शिव परिक्रमा /शिवलिंग की परिक्रमा, सही परिक्रमा विधि? महाशिवरात्रि- रात्रि में पूजा हजार गुना फलदायी(🔱 -ज्योतिष शिरोमणि – वी.के. तिवारी 🔱9424446706)


शिव परिक्रमा /शिवलिंग की परिक्रमा, सही परिक्रमा विधि? महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि भगवान शिव की उपासना का प्रमुख पर्व है। इसके पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कारण बताए गए हैं—
शिवलिंग का प्राकट्य – स्कंद पुराण के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे।
कल्याणकारी रात्रि – महाशिवरात्रि को शिव की साधना, तपस्या और भक्ति की सर्वोत्तम रात्रि कहा गया है, जिसमें भक्त व्रत, रुद्राभिषेक और मंत्र जाप कर शिव कृपा प्राप्त करते हैं।
शिव मूर्ति एवं शिवलिंग की परिक्रमा विधि
शिव की परिक्रमा करने का विशेष नियम है, जिसे शास्त्रों में बताया गया है—
शिव मूर्ति की परिक्रमा – शिव की प्रतिमा की परिक्रमा पूरी तरह की जा सकती है।
शिवलिंग की परिक्रमा अधूरी क्यों की जाती है?
शिवलिंग की परिक्रमा अर्धचंद्राकार (अधूरी) ही की जाती है।
इसका कारण यह है कि शिवलिंग पर जलधारा गिरती है और वह जल यज्ञकुंड या विशेष जल निकासी के स्थान से होकर बहता है।
जल निकासी स्थान (सोमसूत्र) को पार करना वर्जित माना गया है।
शिवलिंग की परिक्रमा की सही विधि (प्रामाणिक ग्रंथ अनुसार)
1. स्कंद पुराण में परिक्रमा का वर्णन
स्कंद पुराण हिंदू धर्म का सबसे विस्तृत पुराण है, जिसमें शिवलिंग पूजन और परिक्रमा के नियम विस्तार से बताए गए हैं।
- परिक्रमा की विधि – स्कंद पुराण में कहा गया है कि शिवलिंग की परिक्रमा करते समय भक्त को सोमसूत्र (जल निकासी स्थान) को पार नहीं करना चाहिए।
- परिक्रमा का महत्व – इसमें बताया गया है कि शिवलिंग की अर्ध परिक्रमा करने से भक्त को पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति संभव होती है।
- परिक्रमा के दौरान जप – परिक्रमा करते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करने का विधान बताया गया है।
- तीर्थ स्थानों पर परिक्रमा – स्कंद पुराण में बताया गया है कि ज्योतिर्लिंगों की परिक्रमा करने से सहस्र गोदान के बराबर फल प्राप्त होता है।
2. लिंग पुराण में परिक्रमा का उल्लेख
लिंग पुराण शिवलिंग के उद्भव, उसके स्वरूप और पूजन विधियों पर केंद्रित ग्रंथ है।
- अर्धचंद्राकार परिक्रमा का नियम – इसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि शिवलिंग की परिक्रमा आधी ही करनी चाहिए, पूरी नहीं।
- परिक्रमा के पीछे का कारण – शिवलिंग पर जलधारा और सोमसूत्र का प्रवाह एक दिव्य ऊर्जा क्षेत्र बनाता है, जिसे पार करने से पूजा का संचित पुण्य कम हो सकता है।
- परिक्रमा की अनिवार्यता – यह भी बताया गया है कि शिवलिंग की परिक्रमा करने से व्यक्ति के सांसारिक और आध्यात्मिक दोष समाप्त हो जाते हैं।
3. शिव पुराण में परिक्रमा का उल्लेख
शिव पुराण में शिव उपासना की संपूर्ण विधि बताई गई है, जिसमें परिक्रमा भी एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना गया है।
- शिवलिंग परिक्रमा की सीमा – शिव पुराण में कहा गया है कि परिक्रमा करते समय सोमसूत्र (जल निकासी भाग) को पार नहीं करना चाहिए।
- परिक्रमा का आध्यात्मिक लाभ – परिक्रमा करने से व्यक्ति को अपने कर्मों के दोषों से मुक्ति मिलती है और उसे शिव कृपा प्राप्त होती है।
- परिक्रमा की प्रक्रिया – इसमें बताया गया है कि परिक्रमा बाईं ओर से प्रारंभ करके जलधारा स्थल से पहले रुककर दाईं ओर से लौटनी चाहिए।
- शिवलिंग परिक्रमा और पंचाक्षरी मंत्र – परिक्रमा करते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र जपने का निर्देश दिया गया है, जिससे परिक्रमा अधिक प्रभावशाली होती है।
4. गरुड़ पुराण में परिक्रमा से जुड़े नियम
गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद आत्मा की गति और धर्म-कर्म के नियमों के साथ परिक्रमा की महिमा का उल्लेख किया गया है।
- परिक्रमा से पापों का नाश – इसमें कहा गया है कि शिवलिंग की विधिपूर्वक अर्ध परिक्रमा करने से व्यक्ति के जन्म-जन्मांतर के पाप समाप्त हो जाते हैं।
–सही परिक्रमा विधि:
1- पहले शिवलिंग के बाईं ओर से परिक्रमा शुरू करें।
2- जब जल निकासी स्थल (सोमसूत्र) तक पहुंचें, तो वहीं रुकें।
पुनः वहीं से दाहिनी ओर से लौटकर परिक्रमा पूरी करें।
इस प्रकार अर्ध परिक्रमा (अर्धचंद्राकार) करनी चाहिए।
शिव परिक्रमा की विशेष विधि
- दि परिक्रमा के नियमों का उल्लंघन किया जाए, तो इसके विपरीत प्रभाव पड़ सकते हैं। अतः नियमों का पालन करना अनिवार्य बताया गया है।
- परिक्रमा और ऊर्जा संतुलन – गरुड़ पुराण के अनुसार, परिक्रमा करने से शरीर और मन की ऊर्जा संतुलित होती है और नकारात्मक प्रभाव समाप्त होते हैं।
संक्षिप्त निष्कर्ष
पुराण का नाम |
परिक्रमा से संबंधित वर्णन |
स्कंद पुराण |
शिवलिंग की अर्ध परिक्रमा का महत्व, सोमसूत्र पार न करने का नियम, परिक्रमा से मोक्ष प्राप्ति। |
लिंग पुराण |
परिक्रमा आधी करने का विधान, सोमसूत्र के ऊर्जा क्षेत्र को पार न करने की चेतावनी। |
शिव पुराण |
परिक्रमा की संपूर्ण विधि, पंचाक्षरी मंत्र का जप अनिवार्य, परिक्रमा से कर्मों का शुद्धिकरण। |
गरुड़ पुराण |
परिक्रमा से पाप नाश, त्रुटिपूर्ण परिक्रमा के दुष्प्रभाव, ऊर्जा संतुलन का महत्व। |
👉 निष्कर्ष: शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा वर्जित मानी गई है।
सभी पुराणों में अर्ध परिक्रमा करने का विधान बताया गया है, जिससे शिव कृपा प्राप्त होती है और आध्यात्मिक उन्नति संभव होती है।
शिवलिंग
की परिक्रमा अर्धचंद्राकार (अधूरी) की जाती है। इसके पीछे गूढ़ कारण हैं—
🔸 सोमसूत्र (जल निकासी स्थान) को पार न करें – शिवलिंग पर
चढ़ाया गया जल और अन्य पूजन सामग्री सोमसूत्र से बाहर प्रवाहित होती है। इसे पार
करना वर्जित माना जाता है क्योंकि यह ऊर्जा संतुलन के विपरीत कार्य कर सकता है।
🔸 बाईं ओर से शुरू करें – भक्त को
शिवलिंग की परिक्रमा बाईं ओर से शुरू करनी चाहिए और जल निकासी स्थान से पहले रुककर
पुनः दाहिनी ओर से लौटना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार, इस विधि से शिव कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और परिक्रमा दोष नहीं लगता।
परिक्रमा का महत्व एवं लाभ
सनातन धर्म केवल आस्था नहीं, बल्कि एक उच्च कोटि का विज्ञान भी है। हमारे ऋषियों ने इस विज्ञान को जनसामान्य के लिए धर्म के रूप में निर्देशित किया, ताकि अशुभ प्रभावों को रोका जा सके और व्यक्ति को अदृश्य कुप्रभावों से सुरक्षा प्राप्त हो। परिक्रमा भी इसी वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है।
परिक्रमा क्यों करनी चाहिए?
परिक्रमा किसी भी देवी-देवता की पूजा का अभिन्न कर्म है। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि ऊर्जा संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति का एक माध्यम है।
- ऊर्जा प्रवाह में संतुलन – मंदिरों में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियाँ विशेष विधि से प्रतिष्ठित की जाती हैं, जिससे वहाँ एक सकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र बनता है। परिक्रमा के दौरान व्यक्ति इस ऊर्जा क्षेत्र से गुजरकर सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करता है।
- सकारात्मक तरंगों का प्रभाव – परिक्रमा से शरीर और मन में कंपन उत्पन्न होते हैं, जो व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक रूप से शुद्ध करने में सहायक होते हैं।
- सदैव गतिशीलता का प्रतीक – परिक्रमा यह दर्शाती है कि भक्त सदैव भगवान के चारों ओर घूमते हुए उनकी भक्ति में लीन रहता है। यह भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।
- कर्म और फल सिद्धांत – परिक्रमा जीवन के चक्र और पुनर्जन्म की अवधारणा को भी दर्शाती है, जहाँ हर कर्म का फल मिलता है और भक्त बार-बार ईश्वर की शरण में जाता है।
- नकारात्मक ऊर्जा का नाश – वैज्ञानिक दृष्टि से परिक्रमा शरीर के चक्रों (चक्र सिस्टम) को संतुलित करने में मदद करती है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
परिक्रमा के लाभ
✅ मानसिक
शांति – परिक्रमा से
मन शांत होता है और भक्त को आत्मिक आनंद मिलता है।
✅ शारीरिक लाभ – यह एक
प्रकार का योग है, जिससे शरीर
स्वस्थ रहता है और रक्त संचार बेहतर होता है।
✅ आध्यात्मिक
शक्ति – परिक्रमा
करने से व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है, जिससे उसकी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।
✅ कर्मशुद्धि – यह पिछले
जन्मों के और वर्तमान जीवन के अशुभ कर्मों के प्रभाव को कम करने में सहायक होती
है।
✅ ईश्वर से
जुड़ाव – परिक्रमा से
व्यक्ति का ध्यान और भक्ति भगवान पर केंद्रित होती है, जिससे वह
ईश्वर से निकटता अनुभव करता है।
निष्कर्ष
परिक्रमा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और वैज्ञानिक प्रक्रिया है। यह भक्त के शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करके उसे सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है। शिवलिंग की विशेष परिक्रमा विधि शिव तत्व को समझने और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक माध्यम है।
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महाशिवरात्रि को "महारात्रि" क्यों कहते हैं?
शास्त्रों के अनुसार, "महारात्रि" का तात्पर्य एक ऐसी दिव्य रात्रि से है जो आत्मज्ञान, शिवतत्व और मोक्ष प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
1. शिवमहापुराण (विद्येश्वर संहिता, अध्याय 6, श्लोक 10-13)
"माघकृष्णचतुर्दश्यां
निशीथे शंकरो विभुः।
ज्योतिर्लिंगमयं
भूत्वा प्रादुर्बभूव लीलया।।"
🔹 अर्थ: महाशिवरात्रि की अर्धरात्रि में भगवान शिव स्वयं ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इस कारण इस रात्रि को "महा" (महान) रात्रि कहा जाता है।
2. योग और तंत्र शास्त्रों में महारात्रि का महत्व
🔹 योग और तंत्र शास्त्रों के अनुसार, महाशिवरात्रि
की रात्रि में ब्रह्मांडीय ऊर्जा (शिवतत्व) विशेष रूप से सक्रिय होती है और यह ध्यान, साधना और
आत्मज्ञान के लिए सर्वोत्तम समय होता है।
🔹 इस रात्रि को "कालातीत रात्रि" भी कहा जाता
है क्योंकि इस समय काल (समय) का प्रभाव न्यूनतम हो जाता है और साधक शिव
के असीम स्वरूप में लीन हो सकते हैं।
3. भगवद गीता (अध्याय 14, श्लोक 27)
"ब्रह्मणो हि
प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च।
शाश्वतस्य च
धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च।।"
🔹 अर्थ: भगवान शिव स्वयं परम ब्रह्म हैं, जो अमरत्व और अनंत सुख के अधिष्ठाता हैं। महाशिवरात्रि की रात्रि शिव में लय होने का श्रेष्ठ अवसर प्रदान करती है।
4. स्कंद पुराण (काशी खंड, अध्याय 16, श्लोक 18-20)
"प्रदोषे
पूजितो देवः शिवः संसारतारणः।
सदा
सर्वप्रयत्नेन पूज्यते च विशेषतः।।"
🔹 अर्थ: प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा संसार से तारने वाली होती है, और विशेषकर महाशिवरात्रि की रात्रि में यह पूजा हजार गुना फलदायी होती है।--------
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