🌺 अनन्त चतुर्दशी (Anant Chaturdashi Vrat)
📖 प्रस्तावना (Prastavna)
अनन्त चतुर्दशी व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को किया जाता है।
यह व्रत भगवान विष्णु के “अनन्त” स्वरूप को समर्पित है।
इस व्रत का माहात्म्य महाभारत (शांति पर्व), विष्णुपुराण, स्कन्दपुराण, धर्मसिन्धु, निरणयसिन्धु आदि ग्रन्थों में वर्णित है।
अनन्त चतुर्दशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित एक अत्यन्त पुण्यदायी व्रत है।
इसमें १४ दीपक, १४ गाँठों का अनन्त सूत्र, पूर्वमुख पूजा और विष्णु मन्त्र का विशेष महत्व है।
शास्त्रों में इसे पाप-नाशक और अनन्त फलदायी बताया गया है।
✨ अर्थ एवं देवता (Arth & Devata)
- ‘अनन्त’ का अर्थ है – अनन्त फल देने वाला, शाश्वत, जिसका कोई अंत न हो।
- देवता – श्रीविष्णु (अनन्त रूप: शेषनाग पर शयन करते हुए भगवान)।
- व्रत का प्रमुख अंग है अनन्त सूत्र (१४ गाँठों वाला पवित्र धागा)।
- अनन्त चतुर्दशी व्रत केवल धार्मिक कर्मकाण्ड नहीं है, बल्कि इसमें श्रद्धा और विश्वास का भाव मुख्य है।
- “अनन्त सूत्र” केवल धागा नहीं है, बल्कि भगवान विष्णु के अनन्त रूप का आशीर्वाद है।
- इस व्रत से व्यक्ति का जीवन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – इन चारों पुरुषार्थों से सम्पन्न होता है।
🕉️ शास्त्रीय श्लोक (Scriptural Verses)
1. महाभारत, शांति पर्व
“अनन्तव्रतसम्भूतं पुण्यं पापप्रणाशनम्।
यः करोति नरः सम्यगनन्तफलमश्नुते॥”
अर्थ – जो पुरुष श्रद्धा से अनन्त व्रत करता है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वह अनन्त फल को प्राप्त करता है।
2. स्कन्दपुराण (व्रतकाण्ड)
“चतुर्दश्यां भाद्रपदे शुक्ले विष्णोः प्रपूजनम्।
अनन्तव्रतमाख्यातं सर्वपापप्रणाशनम्॥”
अर्थ – भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त व्रत कर भगवान विष्णु का पूजन करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
3. विष्णु पुराण
“अनन्तोऽखिलदोषघ्नः सर्वसम्पत्प्रदायकः।
अनन्तव्रतसम्पन्नः सर्वान्कामानवाप्नुयात्॥”
अर्थ – अनन्त भगवान सम्पूर्ण दोषों का नाश करने वाले और सम्पूर्ण ऐश्वर्य देने वाले हैं। अनन्तव्रत करने वाला सभी इच्छित फल पाता है।
4. धर्मसिन्धु
“चतुर्दश्यां शुक्लपक्षे भाद्रे मासि जनार्दनः।
अनन्त इति विख्यातः पूजितः पापनाशनः॥”
अर्थ – भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को भगवान जनार्दन ‘अनन्त’ नाम से पूजे जाते हैं, जो पापों का नाश करते हैं।
🪔 पूजन मन्त्र (Pujan Mantra)
पूजन के समय यह मन्त्र जप करें –
“ॐ अनन्ताय नमः।
अनन्त देवता श्री विष्णवे नमः।
सकलदोषविनाशाय धनधान्यप्रदायिने नमः।
सप्तपातकनाशाय अनन्ताय नमो नमः॥”
🌼 महत्व एवं लाभ (Matv aur Laabh)
- कर्ज व दरिद्रता से मुक्ति।
- गृहस्थ जीवन में स्थिरता।
- संतान-सुख की प्राप्ति।
- दीर्घायु और आरोग्य।
- पितृदोष व पारिवारिक कलह का नाश।
🕯️ व्रत-विधि (Vidhi)
- प्रातः स्नान कर संकल्प लें।
- कलश पर शेषशायी विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
- चतुर्दल पुष्प, तुलसी-दल, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें।
- १४ गाँठों वाला अनन्त सूत्र (लाल/केसरिया) बनाकर धारण करें – पुरुष दाहिने हाथ में, स्त्रियाँ बाएँ हाथ में।
- संध्या समय भगवान की आरती कर नैवेद्य अर्पण करें।
🧭 दिशा (Disha)
- पूजन करते समय पूर्व दिशा की ओर मुख करें।
🪔 दीपक (Deepak)
- घी का दीपक श्रेष्ठ।
- दीपकों की संख्या – १४ (अनन्त सूत्र की १४ गाँठों का प्रतीक)।
🧵 वर्तिका (Vartika / बाती)
- कपास की जुड़ी हुई द्वि-वर्तिका शुभ मानी गई है।
🎨 रंग (Rang)
- पीला (विष्णु प्रिय),
- केसरिया (अनन्त सूत्र का रंग),
- सफेद (शुद्धता का प्रतीक)।
🔢 संख्या (Sankhya)
- १४ – १४ गाँठें, १४ दीपक, और १४ वर्षों तक व्रत करने का विधान।
📜 व्रत कथा (Vrat Katha – संक्षेप)
महाभारत में उल्लेख है कि जब युधिष्ठिर को राज्य हानि व दुःख हुआ, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें “अनन्त व्रत” करने का आदेश दिया।
व्रत करने के बाद पाण्डवों को पुनः राजसुख और विजय प्राप्त हुई।
📜 अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा
1. शास्त्रीय प्रारम्भ (महाभारत, शांति पर्व)
“अनन्तं चतुर्दश्यां यः करोति समाहितः।
सप्त जन्मकृतं पापं तस्य नश्यति तत्क्षणात्॥”
अर्थ – जो व्यक्ति भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को श्रद्धापूर्वक अनन्त व्रत करता है, उसका सात जन्मों का पाप तत्काल नष्ट हो जाता है।
2. कथा (लोक व शास्त्रानुसार)
(क) महाभारत प्रसंग
महाभारत के शांति पर्व में आता है कि युधिष्ठिर को जुए में सब कुछ हारकर, राज्य और भाइयों के साथ वनवास मिला। वे बड़े दुःखी हुए।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें कहा –
“हे धर्मराज! भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को ‘अनन्त व्रत’ करो।
इस व्रत के प्रभाव से तुम्हें पुनः राजसुख और विजय प्राप्त होगी।”
युधिष्ठिर ने विधिपूर्वक व्रत किया और फलस्वरूप पाण्डवों को पुनः राज्य और वैभव मिला।
(ख) लोककथा – अनन्त सूत्र की कथा
एक समय की बात है – किसी ब्राह्मण के परिवार में यह व्रत बड़े श्रद्धा से होता था।
उसकी पत्नी ने व्रत के दिन अनन्त सूत्र (१४ गाँठों वाला धागा) बाँधा।
सूत्र के प्रभाव से घर में सुख-समृद्धि, धन और संतति की वृद्धि होने लगी।
लेकिन उसकी बहू ने एक दिन उपहास में कह दिया –
“यह धागा ही क्या हमारे वैभव का कारण है? यह तो मात्र सूत का टुकड़ा है।”
और उसने वह अनन्त सूत्र निकालकर फेंक दिया।
कुछ ही दिनों में घर की सारी समृद्धि लुप्त हो गई, परिवार दुःख में डूब गया।
तब उसे समझ आया कि यह भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप का प्रसाद है, जिसे अपमानित करने से दोष लगा है।
पश्चाताप कर पुनः व्रत करने पर परिवार में सुख-शान्ति लौट आई।
(ग) अन्य प्रचलित कथा (पौराणिक)
एक बार सुतजी ने ऋषियों से कहा –
भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त भगवान की पूजा करनी चाहिए।
इसमें अनन्त सूत्र में १४ गाँठ बाँधकर पूजा की जाती है।
यह सूत्र १४ लोकों (भूः, भुवः, स्वः आदि) तथा १४ विद्याओं का प्रतीक है।
जो इसे श्रद्धापूर्वक धारण करता है, उसके जीवन में वैभव और स्थिरता आती है।
3. व्रत विधान से सम्बन्धित श्लोक (स्कन्दपुराण)
“चतुर्दश्यां भाद्रपदे शुक्ले विष्णोर्यः पूजनं करे।
अनन्तं पूजयेन्नित्यं तस्य सर्वं समृद्ध्यति॥”
अर्थ – जो व्यक्ति भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप का पूजन करता है, उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
4. फलश्रुति (व्रत करने का फल)
- परिवार में स्थिरता और सुख।
- धन-धान्य, संतान और स्वास्थ्य की प्राप्ति।
- सात जन्मों तक के पापों का नाश।
- सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति।
- जीवन में अनन्त फल (सदैव बने रहने वाला पुण्य) प्राप्त होता है।
📜 अनन्त चतुर्दशी व्रत कथा
🌸 1. प्रारम्भ – शास्त्रीय आधार
भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी व्रत का विधान है।
यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, जो शेषनाग पर शयन करते हैं और जिनका नाम “अनन्त” है।
धर्मसिन्धु और स्कन्दपुराण में इसे पाप-विनाशक और अनन्त फलदायी कहा गया है।
“अनन्तोऽखिलदोषघ्नः सर्वसम्पत्प्रदायकः।
अनन्तव्रतसम्पन्नः सर्वान्कामानवाप्नुयात्॥”
(विष्णुपुराण)
🌿 2. महाभारत की कथा (युधिष्ठिर और अनन्त व्रत)
महाभारत के शांति पर्व में कथा आती है –
जब युधिष्ठिर ने जुए में सब कुछ हार दिया और पाण्डव वनवास में दुःख भोग रहे थे, तब वे श्रीकृष्ण के पास गए और उनसे मुक्ति का उपाय पूछा।
श्रीकृष्ण बोले –
“हे धर्मराज! यदि तुम भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी को ‘अनन्त व्रत’ करोगे तो तुम्हारा खोया हुआ राज्य, सुख और वैभव पुनः प्राप्त होगा।”
युधिष्ठिर ने विधिवत् अनन्त व्रत किया।
व्रत के प्रभाव से पाण्डवों को पुनः राजसुख और विजय प्राप्त हुई।
इससे सिद्ध होता है कि अनन्त व्रत संकटमोचक और विजयदायी है।
🧵 3. अनन्त सूत्र और उसकी शक्ति (लोककथा)
एक प्राचीन ब्राह्मण परिवार में यह व्रत बड़ी श्रद्धा से होता था।
परिवार की स्त्रियाँ अनन्त चतुर्दशी के दिन १४ गाँठों वाला अनन्त सूत्र (लाल-केसरिया धागा) बाँधती थीं।
इससे उनके घर में असीम धन-धान्य और सुख-समृद्धि बनी रहती थी।
लेकिन परिवार की एक बहू ने उपहास करते हुए कहा –
“यह धागा ही क्या हमारे वैभव का कारण है? यह तो मात्र सूत का टुकड़ा है।”
और उसने वह सूत्र निकालकर फेंक दिया।
कुछ ही दिनों में घर की सारी सम्पन्नता नष्ट हो गई।
परिवार दुःख, रोग और दरिद्रता में डूब गया।
तब उन्हें अपनी गलती का बोध हुआ।
पुनः पूरे परिवार ने श्रद्धा से अनन्त व्रत किया और सुख-समृद्धि लौट आई।
इससे स्पष्ट है कि अनन्त सूत्र केवल धागा नहीं, भगवान विष्णु का प्रतीक है।
🏹 4. लोकप्रचलित कथा (राजा और रानी की कथा)
लोक में एक कथा यह भी प्रचलित है –
किसी राजा ने अनन्त व्रत किया।
राजमहल में उनकी पत्नी ने देखा कि राजा ने एक धागा बाँधा है। उसने उपहास में वह सूत्र निकाल दिया और फेंक दिया।
कुछ ही समय में राज्य में कलह, दरिद्रता और संकट छा गया।
जब राजा ने पूछा, तब रानी ने स्वीकार किया कि उसने धागा निकालकर फेंक दिया था।
राजा ने उसे समझाया कि यह भगवान अनन्त का प्रतीक है।
पश्चाताप कर पुनः व्रत करने पर राज्य में सुख-समृद्धि लौट आई।
🌍 5. अनन्त सूत्र का प्रतीक
अनन्त सूत्र की १४ गाँठें इन १४ लोकों का प्रतीक मानी गई हैं –
- भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, सत्य (ऊर्ध्व लोक)
- अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, महातल, पाताल (अधोलोक)
इसके अतिरिक्त १४ गाँठें १४ विद्याओं और १४ रत्नों का भी द्योतक मानी जाती हैं।
🕯️ 6. व्रत-विधि (संक्षेप)
- प्रातः स्नान कर संकल्प लें।
- शेषशायी भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र की पूजा करें।
- १४ दीपक जलाएँ और तुलसी, पुष्प, नैवेद्य चढ़ाएँ।
- अनन्त सूत्र बाँधें – पुरुष दाहिने हाथ में, स्त्री बाएँ हाथ में।
- कथा सुनकर प्रसाद ग्रहण करें।
🌟 7. फलश्रुति (व्रत का फल)
- सात जन्मों तक के पापों का नाश।
- गृहस्थ जीवन में स्थिरता।
- दरिद्रता और कर्ज से मुक्ति।
- संतान-सुख और स्वास्थ्य की प्राप्ति।
- चिरस्थायी वैभव और अनन्त फल।
“अनन्तं पूजयेन्नित्यं दारिद्र्यं तस्य नश्यति।
सर्वान्कामानवाप्नोति विष्णोः प्रीत्या न संशयः॥”
(स्कन्दपुराण)
✅ निष्कर्ष
अनन्त चतुर्दशी की कथा यह सिखाती है कि –
श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया व्रत जीवन के सारे संकट हर लेता है।
अनन्त सूत्र मात्र धागा नहीं, बल्कि भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप का आशीर्वाद है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें