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बेल पत्र रहस्य –दुर्लभ बेल पत्र दर्शन ,अर्पण मंत्र |

गोल अग्रभाग वाला  दुर्लभ बेल पत्र लेखक को शिव कृपा से प्राप्त 
दुर्लभ आलोकिक बेलपत्र 
char pattewala

 















 बेल पत्र अर्पण रहस्य –सर्व आपत्ति नाशक सर्व सुख प्रदाता |
(श्रावण माह श्रेष्ठ -शीघ्र फल बेल पत्र अर्पण के मिलते हैं |)
स्कंद पुराण -बेल वृक्ष की उत्पत्ति ?
 एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका,
जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ।
विल्ब वृक्ष के किस भाग मे किस देवी का निवास-
- वृक्ष की जड़ में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं।
बेल पत्र अर्पण से उमा महेश्वर दोनों का आशीर्वाद-
शिव-पार्वती की पूजा बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है। देवी महालक्ष्मी का भी बेलवृक्ष में वास है।
*शिव पुराण - बेलपत्र भगवान शिव का प्रतीक है।
अनादि देव शिव को बेल पत्र क्यो अर्पण करे ?
एक आक पुष्प अर्पण से -दस स्वर्ण मुद्रा के दान के बराबर फल मिलता है.
* एक कनेर फूल के अर्पण से - एक हजार आक के फूल का फल |
* एक बिल्व को अर्पण से -हजार कनेर के फूल को चढ़ाने का फल मिल जाता है.
* एकमुखी रुद्राक्ष के समान ही विशेष महत्व है।
- ''अखंड बिल्व पत्रं नंदकेश्वरे सिद्धर्थ लक्ष्मी'' यह अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है। (बिल्वाष्टक)
 * कालिका पुराण -बिल्व पत्र पर चंदन या अष्टगंध से , शिव पंचाक्षर मंत्र लिख कर चढ़ाया जाये तो फलस्वरूप आपकी सभी इच्छाएं पूरी होती है.
- यह वास्तुदोष का निवारक है।
दाम्पत्य सुख के लिए-
* बेल वृक्ष की जड़ के पास शिवलिंग भगवान शिव की आराधना
-
-सुखी ।परिवार पर कोई संकट नहीं आता और वह सपरिवार खुश और संतुष्ट रहता है।
-खीर का भोग लगाने से परिवार में धनकी कमी नहीं होती है
बिल्व पत्र प्रकार
तीन पत्तियों का  बिल्व पत्र अखंड बिल्व पत्र,(बिना कटा,छेद वाला न हो )|  तीन पत्तियों से 21 पत्तियों तक के बिल्व पत्र होते हैं |श्रेष्ठ श्वेत बिल्व पत्र होता है । नेपाल मे 5 पत्ती वाले बहुतायत से प्राप्त होते हैं |पट्टितयोन की संख्या के अनुसार फल भी होते हैं |
*तिजोरी श्वेत वस्त्र मे बेलपत्र या इसकी जड़ लपेट कर रखे या पुजा गृह में रखकर नित्य पूजन करने से धन आगमन या व्यापार में विकास होता है।
*बेल पत्र  किस दिन एवं तिथि को नहीं तोड़ना चाहिए –
 अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे    बिल्वपत्रं छिन्द्याच्छिन्द्याच्चेन्नरकं व्रजेत
(
लिंगपुराण)
अर्थ :-चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि पर तिथियों के संक्रांति काल और सोमवार को पर्वो के अवसर पर ,बेल पत्र नहीं तोड़ना चाहिए।
बिल्व-पत्र तोड़ने का मंत्रहिन्दी मे भी निवेदन कर सकते हैं मंत्र आवश्यक नहीं |
अमृत उद्भव श्री वृक्ष महादेव प्रिय: सदा।
गृह्यामि तव पत्राणि शिव पूजार्थम आदरात्॥
अर्थ :- अमृत से उत्पन्न सौंदर्य ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है।
भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष में तुम्हारे पत्र तोड़ता हूं।
बेल पत्र कैसे तोड़े-
बेलपत्र को कभी भी टहनी समेत नहीं तोड़ना चाहिए।
*उलटा बेलपत्र चढ़ाएं -यानी चिकनी सतह की तरफ वाला वाला भाग शिव जी पर ,स्पर्श कराते हुए चढ़ाएं। 
*अर्पित बिल्व पत्र उतारना
अर्पित बेल पत्र को सीधे हाथ के अंगूठे या तर्जनी ऊँगली से पकड़ कर ही उतारना चाहिए|
चढ़ाते समय तीन पत्तियों की डंठल को तोड़कर ही शिव को अर्पण करना चाहिए।
बेल पत्र बासा नहीं होता-एक ही बेल पत्र धोने के पश्चात कई बार अर्पित किया जा सकता है -
बासी नहीं होताबेलपत्र को भी धोकर कई बार पूजा में प्रयोग किया जा सकता है।
अशुद्ध नहीं होते हैं। इन्हें एक बार प्रयोग करने के पश्चात दूसरी बार धोकर प्रयोग में लाने की भी स्कन्द पुराण -
'‍अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:
शंकरार्यर्पणियानि नवानि यदि क्वाचित।।'
विशेष फलदायी  परिणाम बेल पत्र अर्पण के कब मिलते हैं |
- माह-श्रावण,या दिन-सोमवार,या तिथि-युगादि, अष्टमी, , चतुर्दशी और अमावस्या,या 12 संक्रांति को बेल पत्र शिव पर अर्पण से मनोवांछित फल मिलते हैं |
आवश्यक नहीं- 11 बेल पत्र या 11 मंत्र ही पढे |आप कोई एक मंत्र भी जो अच्छा लगे पढ़ कर या अपने मन की प्रार्थना कर शिव जी को अर्पित कर सकते हैं|

        11 बिल्व पत्र पत्र अर्पण ./ चढाने के 11मन्त्र
  त्रि दलं ,त्रिगुण आकारं  ,त्रिनेत्रं त्रिय आयुधम्
 त्रि जन्म, पाप संहारं , बिल्व पत्रम शिव अर्पणम् |1
अक्ष माला धरं ,रुद्रं पार्वती प्रिय वल्लभम् |
चन्द्रशेखरम ,ईशानं , बिल्व पत्रम शिव अर्पणम् 2
त्रि लोचनं ,दश भुजं दुर्गा देहार्ध धारिणम्
विभूत्य अभ्य अर्चितं, देवं  बिल्व पत्रम शिव अर्पणम् 3
गङ्गाधर ,अम्बिका नाथं ,फणि कुण्डल मण्डितम्
काल ,कालं ,गिरीशं   बिल्व पत्रम शिव अर्पणम् |4
सच्चिदानन्द रूपं परानन्द मयं शिवम्
 वागीश्वरं, चिदाकाशं, बिल्व पत्रम शिव अर्पणम् 5
नील कण्ठं ,जगद् वन्द्यं ,दीन नाथं महेश्वरम्
महा पाप संहारं,  बिल्व पत्रम शिव अर्पणम् 6
दारिद्र्य, दुःख हरणं ,रवि चन्द्रानलेक्षणम्
मृग पाणिं ,चन्द्र मौळिं , बिल्व पत्रम शिव अर्पणम् 7
सम्पूर्ण कामदं सौख्यं, भक्त ईष्ट फल कारणम्
सौभाग्यदं, हितकरं , बिल्व पत्रम शिव अर्पणम् |8
जटाधरं ,पावक अक्षं ,वृक्षेशं ,भूमि नायकम्
 कामदं ,सर्वदा अगम्यं,  बिल्व पत्रम शिव अर्पणम् 9
शरणागत ,दीनार्त ,परित्राण परायणम्
गम्भीरं वषट कारं  बिल्व पत्रम शिव अर्पणम् 10
निधन ईशं ,धन अधीशं ,अपमृत्यु विनाशनम्
लिङ्ग मूर्तिम लिङ्गात्मं  बिल्व पत्रम शिव अर्पणम् 11

108 बिल्वपत्र  चढाने के 108 मन्त्र -

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं त्रियायुधम्                            
त्रिजन्म पाप संहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१॥  
       
     त्रिशाखैः बिल्व पत्रैश्च अच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः
    तव पूजां करिष्यामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२॥


सर्व त्रैलोक्य कर्तारं सर्व त्रैलोक्य पालनम्
सर्व त्रैलोक्य हर्तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३

नागाधिराज वलयं नागहारेण भूषितम्
नाग कुण्डल संयुक्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४॥

अक्षमाला धरं रुद्रं पार्वती प्रियवल्लभम्
चन्द्रशेखर मीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५॥

त्रिलोचनं दश भुजं दुर्गा देहार्ध धारिणम्
विभूत्यभ्यर्चितं देवं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६॥

त्रिशूलधारिणं देवं नागाभरण सुन्दरम्
चन्द्रशेखरमीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७॥

गङ्गाधराम्बिकानाथं फणि कुण्डल मण्डितम्
काल कालं गिरीशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८॥

शुद्ध स्फटिक सङ्काशं शिति कण्ठं कृपा निधिम्
सर्वेश्वरं सदा शान्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९॥

सच्चिदानन्द रूपं परानन्दमयं शिवम्
वागीश्वरं चिदाकाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०॥

शिपि विष्टं सह स्राक्षं कैलासाचल वासिनम्
हिरण्यबाहुं सेनान्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥११

अरुणं वामनं तारं वास्तव्यं चैव वास्तवम्
ज्येष्टं कनिष्ठं गौरीशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१२॥

हरिकेशं सनन्दीशं उच्चैर्घोषं सनातनम्
अघोर रूपकं कुम्भं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१३॥

पूर्वजावरजं याम्यं सूक्ष्मं तस्कर नायकम्
नीलकण्ठं जघन्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१४॥

सुराश्रयं विषहरं वर्मिणं वरूधिनम् I
महासेनं महावीरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१५॥

कुमारं कुशलं कूप्यं वदान्यञ्च महारथम्
तौर्यातौर्यं देव्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१६॥

दश कर्णं ललाटाक्षं पञ्चवक्त्रं सदाशिवम्
अशेष पाप संहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१७॥

नीलकण्ठं जगद्वन्द्यं दीन नाथं महेश्वरम्
महा पाप संहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१८॥

चूडामणी कृतविभुं वलयीकृत वासुकिम्
कैलासवासिनं भीमं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१९॥

कर्पूर कुन्द धवलं नरकार्णवतारकम्
करुणामृत सिन्धुं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२०॥

महादेवं महात्मानं भुजङ्गाधि पकङ्कणम्
महा पापहरं देवं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२१॥

भूतेशं खण्ड परशुं वामदेवं पिनाकिनम्
वामे शक्तिधरं श्रेष्ठं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२२॥

फाले क्षणं विरूपाक्षं श्रीकण्ठं भक्त वत्सलम्
नील लोहित खट्वाङ्गं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥२३॥

कैलास वासिनं भीमं कठोरं त्रिपुरान्तकम्
वृषाङ्कं वृषभारूढं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२४॥


सामप्रियं सर्वमयं भस्मोद्धूलित विग्रहम्
मृत्युञ्जयं लोकनाथं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२५॥

दारिद्र्य दुःख हरणं रवि चन्द्रानलेक्षणम्
मृगपाणिं चन्द्रमौळिं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२६॥

सर्वलोक भयाकारं सर्वलोकैक साक्षिणम्
निर्मलं निर्गुणाकारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२७॥

सर्वतत्त्वात्मकं साम्बं सर्वतत्त्व विदूरकम्
सर्वतत्त्व स्वरूपं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२८॥

सर्वलोक गुरुं स्थाणुं सर्वलोक वर प्रदम्
सर्वलोकैकनेत्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् II२९॥

मन्मथोद्धरणं शैवं भवभर्गं परात्मकम्
कमला प्रिय पूज्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३०॥

तेजोमयं महाभीमं उमेशं भस्म लेपनम्
भव रोग विनाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् II३१॥

स्वर्गापवर्ग फलदं रघुनाथ वर प्रदम्
नगराज सुता कान्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३२॥

मञ्जीर पाद युगलं शुभ लक्षण लक्षितम्
फणिराज विराजं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३३॥

निरामयं निराधारं निस्सङ्गं निष्प्रपञ्चकम्
तेजोरूपं महा रौद्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् II३४॥

सर्वलोकैक पितरं सर्वलोकैक मातरम्
सर्वलोकैक नाथं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३५॥

चित्राम्बरं निराभासं वृषभेश्वर वाहनम्
नीलग्रीवं चतुर्वक्त्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३६॥

रत्नकञ्चु करत्नेशं रत्न कुण्डल मण्डितम्
नवरत्न किरीटं एकबिल्वं शिवार्पणम् II३७॥

दिव्य रत्नाङ्गुली स्वर्णं कण्ठा भरण भूषितम्
नाना रत्न मणिमयं एकबिल्वं शिवार्पणम् II३८॥

रत्नाङ्गुलीय विलसत्कर शाखा नख प्रभम्
भक्तमानस गेहं एकबिल्वं शिवार्पणम् II३९॥

वामाङ्ग भाग विलसदम्बिकावीक्षण प्रियम्
पुण्डरीकनिभाक्षं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४०॥

सम्पूर्ण कामदं सौख्यं भक्तेष्ट फल कारणम्
सौभाग्यदं हितकरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४१॥

नाना शास्त्र गुणोपेतं स्फुरन्मङ्गल विग्रहम्
विद्या विभेद रहितं एकबिल्वं शिवार्पणम् II४२॥

अप्रमेय गुणाधारं वेदकृद्रूप विग्रहम्
धर्माधर्म प्रवृत्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् II४३॥

गौरी विलास सदनं जीव जीव पितामहम्
कल्पान्त भैरवं शुभ्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४४॥

सुखदं सुखनाशं दुःखदं दुःखनाशनम्
दुःखावतारं भद्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४५॥

सुख रूपं रूप नाशं सर्वधर्म फलप्रदम्
अतीन्द्रियं महामायं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४६॥

सर्व पक्षि मृगाकारं सर्व पक्षि मृगाधिपम्
सर्व पक्षि मृगाधारं एकबिल्वं शिवार्पणम् II४७॥

जीवाध्यक्षं जीववन्द्यं जीव जीवन रक्षकम्
जीव कृज्जीव हरणं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४८॥

विश्वात्मानं विश्ववन्द्यं वज्रात्मावज्र हस्तकम्
वज्रेशं वज्रभूषं एकबिल्वं शिवार्पणम् II४९॥

गणाधिपं गणाध्यक्षं प्रलयानल नाशकम्
जितेन्द्रियं वीरभद्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५०॥

सुख रूपं रूप नाशं सर्वधर्म फलप्रदम्
अतीन्द्रियं महामायं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४६॥॥५१॥

कुन्देन्दु शङ्ख धवलं भग नेत्र भिदुज्ज्वलम्
कालाग्नि रुद्रं सर्वज्ञं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५२॥

कम्बुग्रीवं कम्बुकण्ठं धैर्यदं धैर्य वर्धकम्
शार्दूल चर्म वसनं एकबिल्वं शिवार्पणम् II५३॥

जगदुत्पत्ति हेतुं जगत्प्रलय कारणम्
पूर्णानन्द स्वरूपं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५४॥

सर्गकेशं महत्तेजं पुण्य श्रवणकीर्तनम्
ब्रह्माण्ड नायकं तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५५॥

मन्दार मूल निलयं मन्दार कुसुमप्रियम्
बृन्दारक प्रियतरं एकबिल्वं शिवार्पणम् II५६॥

महेन्द्रियं महाबाहुं विश्वास परिपूरकम्
सुलभा सुलभं लभ्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ५७॥

बीजाधारं बीजरूपं निर्बीजं बीज वृद्धिदम्
परेशं बीजनाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् II५८॥

युगाकारं युगाधीशं युगकृ द्युगनाशनम्
परेशं बीजनाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् II५९॥

धूर्जटिं पिङ्गलजटं जटा मण्डल मण्डितम्
कर्पूर गौरं गौरीशं एकबिल्वं शिवार्पणम् II६०॥

सुरावासं जनावासं योगीशं योगिपुङ्गवम्
योगदं योगिनां सिंहं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६१॥

उत्तमानुत्तमं तत्त्वं अन्धकासुर सूदनम्
भक्त कल्पद्रुम स्तोमं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६२॥

विचित्र माल्य वसनं दिव्यचन्दन चर्चितम्
विष्णु ब्रह्मादि वन्द्यं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥६३॥

कुमारं पितरं देवं श्रितचन्द्रकलानिधिम्
ब्रह्मशत्रुं जगन्मित्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६४॥

लावण्य मधुराकारं करुणा रस वारधिम्
भ्रुवोर्मध्ये सहस्रार्चिं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६५॥

जटाधरं पावकाक्षं वृक्षेशं भूमि नायकम्
कामदं सर्वदागम्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् II६६॥

शिवं शान्तं उमानाथं महाध्यान परायणम्
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६७॥

वासुक्युरगहारं लोकानुग्रह कारणम्
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६८॥

शशाङ्क धारिणं भर्गं सर्वलोकैक शङ्करम् I
शुद्धं शाश्वतं नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६९॥

शरणागत दीनार्त परित्राण परायणम्
गम्भीरं वषट्कारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७०॥

भोक्तारं भोजनं भोज्यं जेतारं जितमानसम् I
करणं कारणं जिष्णुं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७१॥

क्षेत्रज्ञं क्षेत्रपालञ्च परार्धैक प्रयोजनम्
व्योमकेशं भीमवेषं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७२॥

भवज्ञं तरुणोपेतं चोरिष्टं यमनाशनम्
हिरण्यगर्भं हेमाङ्गं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७३॥

दक्षं चामुण्डजनकं मोक्षदं मोक्ष नायकम्
हिरण्यदं हेमरूपं एकबिल्वं शिवार्पणम् II७४॥

महाश्मशान निलयं प्रच्छन्न स्फटिक प्रभम्
वेदास्यं वेदरूपं एकबिल्वं शिवार्पणम् II७५॥

स्थिरं धर्मं उमानाथं ब्रह्मण्यं चाश्रयं विभुम् I
जगन्निवासं प्रथममेक बिल्वं शिवार्पणम् II७६॥

रुद्राक्ष माला भरणं रुद्राक्ष प्रिय वत्सलम्
रुद्राक्ष भक्त संस्तोममेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७७॥

फणीन्द्रविलसत्कण्ठं भुजङ्गाभरण प्रियम् I
दक्षाध्वर विनाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७८॥

नागेन्द्र विलसत्कर्णं महीन्द्र वलयावृतम्
मुनिवन्द्यं मुनि श्रेष्ठमेकबिल्वं शिवार्पणम् II७९॥

मृगेन्द्रचर्म वसनं मुनीनामेक जीवनम्
सर्वदेवादि पूज्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् II८०॥

निधनेशं धनाधीशं अपमृत्युविनाशनम्
लिङ्गमूर्तिमलिङ्गात्मं एकबिल्वं शिवार्पणम्॥८१॥

भक्त कल्याणदं व्यस्तं वेद वेदान्त संस्तुतम्
कल्प कृत्कल्पनाशं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥८२॥

घोर पातक दावाग्निं जन्म कर्म विवर्जितम्
कपाल माला भरणं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८३॥

मातङ्ग चर्म वसनं विराड्रूप विदारकम्
विष्णु क्रान्तमनन्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८४॥

यज्ञकर्म फलाध्यक्षं यज्ञ विघ्न विनाशकम्
यज्ञेशं यज्ञ भोक्तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् II८५॥

कालाधीशं त्रिकालज्ञं दुष्ट निग्रह कारकम्
योगिमान सपूज्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८६॥

महोन्नत महाकायं महोदर महाभुजम्
महावक्त्रं महावृद्धं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८७॥

सुनेत्रं सुललाटं सर्व भीम पराक्रमम्
महेश्वरं शिवतरं एकबिल्वं शिवार्पणम् II८८॥

समस्त जगदाधारं समस्त गुण सागरम्
सत्यं सत्यगुणोपेतं एकबिल्वं शिवार्पणम् ८९॥

माघ कृष्ण चतुर्दश्यां पूजार्थं जगद्गुरोः
दुर्लभं सर्वदेवानां एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९०॥

तत्रापि दुर्लभं मन्येत् नभोमासेन्दुवासरे
प्रदोषकाले पूजायां एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९१॥

तटाकं धननिक्षेपं ब्रह्मस्थाप्यं शिवालयम्
कोटि कन्या महादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९२॥

दर्शनं बिल्व वृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्
अघोर पापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् II९३॥

तुलसी बिल्व निर्गुण्डी जम्बीरामलकं तथा
पञ्च बिल्वमिति ख्यातं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥९४॥

अखण्ड बिल्वपत्रैश्च पूजयेन्नन्दि केश्वरम्
मुच्यते सर्वपापेभ्यः एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९५॥

सालङ्कृता शतावृत्ता कन्याकोटिसहस्रकम्
साम्राज्यपृथ्वीदानं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥९६॥

दन्त्यश्व कोटिदानानि अश्वमेध सहस्रकम्
सवत्स धेनु नानि एकबिल्वं शिवार्पणम् II९७॥

चतुर्वेद सहस्राणि भारतादि पुराणकम्
साम्राज्य पृथ्वीदानं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥९८॥

सर्वरत्नमयं मेरुं काञ्चनं दिव्य वस्त्रकम्
तुलाभागं शतावर्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९९॥

अष्टोत्तरश्शतं बिल्वं योऽर्चयेल्लिङ्गमस्तके
अधर्वोक्तं अधेभ्यस्तु एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१००॥

काशी क्षेत्र निवासं कालभैरव दर्शनम्
अघोर पाप संहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् II१०१॥

अष्टोत्तरशतश्लोकैः स्तोत्राद्यैः पूजयेद्यथा
त्रिसन्ध्यं मोक्षमाप्नोति एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥१०२॥

दन्ति कोटि सहस्राणां भूः हिरण्य सहस्रकम्
सर्व क्रतुमयं पुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् II१०३॥

पुत्र पौत्रादिकं भोगं भुक्त्वा चात्र यथेप्सितम्
अन्ते शिवसायुज्यं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥१०४॥

विप्र कोटि सहस्राणां वित्तदानाच्च यत्फलम्
तत्फलं प्राप्नुयात्सत्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०५॥

त्वन्नाम कीर्तनं तत्त्वं तव पादाम्बु यः पिबेत्
जीवन्मुक्तोभवेन्नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०६॥

अनेकदानफलदं अनन्तसुकृतादिकम्
तीर्थयात्राखिलं पुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०७॥

त्वं मां पालय सर्वत्र पदध्यानकृतं तव
भवनं शाङ्करं नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०८॥

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श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहि

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती है | अवि

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा जाता है   | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक होता है | पितृ श्राद्ध किस देव से स

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामान्य रूप से सभी मंगल कार्यों क

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नारंगी एवं लाल रंग के वस्त्र वस्तुओं का विशेष महत्व है। लाल पुष्प अक्षत रोली कलावा या मौली दूध द

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र हो | - क

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन करिये | चंद्रहासोज्

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश पर -