विनायक चतुर्थी – महत्व, कथा और लाभ 🙏
🔹 विनायक चतुर्थी क्या है?
विनायक चतुर्थी हर माह की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मनाई जाती है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है, जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि-प्रदाता माना जाता है। इस दिन गणेशजी की पूजा करने से समस्त कार्यों में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
🔹 क्यों मनाई जाती है?
- भगवान गणेश प्रथम पूज्य देवता हैं।
- इस दिन उनकी पूजा करने से बुद्धि, विद्या, सुख, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।
- विघ्नों और बाधाओं का नाश होता है।
📖 पौराणिक कथा (विनायक चतुर्थी व्रत कथा)
प्राचीन समय की बात है, एक बार महाराज श्रीकृष्ण पर मिथ्या चोरी का आरोप लगा। तब महर्षि नारद ने उन्हें विनायक चतुर्थी व्रत करने की सलाह दी। श्रीकृष्ण ने श्रद्धा से गणेश जी का पूजन और व्रत किया, जिससे उनका दोष समाप्त हो गया और वे निष्पाप सिद्ध हुए।
तब से माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी दोष समाप्त होते हैं और कार्य सिद्ध होते हैं।
🔹 विनायक चतुर्थी के लाभ
✅ कार्यों में सफलता और विघ्नों का नाश
✅ धन, बुद्धि और समृद्धि की प्राप्ति
✅ रोग-शोक और संकटों से मुक्ति
✅ संतान सुख और परिवार में खुशहाली
✅ मनोकामनाओं की पूर्ति
🔹 व्रत एवं पूजन विधि
- प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- गणेशजी की प्रतिमा स्थापित कर धूप, दीप, पुष्प, दूर्वा और मोदक अर्पित करें।
- ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करें।
- गणेश चालीसा और गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें।
- चंद्र दर्शन से बचें, क्योंकि चंद्रमा देखने से दोष लग सकता है।
👉 इस व्रत को करने से समस्त बाधाओं का नाश होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। 🙏✨
विनायक चतुर्थी का व्रत हर महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस तरह वर्ष में 24 चतुर्थी और प्रत्येक तीन वर्ष बाद अधिमास की मिलाकर 26 चतुर्थियां होती हैं।
विनायक चतुर्थी का क दिन भगवान भोलेनाथ स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए. महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया और घर में स्नान करते हुए अपने मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको सजीव किया गया.
पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम गणेश रखा. मां पार्वती ने बालक गणेश को स्नान करते जाते वक्त मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा.
माता पार्वती ने कहा कि जब तक में स्नान करके न आ जाऊं किसी को भी अंदर नहीं आने देना. भोगवती में स्नान कर जब श्रीगणेश अंदर आने लगे तो बाल स्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर रोक दिया. भगवान शिव के लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया.
गणेश द्वारा रोकने को उन्होंने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर वो घर के अंदर चले गए.
शिवजी जब घर के अंदर गए तो वह बहुत क्रोधित अवस्था में थे. ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वो नाराज हैं, इसलिए उन्होंने दो थालियों में भोजन परोसा औरउनसे भोजन करने का निवेदन किया. दो थालियां लगी देखकर शिवजी ने उनसे पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है?
तब शिवजी ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है. तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैने क्रोधित होने की वजह से धड़ से अलग कर दिया. इतना सुनकर पार्वती जी दुखी हो गई और विलाप करने लगी.
उन्होंने भोलेनाथ से पुत्र गणेश का सिर जोड़कर जीवित करने का आग्रह किया. तब महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर धड़ काटकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया.
अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुई. कहा जाता है कि जिस तरह शिव ने श्रीगणेश को नया जीवन दिया था, उसी तरह भगवान गणेश भी नया जीवन अर्थात आरम्भ के देवता माने जाते हैं.
🔱 भगवान गणेश जन्म कथा एवं नए कार्य वर्जित 🔱
एक दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत से भोगवती स्नान करने के लिए गए। उनके जाने के बाद मां पार्वती ने अपने मैल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डालकर उसे सजीव कर दिया। उन्होंने उस बालक को गणेश नाम दिया और आदेश दिया कि जब तक वह स्नान करके न आ जाएं, किसी को भी अंदर न आने दें।
जब शिवजी वापस लौटे, तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर रोक दिया। बार-बार कहने के बावजूद भी गणेश ने शिवजी को प्रवेश नहीं करने दिया। इससे शिवजी क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से गणेशजी का सिर काट दिया।
जब माता पार्वती ने यह देखा, तो वह अत्यंत दुखी हो गईं और विलाप करने लगीं। उन्होंने शिवजी से गणेश को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। तब शिवजी ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर गणेशजी के धड़ से जोड़ दिया। गणेशजी के फिर से जीवित होने पर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुईं।
🚫 नए कार्य वर्जित (नए कार्य आरंभ न करें)
जिस दिन यह घटना घटी, उस दिन चतुर्थी तिथि थी। इसलिए इस दिन नए कार्यों की शुरुआत करना वर्जित माना जाता है।
🔹 इस दिन क्या नहीं करें?
❌ कोई नया
व्यापार या व्यवसाय शुरू न करें।
❌ विवाह या
मांगलिक कार्य न करें।
❌ यात्रा
प्रारंभ करने से बचें।
❌ गृह प्रवेश न
करें।
❌ किसी भी शुभ
कार्य की नींव न रखें।
🙏 श्री गणेश को प्रथम पूज्य माना जाता है, इसलिए किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले उनकी पूजा करने से सभी विघ्न दूर होते हैं। 🚩
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