1. पर्व-स्कंद षष्ठी कार्तिकेय,
(स्कंद, सुब्रमण्य मुरुगन, षण्मुख, सरवण, कार्तिकेय, गुहा और वेलायुथा है।)
कुमार कार्तिकेय का जन्म- कार्तिकेय के जन्म का वर्णन पुराणों में मिलता है।कार्तिकेय जी भगवान शिव और भगवती पार्वती के पुत्र हैं ।
- भगवान कार्तिकेय छ: बालकों के रूप में जन्म. कृतिका (सप्त ऋषि की पत्निया) ने देखभाल की थी, इसीलिए उन्हें कार्तिकेय धातृ भी कहते हैं।
- देवताओं को असुरों द्वारा परेशान किया जा रहा था, और भगवान शिव के पुत्र से ही असुरों का नाश होगा।
- भगवान शिव की समाधि और कार्तिकेय का जन्म
- शिव समाधि में लीन थे, जिससे देवताओं की शक्तियां लुप्त हो गईं।
- कामदेव ने शिव का ध्यान भंग किया, जिसके बाद शिव ने पार्वती से विवाह किया।
- भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह से कार्तिकेय का जन्म हुआ।
- स्कंद षष्ठी का महत्व
- इस दिन पूजा करने से संतान सुख प्राप्त होता है और संतान के संकट दूर होते हैं।
- कार्तिकेय की पूजा से व्यक्ति के काम बन जाते हैं।
- 1-सिंहासनगता
नित्यं पद्माश्रित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंद माता यशस्विनी॥
2-भगवान सुब्रमण्य महामंत्र -
ॐ नमो भगवते सुब्रमण्याय शन्मुघाय महात्मने
सर्व चतुर् संहाराय,महाबल पराक्रमाय वीराय सूर्याय
भक्तपरि-बलानाय धन-धान्य-प्रभलाय थानेश्वराय मम सर्व भीषदम्
प्रयाच-चा स्वाहा
2. ॐ देवी स्कंदमातायै नमः॥
- स्कंद षष्ठी के दिन पूजा विधि
- षष्ठी स्त्रोत का पाठ: इससे अजय संतान प्राप्त होती है।
- कार्तिकेय के नामों का जाप: संतान की समस्याओं का समाधान होता है।
- पौराणिक कथा
- राक्षस तारकासुर के आतंक से मुक्ति के लिए कार्तिकेय का जन्म हुआ।
- स्कंद षष्ठी के दिन कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध किया और देवताओं को मुक्ति दिलाई।
- स्कंद षष्ठी के उपाय:
- लाल चंदन चढ़ाना: संतान की कठिन परिस्थितियों से मुक्ति मिलती है।
- मंत्र उच्चारण: "ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा" का उच्चारण - कमलगट्टे की माला पर करें, इच्छित वर की प्राप्ति होती है।
- मयूर पूजा: संतान संकट से मुक्ति मिलती है।
- कमल पुष्प और सुदर्शन चक्र चढ़ाना: जिद्दी संतान सुधरती है।
- मोर पंख, बूंदी के लड्डू, केसर और शंख चढ़ाना: गलत संगत -बच्चे के लिए लाभकारी होता है।
- सिंहासन पर विराजमान श्री कार्तिकेय की पूजा – संस्कृत और हिंदी में सरल और संक्षिप्त अर्थ:==================================================
श्री कार्तिकेय अष्टकम
ॐ श्रीगणेशाय नमः
अगस्त्य उवाच-
नमोस्तु वृन्दारक वृन्द वन्द्यपादार विन्दाय सुधाकराय ।
षडाननायामित विक्रमाय गौरी हृदानन्द समुद्भवाय ॥ १ ॥
नमोस्तु तुभ्यं प्रणतार्ति हन्त्रे कर्त्रे समस्तस्य मनोरथानाम् ।
दात्रे रथानां परतारकस्य हन्त्रे प्रचण्डासुरतारकस्य ॥ २ ॥
अमूर्तमूर्ताय सहस्रमूर्तये गुणाय गण्याय परात्पराय ।
अपारपाराय परापराय नमोऽस्तु तुभ्यं शिखिवाहनाय ॥ ३ ॥
नमोस्तु ते ब्रह्मविदां वराय दिगम्बरायाम्बर संस्थिताय ।
हिरण्यवर्णाय हिरण्य बाहवे नमो हिरण्याय हिरण्य रेतसे ॥ ४ ॥
तपः स्वरूपाय तपोधनाय तपः फलानां प्रतिपादकाय ।
सदा कुमाराय हि मारमारिणे तृणी कृतैश्वर्य विरागिणे नमः ॥ ५ ॥
नमोस्तु तुभ्यं शर जन्मने विभो प्रभात सूर्यारुण दन्त पङ्क्तये ।
बालाय चाबाल पराक्रमाय षाण्मातुरायालमनातुराय ॥ ६ ॥
मीढुष्टमायोत्तरमीढुषे नमो नमो गणानां पतये गणाय ।
नमोऽस्तु ते जन्म जरातिगाय नमो विशाखाय सुशक्ति पाणये ॥ ७ ॥
सर्वस्य नाथस्य कुमारकाय क्रौञ्चारये तारकमारकाय ।
स्वाहेय गाङ्गेय च कार्तिकेय शैवेय तुभ्यं सततं नमोऽस्तु ॥ ८ ॥
॥ इति स्कान्दे काशी खण्डतः श्रीकार्तिकेयाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
संक्षेप में, स्कंद षष्ठी का पर्व संतान सुख, संकटों से मुक्ति और कार्यों में सफलता पाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
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