सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

शिव तांडव:ग्रह शांति , आपदा निवारण ,स्तोत्र ,अर्थ

 

शिव तांडव स्तोत्र का महत्व और प्रभाव

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कब करें?

  • शिव तांडव स्तोत्र का पाठ सुबह या शाम के समय करना चाहिए।
  • प्रदोष काल में इसका पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • यह स्तोत्र शनि ग्रह के दुष्प्रभाव को कम करने, कालसर्प दोष, कालसर्प योग और पितृ दोष से मुक्ति में भी सहायक माना जाता है।
  • इसके नियमित पाठ से व्यक्ति के जीवन की तमाम बाधाएं दूर हो जाती हैं, आत्मबल बढ़ता है, और चेहरे पर दिव्य तेज आ जाता है।

रावण और शिव तांडव स्तोत्र की उत्पत्ति

रावण और कैलाश पर्वत

  • रामायण के उत्तर कांड के अनुसार, जब रावण पुष्पक विमान से स्वर्ण नगरी (लंका) जा रहा था, तो उसे कैलाश पर्वत दिखा।
  • रावण ने देखा कि उसका पुष्पक विमान कैलाश पर्वत के ऊपर से नहीं जा पा रहा है।
  • उसने नंदी से इसका कारण पूछा, तो नंदी ने बताया कि यह भगवान शिव और माता पार्वती का निवास स्थान है, इसलिए कोई अपरिचित इस पर्वत के ऊपर से मार्ग नहीं बना सकता।
  • रावण ने इसे अपना अपमान समझा और कैलाश पर्वत को उठा लेने की जिद कर ली।
  • उसने अपने सभी बीस हाथों से कैलाश को उठाने का प्रयास किया, जिससे कैलाश पर्वत हिलने लगा।

    रावण नाम  पड़ा?

  • रावण ने भीषण पीड़ा और क्रोध में शिव स्तुति का उच्चारण किया, जिसे संस्कृत में "राव: सुशरूण:" कहा जाता है।
  • जब भगवान शिव प्रसन्न हुए और रावण को मुक्त किया, तब उन्होंने उसे "रावण" नाम दिया, जिसका अर्थ है "भीषण चीत्कार करने वाला"
  • तभी से दशानन को "रावण" के नाम से जाना जाने लगा।

शिव का क्रोध और रावण की भक्ति

  • भगवान शिव इस विघ्न से विचलित हुए और अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबा दिया।
  • इससे रावण की बाहें पर्वत के नीचे दब गईं और वह भयंकर पीड़ा से कराहने लगा।
  • पीड़ा से पीड़ित होकर रावण ने अपना एक सिर काटकर उससे वीणा बनाई और सामवेद में वर्णित शिव स्तोत्रों का गान करने लगा।
  • रावण ने 1000 वर्षों तक कठोर भक्ति और साधना की, जिससे अंततः भगवान शिव प्रसन्न हुए और उसे मुक्त कर दिया।

शिव तांडव स्तोत्र की महिमा

  • रावण द्वारा शिव की स्तुति के लिए गाए गए स्तोत्र को "रावण स्तोत्र" और "शिव तांडव स्तोत्र" कहा जाता है।
  • यह स्तोत्र शिव भक्तों के लिए अत्यंत प्रभावशाली और मंगलकारी माना जाता है।

    शिव तांडव स्तोत्र पढ़ने का समय एवं महत्व
    🔹 समय: प्रातःकाल, संध्याकाल या विशेष रूप से त्रयोदशी, शिवरात्रि पर।
    🔹 महत्व: शिव कृपा प्राप्ति, ऊर्जा संतुलन, नकारात्मकता नाश।

    लाभ एवं उद्देश्य
    🔹 लाभ: मानसिक शांति, आध्यात्मिक जागरण, ग्रह दोष निवारण।
    🔹 उद्देश्य: भगवान शिव की आराधना, आत्मिक शक्ति वृद्धि।

    ग्रह दोष शांति एवं आपदा निवारण
    🔹 ग्रह दोष: विशेष रूप से शनि, राहु-केतु दोष शांति में सहायक।
    🔹 आपदा निवारण: जीवन की विपत्तियों से सुरक्षा, शक्ति एवं साहस में वृद्धि।

    पुराणों में उल्लेख एवं ग्रंथ संदर्भ
    🔹 संदर्भ: रावण रचित "शिव तांडव स्तोत्र" का वर्णन कई शैव ग्रंथों में मिलता है।
    🔹 मुख्य ग्रंथ: शिवपुराण, लिंगपुराण, रुद्रसंहिता।

     संक्षिप्त सार:
    काले तिल से अभिषेक – विशेष रूप से राहु और शनि के कष्ट निवारण हेतु।
    शिव तांडव स्तोत्र का पाठ – नकारात्मक ऊर्जा हटाने, आर्थिक स्थिरता, और मानसिक शांति के लिए उत्तम।
    कलाओं से जुड़े लोगों के लिए लाभदायक – नृत्य, संगीत, लेखन, योग, ध्यान, और चित्रकला में सिद्धि प्राप्ति के लिए सहायक।
    धन-समृद्धि – इस स्तोत्र का पाठ करने वाला कभी निर्धन नहीं रहता, उसकी आर्थिक स्थिति शीघ्र सुधरती है।
    भगवान शिव की कृपा – यह स्तोत्र जीवन के सभी कष्टों को दूर करने की अद्भुत शक्ति रखता है।

    शास्त्रों में भी कहा गया है कि जो व्यक्ति श्रद्धा से शिव तांडव स्तोत्र का नित्य पाठ करता है, उसे भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है और वह जीवन में किसी भी प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर उन्नति करता है। 🚩✨

     🔱 शिव तांडव स्तोत्र का अर्थ 🔱

    1️⃣ जिनके जटाओं से निकलती गंगाजी की जलधारा उनके गले को पवित्र कर रही है, जिन्होंने अपने गले में विशाल और भयावह सर्पों की माला धारण की हुई है, जो अपने डमरू के प्रचंड डम-डम नाद से ब्रह्मांड को गुंजायमान कर रहे हैं—वे भगवान शिव हमारा कल्याण करें।

    2️⃣ जिनके मस्तक पर बहती गंगा की लहरें चंचलता से शोभायमान हो रही हैं, जिनका ललाट अग्नि के तेज से प्रज्वलित है और जिनके मस्तक पर सुंदर चंद्रमा विराजमान है—ऐसे भगवान शिव में मेरी भक्ति निरंतर बनी रहे।

    3️⃣ जिनका मन माता पार्वती के सौंदर्य और प्रेम से सदा आनंदित रहता है, जिनकी कृपा-दृष्टि से बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता है—ऐसे दिगंबर (वस्त्रहीन) भगवान शिव में मेरा मन सदा अनुरक्त रहे।

    4️⃣ जिनकी जटाओं में लहराते सर्पों के फणों की मणियों की चमक से दिशाएँ कुमकुम के रंग से लालिमा युक्त हो रही हैं, जिन्होंने मतवाले हाथी की चमड़ी को वस्त्र की भांति धारण कर रखा है—ऐसे भूतनाथ में मेरा चित्त सदा मग्न रहे।

    5️⃣ जिनके चरणकमल इंद्र सहित समस्त देवताओं द्वारा अर्पित पुष्पों की धूल से धूसरित हो रहे हैं, जो नागों की माला से सुशोभित जटाओं वाले हैं और जिनके सिर पर चंद्रमा विराजमान है—वे चंद्रशेखर हमारी समृद्धि में वृद्धि करें।

    6️⃣ जिन्होंने अपने ललाट पर प्रज्वलित अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया, जिन्हें स्वयं इंद्र भी प्रणाम करते हैं और जिनके सिर पर अमृतमय चंद्रमा सुशोभित है—वे भगवान शिव हमें अखंड ऐश्वर्य प्रदान करें।

    7️⃣ जिनके विकराल ललाट पर प्रचंड अग्नि प्रज्वलित हो रही है, जिन्होंने भयंकर अग्नि में कामदेव को भस्म कर दिया, जो माता पार्वती के स्तनों पर पत्तियों से चित्रकारी करते हैं—ऐसे त्रिनेत्रधारी शिव में मेरा मन अनुरक्त रहे।

    8️⃣ जिनका कंठ मेघों की घटाओं से ढका हुआ प्रतीत होता है, जो अमावस्या की रात के अंधकार के समान गंभीर हैं, जो गजचर्म (हाथी की खाल) को वस्त्र के रूप में धारण करते हैं—ऐसे भगवान शिव हमें समृद्धि प्रदान करें।

    9️⃣ जिनका कंठ नीलकमल की भांति गहरा नील वर्ण लिए हुए है, जो कामदेव, त्रिपुर, यमराज, गजासुर और अंधकासुर का नाश करने वाले हैं—ऐसे भगवान शिव को मैं नमन करता हूँ।

    🔟 जो समस्त कल्याणकारी शक्तियों के भंडार हैं, जिनके मुख से निकलने वाली अमृतधारा मधुमक्खियों को आकर्षित करती है और जो कामदेव, त्रिपुर, यमराज, गजासुर और अंधकासुर का विनाश करने वाले हैं—उन भगवान शिव की मैं उपासना करता हूँ।

    1️⃣1️⃣ जिनके मस्तक पर नागों के फुफकार से ललाट की प्रचंड अग्नि धधक रही है, जो अपने नृत्य से संपूर्ण ब्रह्मांड को कंपायमान कर रहे हैं और जिनके डमरू की ध्वनि आकाश में गूंज रही है—वे भगवान शिव हमारी विजय के आधार बनें।

    1️⃣2️⃣ जो मित्र और शत्रु में, हीरे और मिट्टी में, कमलनयनी स्त्रियों और सूखे तिनकों में, राजा और प्रजा में, सभी को समान दृष्टि से देखते हैं—मैं ऐसे सदाशिव की भक्ति कब प्राप्त करूँगा?

    1️⃣3️⃣ जो गंगा के तट पर, वन में निवास करते हैं, जिनके सिर पर मैं सदा अंजलि बांधे हुए खड़ा रहूँ, जिनके नेत्र करुणा से भरे हों और जो ‘शिव’ नाम के जप से मोहित होते हैं—मैं कब ऐसे शिव की भक्ति में लीन होऊँगा?

    1️⃣4️⃣ जिनकी जटाओं में सुगंधित पुष्पों की मालाएँ सुशोभित हैं, जिनकी कांति चंद्रमा की शीतल किरणों से प्रकाशित हो रही है—वे भगवान शिव हमारे मन को आनंदित करें।

    1️⃣5️⃣ जो प्रचंड अग्नि के समान पापों को जलाने वाले हैं, जिनकी स्तुति से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और जिनका विवाह मंत्रों से गूंजता रहता है—वे भगवान शिव हमारे जीवन में मंगल करें।

    1️⃣6️⃣ जो व्यक्ति इस स्तोत्र का नित्य पाठ करता है, वह शुद्ध हृदय का हो जाता है और सदैव भगवान शिव की कृपा प्राप्त करता है। वह संसार के मोह से मुक्त होकर शिव की भक्ति में लीन हो जाता है।

    1️⃣7️⃣ जो व्यक्ति प्रदोष काल (शाम के समय) में इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे धन, रथ, हाथी, घोड़े और स्थायी समृद्धि प्राप्त होती है। भगवान शिव उसे सदा प्रसन्नमुखी देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

    🔹 इस प्रकार रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र पूर्ण हुआ। 🙏🔱

    👉 जो भी श्रद्धा और भक्ति से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे शिवजी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। यह स्तोत्र समस्त संकटों का नाश करता है और सभी इच्छाओं को पूर्ण करता है। 🚩

    श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् म्पूर्ण

                       ॥ दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र ॥

    अर्थ एवं सरल पठनीय; द्वारा -पंडित विजेंद्र ,तिवारी

    जटा टवी गलज् जल प्रवाह पावित स्थले
    गलेव लम्ब्य लम्बिताम् भुजन्ग तुन्ग मालिकाम्‌।
    डमड् डमड् डमड् डमन् निनाद वड् डमर वयम्
    चकार चण्ड ताण्डवम् तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥1

    अर्थ –

    जिन शिव की सघन वन रुपी जटा से प्रवाहित होकर गंगाजी की धाराए उनके कंठ को पवित्र कर  रही है। जिनके गले में बड़े एवम लंबे सर्प माला की तरह लटक रहे  है। जो शिव डम-डम डमरू बजा रहे है, और डमरू बजाकर घोर तांडव नृत्य करते है, वे शिवजी हमारा कल्याण करे।

    जटा कटाह सम् भ्रम भ्रमन् निलिम्प निर्झरी
    विलोल वीचि वल्लरी विराज मान मूर्धनि।
    धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके
    किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रति क्षणम् मम ॥2

    अर्थ – जिन शिवजी का मस्तक जटारुपी कड़ाह में वेग से घूमती हुई गंगा की चंचल लहरों  से सुशोभित हो रहा है, मस्तक पर अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धधक-धधक कर जल रही है, सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं, उन भगवान शिव में मेरा निरंतर अनुराग हो।

    धरा धरेन्द्र नन्दिनी विलास बन्धु बन्धुरस्
    फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोद मान मानसे।
    कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरा पदि
    क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3

    अर्थ –पर्वत राज की पुत्री ,पार्वती के शिर के आभूषण से समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख जिनका मन हर्षित हो रहा है। जिनके मस्तक में सम्पूर्ण प्रणिगण वास करते है . जिनके कृपा कर देखने से ही समस्त विपत्तिया दूर हो जाती है, जो आकाश को वस्त्र सामान धारण किये हुए हैं ऐसे शिवजी की आराधना से  मेरा मन को आनन्द मिले । 

     

    जटा भुजंग पिंगलस् फुरत् फणा मणि प्रभा-
    कदम्ब कुंकुम द्रव प्रलिप्त दिग्वधू मुखे ।
    मदान्ध सिन्धुर स्फुरत् वगुत्तरीयमेदुरे
    मनो विनोद मद् भुतम् बिभर्तु भूत भर्तरि ॥4

    अर्थ – जिनकी जटाओं में घूमते , सर्पों के फनो की मणियों से निकलता हुआ केसरिया प्रकाश,एसा प्रतीत हो रहा है जैसे दिशा रुपी सुहागिन नारियों के मुख पर कुंकुम लगा हो।

    हाथी के चमड़े का वस्त्र पहने , भूतनाथ में मेरा मन अद्भुत आनंद प्राप्त करे।

    सहस्र लोच न प्रभृत्य शेष लेख शेखर-
    प्रसून धूलि धोरणी विधूसराङघ्र पीठभूः ।
    भुजङ्ग राज मालया निबद्ध जाट जूटकः
    श्रियै चिराय जायताम् चकोर बन्धु शेखरः ॥5

    र्थ– जिन शिवजी के चरण , देवताओं दरवा चरण वंदना से ,उनके मस्तक में लगे पुष्पों की धूल(झड़ते पराग कणों) से धूसरित हो गए हैं। जिनकी जटाओं को नागराज ने माला की राढ़ से लिप्त कर बाँध रखा है , ऐसे भगवान चंद्रशेखर चिरकाल के लिए हमे संपदा दे।

    ललाट चत्वर ज्वलद् धनञ्जय स्फु लिङ्गभा-
    निपीत पञ्च सायकम् नमन् निलिम्प नायकम्‌ ।
    सुधा मयूख लेखया विराज मान शेखरम्
    महा कपालि सम् पदे शिरो जटाल मस्तुनः ॥6

    अर्थ – जिन शिवजी ने, माथे पर धधकती ,अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था। जिनकी इन्द्र आदि सभी देव वंदना करते हैं।

    जिनका उन्नत जटा वाला मस्तक चंद्रमा और गंगा से शोभित है,और विशाल ललाट है ऐसे शिव  हमें सिद्धि संपत्ति प्रदान करे ।

    कराल भाल पट् टिका धगद् धगद् धगज् ज्वलद्
    धनञ् जया हुती कृत प्रचण्ड पञ्च सायके ।
    धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्र पत्रक-
    प्रकल्प नैक शिल् पिनि त्रिलोचने रतिर् मम ॥7

    अर्थ – जिन्होंने मस्तक की प्रचण्ड ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया। पृकृति को मनोहारी (जो पार्वती रूपी प्रकृति, स्तन के अग्र रूपी उच्च स्थल पर,मनोहारी सौन्दर्य )बनाने में कुशल है,  ऐसे भगवान त्रिलोचन में मेरा मन रमा  रहे।

    नवीन मेघ मण्डली निरुद्ध दुर्धरस् फुरत्
    कुहू निशी थिनी तमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः ।
    निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः
    कला निधान बन्धुरः श्रियम् जगद् धुरन् धर: ॥8

    अर्थ – जिनका कंठ ,मेघो की घटाओ से परिपूर्ण अमावस्या की रात्रि के समान काला है, जो गजचर्म लपेटे हुए हैं, चन्द्रमा के समान मनोहर कांतिवाले  , संसार के भार को धारण करने वाले भगवान गंगाधर हमे सभी प्रकार की समृद्धि  प्रदान करे।  

     प्रफुल्ल नील पङकज प्रपञ्च कालिम प्रभा
    वलम्बि कण्ठ कन्दली रुचि प्रबद्ध कन्धरम्‌।
    स्मरच् छिदम् पुरच् छिदम् भवच् छिदम् मखच् छिदम्
    गजच् छिदान्ध कच् छिदम् तमन्त कच् छिदम् भजे ॥9

    अर्थ – जिनका कंठ खिले हुए नील कमल समूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करने वाली है तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव ( संसार ), दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी संहार करने वाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।


    अखर्व सर्व मङ्गला कला कदम्ब मञ्जरी
    रस प्रवाह माधुरी विजृम् भणा मधु व्रतम्‌।
    स्मरान् तकम् पुरान् तकम् भवान् तकम् मखान् तकम्
    गजान्तकान्ध कान्तकम् तमन्त कान्तकम् भजे ॥10

    अर्थ – जो अभिमान रहित पार्वती जी के कलारूप कदम्ब मंजरी के मकरंद स्रोत की बढ़ती हुई माधुरी के पान करने वाले भँवरे हैं तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्षयज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी अंत करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ।

    जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्गम श्वस
    द्विनिर्ग मत् क्रमस् फुरत् कराल भाल हव्य वाट्।
    धिमिद् धिमिद् धिमिद् ध्वनन् मृदङ्ग तुङ्ग मङ्गल
    ध्वनि क्रम प्रवर् तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11

    अर्थ – जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए साँपों के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है। धीमे धीमे बजते हुए मृदंग के गंभीर मंगल स्वर के साथ जिनका प्रचंड तांडव हो रहा है , उन भगवान शंकर की जय हो।

    दृषद् विचित्र तल्प योर् भुजङ्ग मौक्ति कस्र जोर
    गरिष्ठ रत्न लोष्ठयोः सुहृद् विपक्ष पक्ष योः।
    तृणार विन्द चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः
    सम प्रवृत्ति कः कदा सदा शिवं भजाम्यहम् ॥12

    अर्थ – पत्थर और सुन्दर बिछौनों में, सांप और मोतियों की माला में, बहुमूल्य रत्न और मिटटी के ढेले में, मित्र या शत्रु पक्ष में, तिनका या कमल के समान आँखों वाली युवती में, प्रजा और पृथ्वी के राजाओं में समान भाव रखता हुआ मैं कब सदाशिव को भजूँगा ?

    कदा निलिम्प निर्झरी निकुञ्ज कोटरे वसन्‌
    विमुक्त दुर् मतिः सदा शिरःस्थ मञ्जलिम् वहन्‌।
    विलोल लोल लोचनो ललाम भाल लग्नकः
    शिवेति मन्त्र मुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13

    अर्थ – सुन्दर ललाट वाले भगवान चन्द्रशेखर में मन को एकाग्र करके अपने कुविचारों को त्यागकर गंगा जी के तटवर्ती वन के भीतर रहता हुआ सिर पर हाथ जोड़ डबडबाई हुई विह्वल आँखों से शिव मंत्र का उच्चारण करता हुआ कब सुखी होऊंगा ?

    श्लोक 14

    निलिम्पनाथनगरी कदम्ब मौक्तिकालं
    निष्कुटनिष्कसनसंस्मृतौपगन्धः।
    तन्वङ्गनाभरण विभूषितमङ्गबङ्गं
    पर्यस्य पुरः पद दर्शनाल दधातु चित्तम्॥ ११४॥

    अर्थ:
    देवांगनाओं (अप्सराओं) के सिर से गिरे हुए पुष्पों की मालाएँ जब झड़कर तुम्हारे चरणों में गिरती हैं, तो वे हमारी भक्ति को और अधिक बढ़ा देती हैं। ये सुगंधित पुष्प हमारी श्रद्धा, प्रेम और भक्ति को पुष्ट करते हैं, जिससे हमारा मन भगवान शिव के चरणों में स्थिर हो जाता है।


    श्लोक 15
    पृथङ्ग वाड्ग्ललन पुष्पोभूष्यचारणी
    महत्सिद्धिकमिनि जनावहूत जल्पम्।
    विभुत्व वीत लानाम विवाहकालिकदर्शनं
    श्रयते मन्मधभुजंग जाज्वल्यम् जायालम्॥ १५॥

    अर्थ:
    महान ऋषि-मुनियों और सिद्ध महापुरुषों द्वारा जिनका गुणगान किया जाता है, उन शिवजी का विवाह दृश्य अत्यंत मंगलमय है। यह समस्त संसार के दुःखों को दूर करने वाला है और सभी को विजय प्रदान करने वाला है। शिव-पार्वती विवाह का यह दृश्य जो भी स्मरण करता है, वह शिवजी के आशीर्वाद से समस्त सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर परम आनंद को प्राप्त करता है।


    ॐ नमः शिवाय

    गणेश वंदना
    वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि सम प्रभः ।
    निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

     शिमहा म्रत्युन्जय मन्त्र
    त्र्यं॑बकं यजामहे सुग॒न्धिं पु॑ष्टि॒वर्ध॑नं ।
    उ॒र्वा॒रु॒क मि॑व॒ बन्ध॑नान्-मृत्यो॑र्-मुक्षीय॒ मामृतात्
    वन्दे शम्भुम मा पतिं सुर गुरुं वन्दे जगत्कारणं
    वन्दे पन्नग भूषणं शशिधरं वन्दे पशूनां पतिम्‌ ।
    वन्दे सूर्य शशाङ्क वह्नि नयनं वन्दे मुकुन्द प्रियं


     



     





















टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्राद्ध की गूढ़ बाते ,किसकी श्राद्ध कब करे

श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...