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तर्पण सामग्री, प्रकार, विधि एवं मंत्र एवं शास्त्रीय प्रमाण (biligul)सफ़ेद तिल,जौ फल,दिशा-तर्पण मुख – जल प्रवाह दिशा

 


तर्पण सामग्री, प्रकार, विधि एवं मंत्र एवं शास्त्रीय प्रमाण

(Tarpana Samagri, Types, Method & Mantras)

By – V.K. Tiwari, Dr. S. Tiwari, Dr. R. Dixit | 📞 9424446706


📖 प्रस्तावना

मानव जीवन में तर्पण (जल अर्पण) का अत्यंत महत्त्व है। यह केवल जलदान होकर ऋणमुक्ति और कृतज्ञता का भाव है।
शास्त्रों में तर्पण के माध्यम से देव, ऋषि, पितृ, यम एवं मनुष्य सभी को संतुष्ट करने की विधि दी गई है।
तर्पण की शुद्ध विधि का पालन करने से

  • पितरों की संतुष्टि,
  • देवताओं की प्रसन्नता,
  • ऋषियों का आशीर्वाद,
  • और मनुष्यों के साथ सौहार्द प्राप्त होता है।

धर्मसिन्धु, गरुड़पुराण, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति आदि ग्रंथों में तर्पण की दिशा, आसन, पात्र, वस्त्र, तिल और तुलसी के प्रयोग तक का स्पष्ट निर्देश मिलता है।
इस संक्षिप्त ग्रंथ में तर्पण से संबंधित मुख्य नियम, शास्त्रीय श्लोक एवं व्यावहारिक विधि का संकलन प्रस्तुत है।

श्राद्ध और तर्पण में केवल पितरों का ही नहीं बल्कि अन्य देव, ऋषि और यम आदि का भी आह्वान जल-तर्पण किया जाता है। यह सब धर्मसिंधु, निरयसिंधु, गरुड़पुराण, वृहद्धर्मपुराण आदि ग्रंथों में स्पष्ट है।

 १. तर्पण की सामग्री (Samagri)

  • शुद्ध जल (कुश शुद्ध जल में डुबोकर छाना हुआ)
    Shuddha jala (kusha shuddha jala mein dubokar chhāna huā)

  • कुशा (तिनका, जिसकी नोक आगे हो)
    Kusha (tinkā, jiskī nok āge ho)

  • तिल (काले तिल मुख्य, परंतु विशेष तिथियों/नक्षत्रों में जौ का प्रयोग)
    Til (kāle til mukhya, parantu viśeṣa tithiyon/nakṣatron mein jau kā prayoga)

  • पुष्प, अक्षत (बिना टूटे चावल)
    Pushpa, akṣata (binā ṭūṭe chāvala)

  • दूर्वा, तुलसी पत्र
    Dūrvā, tulasī patra

  • पात्र (ताम्रपात्र, चाँदी या मिट्टी)
    Pātra (tāmrapātra, chāndī yā miṭṭī)

  • आसन (दक्षिणाभिमुख होकर कुशासन श्रेष्ठ)
    Āsana (dakṣiṇābhimukha hokar kuśāsana śreṣṭha)

  • वस्त्र – शुद्ध, धोए हुए, सफेद या पीले
    Vastra – shuddha, dho’e hu’e, saphed yā pīle


२. तर्पण के प्रकार (Prakār)

  1. देव तर्पण – देवताओं को अर्पण
    Deva tarpaṇa – Devatāon ko arpaṇa

  2. ऋषि तर्पण – ऋषि-मुनियों को अर्पण
    Ṛṣi tarpaṇa – Ṛṣi-muniyon ko arpaṇa

  3. पितृ तर्पण – पितरों को अर्पण
    Pitṛ tarpaṇa – Pitṛon ko arpaṇa

  4. मानव तर्पण – जीवित जनों के निमित्त
    Mānava tarpaṇa – Jīvit janon ke nimitta

  5. विशेष तर्पण – ग्रहण, संक्रांति, अमावस्या, श्राद्ध पक्ष
    Viśeṣa tarpaṇa – Grahaṇa, saṅkrānti, amāvasyā, śrāddha pakṣa


३. तर्पण की विधि (Vidhi)

  • स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
    Snāna kar shuddha vastra dhāraṇa karen.

  • दक्षिण की ओर मुख करके कुशासन पर बैठें।
    Dakṣiṇa kī or mukh karke kuśāsana par baiṭhen.

  • कुश अंगुलियों में धारण कर जल पात्र में रखें।
    Kusha aṅguliyon mein dhāraṇa kar jala pātra mein rakhen.

  • तिल (या जौ) मिलाकर अंजलि बनाएं।
    Til (yā jau) milākar añjali banāyen.

  • अंजलि को दोनों हथेलियों से जोड़कर जल दक्षिणाभिमुख पृथ्वी पर गिराएं।
    Añjali ko donon hatheliyon se joḍkar jala dakṣiṇābhimukha pṛthvī par girāyen.

  • प्रत्येक तर्पण में संबंधित मंत्र बोलकर जल छोड़ें।
    Pratyeka tarpaṇa mein saṁbandhita mantra bolkar jala choḍen.

👉 विशेष नियम (Viśeṣa niyama)

  • देव तर्पण → पूर्वाभिमुख
    Deva tarpaṇa → Pūrva-abhimukha

  • ऋषि तर्पण → उत्तराभिमुख
    Ṛṣi tarpaṇa → Uttara-abhimukha

  • पितृ तर्पण → दक्षिणाभिमुख
    Pitṛ tarpaṇa → Dakṣiṇābhimukha


४. तर्पण मंत्र (Mantra)

(क) देव तर्पण मंत्र (Deva Tarpaṇa Mantra)

ॐ देवेभ्यो नमः । ॐ ऋषिभ्यो नमः । ॐ ब्रह्मणे नमः । ॐ विष्णवे नमः । ॐ रुद्राय नमः । ॐ आदित्याय नमः । ॐ सोमाय नमः ।

Om devebhyo namaḥ.
Om ṛṣibhyo namaḥ.
Om brahmaṇe namaḥ.
Om viṣṇave namaḥ.
Om rudrāya namaḥ.
Om ādityāya namaḥ.
Om somāya namaḥ.


(ख) ऋषि तर्पण मंत्र (Ṛṣi Tarpaṇa Mantra)

ॐ कश्यपाय नमः । ॐ अत्रये नमः । ॐ भारद्वाजाय नमः । ॐ वसिष्ठाय नमः । ॐ विश्वामित्राय नमः । ॐ गौतमाय नमः । ॐ जमदग्नये नमः ।

Om kaśyapāya namaḥ.
Om atraye namaḥ.
Om bhāradvājāya namaḥ.
Om vasiṣṭhāya namaḥ.
Om viśvāmitrāya namaḥ.
Om gautamāya namaḥ.
Om jamadagnaye namaḥ.


(ग) पितृ तर्पण मंत्र (Pitṛ Tarpaṇa Mantra)

अभ्यस्त रूप (Abhyasta Rūpa)

ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः । ॐ पितामहेभ्यः स्वधा नमः । ॐ प्रपितामहेभ्यः स्वधा नमः ।

Om pitṛbhyaḥ svadhā namaḥ.
Om pitāmahebhyaḥ svadhā namaḥ.
Om prapitāmahebhyaḥ svadhā namaḥ.

विस्तृत रूप (Vistṛta Rūpa)

ॐ (गौत्र, नाम उच्चारण) पितृभ्यः तर्पयामि । ॐ (गौत्र, नाम) मातामहेभ्यः तर्पयामि । ॐ सप्तऋषिभ्यः तर्पयामि । ॐ सप्तचिरंजीविभ्यः तर्पयामि ।

Om (gotra, nāma ucchāraṇa) pitṛbhyaḥ tarpāyāmi.
Om (gotra, nāma) mātāmahebhyaḥ tarpāyāmi.
Om sapta-ṛṣibhyaḥ tarpāyāmi.
Om sapta-cirañjīvibhyaḥ tarpāyāmi.


यम तर्पण (Yama Tarpaṇa)

📖 शास्त्रीय प्रमाण :

  • गरुड़ पुराण, धर्मसिन्धु, आपस्तम्ब स्मृति आदि ग्रंथों में यम तर्पण का वर्णन है।

  • पितृ तर्पण के पश्चात यमराज और उनके सहचरों का तर्पण करना आवश्यक है।

  • इससे पितरों तक अर्पित जल-संपूर्णता से पहुँचता है और यमदूत विघ्न नहीं करते।


📌 विधि (Vidhi)

  • दिशा → दक्षिणाभिमुख होकर।
    Disha → Dakṣiṇābhimukha hokar.

  • अंजलि संख्या → सामान्यतः ३३ अंजलि
    Anjali saṅkhyā → Sāmānyataḥ 33 añjali.

  • सामग्री → तिल + जल + कुश।
    Sāmagrī → Til + jala + kuśa.

  • समय → पितृ तर्पण पूर्ण होने के बाद।
    Samaya → Pitṛ tarpaṇa pūrṇa hone ke bād.


🕉️ यम तर्पण मंत्र (Yama Tarpaṇa Mantra)

प्रत्येक नाम पर जल छोड़ना चाहिए।

ॐ यमाय तर्पयामि । ॐ धर्मराजाय तर्पयामि । ॐ मृत्यवे तर्पयामि । ॐ अन्तकाय तर्पयामि । ॐ वैश्रवणाय तर्पयामि । ॐ कालाय तर्पयामि । ॐ सर्वभूतक्षयाय तर्पयामि । ॐ दण्डधराय तर्पयामि । ॐ शम्नाय तर्पयामि । ॐ शान्ताय तर्पयामि । ॐ शमीने तर्पयामि । ॐ दक्षाय तर्पयामि । ॐ कृतान्ताय तर्पयामि । ॐ भूतपतये तर्पयामि । ॐ वैवस्वताय तर्पयामि । ॐ महाकालाय तर्पयामि । ॐ चित्रगुप्ताय तर्पयामि । ॐ चित्रभानवे तर्पयामि । ॐ चित्रगुप्तदूताय तर्पयामि । ॐ यमदूताय तर्पयामि । ॐ दक्षिणाय तर्पयामि । ॐ महायमाय तर्पयामि । ॐ कालराजाय तर्पयामि । ॐ सन्ध्याकालाय तर्पयामि । ॐ रात्रिकालाय तर्पयामि । ॐ अहोरात्रपतये तर्पयामि । ॐ भूतयमाय तर्पयामि । ॐ लोकपालाय तर्पयामि । ॐ वैरूपाय तर्पयामि । ॐ वैचित्राय तर्पयामि । ॐ धर्माधिपतये तर्पयामि ।

Om Yamāya tarpāyāmi.
Om Dharmarājāya tarpāyāmi.
Om Mṛtyave tarpāyāmi.
Om Antakāya tarpāyāmi.
Om Vaiśravaṇāya tarpāyāmi.
Om Kālāya tarpāyāmi.
Om Sarvabhūtakṣayāya tarpāyāmi.
Om Daṇḍadharāya tarpāyāmi.
Om Śamnāya tarpāyāmi.
Om Śāntāya tarpāyāmi.
Om Śamīne tarpāyāmi.
Om Dakṣāya tarpāyāmi.
Om Kṛtāntāya tarpāyāmi.
Om Bhūtapateye tarpāyāmi.
Om Vaivasvatāya tarpāyāmi.
Om Mahākālāya tarpāyāmi.
Om Citraguptāya tarpāyāmi.
Om Citrabhānave tarpāyāmi.
Om Citraguptadūtāya tarpāyāmi.
Om Yamadūtāya tarpāyāmi.
Om Dakṣiṇāya tarpāyāmi.
Om Mahāyamāya tarpāyāmi.
Om Kālarājāya tarpāyāmi.
Om Sandhyākālāya tarpāyāmi.
Om Rātrikālāya tarpāyāmi.
Om Ahorātrapateye tarpāyāmi.
Om Bhūtayamāya tarpāyāmi.
Om Lokapālāya tarpāyāmi.
Om Vairūpāya tarpāyāmi.
Om Vaicitrāya tarpāyāmi.
Om Dharmādhipataye tarpāyāmi.

(घ) विशेष तर्पण मंत्र (Viśeṣa Tarpaṇa Mantra)

  • सर्वपितृ अमावस्या (Sarvapitr Amāvasyā)

ॐ सर्वेभ्यः पितृभ्यः स्वधा नमः ।

Om sarvebhyaḥ pitṛbhyaḥ svadhā namaḥ.

  • ग्रहण काल (Grahaṇa Kāla)

ॐ सोमसूर्यग्रहे पितृदेवताभ्यः तर्पयामि ।

Om soma-sūryagrahe pitṛdevatābhyaḥ tarpāyāmi.


५. तर्पण का फल (Phala)

  • देव तर्पण → आयुष्य, ऐश्वर्य, पुण्य
    Deva tarpaṇa → āyuṣya, aiśvarya, puṇya

  • ऋषि तर्पण → ज्ञान, वाणी, सिद्धि
    Ṛṣi tarpaṇa → jñāna, vāṇī, siddhi

  • पितृ तर्पण → पितृ तृप्ति, संतान, धन
    Pitṛ tarpaṇa → pitṛ tṛpti, santāna, dhana

  • विशेष तर्पण → ग्रहदोष शांति, अकाल मृत्यु दोष शांति
    Viśeṣa tarpaṇa → grahadoṣa śānti, akāla mṛtyu doṣa śānti

  • +********* ****+***********************************************

DETAILED


1 तर्पण में बैठना या खड़े होना

  • सामान्य तर्पण (देव, ऋषि, पितृ, मानव, यम आदि) बैठकर ही करना चाहिए।
  • खड़े होकर तर्पण केवल आपदाकाल, नदी/समुद्र तट या श्मशान में ही अनुमोदित है।

📜 मनुस्मृति (3.88)
उत्थाय तर्पयेद् देवानृषीन् पितॄन्स्वधा।
उपविष्टस्तु मानुष्यान्ये चान्यान्तर्पयेद्विधि॥

🔹 अर्थदेव, ऋषि, पितरों का तर्पण खड़े होकर भी किया जा सकता है, परंतु श्रेष्ठ यह है कि बैठकर ही हो। मनुष्यों और अन्य लोक का तर्पण बैठकर करना चाहिए।


2️ वस्त्र गीले हों या सूखे?

  • तर्पण सदा सूखे, शुद्ध वस्त्रों में करना श्रेष्ठ है।
  • यदि नदी/सरोवर में तर्पण कर रहे हों तो वस्त्र भीगे रहना कोई दोष नहीं।

📜 गरुड़ पुराण (पूर्वखण्ड, 217.28)
शुद्धवस्त्रधरः शान्तः स्नातोऽर्चयेत् पितॄन् नरः।


3️ जल कहाँ गिरे?

  • जल सदैव भूमि पर गिराना चाहिए।
  • पात्र/थाली में जल गिराना केवल शुद्ध आसन के स्थान पर या गृह में तर्पण हेतु वैकल्पिक है।

📜 याज्ञवल्क्य स्मृति (1.258)
भूमौ तु पतितं तोयं पितॄणां तर्पणं स्मृतम्।


4️ तर्पण में तुलसी का प्रयोग

  • पितृ तर्पण में तुलसी पत्र का प्रयोग वर्जित है।
  • तुलसी केवल विष्णु/देव तर्पण में ही दी जाती है।

📜 पद्म पुराण, उत्तर खण्ड (22.31)
तुलस्या पत्रमादाय पितॄणां तर्पणं हरेत्।
कर्तव्यं कदाचित्तु पितॄणां तर्पणं द्विज॥

🔹 अर्थतुलसी से पितरों का तर्पण कदापि करें।


5️ तर्पण में तिल का प्रयोग

  • सामान्य नियमपितृ तर्पण में काले तिल अति शुभ माने गए हैं।
  • परंतु कुछ नक्षत्रों (विशेषकर आश्लेषा एवं पुष्य) में तिल का निषेध बताया गया है।

📜 धर्मसिन्धु (श्राद्धप्रकरण)
पुष्याश्लेषयोः श्राद्धं तैलतिलनिषेधकम्।
अन्यत्र सर्वकालेषु तिलतर्पणमिष्यते॥

🔹 अर्थपुष्य एवं आश्लेषा नक्षत्रों में श्राद्ध या तर्पण में तिल का प्रयोग निषिद्ध है। सफ़ेद तिल (श्वेत तिल) का प्रयोग तर्पण में

1️      श्वेत तिल का महत्व

  • शास्त्रों में काले तिल (कृष्ण तिल) को पितरों के लिए और
    सफ़ेद तिल (श्वेत तिल) को देवताओं के लिए श्रेष्ठ बताया गया है।
  • श्वेत तिल शुद्धता, सौभाग्य और देवताओं की प्रसन्नता का प्रतीक माना गया है।

2️ शास्त्रीय प्रमाण

🔴 देवेषु श्वेततिलाः प्रोक्ता, पितृषु कृष्ण एव च।
ऋषीणां तर्पणार्थाय जपाकुसुमसन्निभाः॥
(
निर्णयसिन्धु, श्राद्धाधिकार)

👉 इसका भावार्थ है

  • देवताओं को सफ़ेद तिल अर्पित किए जाएँ।
  • पितरों को काले तिल
  • ऋषियों के लिए लाल तिल (अरुणवर्ण) भी मान्य बताए गए हैं।

3️ सफ़ेद तिल कहाँ प्रयुक्त होते हैं?

  • देवतर्पणसफ़ेद तिल + तुलसी जल।
  • ऋषितर्पणकुछ मतानुसार अरुणवर्ण तिल (यदि मिलें तो सामान्य तिल भी)
  • पितृतर्पणकेवल काले तिल।
  • मनुष्य यम तर्पणकाले तिल ही श्रेष्ठ।

4️ विशेष निषेध

  • आश्लेषा और पुष्य नक्षत्र में तिल (सफ़ेद या काले दोनों) का प्रयोग वर्जित है।
  • इन दिनों केवल शुद्ध जल, कुशा और अक्षत (चावल) से तर्पण करना चाहिए।

संक्षेप में

  • देवसफ़ेद तिल
  • ऋषिअरुणवर्ण तिल
  • पितर/यम/मनुष्यकाले तिल

संक्षेप नियम

  • बैठकर तर्पणश्रेष्ठ।
  • शुद्ध वस्त्र (सूखे) → अनिवार्य।
  • जल भूमि परमुख्य नियम।
  • तुलसी केवल देव तर्पण हेतु।
  • तिल निषेधआश्लेषा पुष्य नक्षत्र।

🌾 तर्पण में जौ (यव) का महत्व

1️ जौ का धार्मिक प्रतीक

  • जौ (यव) को क्षीर (अन्न) का प्रतिनिधि माना गया है।
  • यह समृद्धि, वंशवृद्धि और दीर्घायु का प्रतीक है।
  • पितरों को जल अर्पण करते समय जौ मिलाकर तर्पण करने से वे संतुष्ट होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।

2️ शास्त्रीय प्रमाण

🔴 तिलैः शश्वत्पितॄन् तुष्येद् यवैः सर्वान् सुरर्षिभिः।
यवैः पितॄन् प्रीणयति सर्वान् श्राद्धविधौ नरः॥
(
गरुड़पुराण, प्रेतकल्प)

👉 भावार्थ

  • तिल से पितरों की तृप्ति होती है।
  • लेकिन जौ (यव) से पितर, देव और ऋषि सभी प्रसन्न होते हैं।

🔴 तिलेन कृच्छ्रहरणं, यवैः सर्वफलप्रदम्।
जौयुक्तं तर्पणं कृत्वा पितरः संतृप्तिमायान्ति॥
(
निर्णयसिन्धु)

👉 भावार्थ

  • तिल पाप नाशक हैं।
  • जौ (यव) से तर्पण करने पर पितर केवल तृप्त नहीं होते, बल्कि आशीर्वाद देकर सर्वफलप्रद होते हैं।

3️ जौ का प्रयोग कैसे?

  • जल में जौ और तिल दोनों मिलाए जाते हैं।
  • पितृ तर्पण में काले तिल और जौ का संयोग अनिवार्य है।
  • देवतर्पण में श्वेत तिल + जौ।
  • ऋषितर्पण में अरुण तिल ( मिलने पर सामान्य तिल) + जौ।
  • यम तर्पण और मनुष्य तर्पण में भी जौ का प्रयोग किया जाता है।

4️ जौ का विशेष फल

  • पितृ प्रसन्नतावंशवृद्धि और संतान की रक्षा।
  • कष्ट निवारणपारिवारिक रोग और पीड़ा का शमन।
  • आयुष्य वृद्धिदीर्घायु का आशीर्वाद।
  • ऋणमोचनपूर्वज ऋण और पितृदोष शमन।

निष्कर्ष:
तर्पण में जौ का प्रयोग तिल से भी श्रेष्ठ और सर्वफलप्रद माना गया है।
इसलिए शास्त्रों ने निर्देश दिया है कि तर्पण जल सदैव तिल + जौ मिश्रित होना चाहिए।

तर्पण के भेद (मुख्यतः पाँच प्रकार माने गए हैं)

  1. देव तर्पण देवताओं को (विशेषतः विष्णु, इन्द्र, सूर्य, वरुण आदि को) जल तर्पण।
  2. ऋषि तर्पणसप्तऋषि, ब्रह्मा आदि को जल तर्पण।
  3. पितृ तर्पणपितृगण (मातृकुल और पितृकुल) को जल तिल से तर्पण।
  4. मनुष्य तर्पणमहापुरुष, आचार्य, गुरुजन आदि को।
  5. यम तर्पणयमराज तथा यमदूतगण को जल तर्पण।

तर्पण करने की दिशा

  • देवों के लिएमुख उत्तर दिशा की ओर, जल पूर्वाभिमुख होकर देना।
  • ऋषियों के लिएमुख पूर्व की ओर, जल दक्षिणाभिमुख होकर देना।
  • पितरों के लिएमुख दक्षिण की ओर, जल उत्तराभिमुख होकर देना।
  • मनुष्य तर्पणदक्षिण मुख होकर ही।
  • यम तर्पणदक्षिण दिशा में, विशेषकर पितृ तर्पण के पश्चात।

तर्पण की सामग्री

  • जल + तिल + कुशसबसे अनिवार्य।
  • पात्रताम्रपात्र / कांस्यपात्र / लोटा।
  • आसनकुश का आसन।

तर्पण मंत्र (संक्षेप में)

  1. देव तर्पण मंत्र
    देवानां तर्पणमस्तु
  2. ऋषि तर्पण मंत्र
    ऋषीणां तर्पणमस्तु
  3. पितृ तर्पण मंत्र
    पितृभ्यः तर्पणमस्तु
  4. मनुष्य तर्पण मंत्र
    मनुष्येभ्यः तर्पणमस्तु
  5. यम तर्पण मंत्र
    यमाय तर्पणमस्तु

विशेष उल्लेख (गरुड़पुराण धर्मसिंधु अनुसार)

  • पितृ तर्पण सदा दक्षिणाभिमुख होकर किया जाता है।
  • पितरों के साथ यमराज का भी तर्पण अनिवार्य माना गया है, क्योंकि वे पितृलोक के अधिपति हैं।
  • ऋषि तर्पण से पितृ प्रसन्न होते हैं और देव तर्पण से पितृलोक की प्राप्ति होती है।

📜 तर्पण की दिशाशास्त्रीय प्रमाण


1️ देव तर्पण

  • मुखउत्तर दिशा
  • जल प्रवाहपूर्वाभिमुख

🔴 उत्तराभिमुखो देवान् प्रीणयेत् तोयमादरात्।
पूर्वाभिमुखतोयेन सर्वकामफलप्रदम्॥ (गरुड़पुराण, प्रेतकल्प 10)


2️ ऋषि तर्पण

  • मुखपूर्व दिशा
  • जल प्रवाहदक्षिणाभिमुख

🔴 पूर्वाभिमुखो ऋषीणां तर्पणं संप्रयोजयेत्।
दक्षिणाभिमुखं तोयं तेषां संप्रददाति हि॥ (विष्णुधर्मोत्तर पुराण)


3️ पितृ तर्पण

  • मुखदक्षिण दिशा
  • जल प्रवाहउत्तराभिमुख

🔴 दक्षिणेन मुखेनैव पितॄन् संप्रतर्पयेत्।
उत्तराभिमुखं तोयं पितॄणां संप्रयोजयेत्॥ (मनुस्मृति 3/203)


4️ मनुष्य तर्पण

  • मुखदक्षिण दिशा

🔴 दक्षिणेन मुखेनैव मनुष्याणां तु तर्पणम्।
क्रियते पितृकल्पेन श्रुतिस्मृतिसमन्वितम्॥ (निर्णयसिंधु, श्राद्धाधिकार)


5️ यम तर्पण

  • मुखदक्षिण दिशा
  • विशेषपितृ तर्पण के पश्चात

🔴 पितॄणां तर्पणं कृत्वा यमानां तर्पणं ततः।
दक्षिणाभिमुखः स्थित्वा जलं दद्यात् प्रयत्नतः॥ (गरुड़पुराण, प्रेतकल्प 12)

  •  तर्पण की संपूर्ण सारणी

क्रम

तर्पण का प्रकार

तर्पण किसे दिया जाता है

दिशा / मुखाभिमुख

जल प्रवाह की दिशा

मुख्य मंत्र (संक्षेप)

1️

देव तर्पण

ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र, सूर्य, वरुण आदि

उत्तर मुख

जल पूर्वाभिमुख प्रवाहित

देवताभ्यो नमः, तर्पयामि

2️

ऋषि तर्पण

सप्तऋषि, ब्रह्मर्षि, महर्षि, आचार्यगण

पूर्व मुख

जल दक्षिणाभिमुख प्रवाहित

ऋषीणां तर्पणमस्तु

3️

पितृ तर्पण

पिता, पितामह, प्रपितामह तथा मातृकुल पितर

दक्षिण मुख

जल उत्तराभिमुख प्रवाहित

पितृभ्यः तर्पणमस्तु

4️

मनुष्य तर्पण

गुरु, आचार्य, श्रेष्ठजन, अतिथि

दक्षिण मुख

जल उत्तराभिमुख

मनुष्येभ्यः तर्पणमस्तु

5️

यम तर्पण

यमराज, धर्मराज, यमदूत, चित्रगुप्त

दक्षिण मुख

जल दक्षिणाभिमुख प्रवाहित

धर्मराजाय यमाय तर्पणमस्तु


🔱 विशिष्ट मंत्रावली (तर्पण हेतु)

1. देव तर्पण मंत्र

ब्रह्मणे नमः, तर्पयामि।

विष्णवे नमः, तर्पयामि।

रुद्राय नमः, तर्पयामि।

इन्द्राय नमः, तर्पयामि।

सूर्याय नमः, तर्पयामि।

वरुणाय नमः, तर्पयामि॥

2. ऋषि तर्पण मंत्र

कश्यपाय ऋषये तर्पणमस्तु।

अत्रये ऋषये तर्पणमस्तु।

भारद्वाजाय ऋषये तर्पणमस्तु।

विश्वामित्राय ऋषये तर्पणमस्तु।

वसिष्ठाय ऋषये तर्पणमस्तु।

जमदग्नये ऋषये तर्पणमस्तु।

गौतमाय ऋषये तर्पणमस्तु॥

3. पितृ तर्पण मंत्र

पितृभ्यः स्वधा नमः तर्पणमस्तु।

पितामहेभ्यः स्वधा नमः तर्पणमस्तु।

प्रपितामहेभ्यः स्वधा नमः तर्पणमस्तु।

मातामहेभ्यः स्वधा नमः तर्पणमस्तु॥

4. मनुष्य तर्पण मंत्र

आचार्येभ्यः तर्पणमस्तु।

अतिथिभ्यः तर्पणमस्तु।

मानवश्रेष्ठेभ्यः तर्पणमस्तु॥

5. यम तर्पण मंत्र

धर्मराजाय यमाय तर्पणमस्तु।

चित्रगुप्ताय तर्पणमस्तु।

यमदूतभ्यः तर्पणमस्तु॥


⚜️ विशेष नियम

  • तिल + जल + कुश का प्रयोग अनिवार्य है।
  • देव/ऋषि तर्पण से पहले पितृ तर्पण नहीं करना चाहिए।
  • पितृ तर्पण के बाद यम तर्पण अनिवार्य है (गरुड़पुराण अनुसार)
  • हर तर्पण में "" और "स्वधा/नमः" उच्चारण आवश्यक।
·         📜 देव, ऋषि, मनुष्य और यम तर्पणसंपूर्ण विधि
·        

·         1️ देव तर्पण (१२ अंजलि)

·         मुखउत्तर की ओर
जलपूर्वाभिमुख प्रवाहित

·         मंत्रावली (१२ नाम)

·          ब्रह्मणे स्वधा नमः तर्पयामि।
·          प्रजापतये स्वधा नमः तर्पयामि।
·          अग्नये स्वधा नमः तर्पयामि।
·          सोमाय स्वधा नमः तर्पयामि।
·          यमाय स्वधा नमः तर्पयामि।
·          वरुणाय स्वधा नमः तर्पयामि।
·          वायवे स्वधा नमः तर्पयामि।
·          इन्द्राय स्वधा नमः तर्पयामि।
·          चन्द्रमसे स्वधा नमः तर्पयामि।
·          विश्वेभ्यो देवताभ्यः स्वधा नमः तर्पयामि।
·          आदित्येभ्यः स्वधा नमः तर्पयामि।
·          रुद्रेभ्यः स्वधा नमः तर्पयामि॥
·        

·         2️ ऋषि तर्पण ( अंजलि)

·         मुखपूर्व की ओर
जलदक्षिणाभिमुख प्रवाहित

·         मंत्रावली (सप्तऋषि नाम)

·          अत्रये ऋषये स्वधा नमः तर्पयामि।
·          भरद्वाजाय ऋषये स्वधा नमः तर्पयामि।
·          वसिष्ठाय ऋषये स्वधा नमः तर्पयामि।
·          विश्वामित्राय ऋषये स्वधा नमः तर्पयामि।
·          गौतमाय ऋषये स्वधा नमः तर्पयामि।
·          कश्यपाय ऋषये स्वधा नमः तर्पयामि।
·          जमदग्नये ऋषये स्वधा नमः तर्पयामि॥
·        

·         3️ मनुष्य तर्पण (१० अंजलि)

·         मुखदक्षिण की ओर
जलउत्तराभिमुख प्रवाहित

·         मंत्रावली (१० नाम)

·          ब्रह्मणे स्वधा नमः तर्पयामि।   (मानवश्रेष्ठ ब्रह्मा)
·          क्षत्राय स्वधा नमः तर्पयामि।
·          वैश्याय स्वधा नमः तर्पयामि।
·          शूद्राय स्वधा नमः तर्पयामि।
·          आचार्येभ्यः स्वधा नमः तर्पयामि।
·          आचार्यपत्नीभ्यः स्वधा नमः तर्पयामि।
·          अतिथिभ्यः स्वधा नमः तर्पयामि।
·          मातुलाय स्वधा नमः तर्पयामि।
·          बन्धुभ्यः स्वधा नमः तर्पयामि।
·          मानवश्रेष्ठेभ्यः स्वधा नमः तर्पयामि॥

🕉 यम तर्पण (३३ अंजलि जल अर्पण)

प्रत्येक नाम के साथ जल + तिल + कुश से अंजलि अर्पित की जाती है।
मुख दक्षिणाभिमुख होकर, जल दक्षिण दिशा में प्रवाहित करना चाहिए।

मंत्रावली

  1. यमाय स्वधा नमः तर्पयामि।
  2. धर्मराजाय स्वधा नमः तर्पयामि।
  3. मृत्यवे स्वधा नमः तर्पयामि।
  4. अन्तकाय स्वधा नमः तर्पयामि।
  5. वैवस्वताय स्वधा नमः तर्पयामि।
  6. काले स्वधा नमः तर्पयामि।
  7. सर्वभूतक्षयाय स्वधा नमः तर्पयामि।
  8. औदुम्बराय स्वधा नमः तर्पयामि।
  9. दध्नाय स्वधा नमः तर्पयामि।
  10. नीलाय स्वधा नमः तर्पयामि।
  11. पिंगलाय स्वधा नमः तर्पयामि।
  12. क्लेशाय स्वधा नमः तर्पयामि।
  13. गृहपतये स्वधा नमः तर्पयामि।
  14. छायायै नमः तर्पयामि।
  15. सुधायै नमः तर्पयामि।
  16. विजयाय स्वधा नमः तर्पयामि।
  17. जया्यै स्वधा नमः तर्पयामि।
  18. कृत्यायै स्वधा नमः तर्पयामि।
  19. अपि स्वधा नमः तर्पयामि।
  20. नियतिकायै स्वधा नमः तर्पयामि।
  21. संज्ञायै स्वधा नमः तर्पयामि।
  22. तृष्णायै स्वधा नमः तर्पयामि।
  23. श्रद्धायै स्वधा नमः तर्पयामि।
  24. मेधायै स्वधा नमः तर्पयामि।
  25. धृत्यै स्वधा नमः तर्पयामि।
  26. कान्त्यै स्वधा नमः तर्पयामि।
  27. कीर्त्यै स्वधा नमः तर्पयामि।
  28. लज्जायै स्वधा नमः तर्पयामि।
  29. रतयै स्वधा नमः तर्पयामि।
  30. मृत्युपत्न्यै स्वधा नमः तर्पयामि।
  31. भयायै स्वधा नमः तर्पयामि।
  32. आयुषे स्वधा नमः तर्पयामि।
  33. अनुमत्यै स्वधा नमः तर्पयामि।

📖 ग्रंथ प्रमाण

  • गरुड़पुराण (प्रीतकाण्ड, अध्याय 10–15)
  • धर्मसिंधु, श्राद्धविधि
  • निर्णयसिंधु, श्राद्धाधिकार
  • वृहद्धर्मपुराण

 

तर्पण अञ्जलि संख्या

📖 शास्त्रीय प्रमाण – आपस्तम्ब, मनुस्मृति, गरुड़ पुराण

॥ मन्त्र ॥
🔴 “देवानां तु त्रिरञ्जल्यः, ऋषीणां पञ्चवै तथा।
पितॄणामष्टका प्रोक्ता, मनुष्याणां चैकतः॥”

अनुवाद (Hindi):
देवताओं के तर्पण के लिए 3 अञ्जलि,
ऋषियों के लिए 5 अञ्जलि,
पितरों के लिए 8 अञ्जलि,
और मनुष्यों के लिए 1 अञ्जलि जल समर्पण करना चाहिए।


॥ मन्त्र ॥
🔴 “त्रिभिस्त्रिभिरञ्जलिभिः पितॄन् त्रिप्रकारान् तर्पयेत्।
देवान् त्रिभिस्तु मन्त्रोक्तैः, ऋषीँश्चैव पञ्चभिः॥”

अनुवाद (Hindi):
पितरों को तीन-तीन प्रकार से तर्पण करना चाहिए,
देवताओं को 3 अञ्जलि मन्त्रों से,
ऋषियों को 5 अञ्जलि जल से तृप्त किया जाता है।


विशेष निर्देश:

  • प्रत्येक मन्त्र पर एक अञ्जलि जल समर्पण करना चाहिए।

  • कुल मिलाकर प्रचलित विधि में 33 अञ्जलि तक तर्पण का विधान है।

  • देव, ऋषि, पितर और मनुष्य – इन सबको शास्त्रोक्त मन्त्रों के साथ उनकी संख्या अनुसार जल देना चाहिए।

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