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"अष्टमी बनाम नवमी तिथि में कन्या पूजन/भोजन"

 

"अष्टमी बनाम नवमी तिथि में कन्या पूजन/भोजन"

(विषय पर आधारित  यह सम्मत, प्रमाणिक और गंभीर रूप से संरचित हैश्लोक प्रमाणों सहित।)

📚 अष्टमी या नवमी तिथि में कन्या भोजशास्त्रसम्मत निर्णय (प्रश्नोत्तर रूप में)

 By-V.K. Tiwari –Palmistry ,Vaastu , Astrology ,Numerology

–Dr. R. Dixit – Vastu Specialist
-Dr. S. Tiwari – Vaidik Astrology

📧 Email: tiwaridixitastro@gmail.com🔮 Services: 9424446706

1-      प्रश्न 1: Navratri 2025 में कन्या भोज और दान के लिए सबसे उपयुक्त तिथि कौन-सी है?

उत्तर: शारदीय नवरात्रि 2025 में अष्टमी (Durga Ashtami) 30 सितंबर 2025, मंगलवार को मनाई जाएगी।

इस दिन कन्या पूजन, कन्या भोज और दान करना श्रेष्ठ माना गया है।

-नवमी 1 अक्टूबर 2025, बुधवार को है, जो भी शुभ मानी जाती है। दोनों ही तिथियां मान्य हैं, लेकिन   अष्टमी पर ही कन्या भोज हैं���

2-      ।प्रश्न 2: कन्या पूजन, भूजन, और दान का सही विधि और महत्व क्या है?

उत्तर: कन्या पूजन (Kanya Pujan) में 1 से 10 वर्ष की कन्याओं का पूजन, चरण स्पर्श, उनको भोजन कराया जाता है और उपहार या दक्षिणा दी जाती है। इन्हें देवी के गण या रूप के रूप में देखा जाता है। यह कर्म अष्टमी या नवमी दोनों में से किसी दिन किया जा सकता है, दोनों ही दिन शास्त्रसम्मत हैं��

3-      प्रश्न 3: दुर्गा सप्तशती या दुर्गा ग्रंथ पाठ के लिए उपयुक्त तिथि कौन-सी है?

उत्तर: दुर्गा सप्तशती और दुर्गा ग्रंथ का पाठ पूरे नवरात्रि के दौरान शुभ होता है।

पारायण अष्टमी तिथि को पूर्ण करना उत्तम है। यदि संपूर्ण पाठ एक दिन में करना हो तो अष्टमी

कई लोग सप्तशती का हवन या संपूर्ण पाठ नवमी को संपन्न करते हैं

4-      प्रश्न 4: श्रीमद् भागवत पुराण या तांत्रिक ग्रंथों का पाठ नवरात्रि में कब करें?

उत्तर: श्रीमद् भागवत पुराण का सार्वजनिक पाठ अक्सर नवमी के दिन या पूरे नवरात्रि में कभी भी किया जा सकता है। तांत्रिक साधना एवं ग्रंथ (जैसे श्री विद्या, चंडी पाठ आदि) की साधना खासकर गुप्त नवरात्रि या शारदीय नवरात्रि की रात्रि काल में, अष्टमी तिथि को विशेष फलप्रद मानी जाती है��।प्र

5-      श्न 5: मुख्य सलाहकिस दिन कौन सी विधि सर्वोत्तम है?

उत्तर:कन्या भोज, दान, हवनअधिकांश लोग अष्टमी , को करते हैं, पर नवमी  भी मान्य है��

।दुर्गा सप्तशती का समापन या विशेष हवनअष्टमी या नवमी किसी भी दिन, अपनी सुविधा एवं आस्था अनुसार

6❓प्रश्न 6 कन्या पूजन/भोजन का मूल उद्देश्य क्या है?

उत्तर:

कन्या पूजन शक्ति की उपासना का प्रतीक है। कन्याएँ माँ दुर्गा के नवदुर्गा रूपों की प्रतीक मानी जाती हैं। यह पूजा विशेषकर नवरात्रि की अष्टमी या नवमी को की जाती है

---7प्रश्न 2: शास्त्रों में कन्या पूजन का विधान किस तिथि में बताया गया हैअष्टमी या नवमी?

उत्तर:

शास्त्रों में प्रमुख रूप से अष्टमी तिथि को ही कन्या पूजन और भोज का दिन बताया गया है।

8प्रश्न: कौन-कौन से ग्रंथ अष्टमी को उपयुक्त तिथि मानते हैं?

उत्तर:

📖 (i) दुर्गा सप्तशती / मार्कण्डेय पुराण:

A> "महाष्टम्यां महासिद्धिर् महाकाल्यां महाक्रिया।

कन्याभिः पूजनं तत्र सर्वपापप्रणाशनम्॥"

📌 अष्टमी को ही देवी की पूर्ति और कन्या पूजन की श्रेष्ठता का वर्णन।

B📖 (ii) देवी भागवत पुराण (स्कंध 7, अध्याय 38):

> "अष्टम्यां या नवम्यां वा कुमारी पूजनं शुभम्।

तत्रापि प्रथमं मान्यं देवी पूजनमष्टमीम्॥"

📌 दोनों तिथियाँ मान्य हैं, परंतु अष्टमी को प्राथमिकता।

c📖 (iii) तंत्रसार (प्राचीन तांत्रिक ग्रंथ):

> "नवम्यां रिक्ता तिथि: साधने शुभा मता।

कन्या पूजनं चात्र निषिद्धं शास्त्रसम्मतम्॥"

📌 नवमी को रिक्ता यानी फलहीन कहा गया हैइसलिए कन्या पूजन वर्ज्य।

D📖 (iv) ब्रह्मवैवर्त पुराणश्रीकृष्ण जन्म खंड:

> "महाष्टमी महादेवी पूज्यते कन्यकात्मिका।

नवम्यां कार्यं पूज्यं, रिक्तत्वात् तस्यां निषेधः।"

📌 अष्टमी में पूजननवमी में निषेध।

--9.-प्रश्न: फिर कुछ स्थानों पर नवमी को कन्या भोज क्यों किया जाता है?

उत्तर:

यह शुद्ध शास्त्रीय परंपरा नहीं, बल्कि सामाजिक-व्यावहारिक कारणों से कुछ प्रदेशों में प्रचलन में आया है।

10❓प्रश्न 5: नवमी में कन्या भोज का प्रचलन किन कारणों से हुआ?

उत्तर:

   अष्टमी का व्रत, नवमी को पारण:

कई लोग अष्टमी को व्रत रखते हैं और भोजन नवमी को करते हैंइसी से कन्या भोज नवमी को होने लगा।

    राम नवमी का महत्त्व:

उत्तर भारत में श्रीराम नवमी और दुर्गा नवमी एक साथ आने पर लोग एक ही दिन पूजन करते हैं।

. तिथियों का संधिकाल:

जब अष्टमी-नवमी संधि रात्रि में हो, तो लोग अगले दिन नवमी को कन्या भोज करते हैं।

11❓प्रश्न: क्या नवमी में कन्या पूजन करना शास्त्रीय रूप से वर्ज्य है?

उत्तर:

हां, तांत्रिक ग्रंथों में विशेष रूप से इसे "रिक्ता तिथि" कहकर कन्या पूजन से वर्जित किया गया है।

उदाहरण:

> "नवम्यां कुर्वीत कुमारी पूजनं कदाचित्।"दुर्गा तंत्र

12-प्रश्न: यदि दोनों तिथियाँ मिल रही हों, तो क्या करें?

उत्तर:

यदि अष्टमी-नवमी संधि काल हो, तो संधिपूजन (विशेषतः महिषासुर वध) उसी समय करें।

यदि स्पष्ट अष्टमी उपलब्ध है, तो अष्टमी को ही कन्या पूजन करें।

13---प्रश्न: संक्षेप में कौनसी तिथि सर्वश्रेष्ठ मानी जाए?

उत्तर:

"अष्टमी" — शक्ति उपासना, सप्तशती पारायण पूर्णता, तांत्रिक सिद्धि और कन्या पूजन के लिए शास्त्रीय दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है।

"नवमी" — केवल व्यावहारिक विकल्प है, शास्त्रसम्मत नहीं।

🔚 अंतिम निष्कर्ष (One-line Verdict):

"शक्ति, तंत्र, और पुराणों के अनुसार अष्टमी तिथि ही कन्या पूजन और भोज के लिए शुद्ध, समर्थ और सर्वोत्तम मानी गई है नवमी केवल प्रादेशिक परंपरा और सुविधा मात्र है।"

।तांत्रिक साधनारात्रि समय, अष्टमी- तिथि विशेष फलदायी��

(श्रीमद् भागवत या पूराण संबंधी कथापूरे नवरात्र, परंतु नवमी उचित मानी जाती है�)।इन उत्तरों के आधार पर, व्यक्तिगत आस्था एवं परिवार परंपरा अनुसार उपयुक्त दिन और समय चुना जा सकता है

14📜 अष्टमी तिथि को कन्या भोज क्यों अधिक उचित है?

🔹 1. सप्तशती पाठ का समापनअष्टमी तक ही:

देवी भागवत, मार्कंडेय पुराण और तंत्र-सार, रुद्रयामल जैसे ग्रंथों में उल्लेख है कि:

> "सप्तशती-पारायणं सप्तमे दिवसे प्रारभ्य अष्टमे दिवसे समाप्तिः।"

अर्थात: दुर्गा सप्तशती का पारायण सप्तमी से प्रारंभ कर अष्टमी को पूर्ण करने का विधान है।

कन्या पूजन देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने की पूर्णता का प्रतीक है, जो पाठ की पूर्णाहुति के बाद किया जाता है।

🔹15. अष्टमीविजयकारक पूर्ण तिथि, जबकि नवमी रिक्ता मानी जाती है:

तंत्र ग्रंथों कालिका पुराण में वर्णन है:

> "अष्टमी तिथि सर्वसिद्धिदा, नवमी रिक्ता तिथि मता।"

🔸 अर्थ: अष्टमी तिथि सिद्धि, विजय और साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।

🔸 वहीं नवमी को "रिक्ता" यानी फलहीन, खाली तिथि कहा गया हैजो विशेष कार्यों में वर्जित मानी जाती है।

🔹 16. अष्टमी को ही "संधि काल" और देवी का क्रोधित रूप पूज्य होता है:

अष्टमी-नवमी संधि पर ही महिषासुर मर्दिनी रूप की पूजा होती है।

यह समय देवी की परम शक्ति का परिचायक है।

देवी का "चंडी रूप" इसी काल में प्रकट होता है।

🔹 तांत्रिक ग्रंथों में स्पष्ट है नवमी में कन्या भोज वर्जित:??

दुर्गा तंत्र, तंत्रचूड़ामणि आदि ग्रंथों में उल्लेख है कि:

> "नवम्यां कुर्वीत कुमारी पूजनं कदाचित्।"

नवमी तिथि में कन्या पूजन नहीं करना चाहिए,

क्योंकि यह तिथि साधना और व्रत- के लिए उपयुक्त नहीं मानी गई।

                        निष्कर्ष (Shastriya Nirnay):

10 ", कन्या भोज हेतु अष्टमी तिथि ही सर्वश्रेष्ठ शुद्ध मानी गई है,?

a.तांत्रिक ग्रंथों, दुर्गा तंत्र, और सप्तशती विधान के अनुसार सप्तशती पाठ इसी दिन पूर्ण होता है,

b.अष्टमी विजयदायिनी तिथि है,

c.नवमी को रिक्ता (फलहीन) कहा गया है, और

d.तांत्रिक देवी ग्रंथों में नवमी में कन्या पूजन वर्जित बताया गया है।"

 

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