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- नए वस्त्र, आभूषण और वस्तुओं सोलह श्रृंगार का फल (शास्त्रीय संदर्भ सहित)
नए वस्त्र धारण नए वस्तु/सामान प्रयोग (गृह/वाहन/धन)और वस्तुओं का प्रयोग करना शास्त्रों के अनुसार अत्यंत शुभ है।
यह दिन लक्ष्मी-कृपा, यश और संपत्ति वृद्धि करने वाला है।
- वार: शुक्रवार (लक्ष्मी-प्रिय)
- नक्षत्र: धनिष्ठा
- तिथि: आश्विन शुक्ल एकादशी (पापांकुशा एकादशी)
✨ 1. नए वस्त्र धारण नए वस्तु/सामान प्रयोग (गृह/वाहन/धन)
(शुक्रवार – बृहदधर्मपुराण):
“शुक्रवासरे यः वस्त्रं सुवर्णं वा धारयेत्, तस्य लक्ष्मीः स्थिरा भवेत्”
👉 निष्कर्ष: शुक्रवार + धनिष्ठा में नए वस्त्र पहनने से ऐश्वर्य, सम्मान और लक्ष्मी की स्थिरता।
बृहद्संहिता – वारफलकांड:
“शुक्रवासरे सुवर्णाभरणधारणं सर्वत्र श्रेयस्करं”
👉 शुक्रवार को सोनें/स्वर्ण आभूषण पहनने से वैवाहिक सुख, सौंदर्य और सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है।
(शुक्रवार – धर्मसिन्धु):
“शुक्रवासरे गृहक्रयः स्त्रीसुखधनसमृद्धिदः”
👉 शुक्रवार को नया घर/वाहन/सामान प्रयोग करने से धन, वैभव और स्त्री-सुख प्राप्त होता है।
– ज्योतिषार्णव नवनीतम्:
“धनिष्ठायां रत्नाभरणधारणं सौख्यं महद्व्यवहारजयं च”
👉 धनिष्ठा नक्षत्र में आभूषण पहनने से सौभाग्य और व्यापार में विजय मिलती है।
– मुहूर्त चूडामणि
“धनिष्ठायां वस्त्रधारणं राज्यलाभकरं भवेत्”
📖 मुहूर्त चूडामणि ग्रंथ में वर्णित है कि धनिष्ठा नक्षत्र में वस्त्र धारण करने से राजकीय आदर, यश और धनलाभ होता है।
मुहूर्तरत्नाकर:
“धनिष्ठायां गृहप्रवेशे धान्यसमृद्धिः, धने प्रयोगे वृद्धिः”
👉 धनिष्ठा नक्षत्र में नया सामान, धन, वाहन या गृह-संबंधी वस्तुओं का प्रयोग करने से संपत्ति वृद्धि और स्थायी सुख होता है।
👉
शुक्ल पक्ष की एकादशी पर — 🕉️ मुख्य
सार
👉 शुक्ल पक्ष की एकादशी पर सोलह श्रृंगार का प्रयोग यदि भक्ति और पवित्रता के भाव से हो —
- तो इसका फल केवल सौंदर्य और सुख-संपत्ति ही नहीं, बल्कि लक्ष्मी-नारायण की विशेष कृपा भी देता है।
- प्रत्येक श्रृंगार वस्तु अपने आप में एक आध्यात्मिक प्रतीक है।
·
श्रृंगार
→ लक्ष्मी-कृपा, सौभाग्य और आयुष्यमान।
·
मेहँदी/आलता → दाम्पत्य सुख, मानसिक शांति और सौंदर्य-वृद्धि।
·
साज-सज्जा व आभूषण → स्थिर लक्ष्मी, वैभव और सम्मान।
🕉️ मुख्य संकेत
👉 शुक्ल पक्ष की एकादशी पर जब स्त्री सोलह श्रृंगार करती है और इसे अहंकार नहीं, भक्ति और सौभाग्य भाव से करती है, तब –
- यह केवल सौंदर्य का साधन नहीं रहता,
- बल्कि आध्यात्मिक साधना और देवी-लक्ष्मी के आवाहन का माध्यम बन जाता है।
एकादशी पर सोलह श्रृंगार का फल (शास्त्रीय संदर्भ सहित)
|
क्रम |
श्रृंगार (श्रृंगारिक वस्तु) |
एकादशी पर प्रयोग का फल |
ग्रंथ-संदर्भ |
|
1 |
कुंकुम/बिंदी |
लक्ष्मी-कृपा, सौंदर्य व दाम्पत्य सुख |
व्रतराज |
|
2 |
काजल |
नेत्र-प्रभा, बुरी दृष्टि से रक्षा |
ज्योतिषार्णव |
|
3 |
सिंदूर |
पति-सौभाग्य और आयुष्यमान |
धर्मसिन्धु |
|
4 |
मेहँदी (हिना) |
मन की प्रसन्नता, दाम्पत्य सुख |
ज्योतिषार्णव |
|
5 |
आलता |
नारी-सौंदर्य, मंगलभाव |
मुहूर्तरत्नाकर |
|
6 |
गजरा (फूल) |
लक्ष्मी-प्रसन्नता, शीतलता |
बृहद्संहिता |
|
7 |
चूड़ियाँ |
सौभाग्य-सिद्धि, पारिवारिक सुख |
व्रतराज |
|
8 |
मंगलसूत्र |
पति-सुख, परिवार रक्षा |
धर्मसिन्धु |
|
9 |
कर्णफूल/झुमके |
सौंदर्य, शुभ वचन सिद्धि |
ज्योतिषार्णव |
|
10 |
हार/माला |
यश, सम्मान, सौंदर्य |
मुहूर्त चूडामणि |
|
11 |
अंगूठी/अंगुरिया |
व्यापार-लाभ, भाग्य वृद्धि |
बृहद्संहिता |
|
12 |
कमरबंद (मेखला) |
स्त्री-शोभा, दाम्पत्य सामंजस्य |
ज्योतिषार्णव |
|
13 |
पायल/नूपुर |
लक्ष्मी आगमन, घर में आनंद |
धर्मसिन्धु |
|
14 |
बिछिया (अंगूठी पैरों की) |
पति-सुख और स्थिर सौभाग्य |
व्रतराज |
|
15 |
कंघी / केश-आभूषण |
मन की शांति, आकर्षण |
बृहद्संहिता |
|
16 |
इत्र/सुगंध |
देवकृपा, शुभकार्य सिद्धि |
मुहूर्तरत्नाकर |
🌸 एकादशी पर
सोलह श्रृंगार
– फल व
दैवी प्रतीकात्मक
अर्थ
|
क्रम |
श्रृंगार |
एकादशी पर शास्त्रीय फल |
दैवी प्रतीकात्मक अर्थ (आध्यात्मिक संकेत) |
|
1 |
बिंदी / कुंकुम |
लक्ष्मी-कृपा, दाम्पत्य सुख |
आज्ञा चक्र का बिंदु – एकाग्रता व दिव्य दृष्टि |
|
2 |
काजल |
नेत्र-प्रभा, बुरी दृष्टि से रक्षा |
नेत्रों को दिव्य दर्शन हेतु पवित्र बनाना |
|
3 |
सिंदूर |
पति-सौभाग्य, आयुष्यवृद्धि |
शक्ति व शिव का संयोग |
|
4 |
मेहँदी (हिना) |
दाम्पत्य सुख, प्रसन्नता |
प्रेम, शीतलता और समर्पण का प्रतीक |
|
5 |
आलता |
सौंदर्य, मंगलभाव |
धरती से जुड़ाव व लक्ष्मी आगमन |
|
6 |
गजरा (फूल) |
लक्ष्मी-प्रसन्नता, शीतलता |
शुभता, सुगंध और भक्ति का द्योतक |
|
7 |
चूड़ियाँ |
पारिवारिक सुख, सौभाग्य |
समय-चक्र, जीवन-निरंतरता |
|
8 |
मंगलसूत्र |
पति-सुख, परिवार रक्षा |
बंधन और वैवाहिक स्थिरता |
|
9 |
कर्णफूल |
शुभ वचन सिद्धि, सौंदर्य |
श्रवण-शक्ति का शुद्धिकरण (केवल सत्संग सुनना) |
|
10 |
हार/माला |
यश, सम्मान, सौंदर्य |
कंठ चक्र शुद्धि, वाणी की पवित्रता |
|
11 |
अंगूठी |
व्यापार-लाभ, भाग्य वृद्धि |
हस्तचक्र शक्ति – कर्म की शुद्धि |
|
12 |
कमरबंद (मेखला) |
दाम्पत्य सामंजस्य, शोभा |
मूलाधार स्थिरता – जीवन में संतुलन |
|
13 |
पायल/नूपुर |
घर में आनंद, लक्ष्मी आगमन |
नाद व स्पंदन – ऊर्जा का संचार |
|
14 |
बिछिया |
पति-सुख, स्थिर सौभाग्य |
पृथ्वी से जुड़ाव, स्त्रीत्व का बल |
|
15 |
कंघी / केश-आभूषण |
आकर्षण, शांति |
विचार-शुद्धि व स्मृति स्थिरता |
|
16 |
इत्र/सुगंध |
देवकृपा, शुभकार्य सिद्धि |
प्राणशक्ति शुद्धि, वातावरण को पवित्र करना |
📖 विशेष ध्यान :
📖 ग्रंथ संदर्भ:
- मुहूर्त चूडामणि
- बृहद्संहिता
- ज्योतिषार्णव नवनीतम्
- मुहूर्तरत्नाकर
- धर्मसिन्धु
- बृहदधर्मपुराण


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