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मुहूर्त :कार्यों के समय ,काल-ब्रह्म,उषा,अरुणोदय काल,प्रातः,अभिजीत ,प्रदोष काल,गोधूलि काल,4 प्रहर ,राहुकाल, यमगंडम और गुलिक कालसंधि काल-94244446706

 


 यह जानकारी महत्वपूर्ण मुहूर्तों और समय गणना से संबंधित है, जो भारतीय संस्कृति, ज्योतिष और धर्मशास्त्रों में अत्यधिक महत्व रखते हैं। हिंदू धर्म में समय की पवित्रता को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के जीवन, स्वास्थ्य, आध्यात्मिकता और समृद्धि पर गहरा प्रभाव डालता है।

 - ज्योतिष और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए महत्वपूर्ण है। इसे देखकर शुभ और अशुभ समयों को पहचाना जा सकता है, जिससे जीवन के विभिन्न कार्यों के लिए सही समय का चयन किया जा सके। 🚀

महत्वपूर्ण मुहूर्तों का महत्व

1️ 

🌞 विभिन्न कालों का महत्व और उचित-अनुचित कार्य

हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्र में समय (काल) को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। किसी भी कार्य की सफलता या विफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कार्य किस समय किया जा रहा है। उचित समय पर किए गए कार्य शुभ फल देते हैं, जबकि अनुचित समय पर किए गए कार्य बाधाओं और कष्टों का कारण बन सकते हैं।

नीचे विभिन्न कालों का विस्तृत विवरण और उनके अनुसार उचित व अनुचित कार्यों की जानकारी दी गई है:


1️⃣ ब्रह्म मुहूर्त (Brahma Muhurat)

🕰 समय: सूर्योदय से 96 मिनट पूर्व (1 घंटा 36 मिनट पहले)
उचित कार्य:

  • ध्यान, योग, मंत्र जप, अध्ययन
  • मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाने के लिए उत्तम
  • इस समय उठने से स्मरण शक्ति और बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है
    🚫 अनुचित कार्य:
  • इस समय भोजन वर्जित है, इससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है

2️⃣ उषा काल (Usha Kaal)

🕰 समय: सूर्योदय से 2 घंटे पूर्व
उचित कार्य:

  • स्नान, पूजा, योग, संकल्प
  • ऊर्जा और उत्साह बढ़ाने के लिए श्रेष्ठ
    🚫 अनुचित कार्य:
  • नींद लेना, आलस्य

3️⃣ अरुणोदय काल (Arunodaya Kaal)

🕰 समय: सूर्योदय से 1 घंटा 12 मिनट पूर्व
उचित कार्य:

  • संकल्प, तीर्थ स्नान, भक्ति
  • आध्यात्मिक उन्नति के लिए श्रेष्ठ
    🚫 अनुचित कार्य:
  • नकारात्मक विचार, विवाद, क्रोध

4️⃣ प्रातःकाल (Pratah Kaal)

🕰 समय: सूर्योदय से 48 मिनट पूर्व
उचित कार्य:

  • सूर्य नमस्कार, पूजा-पाठ
  • मानसिक और शारीरिक ऊर्जा बढ़ाने के लिए उत्तम
    🚫 अनुचित कार्य:
  • देर तक सोना, किसी से झगड़ा करना

5️⃣ अभिजीत मुहूर्त (Abhijit Muhurat)

🕰 समय: दोपहर के 8वें मुहूर्त में (लगभग 12:00 से 12:48 बजे तक)
उचित कार्य:

  • कोई भी शुभ कार्य, यात्रा, व्यवसाय प्रारंभ करना
  • गृह प्रवेश, नया कार्य प्रारंभ करना
    🚫 अनुचित कार्य:
  • बुधवार को अभिजीत मुहूर्त निषेध
  • इस समय दक्षिण दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए

6️⃣ राहुकाल (Rahu Kaal)

🕰 समय: प्रतिदिन अलग-अलग होता है (तालिका ऊपर दी गई है)
🚫 अनुचित कार्य:

  • कोई भी शुभ कार्य शुरू करना
  • नया व्यापार, विवाह, गृह प्रवेश
    उचित कार्य:
  • तंत्र-मंत्र, ग्रह शांति पूजा

7️⃣ यम गंडम (Yamagandam Kaal)

🕰 समय: प्रतिदिन अलग-अलग होता है
🚫 अनुचित कार्य:

  • नया कार्य शुरू करना
  • यात्रा शुरू करना
    उचित कार्य:
  • पितृ तर्पण, ध्यान

8️⃣ गुलिक काल (Gulik Kaal)

🕰 समय: प्रतिदिन अलग-अलग होता है
उचित कार्य:

  • धन-संबंधी कार्य, भूमि खरीदना, वाहन खरीदना
    🚫 अनुचित कार्य:
  • विवाह, ऋण देना, अंतिम संस्कार

9️⃣ प्रदोष काल (Pradosh Kaal)

🕰 समय: सूर्यास्त से 48 मिनट पूर्व से 48 मिनट बाद तक
उचित कार्य:

  • शिव पूजा, तंत्र साधना
    🚫 अनुचित कार्य:
  • विवाद, क्रोध, नकारात्मकता

🔟 गोधूलि काल (Godhuli Kaal)

🕰 समय: सूर्यास्त से 24 मिनट पूर्व से 24 मिनट बाद तक
उचित कार्य:

  • यात्रा, विवाह, शुभ कार्य
    🚫 अनुचित कार्य:
  • दान-पुण्य

1️⃣1️⃣ दिन के चार प्रहर और उनके अनुसार कार्य

प्रहरसमयसम्बंधित कार्य
प्रथम प्रहर (देव काल)06:00 - 09:00पूजा-पाठ, दान, नए कार्य शुरू करना
द्वितीय प्रहर (मनुष्य काल)09:00 - 12:00व्यापार, लेन-देन, बैठकें
तृतीय प्रहर (पितृ काल)12:00 - 15:00पितृ तर्पण, ध्यान
चतुर्थ प्रहर (संध्या काल)15:00 - 18:00मंत्र जाप, संध्या आरती

🚫 अनुचित समय:

  • 12:00 - 16:00 (देव विश्राम काल) – इस समय पूजा निषेध
  • शनिवार सूर्यास्त के बाद – विशेष रूप से तंत्र साधना और शनि पूजा के लिए उपयुक्त

1️⃣2️⃣ श्राद्ध तिथि निर्धारण

उचित दिन: जिस दिन अपराह्न काल में तिथि हो, उसी दिन श्राद्ध करें।
🚫 अनुचित दिन:

  • यदि दो दिन मिल रहे हों, तो जिस दिन तिथि अधिक समय तक अपराह्न में हो, उसी दिन श्राद्ध करें।

📜 भविष्य पुराण अनुसार समय गणना

  • पितरों का 1 दिन-रात = मनुष्यों के 1 महीने
    • शुक्ल पक्ष = पितरों की रात
    • कृष्ण पक्ष = पितरों का दिन
  • देवताओं का 1 दिन-रात = मनुष्यों का 1 वर्ष

निष्कर्ष: शुभ और अशुभ समय का ध्यान क्यों रखें?

✔️ किसी भी शुभ कार्य की सफलता के लिए सही मुहूर्त आवश्यक होता है।
✔️ अशुभ समय में किए गए कार्यों से कष्ट, बाधाएं और हानि हो सकती है।
✔️ ज्योतिषीय काल गणना के अनुसार ही कार्य करें तो मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।

🚀 संक्षेप में: यदि आप इन शुभ-अशुभ कालों का ध्यान रखकर कार्य करेंगे, तो निश्चित ही सफलता मिलेगी और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहेगी। 🙏✨


🌞 दिन के 4 प्रहर और पूजन काल

प्रहर

समय

महत्व

प्रथम प्रहर

06:00 - 09:00

देव पूजा के लिए सर्वोत्तम

द्वितीय प्रहर

09:00 - 12:00

मनुष्य काल (दैनिक कार्यों के लिए उपयुक्त)

तृतीय प्रहर

12:00 - 15:00

पितृ काल (श्राद्ध और पितरों की पूजा)

चतुर्थ प्रहर

15:00 - 18:00

संध्या काल (ध्यान, मंत्र जप, हवन)

🔸 मध्याह्न (12:00 - 16:00)

  • देव विश्राम कालइस समय किसी भी प्रकार की देव पूजा निषेध होती है।

🔹 शनिवार की विशेष पूजा

  • सूर्यास्त के 48मिनट बाद तक शनि पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है।

🔹 देव शयन पूजा

  • शाम 18:00 - 21:00 के बीच की जाती है।

🔥 श्राद्ध तिथि निर्धारण

  • अपराह्न में जिस दिन तिथि हो, उसी दिन श्राद्ध करना उचित माना जाता है।
  • यदि दो दिन एक ही तिथि हो, तो जिस दिन अधिक समय अपराह्न में हो, वही दिन उचित माना जाता है।

📜 भविष्य पुराण के अनुसार समय गणना

  • पितरों का 1 दिन-रात = मनुष्यों के 1 महीने
    • शुक्ल पक्ष = पितरों की रात
    • कृष्ण पक्ष = पितरों का दिन
  • देवताओं का 1 दिन-रात = मनुष्यों का 1 वर्ष

🌙 राहुकाल, यमगंडम और गुलिक काल

(अशुभ समय - यात्रा, विवाह व शुभ कार्यों से बचें)

दिन

राहुकाल

यमगंडम

गुलिक काल

सोमवार

07:30-09:00

10:30-12:00

13:30-15:00

मंगलवार

15:00-16:30

09:00-10:30

12:00-13:30

बुधवार

12:00-13:30

07:30-09:00

10:30-12:00

गुरुवार

13:30-15:00

06:00-07:30

09:00-10:30

शुक्रवार

10:30-12:00

15:00-16:30

07:30-09:00

शनिवार

09:00-10:30

13:30-15:00

06:00-07:30

रविवार

16:30-18:00

12:00-13:30

15:00-16:30


📌 गुलिक काल में शुभ कार्य

अनुशंसित:

  • धन एकत्र करना ,संपत्ति एवं वाहन खरीदना, अन्नदान करना,

🚫 निषेध: विवाह ,ऋण देना ,अंतिम संस्कार


🔸 संधि काल का महत्व एवं नियम 🔸

 इस काल में मानव जीवन के शुभ कार्यों - गृह प्रवेश, नया व्यापार आरंभ करने अथवा किसी मांगलिक कार्य की शुरुआत करने से बचना चाहिए. (VIVAH -LAGN UTTAM)

- शास्त्रों के अनुसार, संधि काल में ध्यान, साधना, मंत्र जाप और हवन करना विशेष फलदायी होता है, क्योंकि इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा अधिक सक्रिय होती है, जिससे आत्मिक शुद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है। 🌿✨

संधि काल वह विशेष समय होता है जब एक प्रहर समाप्त होकर दूसरा प्रहर आरंभ होता है, अर्थात दिन और रात, या रात और दिन के संधिकाल में ऊर्जा का परिवर्तन होता है। 

1-यह काल आमतौर पर सूर्योदय और सूर्यास्त से ठीक पहले और बाद के 48 मिनट तक रहता है। 

ज्योतिष और आध्यात्मिक दृष्टि से यह समय अत्यंत संवेदनशील माना जाता है, क्योंकि इस दौरान प्रकृति की शक्तियाँ संतुलन की अवस्था में होती

संधि काल के चार प्रमुख चरण एवं उनकी अवधि-AS SUNRISE -06AM

1️⃣ रात्रि समाप्त – दिन आरंभ (प्रातः संधि काल)

  • समय: 05:12 AM - 06:00 AM
  • महत्व: यह काल आध्यात्मिक जागरण, ध्यान, प्राणायाम एवं सूर्य अर्घ्य के लिए सर्वोत्तम होता है। इस समय ब्रह्म मुहूर्त भी आता है, जो मानसिक शांति और स्वास्थ्य के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

2️⃣ मध्य दिन समाप्त (मध्याह्न संधि काल)

  • समय: 11:12 AM - 12:00 PM
  • महत्व: यह समय देव विश्राम काल माना जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य निषेध होता है। विशेष रूप से पूजा-पाठ और मांगलिक कार्य इस समय नहीं किए जाते।

3️⃣ दिन समाप्त – रात्रि आरंभ (संध्या संधि काल)

संधि काल के चार प्रमुख चरण एवं उनकी अवधि

1️⃣ रात्रि समाप्त – दिन आरंभ (प्रातः संधि काल)

  • समय: 05:12 AM - 06:00 AM
  • महत्व: यह काल आध्यात्मिक जागरण, ध्यान, प्राणायाम एवं सूर्य अर्घ्य के लिए सर्वोत्तम होता है। इस समय ब्रह्म मुहूर्त भी आता है, जो मानसिक शांति और स्वास्थ्य के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

2️⃣ मध्य दिन समाप्त (मध्याह्न संधि काल)

  • समय: 11:12 AM - 12:00 PM
  • महत्व: यह समय देव विश्राम काल माना जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य निषेध होता है। विशेष रूप से पूजा-पाठ और मांगलिक कार्य इस समय नहीं किए जाते।

3️⃣ दिन समाप्त – रात्रि आरंभ (संध्या संधि काल)

  • समय: 05:12 PM - 06:00 PM
  • महत्व: यह समय संध्या वंदन, हवन और ध्यान के लिए सर्वोत्तम होता है। इस काल में वातावरण में ऊर्जा परिवर्तन होता है, इसलिए इस दौरान भोजन, यात्रा और कोई भी शुभ कार्य टालने की सलाह दी जाती है।

4️⃣ मध्य रात्रि समाप्त (अर्धरात्रि संधि काल)

  • समय: 11:12 PM - 12:00 AM
  • महत्व: यह समय अत्यंत गूढ़ और रहस्यमयी माना जाता है। तंत्र-साधना और विशेष मंत्र सिद्धि के लिए यह काल महत्वपूर्ण होता है, लेकिन सामान्यतः इस दौरान शारीरिक और मानसिक विश्राम को प्राथमिकता दी जाती है।

✨ निष्कर्ष:
संधि काल में प्रकृति की ऊर्जा संतुलन अवस्था में होती है, इसलिए इस दौरान शुभ कार्यों की शुरुआत वर्जित होती है। यह समय आध्यात्मिक साधना, ध्यान और आत्मचिंतन के लिए सर्वोत्तम माना जाता है, जिससे मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। 🙏✨

  • समय: 05:12 PM - 06:00 PM
  • महत्व: यह समय संध्या वंदन, हवन और ध्यान के लिए सर्वोत्तम होता है। इस काल में वातावरण में ऊर्जा परिवर्तन होता है, इसलिए इस दौरान भोजन, यात्रा और कोई भी शुभ कार्य टालने की सलाह दी जाती है।

4️⃣ मध्य रात्रि समाप्त (अर्धरात्रि संधि काल)

  • समय: 11:12 PM - 12:00 AM
  • महत्व: यह समय अत्यंत गूढ़ और रहस्यमयी माना जाता है। तंत्र-साधना और विशेष मंत्र सिद्धि के लिए यह काल महत्वपूर्ण होता है, लेकिन सामान्यतः इस दौरान शारीरिक और मानसिक विश्राम को थमिकता दी जाती है।

✨ निष्कर्ष:
संधि काल में प्रकृति की ऊर्जा संतुलन अवस्था में होती है, इसलिए इस दौरान शुभ कार्यों की शुरुआत वर्जित होती है। यह समय आध्यात्मिक साधना, ध्यान और आत्मचिंतन के लिए सर्वोत्तम माना जाता है, जिससे मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। 🙏✨

🌟 निष्कर्ष

समय का प्रभाव हमारे जीवन में बहुत गहरा होता है। सही मुहूर्त में किए गए कार्य जीवन को उन्नति की ओर ले जाते हैं, जबकि अशुभ समय में किए गए कार्य बाधाओं को जन्म दे सकते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में दिए गए ये विशेष समय जीवन के हर महत्वपूर्ण निर्णय में मार्गदर्शक होते हैं। 🌿🙏


IMPOORTANCE -⏳ महत्वपूर्ण मुहूर्त
 1️⃣ ब्रह्म मुहूर्त • सूर्योदय से 96 मिनट पूर्व (1 घंटा 36 मिनट पहले) • समय: सूर्योदय -1:36 से सूर्योदय -0:48 • विशेष: इस समय भोजन निषेध, ब्रेन डिटॉक्स, मानसिक शांति के लिए उपयुक्त 
2️⃣ उषा काल • सूर्योदय से 2 घंटे पूर्व
 3️⃣ अरुणोदय काल • सूर्योदय से 1 घंटा 12 मिनट पूर्व 
4️⃣ प्रातःकाल • सूर्योदय से 48 मिनट पूर्व 
5️⃣ अभिजीत मुहूर्त • दिन का 8वां मुहूर्त • समय: दोपहर 24 मिनट पहले से 24 मिनट बाद तक (कुल 48 मिनट) • विशेष: बुधवार को निषेध, दक्षिण दिशा में यात्रा वर्जित 
6️⃣ प्रदोष काल • सूर्यास्त से 48 मिनट पूर्व से 48 मिनट बाद तक
 7️⃣ गोधूलि काल • सूर्यास्त से 24 मिनट पूर्व से 24 मिनट बाद तक ________________________________________ 
🌞 दिन के 4 प्रहर और पूजा काल
 1️⃣ प्रथम प्रहर (06:00 - 09:00) → देव पूजा 
2️⃣ द्वितीय प्रहर (09:00 - 12:00) → मनुष्य काल 
3️⃣ तृतीय प्रहर (12:00 - 15:00) → पितृ काल 
4️⃣ चतुर्थ प्रहर (15:00 - 18:00) → संध्या काल 
🛑 मध्याह्न (12:00 - 16:00) • देव विश्राम काल (इस समय पूजा निषेध) 
🔹 शनिवार की विशेष पूजा • सूर्यास्त के 24 मिनट बाद तक शनि पूजा 
🔹 देव शयन पूजा • शाम 18:00 - 21:00 शनिवार की विशेष पूजा • सूर्यास्त के 24 मिनट बाद तक शनि पूजा 
🔹 देव शयन पूजा • शाम 18:00 - 21:00

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सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...