माननीय
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कुंडली मिथुन लग्न की है। जिसमें महत्वपूर्ण तथ्य है
कि शनि का उपग्रह गुलिक द्वितीय स्थान पर है एवं शनि वक्री होकर चतुर्थ स्थान पर
है। जिसके साथ राहु का उपग्रह धूम उपस्थित है
इसके साथ ही गुरु और चंद्र मीन राशि में दशम भाव में उपस्थित होकर उन को विभिन्न स्तर पर उच्च स्तरीय सफलता पर प्रभाव यश आदि की प्रदान करते रहेगे। एकादश स्थान में वक्री बुध के साथ सूर्य मंगल की स्थिति है मंगल स्व राशि का है एवं सूर्य उच्च राशि का है परंतु बुध वक्री है । द्वादश भाव में अपनी राशि का शुक्र विराजित है| घटित सूर्य ग्रहण- *मिथुन राशि ,मिथुन लग्न के लिए विशेष एवं मीन राशि,वृश्चिक राशि के लिए एवं -"क,छ,द,छ,च,य," नाम के प्रथम अक्षर वालों के लिए अशुभ घटित होगा |इस प्रकार सूर्य ग्रहण कांग्रेस एवं मिथुन राशि वालो के लिए अपयश,विवाद,विरोध,अपदस्थी का संक्रांतिकाल रहेगा | भविष्य के ज्ञान के उपकरण- दशा एवं गोचर का जन्म कुंडली पर बहुत प्रभाव पड़ता है . यदि हम ,लग्न को हाइब्रिड सीड माने , नवमांश फल है।जिसपर ध्यान दें तो अष्टम भाव में सूर्य गुरु और शुक्र उपस्थित है ।तथा द्वादश भाव में धूम वक्री शनि एवं प्राण पद की स्थिति है । दशम स्थान में तथापि चंद्र मंगल उपस्थित है। मंगल अपनी राशि का है इस प्रकार यह तो निश्चित हो गया कि जो लग्न कुंडली में उच्च का सूर्य था वह नवमांश मेंअष्टम भाव में चला गया है ।इसलिए सूर्य से किसी प्रकार की सहायता का प्रश्न नहीं है। मंगल लग्नेश का शत्रु है इसलिए यह विरोधियों से आक्रामक स्थिति बनाए रखेगा। दोनों ही कुंडली में बुध शनि प्रभाव शील है इसका मतलब उन दोनों कुंडली में सूर्य मंगल एवं गुरु कोई उपयोगी सिद्ध नहीं होते हैं । श्रेष्ठ-उसकी तुलना में शनि बुध एवं शुक्र ही उनको हमेशा विराजित करते हैं. तथा नवमांश में राहु वृषभ राशि में उपस्थित है या उन्हें कठिन स्थितियों से निकाल लेता है वर्तमान में चर दशा का अवलोकन करें तो स्पष्ट है कि कन्या जिसमें बक्री शनि उपस्थित हैं ।उसमें तुला जिसमें ब्याघात उपस्थित है। लग्न के अकारक ग्रह सूर्य मंगल उसको पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं। इसके साथ ही 1 जुलाई से गुरु दशम।चर दशा में मेष। 14 जुलाई से वृष एवं 8 अगस्त से कर्क आदि का प्रवेश अपयश आरोप बाधा एवं शत्रु प्रबल था या विरोधी प्रबलता के संकेत दे रहा है। इसके बाद यदि हम प्रसिद्ध दशा पदनधानश का आवलोकन करे तो मिथुन में तुला एवं सिंह की प्रत्यंतर दशा उपस्थित है ।इससे स्पष्ट है कि सिंह राशि जो कि सूर्य की है ,जो नवमांश में अष्टम भाव में चला गया है तथा उसका शत्रु राहु प्रबंल दृष्टि से देख रहा है। तथा पंचम भाव जो तुला है वह ब्याघात उपस्थित है । लग्न के अकारक ग्रह सूर्य मंगल आदि उसको पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं ।ऐसी राशि की दशा अपयश आरोप अपदस्थ आदि समस्याएं उत्पन्न करने में सक्षम है। इसके बाद कर्क भी विभिन्न प्रकार से बाधा उत्पन्न करने वाली है। कुल मिलाकर 28 अगस्त तक के लिए पदनाधाश सुदशा के अनुसार उनका समय काफी खराब है। यदि हम गहराई से और विचार करें तो 14 जुलाई से लेकर 24 जुलाई तक का समय उनके लिए और अधिक अशुभ है । जिसमें इस बात की संभावना ज्यादा है कि 16 जुलाई से 19 जुलाई के मध्य उनको विकट परिस्थितियों से जूझना पड़े । इसके साथ यदि हम गोचर पर विचार करें तो उसके अनुसार गुरु जुलाई से दशम भाव में आकर सहायक बनने में असफल हो गया है। गुरुवार का दिन अशुभ सिद्ध होगा| शनि एकादश तो है परंतु बक्री हो रहा है तथा यह अष्टमेश एवं नवमेश दोनों है। इसलिए अष्टमेश अर्थात शारिरिक कष्ट के साथ अपदस्थ आरोप की स्थिति भी बना रहा है । गोचर में भी राहु शनि गुरु आदि 30 नवंबर तक उनके अनुकूल नहीं है ।उत्तरोत्तर प्रतिकूलता बढ़ेगी। चर दशा के आधार पर यदि हम देखें तो धनु जोकि द्वादश भाव है जिसने पाप ग्रह सूर्य शनि विराजित है ।तथा उसमें अंतर्दशा वृश्चिक की जो एकादश भाव मारक है ।वृश्चिक का स्वामी मंगल, मंगलवार घटना प्रधान बनेगा| जन प्रतिनिधित्व कारी है और एवं इसके बाद द्वितीय भाव भी प्रभावित हो रहा है| इस प्रकार 6 जुलाई से उत्तरोत्तर ऋण आत्मक स्थिति बन रही है जो 19 जुलाई तक विशेष रहेगी ।14 जुलाई से 19 जुलाई का समय विशेष रूप से सावधानी का है। अगर यह समय निकल जाता है तो फिर 26 जुलाई से 2 अगस्त तक विपरीत स्थितियां बनी रहेंगी जिसमें 28 से 30 जुलाई अत्यंत हानिकारक सिद्ध हो सकता है । शपथ कालीन कुंडली के आधार पर जो दशाएं षोडशोत्तरी, नवांश तथा नारायण दशा अवलोकन करें तो स्पष्ट होता है कि 19अक्तूबर तक अनेकों प्रतिकूल स्थितियाँ बनेगी| किसी भी प्रकार से पूर्ण कार्यकाल किया जाना वर्तमान कांग्रेस सरकार के लिए ज्योतिष के सिद्धांतों के आधार पर दुसाध्य असंभव सा ही है। शुभमअस्तु। |
श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें : १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे । २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए । ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं । श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते किस तिथि की श्राद्ध नहीं - १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल
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