विषधर से मृत्यु एवं कालसर्प योग से पूजा,रक्षा
प्रभावी मंत्र
गोबर से
या रोली चंदन काले रंग से 9 नाग की
एवम 9 उनके
बच्चों कीआकृति बनाये द्वार पर
एवम पूजा स्थल पर।
उनकी पूजा करे। विशेष पूजा शुभ काल प्रातः06:011- से 08:31 तक है।
उनकी पूजा करे। विशेष पूजा शुभ काल प्रातः06:011- से 08:31 तक है।
विष भय एवम विजय के साथ संतान सुख के लिए भी उपयोगी नाग पूजा।
1नाग
स्मरण- 12:36 -se
मंत्र-
1-नमोस्तु
सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु।
ये
अंतरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम:।।
जो सर्प
पृथ्वी के अंदर व अंतरिक्ष में हैं और स्वर्ग में हैं, उन सर्पों को नमस्कार है। राक्षसों
के लिए बाण के समान तीक्ष्ण और वनस्पति के अनुकूल तथा जंगलों में रहने वाले
सर्पों को नमस्कार है।
मंत्र 2 : * ॐ भुजंगेशाय विद्महे, सर्पराजाय धीमहि,तन्नो नाग: प्रचोदयात्।।
'सर्वे
नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वी तले।
ये च हेलि मरीचिस्था ये अन्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वति गामिन:।
ये च वापी तडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।'
अर्थात् – है नाग देव आपको
नमस्कार |आप आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-कहीं भी विराजित हों,हमारे दुखों को दूर कर हमें सुख-शांति
दें।
4-ये वामी
रोचने दिवो ये वा सूर्यस्य रश्मिषु।
येषामपसु
सदस्कृतं तेभ्य: सर्वेभ्यो: नम:।।
जो सूर्य
की किरणों के अनुसार , सूर्य की
ओर मुख किए हुए चला करते हैं तथा जो सागरों में समूह मे रहते हैं, उन सर्पों को नमस्कार है। तीनों लोकों
में जो सर्प हैं, उन्हें भी
हम नमस्कार करते हैं।
ॐ कलदेवतायै
नम:।'
ॐ
पितृदेवतायै नम:।'
ॐ
नागदेवतायै नम:।'
2नाग आमंत्रण या आवाहन मंत्र-
2नाग आमंत्रण या आवाहन मंत्र-
1—
|
अथ
नाग आवाहन ।।
विधि-वाये हाथ मे पुष्प 10 या जौ,या
बिना टूटे चावल ले लीजिए फिर नाग का स्मरण करते हुए दाहिने हाथकी उंगलि एवम
अंगूठे के द्वारा उसकी दिशा मे फेंकते
/छोडते जाए |
अनन्त नाग मध्यमा (Middleदिशा)
अनन्तं
विप्रवर्गं च रक्त कुंकुम वर्णकम् ।
सहस्त्र फण संयुक्तं तं देवं प्रणमाम्यहम् ।। १ ।।
शेष नाग पूर्वमा (ESAT दिशा)
विप्रवर्गं श्वेतवर्णं सहस्त्र फण संयुतम्
।
आवाहयाम्यहं देवं शेष वै विश्वरुपिणम् ।। २ ।।
वासुकी
नाग
आग्नेयमा (S-Eदिशा)
क्षत्रिय पीतवर्णं च फणैर्सप्तशतैअर्युतम् ।
युक्तमतुंगकायं च वासुकी प्रणमाम्यहम् ।। ३ ।।
तक्षक नाग दक्षिणमा(SOUTHदिशा)
वैश्यवर्गं
नीलवर्णं फणै: पंचशतैअर्युतम् ।
युक्तमुतुंग्कायं च तक्षकं प्रणमाम्यहम् ।। ४ ।।
कर्कोटक नाग नैऋत्यमा(S-Wदिशा)
शूद्रवर्गं
श्वेतवर्णं शतत्रय फणैअर्युतम् ।
युक्तमुत्तुंगकायं
च कर्कोटं च नमाम्यहम् ।। ५ ।।
शंखपाल नाग पश्चिममा (Westदिशा)
शंखपालं क्षत्रीयं च पत्र सप्तशतै: फणै: ।
युक्तम उत्तुंग
कायं च शिरसा प्रणमाम्यहम् ।। ६ ।।
नील नाग वायव्यमा (N-Wदिशा)
वैश्यवर्गं नीलवर्णं फणै: पंचशतैर्युतम् ।
युक्तम
उत्तुंग
कायं च तं नीलं प्रणमाम्यहम् ।। ७ ।।
कम्बलक
नाग उत्तरमा (Northदिशा)
कम्बलं शूद्रवर्णं च शतत्रय फणैअर्युतम् ।
आवाहयामि नागेशं प्रणमामि पुन: पुन: ।। ८ ।।
महापद्म नाग इशानमा(N-Eदिशा)
वैश्यवर्गं
नीलवर्णं पत्रं पंच शतैर्युतम् ।
युक्तमत्तुंग
कायं च महापद्मं नमाम्यहम् ।। ९ ।।
उत्तरमा राहु
दक्षिणमा
केतु
*ऊँ नमःशिवाय*
गायत्री मंत्र 'ॐ नवकुलाय
विद्यमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्'
Daan- नागपंचमी को सोने, चांदी व तांबे के नाग बनवाकर शिव
मंदिर में चढ़ाता है या दान देता है, उसका
सर्प का भय खत्म कर वह स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।
3 वैदिक
मन्त्र -
ॐ
नमोस्तु सर्पेभ्यो येके च पृथिवी मनु ये अन्तरिक्षे येदि वितेब्भ्य:
सर्पेब्भ्यो नम: ।
या इषवो यातुधान आनांय्येवअव्वन स्प्पतिँरनु
। ये वावटेषु शेरतेतेब्भ्य: सर्पेब्भ्यो नम: ।
येवा
मीरोचने दिवो येवासूर्य्यस्य रश्मिषु । येषामप्पसुसदस्कृतन्तेब्भ्य:
सर्पेब्भ्योनम: ।।
4-नाग स्तुति-
एतैत
सर्पा: शिव कण्ठ भूषा ।
लोक उपकाराय भुवं वहन्त: ।।
भूतै:
समेता मणि भूषिताङ्गा: ।
गृह्णीत
पूजां परमं नमो व: ।।
कल्याणरु
पं फणि राजमग्र्यं ।
नाना फणा
मण्डल राजमानम् ।।
भक्त्यैक
गम्यं जनता शरण्यं ।
यजाम्यहं न: स्वकुल अभिवृद्ध्यै । ।
5-सर्प सूक्त-
विष्णु
लोके च ये सर्पा: वासुकी प्रमुखाश्च ये ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदश्च ।।१।।
रुद्र
लोके च ये सर्पा: तक्षक: प्रमुखस्तथा
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।२।।
ब्रह्मलोकेषु
ये सर्पा शेषनाग परोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।३।।
इन्द्रलोकेषु
ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।४।।
कद्रवेयश्च
ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।४।।
इन्द्रलोकेषु
ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।५।।
सत्यलोकेषु
ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।६।।
मलये
चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।७।।
पृथिव्यां
चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।८।।
सर्वग्रामेषु
ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।९।।
ग्रामे
वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति च ।
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१०।।
समुद्रतीरे
ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।११।।
रसातलेषु
ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य:
सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।१२।
।।अथ
नवनाग स्तोत्रम ।।
अनन्तं
वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं
ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
एतानि
नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले
पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य
विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत
6-नवनाग स्त्रोत-
|
अगस्त्यश्च
पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च ।
सुमन्तुजैमिनिश्चैव
पञ्चैते वज्रवारका: ॥१॥
मुने:
कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात् ।
विद्युदग्निभयं
नास्ति लिखितं गृहमण्डल ॥२॥
अनन्तो
वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक: ।
कुलीर:
कर्कट: शङ्खश्चाष्टौ नागा: प्रकीर्तिता: ॥३॥
यत्राहिशायी
भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर: ।
भङ्गो
भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ॥४॥
॥ इति
श्रीनागस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
6-नाग
गायत्री मंत्र-
।।अथ नाग
गायत्री मन्त्र ।।
ॐ नव
कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमाहि तन्नो सर्प प्रचोदयात ।।
7 नाग देव
आरती-
आरती
कीजे श्री नाग देवता की, भूमि का भार वहनकर्ता की ।
उग्र
रूप है तुम्हारा देवा भक्त, सभी करते है सेवा ।।
मनोकामना
पूरण करते, तन-मन से जो सेवा करते ।
आरती
कीजे श्री नाग देवता की , भूमि का भार वहनकर्ता की ।।
भक्तो
के संकट हारी की आरती कीजे श्री नागदेवता की ।
आरती
कीजे श्री नाग देवता की, भूमि का भार वहनकर्ता की ।।
महादेव
के गले की शोभा ग्राम देवता मै है पूजा ।
श्ररेत
वर्ण है तुम्हारी धव्जा ।।
दास
ऊकार पर रहती क्रपा सहसत्रफनधारी की ।
आरती
कीजे श्री नाग देवता की, भूमि का भार वहनकर्ता की ।।
आरती
कीजे श्री नाग देवता की, भूमि का भार वहनकर्ता की ।।
।। इति
समाप्त ।।
9- पूर्व जन्म कर्म सर्प
विष मृत्यु दोष :
मनसा देवी
स्मरण विषधर काल नाग से
सुरक्षा-
सर्प भय मुक्त मनसा देवी
स्मरण-
मनसा देवी ध्यानं-
चारु
चम्पक वर्णाभां सर्वाङ्ग सुमनोहराम् ।
नागेन्द्र
वाहिनीं देवीं सर्वविद्या विशारदाम् ॥
श्रीनारायण
उवाच -
नमः
सिद्धि स्वरुपायै वरदायै नमो नमः ।
नमः कश्यप
कन्यायै शंकरायै नमो नमः ॥ १॥
बालानां
रक्षण कर्त्र्यै नाग देव्यै नमो नमः ।
नमः आस्तीक
मात्रे ते जरत्कार्व्यै नमो नमः ॥ २॥
तपस्विन्यै
च योगिन्यै नाग स्वस्रे नमो नमः ।
साध्व्यै
तपस्यारुपायै शम्भु शिष्ये च ते नमः ॥ ३॥
॥ इति
श्रीमनसास्तोत्रम् ॥
10-प्रारब्ध दोष: नाग से
सुरक्षा एवम
कीलन गुरु
गोरख नाथ मंत्र उपाय-
सुरक्षा एवं भय मुक्ति मंत्र-गोरक्ष कील
सत नमो
आदेश गुरु जी को आदेश ॐ गुरु जी गंगा यमुना सरस्वती तहां बसन्ते योगी,
गोउ दुहान्ते ग्वाला गवां, संग तरंते क्रिया पुजनते क्रिया मोहनते,
ताँके
पीछे मोया मशान जागे मनसा वाचा कील किलन्ता, ताकें आगे ऐसी चले
गर चले
घराट चले, कुम्भकर्ण का चक्र, चले
द्रोपती का खप्पर चले,
परशुराम
का परसा चले, शेष नाग की खोपड़ी चले,
नागा
बागा चोरटा तीनो दिने फाह, ईश्वर महादेव का वाचा फुरे गोरख चले
गोदावरी
आंचल
मांगी भिक्षा, श्री नाथ जी को आदेश आदेश
ॐ गुरु
जी चौर को धर कीलूं, सर्प का दर कीलूं, शेष नाग
की खोपड़ी कीलूं,
शेर का
मुख कीलूं, डाकनी शाकनी का खड्क कीलूं, बैठती
की दाढ़ कीलूं,
भाजती
का पुष्ठा कीलूं, छल कीलूं छिद्र कीलूं, भूत
कीलूं प्रेत कीलूं,
बिच्छू
का डंक कीलूं, सर्प का डंक कीलूं, ताप
तेईया चौथयिया कीलूं,
कलेजे
की पीड़ा कीलूं, आधे सिर का दर्द कीलूं, दुष्ट
कीलूं मुस्ठ कीलूं,
सार की
कोठी वज्र का ताला, जहाँ बसे जीव हमारा, रक्षा
करे
श्री
शम्भू जती गुरु गोरख नाथ जी बाला |
सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वी तले।
ये च हेलि मरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः॥
ये नदीषु महानागा ये सरस्वति गामिनः।
ये च वापी तडगेषु तेषु सर्वेषु वै नमः॥
ये च हेलि मरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः॥
ये नदीषु महानागा ये सरस्वति गामिनः।
ये च वापी तडगेषु तेषु सर्वेषु वै नमः॥
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