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नारियल-स्थापना“श्रीफल – रखने की विधि (Ritual Method of Placing the Coconut)एवं कलश रहस्य”

 

📜 नारियल


-स्थापनाश्रीफल – रखने की विधि (Ritual Method of Placing the Coconut)एवं कलश रहस्य

(Śrīphala Granthaḥ – The Scriptural Secret of Coconut and Kalash)


🔶 प्रस्तावना (Introduction)

हिन्दी: पूजा में कलश पर नारियल रखना अत्यंत पवित्र और अनिवार्य विधान है। यह श्रीफल लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है।
English: Placing a coconut upon the sacred Kalash is a divine act symbolizing prosperity and purity. The Shreephal is the form of Goddess Lakshmi Herself.


🌺 . कलश का धार्मिक आधार (Scriptural Foundation of the Kalash)

शास्त्र प्रमाण (Nirnaya Sindhu):
🔴 "कलशे देवा वसन्त्येव सर्वतीर्थानि स्थिताः।
तस्मात् कलशमासाद्य सर्वदेवमयो भवेत्॥"

अर्थ (Meaning):
कलश में समस्त देवताओं और तीर्थों का निवास माना गया है। अतः पूजा में कलश की स्थापना करने से सम्पूर्ण देवमय वातावरण बनता है।
All deities and sacred rivers reside in the Kalash; thus, its installation makes the ritual complete and divine.


🌴 . नारियल का शास्त्रीय महत्व (Spiritual Significance of Coconut)

प्रमाणधर्मसिन्धु:
🔴 "श्रीफलं श्रीसमं प्रोक्तं तद् गृह्णाति सुखावहम्।
यत्र श्रीफलं विद्यते तत्र देवो तिष्ठति॥"

अर्थ:
नारियल को श्रीफल कहा गया है क्योंकि यह लक्ष्मी का प्रतीक है। जहाँ श्रीफल नहीं होता, वहाँ देवता का वास नहीं होता और पूजा अधूरी रहती है।
The coconut is called Shreephal — the fruit of Goddess Lakshmi. Without it, the divine energy does not stay, and the worship remains incomplete.


🌸 . नारियल रखने की विधि (Ritual Method of Placing the Coconut)

प्रमाण (Nirnaya Sindhu):
🔴अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय, ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै।
प्राचीमुखं वित विनाशनाय, तस्मात् शुभं संमुख्यं नारीलेलंष्।

अर्थ:
नारियल का मुख नीचे हो तो शत्रु बढ़ते हैं, ऊपर हो तो रोग बढ़ते हैं, पूर्वमुखी हो तो धनहानि होती है। अतः मुख पूजा करने वाले की ओर रखना ही शुभ है।


Downward coconut increases enemies, upward brings disease, east-facing causes loss; hence, keep it facing the devotee — this is auspicious
.

 

📜 ग्रंथ-उद्धरण

श्लोक:

अधोमुखं शत्रुनिवर्धनाय ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोगवृद्ध्यै
प्राचीमुखं वित् विनाशनाय तस्मात् शुभं संमुख्यं नारिकेलम्

हिन्दी अर्थ:

  • यदि नारियल का मुख नीचे (अधोमुख) हो तो शत्रुओं की वृद्धि होती है।
  • यदि मुख ऊपर (ऊर्ध्वमुख) हो तो अनेक रोगों की वृद्धि होती है।
  • पूर्व दिशा (प्राचीमुख) की ओर मुख करके रखने से विनाश का योग है।
  • अतः नारियल को सन्मुख अर्थात् पूजक की ओर मुख करके रखना शुभ है।

स्रोत: यज्ञ मीमांसा, पृ. 346

📜 नारिकेल प्रयोग: शास्त्रीय प्रमाण, निषेध एवं फल

१. यज्ञ मीमांसा प्रमाण (पृ. ३४६)

अधोमुखं शत्रुनिवर्धनाय ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोगवृद्ध्यै ।
प्राचीमुखं वित् विनाशनाय तस्मात् शुभं संमुख्यं नारिकेलम् ॥”

यह श्लोक बताता है कि नारियल की दिशा पूजा के परिणाम को प्रभावित करती है।
अधोमुख नारियल शत्रु-वृद्धि का, ऊर्ध्वमुख अनेक रोगों का, पूर्वमुख धन-हानि व विनाश का कारण बनता है।
अतः नारियल सन्मुख (पूजक की ओर) रखना शुभ माना गया है।

२. पुराण प्रमाण

(क) ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण जन्म खंड –
नारिकेलं महादेव प्रियं नित्यं प्रशस्यते ।
यत्र नारिकेलं दत्तं तत्र लक्ष्म्याः स्थिरं वसः ॥

अर्थ — जहाँ नारियल का अर्पण किया जाता है, वहाँ स्थायी लक्ष्मी का वास होता है।
यह शुभ एवं सौभाग्यदायक माना गया है।

(ख) अग्नि पुराण, अध्याय १९९ —
“श्रीफलं शिरसि न्यस्य सर्वपापैः प्रमुच्यते।”
अर्थ — जब व्यक्ति पूजा में श्रीफल रखकर सिर पर धारण करता है, तो उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

३. निर्णय सिंधु एवं धर्मसिंधु प्रमाण

निर्णय सिंधु (पूजाविधान खंड) में उल्लेख है कि कलश-स्थापना के समय नारियल का उपयोग करते समय
तिथि, नक्षत्र और दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
अमावस्या, चतुर्दशी, कृष्ण पक्ष की द्वादशी तथा अशुभ योगों में नारियल स्थापना या दान वर्जित मानी गई है।

४. नारियल के शुभ-अशुभ संकेत

• नारियल से पुष्प निकलना — अत्यंत शुभ, सौभाग्य और संपत्ति का सूचक।
• जलयुक्त नारियल — मनोकामना सिद्धि का प्रतीक।
• नारियल फटने पर जल शुद्ध एवं सुगंधित हो — कार्य सिद्धि और लक्ष्मी आगमन का संकेत।
• नारियल सूखा या काला हो — रोग, मानसिक चिंता या कार्यविघ्न का संकेत।
• पूजा के दौरान नारियल का स्वतः गिरना — यज्ञ की अपूर्णता या अशुभ योग का द्योतक।
५. तिथि, नक्षत्र एवं योग निषेध

निर्णय सिंधु, धर्मसिंधु और अग्नि पुराण के अनुसार —
चतुर्दशी, अमावस्या, कृष्ण पक्ष की एकादशी, तथा अशुभ योगों (व्यतीपात, वैधृति) में
नारियल का पूजन या स्थापना नहीं करनी चाहिए।
राहुकाल या यमगंड के समय श्रीफल अर्पण भी वर्जित माना गया है।
६. निष्कर्ष

शास्त्रों के अनुसार नारियल की स्थापना तभी फलदायक होती है जब वह
सन्मुख, ऊर्ध्वरेशीय, शुद्ध जलयुक्त तथा शुभ तिथि-नक्षत्र में की जाए।
नारियल के माध्यम से जल, अग्नि, पृथ्वी और वायु — चारों तत्त्वों का समन्वय होता है,
अतः यह ब्रह्मांडीय समरसता का प्रतीक है।


🌺 नारियल-स्थापना के शुभ-अशुभ प्रभाव

(Scriptural Effects of Coconut Placement in Rituals)


🔷 अधोमुख (नारियल नीचे की ओर मुख वाला)

📜 शास्त्रीय स्रोत: यज्ञ मीमांसा, पृ. 346

अधोमुखं शत्रु-वर्धनाय...”

🔹 प्रभाव:

  • यह स्थिति अशुभ मानी गई है।
  • अधोमुख नारियलपातालगामी ऊर्जाका प्रतीक होता है
    इससे शत्रुओं की वृद्धि, दुर्योग, और मानसिक तनाव बढ़ता है।
  • निर्णयसिन्धु में इसे स्पष्टशत्रु-वृद्धिका कारण कहा गया है।

🔹 वैज्ञानिक / आध्यात्मिक तर्क:

नीचे की ओर मुख करने पर ऊर्जा प्रवाह नीचे जाता है (भूमि तत्व में),
जो स्थिरता के स्थान पर जड़ता और बाधा को बढ़ाता है।

🔹 फलादेश:

🚫 हानि, मुकदमे, शत्रु-द्वेष, वैर-वृद्धि, धन-क्षय।


🔶 ऊर्ध्वमुख (नारियल ऊपर की ओर मुख वाला)

📜 श्लोक:

ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोगवृद्ध्यै...”

🔹 प्रभाव:

  • यज्ञ मीमांसा बताती है कि ऊपरमुखी नारियल से रोगों की वृद्धि होती है।
  • यह स्थिति असंतुलन, अधिक अग्नि तत्व और दाह का प्रतीक है।

🔹 फलादेश:

🚫 शारीरिक पीड़ा, मानसिक तनाव, स्वास्थ्य में अवरोध, परिवार में रोग या शल्यचिकित्सा योग।

🔹 कारण:

ऊर्ध्वमुख नारियल से अग्नि-ऊर्जा असंतुलित होकर शरीर और मन पर विपरीत प्रभाव डालती है।


🌅 प्राचीमुख (पूर्व दिशा की ओर मुख वाला)

📜 श्लोक:

प्राचीमुखं वित्-विनाशनाय...”

🔹 प्रभाव:

  • यह दिशा धन-विनाश का संकेत देती है।
  • पूर्व दिशा अग्नि और सूर्य की है; गलत दिशा में मुख रखने सेधन-स्रोतों का ह्रासबताया गया है।

🔹 फलादेश:

🚫 आर्थिक हानि, असफलता, अपमान, और व्यवसाय में बाधा।


🌞 सन्मुख (पूजक की ओर मुख वाला)

📜 श्लोक:

तस्मात् शुभं संमुख्यं नारिकेलम्।

🔹 प्रभाव:

  • यह स्थिति अत्यंत शुभ मानी गई है।
  • सन्मुखका अर्थपूजक की ओर मुख (आह्वान दिशा)
  • यह स्थिति देवता-ऊर्जा और साधक के समागम-संपर्क को दर्शाती है।
  • धन, सौभाग्य, स्वास्थ्य, मनोकामना-सिद्धि, और नूतन प्रारंभ के लिए उत्तम।

🔹 फलादेश:

कार्यसिद्धि, समृद्धि, देवकृपा, रोगमुक्ति, परिवार में सुख, व्यापार में प्रगति।


📚 अन्य ग्रंथ प्रमाण

ग्रंथ

श्लोक / संदर्भ

परिणाम

निर्णयसिन्धु

नारिकेलं अधोमुखं स्थापयेत्, शत्रुवृद्धिः।

शत्रु-वृद्धि

धर्मसिन्धु

नारिकेलं ऊर्ध्वमुखं स्थापयेत्, परावृत्तं शुभं।

विपरीत दिशा अशुभ

ब्रह्मवैवर्तपुराण

नारिकेलं तु यः पूज्यं... सर्वकामसिद्ध्यर्थं धनधान्यसमन्वितः।

श्रीफल-पूजन से धन-संपत्ति

स्कन्दपुराण (काशीखण्ड)

श्रीफलदानं सर्वमङ्गलप्रदं स्मृतम्।

नारियल दान सर्वमंगलकारी


🪔 शास्त्रीय निष्कर्ष

स्थापना प्रकार

दिशा/मुख

फलादेश

शास्त्रीय स्थिति

अधोमुख

नीचे की ओर

शत्रु-वृद्धि, विघ्न

अशुभ

ऊर्ध्वमुख

ऊपर की ओर

रोग-वृद्धि

अशुभ

प्राचीमुख

पूर्व दिशा

धन-हानि

अशुभ

सन्मुख

पूजक की ओर (पूर्वोत्तर या ईशान कोण)

धन, कीर्ति, कार्यसिद्धि

शुभ


💠 निष्कर्षात्मक श्लोक (संस्कृत-संहित रूप में)

अधोमुखं शत्रुकरं, ऊर्ध्वमुखं रोगकरं, प्राचीमुखं धननाशकरं।
सन्मुखं नारिकेलं स्थापयेत्, सर्वसिद्धिप्रदं भवेत्॥

अर्थ:
अधोमुख नारियल शत्रु-वृद्धि करता है, ऊर्ध्वमुख रोग-वृद्धि करता है,
पूर्वमुख धन-विनाश करता है; अतः सन्मुख नारियल स्थापना से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

  •  

उपयोग हेतु सुझाव

🪔 . कलश पर नारियल रखने का मंत्र (Mantra for Placing Coconut on Kalash)

🔴 " श्रीफलाय नमः।
कलशस्थ देवताभ्यो नमः।
श्री लक्ष्म्यै नमः।"

अर्थ:
इस श्रीफल के माध्यम से मैं लक्ष्मी, कलशस्थ देवताओं और जलदेवता का पूजन करता हूँ, कि वे मुझे सफलता, समृद्धि और सुख प्रदान करें।
Through this sacred coconut, I invoke Lakshmi, the deities within the Kalash, and the water-gods to bless me with success and peace.


🌿 . रामायण, महाभारत एवं धर्मशास्त्रीय प्रमाण (Epics & Dharma Text References)

() रामायण प्रमाण:
🔴श्रीफलं पूज्यं रामेण सीतायाः स्वयमेव दत्तम्।
अर्थ: भगवान राम ने सीता स्वयंवर में श्रीफल अर्पण किया जो शुभ और विजय का प्रतीक माना गया।

() महाभारत प्रमाण:
🔴युधिष्ठिरेण राजसूये यज्ञे देवाय कल्पितः कलशः श्रीफलेन सुशोभितः।
अर्थ: युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ में देवताओं के आह्वान हेतु कलश पर नारियल रखकर पूर्णता प्राप्त की।

() जैन प्रमाण:
जैन आगमों में श्रीफल को "सत्य-फल" कहा गया हैजो ज्ञान, संयम और पूर्णता का प्रतीक है।

() बौद्ध प्रमाण:
बौद्ध ग्रंथ धम्मपद में श्रीफल को शुद्ध चित्त का प्रतीक बताया गया हैजैसे नारियल भीतर से श्वेत होता है वैसे ही मन शुद्ध होना चाहिए।


🌸 . नारियल से जुड़ी सावधानियाँ (Precautions & Directional Rules)

हिन्दी:

  • नारियल कभी उल्टा रखें।
  • टूटा, सूखा या रिसता हुआ नारियल प्रयोग करें।
  • नारियल का मुख पूजा करने वाले की ओर रहे।
  • कलश के नीचे चावल या जौ रखें, उन्हें हल्दी से पीला करना शुभ है।

English:

  • Never place coconut upside down.
  • Avoid cracked, dry, or leaking coconuts.
  • Keep the mouth of the coconut facing the worshipper.
  • Place yellowed rice or barley beneath the Kalash for auspiciousness.

🔮 .यदि नारिय  खराब निकले तो क्या करें (If the Coconut Spoils in Pooja)

हिन्दी:
यदि पूजा के समय नारियल से दुर्गंध या काला भाग निकले तो घबराएँ नहींयह कोई अपशकुन नहीं है, बल्कि सावधानी का संकेत है।
English:
If the coconut appears spoiled or smells bad, don’t panic — it’s not bad omen but a signal for spiritual caution.

उपाय (Remedy):
नया नारियल अर्पित करें, पुराना वृक्ष के नीचे या प्रवाहित जल में विसर्जित करें।
Offer a fresh coconut and immerse the spoiled one respectfully under a tree or flowing water.


🌼 . पूजा पश्चात नारियल का प्रयोग (Post-Pooja Usage)

हिन्दी:

  • पूजा के बाद नारियल को लाल वस्त्र में बाँधकर तिजोरी, मंदिर या पवित्र स्थान पर रखें।
  • उसे फोड़ना केवल विशेष अनुष्ठान (जैसे संकल्प पूर्णता) पर ही उचित है।

English:

  • After pooja, wrap the coconut in red cloth and keep it in temple or locker.
  • It should be broken only on special completion rituals.

🌞 . नारियल से मिलने वाले फल (Spiritual & Material Benefits)

प्रमाणधर्मसिन्धु:
🔴 "श्रीफलं लक्ष्म्याः प्रतीकं पूजनेन सर्वसिद्धिदम्।"

अर्थ:
श्रीफल लक्ष्मी का प्रतीक हैइसकी पूजा से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
The coconut represents Goddess Lakshmi, and worshipping it bestows all forms of success.

फल:

  • नारियल से पुष्प निकलना सौभाग्य और संपत्ति का सूचक है।
  • जलयुक्त नारियल मनोकामना सिद्धि का संकेत है।
  • श्रीफल की स्थापना धन, स्वास्थ्य और कीर्ति प्रदान करती है।

    📜 《श्रीफलग्रन्थः – नारियल एवं कलश रहस्य

    (Śrīphala Granthaḥ – The Scriptural Secret of Coconut and Kalasha)


    🔹 1. नारियल का शास्त्रीय मूल

    संस्कृत श्लोक:
    🔴 "नारिकेलं तु श्रीफलम् इति प्रसिद्धं देवपूजायां विशेषतः।"
    (निर्णयसिन्धु, पूजाविधिप्रकरण)

    हिंदी: नारियल को श्रीफल कहा गया है, यह विशेष रूप से देवपूजा में शुभ फलदायक माना गया है।
    English: Coconut is known as Śrīphala and is considered highly auspicious, especially in divine worship.


    🔹 2. देवता एवं पूजक की दिशा अनुसार मुख निर्धारण

    हिंदी: नारियल का मोटा भाग पूजक की ओर और पतला भाग देवता की ओर रखना चाहिए।
    English: The thicker end of the coconut should face the worshipper, and the thinner end should face the deity.

    शास्त्र प्रमाण:
    🔴 "नारिकेलं पूजकं प्रति स्थूलं भागं स्थापयेत्। देवं प्रति तु सूक्ष्मं भागं, एवं पूजाफलप्रदं भवेत्।"
    (निर्णयसिन्धु, पूजाकाण्ड, श्लोक २८)


    🔹 3. शुभ-अशुभ प्रभाव (Good–Bad Effects)

    हिंदी:

    • यदि नारियल से पुष्प निकल आए तो यह सौभाग्य, धन, और शुभ संतान का सूचक है।

    • यदि नारियल में जल पाया जाए, तो यह मनोकामना सिद्धि का संकेत है।

    • परंतु यदि नारियल फट जाए या काला हो जाए, तो वह अपशकुन माना जाता है।

    English:

    • If a flower sprouts from a coconut, it indicates fortune, wealth, and blessed progeny.

    • If it contains water, it symbolizes fulfillment of desires.

    • However, a cracked or blackened coconut is considered inauspicious.

    शास्त्र प्रमाण:
    🔴 "नारिकेलात् पुष्पोत्पत्तिः शुभफलप्रदा। जलयुक्तं मनःकामार्थसिद्ध्यर्थं, कृष्णं वा विदीर्णं तु न द्रष्टव्यम्।"
    (स्कन्दपुराण, ब्रह्मखण्ड, श्रीफलविधान)


    🔹 4. नारियल रखने की विधि व निषेध

    हिंदी: पूजन के उपरांत नारियल को घर में अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए।
    English: After worship, the coconut should not be kept in the house for long.

    शास्त्र प्रमाण:
    🔴 "पूजितं श्रीफलं दीर्घकाले न स्थापयेत्, तेन धनक्षयः स्यात्।"
    (धर्मसिन्धु, पूजाविधान)


    🔹 5. तिथि–नक्षत्र–वार अनुसार वर्जन

    हिंदी:

    • अमावस्या, चतुर्दशी, या कृष्णपक्ष अष्टमी तिथियों में नारियल का उपयोग वर्जित है।

    • भरणी, कृत्तिका, मघा, एवं मूल नक्षत्रों में नारियल फोड़ना निषिद्ध माना गया है।

    English:

    • On Amavasya, Chaturdashi, or Krishna Ashtami, using or breaking coconut is prohibited.

    • Bharani, Krittika, Magha, and Moola Nakshatras are inauspicious for coconut rituals.

    शास्त्र प्रमाण:
    🔴 "अमावास्यायां चतुर्दश्यां च कृष्णाष्टम्यां च नारिकेलविधिर्न कर्तव्यः। भरण्यादिषु नक्षत्रेषु तद्वर्जनं स्मृतम्।"
    (निर्णयसिन्धु – पूजाकालविचार, पृ. ५४५)


    🔹 6. पूजन समय एवं जल–तत्व सम्बन्ध

    हिंदी: नारियल में जल का संबंध अप्सराओं और वरुण तत्व से है, अतः इसे सदा शुद्ध जल से अभिषेक के साथ ही अर्पित करना चाहिए।
    English: The water within the coconut represents the Varuna (water element), so it should always be offered after purification with holy water.

    शास्त्र प्रमाण:
    🔴 "अप्सरासं सम्बद्धं जलं तु नारिकेलेऽन्तर्गतं तस्मादभिषेकपूर्वकं देवेभ्यो निवेदयेत्।"
    (याज्ञवल्क्यस्मृति – पूजाविधिप्रकरण)


    🔹 7. श्रीफल का प्रतीकात्मक अर्थ

    हिंदी: श्रीफल त्रिगुणात्मक प्रतीक है — बाह्य खोल तम, मध्यशर्करा रज, अंतर्जल सत् का प्रतीक है।
    English: The coconut symbolizes the three gunas: outer shell for Tamas, middle fiber for Rajas, and inner water for Sattva.


    🔹 8. निष्कर्ष

    हिंदी: नारियल श्रीफल के रूप में देवता के लिए सर्वोच्च फल है, परंतु उसके प्रयोग में दिशा, तिथि, नक्षत्र एवं स्थिति का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
    English: The coconut, as Śrīphala, is the most sacred fruit for deities; however, one must observe correct direction, date, and Nakshatra while using it.


🔱 १०. निष्कर्ष (Conclusion)

हिन्दी: कलश पर नारियल रखना केवल परंपरा नहीं, यह देवता आवाहन, श्रीलक्ष्मी पूजन, और आत्म-शुद्धि का गूढ़ रहस्य है।
English: Placing coconut on the Kalash is not just ritual — it’s the sacred secret of invoking divinity, Lakshmi’s grace, and inner purification.


🪶 Compiled by: V.K. Tiwari
📚 Scriptural Sources: धर्मसिन्धु, निर्णयसिन्धु, महाभारत, रामायण, जैन आगम, बौद्ध धम्मपद

 

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संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...