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शिव पूजा अवश्यक सावधानियाँ ,ध्यातव्य बिन्दु ?


शिव पूजा निष्फल हो जाएगी, क्या नही किया तो ?रहस्य पटाक्षेप।

(रुद्राक्ष कौन पहन सकता है? त्रिपुंड कौन लगा सकता है?नैवेद्य निर्माल्य ग्राह्य -अग्राह्य?)
शिव पूजन:प्रारंभिक तैयारी-
किसी भी कार्य के अनुकूल परिणाम के लिए पूर्ण फल प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि, उस कार्य की जो विधि process हो अथवा उसका अनुपालन किया जाना चाहिए।
शिवजी संपूर्ण भारतवर्ष में सर्वाधिक लोकप्रिय देव के रूप में
अवस्थित है।शिव जी की  पूजा करते समय जाने अनजाने में
भी यदि हम विधि या process की अवज्ञा ,अवहेलना ,उल्लंघन
करतेहैं तो निश्चित रूप से हमें पूर्ण फल या हमें अपने प्रयास के
परिणाम पूर्ण तरह नहीं प्राप्त होते हैं ।इसलिए शिव भक्तों के लिए कतिपय आवश्यक बिंदुओं पर ध्यान दिया जाना अपरिहार्य है-
1-
शिवपूजा किस स्थान पर करना उत्तम-
 
तीर्थ स्थान, सबसे बड़ी नदियों के किनारे, शिवालय मंदिर एवं 
बिल्व वृक्ष की छाया में या उसकी जड़ के संमीप की गई शिव
पूजा का विशेष महत्व एवं फल वर्णित है.
2-
शिवपूजा उत्तर की ओर मुँह कर करना चाहिए।किसी भी देव की पूजा,रात्रि में उत्तर मुख ही करना चाहिए।
3-
दिन की अपेक्षा रात्रि में पूजा फलदायनी।श्वेत वस्त्र बिना सिले श्रेष्ठ|
4-
चार उंगल लंबा या ऊँचा पार्थिव(मिट्टी, रेत से निर्मित) शिवलिंग सर्वकामना पूरक।
विशेष जुलाई से अक्टूबर देवशयन काल मे, मूर्ति स्पर्श वर्जित माना जाता है।इसलिए आवश्यक भी है पार्थिव शिवलिंग पूजा।
5-
शिवलिंग के किस ओर बैठे-
अ-शिवलिंग से पूर्व दिशा का आश्रय लेकर बैठना या खड़े होना वर्जित है क्योंकि यह दिशा शिवजी के आगे या सामने होती है।
ब-शिवलिंग से उत्तर दिशा मैं नहीं बैठना चाहिए क्योंकि है शंकर जी
 का लेफ्ट ,बाम अंग या भाग्, जिसकी अधिष्ठता शक्ति स्वरूपा
पार्वती जी को प्राप्त एवम विराजित है।
स-शिवलिंग के पश्चिम या पार्श्व भाग या दिशा में बैठना इसलिए वर्जित है क्योंकि इष्ट देव के पीछे या पृष्ठ भाग में बैठना अनुचित माना जाता है।
द-शिवलिंग के राइट ,दाहिने  दिशा में बैठना इसलिए उचित है क्योंकि उस समय आपका मुह उत्तर दिशा की ओर होगा। यह सब तथ्य स्थापित शिवलिंग की दिशा से हैं।
6-
त्रिपुंड लगाना अपरिहार्य-
 
शिव या किसी भी देवी देवता की पूजा करते करते समय आवश्यक है
 कि ,उस देवी देवता से संबंधित तिलक ,टीका अथवा जैसे शिवजी
के लिए माथे पर त्रिपुंड लगाना अति आवश्यक है।
-
त्रिपुंड किस पदार्थ का हो इस संदर्भ में स्पष्ट लेख है कि भस्म जिसे विभूति कहते हैं अथवा यज्ञ की भस्म  या गाय के गोबर को
जलाने के उपरांत प्राप्त भस्म अथवा जल से त्रिपुंड लगाने का
 विधान है।बिना त्रिपुंड धारण या लगाए शिवजी का पूजन
दान ,स्नान ,ध्यान, हवन आदि का कोई फल प्राप्त नहीं होता है।
-
भस्म त्रिपुंड या विभूति  कौन लगा सकता है-
इस संदर्भ में स्पष्ट शिवपुराण में लेख है कि त्रिपुंड सन्यासी ,
कन्या, दीक्षा  रहित मनुष्य आदि जो भी शिव की पूजा करें
उनके लिए त्रिपुंड लगाना अपरिहार्य है .
किसी के लिए भी त्रिपुंड लगाना निषेध नहीं है।
 त्रिपुंड लगाने की विधि-
सामान्य रूप से दाहिने हाथ के बीच की तीन उंगलियां जिसमें अंगूठे के पास की तर्जनी या इंडेक्स फिंगर छोड़कर तीन उंगलियों से ओम नमः शिवाय का जप करते हुए माथे या ललाट पर या फोरहेड पर त्रिपुंड लगाना चाहिए।
त्रिपुंड शब्द से अभिप्रेत है 3 पंक्तियां या तीन रेखाएं ।
त्रिपुंड की उत्तम विधि है कि, रिंग और मिडल फिंगर से माथे पर भौंह के ऊपर ,दो रेखाएं रलेफ्ट से राइट की ओर ले जाएं । राइट  से राइट या  दाहिने से लेफ्ट वायीं और अंगूठे के द्वारा इन दोनों के मध्य में एक रेखा बनाएं ।यह श्रेष्ठ विधि है ।
त्रिपुंड एक वृहद विषय है। तीनों रेखाओं में 9-9 देवता आदि रहते हैं परंतु आवश्यक है कि पूजा के पूर्व माथे पर या फोरहेड पर तीन रेखाएं भस्म से बनाई जावे।
-
त्रिपुंड के लिए श्रेष्ठ है कि श्वेत भस्म हो या चंदन मिश्रित
अथवा इनके अभाव में जल से भी त्रिपुंड धारण किया जा सकता है ।
त्रिपुंड-किस समय जल से लगाये या बनाये-
1-
जल एवम भस्म से लगाने का समय-
मध्यान्ह या दोपहर के पहले जल से युक्त त्रिपुंड धारण करना
अच्छा माना गया है ।2-दोपहर के पश्चात जल रहित भस्म से
 त्रिपुंड धारण करना चाहिए।
भस्म शरीर के किस स्थान या अंग पर लगाये-
विभूति या  भस्म को शरीर के अधिकतम 32 स्थानों या अंगों पर
अथवा कम से कम पांच अंग पर  स्पर्श अवश्य कराना चाहिए।
भस्म  लगाने के लिए या विभूति लगाने के लिए 5 शरीर के
अंग -मस्तक ,दोनों भुजाएं, ह्रदय और नाभि इन पर स्पर्श
करना आवश्यक है।
शिव के पूजन के समय त्रिपुंड के अतिरिक्त रुद्राक्ष धारणआवश्यक-
7-
रुद्राक्ष धारण शिव पूजा के लिए आवश्यक- आदि देव भगवान के शिवलिंग अथवा शिव की पूजा के समय रुद्राक्ष धारण करना भी
आवश्यक है। रुद्राक्ष सभी वर्ग ,सभी वर्ण, नर नारी आदि धारण
कर सकते हैं। इसके लिए किसी भी वर्ग के लिए या वर्ण के
 लिए रुद्राक्ष धारण करना वर्जित नहीं है।सामान्यतः 5 मुखी रुद्राक्ष सर्व सुलभ एवं कोईभी धारण कर सकता है ।पांच मुखी रुद्राक्ष यदि निरंतर अनवरत या हमेशा नहीं पहनते हैं तो जब पहने पूजा के पूर्व तो उसका
मंत्र है ॐ ह्रीम नमः।
8-
निर्माल्य ग्राह्य ?
समान्य नियम-शिव पर अर्पित /चढाये जल,पदार्थ, नैवेद्य फल
आदि ग्रहण नही करना चाहिए। यदि ग्रहण करना ही हो तो
शालिग्राम शिला से स्पर्श होने के बाद शुद्ध |शिवलिंग के स्पर्श
 से हीन, अतिरिक्त स्थान पर अर्पित सामग्री ग्रहण की जा सकती है।
अपवाद-
लोह लिंग,ज्योतिर्लिंग, स्वयम्भू लिंग, सुसिद्ध लिंग,पारद,चांदी, स्वर्ण,
नर्मदेश्वर लिंग,स्फटिक,केसर, रत्न से निर्मित, शिव लिंग पर अर्पित
नैवेद्य ग्रहण भक्षण करना चाहिए।इससे कथन चंद्रयाण व्रत का फल मिलता है |
-शिव स्नान कराने के बाद के जल को माथे या सिर पर लगाने
से पापनष्ट होते है।

 

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