सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

रावण -जन्म ,राम- सीता को आशीर्वाद:शिव भक्त, स्त्री स्पर्श ? ,भविष्यदृष्टा-मोक्ष मार्ग

 

रावण -जन्म ,राम -आचार्य,राम- सीता को आशीर्वाद:
ब्रह्मा जी के श्राप के कारण जय-विजय को राक्षस योनि में जन्म लेना पड़ा। वे क्रमशः हिरण्यकश्यप-हिरण्याक्ष, रावण-कुंभकर्ण, शिशुपाल-दंतवक्र बने।

रावण का जन्म:
राक्षसों के विनाश से दुःखी सुमाली ने अपनी पुत्री कैकसी को महर्षि विश्रवा के पास भेजा। विश्रवा ने कहा कि अशुभ समय में संतान क्रूर होगी। फिर भी कैकसी के आग्रह पर रावण, कुंभकर्ण, शूर्पणखा और विभीषण का जन्म हुआ।

 रावण ब्राह्मण नहीं?
      रावण सारस्वत ब्राह्मण पुत्सल्य का पौत्र था परंतु माया DANAV की पुत्री मंदोदरी Asur/danav/Rakshas पुत्री थी इसलिए वह मनुष्य नहीं थे।
 

 रावण मनुष्य नहीं था ( मनुष्य जाति- ब्राह्मण होने का प्रश्न ही नहीं) राक्षस, रक्ष संस्कृति का पौषक था।देव, दानव, यक्ष, गंधर्व इनकी जाति नहीं होती है।रावण ब्राह्मण पिता से जन्मा था, लेकिन राक्षसी माता के कारण उसमें तमोगुण और मायावी विद्याओं का प्रभाव  था। अतः वह ब्राह्मण नहीं, राक्षस कहलाया।

रावण का राक्षसी स्वभाव:

अतिवृद्ध रावण का युद्ध राम से 40हजार से अधिक उमर में हुआ।                              -  रावण संहिता के अनुसार रावण ने 10000 वर्ष ब्रह्मा की तपस्या की एवं प्रत्येक 1000 वर्ष में अपना शीश उनको अर्पण किया।      

- इसके बाद रावण ने 1000 वर्ष तक शिवजी की प्रार्थना की उनके लिए तपस्या की राम के समय युद्ध में रावण की आयु 40000 वर्ष से अधिक थी वह अति वृद्ध  था।   

 रावण ने किसी भी स्त्री को ,स्त्री की इच्छा के विरुद्ध (कामभाव से) स्पर्श नहीं किया।

शाप का संदर्भ और प्रमाण:

 कुबेर  पुत्र नलकुबेर की पत्नी रंभा - शाप - "यदि वह (रावण)किसी स्त्री को बिना उसकी इच्छा के छुएगा तो भस्म हो जाएगा।"

जब रावण ने कुबेर के पुत्र नलकुबेर की पत्नी रंभा का अपहरण करने का प्रयास किया, तब नलकुबेर ने उसे यह शाप दिया:

"यदि वह (रावण) किसी स्त्री को बिना उसकी इच्छा के छुएगा, तो भस्म हो जाएगा।"

यह शाप वाल्मीकि रामायण (उत्तर कांड, 48वां सर्ग) में उल्लेखित है।

इस शाप का प्रभाव और रावण का आचरण:

  1. सीता का हरण:
    • रावण ने माता सीता का हरण छल से किया, लेकिन उसने कभी भी उन्हें जबरदस्ती स्पर्श नहीं किया/  कामभाव से स्पर्श नहीं किया।क्योंकि वह शाप से भली-भांति परिचित था।
  2. अन्य स्त्रियों के प्रति आचरण:
    • रावण की सभा में अनेक अप्सराएँ और राक्षस स्त्रियाँ थीं, लेकिन वह किसी भी स्त्री के प्रति शारीरिक बल प्रयोग से बचता था।
  3. वाल्मीकि रामायण में प्रमाण:
    • "न तु तामभिगच्छेत्सः स्वयं सीतां दृढ़व्रतः।" (उत्तर कांड)
    • अर्थ: "रावण अपने शाप के कारण सीता को जबरन नहीं छू सकता था।"

- रावण की मृत्यु 3 कारण:
1-रावण ने एक बार हिमालय में तपस्विनी वेदवती की तपस्या भंग करनी चाही। क्रोधित होकर वेदवती ने उसे श्राप दिया—"मैं तुम्हारे वध के लिए पुनः जन्म लूँगी।"
2-वही वेदवती सीता के रूप में जन्मी, जिससे रावण का विनाश हुआ।

 -रावण छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था, इसलिए उसे दसकंठी भी कहा जाता था. 

 रावण  दशानन या दशग्रीव था.रावण - दो रानियां ,पटरानी मंदोदरी और मंदोदरी की छोटी बहन धन्यमालिनी.

-रावण त्रिकालज्ञ ज्योतिष-ज्ञान और  अंतर्दृष्टि,

रावण ने मोक्ष के लिए शत्रुता एवं उनके द्वारा मृत्यु का मार्ग अपनाया-विष्णु के ही अवतार हैं राम;

खर दूषन मोहि सम बलवंता।
तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता॥

सुर रंजन भंजन महि भारा।
जौं भगवंत लीन्ह अवतारा॥

तौ मैं जाइ बैरु हठि करऊँ।
प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥

अर्थ -

(1) खर दूषण मोहि सम बलवंता।

👉 खर और दूषण तो मेरी ही समान बलशाली थे।

रावण -  खर-दूषण रावण के समान पराक्रमी थे।

(2) तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता॥

👉 उन्हें भगवान के सिवा और कौन मार सकता है?

रावण ज्ञान और विवेक - खर-दूषण जैसे महाबली योद्धा मारे गए हैं, यह केवल ईश्वर ही कर सकते हैं।

(3) सुर रंजन भंजन महि भारा।

👉 जो देवताओं को आनंद देने वाले और पृथ्वी का भार उतारने वाले हैं।

श्री राम का अवतार भी इसी उद्देश्य से हुआ है।

(4) जौं भगवंत लीन्ह अवतारा॥

👉 यदि वास्तव में भगवान ने अवतार लिया है।

रावण - श्री राम मानव नहीं हैं, स्वयं नारायण के अवतार हैं।

(5) तौ मैं जाइ बैरु हठि करऊँ।

👉 तो मैं जाकर उनसे हठपूर्वक वैर करूँगा।

रावण - श्री राम भगवान हैं मैं उनसे शत्रुता करूँगा।

(6) प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥

👉 प्रभु के बाणों से प्राण छोड़कर भवसागर (संसार के बंधनों) से पार हो जाऊँगा।

यह  रावण जानता था कि भगवान के हाथों मारा जाना मोक्ष  है। प्रभु के हाथों मरे, जिससे वह भवसागर से पार हो सके।

  • श्रीमद्भागवत पुराण: इसमें रावण की आयु 11,000 वर्ष बताई गई है।

·         पौराणिक - मृत्यु के समय रावण की उम्र 40,000 साल या उससे ज़्यादा थी.

·         रावण का जन्म त्रेतायुग के अंतिम चरण में हुआ था .

·         रावण की आयु के विषय में विभिन्न ग्रंथ- रावण ने 28,800 वर्ष तक लंका पर शासन किया.

 -सीता रावण की पुत्री?
 
कथाओं के अनुसार, रावण की पत्नी मंदोदरी ने एक विशेष रक्त-कलश से गर्भ धारण किया और कन्या को समुद्र में बहा दिया, जिसे राजा जनक ने पाया और सीता के रूप में पाला।

रावण द्वारा राम और सीता को आशीर्वाद

- रावण को  क्रूर और अहंकारी राक्षस के रूप में देखा जाता है, लेकिन उसकी विद्वत्ता, ज्ञान और धर्म संबंधी समझ भी अद्वितीय थी। युद्ध से पहले रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापना के समय रावण ने भगवान श्रीराम और माता सीता को आशीर्वाद दिया।


1.  रावण का आचार्य रूप एवं सीता को आशीर्वाद

👉 रावण ने विनम्रतापूर्वक यजमान के सम्मान का निर्वहन कियावह जानता था कि एक यज्ञ में यजमान का महत्वपूर्ण स्थान होता है और उसे अपने आमंत्रित दूत का सम्मान और संरक्षण देना आता है।

👉 महर्षि पुलस्त्य एवं वशिष्ठ का संबंधरावण ने महर्षि पुलस्त्य के सगे भाई ,महर्षि वशिष्ठ के यजमान के रूप में श्रीराम को स्वीकार किया और अपने आराध्य की स्थापना हेतु आचार्य पद को ग्रहण कर लिया।

👉 यज्ञ सपत्नीक होने का महत्ववैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार, यज्ञ पति-पत्नी दोनों की उपस्थिति में ही पूर्ण होता है। इसीलिए, रावण ने माता सीता को भी पुष्पक विमान में अपने साथ ले जाने का निर्णय किया, ताकि यज्ञ विधिवत संपन्न हो सके।

👉 सीता की स्वीकृति एवं सम्मानमाता सीता ने पति के आचार्य को अपना आचार्य मानकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया। यह उनकी उच्च संस्कृति और धर्म पर दृढ़ आस्था को दर्शाता है।

👉 रावण का आशीर्वादरावण ने अपने दोनों हाथ उठाकर माता सीता को "सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दिया, जो उनकी मर्यादा और धार्मिकता को दर्शाता है।

रावण ने माता सीता से कहा:

👉 "सौभाग्यवती भव!"
(
अर्थात, "तुम्हारा सौभाग्य अटल रहे!")

यह आशीर्वाद यह दर्शाता है कि रावण भले ही सीता का अपहरण कर लाया था

  • उसने सीता के प्रति कोई अनादर नहीं दिखाया और अंततः उन्हें सौभाग्य का आशीर्वाद दिया।

 2. रावण ने राम को लंका विजय आशीर्वाद दिया

जब श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापना का संकल्प लिया, तो उन्हें एक योग्य पुरोहित की आवश्यकता थी। जामवंत जी ने सुझाव दिया कि शिवभक्त और वेदों के महान ज्ञाता रावण को आचार्य बनाया जाए।

सेतु बंध के समय रावण के पहुँचने पर राम ने स्वागत किया 

आचार्य रावण ने राम को आशीर्वाद देते हुए कहा:

👉 "दीर्घायु भव! लंका विजयी भव!"
(
अर्थात, "तुम्हारी आयु लंबी हो! लंका पर तुम्हारी विजय हो!")

यह बात दर्शाती है कि रावण यह समझ चुका था कि श्रीराम कोई साधारण मनुष्य नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं। एक आचार्य ज्ञानी होने के नाते, ()खर दूषन मोहि सम बलवंता।तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता॥)

- उसने श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया।माता सीता को भी सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया।

आचार्य  रावण का आगमन एवं श्री राम को आशीर्वाद

👉 रावण का समुद्र तट पर आगमनमाँ सीता और अन्य आवश्यक यज्ञ-सामग्री के साथ, रावण ने आकाश मार्ग से यात्रा की और समुद्र तट पर उतरा। यज्ञ के विधि-विधान में किसी भी कमी न रह जाए, इसका विशेष ध्यान रखा गया।

👉 सीता का विमान में ठहरावरावण ने माता सीता को पुष्पक विमान में ही छोड़ दिया, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे सुरक्षित रहें और यज्ञ में बाधा न आए।

👉 श्री राम से भेंट जामवंत के संदेश से पूर्व सूचना मिलने के कारण श्रीराम पहले से ही स्वागत के लिए तैयार थे। जब रावण उनके सामने पहुँचा, तो वनवासी श्री राम ने पूर्ण आदरभाव के साथ आचार्य दशग्रीव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया।

👉आचार्य रावण का आशीर्वादआचार्य के रूप में प्रतिष्ठित रावण ने श्रीराम को आशीर्वाद दिया
दीर्घायु भव! लंका विजयी भव!

भावार्थ

इस प्रसंग में रावण केवल एक युद्धप्रिय असुर नहीं, बल्कि एक वेदज्ञ, मर्यादित और यज्ञ परंपराओं में आस्था रखने वाला ज्ञानी आचार्य रूप में प्रस्तुत  है। यहाँ वह अपने व्यक्तिगत द्वेष को त्यागकर श्रीराम को दीर्घायु और विजय का आशीर्वाद देता है, जो उसके द्वंद्वपूर्ण व्यक्तित्व को दर्शाता है।

  • "लंका विजयी भव!"यह आशीर्वाद श्रीराम के लिए था और यह सत्य सिद्ध हुआ क्योंकि राम ने रावण को हराकर लंका पर विजय प्राप्त की।
  • "सौभाग्यवती भव!"माता सीता को यह आशीर्वाद मिला और वह अयोध्या की रानी बनीं।

3. रावण का विद्वत्ता और भविष्यदृष्टा होना

  •  
  • राम और सीता बैठे हैं, रावण (श्यामवर्ण) आचार्य के रूप में है, हवन कुंड, दीप, शिवलिंग, जामवंत और हनुमान उपस्थित हैं, और सेतुबंध का दृश्य भी दिख रहा है।
    रावण एक महान शिव भक्त, ज्योतिषाचार्य और भविष्यदृष्टा था।
  •  रावण को ज्ञात हो गया था कि राम मानव रूप में स्वयं विष्णु ही हैं।
  •  अपने मोक्ष के लिए, 
  •  उन्होंने भगवान राम को लंका विजय एवं देवी सीता को सौभाग्यवती का आशीर्वाद भी दिया तथा
  •  राम के द्वारा मृत्यु प्राप्त कर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग कण्टक-विहीन किया।
  • =======================================
  • जब श्रीराम ने रावण से पूछा, "दक्षिणा में क्या दूं?" तो रावण ने कहा:

    👉 "जब आचार्य मृत्यु शैया ग्रहण करे, तब यजमान सम्मुख उपस्थित रहें।"
    (
    अर्थात, "जब मेरी मृत्यु का समय आए, तब श्रीराम स्वयं मेरे पास हों।")
  • - रावण को ज्ञान था, और वह चाहता था कि भगवान राम स्वयं उसे मोक्ष प्रदान करें।

निष्कर्ष:

रावण  एक ज्ञानी, शिव भक्त और भविष्यदृष्टा था।
युद्ध से पहले उसने स्वयं श्रीराम को विजयी होने का आशीर्वाद दिया और माता सीता को सौभाग्य की शुभकामना दी।

👉 रावण का यह आशीर्वाद उसकी महानता और विद्वत्ता को दर्शाता है, जो उसे केवल एक एक जटिल और अद्भुत व्यक्तित्व बनाता है।

 --------------------------------

यह पूरी घटना रामायण के उस पक्ष को दिखाती है, जहाँ वम्रता, ज्ञान और मर्यादा का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है। रावण  वेदों और संस्कृतियों का ज्ञानी था, जिसने  धर्म और सत्य को स्वीकार किया।
रामेश्वर में शिवलिंग स्थापना के लिए राम ने रावण को आचार्य बनाया
रावण ने माता सीता से लिंग निर्माण कराया और विधिपूर्वक अनुष्ठान संपन्न किया।
राम ने आचार्य रावण से दक्षिणा पूछी, तो रावण ने कहा
"
जब आचार्य मृत्यु शैया ग्रहण करे, तब यजमान सम्मुख उपस्थित रहें।"
यही राम द्वारा रावण का अंत देखने का संकेत था!


  1. रावण शैव था, वैष्णव नहीं – वह शिव की उपासना करता था, परंतु विष्णु को ईश्वर (श्रेष्ठ )स्वीकारता था

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...