सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

लग्न आधारित मुहूर्त अन्य मुहूर्तों से श्रेष्ठ Lagna Aadharit Muhurat Any Muhurton Se Shresth (Ascendant-Based Muhurat Is Superior to Other Muhurats) परिचय / Introduction: लग्न आधारित मुहूर्त हमेशा अन्य प्रकार के मुहूर्तों से श्रेष्ठ माना गया है। शास्त्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि लग्न मुहूर्त में जन्म राशि, लग्न बल और शुभ ग्रह स्थिति का प्रभाव होता है, जो कार्य की सफलता एवं बाधाओं से रक्षा करता है। इसके विपरीत, केवल दिन, तिथि या नक्षत्र आधारित मुहूर्त बिना लग्न के अपूर्ण और असफलता से ग्रस्त हो सकते हैं। Ascendant-based muhurat is always considered superior to other types of muhurats. Scriptures clearly state that lagna muhurat incorporates the effects of Janma Rashi (birth sign), strength of ascendant, and favorable planetary positions which protect from obstacles and ensure success. On the other hand, muhurats based only on day, tithi, or nakshatra without lagna consideration may prove incomplete and prone to failure.लग्न मुहूर्त और दोष शमन

 

लग्न आधारित मुहूर्त अन्य मुहूर्तों से श्रेष्ठ

Lagna Aadharit Muhurat Any Muhurton Se Shresth
(Ascendant-Based Muhurat Is Superior to Other Muhurats)


परिचय / Introduction:

लग्न आधारित मुहूर्त हमेशा अन्य प्रकार के मुहूर्तों से श्रेष्ठ माना गया है। शास्त्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि लग्न मुहूर्त में जन्म राशि, लग्न बल और शुभ ग्रह स्थिति का प्रभाव होता है, जो कार्य की सफलता एवं बाधाओं से रक्षा करता है। इसके विपरीत, केवल दिन, तिथि या नक्षत्र आधारित मुहूर्त बिना लग्न के अपूर्ण और असफलता से ग्रस्त हो सकते हैं।

Ascendant-based muhurat is always considered superior to other types of muhurats. Scriptures clearly state that lagna muhurat incorporates the effects of Janma Rashi (birth sign), strength of ascendant, and favorable planetary positions which protect from obstacles and ensure success. On the other hand, muhurats based only on day, tithi, or nakshatra without lagna consideration may prove incomplete and prone to failure.

लग्न मुहूर्त और दोष शमन

 प्रस्तावना -

शुभ कार्यों में लग्न मुहूर्त का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है:

**"लघु मुहूर्त लक्षाणि, दोषाणां समुद्भवः।

बलिनि लग्ने दोषा नश्यन्तिइति सिद्धान्तः।"**

भावार्थ -सैकड़ों, हजारों प्रकार के मुहूर्त-दोष होते हैं, किन्तु जब लग्न बलवान हो, शुभग्रहों से युक्त हो, और केंद्र/त्रिकोण में गुरु, बुध, शुक्र जैसे ग्रह हों, तब सभी दोषों का शमन हो जाता है। अतः श्रेष्ठ मुहूर्त वही कहलाता है जिसमें लग्न पर विशेष दृष्टि दी गई हो।

मुख्य शास्त्रीय प्रमाण -

1. निर्णयसिन्धुमुहूर्त प्रकरण

"गण्डान्ते यदि तिथौ नक्षत्रे वा शुभाश्रया भवन्ति तदा दोषो भवति।

बृहस्पतिशुक्रबुधानां केन्द्रस्थाने चाप्यदोषः।"

यदि गण्डान्त तिथि अथवा नक्षत्र किसी शुभ योग या वेध-सिद्ध स्थितियों में हों, तो वे दोष नहीं देते। इसी प्रकार यदि बृहस्पति, शुक्र या बुध जैसे शुभग्रह केंद्र स्थानों (लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम भाव) में स्थित हों, तो भी गण्डान्त दोष फलदायक नहीं रहता।

2. मुहूर्त चिन्तामणिगण्डान्त विचार

"बलिनि शुभे लग्ने, चन्द्रे शुभदृष्टे च।

त्रिदोषा अपि नश्यन्ति, कार्यसिद्धिः सुलभा भवेत्॥"

यदि शुभ लग्न में बलवान ग्रह हों तथा चन्द्रमा पर शुभग्रहों की दृष्टि हो, तो तिथि, वार और नक्षत्र संबंधी त्रिविध दोष भी नष्ट हो जाते हैं और कार्य में सफलता प्राप्त होती है।

3. ज्योतिषसार संग्रह

"सिद्धतिथि शुभा प्रोक्ता, विष्कम्भोऽपि यथाशुभम्।

यत्र शुभग्रहाः केन्द्रे, गण्डान्तोऽपि तदा दोषदः॥"

सिद्ध तिथियाँ शुभ मानी गई हैं और यदि विष्कम्भ योग आदि अन्य शुभ संयोग भी हों, तथा शुभग्रह केंद्रों में स्थित हों, तो उस समय गण्डान्त दोष भी अकारक हो जाता हैअर्थात शुभ कार्यों में बाधक नहीं होता।

4. मुहूर्तमाला (तंत्राश्रयी मत)

"त्रिकाले गण्डयोगेऽपि, यदा शुभग्रहं बलम्।

वेधसिद्धौ दोषः स्याद्, कार्यं तद्बाधकं हि॥"

यदि त्रिकाल (तिथि, नक्षत्र, लग्न) सभी में गण्ड दोष विद्यमान हो, लेकिन उस समय शुभग्रह बलवान हों और वेध-सिद्ध तिथि/नक्षत्र हों, तो वह दोष फल नहीं देता और कार्य में कोई बाधा नहीं आती।

5. ब्रह्मवैवर्त पुराणमुहूर्त खण्ड

"गण्डान्तो शुभः प्रोक्तो, विशेषेण यथाशुभम्।

शुभे ग्रहस्थितौ केन्द्रे, चन्द्रे स्नेहयुक्तिके।

तदा दोषो भवति, शुभकार्ये तदा जयः॥"

गण्डान्त सामान्यतः अशुभ कहा गया है, किंतु जब शुभग्रह केंद्र में हों, चन्द्रमा शुभ दृष्ट या स्नेहयुक्त स्थिति में हो, तब यह दोष प्रभावहीन हो जाता है और शुभ कार्यों में विजय की प्राप्ति होती है।

लघु सार :

- लग्न, मुहूर्तों में प्रधान तत्व है।

- जब लग्न में शुभग्रह हों (विशेषतः बुध, गुरु, शुक्र), और वे केंद्र/त्रिकोण में हों, तो दोषों का शमन हो जाता है।

- वेधसिद्ध तिथियाँ, अमृत नाड़ी, शुभ नक्षत्र, सिद्ध योग, सर्वार्थसिद्धि योग आदि हो, तो भी दोष नहीं रहते।

- मुहूर्त विचार में दोषों की उपस्थिति मात्र से कार्य वर्ज्य नहीं होता, किन्तु यदि लग्न समर्थ हो तो सफलता निश्चित होती है।

प्रमुख ग्रंथ: निर्णयसिन्धु, मुहूर्त चिन्तामणि, ज्योतिषसार, मुहूर्तमाला, ब्रह्मवैवर्त पुराण।

📘 शीर्षक: गण्डान्त दोष शमन: शास्त्रीय दृष्टिकोण

  • विषय: त्रिगण्डान्त दोष, उनके प्रकार, शमन के उपाय, वेध सिद्धि, शुभ ग्रह स्थिति
  • संदर्भ: निर्णयसिन्धु, मुहूर्त चिन्तामणि, ज्योतिषसार, मुहूर्तमाला आदि

🔷 1. गण्डान्त दोषों के प्रकार-त्रि-गण्डान्त दोष कहे जाते हैं:

1.     तिथि गण्डान्त: प्रत्येक पक्ष की 14वीं, 15वीं व 1वीं तिथि

2.     नक्षत्र गण्डान्त: आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती (जलचर/अंत)

3.     लग्न/घटी गण्डान्त: कालान्तर में विशेष संधि घड़ियाँ, विशेषकर चतुर्दशी पूर्णिमा या अमावस्या की संधियों में


🔷 2. दोष शमन सूत्र निर्णयसिन्धु से

"गण्डान्ते यदि तिथौ नक्षत्रे वा शुभाश्रया भवन्ति तदा दोषो न भवति।
बृहस्पतिशुक्रबुधानां केन्द्रस्थाने चाप्यदोषः।"
(
निर्णयसिन्धु, मुहूर्त प्रकरण)
यदि गण्डान्त तिथि/नक्षत्र वेधसिद्ध (अर्थात दोषनाशक योग में) हों, या बुध, गुरु, शुक्र केंद्र में स्थित हों, तो गण्डान्त दोष नहीं रहता।


🔷 3. वेधसिद्ध नक्षत्र/तिथियाँ क्या हैं?

"सिद्धतिथि शुभा प्रोक्ता, विष्कम्भोSपि यथाशुभम्।
यत्र शुभग्रहाः केन्द्रे, गण्डान्तोSपि तदा न दोषदः॥"(ज्योतिषसार संग्रह)

  • वेधसिद्ध तिथियाँ: द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, त्रयोदशी, पूर्णिमा
  • सिद्ध नक्षत्र: रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा, श्रवण आदि

🪔 यदि गण्डान्त काल में भी ये तिथियाँ/नक्षत्र उपस्थित हों तथा शुभग्रह केंद्र में हों, तो गण्डान्त दोष नहीं माना जाता।


🔷 4. लग्नबल एवं शुभग्रह स्थिति से दोष शमन

"बलिनि शुभे लग्ने, चन्द्रे शुभदृष्टे च।
त्रिदोषा अपि नश्यन्ति, कार्यसिद्धिः सुलभा भवेत्॥"(मुहूर्त चिन्तामणि)
यदि लग्न बलवान हो और चंद्रमा पर शुभ दृष्टि हो, तो त्रिविध दोष (तिथि, वार, नक्षत्र) भी नष्ट हो जाते हैं।


📌 निष्कर्ष (Conclusion)

शास्त्रानुसार पूर्णत: सत्य है:

  • त्रि-गण्डान्त दोष हर स्थिति में फलदायक नहीं होते
  • यदि गण्डान्त तिथि/नक्षत्र वेधसिद्ध हों
  • या बुध, गुरु, शुक्र केंद्र/त्रिकोण में हों
  • या बलि लग्न हो और चन्द्र पर शुभ दृष्टि हो,
    👉 तब यह दोष फल नहीं देता, और मुहूर्त शुभ माना जाता है।

लग्न मुहूर्त दोष शमन के श्लोक एवं ग्रंथ प्रमाण


1. त्रिगण्डान्त दोष शमन निर्णयसिन्धु (मुहूर्त प्रकरण)
गण्डान्ते यदि तिथौ नक्षत्रे वा शुभाश्रया भवन्ति तदा दोषो न भवति।
बृहस्पतिशुक्रबुधानां केन्द्रस्थाने चाप्यदोषः॥
(
निर्णयसिन्धु, मुहूर्त प्रकरण)
यदि त्रिगण्डान्त (तिथि, नक्षत्र, लग्न के अंत) शुभ वेधसिद्ध (दोष शमन करने वाले) हों, या गुरु, शुक्र, बुध केंद्र या त्रिकोण में हों, तो गण्डान्त दोष नहीं रहता।


2. वेधसिद्ध तिथि और नक्षत्र ज्योतिषसार संग्रह

सिद्धतिथि शुभा प्रोक्ता, विष्कम्भोऽपि यथाशुभम्।
यत्र शुभग्रहाः केन्द्रे, गण्डान्तोऽपि तदा न दोषदः॥
(
ज्योतिषसार संग्रह)

द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, त्रयोदशी, पूर्णिमा तिथियाँ और रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा, श्रवण नक्षत्र जब शुभ ग्रहों के केंद्र में होते हैं, तब गण्डान्त दोष शमन हो जाता है।


3. प्राकृतिक दोष (प्राकृतदोष) पर निषेध मुहूर्त गणपति ग्रंथ

रवियोगे रविवारे चंद्रार्कयोः क्रांतिवेधसमये।
प्राकृतिकदोषयुक्ते स्थले कार्यं निषिद्धं स्यात्॥
(
मुहूर्त गणपति ग्रंथ)

रवि योग, रविवार, सूर्य-चंद्र के मध्य क्रांति समय और प्राकृतिक दोषयुक्त स्थान पर कार्य करना निषिद्ध है।


4. अमृत सिद्धि योग के निष्फल होने का श्लोक तांत्रिक ग्रंथ (निरत्यसिन्धु)

दिव्येऽपि योगे यदि कालान्तरं वज्रपातो भवेद्।
तदा तदपि निष्फलं स्यात् शुभकर्मणि॥

यदि दिव्य योग में भी समयान्तराल में आकाशीय विपत्ति (जैसे वज्रपात) हो, तो वह योग शुभ कर्म के लिए निष्फल हो जाता है।


सारांश

  • ये श्लोक एवं ग्रंथ प्रमाण स्पष्ट करते हैं कि केवल शुभ लग्न या शुभ योगों के होने से दोष स्वतः समाप्त नहीं होते।
  • प्राकृतिक आपदाएं, ग्रहण, धूमकेतु, क्रांति समय जैसे दोष स्थायी प्रभाव डालते हैं और उन्हें मुहूर्त दोष माना जाता है।
  • शास्त्रों के अनुसार ऐसे दोषों में कार्य टालना उत्तम होता है।

 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...