मंगल का मांगलिक भय निर्मूल ?अनेक अपवाद और सिद्धान्त-26 गुण या 26 वर्ष के बाद नहीं |.....
मंगल दोष का परिहार नवमांश कुंडली मे मंगल 1,2,4,7,8,12 भाव मे न हो तो जन्म कुंडली मे होकर भी एमंगल दोष प्रभाव हीन होता है द्यजन्म कुंडली 1:30 से 2:30 घंटे तक मंगल बताती है |जबकि नवमांश कुंडली जो दाम्पत्य साथी का प्रतिनिधित्व करती है |अधिकतम 15 मिनट की होती है| सूक्ष्म एवं ज्योतिष सिद्धनात मे सर्व प्रमुख कुंडली |
ऽ कुजदोषवती देया कुजदोषवते किल । नास्ति दोषो
चानिब्ं दम्पत्यो सुखवर्धनम्।।
भावार्थ-
वर कन्या दोनों के मांगलिक होने पर विवाह शुभ है।
ऽ भौमोऽथवा कश्चित् पापो व तादृषो भवेत्। तेष्वेव
भवनेष्वेव भौमदोष विनाष कृत्।।
भावार्थ
- यदि एक की जन्म कुण्डली में मंगल दो हो और दूसरे की कुण्डली में उन्हीं स्थानों
में मंगल, शनि,
सूर्य, राहू, केतू, पाप ग्रह हो तो मंगल दोष भंग हो जाता
है।
ऽ राशिमैत्रं यदा याति गणैक्यं वा यदा भवेत्। अथवा
गुण वाहुल्ये भौमः दोषो न विद्यते।।
भावार्थ- यदि एक राशि मैत्री एवं एक ही गण हो या 26से अधिक गुण मिले हों तो मंगल दोष
अविचारणीय होता है।
ऽ अस्तनीचस्थसंधिष्च, वलहीनं भौमः यदा। जीव
पष्र्योयुर्तिराहु भौम दोषो तदा नहि।।
भावार्थ
- अस्त, संधिगत
या नीच राशि गत, इस
प्रकार वलहीन मंगल का दोष नगण्य होता है, अथवा गुरू से या राहू से युत मंगल की स्थिति
में भी मंगल दोष नहीं होता है।
ऽ जातक पारिजात के अनुसार ष्मूल स्वतुंग
मित्रस्थोभाव वृद्धि करोत्यलम।
मेष वृश्चिक मकर सिंह धनु व मीन राशियों में
मंगल हानिकारक नहीं होता।
ऽ जातक चन्द्रिका के अनुसार केतु के
नक्षत्रों ;अश्विनीए
मघाए मूलद्ध में स्थित मंगल दोषरहित होता है।
बलि सप्तमेश केंद्र या त्रिकोण में हो तो
मंगल दोष रहित होता है द्य
ऽ 26 गुण या अधिक गुण से कुंडली जिस जातक
की मिलती हो, उसे
मंगलीक दोष नहीं लगता।
ऽ चतुर्थ भाव में मेष अथवा वृश्चिक राशि
होने से चतुर्थ भाव में मंगल दोषपूर्ण नहीं होता।
ऽ यदि मंगल वक्री, नीच या अस्त हो तो मंगल दोष नहीं माना
जाता।
ऽ यदि वर-कन्या के राशि फल तथा
अंशधिपतियों में मित्रता हो तो मंगल दोष नहीं
होता।
ऽ नाड़ी दोष हो, किन्तु वर-कन्या के राशिपति एक हां तो
विवाह शुभ होता है।
ऽ यदि कन्या की कुडंली में जिस
भाव में मंगल हो, वर
की कुंडली में भी उसी भाव में बलवान पापी ग्रह (सूर्य,शनि,राहू,केतु) हो तो मंगल का दोष समाप्त हो
जाता है।
ऽ दूसरे भाव में चन्द्रमा-शुक्र हों
या मंगल-गुरू की युति हो
अथवा गुरू की पूर्ण दृष्टि
या केन्द्र में राहु हो
अथवा मंगल-राहु की युति हो तो मंगल
दोषपूर्ण नहीं होता
बिभिन्न
लग्न मे .मंगल दोष नाश स्थितियाँ
ऽ 1. मेष राशि का मंगल लग्न में हो तो 8 वृष्चिक का, चैथा भाव में हो तो 10 मकर राशि का, सप्तम भाव में हो तो 4 कर्क राशि का तथा अष्टम भाव में धनु राशि
का 12वें
स्थान में होने पर मंगल दोष रहित होता है। मेष लग्न कर्क लग्न व सिंह लग्न का जातक
मंगल दोष रहित होता है।
2. वृषभ लग्न में प्रथमए चतुर्थ व द्वादश
भाव में मंगल दोषपूर्ण नहीं होता। इसी प्रकार तुला लग्न में भी द्वादशए चतुर्थ
व प्रथम भाव में मंगल दोष नहीं होता
मिथुन
लग्न के लिये द्वादष व अष्टम भाव का मंगल शुभ फल देता है।
3. कर्क-सिंह लग्न के जातक मिथुन-कन्या
लग्न के जातकों से वैवाहिक संबंध करके भयंकर एवं दुःखद परिणामों से बच सकते हैं।
4. कर्क लग्न का मंगल विषेष उपयोगी तथा
परिणाम दायक होता है।
5. सिंह लग्न वालों के लिये मंगल सबसे
अधिक शुभ माना गया है। लग्न और चतुर्थ का मंगल भौतिक सुख देता है। मगर 8वें और 12वें
भाव का मंगल कष्टदायी होता है।
6. कन्या लग्न का अष्टम एवं द्वादष भावस्थ
मंगल अच्छे परिणाम, विजय
एवं दीर्घायु की ओर इंगित करता है। मगर चतुर्थ व सप्तम का मंगल अति कष्टदायी होता
है।
7. तुला लग्न के लिये लग्न से सप्तम भाव
का मंगल उत्तम होता है और अनेकोनेक प्रकार से सुख देता है। परन्तु अगर 12 वें भाव में हो तो सुखों का नाष करता
है।
8. वृष्चिक लग्न .’ मंगल लग्न से सप्तम भाव में हो तो कोई
हानि नहीं होती। लेकिन मंगल अष्टम व द्वादष भाव में हो तो सावधानी पूर्वक देखें।
लग्न
में कर्क या सिंह राशिस्थ मंगल हानिकारक नहीं होता।
ऽ कुम्भ लग्न के लिये अगर मंगल 12वें स्थान मंे हो तो शुभ फलदायक होता
है।
ऽ मीन लग्न के लिये लग्न, चतुर्थ तथा सप्तम भाव का मंगल हानिकारक
नहीं होता, किन्तु
गुरु की दृष्टि मंगल पर हो या गुरु मंगल के साथ हो या मंगल की युति राहु के साथ
होए या शुक्र द्वितीय भाव में हो या बलि चन्द्रमा केंद्र में हो तो मंगल का दोष
नष्ट हो जाता है।
ऽ 8वें और 12वें भाव का मंगल कष्टदायी होता
है।
ऽ भाव एवं राशियों मे मंगल दोष नाश
स्थितियाँ
ऽ मेष राशि का मंगल लग्न मेंए वृश्चिक
राशि का मंगल चतुर्थ भाव मेंए मकर राशि का
मंगल सप्तम भाव मेंए कर्क राशि का अष्ठम भाव व धनु राशि का मंगल द्वादश भाव में हो
तो मंगल दोष नहीं रहता।
ऽ चतुर्थ भाव में स्वराशिस्थ ;मेष या वृश्चिक राशि में, मंगल ।
ऽ यदि 1,2,4,7,8 व 12 में मंगल चर राशि ;मेष,
कर्क, तुलाए मकर, में हो
ऽ सप्तम में मंगल उच्च ;मकर, व
नीच ;कर्क, राशि में हो ।
ऽ सिंह या कुम्भ राशि में मंगल दोषप्रद
नहीं होता।
ऽ अष्टम में मंगल गुरु की राशियों ;धनु या मीन, में हो
ऽ यदि लग्न में मेषए मकरए सिंह व वृश्चिक राशि हो तो मंगलदोष नहीं होता।
ऽ शुक्र.मंगल दोष नाशक.
ऽ शुक्र लग्न में हो तो मंगल दोष नहीं
रहता।
ऽ ण्द्वितीय भाव में मंगल बुध की राशियों ;मिथुन या कन्याद्ध में हो
ऽ द्वादश भाव में शुक्र की राशियों ;वृषभ या तुलाद्ध में मंगल हो तो मंगल
दोष नहीं होता।
ऽ चतुर्थ भाव में शुक्र की राशि ;2, 7,
में मंगल ।
ऽ मंगल शुक्र की राशि में हो तथा बलि
सप्तमेश केंद्र या त्रिकोण में हो तो मंगल दोष रहित होता है
ऽ ण् मांगलिक
कुंडली में सप्तमेश तथा कलत्रकारक शुक्र बली होए सप्तम में हो अथवा सप्तम
को देखते हों तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है।
ऽ यदि सप्तम भाव में शनि व शुक्र हो तो
मंगलदोष नहीं होता।
ऽ द्वितीय भाव में मंगल बुध की राशि मे
उम . कन्या या मिथुन राशि हो तो मंगल दोष
नहीं होता।
ऽ मंगल की युति बलि चंद्र बुध या गुरु के
साथ हो ।
ऽ शनि.मंगल दोष नाशक.
ऽ शनि दृमंगल दोष नाशक.
ऽ 1,4,7,8,12,2 भाव में शनि वक्री हो ।
ऽ मंगल व शनि का परस्पर राशि परिवर्तन योग
हो तो हो जाता है।
ऽ गुरु. मंगल दोष नाशक
ऽ गुरु केंद्र ;1ए 4ए 7ए 10द्ध या त्रिकोण में हो ।
ऽ गुरु लग्न में हो तो मंगल दोष नहीं
रहता।
ऽ सप्तमस्थ मंगल पर गुरु की दृष्टि हो ।
ऽ मंगल 12,4,7,8,12
में हो तथा बली चन्द्रमा केंद्र में हो ।
ऽ मंगल की युति बलि चंद्र
ऽ यदि गुरु सप्तम भाव में हो तो मंगल दोष
नहीं होता।
ऽ मांगलिक कुंडली में मंगल व गुरु परस्पर
राशि परिवर्तन योग हो ।
ग्रह
मैत्री से गण,योनि,
वर्ण एवं
षडाष्टकदोष परिहार
गणदोषो
योनिदोषो वर्ण दोषः षडाष्टकम्। चत्वारि नैव दुष्यंति, राशि मैत्री यदा भवेत्।। बृहज्जयोतिः सार के अनुसार ग्रह मैत्री होने पर
गण, योनि,
वर्ण, व षडाष्टक दोष समाप्त हो जाता है। गण
दोष विषेष में - मैत्रयां राशिष्योरंषस्वामिनोर्वरकन्ययोः। न तत्र गणदोषः स्वाद्विवाहः
ष्षुभदो मतः।। अर्थात यदि वर कन्या के राशि या नवांष के स्वामियों में मित्रता हो
तो गणदोष नहीं होता है।
परस्पर
प्रेम: षडाष्टक परिहार
वर
का सप्तम स्थान का स्वामी जिस राशि पर हो यदि वह राशि लग्न से 1, 3, 4, 5, 9, 10, 11 की कन्या की राशि हो तो परस्पर प्रेम
रहता है।
6,8,12
वीं हो तो मतभेद रहता है।
संतान
सुख: षडाष्टक परिहार
कन्या
की राशि-
वर का सप्तमेष जिस नवांष में हो नवांष स्वामी की
राशि
स
सप्तमेष की जो उच्च राशि से सप्तम भाव को नवांष की राशि
स
सप्तमेश की राशि सप्तमेष से 5 या 9 वी राशि में कन्या की राशि हो।
भाग्यशाली कन्या
वर
की राशि से 7वीं
राशि में जो ग्रह हो उस राशि या उससे 7वें स्थान पर जिस ग्रह की दृष्टि हो उस ग्रह की
राशि में कन्या की राशि हो।
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