रक्षाबंधन पर्व पर राखी बांधने का मुहूर्त -
शुभ समय रक्षा बंधन
तक उपलब्ध है।
वैदिक पर्व दिनांक 2 ,3 एवं 21 अगस्त को रक्षाबंधन पर्व वेदों के अनुसार है।वैदिक पर्व - (यजुर्वेदीय, रक्षाबंधन -वेदो में उल्लेखित उपा कर्म का का संक्षिप्त कर्म ,रक्षा बंधन हैं ।यह वेदों के अनुसार पृथक 2 दिनों में निर्धारित है।जिस वेद के अंतर्गत जो लोग आते हैं उनका पृथक दिनांक को रक्षाबंधन या उपाकर्म कार्य संपन्न करने के निर्देश हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामाजिक पर्व के लिए जो कि वैदिक पर्व भी है। किस किस वेद का उपाकर्म | 3 अगस्त यजुर्वेद के लिए । यजुर्वेदीय उपाकर्म / रक्षा बंधन। यजुर्वेद जिन नर नारी का है केवल उनक लिए ही उपा कर्म या रक्षाबंधन 3 अगस्त को है। 2 अगस्त ऋग्वेद वालों के लिए रक्षाबंधन । 21 अगस्त सामवेद बालों का रक्षाबंधन के लिए निर्धारित है। विशेष रुप से कश्यप गोत्र वाले भी इस वेद के अंतर्गत आते हैं तथा उनके लिए 21 अगस्त को रक्षाबंधन का पर्व है। सामान्यत यजुर्वेद का उपा कर्म दिन रक्षाबंधन के लिए बहु प्रचलित एवं सामान्य जनमानस में स्थापित हो गया है। परंतु जिनको अपने वेद का ज्ञान है वह अपने वेद के उपाकर्म के दिन ही रक्षाबंधन का कार्य करते हैं । एक विशेष तथ्य है कि जाने अनजाने में भी हमें इन 3 दिनों में रक्षाबंधन का कार्य करना चाहिए। इसका शुभ परिणाम यह है कि आपका जो भी वेद होगा उस दिन भी आप रक्षाबंधन का कार्य कर सकेंगे। भाई बहन के त्योहार के रूप में 3 अगस्त का प्रयोग करें परंतु 2 अगस्त एवं 21 अगस्त को अपने परिवार के बड़े या अपने पंडित अथवा मंदिर के पुजारी से रक्षाबंधन बंधवा लें । इससे पूरे वर्ष के लिए सुरक्षा एवं कल्याण के साथ विघ्न बाधाओं में कमी आती है | 2, 3 एवम 21 अगस्त तीनो बहुउपयोगी | यह तीनों अवसर इस प्रकार के हैं जिनमें ज्योतिष के आधार पर रक्षाबन्धन कार्य , कल्याण के लिए विशेष महत्वपूर्ण है । तीनों का ही प्रयोग करना अनुचित नहीं होगा वरन यह विशेष उपयोगी सिद्ध हो सकता है जैसे कि ज्योतिष के आधार पर यजुर्वेद रक्षाबंधन का दिन पूर्णिमा को आता है जो कि विशेष रूप से सभी मंगल कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। जबकि सामवेद वालों का रक्षाबंधन तृतीय या तीज के दिन आता है जो कि समस्याओं के निराकरण एवं विजय के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त होता है। आज प्रत्येक कार्य में हमें प्रतियोगिता या कठिन परिस्थिति से दो चार होना पड़ता है। ऐसी स्थिति में यह रक्षाबंधन का दिन विशेष उपयोगी सिद्ध होगा । मूलतः आचार्य एवम यजमान का वार्षिक वैदिक पर्व - रक्षाबंधन आज जन सामान्य में भाई-बहन का एक सामाजिक पर्व बन गया है ।परंतु मूल रूप से गुरु पंडित ब्राह्मण द्वारा अपने यजमान के कल्याण के लिए , उनकी प्रगति एवं उनकी सुरक्षा के लिए बांधने का सिद्धांत है। भद्रा वर्जित रक्षाबंधन के लिए भद्रा काल को सर्वाधिक अशुभ वर्जित या निषिद्ध माना गया है। कहीं-कहीं पर ऐसा भी उल्लेख है कि, भद्रा के मुख वाले समय को परित्याग करना चाहिए एवं पूछ वाले समय में कार्य किए जा सकते हैं। कही केवल पृथ्वी की भद्रा ही वर्जित है लेख है परंतु स्पष्ट रूप से व्रत राज एवं गीता प्रेस के व्रत पर्व आदी में ऐसा उल्लेख है कि भद्रा के काल में रक्षाबंधन नहीं करना चाहिए। रक्षाबंधन - भद्रा एवम अन्य अशुभ समय | अशुभ समय 03 अगस्त को 1- भद्रा विशेष अशुभ मान्य - दिनांक 3 अगस्त को 6:29 प्रातः तक भद्रा की पूंछ का काल है। 8:29 बजे तक भद्रा का मुख का काल है। 2- राहुकाल 7:35- 9:12 । 3- यमघंट काल 10:49 से 12:26। 4- वर्जित काल 11:28 से 13:07 । 5- गुलिक काल 14:0-15 :43 तक। इस प्रकार अनेक अशुभ समय रक्षाबंधन के दिन हैं।
शुभ मुहूर्त निर्णय करना सरल काम नहीं है |
टीप-चौघड़िया स्थूल एवं निकृष्ट मुहूर्त |
होरा(एक घंटा अवधि)या द्विघटी(48 मिनट) श्रेष्ठ|
निष्कर्ष शुभ मुहूर्त- इस दृष्टि से दोपहर के मुहूर्त में तो 13:45 से 16:20 तक एवं प्रदोष काल समय संध्या काल का 19:00-21:00 बजे तक शुभ काल प्राप्त होता है। सर्व श्रेष्ठ मुहूर्त लग्न-प्रचलित नाम या राशि।के लिए- लग्न को सर्व श्रेष्ठ सफलता कारी शुभ माना गया है। इसमे सभी दोष दूर हो जाते हैं- 02 एवम 03 अगस्त को कन्या तुला वृश्चिक लग्न कुंडली
सर्वश्रेष्ठ है।
किन राशियों के लिए या प्रचलित नाम वालो के लिए विशेष शुभ-अशुभ मुहुर्त | A- शुभ समय-09:15-11:00 बजे तक का समय मिथुन कन्या राशि वालों के लिए शुभ नहीं है। अन्य राशियों के लिए शुभ है। क, घ,छ,स,ग अक्षर से प्रारंभ नाम वालो के लिए शुभ नहीं है ।
शेष सभी नाम वालो के लिए उत्तम समय|
B- शुभ समय-11:20 से 01:25 तक का समय केवल मीन राशि के लिए अशुभ है। अन्य राशियों के लिए यह समय शुभ है।
जिनके नाम के प्रथम अक्षर द, चा अक्षर से प्रारंभ होते हैं उनके लिए यह समय रक्षाबंधन के लिए उपयुक्त नहीं है । शेष सभी के लिए उत्तम समय|
C- शुभ समय-01:45 से 03:35 तक का समय वृश्चिक लग्न का शुभ समय में आता है ।यह मेष और मकर राशि के लिए अशुभ है। अन्य राशियोंके लिए यह समय शुभ है।
जिनके प्रचलित नाम का प्रथम अक्षर चु, चे, चो,ला एवं ख, ज अक्षर से प्रारंभ होता हैं ,उनके लिए यह समय अशुभ है |
शेष सभी नाम वालों के लिए उत्तम समय|
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श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें : १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे । २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए । ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं । श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते किस तिथि की श्राद्ध नहीं - १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चाहिए । पिता जीवित हो तो, गया श्राद्ध न करें । २. मां की मृत्यु (सौभाग्यवती स्त्री) किसी भी तिथि को हुईं हो , श्राद्ध केवल
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