रथ,(अचला ,आरोग्य,भानु,पुत्र) सप्तमी-सूर्योपासना:(4.2.2025-)Ratha Saptami Story - Ratha, Achala, Arogya, Magha, Bhanu, Putra Saptami - Surya Upasana: 4.2.20254.2.2025-
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\रथ सप्तमी, चंद्रभागा सप्तमी, अचला सप्तमी या आरोग्य सप्तमीविधान सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, माघ सप्तमी, माघ जयंती, भानु सप्तमी, पुत्र सप्तमी, महती सप्तमी
- सूर्योपासना महत्व और पूजा विधि
माघ मास के
शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्यदेव सुख, समृद्धि, आयु, आरोग्य, संपत्ति और
सौभाग्य प्रदान करते हैं।
पौराणिक
कथाओं के अनुसार, रथ सप्तमी
को भगवान सूर्य का जन्म हुआ था। उनके पिता महर्षि कश्यप और मां अदिति थीं। रथ
सप्तमी को सूर्य जयंती भी कहा जाता है।
सूर्योदय से
ठीक पहले पूजा करने से व्यक्ति सभी बीमारियों और व्याधियों से मुक्त हो जाता
है। तमिलनाडु में, भक्त 'इरुक्कू' के पत्तों
का उपयोग कर इस पवित्र स्नान को संपन्न करते हैं।
स्नान की विधि
स्नान से
पहले तेल से भरे दीपक में आक और बेर के 7 पत्तों को रखते हैं और सिर के ऊपर से घुमाते हैं, फिर उन्हें
नदी में प्रवाहित कर देते हैं।
स्नान करते
समय निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करें:
- "नमस्ते रुद्ररूपाय, रसानां पतये नम:, वरुणाय नमस्तेस्तु"
सूर्य का आविर्भाव और महत्व
सूर्य ने
अपने प्रकाश से जगत को आलोकित किया, और सूर्य की पहली किरण माघ मास की सप्तमी को पृथ्वी
पर आई थी। इसलिए इसे सूर्यदेव का जन्म दिवस माना जाता है।
त्वचा और
नेत्र रोग नष्ट हो
जाते हैं यदि इस दिन का व्रत और स्नान विधिपूर्वक किया जाए।
स्नान और पूजन विधि
सूर्य की
पहली लाली दिखने पर सात बेर और आक के पत्ते सिर पर रखकर भगवान सूर्य का ध्यान करते
हुए स्नान करें। साथ में निम्नलिखित मंत्रों का उच्चारण करें:
- "ओम सूर्याय नमः"
- "ओम भास्कराय नमः"
- "ओम आदित्याय नमः"
- "ओम मार्तण्डाय नमः"
दान और प्रसाद
स्नान के
बाद मीठे चावल (परमन्नम), गुड़, तिल और घी से बने प्रसाद का भोग सूर्यदेव को अर्पित
करें। इसके बाद अन्न, वस्त्र और तिल का दान करें।
- रथ सप्तमी की कथा
- सांब का अभिमान और ऋषि दुर्वासा का श्राप
- द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांब अत्यधिक सुंदर, बलशाली और प्रभावशाली थे। वह अपने शारीरिक सौंदर्य और शक्ति पर बहुत अभिमान करते थे। सांब का अभिमान इतना बढ़ गया था कि वह दूसरों को तुच्छ समझते थे। एक दिन जब ऋषि दुर्वासा भगवान श्री कृष्ण से मिलने द्वारका आए, तब उस समय सांब भी वहां उपस्थित थे।
- ऋषि दुर्वासा तपस्वी और महान थे, लेकिन उनका शारीरिक शरीर बहुत कमजोर और कांतिहीन था। उनकी शारीरिक अवस्था को देखकर सांब ने उनका मजाक उड़ाया और जोर-जोर से हंसने लगे। सांब ने ऋषि की शारीरिक स्थिति का अपमान करते हुए कहा, “तुम्हारे जैसे तपस्वी, जो अपने शरीर पर कोई ध्यान नहीं देते, तुमसे मेरा क्या काम?” इस अपमान के कारण ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधित हो गए।
- ऋषि दुर्वासा का क्रोध सहन न कर पाने के कारण वह शाप देने लगे। उन्होंने कहा, "तुमने मेरा उपहास किया है, तुम्हें अभिमान है कि तुम सुंदर और बलशाली हो, लेकिन अब तुम्हारी यह सुंदरता और शक्ति नष्ट हो जाएगी। तुम्हारे शरीर पर जो रूप और बल है, वह सब मिट जाएगा और तुम कुष्ठ रोग से पीड़ित हो जाओगे।"
- सांब का दुःख और भगवान श्री कृष्ण की सलाह
- ऋषि दुर्वासा का श्राप सुनकर सांब बहुत भयभीत हो गए। वह तुरंत भगवान श्री कृष्ण के पास गए और अपनी गलती का पश्चाताप करते हुए उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए प्रार्थना की। भगवान श्री कृष्ण ने सांब से कहा, "तुमने ऋषि दुर्वासा का अपमान किया है और यह पाप तुमको भुगतना होगा। तुम्हें इससे मुक्ति पाने के लिए सूर्य देव की उपासना करनी होगी। सूर्य देव शारीरिक कष्टों को दूर करने वाले देवता हैं। तुम उन्हें प्रसन्न करो और उनके आशीर्वाद से अपने रोग से मुक्त हो जाओ।"
- सांब की सूर्य देव की तपस्या
- भगवान श्री कृष्ण की सलाह के बाद सांब ने सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या शुरू की। वह चंद्रभागा नदी के संगम स्थल पर गए और सूर्य देव की उपासना की। उन्होंने दिन-रात सूर्य देव को ध्यान में रखा और उनके अस्तित्व का अनुभव करने के लिए कठिन तपस्या की। उनके तप के कारण सूर्य देव प्रसन्न हुए और उन्होंने सांब से कहा, "तुम्हारे तप से मैं खुश हूं। तुम्हारा रोग अब दूर हो जाएगा और तुम्हें शारीरिक कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी।"
- कुष्ठ रोग से मुक्ति
- सूर्य देव की कृपा से सांब कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए। इसके बाद उन्होंने सूर्य देव के मंदिर का निर्माण करने का निश्चय किया और कोणार्क में सूर्य देव का भव्य मंदिर बनवाया। यह मंदिर आज भी सूर्य पूजा का एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है और इसे भारतीय वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण माना जाता है।
- रथ सप्तमी का महत्व
- सांब के इस प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि रथ सप्तमी का दिन विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा का दिन है। रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव की उपासना करने से शारीरिक कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है। रथ सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूजा करने से आयु, स्वास्थ्य, समृद्धि, और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
- आरोग्य सप्तमी की महत्व
- सूर्य देव की उपासना का महत्व केवल सांब के उदाहरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इस दिन की पूजा से कई अन्य लाभ भी प्राप्त होते हैं। एक और प्रसिद्ध कथा है जो आरोग्य सप्तमी के साथ जुड़ी हुई है।
- मयूरभट्ट और सूर्य देव की कृपा
- छठी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के दरबार में एक कवि थे जिनका नाम मयूरभट्ट था। मयूरभट्ट एक बार कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए। अपने रोग के इलाज के लिए वह सूर्य देव की उपासना में लीन हो गए। उन्होंने सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए सूर्य सप्तक की रचना की। जैसे ही मयूरभट्ट ने सूर्य सप्तक का पूर्ण पाठ किया, सूर्य देव प्रसन्न हो गए और उन्होंने मयूरभट्ट को कुष्ठ रोग से मुक्त कर दिया।
- यह कथा यह सिद्ध करती है कि सूर्य देव की पूजा से न केवल शारीरिक कष्ट समाप्त होते हैं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रोग भी दूर हो सकते हैं। इस दिन विशेष रूप से सूर्य देव की उपासना करने से जीवन में सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
- सूर्य के रथ और उनके सात घोड़े
- सूर्य देव के रथ में सात घोड़े होते हैं, जो उनके रथ को खींचते हैं। इन सात घोड़ों के नाम हैं:र्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर।।"
- "ओम नम: सूर्याय शान्ताय सर्वरोग निवारिणे। आयुररोग्य मैस्वैर्यं देहि देव: जगत्पते।।"
- सूर्य
बीज मंत्र:
"ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"
रथ सप्तमी व्रत कथा
भविष्य
पुराण के अनुसार, एक वैश्या
ने कभी दान-पुण्य नहीं किया था, लेकिन जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ, तो वह ऋषि
वशिष्ठ के पास गई। उन्होंने उसे रथ सप्तमी के व्रत का महत्व बताया, जिसके
प्रभाव से उसे पुण्य मिला और वह इंद्र की अप्सराओं की मुखिया बन गई।
अर्कपत्र स्नान श्लोक
- "सप्तसप्तिप्रिये देवि सप्तलोकैकदीपिके। सप्तजन्मार्जितं पापं हर सप्तमि सत्वरम्॥"
- "यन्मयात्र कृतं पापं पूर्वं सप्तसु जन्मसु। तत्सर्वं शोकमोहौ च माकरी हन्तु सप्तमी॥"
- "नमामि सप्तमीं देवीं सर्वपापप्रणाशिनीम्। सप्तार्कपत्रस्नानेन मम पापं व्यापोहतु॥"
अर्घ्य श्लोक
"सप्त सप्ति
वहप्रीत सप्तलोक प्रदीपन। सप्तमी सहितो देव गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥"
रथ सप्तमी अन्य पाठ
- "यदा जन्मकृतं पापं मया जन्मसु जन्मसु। तन्मे रोगं च शोकं च माकरी हन्तु सप्तमी॥"
- "एतज्जन्म कृतं पापं यच्च जन्मान्तरार्जितम्। मनो वाक्कायजं यच्च ज्ञाताज्ञाते च ये पुनः॥"
- "इति सप्तविधं पापं स्नानान्मे सप्त सप्तिके। सप्तव्याधि समायुक्तं हर माकरि सप्तमी॥"
सूर्य प्रार्थना मंत्र
"ग्रहाणामादिरादित्यो
लोक लक्षण कारक:। विषम स्थान संभूतां पीड़ां दहतु मे रवि।"
सूर्य देव का वैदिक मंत्र
"ऊँ आकृष्णेन
रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च। हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि
पश्यन॥"
संतान प्राप्ति मंत्र
"ओम भास्कराय
पुत्रं देहि महातेजसे। धीमहि तन्नः सूर्य प्रचोदयात्।।"
नोट:
रथ सप्तमी का
व्रत विशेष रूप से मिथुन और कर्क राशि वालों के
लिए शुभ फल प्रदान करता है, तथा जन्म कुंडली में सूर्य दशा, अंतर्दशा या
सूर्य की स्थिति अशुभ हो तो भी यह दिन विशेष लाभकारी होता है।
भगवान श्री कृष्ण और सांब
- सांब की विशेषताएँ: भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांब बेहद सुंदर और बलवान थे। उनकी इस सुंदरता और बल का उन पर अभिमान भी था, जो उनके व्यक्तित्व का एक प्रमुख पहलू बन गया।
- कुष्ठ रोग: द्वापर युग में सांब को कोढ़ रोग हुआ। इस रोग से ग्रस्त होने के कारण उन्होंने अपनी स्थिति को सुधारने के लिए चंद्रभागा नदी के संगम पर सूर्य देव की कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया।
- सूर्य देव की कृपा: उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्त कर दिया। इस कृपा के बाद सांब ने कोणार्क में सूर्य देव का मंदिर बनाने का निर्णय लिया, जिसे भारतीय
भगवान मलयप्पा स्वामी का जुलूस
- विशेष आयोजन: रथ सप्तमी के दिन भगवान मलयप्पा स्वामी के प्रमुख देवता श्री-देवी और भू-देवी के साथ एक भव्य जुलूस निकाला जाता है। यह जुलूस भक्तों के लिए एक धार्मिक अनुभव होता है।
- ब्रह्मोत्सव का महत्व: तिरुमला में एक दिवसीय ब्रह्मोत्सव का आयोजन किया जाता है, जो भगवान की महिमा और उनकी कृपा का प्रतीक है।
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