सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

"शनि प्रदोष व्रत"24.5.2025 📜 Peace, Prosperity, Marital Happiness & Family Fortune 📜– शांति, समृद्धि, दांपत्य सुख, और पारिवारिक सौभाग्य

 

"शनि प्रदोष व्रत"24.5.2025 📜 Peace, Prosperity, Marital Happiness & Family Fortune 📜शांति, समृद्धि, दांपत्य सुख, और पारिवारिक सौभाग्य

🔱 शनि प्रदोष व्रत

🌒 ज्योतिषीय लाभ (Astrological Importance)

  • शनि की दशा/अन्तर्दशा में बाधाएं, कर्ज़, मुक़दमे, मानसिक बोझ से मुक्ति हेतु।
  • साढ़ेसाती, अष्टम शनि, या कुंडली में अशुभ स्थिति में शांति के लिए सर्वोत्तम।
  • मकर, कुम्भ, तुला, कन्या राशि के जातकों को विशेष लाभ

स्कन्दपुराण - शनि प्रदोष के दिन शिवपूजन से सभी पाप जल जाते हैं। इस व्रत से जीवन में शांति, समृद्धि, दांपत्य सुख, और पारिवारिक सौभाग्य की वृद्धि होती है।

2. शास्त्रीय श्लोक एवं प्रमाण

  • स्कन्दपुराण में उल्लेख है:
    "प्रदोषे तु शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्। 
  • पापं दहति तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥"
    इसका अर्थ है कि शनिवार के प्रदोष काल में शिव पूजा करने से सारे पाप जल जाते हैं जैसे अग्नि।
  • निर्णयसिन्धु में कहा गया है:
    "शनिवार प्रदोषे व्रतं कुर्यात् सिद्धिं शीघ्रं विना विलम्बम्।
  •  परिवार सुख समृद्धौ च दांपत्यं च प्रसाधयेत्।।"
    अर्थात इस व्रत से शीघ्र सिद्धि, परिवार में सुख और दांपत्य जीवन में सौहार्द बढ़ता है।
  • धर्मसिन्धु में लिखा है:
    "शनि प्रदोषे व्रते पुण्यं प्राप्तं लोक नपुंसकाः।
  •  परिवार समृद्धि दंपत्यम् च विघ्न नश्यन्ति हि तत्॥"
    इस व्रत से पुण्य मिलता है, परिवार समृद्ध होता है और दांपत्य सुख बढ़ता है।
  1. निर्णयसिन्धु (Nirnaya Sindhu) –

·         विशेषकर शनिवार की त्रयोदशी को शनि प्रदोषकहा गया है।
"
प्रदोषे मासयोः प्राप्ते त्रयोदश्यां विशेषतः।
शिवपूजा विधातव्या सर्वपाप प्रणाशिनी॥"प्रदोषे = प्रदोष काल में

·         शनिवारे = शनिवार के दिन

·         शिवपूजनं समाचरेत् = शिव का पूजन करें

·         पापं दहति तत्सर्वं = वह (पूजन) समस्त पापों को जलाता है

·         कालाग्निरिव पावकम् = जैसे कालाग्नि (प्रलयकालीन अग्नि) समस्त वस्तु को भस्म कर देती है

शनिवार के दिन आने वाला प्रदोषकाल अत्यंत पुण्यदायक होता है। इस समय जो भक्त शिव का पूजन करता है, उसके समस्त पाप प्रलय की अग्नि के समान भस्म हो जाते हैं। यह व्रत आत्मशुद्धि और शनि संबंधी पीड़ा के शमन हेतु अत्यंत प्रभावी है।

  1. धर्मसिन्धु (Dharmasindhu)

 शनिवारे यदा प्रदोष तदा शनि प्रदोषाख्यं व्रतम्।
शिवपूजा तत्र कार्या शनि पीडा निवारणाय।

  • प्रदोषे मासयोः प्राप्ते = प्रत्येक पक्ष में जब त्रयोदशी तिथि आती है (प्रदोष काल में)
  • विशेषतः = विशेष रूप से
  • शिवपूजा विधातव्या = शिव की पूजा करनी चाहिए
  • सर्वपाप प्रणाशिनी = वह समस्त पापों का नाश करती है

हर पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत माना जाता है। लेकिन यदि यह शनिवार को पड़े तो इसका महत्व और बढ़ जाता है। इस समय की गई शिव पूजा समस्त दोषों और कष्टों का विनाश करने वाली मानी गई है।


📖 3. धर्मसिन्धु (Dharmasindhu)

शनिवारे यदा प्रदोष तदा शनि प्रदोषाख्यं व्रतम्।
शिवपूजा तत्र कार्या शनि पीडा निवारणाय।

  • शनिवारे = शनिवार को
  • यदा प्रदोष = जब प्रदोष तिथि होती है
  • शनि प्रदोषाख्यं व्रतम् = तब यह व्रत शनि प्रदोषकहलाता है
  • शिवपूजा तत्र कार्या = उस दिन शिव की पूजा करनी चाहिए
  • शनि पीडा निवारणाय = जिससे शनि की पीड़ा समाप्त होती है

जब प्रदोष तिथि शनिवार को आए, तब इसे विशेष रूप से "शनि प्रदोष व्रत" कहा गया है। इस दिन की गई शिव पूजा, शनिदेव द्वारा जनित पीड़ाओं जैसे साढ़ेसाती, शनि की दशा-अन्तर्दशा, कष्ट, रोग, ऋण, न्यायिक संकट आदि को दूर करती है।

  1. व्रत-त्योहार (Geeta Press)

गीताप्रेस के "व्रत-त्योहार" ग्रंथ में शनि प्रदोष को ऋण-मुक्ति, न्याय में विजय, एवं मानसिक शांति के लिए अति प्रभावशाली बताया गया है।


📖 महत्व

🔱 शिवपुराण (Shiva Purana):

त्रयोदश्यां प्रदोषे तु यो मां सम्पूजयेत् शिवम्।
शनि ग्रहेन न बाध्येत कदाचिदपि मानवः॥

👉 इस श्लोक के अनुसार प्रदोष व्रत में शिवपूजन से शनि दोषों से रक्षा होती है।

🛕 लिंगपुराण (Linga Purana):

शनिवारे प्रदोषे तु शिवपूजा विशेषतः।
मृत्युभीतिप्रशमनं ऋणमोचनकारकम्॥

👉 यह व्रत ऋणमोचन, कालमुक्ति तथा कष्टहरण का साधन है।

🕉 स्कन्दपुराण (Skanda Purana):

प्रदोषे तु शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्।
पापं दहति तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥


🕯 पूजन विधि (Puja Vidhi)

📖 स्कन्दपुराण:

स्कन्दपुराण में कहा गया है:

"प्रदोषे तु शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्। पापं दहति तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥"

अर्थ: शनिवार को प्रदोष के समय शिवजी का पूजन करना चाहिए। यह समस्त पापों को ऐसे भस्म करता है जैसे कालाग्नि अग्नि को भस्म कर देती है।

📖 लिंगपुराण:

लिंगपुराण में वर्णन आता है कि शनि प्रदोष व्रत से भक्त के जीवन के सभी पाप और विघ्न समाप्त हो जाते हैं और शिव कृपा से मानसिक शांति, समृद्धि और भौतिक कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है।


🔅 पूजन विधि (शास्त्रीय प्रमाण सहित)

📌 1. स्नान एवं संकल्प:

  • व्रत के दिन प्रातः शुद्ध स्नान कर शनि प्रदोष व्रत का संकल्प करें।

📌 2. दीपक प्रज्ज्वलन (निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु):

  • सूर्यास्त से पूर्व शुद्ध घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं।
  • दीपक की वर्तिका काले सूत से बनी होनी चाहिए।

📌 3. शिवलिंग अभिषेक (निर्णयसिन्धु):

  • जल, दूध, शहद, तिल तेल से शिवलिंग का अभिषेक करें।
  • काले तिल और काले पुष्प अर्पित करें।

📌 4. दिशा (धर्मसिन्धु):

  • पूजा पश्चिम दिशा की ओर मुख कर करें।

📌 5. मंत्र जाप:

  • "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।

📌 6. व्रत कथा श्रवण:

  • स्कन्दपुराण या लिंगपुराण में वर्णित शनि प्रदोष व्रत कथा का श्रवण करें।

🍲 भोजन नियम (शास्त्रीय संदर्भ)

क्या खाएं:

  • तिल, तिल से बने व्यंजन, दूध, शहद, काले चने।
  • शुद्ध, सात्विक, हल्का एवं सुपाच्य भोजन।

🚫 क्या न खाएं:

  • मांसाहार, शराब, तंबाकू, अत्यधिक तैलीय या मीठा भोजन वर्जित।

📚 प्रमाण: धर्मसिन्धु एवं निर्णयसिन्धु के व्रत नियमों के अनुरूप।


🔯 ज्योतिषीय लाभ (शास्त्रीय दृष्टि)

  • शनि प्रदोष व्रत शनि की दशा या अंतर्दशा में कष्टों की शांति के लिए उत्तम है।
  • ऋण, मुकदमे, न्यायिक उलझनों में राहत मिलती है।
  • शनि दोष का प्रभाव कम होता है।
  • मानसिक शांति, पारिवारिक सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।

📚 शास्त्रीय संदर्भ: स्कन्दपुराण, लिंगपुराण, निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धुपूजन विधि (प्रमाण सहित)

   स्नान एवं संकल्प:

    व्रत के दिन शुद्ध स्नान करें और शनि प्रदोष व्रत का संकल्प लें।

    दीपक (निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु):

    सूर्यास्त से पहले शुद्ध तिल तेल या घी से दीपक जलाएं।

    दीपक वर्तिका काले सूत की होनी चाहिए।

    शिवलिंग अभिषेक (निर्णयसिन्धु):

    जल, शहद, दूध, तिल तेल से शिवलिंग अभिषेक करें।

    काले तिल, काले पुष्प अर्पित करें।

    दिशा (धर्मसिन्धु):

    पूजा पश्चिम दिशा की ओर मुख कर करें।

    मंत्र जाप:

    "ॐ नमः शिवाय" का जाप करें।

    व्रत कथा श्रवण:

    शनि प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।

1. शनि प्रदोष व्रत का महत्व (स्कन्दपुराण, निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु)

स्कन्दपुराण (अध्याय: प्रदोष व्रत)

प्रदोषे तु शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्।
पापं दहति तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥

(
श्लोक)
अर्थ: शनिवार के प्रदोषकाल में शिव की पूजा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं जैसे आग।

निर्णयसिन्धु

शनिवार प्रदोषे व्रतं कुर्यात् सिद्धिं शीघ्रं विना विलम्बम्।
परिवार सुख समृद्धौ च दांपत्यं च प्रसाधयेत्।

(
श्लोक)
अर्थ: शनिवार के प्रदोष व्रत से शीघ्र सिद्धि मिलती है, परिवार में सुख-समृद्धि और दांपत्य जीवन में सौभाग्य बढ़ता है।

धर्मसिन्धु

नि प्रदोषे व्रते पुण्यं प्राप्तं लोक नपुंसकाः।
परिवार समृद्धि दंपत्यम् च विघ्न नश्यन्ति हि तत्॥

(
श्लोक)
अर्थ: शनि प्रदोष व्रत से पुण्य की प्राप्ति होती है, परिवार में समृद्धि आती है और दांपत्य जीवन सुखी होता है।

 ❌✅   क्या करें, क्या न करें?

करें (Do's)

न करें (Don'ts)

फलाहार लें केला, सेब, अनार  

अनाज, लहसुन-प्याज, मांसाहार वर्जित

काले तिल का सेवन/दान

   नशा, वाणी का दुरुपयोग

पंचामृत अभिषेक, जल से अर्घ्य

    क्रोध, वाद-विवाद

परिवारिक सुख, समृद्धि, दांपत्य सुख शास्त्रीय प्रमाण सहित


 

1. स्कन्दपुराण में शनि प्रदोष व्रत का महत्व

📖 स्कन्दपुराण की कथा: 

 🕉️   एक बार एक चांडाल दंपत्ति ने अनजाने में शनि प्रदोष के दिन व्रत का पालन किया।

  •  उस दिन उन्होंने संध्या के समय भोजन नहीं किया, शिव मंदिर के पास रात्रि विश्राम किया और प्रातः शिवलिंग के दर्शन किए।

     इस अनजाने व्रत के प्रभाव से उनके सारे पाप नष्ट हो गए और

     अगली जन्म में वे राजा और रानी बने। उन्होंने धर्मपूर्वक राज्य किया और अंत में शिवलोक को प्राप्त हुए।

    ------------------------------------------------------------------------------  स्कन्दपुराण – शिव रहस्य:

     एक समय नन्दीश्वर ने यह कथा व्यासजी से कही थी कि जो भी शनिवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को शिवजी का प्रदोषकाल में पूजन करता है, उसके समस्त पाप भस्म हो जाते हैं। शनि प्रदोष की एक विशेष कथा इस प्रकार है:

    प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण बालक के माता-पिता को डकैतों ने मार डाला। अनाथ बालक दुखी होकर वन चला गया। वहां साधु-संतों से भेंट हुई और उन्होंने उसे शनि प्रदोष व्रत की महिमा बताई।

     बालक ने पूरे नियम से शनि प्रदोष व्रत किया। 

    कुछ ही वर्षों में वह पुण्यशाली, धनी और विद्वान बन गया। 

    उसे विद्वता और भक्ति के कारण एक राजा ने अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया। जीवन सुखमय बीता। अंत समय शिवलोक को प्राप्त हुआ।

    📜 श्लोक (स्कन्दपुराण):

     “प्रदोषे तु शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्। 

    पापं दहति तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥”

    🕉️ लिंगपुराण – पूर्वभाग, प्रदोषमहात्म्य अध्याय: एक अन्य कथा के अनुसार, स्वयं श्रीहरि विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा कि जो भक्त शनि प्रदोष व्रत करता है, वह भवसागर से पार हो जाता है। इस व्रत से शनि दोष, पूर्व जन्म के पाप, दरिद्रता, मानसिक कष्ट, ऋण इत्यादि समाप्त हो जाते हैं।

    📖 धर्मसिन्धु एवं निर्णयसिन्धु: इन ग्रंथों में स्पष्ट रूप से शनि प्रदोष व्रत को शनि पीड़ा की शांति हेतु सर्वोत्तम व्रत माना गया है। व्रत विधि, दीपक, वस्त्र, दान, और नियमों का विस्तृत वर्णन मिलता है।

    📖 अन्य पुराणों में:

    • वायु पुराण में बताया गया है कि त्रयोदशी को भगवान शिव को बिल्वपत्र, तिल व नैवेद्य अर्पण करने से धन वृद्धि होती है।

    • गरुड़ पुराण में व्रत और उपवास से मन और शरीर की शुद्धि तथा पुण्यलाभ बताया गया है।

    • ब्रह्मवैवर्त पुराण में शिव पूजन से कुंडली के ग्रहदोषों में कमी तथा वैवाहिक सुख की प्राप्ति का उल्लेख है।

    शिवजी ने स्वयं कहा:

    "शनिवारे प्रदोषे तु यः पूजयति मामिह।
    सर्वान्कामानवाप्नोति मृत्युं च न गच्छति॥"

    अर्थ: “जो व्यक्ति शनिवार के प्रदोषकाल में मेरा पूजन करता है, वह समस्त कामनाओं को प्राप्त करता है और उसे मृत्यु भय नहीं रहता।”


  • स्कन्दपुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि किस व्रत को करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। तब भगवान शिव ने कहा:

    "प्रदोषे तु शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्।
    पापं दहति तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥"
    (
    स्कन्दपुराण, प्रदोष महात्म्य)

    शनिवार को प्रदोष काल में किया गया शिव पूजन अत्यंत पुण्यदायक है। यह समस्त पापों का नाश करता है, ठीक वैसे ही जैसे कालाग्नि ईंधन को भस्म कर देती है।

    भगवान शिव ने यह भी बताया कि इस व्रत को करने से न केवल व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है, अपितु उसे दरिद्रता, रोग, शोक, भय, ग्रहदोष जैसे सभी कष्टों से भी मुक्ति मिलती है।

    📖 लिंगपुराण की कथा:

    लिंगपुराण में शनि प्रदोष व्रत का उल्लेख "प्रदोष माहात्म्य" अध्याय में मिलता है। इसमें एक कथा आती है:

    प्राचीन काल में एक निर्धन ब्राह्मण, जिसका नाम सुन्दरशर्मा था, वह अपने जीवन में अत्यंत कष्ट भोग रहा था। उसने किसी महर्षि से शनि प्रदोष व्रत के माहात्म्य को सुना और प्रतिवर्ष माघ मास में आने वाले शनि प्रदोष को उपवास सहित विधिपूर्वक करना प्रारंभ किया।

    कुछ वर्षों में ही उसकी स्थिति में भारी परिवर्तन हुआ उसे विद्या, धन, संतान एवं यश की प्राप्ति हुई। भगवान शिव की कृपा से उसका जीवन समृद्ध हुआ और वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो मोक्ष को प्राप्त हुआ।


     1.     ब्रह्मवैवर्त पुराण: शिवपूजन से ग्रहदोष निवारण एवं वैवाहिक सुख ;अपने  ग्रहदोषों और वैवाहिक सुख की प्रार्थना करें।

    श्लोक 1:
    शिवपूजनेन हि दुःखानि सर्वाणि विनश्यन्ति।
    ग्रहदोषश्चापि शम्यते, वैवाहिकसुखं लभते॥
    शिव की पूजा से सभी प्रकार के दुःख समाप्त हो जाते हैं। ग्रहदोष भी शमन हो जाते हैं और वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
    व्याख्या:
    शिव की पूजा करने से जीवन में आने वाले ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं। इससे वैवाहिक जीवन में शांति, प्रेम और समृद्धि बढ़ती है।
    श्लोक 2:
    रुद्राभिषेकसहस्रं यः कुर्यात्प्रतिदिनं शुभम्।
    ग्रहदोषैर्निहतः स्यात्, वैवाहिके सफलः॥
    जो व्यक्ति प्रतिदिन हजार बार रुद्राभिषेक करता है, उसके ग्रहदोष समाप्त हो जाते हैं और वैवाहिक जीवन सफल होता है।
    व्याख्या:
    रुद्राभिषेक ग्रहदोषों के निवारण के लिए अत्यंत प्रभावी पूजा विधि है। इसका नियमित अनुष्ठान वैवाहिक सुख को बढ़ावा देता है।
    श्लोक 3:
    नमः शिवाय जपेन दोषाः सर्वा विनश्यन्ति।
    कुर्वीत पूजनं शिवस्य, सुखं लभते परम्॥
    नमः शिवायमंत्र जाप से सभी दोष नष्ट होते हैं। शिव की पूजा करने वाला परम सुख पाता है।
    व्याख्या:
    नमः शिवायमंत्र का जाप अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली है। इसका नियमित जाप ग्रहदोषों का निवारण करता है और जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।
    श्लोक 4:
    यः सदा शिवं पूजयेद् भक्त्या, दोषाः वै नाशयेत्।
    सुखं वैवाहिकं प्राप्येत, संतानं लभेत शुभम्॥
    जो भक्तिपूर्वक सदैव शिव की पूजा करता है, उसके दोष नष्ट हो जाते हैं। वह वैवाहिक सुख और संतान का शुभ फल प्राप्त करता है।
    शिव की सच्ची भक्ति और पूजा से जीवन में आने वाले सभी दोषों का नाश होता है। वैवाहिक सुख के साथ-साथ संतान सुख भी मिलता है।




    टिप्पणियाँ

    इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

    श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

    श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

    रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

    *****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

    दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

    दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

    श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

    श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

    श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

    संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

    गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

    28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

    गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

    सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

    श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

    श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

    विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

    विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

    कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

    हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...