से रक्षा करता है। इसके विपरीत, केवल दिन, तिथि या नक्षत्र आधारित मुहूर्त बिना लग्न के अपूर्ण और असफलता से ग्रस्त हो सकते हैं।
Ascendant-based muhurat is always considered superior to other types of muhurats. Scriptures clearly state that lagna muhurat incorporates the effects of Janma Rashi (birth sign), strength of ascendant, and favorable planetary positions which protect from obstacles and ensure success. On the other hand, muhurats based only on day, tithi, or nakshatra without lagna consideration may prove incomplete and prone to failure.
लग्न मुहूर्त और दोष शमन
प्रस्तावना -
शुभ कार्यों में लग्न मुहूर्त का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है:
**"लघु मुहूर्त लक्षाणि, दोषाणां समुद्भवः।
बलिनि लग्ने दोषा नश्यन्ति – इति सिद्धान्तः।"**
भावार्थ -सैकड़ों, हजारों प्रकार के मुहूर्त-दोष होते हैं, किन्तु जब लग्न बलवान हो, शुभग्रहों से युक्त हो, और केंद्र/त्रिकोण में गुरु, बुध, शुक्र जैसे ग्रह हों, तब सभी दोषों का शमन हो जाता है। अतः श्रेष्ठ मुहूर्त वही कहलाता है जिसमें लग्न पर विशेष दृष्टि दी गई हो।
मुख्य शास्त्रीय प्रमाण -
1. निर्णयसिन्धु – मुहूर्त प्रकरण
"गण्डान्ते यदि तिथौ नक्षत्रे वा शुभाश्रया भवन्ति तदा दोषो न भवति।
बृहस्पतिशुक्रबुधानां केन्द्रस्थाने चाप्यदोषः।"
यदि गण्डान्त तिथि अथवा नक्षत्र किसी शुभ योग या वेध-सिद्ध स्थितियों में हों, तो वे दोष नहीं देते। इसी प्रकार यदि बृहस्पति, शुक्र या बुध जैसे शुभग्रह केंद्र स्थानों (लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम भाव) में स्थित हों, तो भी गण्डान्त दोष फलदायक नहीं रहता।
2. मुहूर्त चिन्तामणि – गण्डान्त विचार
"बलिनि शुभे लग्ने, चन्द्रे शुभदृष्टे च।
त्रिदोषा अपि नश्यन्ति, कार्यसिद्धिः सुलभा भवेत्॥"
यदि शुभ लग्न में बलवान ग्रह हों तथा चन्द्रमा पर शुभग्रहों की दृष्टि हो, तो तिथि, वार और नक्षत्र संबंधी त्रिविध दोष भी नष्ट हो जाते हैं और कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
3. ज्योतिषसार संग्रह
"सिद्धतिथि शुभा प्रोक्ता, विष्कम्भोऽपि यथाशुभम्।
यत्र शुभग्रहाः केन्द्रे, गण्डान्तोऽपि तदा न दोषदः॥"
सिद्ध तिथियाँ शुभ मानी गई हैं और यदि विष्कम्भ योग आदि अन्य शुभ संयोग भी हों, तथा शुभग्रह केंद्रों में स्थित हों, तो उस समय गण्डान्त दोष भी अकारक हो जाता है — अर्थात शुभ कार्यों में बाधक नहीं होता।
4. मुहूर्तमाला (तंत्राश्रयी मत)
"त्रिकाले गण्डयोगेऽपि, यदा शुभग्रहं बलम्।
वेधसिद्धौ न दोषः स्याद्, कार्यं तद्बाधकं न हि॥"
यदि त्रिकाल (तिथि, नक्षत्र, लग्न) सभी में गण्ड दोष विद्यमान हो, लेकिन उस समय शुभग्रह बलवान हों और वेध-सिद्ध तिथि/नक्षत्र हों, तो वह दोष फल नहीं देता और कार्य में कोई बाधा नहीं आती।
5. ब्रह्मवैवर्त पुराण – मुहूर्त खण्ड
"गण्डान्तो न शुभः प्रोक्तो, विशेषेण यथाशुभम्।
शुभे ग्रहस्थितौ केन्द्रे, चन्द्रे च स्नेहयुक्तिके।
तदा स दोषो न भवति, शुभकार्ये तदा जयः॥"
गण्डान्त सामान्यतः अशुभ कहा गया है, किंतु जब शुभग्रह केंद्र में हों, चन्द्रमा शुभ दृष्ट या स्नेहयुक्त स्थिति में हो, तब यह दोष प्रभावहीन हो जाता है और शुभ कार्यों में विजय की प्राप्ति होती है।
लघु सार :
- लग्न, मुहूर्तों में प्रधान तत्व है।
- जब लग्न में शुभग्रह हों (विशेषतः बुध, गुरु, शुक्र), और वे केंद्र/त्रिकोण में हों, तो दोषों का शमन हो जाता है।
- वेधसिद्ध तिथियाँ, अमृत नाड़ी, शुभ नक्षत्र, सिद्ध योग, सर्वार्थसिद्धि योग आदि हो, तो भी दोष नहीं रहते।
- मुहूर्त विचार में दोषों की उपस्थिति मात्र से कार्य वर्ज्य नहीं होता, किन्तु यदि लग्न समर्थ हो तो सफलता निश्चित होती है।
प्रमुख ग्रंथ: निर्णयसिन्धु, मुहूर्त चिन्तामणि, ज्योतिषसार, मुहूर्तमाला, ब्रह्मवैवर्त पुराण।
📘 शीर्षक: गण्डान्त दोष शमन: शास्त्रीय दृष्टिकोण
- विषय: त्रिगण्डान्त दोष, उनके प्रकार, शमन के उपाय, वेध सिद्धि, शुभ ग्रह स्थिति
- संदर्भ: निर्णयसिन्धु, मुहूर्त चिन्तामणि, ज्योतिषसार, मुहूर्तमाला आदि
🔷 1. गण्डान्त दोषों के प्रकार-त्रि-गण्डान्त दोष कहे जाते हैं:
1. तिथि गण्डान्त: प्रत्येक पक्ष की 14वीं, 15वीं व 1वीं तिथि
2. नक्षत्र गण्डान्त: आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती (जलचर/अंत)
3. लग्न/घटी गण्डान्त: कालान्तर में विशेष संधि घड़ियाँ, विशेषकर चतुर्दशी पूर्णिमा या अमावस्या की संधियों में
🔷 2. दोष शमन सूत्र — निर्णयसिन्धु से
"गण्डान्ते यदि तिथौ नक्षत्रे वा शुभाश्रया भवन्ति तदा
दोषो न भवति।
बृहस्पतिशुक्रबुधानां केन्द्रस्थाने चाप्यदोषः।"
(निर्णयसिन्धु, मुहूर्त
प्रकरण)
यदि
गण्डान्त तिथि/नक्षत्र वेधसिद्ध (अर्थात दोषनाशक योग में) हों, या बुध, गुरु, शुक्र
केंद्र में स्थित हों, तो
गण्डान्त दोष नहीं रहता।
🔷 3. वेधसिद्ध नक्षत्र/तिथियाँ क्या हैं?
"सिद्धतिथि शुभा प्रोक्ता, विष्कम्भोSपि यथाशुभम्।
यत्र शुभग्रहाः केन्द्रे, गण्डान्तोSपि तदा
न दोषदः॥"(ज्योतिषसार संग्रह)
- वेधसिद्ध तिथियाँ: द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, त्रयोदशी, पूर्णिमा
- सिद्ध नक्षत्र: रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा, श्रवण आदि
🪔 यदि गण्डान्त काल में भी ये तिथियाँ/नक्षत्र उपस्थित हों तथा शुभग्रह केंद्र में हों, तो गण्डान्त दोष नहीं माना जाता।
🔷 4. लग्नबल एवं शुभग्रह स्थिति से दोष शमन
"बलिनि शुभे लग्ने, चन्द्रे
शुभदृष्टे च।
त्रिदोषा अपि नश्यन्ति, कार्यसिद्धिः सुलभा भवेत्॥"(मुहूर्त
चिन्तामणि)
यदि लग्न बलवान हो और चंद्रमा पर शुभ दृष्टि हो, तो
त्रिविध दोष (तिथि, वार, नक्षत्र) भी नष्ट हो जाते हैं।
📌 निष्कर्ष (Conclusion)
शास्त्रानुसार पूर्णत: सत्य है:
- त्रि-गण्डान्त दोष हर स्थिति में फलदायक नहीं होते
- यदि गण्डान्त तिथि/नक्षत्र वेधसिद्ध हों
- या बुध, गुरु, शुक्र केंद्र/त्रिकोण में हों
- या बलि लग्न हो और चन्द्र पर शुभ दृष्टि हो,
👉 तब यह दोष फल नहीं देता, और मुहूर्त शुभ माना जाता है।
लग्न मुहूर्त दोष शमन के श्लोक एवं ग्रंथ प्रमाण
1. त्रिगण्डान्त दोष शमन — निर्णयसिन्धु
(मुहूर्त प्रकरण)
गण्डान्ते यदि तिथौ नक्षत्रे वा
शुभाश्रया भवन्ति तदा दोषो न भवति।
बृहस्पतिशुक्रबुधानां
केन्द्रस्थाने चाप्यदोषः॥
(निर्णयसिन्धु, मुहूर्त प्रकरण)
यदि त्रिगण्डान्त (तिथि, नक्षत्र, लग्न
के अंत) शुभ वेधसिद्ध (दोष शमन करने वाले) हों, या गुरु, शुक्र, बुध केंद्र या त्रिकोण में हों, तो
गण्डान्त दोष नहीं रहता।
2. वेधसिद्ध तिथि और नक्षत्र — ज्योतिषसार संग्रह
सिद्धतिथि शुभा प्रोक्ता, विष्कम्भोऽपि यथाशुभम्।
यत्र शुभग्रहाः केन्द्रे, गण्डान्तोऽपि तदा न दोषदः॥
(ज्योतिषसार संग्रह)
द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, त्रयोदशी, पूर्णिमा तिथियाँ और रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा, श्रवण नक्षत्र जब शुभ ग्रहों के केंद्र में होते हैं, तब गण्डान्त दोष शमन हो जाता है।
3. प्राकृतिक दोष (प्राकृतदोष) पर निषेध — मुहूर्त गणपति ग्रंथ
रवियोगे
रविवारे चंद्रार्कयोः क्रांतिवेधसमये।
प्राकृतिकदोषयुक्ते स्थले कार्यं निषिद्धं स्यात्॥
(मुहूर्त गणपति ग्रंथ)
रवि योग, रविवार, सूर्य-चंद्र के मध्य क्रांति समय और प्राकृतिक दोषयुक्त स्थान पर कार्य करना निषिद्ध है।
4. अमृत सिद्धि योग के निष्फल होने का श्लोक — तांत्रिक ग्रंथ (निरत्यसिन्धु)
दिव्येऽपि योगे यदि कालान्तरं वज्रपातो भवेद्।
तदा तदपि निष्फलं स्यात्
शुभकर्मणि॥
यदि दिव्य योग में भी समयान्तराल में आकाशीय विपत्ति (जैसे वज्रपात) हो, तो वह योग शुभ कर्म के लिए निष्फल हो जाता है।
सारांश
- ये श्लोक एवं ग्रंथ प्रमाण स्पष्ट करते हैं कि केवल शुभ लग्न या शुभ योगों के होने से दोष स्वतः समाप्त नहीं होते।
- प्राकृतिक आपदाएं, ग्रहण, धूमकेतु, क्रांति समय जैसे दोष स्थायी प्रभाव डालते हैं और उन्हें मुहूर्त दोष माना जाता है।
- शास्त्रों के अनुसार ऐसे दोषों में कार्य टालना उत्तम होता है।
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