- 📖 श्राद्ध-पक्ष का आरम्भ7सितम्बर से 21 सितम्ब 2025 तक।
- पितृ-पक्ष का औपचारिक आरम्भ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से होता है → यह अवधि 16 दिन की मानी जाती है (पूर्णिमा श्राद्ध + 15 दिन)।
- 7 सितम्बर पूर्णिमा → श्राद्ध-पक्ष का प्रारम्भ।
- 8–21 सितम्बर → 15 दिन पितृ-पक्ष।
- पितर इस अवधि में पृथ्वी पर अपने वंशजों के समीप आते हैं।
- पितृ-पक्ष के 15 दिन में गया-श्राद्ध उचित नहीं है।
- गया-श्राद्ध (विशेष फल) + गृह-श्राद्ध (नित्य कर्तव्य) दोनों आवश्यक हैं।
👉 पितृ-पक्ष के 15 दिन में गया-श्राद्ध उचित नहीं है।
👉 इस अवधि में पितर अपने-अपने वंशजों के घर पर आते हैं और वहीं श्राद्ध, तर्पण से तृप्त होते हैं।
👉 गया-श्राद्ध अन्य समय (मृत्यु-तिथि, विशेष काल, संतानोत्पत्ति, संकल्पित अवसर) पर ही करना शास्त्र-सम्मत है।
✨ श्राद्ध का महत्व (Scriptural Basis)
- गरुड़ पुराण
2. श्राद्धेन पितरः तुष्यन्ति श्राद्धेन तु वसुन्धरा।
3. श्राद्धेन देवा तुष्यन्ति तस्मात् श्राद्धं प्रयत्नतः॥
👉 श्राद्ध करने से पितर, पृथ्वी और देवता सभी प्रसन्न होते हैं।
- महाभारत, अनुशासन पर्व
5. न पिण्डदानात् परतरं न तर्पणसमं तपः।
6. पितॄणां तृप्तिकार्याणां श्राद्धमेव परं स्मृतम्॥
👉 पिण्डदान और तर्पण से बढ़कर कोई साधना नहीं, यही पितरों की तृप्ति का मुख्य साधन है।
🕉️ पितरों का पृथ्वी पर आगमन
- ब्रह्मवैवर्त पुराण कहता है –
·
पितरः प्रतिपद्यन्ते मासि मासि यथाक्रमम्।
·
विशेषतः श्राद्धकाले तृप्तिं यान्ति सुतैः कृतम्॥
👉 पितर प्रतिवर्ष श्राद्ध मास में पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों के द्वारा किए गए तर्पण से तृप्त होते हैं।
- धर्मसिंधु ग्रंथ:
पितृ-पक्ष में पितर विशेष रूप से अपने घर में प्रवेश करते हैं और श्राद्ध के निमित्त जल, तिल, पिंड, अन्न से तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं।
🏞️ गया-श्राद्ध बनाम गृह-श्राद्ध
- गया श्राद्ध
- गया को अक्षय पितृतीर्थ कहा गया है।
- गया में किया गया श्राद्ध एक बार करने पर पीढ़ियों तक पितरों का उद्धार करता है।
- गरुड़ पुराण (प्रीतिखण्ड) में आया है:
o गयायां पिण्डदानेन त्रैलोक्यं पितृपावनम्।
👉 गया में पिण्डदान तीनों लोकों के पितरों को पवित्र कर देता है।
- गृह-श्राद्ध
- धर्मसिंधु, निरण्यसिंधु और प्रायः सभी ग्रंथ कहते हैं –
“नित्य श्राद्ध (वार्षिक) अपने गृह पर ही किया जाना चाहिए।” - प्रत्येक वर्ष श्राद्ध-पक्ष में घर पर ही तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन व दान करना पितरों को संतुष्ट करता है।
❓ 🔹 क्या श्राद्ध पक्ष के 15 दिन में गया जाना उचित है?
आपने जो बात उठाई है — क्या पितृ-पक्ष में गया-श्राद्ध करना उचित है या नहीं — उसका स्पष्ट उत्तर शास्त्रों से इस प्रकार है :
📌 १. पितृ-पक्ष का वास्तविक स्वरूप
- धर्मसिंधु और निर्णयसिंधु ग्रंथ कहते हैं –
·
श्राद्धकालोऽयं पितृणां स्वगृहे स्वसुतैः सह।
·
आगत्य तृप्तिमायान्ति यतः श्राद्धं गृहादिकम्॥
👉 पितृ-पक्ष में पितर अपने वंशजों के घर ही आते हैं, और वहीं किए गए श्राद्ध, तर्पण, पिण्ड, ब्राह्मण-भोजन से तृप्त होते हैं।
- इस अवधि में पितर गया या अन्य किसी तीर्थ पर नहीं जाते, वे अपने वंशज के घर ही आते हैं।
📌 २. गया-श्राद्ध का महत्त्व
- गया महात्म्य (वायुपुराण) में कहा गया है –
·
गयायां पिण्डदानं च तस्य फलं अनन्तकम्।
·
सर्वपितृगणान् तर्पयति त्रैलोक्यस्य च शाश्वतम्॥
👉 गया में किया गया पिण्डदान स्थायी और अनन्त फलदायी है।
- परंतु यह नियत तिथियों, विशेष अवसरों पर करना श्रेष्ठ माना गया है, न कि श्राद्ध-पक्ष के 15 दिन में।
📌 ३. शास्त्रों का स्पष्ट निर्देश
- गरुड़ पुराण (प्रीति खण्ड):
·
प्रतिवर्षं स्वगृहे तु श्राद्धं कर्तव्यं प्रयत्नतः।
·
गयाश्राद्धं विशेषेण कालान्तरसमन्वितम्॥
👉 हर वर्ष घर पर श्राद्ध करना आवश्यक है। गया-श्राद्ध अलग समय पर विशेष रूप से करना चाहिए।
- महाभारत, अनुशासन पर्व
·
श्राद्धं गृहेषु कर्तव्यं पितॄणां परमं स्मृतम्।
·
गयादिषु च कर्तव्यं केवलं कालवशात् क्वचित्॥
👉 पितरों की तृप्ति हेतु घर का श्राद्ध ही प्रधान है। गया आदि में श्राद्ध किसी अन्य समय विशेष हेतु उचित है।
📌 ४. निष्कर्ष
🔹 पितृ-पक्ष में – श्राद्ध अपने घर पर ही प्रतिदिन (15 दिन तक, अपनी-अपनी तिथि अनुसार) करना चाहिए।
🔹 गया-श्राद्ध – यह किसी अन्य समय, विशेष तिथि (जैसे जन्म, मृत्यु, संतान-सौभाग्य हेतु) करने योग्य है, किन्तु पितृ-पक्ष में गृह-श्राद्ध को छोड़कर वहाँ जाना शास्त्र-सम्मत नहीं है।
🔹 कारण यह है कि – पितर श्राद्ध-पक्ष में पृथ्वी पर घर-घर आते हैं, न कि गया में।
✅ स्पष्ट उत्तर:
👉 पितृ-पक्ष के 15 दिन में गया-श्राद्ध उचित नहीं है।
👉 इस अवधि में पितर अपने-अपने वंशजों के घर पर आते हैं और वहीं श्राद्ध, तर्पण से तृप्त होते हैं।
👉 गया-श्राद्ध अन्य समय (मृत्यु-तिथि, विशेष काल, संतानोत्पत्ति, संकल्पित अवसर) पर ही करना शास्त्र-सम्मत है।
👉 हाँ, शास्त्रों में श्राद्ध पक्ष के समय गया में पिंडदान को विशेष फलदायक माना गया है।
परन्तु –
- नित्य वार्षिक श्राद्ध अपने घर पर करना आवश्यक है।
- गया-श्राद्ध पूरक और स्थायी माना गया है, लेकिन गृह-श्राद्ध की जगह नहीं ले सकता।
🔹 क्या पितरों का स्वागत घर पर ही करना चाहिए या गया जाकर?
👉 दोनों का अपना-अपना स्थान है –
- घर पर श्राद्ध करना → प्रतिवर्ष पितरों का आशीर्वाद।
- गया श्राद्ध करना → वंश की समग्र मुक्ति और स्थायी शांति।
- 7 सितम्बर पूर्णिमा → श्राद्ध-पक्ष का प्रारम्भ।
- 8–21 सितम्बर → 15 दिन पितृ-पक्ष।
- पितर इस अवधि में पृथ्वी पर अपने वंशजों के समीप आते हैं।
- गया-श्राद्ध (विशेष फल) + गृह-श्राद्ध (नित्य कर्तव्य) दोनों आवश्यक हैं।
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