पूजा मुहूर्त-प्रत गुलिक काल मे 7.31 तक ,प्नचमी काल मे 8.30तक ;राहू काल मे 09;09-10;48 तक ;यमघंट काल मे -14.06:-15.44 तक ; अभिजीत काल मे 12।:00-12:53 तक उत्तम पुजा मुहूर्त है |
25 जुलाई 2020 नाग पंचमी ;कालसर्पयोग एवम सर्प विष भय मुक्ति –
25 जुलाई 2020 नाग पंचमी ;कालसर्पयोग एवम सर्प विष भय मुक्ति –
“स्नेक डे”-आज पाश्चात्य संस्कृति
के अनुरूप जैसे मदर,फादर डे होते है ,उस प्रकार हिन्दू धर्म
मे 500 से अधिक डे है| देवी,देवता के साथ 2 पशु ,पक्षी
,वनस्पति ,पर्वत तक के डे है |सावन मास
के शुक्ल पक्ष पंचमी को नाग पंचमी का व्रत एवं पूजन का विधान है। इस दिन पुराणों का आधार
पर सर्पों को दूध से स्नान एवं उनका पूजन किए जाने का उल्लेख है।श्वेतसर्प धन एवं सुख
समृद्धि का परिचायक है |यह दुर्लभ होता है |इनकी भी रंग के आधार
पर वर्ण या जाती होती है |
किसी किसी
प्रदेश में प्रचलित कृष्ण पक्ष में नाग पंचमी मनाई जाती है। जो कि 8 अगस्त को होगी। मूल रूप से यह अंतर
शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की गणना के आधार पर है। जिन स्थानों पर महीने का प्रारम्भ कृष्ण पक्ष से गिना जाता है यह अवैदिक है।जबकि वैदिक रूप से माह का
प्रारंभ शुक्ल पक्ष से होना चाहिए। इस कारण से जो वैदिक पद्धति मानते हैं वहां पर
यह कृष्ण पक्ष की पंचमी को प्राप्त होता है। विशेष रूप से जैसे कि राजस्थान यहां
पर कृष्ण पक्ष की पंचमी को यह माना जाता है।इसलिए 08 अगस्त को भी
पुजा किया जाना उचित होगा |
स्नान एवम नाग पूजा-
वासुकी कुंड में स्नान करने का सर्वाधिक महत्व है। स्युर्योदयसे 45 मिनट पूर्व से पश्चात तक स्नान उपयोगी|स्नान जल मे नदी जल विशेष उपयोगी |इस दिन घर के द्वार पर दोनों और गोबर से सर्प आकृति बनाकर उनका दही,कच्चा दूध , सुगंध ,अक्षत ,ऋतु पुष्प मोदक या मीठी पूड़ी से पूजन किए जाने का उल्लेख मिलता है।
नाग पूजा संभावित कारण-
यह इसलिए उपयोगी माना गया है कि, इस माह वर्षा आदि के कारण सर्प अपने निवास स्थान से बाहर आते हैं। जिनसे उनके द्वारा काटने एवं क्रोधित होने से नुकसान की संभावना अधिक होती है। इसलिए विभिन्न उपायों से उनसे सुरक्षा के लिए सर्प देव की प्रार्थना एवं उनकी पूजा करने का विधान दिया गया है।
धर्म ग्रंथो में प्रचुर वर्णन-
स्नान एवम नाग पूजा-
वासुकी कुंड में स्नान करने का सर्वाधिक महत्व है। स्युर्योदयसे 45 मिनट पूर्व से पश्चात तक स्नान उपयोगी|स्नान जल मे नदी जल विशेष उपयोगी |इस दिन घर के द्वार पर दोनों और गोबर से सर्प आकृति बनाकर उनका दही,कच्चा दूध , सुगंध ,अक्षत ,ऋतु पुष्प मोदक या मीठी पूड़ी से पूजन किए जाने का उल्लेख मिलता है।
नाग पूजा संभावित कारण-
यह इसलिए उपयोगी माना गया है कि, इस माह वर्षा आदि के कारण सर्प अपने निवास स्थान से बाहर आते हैं। जिनसे उनके द्वारा काटने एवं क्रोधित होने से नुकसान की संभावना अधिक होती है। इसलिए विभिन्न उपायों से उनसे सुरक्षा के लिए सर्प देव की प्रार्थना एवं उनकी पूजा करने का विधान दिया गया है।
धर्म ग्रंथो में प्रचुर वर्णन-
पंचमी शुक्लपक्ष की क्यो
नाग पूजा की जाती है-
पंचम्यां तत्र भविता ब्रह्मा प्रोवाच
लेलीहान।
तस्मादियं महा बाहो पंचमी दयिता सदा।
नागा नाम आनन्दकरी दंत वै ब्रह्नणा पुरा।।
गरुण
पुराण भविष्य पुराण चरक संहिता भावप्रकाश आदि अनेक धर्म ग्रंथों में सर्पों का
विवरण प्राप्त होता है।
शिवजी विष्णु जी एवं गणेश जी आदि अनेक देवी-देवताओं के साथ सर्पों को दर्शाया गया ,अर्थात इन का विशेष महत्व है। सूर्य के रथ में भी द्वादश नागों का वर्णन मिलता है। पर्वतीय प्रदेशों में नाग पूजा बहुत प्रमुख है वहां नाग देवता- ग्राम देवता ,लोक देवता आदि के रूप में प्रसिद्ध हैं.
तला ,छोंका हुआ एवं गरम भोजन वर्जित-
सर्प ठंडा वातावरण पसंद हैं इसलिए उनकी कृपा के लिए,इस दिन महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में गरम भोजन अर्थात छोंक या तले हुए पदार्थ खाना वर्जित माना जाता है। उबले हुए पदार्थों का ही उपयोग किया जाता है। अथवा 1 दिन पूर्व जो भोजन बना लिया जाता है उसका ही प्रयोग करते हैं।
व्रत एवम पूजन-
इस व्रत में दिन मैं एक समय भोजन की अनुमति प्राप्त है ।घर के पूजा स्थल एवम आवश्यक रूप से द्वार पर इनकी आकृति बनाकर इनकी पूजा का विधान दिया गया है। सर्प भय से मुक्ति के लिए एक मंत्र उल्लेखित है- ओम कुरुकुलये ह्रीं हूं फट् स्वाहा। इसके जप से यह माना जाता है कि सर्प दोष दूर होता है।
राजस्थान में , लकड़ी के पाटे पर एक रस्सी में 7 गठान लगाकर सर्प के रूप में यह प्रतीक बनाकर उसे काला रंग से रंग कर पाटे पर रख दिया जाता है। कच्चा दूध, घी ,शक्कर, भीगे चने आदि उसको अर्पित किए जाते हैं।
सर्प के निवास स्थान बांबी आदि में पर भी दूध अर्पित किया जाता है । सर्प के निवास स्थान बांबी से कुछ मिट्टी लाकर उस पर कच्चा दूध मिलाकर अपने निवास स्थान में चूल्हे, चक्की आदि पर उससे सर्प आकृति बनाकर पूजा की जाती है। इस मिट्टी में चना या गेहूं के दाने बोए जाते हैं। जिससे यह माना जाता है कि अन्नपूर्णा देवी की कृपा होगी। घर अनाज आदि से परिपूर्ण रहेगा i
सर्प उत्तपति/ उद्गम एवं श्राप-
इनका उद्गम महर्षि कश्यप उनकी पत्नी कद्रु से हुआ था। भविष्य पुराण में मणि धारी एवं इच्छाधारी नागों का भी वर्णन प्राप्त होता है।
इस संदर्भ में एक कथा है जिसके आधार पर महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रू ने क्रुद्ध होकर नागों को शाप दे दिया था कि, पांडव वंश के राजा जन्मेजय नागयज्ञ करेंगे उसमें तुम सब जलकर भस्म हो जाओगे ।
इस श्राप से भयभीत होकर नागों ने वासुकी के नेतृत्व में ब्रह्मा जी से इस शाप से मुक्ति का उपाय पूछा। उनके द्वारा यह बताया गया की यायावर वंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारु तुम्हारे बहनोई होंगे ।उनका पुत्र आस्तिक मुनि तुम्हारी रक्षा करेगा एवं पंचमी तिथि को यह रक्षा होगी ।मुनि जरत्कारु ही शुक्ल पंचमी के दिन नागों का रक्षण करेंगे ।
पृथ्वी पर एवं द्वार पर नागों का चित्रांकन कर उनकी पूजा करने का विधान है ।
विष भय मुक्ति हेतु सर्प प्रार्थना-
भविष्य पुराण में उनकी प्रार्थना या नमस्कार का मंत्र है जिसका अर्थ है कि-
समस्त नाग जो पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, सूर्य की किरणों, सरोवर ,तालाब , नदी में निवास करते हैं ।वे सब हम पर ,हमारे कुल पर प्रसन्न हो। हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं।
शिवजी विष्णु जी एवं गणेश जी आदि अनेक देवी-देवताओं के साथ सर्पों को दर्शाया गया ,अर्थात इन का विशेष महत्व है। सूर्य के रथ में भी द्वादश नागों का वर्णन मिलता है। पर्वतीय प्रदेशों में नाग पूजा बहुत प्रमुख है वहां नाग देवता- ग्राम देवता ,लोक देवता आदि के रूप में प्रसिद्ध हैं.
तला ,छोंका हुआ एवं गरम भोजन वर्जित-
सर्प ठंडा वातावरण पसंद हैं इसलिए उनकी कृपा के लिए,इस दिन महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में गरम भोजन अर्थात छोंक या तले हुए पदार्थ खाना वर्जित माना जाता है। उबले हुए पदार्थों का ही उपयोग किया जाता है। अथवा 1 दिन पूर्व जो भोजन बना लिया जाता है उसका ही प्रयोग करते हैं।
व्रत एवम पूजन-
इस व्रत में दिन मैं एक समय भोजन की अनुमति प्राप्त है ।घर के पूजा स्थल एवम आवश्यक रूप से द्वार पर इनकी आकृति बनाकर इनकी पूजा का विधान दिया गया है। सर्प भय से मुक्ति के लिए एक मंत्र उल्लेखित है- ओम कुरुकुलये ह्रीं हूं फट् स्वाहा। इसके जप से यह माना जाता है कि सर्प दोष दूर होता है।
राजस्थान में , लकड़ी के पाटे पर एक रस्सी में 7 गठान लगाकर सर्प के रूप में यह प्रतीक बनाकर उसे काला रंग से रंग कर पाटे पर रख दिया जाता है। कच्चा दूध, घी ,शक्कर, भीगे चने आदि उसको अर्पित किए जाते हैं।
सर्प के निवास स्थान बांबी आदि में पर भी दूध अर्पित किया जाता है । सर्प के निवास स्थान बांबी से कुछ मिट्टी लाकर उस पर कच्चा दूध मिलाकर अपने निवास स्थान में चूल्हे, चक्की आदि पर उससे सर्प आकृति बनाकर पूजा की जाती है। इस मिट्टी में चना या गेहूं के दाने बोए जाते हैं। जिससे यह माना जाता है कि अन्नपूर्णा देवी की कृपा होगी। घर अनाज आदि से परिपूर्ण रहेगा i
सर्प उत्तपति/ उद्गम एवं श्राप-
इनका उद्गम महर्षि कश्यप उनकी पत्नी कद्रु से हुआ था। भविष्य पुराण में मणि धारी एवं इच्छाधारी नागों का भी वर्णन प्राप्त होता है।
इस संदर्भ में एक कथा है जिसके आधार पर महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रू ने क्रुद्ध होकर नागों को शाप दे दिया था कि, पांडव वंश के राजा जन्मेजय नागयज्ञ करेंगे उसमें तुम सब जलकर भस्म हो जाओगे ।
इस श्राप से भयभीत होकर नागों ने वासुकी के नेतृत्व में ब्रह्मा जी से इस शाप से मुक्ति का उपाय पूछा। उनके द्वारा यह बताया गया की यायावर वंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारु तुम्हारे बहनोई होंगे ।उनका पुत्र आस्तिक मुनि तुम्हारी रक्षा करेगा एवं पंचमी तिथि को यह रक्षा होगी ।मुनि जरत्कारु ही शुक्ल पंचमी के दिन नागों का रक्षण करेंगे ।
पृथ्वी पर एवं द्वार पर नागों का चित्रांकन कर उनकी पूजा करने का विधान है ।
विष भय मुक्ति हेतु सर्प प्रार्थना-
भविष्य पुराण में उनकी प्रार्थना या नमस्कार का मंत्र है जिसका अर्थ है कि-
समस्त नाग जो पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, सूर्य की किरणों, सरोवर ,तालाब , नदी में निवास करते हैं ।वे सब हम पर ,हमारे कुल पर प्रसन्न हो। हम उनको बार-बार नमस्कार करते हैं।
उपयोग- सर्प का संबंध ज्योतिष मे राहू ग्रह से है | कुंडली
मे राहू की अशुभ स्थिति सर्प विष से भय निर्माण करती है |इसलिए
सर्प मंत्र या पूजा से वर्ष भर सर्प से सुरक्षा संभव है | पितर
दोष का भी निराकर्ण सर्प पूजा से होता है |इनको पित्र शाप का
भी प्रतिनिधि माना है |
नीचे लिखे कोई मंत्र या सर्प गायत्री मंत्र अवश्य
पढे |
मंत्र-
1-नमोस्तु
सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु।
ये
अंतरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम:।।
जो सर्प
पृथ्वी के अंदर व अंतरिक्ष में हैं और स्वर्ग में हैं, उन सर्पों को नमस्कार है। राक्षसों
के लिए बाण के समान तीक्ष्ण और वनस्पति के अनुकूल तथा जंगलों में रहने वाले
सर्पों को नमस्कार है।
मंत्र 2 : * ॐ भुजंगेशाय विद्महे,
सर्पराजाय धीमहि, तन्नो
नाग: प्रचोदयात्।।
मंत्र 3 : 'सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित्
पृथ्वी तले।
ये च हेलि मरीचिस्था ये अन्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वति गामिन:।
ये च वापी तडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।'
अर्थात् – है नाग देव आपको
नमस्कार |आप आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-कहीं भी विराजित हों,हमारे दुखों को दूर कर हमें सुख-शांति
दें।
4-ये वामी
रोचने दिवो ये वा सूर्यस्य रश्मिषु।
येषामपसु
सदस्कृतं तेभ्य: सर्वेभ्यो: नम:।।
जो सूर्य
की किरणों के अनुसार , सूर्य की
ओर मुख किए हुए चला करते हैं तथा जो सागरों में समूह मे रहते हैं, उन सर्पों को नमस्कार है। तीनों लोकों
में जो सर्प हैं, उन्हें भी
हम नमस्कार करते हैं।
ॐ कलदेवतायै
नम:।'
ॐ
पितृदेवतायै नम:।'
ॐ
नागदेवतायै नम:।'
गायत्री मंत्र 'ॐ नवकुलाय
विद्यमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्' |
Daan- नागपंचमी को सोने, चांदी व तांबे के नाग बनवाकर शिव मंदिर
में चढ़ाता है या दान देता
है, उसका सर्प
का भय खत्म कर वह
स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।
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