वटवृक्षे समीपे यमराजं चालयति।
भक्ति-बलं समर्प्य जीवनं पुनराप्नोति।"
"The devoted Savitri, performing vrat beneath the sacred tree, even moved Yama with her unwavering faith — and brought life back through the strength of her devotion.
वट सावित्री व्रत पूजा ,सौभाग्य सृजन रहस्य कथानक 26 मई 2025
ज्योतिष शिरोमणि - पण्डित वी के तिवारी(9424446 706, jyotish9999@gmail.com)
ज्योतिष उपाधि : वाचस्पति, भूषण, महर्षि, शिरोमणि, मनीषी, रत्नाकर, मार्तण्ड, महर्षि वेदव्यास1(1976-1990 तक),विशेषज्ञता :(1972से) वास्तु, जन्म कुण्डली, मुहूर्त,रत्न परामर्श, हस्तरेखा, पंचांग संपादक |
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🌿 वट सावित्री व्रत: तिथि, विधि, श्लोक और ग्रंथ सन्दर्भ
पूजा प्रारम्भ समय-
सूर्योदय से 11:59-12:31; 09:15-10:40 ; 18:19-22:19 प्रारम्भ के समय का महत्व है |
📜 प्रस्तावना
वट सावित्री व्रत का पालन स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु, सौभाग्य और संतान प्राप्ति के लिए करती हैं।
यह व्रत महाभारत में वर्णित सावित्री और सत्यवान की कथा पर आधारित है, जिसमें सावित्री अपने तप और धर्मनिष्ठा से यमराज से अपने पति के प्राण वापस प्राप्त करती हैं।
🌿 वट सावित्री व्रत: विधि, श्लोक और ग्रंथ सन्दर्भ
पूजा प्रारम्भ समय-
सूर्योदय से 11:59-12:31; 09:15-10:40 ; 18:19-22:19 पुजा प्रारम्भ के समय का महत्व है |
वट सावित्री व्रत का पालन स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु, सौभाग्य और संतान प्राप्ति के लिए करती हैं। यह व्रत महाभारत में वर्णित सावित्री और सत्यवान की कथा पर आधारित है, जिसमें सावित्री अपने तप और धर्मनिष्ठा से यमराज से अपने पति के प्राण वापस प्राप्त करती हैं।
🗓️ व्रत तिथि के सम्बन्ध में ग्रंथों के भिन्न मत
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मान्यताएँ हैं:
1. निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु, निर्णयामृत: अमावस्या तिथि को व्रत ग्राह्य मानते हैं।
2. स्कन्द पुराण, भविष्योत्तर पुराण: पूर्णिमा तिथि को व्रत उपयुक्त मानते हैं।
यह भिन्नता अमान्त (अमावस्या को मासान्त) और पूर्णिमान्त (पूर्णिमा को मासान्त) पंचांग प्रणाली के कारण है।
🌺 व्रत का उद्देश्य और महत्व
यह व्रत पति की दीर्घायु, गृहस्थ सुख और वंशवृद्धि के लिए किया जाता है। सावित्री ने धर्म, बुद्धि और पतिव्रत से यमराज को संतुष्ट कर अपने पति को मृत्यु से बचाया। यह व्रत स्त्री की श्रद्धा, संयम और निष्ठा का प्रतीक है।
📖 पूजन श्लोक और अर्थ
1. सावित्री अर्घ्य श्लोक:
अवैधव्यं
च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते॥
👉 अर्थ: हे सुव्रता सावित्री! मुझे वैधव्य से मुक्त करें, सौभाग्य, पुत्र-पौत्र और सुख दें। आपको अर्घ्य अर्पित है, नमस्कार।
2. वटवृक्ष पूजन श्लोक:
वट सिञ्चामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा॥
👉 अर्थ: हे वटवृक्ष! जैसे आप पृथ्वी पर विस्तारित हुए हैं, वैसे ही मुझे पुत्र-पौत्रों से सम्पन्न करें।
📚 ग्रंथ प्रमाण
• निर्णयसिन्धु (पृष्ठ 205): चतुर्दशी युक्त या प्रतिपदा युक्त अमावस्या व्रत के लिए वर्ज्य मानी गई है।
• ब्रह्मवैवर्त पुराण: पूर्वविद्धा पूर्णिमा या अमावस्या व्रत हेतु वर्ज्य। व्रत शुद्ध तिथि पर ही करें।
• स्कन्द पुराण: व्रत पूर्णिमा को करें — यह उत्तम फलदायक है।
• भविष्य पुराण: सावित्री व्रत की विस्तृत विधि, कथा और पूजन वर्णित।
🗓️ 2025 में व्रत तिथियाँ
• अमावस्या व्रत: 26 मई 2025 (सोमवार) – चतुर्दशी युक्त है, अतः कुछ मान्यताओं में वर्ज्य।
• पूर्णिमा व्रत: 10 जून 2025 (मंगलवार) – शुद्ध तिथि, महाराष्ट्र-गुजरात की परंपरा अनुसार ग्राह्य।
✅ निष्कर्ष
यदि अमावस्या चतुर्दशी या प्रतिपदा से युक्त हो, तो शास्त्रों में उसे वर्ज्य माना गया है। ऐसे में शुद्ध पूर्णिमा को सावित्री व्रत करना सर्वोत्कृष्ट विकल्प है। यह व्रत धर्म, सौभाग्य, संतान और पतिसौख्य का सर्वोत्तम प्रतीक है।
📖 पूजन श्लोक और अर्थ
1. सावित्री अर्घ्य श्लोक:
अवैधव्यं
च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते॥
👉 अर्थ: हे सुव्रता सावित्री! मुझे वैधव्य से मुक्त करें, सौभाग्य, पुत्र-पौत्र और सुख दें। आपको अर्घ्य अर्पित है, नमस्कार।
2. वटवृक्ष पूजन श्लोक:
वट सिञ्चामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा॥
👉 अर्थ: हे वटवृक्ष! जैसे आप पृथ्वी पर विस्तारित हुए हैं, वैसे ही मुझे पुत्र-पौत्रों से सम्पन्न करें।
📚 ग्रंथ प्रमाण
• निर्णयसिन्धु (पृष्ठ 205): चतुर्दशी युक्त या प्रतिपदा युक्त अमावस्या व्रत के लिए वर्ज्य मानी गई है।
• ब्रह्मवैवर्त पुराण: पूर्वविद्धा पूर्णिमा या अमावस्या व्रत हेतु वर्ज्य। व्रत शुद्ध तिथि पर ही करें।
• स्कन्द पुराण: व्रत पूर्णिमा को करें — यह उत्तम फलदायक है।
• भविष्य पुराण: सावित्री व्रत की विस्तृत विधि, कथा और पूजन वर्णित।
🗓️ 2025 में व्रत तिथि-
• अमावस्या व्रत: 26 मई 2025 (सोमवार) – चतुर्दशी युक्त है, अतः कुछ मान्यताओं में वर्ज्य।
• पूर्णिमा व्रत: 10 जून 2025 (मंगलवार) – शुद्ध तिथि, महाराष्ट्र-गुजरात की परंपरा अनुसार ग्राह्य।
✅ निष्कर्ष
यदि अमावस्या चतुर्दशी या प्रतिपदा से युक्त हो, तो शास्त्रों में उसे वर्ज्य माना गया है। ऐसे में शुद्ध पूर्णिमा को सावित्री व्रत करना सर्वोत्कृष्ट विकल्प है। यह व्रत धर्म, सौभाग्य, संतान और पतिसौख्य का सर्वोत्तम प्रतीक है।
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(संदर्भ- भविष्योत्तर ,स्कंद
पुराण, निर्णयामृत, व्रतपरिचय, व्रत
पर्वोतत्सव)
वट एक
वृक्ष का नाम है ।सामान्य वृक्ष की कोटी में ना होकर,देव
वृक्ष के रूप में पूजित है। आयुर्वेदिक औषधि जगतमें भी इसका विशिष्ट महत्व है।
देव वृक्ष ?यह देव वृक्ष कहलाता है ।
पौराणिक आधार पर इस वृक्ष की जड़ में भगवान ब्रह्मा
मध्य में विष्णु जी तथा ऊपरी भाग में शिव जी का
निवास माना गया है अर्थात तीन देव इस वृक्ष से संबंधित हैं।
देवी सावित्री भी वटवृक्ष में अति स्थित मानी गई हैं
।
प्रसिद्ध वट वृक्ष-
भारत में कुछ स्थानों के वटवृक्ष अतिप्रसिद्ध हैं.
जैसे पंचवटी। कुंभज मुनि
के परामर्शसे भगवान राम एवंउनके वनवास काल मेंसीता
लक्ष्मण
जी ने यहां निवास किया था।अक्षय वट यह प्रयागराज में
गंगा
के किनारे बेनी माधव के समीप है।इसे तीर्थराज का
छत्र तुलसीदास ने कहा।
वट सावित्री शब्द?
बट सावित्री व्रत इसलिए प्रसिद्ध हुआ
क्योंकि इसके नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत ,आस्था, विश्वास ,श्रद्धा
से
मृत पति को जीवित कर लिया था ।
किस माह एवं TITHI?
इस व्रत का नाम वट सावित्री प्रचलित हुआ।
यह जेष्ठ मास में ही आता है ।
स्कंद पुराण, शिव
पुराण के आधार पर
पूर्णिमा के दिन वट सावित्री व्रत किया जाता है।
निर्णयामृत ग्रंथ एवम उत्तर भारत
के अधिकांश क्षेत्रों में इसे जेष्ठ मास की अमावस्या
को मनाने
की परंपरा में है।
महिलाओं का व्रत एवम लाभ?
महिलाओं से संबंधित व्रत है।किसी भी आयु की कोई भी
महिला
इसको अपने सुख सौभाग्य के लिएकर सकती हैं।
यह व्रत सुख, सौभग्य,आपत्ति
-विपत्तिनाशक भी माना गया है।
व्रत नियम-
A.त्रयोदशी तिथि को
संकल्प करना।
केवल रात्रि भोजन किया जावे।
🌿 वट सावित्री व्रत विधि (भविष्य पुराण के अनुसार)
-
स्नान करके संकल्प लें – ज्येष्ठ माह की अमावस्या को प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
-
निर्जल व्रत का पालन करें – पूरे दिन उपवास रखें, यथासंभव निर्जल रहें।
-
वटवृक्ष की पूजा करें – वटवृक्ष के नीचे जाकर दीप, धूप, नैवेद्य, पुष्प, जल, चन्दन आदि से पूजा करें।
-
सूत्र परिक्रमा करें – वटवृक्ष की सात या १०८ बार परिक्रमा करें, पीला या लाल धागा वृक्ष पर लपेटें।
-
सावित्री-सत्यवान की कथा श्रवण करें – सत्यवान की मृत्यु और सावित्री की तपशक्ति से यमराज को पराजित करने की कथा का पाठ या श्रवण करें।
-
ब्राह्मण/साध्वी को दक्षिणा दें – वस्त्र, अन्न, फल या धन का दान करें।
-
प्रार्थना करें – “पति की दीर्घायु, अखंड सौभाग्य” के लिए मन से प्रार्थना करें।
📖 विशेष निर्देश (भविष्य पुराण सन्दर्भ से):
-
यह व्रत केवल पतिव्रता स्त्रियों के लिए है।
-
व्रत करने वाली स्त्री धर्म, आयु, सौभाग्य और संतान के योग को प्राप्त करती है।
-
इस व्रत से पूर्व जन्म के पाप भी क्षीण हो जाते हैं।
संकल्प मंत्र-पूर्व या उत्तर(Face to be either East or North)
हाथ मे जल लेकर कहे-
मम वैधव्य आदि सकल दोष परिहारार्थम,ब्रह्म
सावित्री प्रीत्यर्थम च
वट सावित्री व्रतं अहम करिष्ये।
पृथ्वी पर छोड़ दे।
B-चतुर्दशी को अयाचित भोजन
करे।
C-अमावस्या को उपवास एवं
पूजा।
विधि-
किसी 2 पात्र
में सप्त धान अर्थात सात प्रकार के
अनाज रखें ।
इन दोनों पात्रों मैं से एक पर ब्रह्मा एवं ब्रह्मा सावित्री एवं
दूसरे
पर सत्यवान एवं सावित्री रखें ।
इनको आटे या मिट्टी से भी प्रतीक स्वरूप बनाया जा
सकता है ।
इनकी पूजा करे। पुष्प , फल, रोली, सिंदूर, चावल ,काले तिल आदि अर्पित करें।
पास
में ही यम बनाकर उनकी भी पूजा की जाती है।ॐ यमाय नम:।
वट वृक्ष जड़ पर जल अर्पण-मंत्र
वट सिंचामि ते मूलं सलिल
अमृत उपमै:।
यथा शाखा प्रशाखा अभि वृद्धिअसित्वं महीतले।
तथा पुत्रेश्च पौत्रेशच सम्पन्नम कुरु
मांम मॉ सर्वदा।
चने पर रुपये रख कर सास को देकर
आशीर्वाद लिया जाता है ।
सौभाग्य सामग्री मंदिर में दान या देवी को अर्पित।
जल अर्पण(अर्ध्य)-मंत्र
अवैध्वयं च सौभाग्यम देहि त्वम मम सुव्रते।
पुत्रां पौत्रान्श्च सौख्यम च ग्रहणार्ध्यम नमोस्तुते।
D- 108 परिक्रमा(यथा शक्ति
या9,11,54)-
परिक्रमा मंत्र-
"नमो वैवस्वताय" बोलते
रहे।या एक परिक्रमा पर एक बार।
108 या
परिक्रमा संख्या गिनने के लिए ,पहले किसी
वस्तु
रेवड़ी, बताशा,चुरोंजी
दाना, इलायची आदि गईं ले।हर परिक्रमा के बाद छोड़ते जाए।
E-प्रतिपदा तिथि को
अन्न ग्रहण करे।
व्रत
की तुलना में पूजा महत्व पूर्ण है।
****††************
सावित्री और उसके पति सत्यवान का विवरण वट सावित्री
व्रत के प्रसंग में-
मद्र देश के राजा अश्वपति को यज्ञ विशेषद्वारा पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका
नाम सावित्री रखा गया।द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से सावित्री
की शादी का निर्णय हुआ ।
महर्षि नारद जी को जब यह ज्ञात हुई तो वे राजा के पास पहुंचे ।
नारद जी ने कहा- वर ढूंढने मेंआपके द्वारा भूल, गलती या त्रुटि हुई है ।
यह वर अल्पायु है। इसकी 1 वर्ष केअंदर मृत्यु हो जाएगी ।इसलिए किसी
और वर को चुन लेना उचित होगा ।
परंतु सावित्री द्वारा कहा गया कि,
मेरे द्वारा पति का वरण किया जा चुका है ।अतः अब इसमें किसी भी प्रकारके परिवर्तन या
पुनर्विचार काकोई प्रश्न ही नहीं उठता है ।
अंततः सत्यवान से सावित्री का विवाह कर दिया गया।
महर्षि नारद सत्यवान की मृत्युतिथि, सावित्री
को सत्यवान की
आयु के लिए व्रत पूजा के निर्देशदेकर
,वहां से प्रस्थित हो गए।
नारद जी के निर्देशानुसार सावित्रीअपने पति की आयु के
लिए उपवास
पूजन आदि करने लगी अंततःमृत्यु का दिन भी आ पहुंचा
जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा।
मृत्यु तिथि यही
नारद के द्वारा बताई
गई थी अतः सावित्री
छाया की तरह अपने पति सत्यवान के साथ
प्रातः सूर्योदय काल से ही साथ रही।
यज्ञ
हेतु संमिधा लाने सत्यवानवन की ओर प्रस्थान करने लगे ।
सास ससुर से आज्ञा लेकर सावित्री भी संमिधा
एकत्र करनेके लिए साथ में गई।
वहां एक वट वृक्ष के नीचे, एक
विष धर/सर्प ने सत्यवान को
डस लिया ।
उस समय ही यमराज
उपस्थित हुएऔर सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को
लेकर जाने लगे ।यम देव के पीछे 2 सावित्री
अनुगमन
करने लगी।परंतु यमराज के समझानेपर वह वापस नहीं
हुई ।
तो यमराज ने उससे वर
मांगने को कहा।
और सावित्री की लौट जाने के लिए परामर्श दिया।
सावित्री ने कहा- मेरे अंधे सास ससुर को
नेत्र ज्योति प्रदान करें जिससे वे देख सकें।यमराज ने वर दे दिया।
इसके पश्चात भी सावित्री निरंतर यमराज केपीछे चलती रही।यमराज ने कहा-हे देवी, अब तुम्हें वापस जाना चाहिए।तुम एक वर और मांग लो ।
सावित्री बोली यदि वर देना चाहते हैं -
तो मेरे
ससुर को उनका राज्य वापस मिल
जाए ।
यमराज जी ने तथास्तु कह कर वर दे दिया।
इसके पश्चात भी यमराज ने जबपलट कर देखा तो सावित्री
उनका
अनुगमन कर रही थी।
यमराज बोले- हे पति व्रता सावित्री तुमको
मैं ने वर दिए ।अब तुमको वापस चला जाना चाहिए ।
सावित्री ने उत्तर दिया- कि जहां सत्यवान होगा वही मैं भी , मैं उसकी पत्नी हूं इसलिए उसके साथ ही रहूंगी।द्रवि भूत होकर यमराज बोले =सावित्री तुम्हें अब वापिस जाना चाहिए
अब एक बार और मांग लो परंतु वापस चली जाओ ।‘
सावित्री बोली के जी वर देना ही चाहते हैं तो मुझे वर दीजिए कि
=मैं सत्यवान के पुत्रों की मां बनुं/ यमराज द्वारा अंततः सत्यवान को मृत्यु पाश सेमुक्त कर सावित्री को सौंप दिया गया.
इससे इस प्रसंग के बाद इस घटना के बाद एक विश्वास प्रचलन में आया, प्रचलित हुआ की आस्था और विश्वास से पति परायणता से नारी इस दिन वटवृक्ष की पूजा कर अपने पति को दीर्घायु बना सकती हैएवं आने वाले विपत्ति को रोक सकती है;
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🌿 सावित्री–सत्यवान की पवित्र कथा
(श्रवण हेतु संक्षिप्त एवं भावपूर्ण रूप में)
📜 प्रस्तावना
यह कथा महाभारत के वनपर्व में वर्णित है, जब युधिष्ठिर की जिज्ञासा पर ऋषि मार्कण्डेय उन्हें एक पतिव्रता स्त्री की महानता बताने के लिए सावित्री की गाथा सुनाते हैं।
👑 राजा अश्वपति और देवी सावित्री का जन्म
मद्रदेश के राजा अश्वपति संतानहीन थे। उन्होंने सावित्र व्रत और गायत्री मंत्र के जाप से तप किया। अंततः देवी सावित्री स्वयं प्रकट हुईं और उन्हें कन्या रूप में जन्म लेने का वरदान दिया।
इस कन्या का नाम सावित्री पड़ा — क्योंकि वह गायत्री की कृपा से प्राप्त हुई थीं।
🏹 सावित्री का स्वयंवर
सावित्री ने स्वयंवर के लिए एक वनवासी राजकुमार को चुना — सत्यवान।
परंतु राजर्षि नारद मुनि ने चेतावनी दी कि सत्यवान का जीवन केवल एक वर्ष शेष है।
फिर भी सावित्री ने कहा —
"पति एक ही होता है। जिसे मैंने हृदय से स्वीकार किया है, वही मेरा जीवनधन है।"
🧘♀️ सावित्री का व्रत और कठोर तप
सावित्री ने विवाह के पश्चात तपश्चर्या और उपवास आरंभ कर दिए।
जैसे-जैसे सत्यवान की मृत्यु निकट आई, सावित्री ने तीन दिन का निर्जल व्रत रखा और अमावस्या को वटवृक्ष के नीचे बैठकर पूजा व कथा श्रवण की।
⚰️ सत्यवान की मृत्यु और यमराज का आगमन
अमावस्या के दिन, जब सत्यवान वनों में लकड़ी काट रहे थे, तभी उसे चक्कर आया और वह गिर पड़ा।
यमराज वहाँ आए और उसका प्राण हरकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए।
🚶♀️ सावित्री का यम के पीछे चलना
सावित्री यमराज के पीछे-पीछे निर्भय चलने लगीं।
यमराज ने कहा:
"अब यह जीव तुम्हारा नहीं, लौट जाओ।"
परंतु सावित्री ने धर्म, सेवा, नारी धर्म पर विवेचन किया।
प्रभावित होकर यमराज ने उसे वरदान दिए—
-
उसके ससुर का नेत्रज्योति और राज्य की पुनर्प्राप्ति
-
सौ पुत्रों की प्राप्ति
-
दीर्घायु और सौभाग्य
तब सावित्री बोली —
"यदि मुझे सत्यवान से सौ पुत्रों का वर मिला है, तो उसे जीवन देना ही पड़ेगा।"
यमराज मुस्कुराए और बोले —
"तुम धर्मपत्नी हो। तुम्हारे पतिव्रत और बुद्धि से मैं प्रसन्न हूँ। सत्यवान को जीवनदान देता हूँ।"
🌼 सत्यवान का पुनर्जीवन और कथा का फल
सत्यवान जीवित हो गया।
सावित्री सत्यवान को लेकर आश्रम लौटी। उसके ससुर का राज्य भी लौट आया।
सावित्री ने नारी धर्म, पतिव्रता की महिमा और तप के बल से मृत्यु को भी पराजित कर दिया।
📘 फलश्रुति
"जो स्त्री यह कथा सुनती या पढ़ती है, वह अखंड सौभाग्यवती रहती है।
उसका पति दीर्घायु होता है और संकटों से रक्षा होती है।"
(संस्कृत-हिंदी संक्षिप्त भावार्थ सहित)
🔱 प्रस्तावना
वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु, आरोग्य और पुनर्जन्म तक साथ रहने की कामना से किया जाने वाला एक अत्यंत पुण्यदायी व्रत है। यह व्रत महर्षि नारद द्वारा वर्णित और भविष्य पुराण व स्कन्द पुराण में उल्लेखित है।
📖 मुख्य कथा
बहुत प्राचीन काल में राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री परम रूपवती, विदुषी और धर्मनिष्ठ थी। उसने अपने लिए पति के रूप में सत्यवान को चुना, जो वन में अपने नेत्रहीन माता-पिता के साथ रहते थे और निर्धन थे।
जब नारद जी ने सावित्री को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं, तब भी सावित्री ने अडिग होकर उनसे विवाह किया। विवाह के बाद वह वन में अपने पति के साथ रहने लगी और माता-पिता की सेवा में सहयोग दिया।
एक दिन सावित्री ने देखा कि एक वर्ष पूर्ण होने के समीप है। वह जानती थी कि उसी दिन सत्यवान की मृत्यु होने वाली है। उसने व्रत रखा, स्नान कर वटवृक्ष (बरगद) की पूजा की और पति के साथ वन में गई।
वन में लकड़ी काटते समय सत्यवान को चक्कर आया और वह सावित्री की गोद में मूर्छित हो गए। उसी समय यमराज वहां आए और सत्यवान की आत्मा को लेने लगे।
🕉️ सावित्री और यमराज का संवाद
सावित्री ने यमराज का पीछा किया और उनसे धर्म, नारीशक्ति, पति-पत्नी के संबंधों पर गूढ़ संवाद किया। यमराज सावित्री की बुद्धिमत्ता, त्याग और सत्य पर दृढ़ विश्वास से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दे दिया।
🌼 फलश्रुति (व्रत का फल)
"या सावित्री व्रतं कुर्याद् धर्मपत्नी सदा नृणाम्।
सा सौभाग्यवती नारी पतिलाभं पुनः पुनः॥"
भावार्थ: जो स्त्री सावित्री व्रत करती है, वह अपने पति को पुनः प्राप्त करती है। वह कभी विधवा नहीं होती।
🌿 वटवृक्ष का प्रतीकात्मक अर्थ
-
वटवृक्ष दीर्घायु, अखंडता, और ब्रह्म का प्रतीक है।
-
सावित्री ने वटवृक्ष के नीचे संकल्प लिया था, इसलिए यह व्रत 'वट सावित्री व्रत' कहलाता है।
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वट सावित्री व्रत – शास्त्र सम्मत तिथि निर्धारण-26 मई को व्रत किया जा सकता
१. मूल शास्त्रीय वाक्य
📜 "वट सावित्री व्रत विशुद्ध अमावास्यायामेव।"
अर्थ: वट सावित्री व्रत केवल शुद्ध अमावस्या तिथि में ही करना चाहिए — जिसमें न चतुर्दशी युक्ति हो और न प्रतिपदा युक्ति।
२. शब्दार्थ
शब्द |
अर्थ |
वट सावित्री व्रत |
वट वृक्ष के नीचे किया जाने वाला सावित्री-सत्यवान व्रत |
विशुद्ध |
पूर्ण रूप से शुद्ध, चतुर्दशी या प्रतिपदा युक्ति से रहित |
अमावास्यायामेव |
केवल अमावस्या तिथि में ही |
३. तात्पर्य (व्याख्या)
व्रत का फल तभी शास्त्रानुसार और पुण्यप्रद माना जाता है जब वह अमावस्या पूर्ण रूप से शुद्ध हो — यानी कि न तो चतुर्दशी से संयुक्त हो और न ही प्रतिपदा से।
- यह नियम सामान्य अमावास्या कर्मों से अलग है और विशेष व्रत जैसे कि वट सावित्री व्रत पर ही लागू होता है।
४. शास्त्रीय स्रोत
· १. निर्णयसिन्धु – पृष्ठ 205: "तत्र चतुर्दश्युक्तायाम् वर्ज्यम्।"
📌 विशेष सूचना: वट सावित्री व्रत – २६ मई २०२५ को ही मान्य
🔸 "वट सावित्री व्रत के लिए अमावस्या तिथि का सामान्य नियम लागू नहीं होता। यह अनेक ग्रंथों में उल्लिखित है।
🔸 "The general Amavasya rule does not apply to Vat Savitri Vrat, as mentioned in several scriptures. The Kṛiṣṇa Trayodashi is scripturally valid for this vrat. Therefore, observe Vat Savitri Vrat on 26 May 2025 (Monday) only."
· २. निर्णयामृत – व्रतचन्द्रिका खंड: "वट सावित्री व्रत विशुद्ध अमावास्यायामेव।"
· ३. व्रतराज: "न चतुर्दश्याम् कर्तव्यम्।"
· ४. कर्मकौस्तुभ: अमावास्या व्रत हेतु विशुद्धि आवश्यक।
५. व्यावहारिक निर्णय – २०२५इस व्रत की तिथि कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को ही शास्त्रसम्मत मानी गई है। अतः २६ मई २०२५ (सोमवार) को वट सावित्री व्रत विधिपूर्वक करें।"
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