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वर लक्ष्मी व्रत पूजा अर्चना- MUHURT संतान ,धन,समृद्धि एवं सौभग्य प्रद /प्राप्ति

  भारत के दक्षिण भाग - तमिल नाडू,आँध्र प्रदेश,तेलंगाना , महाराष्ट्र एवं कर्णाटक प्रदेश में बिशेष प्रचलित है .दिवाली पूजा के सामान लक्ष्मी पूजा का महत्व प्रभाव है, ग्रह नक्षत्र के विशेष संयोग के अनुसार . अष्ट लक्ष्मी में से वर लक्ष्मी की पूजा स्थिर लग्न(वृष,सिंह,धनु लग्न ) में धन,सुख एवं सौभाग्य दायक है, 16.8.2024 -पूजा मुहूर्त – 03:15-16:55; 21:59-23:21; 23:25-01:21 भोजन पदार्थ- सात्विक भोजन - खीर साबूदाने की खिचड़ी एवं पुलाव , कुटू , कच्चे केले , सिंघाड़े , आलू , खीरा और मूंगफली के व्यंजन   , आदि है                       प्रतिवर्ष पूजा मुहूर्त- उत्तर एवं दक्षिण भारत क्षेत्र सामान्यतः पूजा प्रारंभ की शुभ लग्न लगभग प्रतिवर्ष निम्न ही होंगी- स्थिर   लग्न 06:40 - 07:50 ; Best-15:11-17:10 ;   00:15- 01:25 ; - घी का दीपक ,दाहिनी और रखे,कलावा की बत्ती (रुई की नहीं),दीपक उत्तर या पश्चिम दिशा (संध्या /रात्रि समय). पूजा स्थान पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र करे.   संकल्प करें। लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति को लाल /पीले वस्त्र   पर स्थापित करे । किसी प्लेट में अक

पेड़ –पौधे लगाने - रोपने, पालने के परिणाम दिशा,शुभ /विपरीत प्रभाव/परिणाम

पेड़-पौधे क्यों ?दिशाएँ ? पितृ ऋण से मुक्ति , पितृ शाप से मुक्ति के लिए सात पीढ़ियों के उद्धार के लिए कम से कम पाँच वृक्षों का रोपण करना चाहिए। मृत्यु के तनाव से मुक्ति के लिए बिल्व वृक्ष का रोपण शिव मंदिर के परिसर में करना चाहिए। देवलोक प्राप्ति के लिए सड़क के किनारे पीपल का वृक्ष लगाना चाहिए। पूर्वजों को मोक्ष के लिए नीम के वृक्ष दक्षिण दिशा में जितने अधिक लगाएंगे उतनी पीढ़ियाँ तर जाती हैं। पापों से मुक्ति के लिए (लोक एवं परलोक सुख) 11 शीशम के वृक्ष सड़क के किनारे लगाना चाहिए। मोक्ष प्रदायक कनक चंपा के वृक्ष होते हैं। धन प्राप्ति के लिए एवं कृष्ण की कृपा के लिए महुआ का वृक्ष रोपण करना चाहिए , जिससे यज्ञ का फल मिलता है। पितृ शाप और पोषण ( संदर्भ - भविष्य पुराण के पुत्र कर्म तथा वृक्षारोपण खंड) पितृगण पत्र , पुष्प , और फल के रज-रेणु मिलने से संतुष्ट होते हैं। वृक्ष के पत्ते , फूल , फल पितृगणों को पोषण प्रदान करते हैं और पूर्वजों के पापों को नष्ट कर भाग्य में वृद्धि करते हैं। संतान अभाव नाशक या संतान सुख दाता