"शनि प्रदोष व्रत"24.5.2025 📜 Peace, Prosperity, Marital Happiness & Family Fortune 📜– शांति, समृद्धि, दांपत्य सुख, और पारिवारिक सौभाग्य
"शनि प्रदोष व्रत"24.5.2025 📜 Peace, Prosperity, Marital Happiness & Family Fortune 📜– शांति, समृद्धि, दांपत्य सुख, और पारिवारिक सौभाग्य
🔱 शनि प्रदोष व्रत –
🌒 ज्योतिषीय लाभ (Astrological Importance)
- शनि की दशा/अन्तर्दशा में बाधाएं, कर्ज़, मुक़दमे, मानसिक बोझ से मुक्ति हेतु।
- साढ़ेसाती, अष्टम शनि, या कुंडली में अशुभ स्थिति में शांति के लिए सर्वोत्तम।
- मकर, कुम्भ, तुला, कन्या राशि के जातकों को विशेष लाभ
स्कन्दपुराण - शनि प्रदोष के दिन शिवपूजन से सभी पाप जल जाते हैं। इस व्रत से जीवन में शांति, समृद्धि, दांपत्य सुख, और पारिवारिक सौभाग्य की वृद्धि होती है।
2. शास्त्रीय श्लोक एवं प्रमाण
- स्कन्दपुराण में उल्लेख है:
"प्रदोषे तु शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्। - पापं दहति तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥"
इसका अर्थ है कि शनिवार के प्रदोष काल में शिव पूजा करने से सारे पाप जल जाते हैं जैसे अग्नि। - निर्णयसिन्धु में कहा गया है:
"शनिवार प्रदोषे व्रतं कुर्यात् सिद्धिं शीघ्रं विना विलम्बम्। - परिवार सुख समृद्धौ च दांपत्यं च
प्रसाधयेत्।।"
अर्थात इस व्रत से शीघ्र सिद्धि, परिवार में सुख और दांपत्य जीवन में सौहार्द बढ़ता है। - धर्मसिन्धु में लिखा है:
"शनि प्रदोषे व्रते पुण्यं प्राप्तं लोक नपुंसकाः। - परिवार समृद्धि दंपत्यम् च विघ्न नश्यन्ति हि
तत्॥"
इस व्रत से पुण्य मिलता है, परिवार समृद्ध होता है और दांपत्य सुख बढ़ता है।
- निर्णयसिन्धु (Nirnaya Sindhu) –
·
विशेषकर
शनिवार की त्रयोदशी को “शनि प्रदोष” कहा गया है।
"प्रदोषे मासयोः प्राप्ते त्रयोदश्यां विशेषतः।
शिवपूजा
विधातव्या सर्वपाप प्रणाशिनी॥"प्रदोषे = प्रदोष काल में
· शनिवारे = शनिवार के दिन
· शिवपूजनं समाचरेत् = शिव का पूजन करें
· पापं दहति तत्सर्वं = वह (पूजन) समस्त पापों को जलाता है
· कालाग्निरिव पावकम् = जैसे कालाग्नि (प्रलयकालीन अग्नि) समस्त वस्तु को भस्म कर देती है
शनिवार के दिन आने वाला प्रदोषकाल अत्यंत पुण्यदायक होता है। इस समय जो भक्त शिव का पूजन करता है, उसके समस्त पाप प्रलय की अग्नि के समान भस्म हो जाते हैं। यह व्रत आत्मशुद्धि और शनि संबंधी पीड़ा के शमन हेतु अत्यंत प्रभावी है।
- धर्मसिन्धु (Dharmasindhu) –
“शनिवारे यदा प्रदोष तदा शनि प्रदोषाख्यं व्रतम्।
शिवपूजा
तत्र कार्या शनि पीडा निवारणाय।”
- प्रदोषे मासयोः प्राप्ते = प्रत्येक पक्ष में जब त्रयोदशी तिथि आती है (प्रदोष काल में)
- विशेषतः = विशेष रूप से
- शिवपूजा विधातव्या = शिव की पूजा करनी चाहिए
- सर्वपाप प्रणाशिनी = वह समस्त पापों का नाश करती है
हर पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत माना जाता है। लेकिन यदि यह शनिवार को पड़े तो इसका महत्व और बढ़ जाता है। इस समय की गई शिव पूजा समस्त दोषों और कष्टों का विनाश करने वाली मानी गई है।
📖 3. धर्मसिन्धु (Dharmasindhu)
“शनिवारे यदा प्रदोष तदा शनि प्रदोषाख्यं व्रतम्।
शिवपूजा
तत्र कार्या शनि पीडा निवारणाय।”
- शनिवारे = शनिवार को
- यदा प्रदोष = जब प्रदोष तिथि होती है
- शनि प्रदोषाख्यं व्रतम् = तब यह व्रत “शनि प्रदोष” कहलाता है
- शिवपूजा तत्र कार्या = उस दिन शिव की पूजा करनी चाहिए
- शनि पीडा निवारणाय = जिससे शनि की पीड़ा समाप्त होती है
जब प्रदोष तिथि शनिवार को आए, तब इसे विशेष रूप से "शनि प्रदोष व्रत" कहा गया है। इस दिन की गई शिव पूजा, शनिदेव द्वारा जनित पीड़ाओं जैसे – साढ़ेसाती, शनि की दशा-अन्तर्दशा, कष्ट, रोग, ऋण, न्यायिक संकट आदि को दूर करती है।
- व्रत-त्योहार (Geeta Press)
गीताप्रेस के "व्रत-त्योहार" ग्रंथ में शनि प्रदोष को ऋण-मुक्ति, न्याय में विजय, एवं मानसिक शांति के लिए अति प्रभावशाली बताया गया है।
📖 महत्व
🔱 शिवपुराण (Shiva Purana):
“त्रयोदश्यां प्रदोषे तु यो मां सम्पूजयेत् शिवम्।
शनि ग्रहेन
न बाध्येत कदाचिदपि मानवः॥”
👉 इस श्लोक के
अनुसार प्रदोष व्रत में शिवपूजन से शनि दोषों से रक्षा होती है।
🛕 लिंगपुराण (Linga Purana):
“शनिवारे प्रदोषे तु शिवपूजा विशेषतः।
मृत्युभीतिप्रशमनं
ऋणमोचनकारकम्॥”
👉 यह व्रत ऋणमोचन, कालमुक्ति तथा कष्टहरण का साधन है।
🕉️ स्कन्दपुराण (Skanda Purana):
“प्रदोषे तु शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्।
पापं दहति
तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥”
🕯️ पूजन विधि (Puja Vidhi)
📖 स्कन्दपुराण:
स्कन्दपुराण में कहा गया है:
"प्रदोषे तु शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्। पापं दहति तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥"
अर्थ: शनिवार को प्रदोष के समय शिवजी का पूजन करना चाहिए। यह समस्त पापों को ऐसे भस्म करता है जैसे कालाग्नि अग्नि को भस्म कर देती है।
📖 लिंगपुराण:
लिंगपुराण में वर्णन आता है कि शनि प्रदोष व्रत से भक्त के जीवन के सभी पाप और विघ्न समाप्त हो जाते हैं और शिव कृपा से मानसिक शांति, समृद्धि और भौतिक कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है।
🔅 पूजन विधि (शास्त्रीय प्रमाण सहित)
📌 1. स्नान एवं संकल्प:
- व्रत के दिन प्रातः शुद्ध स्नान कर शनि प्रदोष व्रत का संकल्प करें।
📌 2. दीपक प्रज्ज्वलन (निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु):
- सूर्यास्त से पूर्व शुद्ध घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं।
- दीपक की वर्तिका काले सूत से बनी होनी चाहिए।
📌 3. शिवलिंग अभिषेक (निर्णयसिन्धु):
- जल, दूध, शहद, तिल तेल से शिवलिंग का अभिषेक करें।
- काले तिल और काले पुष्प अर्पित करें।
📌 4. दिशा (धर्मसिन्धु):
- पूजा पश्चिम दिशा की ओर मुख कर करें।
📌 5. मंत्र जाप:
- "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें।
📌 6. व्रत कथा श्रवण:
- स्कन्दपुराण या लिंगपुराण में वर्णित शनि प्रदोष व्रत कथा का श्रवण करें।
🍲 भोजन नियम (शास्त्रीय संदर्भ)
✅ क्या खाएं:
- तिल, तिल से बने व्यंजन, दूध, शहद, काले चने।
- शुद्ध, सात्विक, हल्का एवं सुपाच्य भोजन।
🚫 क्या न खाएं:
- मांसाहार, शराब, तंबाकू, अत्यधिक तैलीय या मीठा भोजन वर्जित।
📚 प्रमाण: धर्मसिन्धु एवं निर्णयसिन्धु के व्रत नियमों के अनुरूप।
🔯 ज्योतिषीय लाभ (शास्त्रीय दृष्टि)
- शनि प्रदोष व्रत शनि की दशा या अंतर्दशा में कष्टों की शांति के लिए उत्तम है।
- ऋण, मुकदमे, न्यायिक उलझनों में राहत मिलती है।
- शनि दोष का प्रभाव कम होता है।
- मानसिक शांति, पारिवारिक सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।
📚 शास्त्रीय संदर्भ: स्कन्दपुराण, लिंगपुराण, निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धुपूजन विधि (प्रमाण सहित)
स्नान एवं संकल्प:
व्रत के दिन शुद्ध स्नान करें और शनि प्रदोष व्रत का संकल्प लें।
दीपक (निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु):
सूर्यास्त से पहले शुद्ध तिल तेल या घी से दीपक जलाएं।
दीपक वर्तिका काले सूत की होनी चाहिए।
शिवलिंग अभिषेक (निर्णयसिन्धु):
जल, शहद, दूध, तिल तेल से शिवलिंग अभिषेक करें।
काले तिल, काले पुष्प अर्पित करें।
दिशा (धर्मसिन्धु):
पूजा पश्चिम दिशा की ओर मुख कर करें।
मंत्र जाप:
"ॐ नमः शिवाय" का जाप करें।
व्रत कथा श्रवण:
शनि प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
1. शनि प्रदोष व्रत का महत्व (स्कन्दपुराण, निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु)
स्कन्दपुराण (अध्याय: प्रदोष व्रत)
“प्रदोषे तु शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्।
पापं दहति
तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥”
(श्लोक)
अर्थ: शनिवार के
प्रदोषकाल में शिव की पूजा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं जैसे आग।
निर्णयसिन्धु
“शनिवार प्रदोषे व्रतं कुर्यात् सिद्धिं शीघ्रं विना
विलम्बम्।
परिवार सुख
समृद्धौ च दांपत्यं च प्रसाधयेत्।”
(श्लोक)
अर्थ: शनिवार के
प्रदोष व्रत से शीघ्र सिद्धि मिलती है, परिवार में
सुख-समृद्धि और दांपत्य जीवन में सौभाग्य बढ़ता है।
धर्मसिन्धु
“शनि प्रदोषे व्रते पुण्यं प्राप्तं लोक नपुंसकाः।
परिवार
समृद्धि दंपत्यम् च विघ्न नश्यन्ति हि तत्॥”
(श्लोक)
अर्थ: शनि प्रदोष
व्रत से पुण्य की प्राप्ति होती है, परिवार में
समृद्धि आती है और दांपत्य जीवन सुखी होता है।
❌✅ क्या करें, क्या न करें?
करें (Do's) |
न करें (Don'ts) |
फलाहार लें – केला, सेब, अनार |
अनाज, लहसुन-प्याज, मांसाहार वर्जित |
काले तिल का सेवन/दान |
नशा, वाणी का दुरुपयोग |
पंचामृत अभिषेक, जल से अर्घ्य |
क्रोध, वाद-विवाद |
परिवारिक सुख, समृद्धि, दांपत्य सुख – शास्त्रीय प्रमाण सहित
1. स्कन्दपुराण में शनि प्रदोष व्रत का महत्व
📖 स्कन्दपुराण की कथा:
🕉️ एक बार एक चांडाल दंपत्ति ने अनजाने में शनि प्रदोष के दिन व्रत का पालन किया।
उस दिन उन्होंने संध्या के समय भोजन नहीं किया, शिव मंदिर के पास रात्रि विश्राम किया और प्रातः शिवलिंग के दर्शन किए।
इस अनजाने व्रत के प्रभाव से उनके सारे पाप नष्ट हो गए और
अगली जन्म में वे राजा और रानी बने। उन्होंने धर्मपूर्वक राज्य किया और अंत में शिवलोक को प्राप्त हुए।
------------------------------------------------------------------------------ स्कन्दपुराण – शिव रहस्य:
एक समय नन्दीश्वर ने यह कथा व्यासजी से कही थी कि जो भी शनिवार को पड़ने वाली त्रयोदशी को शिवजी का प्रदोषकाल में पूजन करता है, उसके समस्त पाप भस्म हो जाते हैं। शनि प्रदोष की एक विशेष कथा इस प्रकार है:
प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण बालक के माता-पिता को डकैतों ने मार डाला। अनाथ बालक दुखी होकर वन चला गया। वहां साधु-संतों से भेंट हुई और उन्होंने उसे शनि प्रदोष व्रत की महिमा बताई।
बालक ने पूरे नियम से शनि प्रदोष व्रत किया।
कुछ ही वर्षों में वह पुण्यशाली, धनी और विद्वान बन गया।
उसे विद्वता और भक्ति के कारण एक राजा ने अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया। जीवन सुखमय बीता। अंत समय शिवलोक को प्राप्त हुआ।
📜 श्लोक (स्कन्दपुराण):
“प्रदोषे तु शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्।
पापं दहति तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥”
🕉️ लिंगपुराण – पूर्वभाग, प्रदोषमहात्म्य अध्याय: एक अन्य कथा के अनुसार, स्वयं श्रीहरि विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा कि जो भक्त शनि प्रदोष व्रत करता है, वह भवसागर से पार हो जाता है। इस व्रत से शनि दोष, पूर्व जन्म के पाप, दरिद्रता, मानसिक कष्ट, ऋण इत्यादि समाप्त हो जाते हैं।
📖 धर्मसिन्धु एवं निर्णयसिन्धु: इन ग्रंथों में स्पष्ट रूप से शनि प्रदोष व्रत को शनि पीड़ा की शांति हेतु सर्वोत्तम व्रत माना गया है। व्रत विधि, दीपक, वस्त्र, दान, और नियमों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
📖 अन्य पुराणों में:
वायु पुराण में बताया गया है कि त्रयोदशी को भगवान शिव को बिल्वपत्र, तिल व नैवेद्य अर्पण करने से धन वृद्धि होती है।
गरुड़ पुराण में व्रत और उपवास से मन और शरीर की शुद्धि तथा पुण्यलाभ बताया गया है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में शिव पूजन से कुंडली के ग्रहदोषों में कमी तथा वैवाहिक सुख की प्राप्ति का उल्लेख है।
शिवजी ने स्वयं कहा:
"शनिवारे प्रदोषे तु यः पूजयति मामिह।
सर्वान्कामानवाप्नोति मृत्युं च न गच्छति॥"
अर्थ: “जो व्यक्ति शनिवार के प्रदोषकाल में मेरा पूजन करता है, वह समस्त कामनाओं को प्राप्त करता है और उसे मृत्यु भय नहीं रहता।”
स्कन्दपुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि किस व्रत को करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। तब भगवान शिव ने कहा:
"प्रदोषे तु
शनिवारे शिवपूजनं समाचरेत्।
पापं दहति
तत्सर्वं कालाग्निरिव पावकम्॥"
(स्कन्दपुराण, प्रदोष महात्म्य)
शनिवार को प्रदोष काल में किया गया शिव पूजन अत्यंत पुण्यदायक है। यह समस्त पापों का नाश करता है, ठीक वैसे ही जैसे कालाग्नि ईंधन को भस्म कर देती है।
भगवान शिव ने यह भी बताया कि इस व्रत को करने से न केवल व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है, अपितु उसे दरिद्रता, रोग, शोक, भय, ग्रहदोष जैसे सभी कष्टों से भी मुक्ति मिलती है।
📖 लिंगपुराण की कथा:
लिंगपुराण में शनि प्रदोष व्रत का उल्लेख "प्रदोष माहात्म्य" अध्याय में मिलता है। इसमें एक कथा आती है:
प्राचीन काल में एक निर्धन ब्राह्मण, जिसका नाम सुन्दरशर्मा था, वह अपने जीवन में अत्यंत कष्ट भोग रहा था। उसने किसी महर्षि से शनि प्रदोष व्रत के माहात्म्य को सुना और प्रतिवर्ष माघ मास में आने वाले शनि प्रदोष को उपवास सहित विधिपूर्वक करना प्रारंभ किया।
कुछ वर्षों में ही उसकी स्थिति में भारी परिवर्तन हुआ — उसे विद्या, धन, संतान एवं यश की प्राप्ति हुई। भगवान शिव की कृपा से उसका जीवन समृद्ध हुआ और वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो मोक्ष को प्राप्त हुआ।
1. ब्रह्मवैवर्त पुराण: शिवपूजन से ग्रहदोष निवारण एवं वैवाहिक सुख ;अपने ग्रहदोषों और वैवाहिक सुख की प्रार्थना करें।
श्लोक 1:
शिवपूजनेन हि दुःखानि सर्वाणि विनश्यन्ति।
ग्रहदोषश्चापि शम्यते, वैवाहिकसुखं लभते॥
शिव की पूजा से सभी प्रकार के दुःख समाप्त हो जाते हैं। ग्रहदोष भी शमन हो जाते हैं और वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
व्याख्या:
शिव की पूजा करने से जीवन में आने वाले ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं। इससे वैवाहिक जीवन में शांति, प्रेम और समृद्धि बढ़ती है।
श्लोक 2:
रुद्राभिषेकसहस्रं यः कुर्यात्प्रतिदिनं शुभम्।
स ग्रहदोषैर्निहतः स्यात्, वैवाहिके च सफलः॥
जो व्यक्ति प्रतिदिन हजार बार रुद्राभिषेक करता है, उसके ग्रहदोष समाप्त हो जाते हैं और वैवाहिक जीवन सफल होता है।
व्याख्या:
रुद्राभिषेक ग्रहदोषों के निवारण के लिए अत्यंत प्रभावी पूजा विधि है। इसका नियमित अनुष्ठान वैवाहिक सुख को बढ़ावा देता है।
श्लोक 3:
ॐ नमः शिवाय जपेन दोषाः सर्वा विनश्यन्ति।
कुर्वीत पूजनं शिवस्य, सुखं लभते परम्॥
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र जाप से सभी दोष नष्ट होते हैं। शिव की पूजा करने वाला परम सुख पाता है।
व्याख्या:
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली है। इसका नियमित जाप ग्रहदोषों का निवारण करता है और जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।
श्लोक 4:
यः सदा शिवं पूजयेद् भक्त्या, दोषाः स वै नाशयेत्।
सुखं वैवाहिकं प्राप्येत, संतानं च लभेत शुभम्॥
जो भक्तिपूर्वक सदैव शिव की पूजा करता है, उसके दोष नष्ट हो जाते हैं। वह वैवाहिक सुख और संतान का शुभ फल प्राप्त करता है।
शिव की सच्ची भक्ति और पूजा से जीवन में आने वाले सभी दोषों का नाश होता है। वैवाहिक सुख के साथ-साथ संतान सुख भी मिलता है।
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