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रथ,(अचला ,आरोग्य,भानु,पुत्र) सप्तमी-सूर्योपासना:(4.2.2025-)Ratha Saptami Story - Ratha, Achala, Arogya, Magha, Bhanu, Putra Saptami - Surya Upasana: 4.2.20254.2.2025-

 

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माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी विशेष पर्व" का विवरण (पॉइंटवाइज हाइलाइट्स):

  1. माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी:

    • यह पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है।
    • इस दिन को कई पुराणों और ग्रंथों में विशेष महत्व दिया गया है।
  2. भाष्युक्त्र ग्रंथ - भानु सप्तमी:

    • भाष्युक्त्र ग्रंथ के अनुसार, इस दिन को भानु सप्तमी भी कहा गया है, जो सूर्य देव की पूजा का विशेष दिन होता है।
  3. मats्य पुराण - महती सप्तमी:

    • मत्स्य पुराण के अनुसार, सप्तमी तिथि को महाती सप्तमी कहा गया है।
    • इस दिन 7 जन्मों के पापों का नाश होने का उल्लेख मिलता है।
  4. हेमाद्रि ग्रंथ - रथांक सप्तमी:

    • हेमाद्रि ग्रंथ के अनुसार, यह दिन "रथांक सप्तमी" के नाम से भी जाना जाता है।
    • इस दिन सूर्य देव की पूजा करने से पुण्य और सुखद फल मिलते हैं।
  5. आदित्य पुराण - पुत्र सप्तमी:

    • आदित्य पुराण में सप्तमी को पुत्र सप्तमी कहा गया है।
    • इस दिन दूध, दही, घी और खीर का दान करने से पुत्र सुख और संतान की प्राप्ति होती है।
  6. कृष्ण पक्ष - लाल पुष्प और कनेर पुष्प से पूजा:

    • कृष्ण पक्ष में लाल पुष्प या कनेर पुष्प से पूजा करने से पुत्र सुख और संतान का जन्म होता है।
  7. सूर्य और हेमाद्रि ग्रंथ - सप्त सप्तमी:

    • सूर्य और हेमाद्रि ग्रंथ में इस दिन को "सप्त सप्तमी" भी कहा गया है।
    • इस दिन खीर, दाल-भात, दूध-दही का दान करने से पुण्य मिलता है।
  8. ज्योतिष - सूर्य की अशुभ स्थिति:

    • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि सूर्य की अशुभ स्थिति हो, या कोई व्यक्ति कर्क, मिथुन, कन्या, मकर, कुम्भ राशि में जन्म लेता हो, तो उसे सूर्य पूजा लाभकारी होती है।
  9. पुराण और ग्रंथों में वर्णन:

    • इस दिन का महत्व कई पुराणों और ग्रंथों में विस्तार से वर्णित है, जो इस पर्व के आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व को समझने में मददगार होते हैं।

सप्तमी की पूजा से संबंधित आध्यात्मिक और सामाजिक लाभ:

  • यह दिन केवल आध्यात्मिक कल्याण के लिए नहीं, बल्कि व्यक्ति को अपने कर्मों से मिलने वाले फल और सुख की प्राप्ति भी कराता है।

\रथ सप्तमी, चंद्रभागा सप्तमी, अचला सप्तमी या आरोग्य सप्तमीविधान सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, माघ सप्तमी, माघ जयंती, भानु सप्तमी, पुत्र सप्तमी, महती सप्तमी

  • सूर्योपासना महत्व और पूजा विधि

माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्यदेव सुख, समृद्धि, आयु, आरोग्य, संपत्ति और सौभाग्य प्रदान करते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रथ सप्तमी को भगवान सूर्य का जन्म हुआ था। उनके पिता महर्षि कश्यप और मां अदिति थीं। रथ सप्तमी को सूर्य जयंती भी कहा जाता है।
सूर्योदय से ठीक पहले पूजा करने से व्यक्ति सभी बीमारियों और व्याधियों से मुक्त हो जाता है। तमिलनाडु में, भक्त 'इरुक्कू' के पत्तों का उपयोग कर इस पवित्र स्नान को संपन्न करते हैं।

स्नान की विधि
स्नान से पहले तेल से भरे दीपक में आक और बेर के 7 पत्तों को रखते हैं और सिर के ऊपर से घुमाते हैं, फिर उन्हें नदी में प्रवाहित कर देते हैं।
स्नान करते समय निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करें:

  • "नमस्ते रुद्ररूपाय, रसानां पतये नम:, वरुणाय नमस्तेस्तु"

सूर्य का आविर्भाव और महत्व
सूर्य ने अपने प्रकाश से जगत को आलोकित किया, और सूर्य की पहली किरण माघ मास की सप्तमी को पृथ्वी पर आई थी। इसलिए इसे सूर्यदेव का जन्म दिवस माना जाता है।
त्वचा और नेत्र रोग नष्ट हो जाते हैं यदि इस दिन का व्रत और स्नान विधिपूर्वक किया जाए।

स्नान और पूजन विधि
सूर्य की पहली लाली दिखने पर सात बेर और आक के पत्ते सिर पर रखकर भगवान सूर्य का ध्यान करते हुए स्नान करें। साथ में निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करें:

  • "ओम सूर्याय नमः"
  • "ओम भास्कराय नमः"
  • "ओम आदित्याय नमः"
  • "ओम मार्तण्डाय नमः"

दान और प्रसाद
स्नान के बाद मीठे चावल (परमन्नम), गुड़, तिल और घी से बने प्रसाद का भोग सूर्यदेव को अर्पित करें। इसके बाद अन्न, वस्त्र और तिल का दान करें।

  • रथ सप्तमी की  कथा
  •  
  • सांब का अभिमान और ऋषि दुर्वासा का श्राप
  • द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांब अत्यधिक सुंदर, बलशाली और प्रभावशाली थे। वह अपने शारीरिक सौंदर्य और शक्ति पर बहुत अभिमान करते थे। सांब का अभिमान इतना बढ़ गया था कि वह दूसरों को तुच्छ समझते थे। एक दिन जब ऋषि दुर्वासा भगवान श्री कृष्ण से मिलने द्वारका आए, तब उस समय सांब भी वहां उपस्थित थे।
  •  
  • ऋषि दुर्वासा तपस्वी और महान थे, लेकिन उनका शारीरिक शरीर बहुत कमजोर और कांतिहीन था। उनकी शारीरिक अवस्था को देखकर सांब ने उनका मजाक उड़ाया और जोर-जोर से हंसने लगे। सांब ने ऋषि की शारीरिक स्थिति का अपमान करते हुए कहा, “तुम्हारे जैसे तपस्वी, जो अपने शरीर पर कोई ध्यान नहीं देते, तुमसे मेरा क्या काम?” इस अपमान के कारण ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधित हो गए।
  •  
  • ऋषि दुर्वासा का क्रोध सहन न कर पाने के कारण वह शाप देने लगे। उन्होंने कहा, "तुमने मेरा उपहास किया है, तुम्हें अभिमान है कि तुम सुंदर और बलशाली हो, लेकिन अब तुम्हारी यह सुंदरता और शक्ति नष्ट हो जाएगी। तुम्हारे शरीर पर जो रूप और बल है, वह सब मिट जाएगा और तुम कुष्ठ रोग से पीड़ित हो जाओगे।"
  •  
  • सांब का दुःख और भगवान श्री कृष्ण की सलाह
  • ऋषि दुर्वासा का श्राप सुनकर सांब बहुत भयभीत हो गए। वह तुरंत भगवान श्री कृष्ण के पास गए और अपनी गलती का पश्चाताप करते हुए उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की। भगवान श्री कृष्ण ने सांब से कहा, "तुमने ऋषि दुर्वासा का अपमान किया है और यह पाप तुमको भुगतना होगा। तुम्हें इससे मुक्ति पाने के लिए सूर्य देव की उपासना करनी होगी। सूर्य देव शारीरिक कष्टों को दूर करने वाले देवता हैं। तुम उन्हें प्रसन्न करो और उनके आशीर्वाद से अपने रोग से मुक्त हो जाओ।"
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  • सांब की सूर्य देव की तपस्या
  • भगवान श्री कृष्ण की सलाह के बाद सांब ने सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या शुरू की। वह चंद्रभागा नदी के संगम स्थल पर गए और सूर्य देव की उपासना की। उन्होंने दिन-रात सूर्य देव को ध्यान में रखा और उनके अस्तित्व का अनुभव करने के लिए कठिन तपस्या की। उनके तप के कारण सूर्य देव प्रसन्न हुए और उन्होंने सांब से कहा, "तुम्हारे तप से मैं खुश हूं। तुम्हारा रोग अब दूर हो जाएगा और तुम्हें शारीरिक कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी।"
  •  
  • कुष्ठ रोग से मुक्ति
  • सूर्य देव की कृपा से सांब कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए। इसके बाद उन्होंने सूर्य देव के मंदिर का निर्माण करने का निश्चय किया और कोणार्क में सूर्य देव का भव्य मंदिर बनवाया। यह मंदिर आज भी सूर्य पूजा का एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है और इसे भारतीय वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण माना जाता है।
  •  
  • रथ सप्तमी का महत्व
  • सांब के इस प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि रथ सप्तमी का दिन विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा का दिन है। रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव की उपासना करने से शारीरिक कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है। रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूजा करने से आयु, स्वास्थ्य, समृद्धि, और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
  •  आरोग्य सप्तमी की महत्व
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  • सूर्य देव की उपासना का महत्व केवल सांब के उदाहरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इस दिन की पूजा से कई अन्य लाभ भी प्राप्त होते हैं। एक और प्रसिद्ध कथा है जो आरोग्य सप्तमी के साथ जुड़ी हुई है।
  •  
  • मयूरभट्ट और सूर्य देव की कृपा
  • छठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के दरबार में एक कवि थे जिनका नाम मयूरभट्ट था। मयूरभट्ट एक बार कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए। अपने रोग के इलाज के लिए वह सूर्य देव की उपासना में लीन हो गए। उन्होंने सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए सूर्य सप्तक की रचना की। जैसे ही मयूरभट्ट ने सूर्य सप्तक का पूर्ण पाठ किया, सूर्य देव प्रसन्न हो गए और उन्होंने मयूरभट्ट को कुष्ठ रोग से मुक्त कर दिया।
  • यह कथा यह सिद्ध करती है कि सूर्य देव की पूजा से न केवल शारीरिक कष्ट समाप्त होते हैं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रोग भी दूर हो सकते हैं। इस दिन विशेष रूप से सूर्य देव की उपासना करने से जीवन में सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
  • सूर्य के रथ और उनके सात घोड़े
  • सूर्य देव के रथ में सात घोड़े होते हैं, जो उनके रथ को खींचते हैं। इन सात घोड़ों के नाम हैं:र्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर।।"
  • "ओम नम: सूर्याय शान्ताय सर्वरोग निवारिणे। आयुररोग्य मैस्वैर्यं देहि देव: जगत्पते।।"
  • सूर्य बीज मंत्र:
    "
    ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"

रथ सप्तमी व्रत कथा
भविष्य पुराण के अनुसार, एक वैश्या ने कभी दान-पुण्य नहीं किया था, लेकिन जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो वह ऋषि वशिष्ठ के पास गई। उन्होंने उसे रथ सप्तमी के व्रत का महत्व बताया, जिसके प्रभाव से उसे पुण्य मिला और वह इंद्र की अप्सराओं की मुखिया बन गई।

अर्कपत्र स्नान श्लोक

  1. "सप्तसप्तिप्रिये देवि सप्तलोकैकदीपिके। सप्तजन्मार्जितं पापं हर सप्तमि सत्वरम्॥"
  2. "यन्मयात्र कृतं पापं पूर्वं सप्तसु जन्मसु। तत्सर्वं शोकमोहौ च माकरी हन्तु सप्तमी॥"
  3. "नमामि सप्तमीं देवीं सर्वपापप्रणाशिनीम्। सप्तार्कपत्रस्नानेन मम पापं व्यापोहतु॥"

अर्घ्य श्लोक
"
सप्त सप्ति वहप्रीत सप्तलोक प्रदीपन। सप्तमी सहितो देव गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥"

रथ सप्तमी अन्य पाठ

  1. "यदा जन्मकृतं पापं मया जन्मसु जन्मसु। तन्मे रोगं च शोकं च माकरी हन्तु सप्तमी॥"
  2. "एतज्जन्म कृतं पापं यच्च जन्मान्तरार्जितम्। मनो वाक्कायजं यच्च ज्ञाताज्ञाते च ये पुनः॥"
  3. "इति सप्तविधं पापं स्नानान्मे सप्त सप्तिके। सप्तव्याधि समायुक्तं हर माकरि सप्तमी॥"

सूर्य प्रार्थना मंत्र
"
ग्रहाणामादिरादित्यो लोक लक्षण कारक:। विषम स्थान संभूतां पीड़ां दहतु मे रवि।"

सूर्य देव का वैदिक मंत्र
"
ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च। हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन॥"

संतान प्राप्ति मंत्र
"
ओम भास्कराय पुत्रं देहि महातेजसे। धीमहि तन्नः सूर्य प्रचोदयात्।।"

नोट:
रथ सप्तमी का व्रत विशेष रूप से मिथुन और कर्क राशि वालों के लिए शुभ फल प्रदान करता है, तथा जन्म कुंडली में सूर्य दशा, अंतर्दशा या सूर्य की स्थिति अशुभ हो तो भी यह दिन विशेष लाभकारी होता है।

भगवान श्री कृष्ण और सांब

  • सांब की विशेषताएँ: भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांब बेहद सुंदर और बलवान थे। उनकी इस सुंदरता और बल का उन पर अभिमान भी था, जो उनके व्यक्तित्व का एक प्रमुख पहलू बन गया।
  • कुष्ठ रोग: द्वापर युग में सांब को कोढ़ रोग हुआ। इस रोग से ग्रस्त होने के कारण उन्होंने अपनी स्थिति को सुधारने के लिए चंद्रभागा नदी के संगम पर सूर्य देव की कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया।
  • सूर्य देव की कृपा: उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्त कर दिया। इस कृपा के बाद सांब ने कोणार्क में सूर्य देव का मंदिर बनाने का निर्णय लिया, जिसे भारतीय

भगवान मलयप्पा स्वामी का जुलूस

  • विशेष आयोजन: रथ सप्तमी के दिन भगवान मलयप्पा स्वामी के प्रमुख देवता श्री-देवी और भू-देवी के साथ एक भव्य जुलूस निकाला जाता है। यह जुलूस भक्तों के लिए एक धार्मिक अनुभव होता है।
  • ब्रह्मोत्सव का महत्व: तिरुमला में एक दिवसीय ब्रह्मोत्सव का आयोजन किया जाता है, जो भगवान की महिमा और उनकी कृपा का प्रतीक है।
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    Ratha Saptami Story -

    1. Ratha Saptami Importance

      • Ratha Saptami marks the appearance of Lord Surya (Sun God).
      • It is celebrated as Surya Jayanti, the birth of Lord Surya.
      • Devotees worship Surya to seek health, wealth, and blessings.
    2. Shambha's Pride and Curse by Rishi Durvasa

      • Shambha, the son of Lord Krishna, was extremely handsome and powerful, leading to his pride and arrogance.
      • He mocked Rishi Durvasa, a sage known for his spiritual power but frail physical form, in a public gathering.
      • In retaliation, Durvasa cursed Shambha with leprosy (Kushtha Roga), stating that his physical beauty and strength would vanish, and he would suffer from a debilitating disease.
    3. Lord Krishna’s Advice to Shambha

      • Shambha, distressed by the curse, sought guidance from Lord Krishna.
      • Lord Krishna advised him to perform Surya Pujan (worship of Lord Sun) to rid himself of the curse and regain his health.
    4. Shambha’s Penitence and Surya's Blessing

      • Shambha meditated and performed intense penance by the Chandrabhaga river.
      • Lord Surya, pleased by his devotion, blessed Shambha with relief from his leprosy.
    5. Shambha Builds the Konark Temple

      • Grateful for Surya’s blessings, Shambha built the famous Konark Sun Temple, which stands as a tribute to Lord Surya.
    6. Rath Saptami's Significance for Health

      • Rath Saptami is considered an auspicious day to worship Surya for relief from physical ailments.
      • Devotees believe that worshipping Surya on this day removes diseases and brings prosperity.
    7. The Story of Mayurbhatt and Surya

      • In the 6th century, the poet Mayurbhatt contracted leprosy and composed the Suryasaptaka (a collection of hymns to the Sun).
      • Upon completing the hymns, Lord Surya blessed him and cured his disease.
    8. Surya's Seven Horses and Chariot

      • Surya’s chariot is pulled by seven horses, each representing different aspects of life:
        1. Gayatri
        2. Bhrati
        3. Usnik
        4. Jagati
        5. Trishtup
        6. Anushtubh
        7. Pankti
      • These horses symbolize the diverse energies that Surya governs, influencing various life forces.
    9. The Meaning of Surya's Chariot

      • Surya’s chariot, driven by Arun (brother of Garuda), symbolizes the cosmic journey.
      • The single wheel of the chariot, called Samsara, represents the cycle of life and time.

    Key Takeaways

    • Ratha Saptami is dedicated to Lord Surya and is believed to bring relief from diseases and bring prosperity.
    • Shambha’s Curse by Rishi Durvasa and his redemption through Surya worship highlights the importance of humility and devotion.
    • The Konark Sun Temple stands as a lasting symbol of Shambha’s penance and Surya’s blessings.
    • Surya’s Seven Horses represent the different powers and energies of the Sun, influencing the world.
    •  

    1. Surya Gayatri Mantra

    This is a powerful mantra to invoke Lord Surya's blessings for health, prosperity, and vitality.

    ॐ सूर्याय नमः
    Om Suryaya Namah

    2. Surya Beej Mantra

    This is a bija mantra to gain the blessings of Surya, especially for health and vitality.

    ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
    Om Hraam Hreem Hroum Sah Suryaya Namah

    3. Surya Arghya Mantra

    This mantra is recited while offering water (Arghya) to Lord Surya during the morning ritual.

    सप्त सप्ति वहप्रीत सप्तलोक प्रदीपन।
    सप्तमी सहितो देव गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥

    Sapt Sapt Vah Preet Sapt Lok Pradeepan
    Saptami Sahito Dev Grihaan Arghyam Divakar

    4. Surya Ashtakshara Mantra

    This mantra is considered very powerful for invoking Surya's blessings.

    ॐ आदित्याय च सोमाय मङ्गलाय बुधाय च।
    गुरु शुक्र शनिभ्यश्च राहवे केतवे नमः॥

    Om Adityaya Cha Somaya Manglaya Budhaya Cha
    Guru Shukra Shanibhayashcha Rahave Ketave Namah

    5. Surya Prarthana Mantra

    This mantra is used to pray for the removal of diseases and to seek blessings from Surya Dev.

    ॐ नम: सूर्याय शान्ताय सर्वरोग निवारिणे।
    आयुररोग्य मैस्वैर्यं देहि देव: जगत्पते।।

    Om Namah Suryaya Shantaya Sarva Rog Nivarine
    Aayur Rogya Maiswarya Dehi Devah Jagatpate

    6. Surya Stotra (Aditya Hridayam)

    This is an important stotra recited to invoke Surya Dev’s power for overcoming all difficulties, especially health-related.

    ॐ आदित्याय च सोमाय मङ्गलाय बुधाय च।
    गुरु शुक्र शनिभ्यश्च राहवे केतवे नमः॥

    Om Adityaya Cha Somaya Manglaya Budhaya Cha
    Guru Shukra Shanibhayashcha Rahave Ketave Namah



     

    Maagh Shukl Paksha Saptami Vishesh Parv" ka vivran (Pointwise highlights):

    1. Maagh Shukl Paksha Saptami:

      • Yeh parv Maagh maas ke shukl paksh ki saptami tithi ko manaya jata hai.
      • Is din ko kai purano aur granthon mein mahatvapurn maana gaya hai.
    2. Bhashyottr Granth - Bhanu Saptami:

      • Bhashyottr granth ke anusar, is din ko Bhanu Saptami bhi kaha gaya hai, jo Surya dev ki pooja ka vishesh din hai.
    3. Matsya Puran - Mahati Saptami:

      • Matsya puran ke anusaar, Saptami tithi ka vishesh mahatva hai. Is din ko 7 janm ke paapon ka naash hone wala din bhi mana gaya hai.
    4. Hemadri Granth - Rathank Saptami:

      • Hemadri granth ke anusar, yeh din "Rathank Saptami" ke naam se bhi jaana jata hai.
      • Is din ko surya dev ki pooja karne se pavitra aur sukhad fal milte hain.
    5. Aditya Puran - Putra Saptami:

      • Aditya Puran mein, Saptami ko Putra Saptami bhi kaha gaya hai.
      • Is din, doodh, dahi, ghee, khir daan karne se putra sukh aur santan prapti hoti hai.
    6. Krishna Paksha - Lal Pushp aur Kaner Pushp se Pooja:

      • Krishna paksh mein, lal pushp ya kaner pushp se pooja karne se putra sukh aur janm hota hai.
    7. Surya aur Hemadri Granth - Sapt Saptami:

      • Surya aur Hemadri granth mein, is din ko Sapt Saptami bhi kaha gaya hai.
      • Khir, dal-bhat, doodh-dahi ka daan karna is din ko vishesh mahatva deta hai.
    8. Jyotish - Surya Ki Ashubh Sthiti:

      • Jyotish shastra ke anusar, agar Surya ki ashubh sthiti ho, ya koi vyakti kark, mithun, kanya, makar, kumbh lagna mein janm leta ho, to uske liye Surya ki pooja kaafi upyogi hoti hai.
    9. Puran aur Granthon mein Varnan:

      • Is din ko lekar kai puran aur granthon mein vishesh varnan milta hai, jo is parv ke mahatva ko aur adhik samajhne mein madadgar hote hain.

    Saptami ki pooja se sambandhit aadhyatmik aur samajik labh:

    • Yeh din na keval aadhyatmik kalyan ke liye mahatvapurn hai, balki vyakti ko apne karmo se milne wale phal aur sukh ki prapti bhi hoti hai.

    Conclusion

    Reciting these mantras during Ratha Saptami or any Surya-related worship can bring health, success, and overall well-being, and help remove obstacles or diseases. These mantras are also beneficial when recited regularly to honor Surya and seek his divine blessings.




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दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...