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पिता या माता की मृत्यु के एक वर्ष तक श्राद्ध–तर्पण की स्थिति

 

पिता या माता की मृत्यु के एक वर्ष तक श्राद्धतर्पण की स्थिति

🟢 प्रस्तावना (Prastavna)

धर्मशास्त्रों में यह स्पष्ट है कि जब परिवार में पिता या माता का निधन होता है, तब उस मृतात्मा की आत्मा एक वर्ष तक अपरलोक की यात्रा में रहती है।
इसीलिए उस समय केवल उसी मृतक के लिए मासिक श्राद्ध (Masika Shraddha) और अंत में सम्वत्सरिक (वार्षिक) श्राद्ध किया जाता है।
इस अवधि में अन्य पितरों का (पूर्वजों का) श्राद्ध नहीं किया जाता, क्योंकि नवमृत (नवीन मृतात्मा) को ही श्राद्ध में प्रमुखता दी जाती है।


🔹 . मासिक श्राद्ध (Masika Shraddha)

  • प्रत्येक मास मृतक की मृत्यु तिथि (तिथ्यनुसार) को किया जाता है।
  • इसमें केवल उसी मृतक के लिए पिण्डदान और तर्पण होता है।
  • इसे १२ महीने तक नियमित करना आवश्यक है।

🔹 . वार्षिक श्राद्ध (Samvatsarik Shraddha)

  • १२ मास पूर्ण होने पर उसी तिथि पर सम्वत्सरिक श्राद्ध किया जाता है।
  • इस दिन मृतक की आत्मा को पितरों की श्रेणी में सम्मिलित किया जाता है।
  • इसके बाद से वह सामान्य पितृ श्राद्ध (पितृपक्ष आदि) में स्थान पाता है।

🔹 . एक वर्ष तक अन्य पितरों का श्राद्ध क्यों नहीं?

  • गरुड़ पुराण एवं निर्णयसिन्धु के अनुसार:

"नवमृतस्य वर्षान्ते सम्वत्सरिके कृतः श्राद्धः तदा अन्येषां पितॄणां श्राद्धं भवेत्।"

    • अर्थात: जब तक १२ माह का वार्षिक श्राद्ध हो जाए, तब तक अन्य पितरों का श्राद्ध वर्जित है।

🔹 . एक वर्ष तक क्या करना चाहिए?

  1. केवल मृत पिता या माता का मासिक श्राद्ध करना।
  2. मासिक श्राद्ध की तिथि मृत्यु की तिथि अनुसार पंचांग से देखनी होती है
  3. संकल्प में केवल उसी मृतक का नाम लिया जाए।
  4. पिण्डदान, तर्पण, ब्राह्मण भोजन दान करना।
  5. एक वर्ष बाद वार्षिक श्राद्ध में अन्य पितरों का भी श्राद्ध पुनः प्रारम्भ करना।

निष्कर्ष
पिता या माता की मृत्यु के एक वर्ष तक केवल उन्हीं का मासिक श्राद्ध करना चाहिए। अन्य पितरों का श्राद्ध तब तक रोक दिया जाता है।
एक वर्ष पूर्ण होने पर वार्षिक श्राद्ध के साथ मृतक आत्मा पितृगणों में सम्मिलित हो जाती है, और तब से पितृपक्ष में सामूहिक श्राद्ध पुनः आरम्भ होता है।

1. गरुड़ पुराण, प्रेतखण्ड, अध्याय 10

"नवपितॄणां वर्षान्ते श्राद्धं स्यात् पूर्वजेषु तु।
तस्मात् वर्षं प्रतीक्षेत पुत्रोऽन्यश्राद्धकर्मणि॥"

📖 Garuda Purana, Pretakhanda, Adhyaya 10

अर्थ:
नवपितृ (अर्थात् हाल ही में मृत पिता/माता) का श्राद्ध एक वर्ष तक विशेष रूप से किया जाता है।
इसलिए पुत्र को अन्य पूर्वजों (दादा, परदादा आदि) का वार्षिक श्राद्ध एक वर्ष तक नहीं करना चाहिए।


2. धर्मसिन्धु, श्राद्धप्रकरण

"नवो मृतो यदि पिताऽथवा माता, तस्यैव मासिकं कुर्यात्।
नान्येषां पितॄणां श्राद्धं तावत्कालं विधीयते॥"

अर्थ:
यदि पिता या माता हाल ही में दिवंगत हुए हों, तो पुत्र केवल उन्हीं का मासिक श्राद्ध करे।
अन्य पितरों का श्राद्ध उस काल (एक वर्ष) में नहीं किया जाता।


3. निर्णयसिन्धु (श्राद्धविचार)

"नवपितरि सति, अन्येषां श्राद्धं कार्यम्।
वर्षपर्यन्तं तस्यैव मासिकं करणीयम्।"

अर्थ:
जब नवपितृ (नव मृतक पिता/माता) हों, तब अन्य पितरों का श्राद्ध नहीं किया जाता।
पूरे एक वर्ष तक केवल उन्हीं का मासिक श्राद्ध किया जाना चाहिए।


इससे स्पष्ट है:

  • पुत्र को पिता/माता की मृत्यु के एक वर्ष तक केवल उन्हीं का मासिक श्राद्ध करना चाहिए।
  • अन्य पितरों (दादा, परदादा) का वार्षिक श्राद्ध इस बीच पुत्र द्वारा स्थगित रहता है।
  • परंतु अन्य शाखाओं (जैसे चाचा आदि) द्वारा किया जाने वाला श्राद्ध वैध है।

मूल नियम

👉 गरुड़ पुराण, स्मृतिग्रन्थों (याज्ञवल्क्यस्मृति, धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु) में स्पष्ट कहा गया है
जिस पुरुष (मुख्य रूप से पुत्र) के पिता या माता की मृत्यु हुई हो, वह एक वर्ष तक किसी प्रकार का तर्पण या श्राद्ध अन्य पितरों के लिए नहीं करता

कारण :

  • नया मृतक (पिता/माता) अभी एक वर्ष तकअसाधारण पितृ” (नवपितृ/प्रेतावस्था) में गिना जाता है।
  • उसी का श्राद्ध मासिक कर्म (मासिक श्राद्ध) ही किया जाता है।
  • पुराने पितरों का वार्षिक श्राद्ध इस पुत्र द्वारा स्थगित रहता है।

आपके प्रश्न का उदाहरण

  • व्यक्ति A है।
  • उसके पिता B का देहान्त हुआ।
  • A के दो भाई भी हैं (अर्थात B के अन्य पुत्र)
  • B का एक भाई (A का चाचा) भी है।

नियम:

  1. B का पुत्र A (और उसके अन्य भाई)
    • एक वर्ष तक केवल अपने पिता (B) का मासिक श्राद्ध करेंगे
    • इस अवधि में वे अन्य पितरों (दादा, परदादा आदि) का वार्षिक श्राद्ध नहीं करेंगे।
    • कारण: नया पितृ (B) सर्वाधिक समीपस्थ है और श्राद्ध का अधिकार उसी पर केन्द्रित है।
  2. B का भाई (A का चाचा)
    • वह अपने पिता (अर्थात A के दादा) आदि का श्राद्ध कर सकता है।
    • क्योंकि उस पर "पुत्रधर्म का एक-वर्षीय प्रतिबंध" लागू नहीं है।
  3. यदि B के अन्य पुत्र भी हैं (A के भाई)
    • उन पर भी वही नियम है।
    • पिता (B) की मृत्यु के एक वर्ष तक वे सब केवल मासिक श्राद्ध करेंगे और अन्य पुरखों का वार्षिक तर्पण नहीं करेंगे

निष्कर्ष (स्पष्ट उत्तर)

पिता की मृत्यु के बाद उसके पुत्र/पुत्रगण पूरे एक वर्ष तक केवल मृत पिता (नवपितृ) का मासिक श्राद्ध करेंगे।
उस वर्ष वे अन्य पूर्वजों का वार्षिक श्राद्ध (तर्पण) नहीं करेंगे।
लेकिन भाई, चाचा या अन्य रिश्तेदार (जिन्होंने पिता नहीं खोया है) वे अपने हिस्से का श्राद्ध/तर्पण कर सकते हैं।

1. मासिक श्राद्ध क्या है?

जब किसी की मृत्यु होती है, तो शास्त्र कहता है कि उसके बाद १२ मास तक प्रत्येक मास में श्राद्ध करना चाहिए
इसे मासिक श्राद्ध” (Masika Shraddha) कहते हैं।

📖 गरुड़ पुराण, प्रेतखण्ड

"मासे मासे तु कर्तव्यं मासिकं मृतकस्य तु।
वर्षान्ते वार्षिकं कुर्यात् तदा सर्वपितॄणामपि॥"

अर्थ:
हर महीने मृतक का मासिक श्राद्ध किया जाना चाहिए।
एक वर्ष पूरा होने पर वार्षिक श्राद्ध के साथ सभी पितरों का श्राद्ध पुनः किया जाता है।


2. मासिक श्राद्ध कब करना है (तिथि)?

  • मृत्यु जिस तिथि (तिथि = पंचांग तिथि, कि अंग्रेज़ी तारीख़) में हुई है,
    उसी तिथि पर हर महीने मासिक श्राद्ध किया जाता है।
  • उदाहरण: यदि किसी का देहांत भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी को हुआ है,
    तो आगे १२ मास तक प्रत्येक मास की कृष्ण चतुर्दशी को ही मासिक श्राद्ध होगा।

3. कौन करेगा?

  • मुख्य कर्ता (पुत्र)यदि पुत्र है, तो वही करेगा।
  • पुत्र हो तो पौत्र/भ्राता/भ्राता-पुत्र/सगोत्र सम्बन्धी।
  • परंतु मुख्य अधिकारी पुत्र ही है।

4. मासिक श्राद्ध की विधि (संक्षेप में):

() तैयारी

  • प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  • दक्षिणाभिमुख होकर कुशा का आसन बिछाएँ।
  • पितृ के नाम से संकल्प करें:

"मम पितुः (नाम) मासिक श्राद्धकर्मणि अयं संकल्पः।"

() देव-ऋषि-पितृ पूजन

  1. विष्णु/शिव का ध्यान।
  2. पितृ-तृप्ति हेतु दीपधूपनैवेद्य।
  3. पिण्डदानआटे/चावल से 3 पिण्ड (पिता, पितामह, प्रपितामह) बनाए जाते हैं,
    परंतु मासिक श्राद्ध में केवल नवमृतक (हाल ही मृत) को पिण्ड दिया जाता है।

() तर्पण

  • जल में तिल, कुश, पुष्प, अक्षत, दूब मिलाकर तर्पण मंत्र से अर्पण करें:

" पितृभ्यः स्वधा नमः।"

  • विशेष:

" (मृतक का नाम) मासिक श्राद्धार्थं तर्पयामि स्वधा।"

() ब्राह्मण भोजन दान

  • ब्राह्मण को भोजन कराएँ, वस्त्र/दक्षिणा दें।
  • यदि संभव हो, तो कौवे, गाय, कुत्ते को अन्न दें।

5. विशेष नियम

  • मासिक श्राद्ध दोपहर (मध्याह्न काल) में किया जाता है।
  • इस अवधि में अन्य पितरों का वार्षिक श्राद्ध नहीं किया जाता (जैसा हमने पहले बताया)
  • बारहवें महीने का मासिक श्राद्ध ही वार्षिक श्राद्ध (अब्दिक/सम्वत्सरिक) कहलाता है।

6. संक्षिप्त सूत्र (स्मरण के लिए):

  • तिथिमृत्यु तिथि ही।
  • कर्तापुत्र।
  • विधिस्नान, संकल्प, पिण्डदान, तर्पण, ब्राह्मण भोजन।
  • अवधि१२ मास तक।
  • १३वें मास सेअन्य पितरों के वार्षिक श्राद्ध फिर से आरम्भ।

👉 यदि आप चाहें तो मैं इसका एक चार्ट (मास से मास १२ तकतिथि, विधि, विशेषता) -

👉 मान लीजिए कि किसी की मृत्यु भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी को हुई है (यह सिर्फ़ उदाहरण है) –
तो आगे प्रत्येक मास उसी तिथि पर मासिक श्राद्ध करना होगा।


📜 मासिक श्राद्ध चार्ट (Masika Shraddha Schedule)

मास संख्या

मास का नाम (संस्कृत/हिन्दी)

तिथि (मृत्यु तिथि अनुसार)

विधि / विशेषता

1️

आश्विन मास

कृष्ण चतुर्दशी

प्रथम मासिक श्राद्धकेवल मृतक को पिण्डदान, तर्पण।

2️

कार्तिक मास

कृष्ण चतुर्दशी

मृतक का मासिक श्राद्ध। अन्य पितरों का श्राद्ध अभी नहीं।

3️

मार्गशीर्ष मास

कृष्ण चतुर्दशी

संकल्प – “तृतीय मासिक श्राद्ध

4️

पौष मास

कृष्ण चतुर्दशी

मृतक के लिए ही श्राद्ध।

5️

माघ मास

कृष्ण चतुर्दशी

पिण्डदान, तर्पण, ब्राह्मण भोजन।

6️

फाल्गुन मास

कृष्ण चतुर्दशी

षष्ठ मासिक श्राद्ध।

7️

चैत्र मास

कृष्ण चतुर्दशी

सप्तम मासिक श्राद्ध।

8️

वैशाख मास

कृष्ण चतुर्दशी

अष्टम मासिक श्राद्ध।

9️

ज्येष्ठ मास

कृष्ण चतुर्दशी

नवम मासिक श्राद्ध।

🔟

आषाढ़ मास

कृष्ण चतुर्दशी

दशम मासिक श्राद्ध।

1️1️

श्रावण मास

कृष्ण चतुर्दशी

एकादश मासिक श्राद्ध।

1️2️

भाद्रपद मास

कृष्ण चतुर्दशी

सम्वत्सरिक (वार्षिक श्राद्ध)१२ मास पूरे होने परइस दिन अन्य पितरों का भी श्राद्ध जोड़ा जाता है।


⚖️ नियम / विशेष बातें

  1. हर महीने समान तिथि (पंचांग तिथि) पर करना है।
  2. विधि: स्नानसंकल्पपिण्डदान (केवल मृतक हेतु) → तर्पणब्राह्मण भोजन/दान।
  3. १२वें मास का श्राद्ध वार्षिक श्राद्ध कहलाता है।
  4. इस अवधि में अन्य पितरों का वार्षिक श्राद्ध नहीं किया जाता।
  5. पुत्र होने पर भाई, पौत्र, सगोत्र पुरुष कर सकता है।

 

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