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07अक्टूबर 2021-मुहूर्त शारदीय नवरात्री कुम्भ /घट(कलश) स्थापन-

             07अक्टूबर 2021-मुहूर्त शारदीय नवरात्री कुम्भ /घट(कलश) स्थापन-                (शरद ऋतु ,दक्षिणायन,आश्वनी शुक्ल पक्ष,वैदिक माह-ईश)   (मुहूर्त मर्मज्ञ -पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी द्वारा जनहित में संशोधित संकलित प्रस्तुत)   कलश / घट   स्थापना प्रारंभ का शुभ समय   - धनु लग्न   11.49.-12.26 बजे अभिजित मुहूर्त , 12:08 मिनट तक चन्द्र ग्रह की उत्तम होरा , 13:21 तक मध्याह्न काल शुभ (अधिकतम-11:33-13.37 बजे तक) शुभ समय है | ध्यातव्य (ध्यान रखिये )-- दुर्गा घट (कलश / कुम्भ )स्थापना , धन हानि(वर्जित) योग में नहीं हो ?       देवी दुर्गा शक्ति की   अधिष्ठात्री हैं | कलश स्थापना पूजा आदि विशेष सावधानी से करना ही हितकारी , कल्याणप्रद है | हिन्दू पर्वों का अधिसंख्य ग्रहों की स्थिति पर निर्धारित है | सामान्य नियम है कोई भी शुभ कार्य विशिष्ट निर्धारित तिथि एवं शुभ   समय अवधि में ही किया जाना चाहिए | - ज्ञातव्य- (निवेदित)- कलश में प्रथम छह दिन दुर्गा जी विराजती हें | नारियल कलश में फसाकार शास्त्रीय नियम की अनदेखी न करे | स्थापना एवं विसृजन काल ? देवी पुराण (प्रातः   प्

दुर्गा प्रबोधन: देवी को शयन से 05 अक्टुबर को प्रबोधन (जगाएं) करे ।

     दुर्गा प्रबोधन:   देवी को शयन से 05 अक्टुबर को उठाये।   आपत्ति विपत्ति आपदा दुर्गति आदि से रक्षा के लिए शक्ति स्वरूपा देवियों की स्थिति प्रार्थना की जाती है। प्रत्येक युग मे नवदुर्गा उपासना का प्रमुख स्थान रहा है। 1 सतयुग में चैत्र शुक्ल पक्ष में नव दुर्गा की उपासना श्रेष्ठ मानी गई। 2 त्रेता में आषाढ़ शुक्ल पक्ष में नवदुर्गा उपासना फलदाई रही । 3द्वापर में माघ शुक्ल पक्ष नव देवियों की उपासना का प्रचलन एवं प्रभाव रहा । 4 कलियुग में अश्वनी शुक्ल पक्ष नवरात्र पूजा प्रमुख एवं महिमा कहीं गई है। (संदर्भ ग्रंथ महाकाल संहिता)।    उपरोक्त विवरण से एक बात उद्घाटित होती है कि नव दुर्गा की उपासना के लिए शुक्ल पक्ष को ही प्रमुख माना गया है । कृष्ण पक्ष में नवदुर्गा नवरात्र पूजा की महिमा का वर्णन दृष्टिगोचर नहीं होता है।    वर्ष में चार बार नवरात्र अर्थात नव देवियां की स्तुति के अवसर आते हैं-   वर्ष में चार बार ऋतु के आधार पर व्रत निर्धारण एवं पूजा निर्धारण हैं। 1 शिशिर ऋतु माघ मास में नंदा देवी या भद्रकाली प्रमुख पूज्य है । 2 चैत्र मास में वासंतिक   नवरात्र कहलाते है

श्राद्ध में 3 की संख्या का विशेष महत्व है। 3 को सामान्य रूप से शुभ अंको में नहीं गिना जाता है ।शुभ कार्य मे वर्जित है।

श्राद्ध में 3 की संख्या का विशेष महत्व है।  3 को सामान्य रूप से शुभ अंको में नहीं गिना जाता है ।शुभ कार्य मे वर्जित है। परंतु  जन्म से लेकर मृत्यु काल के उपरांत तक श्राद्ध सभी कर्मों में प्रथम रूप से व्याप्त है।   श्राद्ध मे  तीन संख्या या वस्तु या तीन बार  का सर्वाधिक महत्व है। जो जीवन में कल्याणकारी सिद्ध होता है। पितरों की प्रसन्नता के लिए तथा पित्र दोष से मुक्ति के लिए एवं पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्रद्धा से किया जाने वाला पितृ यज्ञ किया जाता है। - मृत्यु के तीसरे दिन प्रेत श्राद्ध किया जाता है। - प्रेत(प+र त) शब्द तीन अक्षर के सयोग से निर्मित । - मनुष्य पर तीन ऋण प्रमुख  हैं- पितृ ऋण , देव ऋण तथा ऋषि ऋण। - श्राद्ध काल मे पूज्य पीपल वृक्ष पूजा तीनअक्षर का शब्द्।  - श्राद्ध कर्म मे प्रयोज्य सर्वाधिक महत्व की वस्तु के नाम- पिंड (पि+न+ड) , चावल (च+व+ल) एवम तुलसी (त+ल+स) सभी तीन अक्षर के हैं। - देवधिदेब विष्णु (व+श+ न) तीन अक्षर। - पार्वण श्राद्ध मे तीन स्थान पर तीन की पूजा पुर्व विष्णु जी , दक्षिण पितर एवम पश्चिम विश्वेदेव की दिशा स्थान नियत है। - बाया हाथ की अ

श्राद्ध शब्द वैदिक नहीं परन्तु पितृ कर्म कल्याणकारी अवश्य है |

  श्राद्ध शब्द वैदिक नहीं परन्तु पितृ कर्म कल्याणकारी अवश्य है |                             (अनेकानेक ग्रथो में हजारो वर्ष से वर्णित ) (आज सोशल साईट पर अनर्गल टीका,टिप्पणी, व्यग्य ,उपहास घटना,कथा,चुटकुले बना कर परोसने का प्रमुख विषय - श्राद्ध कर्म विषय है | नास्तिक,धर्म-संस्कार हीन विचार के उत्प्रेरक ,सामाजिक (परम्परा,रीति-रिवाज ) कर्तव्य विहीन वर्ग ,विश्व के विश्व का प्राचीनतम एवं   एक मात्र एसे धर्म जो (विज्ञानं सम्मत भी है ) ग्रह ,नक्षत्रो पर आधारित है (जिनके प्रभाव से चर अचर समस्त जगत प्रभावित है “सनातन धर्म “ ) पर व्यग्य लिख कर अपने अल्प ज्ञान का प्रदर्शन करने में लगा है | उनको ज्ञात नहीं है कि उच्च कोटि के   विज्ञानं सम्मत धर्म में ‘श्राद्ध कर्म “ मृत्यु उपरांत आत्मा की स्थति का ज्ञान प्रदान करता है | विज्ञानं भी आत्मा जैसा कुछ है जो निष्प्राण होने पर निकल जाता है ,मानता है | -श्राद्ध कर्म –पितरों के लिए उनकी तृप्ति,संतुष्टि के लिए वर्णित है परन्तु इसके मूल में महत्वपूर्ण है इस कर्म के द्वारा ,श्राद्ध कर्ता अपनी अनेक -अनेक आपत्ति,विपत्ति,संकट से मुक्ति प्राप्त करता है |