महाशिवरात्रि - पूजा विधि ,लोहे का शिवलिंग: शनि से सुरक्षा।दीपक , बिल्व पत्र नहीं तोड़े –वर्जित, अभिषेक- पदार्थ, मृत-संजीवनी मन्त्र
महाशिवरात्रि - पूजा विधि ,दीपक नियम, बिल्व पत्र नहीं तोड़े –वर्जित, लोहे का शिवलिंग: शनि बाधा से सुरक्षा। अभिषेक- पदार्थ, मृत-संजीवनी मन्त्र
प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को यह पर्व होता है | फागुन मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ करोडो सूर्य के समान प्रभा के शिवलिंग के रूप मे प्रकाट्य –“उद्भूत कोटिसूर्यसमप्रभ “ |
इसलिए महाशिवरात्रि नाम दिया गया |
- प्रदोष और अर्द्धरात्रि की चतुर्दशी शिवरात्रि के लिए मानी गई है |”प्रदोष तिथियों मय व्यापिनी “
- अर्द्धरात्रि में पूजा क्यों - अर्ध रात्रि के समय शिवजी अपने गणों भूत प्रेत पिशाच शक्तियों के साथ भ्रमण करते हैं इसलिए उनका इस समय स्मरण करने से अनिष्ट निवारण होता है
श्रेष्ठ शिवरात्रि योग - त्रयोदशी चतुर्दशी एवं अमावस्या यदि सूर्योदय से दूसरे दिन शुरू सूर्योदय तक तथा रविवार या मंगलवार के दिन हो |
-चतुर्थी चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं|
-रात्रि काल में व्रत करने के कारण इसे शिवरात्रि नाम दिया गया |
- अर्द्धरात्रि में पूजा क्यों - अर्ध रात्रि के समय शिवजी अपने गणों भूत प्रेत पिशाच शक्तियों के साथ भ्रमण करते हैं इसलिए उनका इस समय स्मरण करने से अनिष्ट निवारण होता है
श्रेष्ठ शिवरात्रि योग - त्रयोदशी चतुर्दशी एवं अमावस्या यदि सूर्योदय से दूसरे दिन शुरू सूर्योदय तक तथा रविवार या मंगलवार के दिन हो |
*,माथे पर त्रिपुंड, गले मे रुद्राक्ष, उत्तर दिशाको मुह, जागरण एवम शिव अभिषेक , चार प्रहर रात्रि मे पूजा करना चाहिये |
JAP.HAVAN,रुद्र अभिषेक कर सुख सौभाग्य सम्पदा आरोग्य |
महाशिवरात्रि पर्व क्या,क्यो,केसे/
- विभिन्न पुराणों में
यथा शिव महापुराण, लिंग पुराण ,स्कंद पुराण एवं
वायु पुराण आदि में महाशिवरात्रि के संदर्भ में अनेक प्रकार
की जानकारी उपलब्ध हैं।
सर्वमान्य लोकप्रिय जनआस्था :शिव जी शिव,
शंकर,
महादेव आदि
अनेक नाम से भगवान शिव समग्र भारत में लोकप्रिय हैं।
- तिथि जो सूर्य एवं चंद्रमा की विशेष स्थिति में निर्मित होती है,
के देवता
निर्धारित है ।
चौदश को शिव
पूजन ही क्यों?
चतुर्दशी तिथि के देवता भगवान शिव शंकर जी है अर्थात तिथि विशेष को
निर्धारित देवता की पूजा करने से आगामी तिथि तक सुरक्षा या उस तिथि
के दोष से सुरक्षा होती है.
शिवरात्रि क्यो? दिन क्यो नही?
इस पूजा एवं
व्रत का महत्व रात्रि में मान्य है. इसलिए चतुर्दशी तिथि
प्रदोष काल से अर्ध रात्रि तक होना अनिवार्य है .
भगवान शिव भूत,प्रेत आदि अशरीरी शक्ति के स्वामी हैं,जो अंधकार,
नीरव, क्षेत्र में
सक्रिय होते हैं ।
श्रेष्ठ काल
पूजा का-
शिव जी की
पूजा का
महत्व रात्रि विशेषतः अर्ध रात्रि महानिशीथ काल जो अर्ध रात्रि से 24 मिनट पूर्व
से पश्चात तक होता है।श्रेष्ठ है।
- रात्रि में व्रत होने के कारण इस को महाशिवरात्रि कहा जाता है .
अर्ध रात्रि
को या महा निशिथ काल में मान्य है ।शिवजी का संबंध भूत-प्रेत आदि से इस कारण
से उनकी पूजा का विशिष्ट महत्व रात्रिकालीन है।
चतुर्दशी रात्रि क्यो?
स्कंद पुराण
के अनुसार रात्रि के समय भूत प्रेत एवं पैशाचिक शक्तियां विचरण करती हैं। वे शिव
जी के साथ होती हैं एवं भ्रमण करते हैं ।
महाशिवरात्रि क्यो, कहा गया?
फाल्गुन
कृष्ण चतुर्दशी को शिवलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।
ईशान संहिता
-अर्धरात्रि में शिवलिंग करोड़ो सूर्य के समान देदीप्यमान प्रादुर्भूत हुआ।
इसलिए महा
शिवरात्रि कहा गया।
शिव जी की
पूजा या व्रत का लाभ?
इस पर्व पर, शिव जी का पूजन करने
से समस्त पाप, प्रारब्ध के दोष दूर होते हैं ।
सामान्य
जानकारी-
रुद्राक्ष की
माला से जप, या रुद्राक्ष धारण कर पूजा करना विशेष महत्व का होता है।
इसमें मस्तक पर त्रिपुंड भस्म (3आड़ी रेखाएं
माथे पर खिंच कर )तिलक करना श्रेष्ठ माना गया है ।
*संध्या काल
के समय*
स्नान उपरांत
,उत्तर दिशा की ओर मुह कर,रुद्राक्ष धारण कर,
"मम अखिल पॉप क्षय पूर्वक सकल अभीष्ट सिद्धये शिव पूजनम करिष्ये।"
संकल्प करे-
- हाथ में जल। लेकर
"मया कृतान्य अनेकांनि पापानि हर शंकर।
शिव रात्रो ददाम्य अर्ध्यम उमाकांत गृहाण
में।" अर्ध्य दे।
प्रार्थना-
"संसार क्लेश दग्धस्य वर्तें अनेन शंकर।
प्रसीद सुमुखो नाथ ज्ञान दॄष्टि प्रदो भव।"
उपलब्ध पत्र,पुष्प अर्पण
करें-
बिल्ब,शमी पत्र
द्वारा शिव
जी का पूजन करना चाहिए । बेर,मूली,गाजर, कोई भी फल ।
अर्थात जो भी
सर्व सुलभ वस्तु पदार्थों अर्पण किए जा सकते हैं।
संध्या से
सूर्य उदय पूर्व तक 4 बार पूजा होती है। अंतिम पूजा में आरती पुष्प अंजलि करे।
विशेषता-
इस व्रत का
पारण , अर्थात व्रत खोलना चतुर्दशी तिथि में ही किया जाता है।
🌿 लाभ: पापों का
नाश, मानसिक
शांति, सुख-समृद्धि
व मोक्ष की प्राप्ति।
🕉️ पूजा विधि व दीपक संबंधित नियम
🔥 पूजा का समय: निशीथ काल (रात्री 12 बजे के आसपास) सर्वोत्तम माना जाता है।
🪔 दीपक की बाती की दिशा:
- उत्तर दिशा में बाती रखने से समृद्धि मिलती है।
- पूर्व दिशा में रखने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- दक्षिण दिशा में नकारात्मक प्रभाव माना जाता है।
🛢️ दीपक का तेल: तिल का तेल या घी सर्वोत्तम होता
है।
📍 दीपक रखने
की दिशा: शिवलिंग के दाहिनी ओर (दक्षिण-पूर्व दिशा) रखना शुभ
होता है।
📖 शिवपुराण में अभिषेक का वर्णन
🔹 दूध अभिषेक – मन की शांति व परिवार की
सुख-समृद्धि।
🔹 जल अभिषेक – सभी पापों का नाश व सकारात्मक ऊर्जा।
🔹 शहद अभिषेक – मधुर वाणी, प्रेम व आकर्षण।
🔹 दही अभिषेक – संतान सुख व मानसिक शांति।
🔹 घी अभिषेक – स्वास्थ्य व दीर्घायु।
🔹 गन्ने के रस
से अभिषेक – आर्थिक समृद्धि।
🌿 शिवपुराण के अनुसार, श्रद्धा व भक्ति से किया गया अभिषेक शीघ्र फलदायी होता है।
🔱 हर हर महादेव! 🙏
🌿 चतुर्दशी को शिव अभिषेक उचित है या नहीं?
📖 शास्त्रों के अनुसार चतुर्दशी तिथि भगवान शिव को अत्यंत प्रिय मानी जाती है, विशेष रूप से मासिक शिवरात्रि और महाशिवरात्रि पर इस दिन अभिषेक करना अत्यंत शुभ होता है।
✅ उचित कारण:
✔️ चतुर्दशी
तिथि शिव तत्त्व से जुड़ी होती है, जिससे इस
दिन अभिषेक शीघ्र फलदायी होता है।
✔️ रुद्राभिषेक
करने से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
✔️ विशेष रूप
से निशीथ काल (रात्रि 12 बजे के आसपास) में अभिषेक करना
अत्यधिक शुभ माना जाता है।
🚫 अशुभ कब हो सकता है?
❌ यदि
चतुर्दशी तिथि भद्रा, ग्रहण या अशुभ योग में हो तो
अभिषेक स्थगित करना उचित होता है।
❌ यदि किसी
विशेष स्थान पर शिवलिंग पर जल चढ़ाने की मनाही हो, तो वहाँ
अभिषेक नहीं करना चाहिए।
🕉 हर हर महादेव! 🙏
🔱 शिव वर्णन किन पुराणों में मिलता है?
भगवान शिव के स्वरूप, लीलाओं और महत्व का वर्णन कई पुराणों में मिलता है। प्रमुख रूप से:
1️⃣ शिव पुराण – भगवान शिव की उत्पत्ति, लीलाएँ, शिव तत्त्व और भक्ति मार्ग का विस्तार से वर्णन।
2️⃣ स्कंद पुराण – यह सबसे बड़ा पुराण है, जिसमें शिव महिमा, ज्योतिर्लिंगों
की कथा और शिवभक्ति का महत्व बताया गया है।
3️⃣ लिंग पुराण – शिवलिंग की उत्पत्ति, शिवतत्त्व, और अभिषेक से प्राप्त होने वाले लाभों का वर्णन।
4️⃣ मात्स्य पुराण – इसमें
शिव-शक्ति की महिमा, व्रत, उपवास और शिवरात्रि की विधि दी गई है।
5️⃣ वामन पुराण – शिव के विभिन्न अवतारों, व्रतों और उनके कृपापात्र भक्तों का उल्लेख।
6️⃣ पद्म पुराण – शिव पार्वती विवाह, शिवभक्ति और तीर्थ यात्रा से संबंधित कथाएँ।
7️⃣ गर्भ पुराण – शिवतत्त्व, मृत्यु के बाद आत्मा की गति, और
शिवोपासना का महत्व।
8️⃣ अग्नि पुराण – इसमें शिव पूजा, रुद्राभिषेक और तंत्र साधना का वर्णन।
📜 भविष्य पुराण में शिव व्रत
भविष्य पुराण में भगवान शिव की उपासना के लिए विभिन्न व्रतों का वर्णन मिलता है, जिनमें प्रमुख हैं:
🔹 मासिक शिवरात्रि व्रत – हर मास की
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को किया जाने वाला व्रत, जो सभी
पापों का नाश करता है।
🔹 सोलह सोमवार
व्रत – लगातार 16 सोमवार
उपवास रखने से इच्छित फल और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
🔹 प्रदोष व्रत – शुक्ल व कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाता है, जिससे शिव कृपा प्राप्त होती है।
🔹 सावन सोमवार
व्रत – सावन माह में शिवजी की विशेष पूजा और उपवास का महत्व
बताया गया है।
🔹 शिवरात्रि
व्रत – भगवान शिव और पार्वती के विवाह का दिन, इस दिन रात्रि जागरण और अभिषेक का विशेष फल मिलता है।
📖 भविष्य पुराण के अनुसार, शिव व्रत करने से न केवल सांसारिक सुख-संपत्ति मिलती है, बल्कि मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
सप्तभिस्तुहरेद्भागम शेषं शिव वास उच्यते ।।
कैलाशे लभते सौख्यं गौर्या च सुख सम्पदः ।
शिव पूजा :जानने योग्य -
1-परिक्रमा - शिव लिंग परिक्रमा कभी नहीं लगाना चाहिए। जिस और और योनि होती है उसका उल्लंघन करना वर्जित है। इसलिए शिव मंदिर की पूर्ण परिक्रमा शास्त्रो मे निषिद्ध है। अर्ध प्रदिक्षिणा करना चाहिए। अर्थात आधी से अधिक नहीं करे। बारबार आधी भी नहीं करे।
2-बिल्व पत्र नहीं तोड़े /तोड़ना वर्जित –
तोड़ना वर्जित – दिन सोमवार ;तिथि-चतुर्थी ,नवमी, चतुर्दशी अमावस्या ;संक्रांति।
बिल्ब पत्र बासी नहीं माने जाते। निषिद्ध दिन पूर्व तोड़े'हुए या अर्पित बिल्ब पत्र भी पुन जल से धोकर चढ़ाये जा सकते हैं।
3-पुष्प तोड़ने तोड़ने एवं अर्पित करने की विधि –
पूर्ण विकसित सुंगधित पुष्प ( कमल पुष्प के अतिरिक्त अन्य किसी पुष्प कली वर्जित टूटी या विखरी पंखुरी का पुष्प भीनिषिद्ध है। )ही चढाने योग्य है।
*- पुष्प जिस प्रकार से पेड़ पर लगा हो उस प्रकार अर्पित करे।
* पुष्प तोड़ते समय दाहिने हाथ .का प्रयोग करे।
पुष्प तोड़ते समय पुष्प से तर्जनी (अंगूठे के पास की ऊँगली का ) स्पर्श नहीं होना चाहिए।
*वर्जित पुष्प -केवड़ा बकुल कपास सेमल केतकी कांड जूही शिरीष जूही दोपहरिया सुगन्धहीन पुष्प।
4-पूजा उपयोगी पत्ते -चिचड़े भंगरैया खैर शमी दूर्वा कुश दोना तुलसी विल्व।
5- कब' नहीं तोड़े -तुलसी पत्र /दल बासी नहीं माने जाते। बाएं हाथ या कपड़े पर नहीं रखे। रविवार मंगलवार शुक्रवार द्वादशी अमावस्यापूर्णिमा संक्रांति सायं काल वैधृति एवं व्यतिपात योग मे नहीं तोड़े। अतः रखे हुए तुलसी पत्र या स्वयं गिरे हुए तुलसी पत्र अर्पित किये जा सकते हैं।
6-त्रिपुण्ड – शिव पूजा के पूर्व त्रिपुंड लगाना आवश्यक ,
(चन्दन या भस्म का लगाना चाहिये)-
शिव जी को लगाने के बाद बचे हुए चन्दन या भस्म से त्रिपुण्ड लगाएं।
प्रातः-जल मिलाकर त्रिपुण्ड लगाएं।
दोपहर में बिना जल मिलाये त्रिपुण्ड लगाएं।
सायंकाल -चंदन मिलाकर सूखा चन्दन या भस्म लगाना चाहिए।
7- त्रिपुण्ड लगाने की'विधि -अंगूठे से भ्रू मध्य से ऊपर की और लगाएं। इसके बाद मध्यमा एवं अनामिका मिलाकर माथे पर बाएं से दाहिने भस्म/चन्दन लगाएं फिर अगुठे से दाहिने से बाएं (तीसरी रेखा )भस्म/चन्दन लगाएं।
8- रूद्र मंडल बनाकर उसपर ताम्बे का जल कलश रखें।
बत्ती श्वेत रंग की हो उत्तर की और /उर्धव मुखी हो। ।
पूजा का समय -श्रेष्ठ रात्रि -उत्तम सायं काल है। तिथि कृष्ण पक्ष अमावस्या अष्टमी हैं।
9-पूजा सामग्री कहाँ रखे/कैसे रखे –
अपने वाई ओर सुंगधित जल कलश घंटी धूप तैल का दीपक रखे दाहिनी ओर घी का दीपक चावल या जल भरा शंख रखे। सामने कुमकुम चन्दन कपूर के साथ घिसा हुआ परन्तु रखे ताम्बे के पात्र मे चन्दन नहीं रखे।
यह बहुत विस्तृत और मूल्यवान जानकारी है
शिव पूजा और शिव स्तोत्रों के बारे में।
यहाँ शिव पूजा की विधि को एक व्यवस्थित और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया गया है:
शिव पूजा विधि एवं नियम
1. शिवलिंग की परिक्रमा
🔹 शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा वर्जित है।
🔹 केवल अर्ध-परिक्रमा (आधी से अधिक नहीं) करें।
🔹 बार-बार अर्ध-परिक्रमा करना भी निषिद्ध है।
2. बिल्व पत्र (बेल पत्र) चढ़ाने के नियम
📌 किन दिनों में बेल पत्र नहीं तोड़ना चाहिए?
🔹 सोमवार, चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, संक्रांति।
📌 बासी बेल पत्र
🔹 बेल पत्र कभी भी बासी नहीं होते।
🔹 निषिद्ध दिनों में पहले से तोड़े गए या अर्पित बेल पत्र को पुनः जल से धोकर चढ़ाया जा सकता है।
3. पुष्प चढ़ाने की विधि
📌पुष्प अर्पित करें?
✔ पूर्ण विकसित, सुगंधित पुष्प चढ़ाएं।
✔ पुष्प उसी रूप में अर्पित करें जैसे वह पेड़ पर था।
✔ पुष्प तोड़ते समय दाहिने हाथ का प्रयोग करें।
✔ पुष्प तोड़ते समय तर्जनी अंगुली (Index Finger) का स्पर्श वर्जित है।
📌 वर्जित पुष्प:
❌ केवड़ा, बकुल, कपास, सेमल, केतकी, कांड, जूही, शिरीष, सुगंधहीन पुष्प।
4. पूजा में उपयोगी पत्ते
✔ चिचड़ा, भंगरैया, खैर, शमी, दूर्वा, कुश, तुलसी, बेल पत्र।
📌 तुलसी पत्र चढ़ाने के नियम
🔹 तुलसी पत्र बासी नहीं होते।
🔹 इन्हें रविवार, मंगलवार, शुक्रवार, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, सायंकाल, वैधृति एवं व्यतिपात योग में नहीं तोड़ना चाहिए।
🔹 गिरे हुए तुलसी पत्र अर्पित किए जा सकते हैं।
5. त्रिपुंड धारण विधि
🔹 शिव पूजा से पहले त्रिपुंड (भस्म/चंदन) लगाना आवश्यक है।
🔹 तीन समय त्रिपुंड लगाने के नियम:
✔ प्रातः: जल मिलाकर लगाएं।
✔ दोपहर: बिना जल मिलाए लगाएं।
✔ सायंकाल: सूखा चंदन/भस्म लगाएं।
📌 त्रिपुंड लगाने की विधि
1️⃣ अंगूठे से भ्रूमध्य (माथे के बीच) पर ऊपर की ओर लगाएं।
2️⃣ मध्यमा एवं अनामिका मिलाकर बाएँ से दाएँ दूसरी रेखा लगाएं।
3️⃣ अंगूठे से दाएँ से बाएँ तीसरी रेखा लगाएं।
6. शिवलिंग पूजन एवं विभिन्न धातुओं के शिवलिंग का महत्व
💠 धातु अनुसार शिवलिंग पूजन के फल:
✔ लोहे का शिवलिंग: शनि बाधा से सुरक्षा।
✔ तांबे का शिवलिंग: पराजय से बचाव।
✔ चाँदी का शिवलिंग: धन-धान्य में वृद्धि।
✔ स्वर्ण (सोने) का शिवलिंग: संपत्ति और गरिमा प्राप्ति।
✔ पीतल का शिवलिंग: गरीबी का नाश।
✔ नर्मदा शिवलिंग: राजसी वैभव एवं बाधा निवारण।
✔ मोती का शिवलिंग: विवाह बाधा दूर एवं सौभाग्य वृद्धि।
✔ स्फटिक का शिवलिंग: धनलक्ष्मी प्राप्ति।
✔ पारे का शिवलिंग: समस्त कामनाओं की पूर्ति एवं मोक्ष प्राप्ति।
7. अभिषेक सामग्री एवं उनके लाभ
📌 किस पदार्थ से अभिषेक करने से क्या फल प्राप्त होता है?
✔ दूध: धन और यश की प्राप्ति।
✔ गाय का घी: आयु वृद्धि एवं अकाल मृत्यु से सुरक्षा।
✔ सरसों का तेल: कष्टों का नाश एवं शत्रु संहार।
✔ तिल का तेल: राहु दोष नाशक।
✔ मूँगफली तेल + हल्दी: गुरु ग्रह दोष नाशक।
✔ महुए का तेल: सुख-सौभाग्य की वृद्धि।
✔ शहद: मकान-भवन निर्माण में सफलता।
✔ गाय का कच्चा दूध + पानी: शारीरिक कष्टों में कमी।
8. शिव पंचाक्षर स्तोत्रम् (शिव कृपा हेतु)
10. शिव पूजा के विशेष दिन एवं सामग्री रखने के नियम
📌 पूजा का उत्तम समय:
✔ रात्रि काल श्रेष्ठ है।
✔ कृष्ण पक्ष, अमावस्या, अष्टमी तिथि शुभ होती है।
📌 पूजा सामग्री कहाँ रखें?
✔ बाएँ ओर रखें: सुगंधित जल, कलश, घंटी, धूप, तेल का दीपक।
✔ दाएँ ओर रखें: घी का दीपक, चावल, जल भरा शंख।
✔ सामने रखें: कुमकुम, चंदन, कपूर।
✔ तांबे के पात्र में चंदन न रखें।
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📜 मंत्र: ॐ नमः शिवाय | ॐ महादेवाय नमः |
. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ -
-हम भगवान शिव की पूजते हैं, तीन नेत्र हैं, सुगंधित हैं और हमारा पोषण करते
हैं। जैसे फल
शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो
जाएं।
✨ महत्व: मासिक शिवरात्रि भगवान शिव की आराधना का विशेष दिन है, जो मोक्ष, सुख-समृद्धि और पापों के नाश का अवसर प्रदान करता है।
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🔱 शिव पंचाक्षर स्तोत्र एवं औघड़ मंत्र संग्रह 🔱
🔹 1. शिव पंचाक्षर स्तोत्रम् (शिव कृपा हेतु) 🔹
📜 मूल मंत्र:
. मृत-संजीवनी मन्त्र-Yajurved-Rudra Adhyay
ॐ मृत्युंजय महादेव त्राहि मां शरणागतम ,जन्म मृत्यु जरा व्याधि पीड़ितं कर्म बंधनः||
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् '
🔱 त्र्यंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला (कर्म कारक), तीनों कालों में हमारी रक्षा करने वाले भगवान;
अम्बक शब्द का अर्थ पिता भी है, ,तीनों लोकों के पिता रूप में ईश्वर के लिए प्रयुक्त।
🕉️ यजामहे = हम पूजते ,,सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्धेय।
🌿 सुगंधिम = मीठी महक वाला, सुगन्धित (कर्म कारक)।
🌱 पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता।
🌞 वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित -, आनंदित और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली।
🍈 उर्वारुकम् = ककड़ी (कर्मकारक)।
⚖️ इव = जैसे, इस तरह।
🔗 बन्धनात् = तना (लौकी का);
⚰️ मृत्योः = मृत्यु से।
🕊️ मुक्षीय = हमें मुक्ति दें।
🚫 मा = नहीं वंचित हों। 🌀 अमृतात् = अमरता, मोक्ष के आनंद ।
🌿 लाभ: रोग-निवारण, मनोकामनाओं की पूर्ति, आर्थिक वृद्धि, और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति।
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🔱 त्र्यम्बक मंत्र एवं मार्कण्डेय ऋषि की कथा 🔱
-बड़ी तपस्या
से ऋषि मृकण्ड के पुत्र हुआ, किंतु ज्योतिषियों ने बताया कि यह
बालक अल्पायु (केवल 12 वर्ष)
का है। मृकण्ड ऋषि ने अपनी पत्नी को सांत्वना दी कि भगवान शिव
भाग्यलिपि को परिवर्तित करने में सक्षम हैं।
बालक मार्कण्डेय
को शिव-मंत्र दीक्षा दी गई और महादेव की आराधना का निर्देश मिला।
बारहवें वर्ष में, मार्कण्डेय महादेव मंदिर (ग्राम कैथी, वाराणसी) में
महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर रहे थे—
*त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव
बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥**
समय पूरा हुआ, यमदूत आए, किंतु शिव आराधना के प्रभाव से लौट
गए। यमराज स्वयं मार्कण्डेय को लेने पहुंचे, लेकिन
भयभीत बालक शिवलिंग से लिपट गया।
तभी शिवलिंग
से तेजोमय त्रिनेत्रधारी भगवान शिव प्रकट हुए। उन्होंने त्रिशूल उठाकर
यमराज को रोका
और कहा—
"यह मेरा भक्त है, इसे मैं अमरत्व
प्रदान करता हूँ!"
यमराज हाथ जोड़कर नतमस्तक हो गए और वापस लौट गए।
मार्कण्डेयऋषि ने शिव की स्तुति की—उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।**
🔱 मंत्र: ॐ नमः 🕉️ 12 ज्योतिर्लिंगों के क्रमानुसार नाम –
सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथ, त्रंबकेश्वर, केदारनाथ और घृष्णेश्वर।
1 उपाय: व्रत, रुद्राभिषेक व महामृत्युंजय जाप अत्यंत फलदायी होते हैं।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति
सौराष्ट्रे
सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां
महाकालमोंकारं ममलेश्वरम् ॥1॥
परल्यां
वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे
तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥
वारणस्यां
तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।
हिमालये तु
केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥3॥
एतानि
ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्त जन्म
कृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥4॥
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दुर्लभ औघड शिव शाबर मंत्र- (सर्व आपत्ति -विपत्ति निवारक शीघ्र प्रभावी )-
ॐ नमो आदेश गुरु जी को आदेश धरती माता को आदेश पौन पानी को आदेश औघड़ फकर को आदेश हे महेश ज्ट्टा जूट ज्ञान की भभूत आओ लहर में शिव योगी अवधूत घुंगरू डोरियाँ मणि शैंकरी तड़ाम जंजीर पैर पोसा डंड का वाजू हाथ का लोह लंगर ज्ञान का पूरा पंथ सूरा सेली सिंगी नाद मुँदरा सिद्धक संधूरी दिल दरिया के बीच में औघड़ फकर बोलिये औघड़ फकर फूल माला बनाई बाबा आदम माँ हवा करो रक्षा रखना बाल बाल सँभाल शिव गोरख की माया नील गगन से उतरी छाया भिक्षा दे नागर सागर की बेटी औघड़ फकर बचन सुनाया आदेश आदेश आदेश औघड़ दानी शिव को आदेश।
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श्री शिव पंचाक्षरस्तोत्रम् (बुद्धि विधां पठनीय विद्या - दायिनी शिव कृपा स्त्रोत -
ॐ नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मान्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै न काराय नमः शिवाय।
मन्दाकिनी सलिल चन्दन चर्चिताय नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दार पुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै म काराय नमः शिवाय।
शिवाय गौरी वदनाब्ज वृन्द सूर्याय दक्षाध्वर नाशकाय
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शि काराय नमः शिवाय।
वसिष्ठ कुम्भोद्वव गौतमार्य मुनीन्द रदेवार्चित शेखराय
चन्द्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नमः शिवाय।
यक्षस्वरुपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै य काराय नमः शिवाय।
सुनने या पढने के लाभ..
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिसंनिधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।
इति श्रीमच्छडराचार्यविरचितं शिव पंचाक्षर स्तोत्रं सम्पूर्णम।
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1 बाणासुरकृतं शिवस्तोत्रम्
(कीर्ति सर्वतीर्था बुद्धि विधां पुत्र दुर्लभ शिव स्तुति - अरुणेश मिश्रा)
इदं च कवचं प्रोक्तं स्तोत्रं च श्रृणु शौनक। मन्त्रराजः कल्पतरुर्वसिष्ठो दतवान् पुरा।
ऊँ नमः शिवाय।
वन्दे सुराणां सारं च सुरेश नील लोहितम। योगीश्वरं योगबीज योगिनां च गुरोर्गुरुम।
ज्ञानानंद ज्ञानरुप ज्ञानबीजं सनातनम्। तपसां फलदातारं दातारं सर्व सम्पदाम।
तपोरुपं तपोबीजं तपो धन धनं बरम। वरं वरेण्यं वरद मीड सिद्ध गणैर्वरैः।
कारण भक्ति मुक्तीनां नर कर्ण वतारणम्। आशुतोषं प्रसत्रास्यं करुणामय सागरम्।
हिम चन्दन कुन्देन्दु कुदाम्भोज संनिभम। ब्रहाज्योतिः स्वरुप च भक्तानुग्रह विग्रहम।
विषयाणा विभेदेन विभ्रन्तं बहु रुपकम्। जल रुपमग्रिरुपमाकाशरुपमीश्वरम
वायुरुपं चन्द्ररुपं सूर्यरुप महत्प्रभुम। आत्मनः स्वपदं दातुं समर्थ वलीलया।
भक्त जीवनमीशं च भक्तानुग्रह कातरम। वेदा न शक्ता यं स्तोतु किमह स्तौमि त प्रभुम।
अपरिच्छित्रमीशानमहो वाड्मनसो परम व्याघ्र चर्माम्बर धरं वृषभस्थं दिगम्बरम।।
त्रिशूल पदिृश धरं सस्मितं चद्रशेखरम। इत्युक्त्वा स्तवराजेन नित्यं बाणः सुसंयतः।
प्राणमच्छकरं भक्त्या दुर्वासाश्र मुनीश्रवरः ।इदं दतं वसिष्ठेन गन्धर्वाय पुरा मुनेः।
सुनने या पढने के लाभ..
कथितं च महास्तोत्रं शूलिन परमादभुतम ।इदं स्तोत्रं महापुण्यं पठेद भक्त्या च यो नरः ।
स्नानस्य सर्वतीर्थानां फलमाप्रोति निश्चितम। अपुत्रो लभते पुत्र वर्षमेकं श्रृणोति यः ।
संयतर हविष्याशी प्रणम्य शंकरं गुरुम।
गलत्कुष्ठी महाशूली वर्षमेकं श्रृणोति यः। अवश्यं मुच्यते रोगाद व्यास वाक्य मिति श्रुतम।
कारागारेअपि बद्धो यो नैव प्राप्रोति निवृतिम। स्तोत्रं श्रुत्वा मासमेकं मुच्यते बन्धनाद धु्रवम।
भ्रष्टराज्यो लभेद रायं भक्त्या मासं श्रृणोति यः । मासं श्रुत्वा संयतश्र लभेद भ्रष्टधनो धनम।
यक्ष्मग्रसतो वर्षमेकमास्तिको यः श्रृणोति चेत। निश्चित मुच्यते रोगाच्छकरस्य प्रसादतः ।
यः श्रृणोति सदा भक्त्या स्तवराजमिम द्विज। तस्यासाधयं त्रिभुवने नास्ति किचिच्च शौनक।
कदाचिद बन्धुविच्छेदो न भवेत तस्य भारते। अचल परमैशर्लभते नात्र संशयतः ।
सुसंयतो अतिभक्त्या च मासमेकं श्रृणोति यः । अभार्यो लभते भार्या सुविनीतां सती वराम।
महामूखशर्च दुर्मेधो मासमकं श्रृणोति यः । बुद्धि विधां च लभते गुरुपदेशामात्रतः।
कर्मदुःखी दरिद्रश्च मासं भक्त्या श्रृणोति यः।धु्रवं वितं भवेत तस्य शंकरस्य प्रसादतः ।
इहलोके सुखं भुक्त्वा कृत्वा कीर्ति सुदुर्लभाम। नानाप्रकारधर्म च यात्यन्ते शंकरालयम ।
पार्षदप्रवरो भूत्वा सेवते तत्र शंकरम्। यः श्रृणोति त्रिसंध्यं च नित्यं स्तोत्रमनुतमम।–
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असितकृतं शिवस्तोत्रम्
-सुशीलभार्या धन विधां.के लिए दैनिक पठनीय)
जगदगुरो नमस्तुभ्यं शिवाय शिवदाय च। योगीन्द्राणां च योगीन्द्र गुरुणां गुरवे नमः।
मृत्योर्मृत्यु स्वरुपेण मृत्यु संसार खंडन। मृत्योरीश मृत्युंजय मृत्युबीज नमोस्तु ते।
काल रुपं कलयताम काल कालेश कारण। कालादतीत कालस्य काल काल नमोस्तु ते।
गुणातीत गुणाधार गुणबीज गुणात्मक। गुणीश गुणिना बीज गुणिना गुरवे नमः।
ब्रम्ह स्वरुप ब्रम्हज्ञ ब्रम्ह भावन तत्पर। ब्रम्ह बीज स्वरुपेण ब्रम्हबीज नमोस्तु ते।
सुनने या पढने के लाभ..
इति स्तुत्वा शिवं नत्वा पुरस्तस्थौ मुनीश्वरः। दीनवत् साश्रुनेत्रश्च पुलकाचित विग्रहः।
असितेन कृतं स्तोत्रं भक्ति युक्तश्च यः पठेत। वर्षमेकं हविष्याशी शंकरस्य महात्मनः।
स लभेद वैष्णवं पुत्रं ज्ञानिंन चिरजविनम। भवेद धनाढयो दुःखी च मूको भवति पण्डितः ।
अभार्यो लभते भार्या सुशीलां च पतिव्रताम। इहलोके सुख भुक्त्वा यात्यन्ते शिवसंनिधतम।
शिवाय
ॐ महादेवाय नमः
🙏 भगवान शिव ने मार्कण्डेय कोअमरत्व प्रदान कर दिया, और तभी से महामृत्युंजय मंत्र मृत्यु भय से मुक्ति
देने वाला अत्यंत
प्रभावशाली मंत्र है।
मंत्र के लाभ
✅ मृत्यु भय का नाश
– यह मंत्र मृत्यु केभय से रक्षा करता है।
✅ दीर्घायु एवं आरोग्य
–
निरोगी जीवन और लंबी आयु प्रदान करता है।
✅ पापों का नाश एवं मोक्ष प्राप्ति –
इस मंत्र के जाप सेजन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते
हैं।
✅ शत्रु बाधा एवं अनिष्ट निवारण –
यह मंत्र सुरक्षाकवच की तरह कार्य करता है।
✅ शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति –
मानसिक शांति औरआत्मिक उन्नति में सहायक।
कलौकलिमल ध्वंयस
सर्वपाप हरं शिवम्।
येर्चयन्ति नरा नित्यं तेपिवन्द्या यथा शिवम्॥
स्वयं
यजनित चद्देव मुत्तेमा स्द्गरात्मवजैः।
मध्यचमा ये भवेद मृत्यैतरधमा साधन क्रिया॥
देव
पूजा विहीनो यः स नरा नरकं व्रजेत।
यदा कथंचिद् देवार्चा विधेया श्रद्धायान्वित॥
श्लोकों का अर्थ:
कलौ कलिमल ध्वंयस सर्वपाप हरं शिवम्।
👉 कलियुग के समस्त दोषों
को नष्ट करने वाले,
सभी पापों को हरने वाले शिव हैं।
येर्चयन्ति नरा नित्यं तेपिवन्द्या यथा शिवम्॥
👉 जो मनुष्य नियमपूर्वक शिव की
आराधना करते हैं, वे स्वयं शिव के समान पूजनीय बन
जाते हैं।
स्वयं यजनित चद्देव मुत्तेमा स्द्गरात्मवजैः।
👉 जो व्यक्ति स्वयं शिव की पूजा करता
है, वह समस्त देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त करता
है और सद्गति को प्राप्त होता है।
मध्यचमा
ये भवेद मृत्यैतरधमा साधन क्रिया॥
👉 जो मध्य मार्ग को अपनाकर साधना
करता है, वह मृत्यु से परे, अर्थात
मोक्ष को प्राप्त करता है।
देव पूजा
विहीनो यः स नरा नरकं व्रजेत।
👉 जो मनुष्य देव पूजा से विमुख रहता
है, वह नरक में जाने के लिए बाध्य होता है।
यदा
कथंचिद् देवार्चा विधेया
श्रद्धायान्वित॥
👉 इसलिए किसी भी परिस्थिति में
श्रद्धा सहित देव पूजा अवश्य करनी चाहिए।
🔱 हर हर महादेव! 🙏
🔱 निष्कर्ष:चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव
का अभिषेक सर्वश्रेष्ठ और अत्यंत फलदायी होता है, विशेषकर जल, दूध, पंचामृत व
बेलपत्र से।
🔱 हर हर महादेव!
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