👗 नए वस्त्र आभूषण एवं तिलक का प्रभाव
Effects
of Wearing New Clothes & Jewelry
🌸 प्रस्तावना / Introduction 🌸
👗 नए वस्त्र प्रथम बार धारण
(Wearing New Clothes for the First Time)
हिंदी:
शास्त्रों में उल्लेख है कि किसी भी वस्त्र या आभूषण को प्रथम बार धारण करने का विशेष शुभ समय (शुभ मुहूर्त) देखा जाना चाहिए।
यदि नए वस्त्र/आभूषण को अशुभ काल में धारण किया जाए तो धन हानि, मानसिक अशांति और वैवाहिक जीवन में अवरोध हो सकते हैं।
जबकि शुभ मुहूर्त में धारण करने से लक्ष्मी-कृपा, आयु वृद्धि, यश और आकर्षण की प्राप्ति होती है।
English:
The scriptures emphasize that the first time wearing of new clothes or
ornaments should always be done at an auspicious time (Shubh Muhurat).
If worn during inauspicious periods, it may cause loss of wealth, restlessness,
or obstacles in relationships.
When worn in auspicious moments, it bestows prosperity, longevity, fame, and
charm.
🕉️ तिलक का शुभ समय एवं महत्व (Auspicious Time &
Significance of Tilak)
तिलक को केवल एक धार्मिक चिह्न नहीं, बल्कि आध्यात्मिक सुरक्षा और सौभाग्य का प्रतीक माना गया है।
त्रयोदशी, प्रदोष व्रत, अभिजित मुहूर्त, सूर्योदय काल और संध्या वेला तिलक के लिए सर्वश्रेष्ठ समय माने गए हैं।
लग्न एवं नक्षत्र के अनुसार तिलक का प्रभाव अलग-अलग होता है –
भस्म से तिलक शत्रुनाशक, चंदन से शीतलता व सौभाग्य, रौली से आकर्षण और तेज, तथा तिल तेल से शनि-शांति और रोग निवारण होता है।
Tilak is not just a religious mark but a symbol of spiritual protection and
auspiciousness.
The most favorable times for applying tilak are Trayodashi, Pradosh Vrat,
Abhijit Muhurat, Sunrise, and Evening prayers.
The effect of tilak varies according to the Lagna and Nakshatra –
- Sacred ash (Bhasma): destroys enemies, grants
peace.
- Sandalwood (Chandan): coolness and fortune.
- Red Kumkum (Roli): attraction and radiance.
- Sesame oil (Til oil): pacifies Saturn, removes
debts and diseases.
- त्रयोदशी में तिलक करना-
- शिव-वैष्णव कृपा और पाप-क्षालन हेतु अत्यंत श्रेष्ठ है।
- श्रेष्ठ समय: प्रातःकाल (सूर्योदय उपरांत) और प्रदोष काल (संध्या शिवपूजन के साथ)।
- कुंभ लग्न में तिलक के प्रभाव:
- चंदन/रौली = प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, सौभाग्य।
- भस्म तिलक = शत्रुनाश, मानसिक शांति।
- तिल तेल का तिलक = शनि कृपा, ऋणमुक्ति और रोग निवारण।
✅ नए वस्त्र एवं आभूषण लाभकारी प्रभाव (Beneficial Effects)
- श्रवण नक्षत्र में वस्त्र व आभूषण धारण करने से धन वृद्धि होती है।
- मकर राशि की स्थिति होने से धन-संपत्ति में स्थिरता मिलती है।
- स्त्रियों के लिए यह दिन आकर्षण एवं सौभाग्य लाने वाला है।
- पुरुषों के लिए यह समय प्रतिष्ठा एवं पदोन्नति को बढ़ाने वाला है।
❌ प्रतिकूल प्रभाव (Adverse Effects)
- अनुचित समय (अशुभ मुहूर्त) में नए वस्त्र पहनने से मानसिक अस्थिरता व अनावश्यक खर्च बढ़ सकते हैं।
- प्रदोष व्रत के दिन, शाम के समय नए आभूषण पहनना अशुभ माना जाता है।
🕉️ आज के उपाय / Today’s Remedies
- शिव पूजन करें – प्रदोष व्रत पर विशेष महत्व।
- ॐ नमः शिवाय का 108 बार जप करें।
- काले तिल (Black Sesame) का दान करें।
- स्त्रियाँ सफेद वस्त्र धारण करें, पुरुष हल्के नीले या भूरे वस्त्र धारण करें।
श्रवण नक्षत्र में 📖 1. तिथि (Trayodashi) में नए वस्त्र का प्रभाव
धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु, वाराह पुराण, कालमाधव, व्रतार्क जैसे ग्रंथों में कहा गया है –
“त्रयोदश्यां तु यः कुर्यात् नूतनवस्त्रभूषणम्।
स सुखी च भवेत् लोके, धर्मार्थकामसिद्धिदः॥”
भावार्थ:
त्रयोदशी तिथि में यदि कोई व्यक्ति नए वस्त्र या आभूषण धारण करता है, तो उसे सुख, समृद्धि, धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि प्राप्त होती है।
👉 इसलिए त्रयोदशी को नए वस्त्र/आभूषण शुभ माने गए हैं।
📖 2. श्रवण नक्षत्र में नए वस्त्र का प्रभाव
जातक पारिजात (अध्याय 9) और कर्मप्रदीप ग्रंथ में उल्लेख है:
“श्रवणे नूतनवस्त्राणि धारणात् लक्ष्म्युपस्थितिः।
कीर्तिर्वृद्धिश्च जायेत, विष्णुप्रीतिश्च निःश्चिता॥”
भावार्थ:
श्रवण नक्षत्र में नए वस्त्र धारण करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, कीर्ति बढ़ती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
📖 3. शुक्रवार का प्रभाव (Venus Day – Shukravar)
वाराह संहिता और मंसागरी में वर्णित है:
“शुक्रवासरे वस्त्राभरणनूतनप्रयोगे स्त्रीपुरुषयोः सौंदर्यं सौभाग्यं च वर्धते।”
भावार्थ:
शुक्रवार को नए वस्त्र-आभूषण पहनने से स्त्रियों का सौंदर्य, सौभाग्य और पुरुषों का आकर्षण तथा दाम्पत्य सुख बढ़ता है।
📖 4. जब तीनों का संयोग हो – (Trayodashi + Shravan +
Friday)
- त्रयोदशी तिथि → सुख, समृद्धि, ऐश्वर्यदायिनी।
- श्रवण नक्षत्र → विष्णु की कृपा, लक्ष्मी की वृद्धि।
- शुक्रवार → भोग, सौभाग्य, ऐश्वर्य वृद्धि।
👉 इसीलिए इनका संयोजन शुभ ही माना गया है।
- नकारात्मक असर केवल तभी होगा यदि यह काल राहुकाल, यमगंड, या रात्रि प्रदोष काल से टकरा जाए।
- विशेषकर प्रदोष व्रत की संध्या में नए आभूषण पहनना निषिद्ध है (धर्मसिन्धु)।
✅ निष्कर्ष:
- त्रयोदशी + श्रवण + शुक्रवार → अत्यंत शुभ संयोग है नए वस्त्र/आभूषण धारण करने के लिए।
- केवल प्रदोष व्रत की संध्या बेला (सूर्यास्त के समय शिव पूजन का समय) में नए आभूषण या विलासी वस्त्र धारण न करें।
- दिन और प्रातःकालीन मुहूर्त में यह संयोग लक्ष्मी और विष्णु कृपा देने वाला है।
- शिव स्तुति एवं विष्णु की पूजा दोनों ही शुभ फलदायी हैं।
📖 1. त्रयोदशी तिथि में तिलक का महत्व
- धर्मसिन्धु व निरण्यामृत में वर्णित है कि त्रयोदशी तिथि शिव की तिथि है।
- इस दिन विभूति (भस्म), चंदन, रौली, तिल अथवा गंध से तिलक करने से रोग नाश होता है और दीर्घायु व सौभाग्य मिलता है।
श्लोक (व्रतार्क):
“त्रयोदश्यां शिवं ध्यायन् तिलकं यः समाचरेत्।
स सर्वकष्टनाशाय पुण्यलाभं लभेत् ध्रुवम्॥”
भावार्थ:
त्रयोदशी तिथि में शिव का ध्यान करते हुए तिलक करने से कष्टों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
📖 2. कौन सा समय श्रेष्ठ है?
- प्रातःकाल सूर्योदय के बाद का पहला मुहूर्त (अभिजित या ब्राह्म मुहूर्त के समीप) तिलक के लिए अत्यंत शुभ है।
- त्रयोदशी की संध्या बेला (विशेषकर प्रदोष काल) में तिलक शिवपूजन के साथ करना श्रेष्ठ माना गया है।
👉 इसलिए सुबह और प्रदोष काल – दोनों ही समय तिलक श्रेष्ठ हैं।
📖 3. कुंभ लग्न में तिलक का प्रभाव
बृहत्पाराशर होरा शास्त्र और मंसागरी के अनुसार –
- कुंभ लग्न शनि की राशि है।
- इस लग्न में तिलक यदि चंदन + कुमकुम (लाल चंदन या रौली) से किया जाए तो यह मान-सम्मान, धनलाभ और सामाजिक प्रतिष्ठा देता है।
- यदि भस्म तिलक करें तो संकट निवारण और मानसिक शांति मिलती है।
- तिल तेल का तिलक त्रयोदशी (विशेषकर प्रदोष) में लगाने से शनि और शिव की कृपा एक साथ प्राप्त होती है।
श्लोक (निरण्यामृत):
“कुम्भलग्ने च यो जन्तुः तिलकं शशिभस्मना।
शत्रुपीडा विनश्यन्ति, यशः श्रीश्च प्रजायते॥”
भावार्थ:
कुंभ लग्न वाले जातक यदि भस्म से तिलक करें तो शत्रु पीड़ा दूर होती है, यश और लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
- त्रयोदशी में तिलक करना शिव-वैष्णव कृपा और पाप-क्षालन हेतु अत्यंत श्रेष्ठ है।
- श्रेष्ठ समय: प्रातःकाल (सूर्योदय उपरांत) और प्रदोष काल (संध्या शिवपूजन के साथ)।
- कुंभ लग्न में तिलक के प्रभाव:
- चंदन/रौली = प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, सौभाग्य।
- भस्म तिलक = शत्रुनाश, मानसिक शांति।
- तिल तेल का तिलक = शनि कृपा, ऋणमुक्ति और रोग निवारण।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें