रावण -जन्म ,राम -आचार्य,राम-
सीता को आशीर्वाद:
ब्रह्मा जी
के श्राप के कारण जय-विजय को राक्षस योनि में जन्म लेना पड़ा। वे क्रमशः हिरण्यकश्यप-हिरण्याक्ष, रावण-कुंभकर्ण, शिशुपाल-दंतवक्र बने।
रावण का
जन्म:
राक्षसों के
विनाश से दुःखी सुमाली ने अपनी पुत्री कैकसी को महर्षि विश्रवा के पास
भेजा। विश्रवा ने कहा कि अशुभ समय में संतान क्रूर होगी। फिर भी
कैकसी के आग्रह पर रावण, कुंभकर्ण, शूर्पणखा और विभीषण का जन्म
हुआ।
रावण ब्राह्मण नहीं?
रावण सारस्वत ब्राह्मण पुत्सल्य का पौत्र था परंतु माया DANAV की पुत्री
मंदोदरी Asur/danav/Rakshas पुत्री थी इसलिए वह मनुष्य नहीं थे।
रावण मनुष्य नहीं था ( मनुष्य जाति- ब्राह्मण होने का प्रश्न ही नहीं) राक्षस, रक्ष संस्कृति का पौषक था।देव, दानव, यक्ष, गंधर्व इनकी जाति नहीं होती है।रावण ब्राह्मण पिता से जन्मा था, लेकिन राक्षसी माता के कारण उसमें तमोगुण और मायावी विद्याओं का प्रभाव था। अतः वह ब्राह्मण नहीं, राक्षस कहलाया।
रावण का राक्षसी
स्वभाव:
- अतिवृद्ध रावण का युद्ध राम से 40हजार से अधिक उमर में हुआ। - रावण संहिता के अनुसार रावण ने 10000 वर्ष ब्रह्मा की तपस्या की एवं प्रत्येक 1000 वर्ष में अपना शीश उनको अर्पण किया।
- इसके बाद रावण ने 1000 वर्ष तक शिवजी की प्रार्थना की उनके लिए तपस्या की राम के समय युद्ध में रावण की आयु 40000 वर्ष से अधिक थी वह अति वृद्ध था।
रावण ने किसी भी स्त्री को ,स्त्री की इच्छा के विरुद्ध (कामभाव से) स्पर्श नहीं किया।
शाप का संदर्भ और प्रमाण:
कुबेर पुत्र नलकुबेर की पत्नी रंभा - शाप - "यदि वह (रावण)किसी स्त्री को बिना उसकी इच्छा के छुएगा तो भस्म हो जाएगा।"
जब रावण ने कुबेर के पुत्र नलकुबेर की पत्नी रंभा का अपहरण करने का प्रयास किया, तब नलकुबेर ने उसे यह शाप दिया:
"यदि वह (रावण) किसी स्त्री को बिना उसकी इच्छा के छुएगा, तो भस्म हो जाएगा।"
यह शाप वाल्मीकि रामायण (उत्तर कांड, 48वां सर्ग) में उल्लेखित है।
इस शाप का प्रभाव और रावण का आचरण:
- सीता का हरण:
- रावण ने माता सीता का हरण छल से किया, लेकिन उसने कभी भी उन्हें जबरदस्ती स्पर्श नहीं किया/ कामभाव से स्पर्श नहीं किया।क्योंकि वह शाप से भली-भांति परिचित था।
- अन्य स्त्रियों के प्रति आचरण:
- रावण की सभा में अनेक अप्सराएँ और राक्षस स्त्रियाँ थीं, लेकिन वह किसी भी स्त्री के प्रति शारीरिक बल प्रयोग से बचता था।
- वाल्मीकि रामायण में प्रमाण:
- "न तु तामभिगच्छेत्सः स्वयं सीतां दृढ़व्रतः।" (उत्तर कांड)
- अर्थ: "रावण अपने शाप के कारण सीता को जबरन नहीं छू सकता था।"
- रावण की
मृत्यु 3 कारण:
1-रावण ने एक
बार हिमालय में तपस्विनी वेदवती की तपस्या भंग करनी चाही। क्रोधित होकर वेदवती ने उसे श्राप दिया—"मैं
तुम्हारे वध के लिए पुनः जन्म लूँगी।"
2-वही वेदवती सीता के रूप में
जन्मी, जिससे रावण
का विनाश हुआ।
-रावण छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था, इसलिए उसे दसकंठी भी कहा जाता था.
रावण दशानन या दशग्रीव था.रावण - दो रानियां ,पटरानी मंदोदरी और मंदोदरी की छोटी बहन धन्यमालिनी.
-रावण त्रिकालज्ञ ज्योतिष-ज्ञान और अंतर्दृष्टि,
रावण ने मोक्ष के लिए शत्रुता एवं उनके द्वारा मृत्यु का मार्ग अपनाया-विष्णु के ही अवतार हैं राम;
खर दूषन मोहि सम
बलवंता।
तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता॥
सुर रंजन भंजन महि भारा।
जौं भगवंत लीन्ह अवतारा॥
तौ
मैं जाइ बैरु हठि करऊँ।
प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥
अर्थ -
(1) खर दूषण मोहि सम बलवंता।
👉 खर और दूषण तो मेरी ही समान बलशाली थे।
➡️ रावण - खर-दूषण रावण के समान पराक्रमी थे।
(2) तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता॥
👉 उन्हें भगवान के सिवा और कौन मार सकता है?
➡️ रावण ज्ञान और विवेक - खर-दूषण जैसे महाबली योद्धा मारे गए हैं, यह केवल ईश्वर ही कर सकते हैं।
(3) सुर रंजन भंजन महि भारा।
👉 जो देवताओं को आनंद देने वाले और पृथ्वी का भार उतारने वाले हैं।
➡️ श्री राम का अवतार भी इसी उद्देश्य से हुआ है।
(4) जौं भगवंत लीन्ह अवतारा॥
👉 यदि वास्तव में भगवान ने अवतार लिया है।
➡️ रावण - श्री राम मानव नहीं हैं, स्वयं नारायण के अवतार हैं।
(5) तौ मैं जाइ बैरु हठि करऊँ।
👉 तो मैं जाकर उनसे हठपूर्वक वैर करूँगा।
➡️ रावण - श्री राम भगवान हैं मैं उनसे शत्रुता करूँगा।
(6) प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥
👉 प्रभु के बाणों से प्राण छोड़कर भवसागर (संसार के बंधनों) से पार हो जाऊँगा।
➡️ यह रावण जानता था कि भगवान के हाथों मारा जाना मोक्ष है। प्रभु के हाथों मरे, जिससे वह भवसागर से पार हो सके।
- श्रीमद्भागवत पुराण: इसमें रावण की आयु 11,000 वर्ष बताई गई है।
· पौराणिक - मृत्यु के समय रावण की उम्र 40,000 साल या उससे ज़्यादा थी.
· रावण का जन्म त्रेतायुग के अंतिम चरण में हुआ था .
· रावण की आयु के विषय में विभिन्न ग्रंथ- रावण ने 28,800 वर्ष तक लंका पर शासन किया.
-सीता रावण
की पुत्री?
कथाओं
के अनुसार, रावण की
पत्नी मंदोदरी ने एक विशेष रक्त-कलश से गर्भ धारण किया और कन्या को
समुद्र में बहा दिया, जिसे राजा जनक ने पाया और सीता के रूप में पाला।
रावण द्वारा राम और सीता को आशीर्वाद
- रावण को क्रूर और अहंकारी राक्षस के रूप में देखा जाता है, लेकिन उसकी विद्वत्ता, ज्ञान और धर्म संबंधी समझ भी अद्वितीय थी। युद्ध से पहले रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापना के समय रावण ने भगवान श्रीराम और माता सीता को आशीर्वाद दिया।
1. रावण का आचार्य रूप एवं सीता को आशीर्वाद
👉 रावण ने विनम्रतापूर्वक यजमान के सम्मान का निर्वहन किया – वह जानता था कि एक यज्ञ में यजमान का महत्वपूर्ण स्थान होता है और उसे अपने आमंत्रित दूत का सम्मान और संरक्षण देना आता है।
👉 महर्षि पुलस्त्य एवं वशिष्ठ का संबंध – रावण ने महर्षि पुलस्त्य के सगे भाई ,महर्षि वशिष्ठ के यजमान के रूप में श्रीराम को स्वीकार किया और अपने आराध्य की स्थापना हेतु आचार्य पद को ग्रहण कर लिया।
👉 यज्ञ सपत्नीक होने का महत्व – वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार, यज्ञ पति-पत्नी दोनों की उपस्थिति में ही पूर्ण होता है। इसीलिए, रावण ने माता सीता को भी पुष्पक विमान में अपने साथ ले जाने का निर्णय किया, ताकि यज्ञ विधिवत संपन्न हो सके।
👉 सीता की स्वीकृति एवं सम्मान – माता सीता ने पति के आचार्य को अपना आचार्य मानकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया। यह उनकी उच्च संस्कृति और धर्म पर दृढ़ आस्था को दर्शाता है।
👉 रावण का आशीर्वाद – रावण ने अपने दोनों हाथ उठाकर माता सीता को "सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दिया, जो उनकी मर्यादा और धार्मिकता को दर्शाता है।
रावण ने माता सीता से कहा:
👉 "सौभाग्यवती भव!"
(अर्थात, "तुम्हारा
सौभाग्य अटल रहे!")
यह आशीर्वाद यह दर्शाता है कि रावण भले ही सीता का अपहरण कर लाया था,
- उसने सीता के प्रति कोई अनादर नहीं दिखाया और अंततः उन्हें सौभाग्य का आशीर्वाद दिया।
2. रावण ने राम को लंका विजय आशीर्वाद दिया
जब श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापना का संकल्प लिया, तो उन्हें एक योग्य पुरोहित की आवश्यकता थी। जामवंत जी ने सुझाव दिया कि शिवभक्त और वेदों के महान ज्ञाता रावण को आचार्य बनाया जाए।
सेतु बंध के समय रावण के पहुँचने पर राम ने स्वागत किया।
आचार्य रावण ने राम को आशीर्वाद देते हुए कहा:
👉 "दीर्घायु भव! लंका विजयी भव!"
(अर्थात, "तुम्हारी
आयु लंबी हो! लंका पर तुम्हारी विजय हो!")
यह बात दर्शाती है कि रावण यह समझ चुका था कि श्रीराम कोई साधारण मनुष्य नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं। एक आचार्य ज्ञानी होने के नाते, ()खर दूषन मोहि सम बलवंता।तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता॥)
- उसने श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया।माता सीता को भी सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया।
आचार्य रावण का आगमन एवं श्री राम को आशीर्वाद
👉 रावण का समुद्र तट पर आगमन – माँ सीता और अन्य आवश्यक यज्ञ-सामग्री के साथ, रावण ने आकाश मार्ग से यात्रा की और समुद्र तट पर उतरा। यज्ञ के विधि-विधान में किसी भी कमी न रह जाए, इसका विशेष ध्यान रखा गया।
👉 सीता का विमान में ठहराव – रावण ने माता सीता को पुष्पक विमान में ही छोड़ दिया, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे सुरक्षित रहें और यज्ञ में बाधा न आए।
👉 श्री राम से भेंट – जामवंत के संदेश से पूर्व सूचना मिलने के कारण श्रीराम पहले से ही स्वागत के लिए तैयार थे। जब रावण उनके सामने पहुँचा, तो वनवासी श्री राम ने पूर्ण आदरभाव के साथ आचार्य दशग्रीव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
👉आचार्य रावण का आशीर्वाद – आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित रावण ने श्रीराम को
आशीर्वाद दिया –
“दीर्घायु भव! लंका विजयी भव!”
भावार्थ
इस प्रसंग में रावण केवल एक युद्धप्रिय असुर नहीं, बल्कि एक वेदज्ञ, मर्यादित और यज्ञ परंपराओं में आस्था रखने वाला ज्ञानी आचार्य रूप में प्रस्तुत है। यहाँ वह अपने व्यक्तिगत द्वेष को त्यागकर श्रीराम को दीर्घायु और विजय का आशीर्वाद देता है, जो उसके द्वंद्वपूर्ण व्यक्तित्व को दर्शाता है।
- "लंका विजयी भव!" – यह आशीर्वाद श्रीराम के लिए था और यह सत्य सिद्ध हुआ क्योंकि राम ने रावण को हराकर लंका पर विजय प्राप्त की।
- "सौभाग्यवती भव!" – माता सीता को यह आशीर्वाद मिला और वह अयोध्या की रानी बनीं।
3. रावण का विद्वत्ता और भविष्यदृष्टा होना
- राम और सीता बैठे हैं, रावण (श्यामवर्ण) आचार्य के रूप में है, हवन कुंड, दीप, शिवलिंग, जामवंत और हनुमान उपस्थित हैं, और सेतुबंध का दृश्य भी दिख रहा है।
रावण एक महान शिव भक्त, ज्योतिषाचार्य और भविष्यदृष्टा था। - रावण को ज्ञात हो गया था कि राम मानव रूप में स्वयं विष्णु ही हैं।
- अपने मोक्ष के लिए,
- उन्होंने भगवान राम को लंका विजय एवं देवी सीता को सौभाग्यवती का आशीर्वाद भी दिया तथा
- राम के द्वारा मृत्यु प्राप्त कर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग कण्टक-विहीन किया।।
- =======================================
जब श्रीराम ने रावण से पूछा, "दक्षिणा में क्या दूं?" तो रावण ने कहा:
👉 "जब आचार्य मृत्यु शैया ग्रहण करे, तब यजमान सम्मुख उपस्थित रहें।"
(अर्थात, "जब मेरी मृत्यु का समय आए, तब श्रीराम स्वयं मेरे पास हों।")- - रावण को ज्ञान था, और वह चाहता था कि भगवान राम स्वयं उसे मोक्ष प्रदान करें।
निष्कर्ष:
रावण एक ज्ञानी, शिव भक्त और भविष्यदृष्टा था।
युद्ध से
पहले उसने स्वयं श्रीराम को विजयी होने का आशीर्वाद दिया और माता सीता को सौभाग्य
की शुभकामना दी।
👉 रावण का यह आशीर्वाद उसकी महानता और विद्वत्ता को दर्शाता है, जो उसे केवल एक एक जटिल और अद्भुत व्यक्तित्व बनाता है।
--------------------------------
यह पूरी घटना रामायण के उस पक्ष को दिखाती है, जहाँ वम्रता,
ज्ञान और मर्यादा का
अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है। रावण वेदों और संस्कृतियों का ज्ञानी था, जिसने धर्म और सत्य को स्वीकार किया।
रामेश्वर
में शिवलिंग
स्थापना के लिए राम
ने रावण को
आचार्य बनाया।
रावण ने माता सीता
से लिंग निर्माण कराया और विधिपूर्वक अनुष्ठान संपन्न किया।
राम ने
आचार्य रावण से दक्षिणा पूछी, तो रावण ने कहा—
"जब आचार्य मृत्यु शैया ग्रहण करे, तब यजमान
सम्मुख उपस्थित रहें।"
यही राम द्वारा
रावण का अंत देखने का संकेत था!
- रावण शैव था, वैष्णव नहीं – वह शिव की उपासना करता था, परंतु विष्णु को ईश्वर (श्रेष्ठ )स्वीकारता था
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें