सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जानकी जयंती ,सीता अष्टमी,फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि,सीता जी -प्राकट्य दिवसश्रीजानकी स्तुतिः श्रीस्कन्दमहापुराणे ,(अखंड सौभाग्य ,संतान सुख),

जानकी जयंती-

 पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि , सीता अष्टमी है। 

पौराणिक संदर्भ:

- सीता राजा जनक की पुत्री थीं, इसलिए उन्हें 'जानकी' भी कहा जाता है। परमात्मा की शक्ति स्वरूपा सीता जी  इच्छा-शक्ति तथा ज्ञान-शक्ति हैं।

 पौराणिक संदर्भ

1. पद्म पुराण में सीता अष्टमी:

पद्म पुराण के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माता सीता जी का प्राकट्य दिवस माना जाता है। इस दिन राजा जनक ने हल चलाने पर भूमि से माता सीता को प्राप्त किया था, इसलिए इसे "सीता अष्टमी" कहा जाता है।

2. भविष्य पुराण में सीता अष्टमी:

भविष्य पुराण में भी सीता अष्टमी का उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि इस दिन माता सीता की पूजा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह दिन विशेष रूप से महिलाओं के लिए शुभ माना जाता है, और इस दिन व्रत, पूजन, तथा कथा करने से सौभाग्य और संतान सुख की प्राप्ति होती

जानकी जयंती और इसकी पौराणिक जानकारी

जानकी जयंती जिसे सीता अष्टमी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह माता सीता जी के प्राकट्य दिवस के रूप में प्रसिद्ध है।



माता सीता का जन्म

पुराणों के अनुसार, मिथिला के राजा जनक जब एक बार हल चलाकर यज्ञ भूमि तैयार कर रहे थे, तब उन्हें भूमि के अंदर से एक सोने के पात्र में रखी हुई दिव्य कन्या प्राप्त हुई। राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया और नाम रखा "सीता"। चूंकि वे जनक की पुत्री थीं, इसलिए उन्हें "जानकी" भी कहा जाता है।

रामायण में माता सीता का महत्व

  1. श्रीराम की अर्धांगिनी: माता सीता ने राजा जनक की पुत्री होते हुए भी सादा जीवन जिया और श्रीराम के साथ वनवास, संघर्ष और धर्म का पालन किया।
  2. अग्नि परीक्षा: लंका विजय के बाद माता सीता ने अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्नि परीक्षा दी।
  3. त्याग और धैर्य: उन्होंने वाल्मीकि आश्रम में अपने पुत्र लव-कुश का पालन-पोषण किया और अंत में धरती में विलीन हो गईं

जानकी जयंती का महत्व

  1. महिलाओं के लिए विशेष दिन: यह व्रत विवाहित और अविवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
  2. अखंड सौभाग्य का वरदान: जो महिलाएं माता सीता की पूजा करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  3. संतान सुख की प्राप्ति: नि:संतान दंपति यदि इस दिन श्रद्धा पूर्वक माता सीता का पूजन करते हैं, तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।

पूजा विधि

  1. स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. माता सीता और भगवान राम की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  3. रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, फल और मिठाई अर्पित करें।
  4. सीता अष्टमी व्रत कथा का पाठ करें।

मंत्र

1. माता सीता के नाम स्मरण हेतु:
"
ॐ जानकीवल्लभाय स्वाहा।"

2. संपूर्ण परिवार की सुख-समृद्धि के लिए:
"
श्रीसीतायै नमः।"

3. अखंड सौभाग्य के लिए:
"
ॐ रामायै नमः।"

श्रीजानकी स्तुतिः श्रीस्कन्दमहापुराणे

जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् । जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥ १॥ दारिद्र्यरण संहत्रीं भक्तानाभिष्ट दायिनीम् । विदेह राज तनयां राघवानन्द कारिणीम् ॥ २॥ भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् । पौलस्त्यैश्वर्य सन्त्री भक्ता भीष्टां सरस्वतीम् ॥ ३॥ पतिव्रता धुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम् । अनुग्रह परामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम् ॥ ४॥ आत्म विद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम् । प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम् ॥ ५॥ नमामि चन्द्र भगिनीं सीतां सर्वाङ्ग सुन्दरीम् । नमामि धर्म निलयां करुणां वेदमातरम् ॥ ६॥ पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्ष स्थलालयाम् । नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्र निभाननाम् ॥ ७॥ आह्लाद रूपिणीं सिद्धि शिवां शिवकरी सतीम् । नमामि विश्व जननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम् । सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा ॥ ८॥ इति श्रीस्कन्दमहापुराणे सेतुमाहात्म्ये श्रीहनुमत्कृता श्रीजानकीस्तुतिः सम्पूर्णा । भावार्थ - श्रीहनुमान्जी बोले-- जनक नन्दिनी ! आपको नमस्कार करता हूँ ।
 आप पापों का नाश तथा दारिद्र्य का संहार करने वाली हैं । भक्तों को
अभीष्ट वस्तु देने वाली आप ही हैं । श्रीराम को आनन्द
प्रदान करने वाली, जनक की  श्री किशोरीजी को मैं
प्रणाम करता हूँ । 
आप पृथ्वी की कन्या आर विद्या (ज्ञान) -स्वरूपा
हैं, कल्याणमयी प्रकृति भी आप ही हैं । 
रावण के ऐश्वर्य का संहार , अभीष्टका दान वाली सरस्वती रूपा भगवती सीता को
मैं नमस्कार करता हूँ ।
 पतिव्रताओं मे अग्रगण्य आप श्रीजनकदुलारीको मैं प्रणाम करता हूँ । आप अनुग्रह करनेवाली समृद्धि,
पापरहित और विष्णुप्रिया लक्ष्मी हैं 
 आप ही आत्मविद्या, वेदत्रयीतथा पार्वतीस्वरूपा हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।
 आप हीक्षीर सागर की कन्या महालक्ष्मी हैं,  कृपा-प्रसाद
प्रदान के लिये सदा उत्सुक रहती हैं ।
 चन्द्रमा की भगिनी(लक्ष्मीस्वरूपा) सर्वांग सुन्दरी सीताको मैं प्रणाम करता हूँ ।
धर्म- आश्रयभूता, करुणामयी ,वेदमाता, गायत्री,स्वरूपिणी श्रीजानकीको
मैं नमस्कार करता हूँ । 
. हाथ मे कमल धारण करनेवाली ,भगवान् विष्णु के वक्षःस्थल में निवास
करनेवाली लक्ष्मी हैं, चन्द्र मण्डल में भी आपका निवास है. 
  चन्द्रमुखी सीता देवी को मैं नमस्कार करता हूँ । आप श्रीरघुनन्दन
की आह्लादमयी- कल्याणमयी सिद्धि हैं , भगवान् शिव
की अर्द्धांगिनी कल्याणकारिणी सती हैं । 
श्रीरामचन्द्रजी की परम प्रियतमा जगदम्बा जानकी को मैं प्रणाम करता हूँ ।
 सीताजी का मैं अपने हृदयमे निरन्तर चिन्तन करता हूँ ।

-श्रीस्कन्दमहापुराणान्तर्गत सेतुमाहात्म्य में श्रीजानकी स्तुति सम्पूर्ण हुई ।

महत्व: पृथ्वी दान का फल,

जानकी जयंती के दिन माता सीता की पूजा से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दिन राम सहित सीता का विधि-विधान से पूजन करने से पृथ्वी दान का फल,

- सोलह महान् दान तथा तीर्थ दर्शन का फल मिलता .

- जानकी जयंती का पर्व- माता सीता के आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करने का महत्वपूर्ण अवसर है। 

विशेष तथ्य-

  • माता सीता को धरती की बेटी माना जाता है, इसलिए कृषि और उर्वरता से जुड़ी देवियों में भी उनकी पूजा होती है
  • त्रेता युग में माता सीता ने धर्म, त्याग, सहनशीलता और नारी शक्ति का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।
  • वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस, स्कंद पुराण और पद्म पुराण में माता सीता के जीवन का विस्तार से उल्लेख मिलता है।

मंत्र: सुख, और समृद्धि

 'श्री जानकी स्तुति' का  पाठ करने से जीवन में सुख, और समृद्धि आती है।

  •  श्री जानकी स्तुति -तुलसीदास जी द्वारा रचित जानकी स्तुति (Janki Stuti)
    भई प्रगट कुमारी भूमि-विदारी जनहितकारि भयहारी। 
    अतुलित छबि भारी मुनि - मनहारी जनकदुलारी सुकुमारी।।

    सुन्दर सिंघासन तेहीं पर आसन कोटि हुताशन धुतिकारी। 
    सिर छत्र बिराजै सखि संग भ्राजे निज - निज कारज करधारी।।

    सुर सिद्ध सुजाना हनै निशाना चढ़े बिमान समुदाई। 
    बरषहिं बहुफूला मंगल मूला अनुकूला सिय गन गाई।।

    देखहिं सब ठाढ़े लोचन गाढ़े सुख बाढ़े उर अधिकाई। 
    अस्तुति मुनि करहिं आनंद भरहीं पायन्ह परहीं हरषाई।।

    ऋषि नारद आये नाम सुनाये सुनि सुख पाये नृप ज्ञानी। 
    सीता अस नामा पूरन कामा सब सुखधामा गुण खानी।।

    सिय सन मुनिराई विनय सुनाई सतय सुहाई मृदुबानी। 
    लालन तन लीजै चरित सुकीजै यह सुख दीजै नृपरानी।।

    सुनि मुनिबर बानी सिय मुस्कानी लीला ठानी सुखदाई। 
    सोवत जनु जागीं रोवन लागीं नृप बड़ भागी उर लाई।।

    दम्पति अनुरागे प्रेम सुपागेउ यह सुख लायउ मनलाई। 
    अस्तुति सिय केरी प्रेमलतेरी बरनि सुचेरी सिर नाइ।।

    दोहा 

    निज इच्छा मखभूमि ते प्रगट भई सिय आय। 
    चरित किये पावन परम बरधन मोद निकाय।।

 

सीता अष्टमी का पौराणिक महत्व

  • पद्म पुराण और भविष्य पुराण के अनुसार, मिथिला के राजा जनक जी ने हल चलाते समय भूमि से देवी सीता को प्राप्त किया था। इस कारण माता सीता को "भूमिजा", "जानकी", "वैदेही" और "मिथिलेश्वरी" कहा जाता है।
  • यह दिन नारी शक्ति, धैर्य, सतीत्व और त्याग का प्रतीक माना जाता है।
  • इस दिन माता सीता के आदर्शों का अनुसरण करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए विशेष पूजा, व्रत, और कथा का आयोजन किया जाता है

निष्कर्ष

जानकी जयंती केवल माता सीता के जन्म उत्सव नहीं है, बल्कि यह नारी शक्ति, धैर्य, त्याग और आदर्श जीवन का संदेश भी देती है। इस दिन उनकी पूजा करके हम अपने जीवन में शांति, सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। 🙏🌸

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...