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#करवा चौथ” - धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व, उत्पत्ति, देवी/देवता, पूजन विधि-9424446706#

  


करवा चौथ - धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व, उत्पत्ति, देवी/देवता, पूजन विधि-9424446706

🌕 करवा चौथ का महत्व (Karva Chauth Mahatva)

1   आरंभ उत्पत्ति (महाभारत काल, करवा कथा सहित)
2    मुख्य देवी-देवता और पूजन विधि
3     पौराणिक कथा (वीरावती, द्रौपदी, करवा)
4    शास्त्रीय प्रमाणवेद, पुराण, स्मृति और श्लोक सहित
5     फलश्रुति और सांस्कृतिक महत्त्व

आरंभ और उत्पत्ति:
करवा चौथ व्रत का उल्लेख स्कंद पुराण, नारद पुराण, और भविष्य पुराण में मिलता है।
यह व्रत पौराणिक काल से सुहागिन स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु और मंगल के लिए रखा जाता रहा

करवा चौथशब्दार्थ और कृषि-संकेत
– “
करवाशब्दकलश’ / ‘करकसे संबंध रखता है, जिसका अर्थ है जल धारण करने वाला पात्र।कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत उन क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रचलित था जहाँ गेहूँ (रबी फसल) की बुवाई प्रारंभ होती थी; उस समय स्त्रियाँ यह व्रत करती थीं ताकि फसल अच्छी होइस प्रकार घर और कृषि दोनों की समृद्धि हो।

 1.      लोक--कुछ जगहों परकरवा चौथ को सखी व्रत कहा जाता है — जहाँ महिलाएँ एक दूसरे को “सखी” कहकर संबोधित करती हैं और एक-दूसरे की दुआएँ लेती हैं।

– लोक गाथाओं मेंव्रत के दौरान महिलाएँ “फेरियाँ” चलाती हैं — थाली एक हाथ में लेकर वो एक-दूसरे के पास जाती हैं और कथा सुनती हैं।
– छत्तीसगढ़पंजाब आदि मेंकरवा चौथ को स्थानीय रूप से मनाने की अलग रीतियाँ हो सकती हैंजैसे व्रत के दौरान विशेष गीत-भजनझांकियाँसामूहिक पूजा आदि। (ये विशिष्ट स्वरूपग्रामीण परंपराओं पर निर्भर करती हैं।)

 पौराणिक प्रमाण (Scriptural References)

🕉️ () भविष्य पुराणकरकचतुर्थी महात्म्य

कार्तिकस्य कृते पक्षे चतुर्थ्यां या समाचरेत्।
करकं धारणं पुण्यं सौभाग्यं लभते ध्रुवम्॥
अर्थ: जो स्त्री कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को करक (करवा) धारण कर व्रत करती है, वह अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु प्राप्त करती है।


🕉️ () स्कन्द पुराणस्त्रीव्रतखण्ड

सौभाग्यार्थं स्त्रिया नित्यं कार्तिके कृत्तिकादितः।
चतुर्थ्यां व्रतं कार्यं शिवगौरीप्रसादकम्॥
अर्थ: स्त्रियों को अपने सौभाग्य की रक्षा हेतु कार्तिक मास की चतुर्थी को यह शिव-पार्वती प्रसन्न करने वाला व्रत अवश्य करना चाहिए।

 है।

🕉 () नारद पुराणसुहागव्रतविधि

पत्न्या नृणां प्रियं नित्यं सौभाग्यं तथा श्रियः।
कार्तिके चतुर्थ्यां तु गौरीपूजा विधीयते॥
अर्थ: कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को गौरी पूजा करने से पति का आयुष्य और घर का सौभाग्य सदा स्थिर रहता है।

फलश्रुति (व्रत का फल)

स्कन्द पुराण में कहा गया

यस्याः करकव्रतं स्त्रीणां पत्युर्मृत्युनिवारणम्।
तस्याः सौभाग्यसम्पत्तिर्दिव्यायुः स्याद्यथोद्धवम्॥
अर्थ: जो स्त्री यह करकचतुर्थी व्रत श्रद्धापूर्वक करती है, उसके पति का मृत्युयोग टल जाता है और सौभाग्य अखंड होता है।

यह व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
करवा का अर्थ हैमिट्टी का कलश (जो स्थायित्व और मंगल का प्रतीक है),
और चौथ का अर्थ हैचतुर्थी तिथि।

इस व्रत का आरंभ महाभारत काल से माना जाता है, जब द्रौपदी ने अर्जुन के लिए इसे रखा था।
एक अन्य कथा में कहा गया है कि करवा नामक पतिव्रता स्त्री ने अपने पति को मगरमच्छ से बचाने के लिए यमराज को अपने सत्यनिष्ठा और धर्मबल से बाँध लिया, तभी से इस व्रत का नाम करवा चौथ पड़ा।


🪔 पूजा की देवी/देवता

करवा चौथ व्रत में मुख्य रूप से पूजित होते हैं:

  1. गौरी माता (पार्वती जी)सौभाग्य और अखंड सुहाग की देवी
  2. शिव जीकल्याण और दीर्घायु के दाता
  3. गणेश जीविघ्नहर्ता
  4. चंद्रदेवसौभाग्य के साक्षी


 


📿 पूजन विधि (Puja Vidhi)

🕉️ 1. प्रातःकालीन संकल्प

  • सूर्योदय से पहले स्नान कर लाल या पीले वस्त्र पहनें।
  • संकल्प मंत्र बोलें
    मम सुहाग दीर्घायुष्यम्, सौभाग्य सिद्ध्यर्थं करकचतुर्थीव्रतं करिष्ये।
    (
    मैं अपने पति की दीर्घ आयु और अखंड सौभाग्य के लिए करवा चौथ व्रत करती हूँ।)

🕉️ 2. दिन भर उपवास

  • यह निर्जल व्रत होता है (बिना अन्न और जल के)
  • दिन भर माता गौरी की कथा सुनें।

🕉️ 3. संध्या पूजन (मुख्य पूजन विधि)

सामग्री:

  • मिट्टी का करवा (कलश), दीपक, धूप, चावल, सिंदूर, रोली, लाल चुनरी, अक्षत, मिठाई, जल से भरा लोटा।

विधि:

  1. चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गौरी माता, शिव जी, गणेश जी, और चंद्रमा का चित्र स्थापित करें।
  2. करवे में जल भरकर रखें (यह करवा पति की दीर्घायु का प्रतीक होता है)
  3. रोली और चावल से तिलक करें।

सुहागिनें एक-दूसरे को सिंदूर और मिठाई का आदान-प्रदान करती हैं (कहते हैं— “सदा सुहागन रहो”)करवा चौथ व्रतशास्त्रीय आधार, कथा एवं पूजन-विधान


🪔 . करवा चौथ व्रत का आरंभ और ऐतिहासिक आधार  

करवा चौथ व्रत भारतीय स्त्री की अखंड सौभाग्य भावना का प्रतीक है। इसका प्रारंभ महाभारत काल से माना गया है। जब अर्जुन तप के लिए नीलगिरी पर्वत गए, तब द्रौपदी अत्यंत व्याकुल हुईं। उन्होंने श्रीकृष्ण से निवेदन किया

हे माधव! मेरे पति नीलगिरी पर्वत पर तप करने गए हैं, उनका कल्याण कैसे होगा?”

तब श्रीकृष्ण बोले

हे द्रौपदी! यदि तुम कार्तिक कृष्ण चतुर्थी कोकरक चतुर्थीनामक व्रत विधिपूर्वक करो, तो तुम्हारे पति की दीर्घायु होगी और सब संकट मिट जाएँगे।

📜 संदर्भभविष्य पुराण, करकचतुर्थी महात्म्य

कार्तिकस्य कृते पक्षे चतुर्थ्यां या समाचरेत्।
करकं धारणं पुण्यं सौभाग्यं लभते ध्रुवम्॥
अर्थ: जो स्त्री कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को करक (करवा) धारण कर व्रत करती है, उसे अचल सौभाग्य प्राप्त होता है।

द्रौपदी ने इस व्रत को किया और अर्जुन का तप सफल हुआ।
तब से यह व्रत करक चतुर्थीअथवाकरवा चौथ कहलाया।

वेदीय दृष्टि से यह व्रत सौम्य ग्रह चंद्र की उपासना है, जो मन, सौभाग्य और समरसता का अधिपति है।
अथर्ववेद (काण्ड ११, सूक्त ) में कहा गया है

सोमः राजा सोमपाः सोम्यं तेजो ददातु ते।
अर्थ: चंद्रदेव सौम्यता और दीर्घायु देने वाले हैं।

इस प्रकार, करवा चौथ का आरंभ श्रद्धा, मनोबल और चंद्र-ऊर्जा की साधना के रूप में हुआ।


🌸 . ‘करवानाम का रहस्य एवं करवा स्त्री की कथा  

करवाशब्द संस्कृत धातु कर्ण + वह से बना हैअर्थातजल धारण करने वाला पात्र
करवा चौथ में यह करक या करवा ही जीवन के सातत्य और सौभाग्य का प्रतीक है।

प्राचीन काल में स्त्रियाँ अपने पतियों की रक्षा हेतु करक में जल भरकर यमराज से प्रार्थना करती थीं।
इस परंपरा का प्रत्यक्ष उदाहरण करवा नामक एक पतिव्रता स्त्री की कथा है, जो स्कन्दपुराण (स्त्रीव्रतखण्ड) और कथासरित्सागर में वर्णित है।


🕉करवा सती की कथा

करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी, जो अपने पति से अत्यंत प्रेम करती थी।
एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया और एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया।
करवा ने यमराज को पुकारा

हे धर्मराज! मेरे पति ने कभी अधर्म नहीं किया, उन्हें अन्याय से मत मारो।

यमराज बोले

हे सति! यह तो उनके कर्मों का फल है, इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता।

करवा ने दृढ़ स्वर में कहा

यदि मेरे पतिव्रत धर्म में तनिक भी दोष है तो मेरा वचन मिथ्या हो, अन्यथा मैं तुम्हें अपने सत्यबल से बाँध दूँगी।

अपने सत्यव्रत के प्रभाव से उसने यमराज को पाश से बाँध दिया
सभी लोकों में हलचल मच गई।
देवगणों के निवेदन पर यमराज ने करवा से क्षमा मांगी और उसके पति को पुनर्जीवित किया।

📜 संदर्भस्कन्दपुराण, स्त्रीव्रतखण्ड

पत्युस्त्वायुर्विवृद्ध्यर्थं करकव्रतमीप्सया।
यमं बद्धा सती करवा पतिव्रतबलान्विता॥
अर्थ: पतिव्रता करवा ने पति की दीर्घायु के लिए करकव्रत करते हुए यमराज को अपने सतीत्व बल से बाँध लिया।

तभी से यह व्रत करवा चौथ कहलाया
जहाँकरवाधर्मबल की प्रतीक है औरचौथचतुर्थी तिथि का सूचक।


🌺 . वीरावती कथा (प्रचलित लोककथा) –

एक नगर में एक राजा की सात पुत्रियाँ और एक पुत्र था। सबसे छोटी पुत्री का नाम वीरावती था।
वह विवाहित होकर प्रथम बार मायके आई थी।
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को उसने करवा चौथ व्रत रखा।
सूर्योदय से लेकर रात्रि तक बिना जल और अन्न के रही।

संध्या होने पर उसका शरीर निर्बल हो गया।
भाइयों को उसकी स्थिति देखकर दया आई।
उन्होंने दूर एक पहाड़ी पर दीपक जलाकर छलनी से दिखाया किदेखो, चाँद निकल आया है।
वीरावती ने जल चढ़ाकर व्रत तोड़ दिया।

कुछ ही क्षणों में उसके पति का देहान्त हो गया।
वीरावती विलाप करने लगी।
उसी समय माता पार्वती प्रकट हुईं और कहा

हे वीरावति! तूने छल से व्रत तोड़ा, इसीलिए यह विपत्ति आई। यदि तू अगली चतुर्थी को श्रद्धापूर्वक पुनः यह व्रत करेगी, तो तेरा पति पुनर्जीवित होगा।

वीरावती ने पुनः अगले मास यह व्रत विधिपूर्वक किया और उसके पति को पुनर्जीवन प्राप्त हुआ।
तभी से यह व्रत अखंड सौभाग्य और पति-कल्याण के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।


🌼 . करवा सती कथा

5-कथासरित्सागर (लवणकायन कथा) के अनुसार
करवा सती दक्षिण भारत की एक साध्वी स्त्री थी।
उसके पति का नाम धरणिधर था।
दोनों धर्मनिष्ठ और सच्चरित्र थे।
एक दिन नदी में स्नान के समय पति को मगरमच्छ ने पकड़ लिया।
करवा ने दृढ़ मन से तप किया और कहा

मैं धर्म, सत्य और पति-भक्ति की साधिका हूँ। यदि मेरा पतिव्रत निष्कलंक है, तो यह मगरमच्छ तुरंत भस्म हो जाए।

जैसे ही उसने यह कहा, मगरमच्छ जलकर भस्म हो गया।
उसने पति का हाथ पकड़कर किनारे लाया और यमराज से कहा

हे धर्मराज! यदि आप इन्हें मृत्यु देते हैं तो मैं अपने सत्यबल से आपको बाँध दूँगी।
यमराज ने उसकी पतिव्रता से प्रभावित होकर कहा
हे सति! तव धर्मबलोऽद्भुतः। ते पत्युः दीर्घमायुः स्यात्।
(
अर्थतेरा धर्मबल अद्भुत है, तेरा पति दीर्घायु होगा।)

तब सेकरवा चौथनामक व्रत सतीत्व और धर्मबल की साक्षी बन गया।

5-“साहूकर की बहन करवा

इस कथा का एक रूप Webdunia आदि लोक स्रोतों में मिलता है:

बहुत समय पहले एक साहूकार (व्यापारी) था, जिसके सात बेटे और एक बहन थी, जिसका नाम करवा था।
जब वह विवाह के बाद मायके आई हुई थी, तो एक करवा चौथ के दिन उसने निर्जल व्रत रखा।
शाम को भूख-प्यास से व्याकुल हो रही करवा को उसके भाइयों ने दया आई। उन्होंने दूर एक पिपल पेड़ पर दीपक जला कर और एक छलनी (जाली) रखकर दूर से दिखाया कि चाँद निकल आया है।
करवा ने अर्घ्य दे दिया और व्रत तोड़ लिया। उसी समय उसे खबर मिली कि उसके पति की मृत्यु हो गई।
अत्यंत क्रोधित और शोकाकुल करवा ने ठान लिया कि वह व्रत तोड़ेगी नहीं और अपने पति को जीवित करके ही छोड़ेंगी। उसने कई वर्ष तक कठिन तप किया, सूखे मृत्तिका, सूई, घास आदि से व्रत किया।
अंततः, उसकी भाभियों और देवताओं की मदद से, एक भाभी ने अपनी अंशदायी अंगुली से अमृत देकर उसके पति को पुनर्जीवित कर दिया।

यह कथा यह सिखाती है कि पतिव्रता का दृढ़ निश्चय और तप कितना शक्तिशाली हो सकता है।

6-🪔 चौथ माता की दुर्लभ कथा (राजस्थानचौथ का बरवाड़ा)

बहुत समय पहले राजस्थान की अरावली पर्वतमाला के पास चौथ का बरवाड़ा नामक एक छोटा गाँव था। वहाँ के राजा भीम सिंह चौहान वीर, धर्मनिष्ठ और भगवती-भक्त थे।

एक दिन उन्हें स्वप्न में एक दिव्य स्त्री का दर्शन हुआ। वह तेजोमयी आभा से दीप्त थीत्रिनेत्र, चार भुजाएँ, सिंह पर आरूढ़, करों में त्रिशूल और करक (कलश) धारण किए हुए। देवी ने कहा

हे राजन! मैं चौथ माता हूँ। पंचाला नगरी से तुम्हारे राज्य में आने की इच्छा रखती हूँ। यदि तू मेरा मंदिर स्थापित करेगा, तो तेरे राज्य में कभी दरिद्रता नहीं रहेगी। स्त्रियाँ यहाँ व्रत करेंगी और अपने पतियों की दीर्घायु प्राप्त करेंगी।

1.      सुबह राजा ने पंडितों को बुलवाया, पंचांग से मुहूर्त निकाला और देवी का मंदिर उसी पर्वत पर बनवाया जहाँ वे स्वप्न में प्रकट हुई थीं। निर्माण पूर्ण होते ही गाँव की स्त्रियों ने उस दिन अश्विन शुक्ल चतुर्थी को व्रत कियावही दिन आगे चलकरकरक चतुर्थीयाकरवा चौथकहलाया।

🌕 कथा का रहस्य और व्रत की शुरुआत

2.      प्रचलि कथा के अनुसार, उस समय उस प्रदेश में एक भीषण महामारी फैली थी। पुरुष युद्ध में जाते और लौटकर कई रोगों से ग्रस्त हो जाते। स्त्रियाँ अपने पतियों के जीवन के लिए देवी से प्रार्थना करती थीं।

एक दिन एक नवविवाहिता ने माता से कहा

3.      हे चौथ माता! यदि मेरे पति सकुशल लौट आएँ, तो मैं हर वर्ष निर्जल व्रत रखूँगी और तेरा दीपक जलाऊँगी।

4.      उसकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर देवी ने आकाशवाणी की

5.      आज से जो स्त्री पति-सौभाग्य की अभिलाषा से करक चतुर्थी को मेरा व्रत करेगी, उसका पति दीर्घायु होगा और परिवार सदा सम्पन्न रहेगा।

6.      उसी दिन से यह व्रत चौथ माता व्रत के रूप में प्रचलित हुआजो बाद में करवा चौथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

7.      

-7-o    🌺 -बरवाड़ा क्षेत्र की स्त्रियों द्वारा गाई जाने वाली कथा)

8.      एक बार एक सैनिक की पत्नी अपने पति के युद्ध में जाने से पहले चौथ माता के दरबार पहुँची। उसने निर्जल व्रत रखकर माता से कहा
जैसे माँ पार्वती ने शिव को प्राप्त किया, वैसे ही मैं अपने पति को जीवन में बार-बार पाऊँ।
युद्ध में उसका पति गंभीर रूप से घायल हो गया, किंतु उसी रात देवी ने स्वप्न में उसे अमृत दिया और उसके प्राण लौट आए।
सुबह जब पति जीवित लौट आया, तो सभी स्त्रियों ने यह व्रत अपनाया — ‘करवा चौथनाम इसी करक (कलश) और चौथ माता के वरदान से पड़ा।

9.      

🔱 धार्मिक मान्यता और रहस्य banaras

चौथ माता को यहाँ माता करकायनी, व्रत चौथेश्वरी, और सौभाग्यवती रक्षिका भी कहा जाता है।
स्थानीय पुजारी वर्ग बताता है कि मंदिर के गर्भगृह में रखी मूर्ति काष्ठ और शिला दोनों से बनी हैजो देवी पार्वती और पृथ्वी-तत्व के संयोग का प्रतीक है।

कहा जाता है कि

जो स्त्री इस दिन निर्जल रहकर चौथ माता के चरणों में दीपक और करवा (जल-कलश) अर्पित करती है, उसके घर की अग्नि और अन्न कभी शिथिल नहीं पड़ते।

कम-प्रसारित लोककथा — “सखी-व्रत/घरेलू-संकल्परूप

कुछ लोकग्रन्थों में करवा चौथ को सखी-व्रत कहा गया है जहाँ नवविवाहिता अपनी सखी (गाँव/मण्डली) के साथ मिलकर करवे बाँटती और विशेष गीत-कथा (लोककथा) सुनाती हैं इन गीतों में कई बार स्थानीय देवी-देवीयों का वर्णन अलग तरह से मिलता है, जैसे नदी-देवी, पिपल-देवी, चउथ-माता इत्यादि। संक्षेप-संदर्भ: करवा चौथ पर सामान्य/ऐतिहासिक रेखाचित्र के लिए Wikipedia/Britannica (क्षेत्रीय विविधताएँ तथा लोककथाएँ का अच्छा समेकित परिचय.


🕯अर्घ्य-विधि, दीपक, वातिका, तेल, एवं शास्त्रीय प्रमाण सहित विवरण

🌕 () अर्घ्य-विधि (चंद्र पूजा)

  1. रात्रि में जब चंद्रमा उदित हो, तब थाली में रेशमी वस्त्र बिछाएँ।
  2. उसमें जल से भरा करवा (कलश) रखें।
  3. उसमें दूर्वा, चावल और पुष्प डालें।
  4. पति के मुख की ओर देखती हुई स्त्री कहे

दधि शंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम्।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम्॥

अर्थ: मैं उस चंद्रदेव को नमस्कार करती हूँ जो दधि और शंख के समान शुभ्र हैं, शिव के मुकुट में शोभित हैं।

फिर यह मंत्र बोले

सोमाय नमः। मम पति व्रतायाः सौभाग्यं दीर्घायुष्यम् देहि।

और अर्घ्य अर्पित करें।


🪔 () दीपक, वर्तिका (बाती), और तेल का शास्त्रीय प्रमाण

स्कन्दपुराण (व्रतखण्ड, दीपविधि अध्याय) में लिखा है

तिलतैलकृतो दीपो हव्यकव्यप्रदः स्मृतः।
घृतदीपः श्रियं दद्यात् सौम्यः सौभाग्यवर्धनः॥

🔹 अर्थ:

  • तिल तेल का दीप हव्य-कव्य (पितृ-देव) को प्रसन्न करता है।
  • घृत दीप (घी का दीपक) लक्ष्मीप्रद और सौभाग्यवर्धक होता है।

अतः करवा चौथ में शुद्ध गाय के घी का दीपक सर्वोत्तम माना गया है।


🌸 दीपक की संख्या और वातिका (बाती) का विधान

📜 देवीभागवत पुराण (.३४.१२)

एकदीपो हरेद्व्याधिं द्वयोः सौभाग्यवर्धनम्।
त्रयोः पापं विनश्येत् चतुर्भिर्मोक्षदं भवेत्॥

अर्थ:

  • एक दीप रोग नाशक,
  • दो दीप सौभाग्यवर्धक,
  • तीन दीप पाप नाशक,
  • चार दीप मोक्षदायक हैं।

👉 अतः करवा चौथ में चार दीप जलाना शुभ कहा गया है।

वातिका की संख्या:

  • सामान्यतया एक सूती वातिका रखी जाती है।
  • यदि स्त्री अपने पति की दीर्घायु और कुल-सौभाग्य चाहती है तो चार वातिकाएँ (चार बत्तियाँ) रखे
    एक माता गौरी के नाम,
    दूसरी शिव के नाम,
    तीसरी गणेश के नाम,
    चौथी चंद्रदेव के नाम।

🌼 () अर्घ्य पात्र और तेल का प्रकार

उपयोग

शास्त्रीय अनुशंसा

प्रमाण

अर्घ्य जल पात्र

करवा (मिट्टी/पीतल)

स्कन्दपुराण, स्त्रीव्रतखण्ड

दीपक का तेल

गाय का घी या तिल तेल

स्कन्दपुराण देवीभागवत पुराण

वातिका

सूती, चार संख्या में

देवीभागवत पुराण 9.34

दिशा

चंद्रमा की दिशा (पूर्वोत्तर) की ओर मुख

भविष्य पुराण

  1.  

🌸 मुख्य पूजा मंत्र

🌼 गौरी माता मंत्र:

ह्रीं गौर्यै नमः।
अर्थमैं माता गौरी को नमस्कार करती हूँ, जो अखंड सौभाग्य की दात्री हैं।

🌼 शिव मंत्र:

नमः शिवाय।
अर्थशिव ही कल्याण स्वरूप हैं, वे मेरे पति का आयुष्य बढ़ाएँ।

🌼 गणेश मंत्र:

गं गणपतये नमः।
अर्थविघ्नहर्ता गणेश जी मेरे व्रत में सिद्धि दें।

🌼 चंद्र अर्घ्य मंत्र (रात में चाँद को अर्घ्य देते समय):

सोमाय नमः।
या
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम्।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम्॥

चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति का मुख देखकर व्रत का पारण किया जाता है।


🌹 करवा चौथ कथा (संक्षेप में)

वीरावती नाम की एक रानी ने अपने भाइयों के छल से सूर्यास्त से पहले व्रत तोड़ा, जिससे उसके पति की मृत्यु हो गई।
देवी पार्वती ने उसे सच्चे मन से पुनः करवा चौथ का व्रत करने का उपदेश दिया, तब जाकर उसके पति को पुनः जीवन प्राप्त हुआ।
तब से यह व्रत स्त्रियों के लिए अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।


🌕कश्मीर/हिमाचल लोककथा रूप

o    उत्तर भारत के पर्वतीय क्षेत्रों (कश्मीर के कुछ लोकगाँवहिमाचल के कुछ हिस्सेमें करवा चौथ को स्थानीय-रूप में मनाने की कहानियाँ मिलती हैं जहाँ व्रत का संबंध फसल-चक्र और घरेलू जल-भंडारण (karva — अनाज/कलशसे जोड़ा जाता है। इन कथाओं में करवा चौथ का आरम्भ गाँवों के “कुर्मी/किसान” समुदायों-से जुड़ा बताया जाता है — यानी यह केवल पतिव्रता-व्रत नहींबल्कि गृह-समृद्धि की दीर्घकालीन कामना का त्योहार भी 

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2.      आधुनिक परिवर्तित स्वरूप
वर्तमान समय में यह व्रत सिर्फ शादीशुदा महिलाओं तक सीमित नहीं रहाकुछ जगहों पर कुँवारी लड़कियाँ भी इसे करवाती हैं, अपने भावी जीवनसाथी की दीर्घायु और मंगल के लिए।
समय के साथ यह व्रत प्रेम और जुड़ाव का एक सामाजिक प्रतीक भी बन गया हैपति इस दिन अपने व्रत रखने वाली पत्नी का ध्यान रखते हैं और कभी-कभी पति भी व्रत रखते हैं।

12.  बनारस (वाराणसी) और स्थानीयचौथ माता / चौथ स्थानकथाएँ

o    बनारस-क्षेत्र में कुछ विशेष चौथ-देवी स्थलों/मंदिरों (Chauth Mata/ चौथ माता) का उल्लेख मिलता है जहाँ स्थानीय रूप से अलग-अलग व्रतविधि और लोक-कथाएँ संरक्षित हैं। बनारस में पारंपरिक नाथ/तांत्रिक संप्रदायों के लोककथात्मक योग भी पाए जाते हैंयही वजह है कि बनारस-संदर्भित कथाएँ अक्सर तंत्र-लोककथाओं से मिश्रित होती हैं।

o    )

 



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श्राद्ध क्यों कैसे करे? पितृ दोष ,राहू ,सर्प दोष शांति ?तर्पण? विधि             श्राद्ध नामा - पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी श्राद्ध कब नहीं करें :   १. मृत्यु के प्रथम वर्ष श्राद्ध नहीं करे ।   २. पूर्वान्ह में शुक्ल्पक्ष में रात्री में और अपने जन्मदिन में श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।   ३. कुर्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति अग्नि विष आदि के द्वारा आत्महत्या करता है उसके निमित्त श्राद्ध नहीं तर्पण का विधान नहीं है । ४. चतुदर्शी तिथि की श्राद्ध नहीं करना चाहिए , इस तिथि को मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध दूसरे दिन अमावस्या को करने का विधान है । ५. जिनके पितृ युद्ध में शस्त्र से मारे गए हों उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करने से वे प्रसन्न होते हैं और परिवारजनों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं ।           श्राद्ध कब , क्या और कैसे करे जानने योग्य बाते           किस तिथि की श्राद्ध नहीं -  १. जिस तिथी को जिसकी मृत्यु हुई है , उस तिथि को ही श्राद्ध किया जाना चा...

रामचरितमानस की चौपाईयाँ-मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक (ramayan)

*****मनोकामना पूरक सरल मंत्रात्मक रामचरितमानस की चौपाईयाँ-       रामचरितमानस के एक एक शब्द को मंत्रमय आशुतोष भगवान् शिव ने बना दिया |इसलिए किसी भी प्रकार की समस्या के लिए सुन्दरकाण्ड या कार्य उद्देश्य के लिए लिखित चौपाई का सम्पुट लगा कर रामचरितमानस का पाठ करने से मनोकामना पूर्ण होती हैं | -सोमवार,बुधवार,गुरूवार,शुक्रवार शुक्ल पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष दशमी से कृष्ण पक्ष पंचमी तक के काल में (चतुर्थी, चतुर्दशी तिथि छोड़कर )प्रारंभ करे -   वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को स्मरण कर  इनका सम्पुट लगा कर पढ़े या जप १०८ प्रतिदिन करते हैं तो ११वे दिन १०८आहुति दे | अष्टांग हवन सामग्री १॰ चन्दन का बुरादा , २॰ तिल , ३॰ शुद्ध घी , ४॰ चीनी , ५॰ अगर , ६॰ तगर , ७॰ कपूर , ८॰ शुद्ध केसर , ९॰ नागरमोथा , १०॰ पञ्चमेवा , ११॰ जौ और १२॰ चावल। १॰ विपत्ति-नाश - “ राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।। ” २॰ संकट-नाश - “ जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।। जपहिं ना...

दुर्गा जी के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए?

दुर्गा जी   के अभिषेक पदार्थ विपत्तियों   के विनाशक एक रहस्य | दुर्गा जी को अपनी समस्या समाधान केलिए क्या अर्पण करना चाहिए ? अभिषेक किस पदार्थ से करने पर हम किस मनोकामना को पूर्ण कर सकते हैं एवं आपत्ति विपत्ति से सुरक्षा कवच निर्माण कर सकते हैं | दुर्गा जी को अर्पित सामग्री का विशेष महत्व होता है | दुर्गा जी का अभिषेक या दुर्गा की मूर्ति पर किस पदार्थ को अर्पण करने के क्या लाभ होते हैं | दुर्गा जी शक्ति की देवी हैं शीघ्र पूजा या पूजा सामग्री अर्पण करने के शुभ अशुभ फल प्रदान करती हैं | 1- दुर्गा जी को सुगंधित द्रव्य अर्थात ऐसे पदार्थ ऐसे पुष्प जिनमें सुगंध हो उनको अर्पित करने से पारिवारिक सुख शांति एवं मनोबल में वृद्धि होती है | 2- दूध से दुर्गा जी का अभिषेक करने पर कार्यों में सफलता एवं मन में प्रसन्नता बढ़ती है | 3- दही से दुर्गा जी की पूजा करने पर विघ्नों का नाश होता है | परेशानियों में कमी होती है | संभावित आपत्तियों का अवरोध होता है | संकट से व्यक्ति बाहर निकल पाता है | 4- घी के द्वारा अभिषेक करने पर सर्वसामान्य सुख एवं दांपत्य सुख में वृद्धि होती...

श्राद्ध:जानने योग्य महत्वपूर्ण बातें |

श्राद्ध क्या है ? “ श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “ अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है | अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है | श्राद्ध क्यों करना चाहिए   ? पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है | श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ? यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश ( रक्त , जींस ) है , यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं , तो उनकी आत्मा   को कष्ट होता है , वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं |   कब , क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है   ? यदि हम   96  अवसर पर   श्राद्ध   नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह    भी कहा ज...

श्राद्ध रहस्य प्रश्न शंका समाधान ,श्राद्ध : जानने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?

संतान को विकलांगता, अल्पायु से बचाइए श्राद्ध - पितरों से वरदान लीजिये पंडित विजेंद्र कुमार तिवारी jyotish9999@gmail.com , 9424446706   श्राद्ध : जानने  योग्य   महत्वपूर्ण तथ्य -कब,क्यों श्राद्ध करे?  श्राद्ध से जुड़े हर सवाल का जवाब | पितृ दोष शांति? राहू, सर्प दोष शांति? श्रद्धा से श्राद्ध करिए  श्राद्ध कब करे? किसको भोजन हेतु बुलाएँ? पितृ दोष, राहू, सर्प दोष शांति? तर्पण? श्राद्ध क्या है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम क्या संभावित है? श्राद्ध की प्रक्रिया जटिल एवं सबके सामर्थ्य की नहीं है, कोई उपाय ? श्राद्ध कब से प्रारंभ होता है ? प्रथम श्राद्ध किसका होता है ? श्राद्ध, कृष्ण पक्ष में ही क्यों किया जाता है श्राद्ध किन२ शहरों में  किया जा सकता है ? क्या गया श्राद्ध सर्वोपरि है ? तिथि अमावस्या क्या है ?श्राद्द कार्य ,में इसका महत्व क्यों? कितने प्रकार के   श्राद्ध होते   हैं वर्ष में   कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं? कब  श्राद्ध किया जाना...

गणेश विसृजन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि

28 सितंबर गणेश विसर्जन मुहूर्त आवश्यक मन्त्र एवं विधि किसी भी कार्य को पूर्णता प्रदान करने के लिए जिस प्रकार उसका प्रारंभ किया जाता है समापन भी किया जाना उद्देश्य होता है। गणेश जी की स्थापना पार्थिव पार्थिव (मिटटीएवं जल   तत्व निर्मित)     स्वरूप में करने के पश्चात दिनांक 23 को उस पार्थिव स्वरूप का विसर्जन किया जाना ज्योतिष के आधार पर सुयोग है। किसी कार्य करने के पश्चात उसके परिणाम शुभ , सुखद , हर्षद एवं सफलता प्रदायक हो यह एक सामान्य उद्देश्य होता है।किसी भी प्रकार की बाधा व्यवधान या अनिश्ट ना हो। ज्योतिष के आधार पर लग्न को श्रेष्ठता प्रदान की गई है | होरा मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माना गया है।     गणेश जी का संबंध बुधवार दिन अथवा बुद्धि से ज्ञान से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों प्रतियोगियों एवं बुद्धि एवं ज्ञान में रूचि है , ऐसे लोगों के लिए बुध की होरा श्रेष्ठ होगी तथा उच्च पद , गरिमा , गुरुता , बड़प्पन , ज्ञान , निर्णय दक्षता में वृद्धि के लिए गुरु की हो रहा श्रेष्ठ होगी | इसके साथ ही जल में विसर्जन कार्य होता है अतः चंद्र की होरा सामा...

श्राद्ध रहस्य - श्राद्ध क्यों करे ? कब श्राद्ध नहीं करे ? पिंड रहित श्राद्ध ?

श्राद्ध रहस्य - क्यों करे , न करे ? पिंड रहित , महालय ? किसी भी कर्म का पूर्ण फल विधि सहित करने पर ही मिलता है | * श्राद्ध में गाय का ही दूध प्रयोग करे |( विष्णु पुराण ) | श्राद्ध भोजन में तिल अवश्य प्रयोग करे | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि - श्राद्ध अपरिहार्य - अश्वनी माह के कृष्ण पक्ष तक पितर अत्यंत अपेक्षा से कष्ट की   स्थिति में जल , तिल की अपनी संतान से , प्रतिदिन आशा रखते है | अन्यथा दुखी होकर श्राप देकर चले जाते हैं | श्राद्ध अपरिहार्य है क्योकि इसको नहीं करने से पीढ़ी दर पीढ़ी संतान मंद बुद्धि , दिव्यांगता .मानसिक रोग होते है | हेमाद्रि ग्रन्थ - आषाढ़ माह पूर्णिमा से /कन्या के सूर्य के समय एक दिन भी श्राद्ध कोई करता है तो , पितर एक वर्ष तक संतुष्ट/तृप्त रहते हैं | ( भद्र कृष्ण दूज को भरणी नक्षत्र , तृतीया को कृत्तिका नक्षत्र   या षष्ठी को रोहणी नक्षत्र या व्यतिपात मंगलवार को हो ये पिता को प्रिय योग है इस दिन व्रत , सूर्य पूजा , गौ दान गौ -दान श्रेष्ठ | - श्राद्ध का गया तुल्य फल- पितृपक्ष में मघा सूर्य की अष्टमी य त्रयोदशी को मघा नक्षत्र पर चंद्र ...

गणेश भगवान - पूजा मंत्र, आरती एवं विधि

सिद्धिविनायक विघ्नेश्वर गणेश भगवान की आरती। आरती  जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।  माता जा की पार्वती ,पिता महादेवा । एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।   मस्तक सिंदूर सोहे मूसे की सवारी | जय गणेश जय गणेश देवा।  अंधन को आँख  देत, कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया । जय गणेश जय गणेश देवा।   हार चढ़े फूल चढ़े ओर चढ़े मेवा । लड्डूअन का  भोग लगे संत करें सेवा।   जय गणेश जय गणेश देवा।   दीनन की लाज रखो ,शम्भू पत्र वारो।   मनोरथ को पूरा करो।  जाए बलिहारी।   जय गणेश जय गणेश देवा। आहुति मंत्र -  ॐ अंगारकाय नमः श्री 108 आहूतियां देना विशेष शुभ होता है इसमें शुद्ध घी ही दुर्वा एवं काले तिल का विशेष महत्व है। अग्नि पुराण के अनुसार गायत्री-      मंत्र ओम महोत काय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो दंती प्रचोदयात्। गणेश पूजन की सामग्री एक चौकिया पाटे  का प्रयोग करें । लाल वस्त्र या नारंगी वस्त्र उसपर बिछाएं। चावलों से 8पत्ती वाला कमल पुष्प स्वरूप बनाएं। गणेश पूजा में नार...

विवाह बाधा और परीक्षा में सफलता के लिए दुर्गा पूजा

विवाह में विलंब विवाह के लिए कात्यायनी पूजन । 10 oct - 18 oct विवाह में विलंब - षष्ठी - कात्यायनी पूजन । वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए - दुर्गतिहारणी मां कात्यायनी की शरण लीजिये | प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय , संकल्प में अपना नाम गोत्र स्थान बोलने के पश्चात् अपने विवाह की याचना , प्रार्थना कीजिये | वैवाहिक सुखद जीवन अथवा विवाह बिलम्ब   या बाधा को समाप्त करने के लिए प्रति दिन प्रातः सूर्योदय से प्रथम घंटे में या दोपहर ११ . ४० से १२ . ४० बजे के मध्य , कात्ययानी देवी का मन्त्र जाप करिये | १०८बार | उत्तर दिशा में मुँह हो , लाल वस्त्र हो जाप के समय | दीपक मौली या कलावे की वर्तिका हो | वर्तिका उत्तर दिशा की और हो | गाय का शुद्ध घी श्रेष्ठ अथवा तिल ( बाधा नाशक + महुआ ( सौभाग्य ) तैल मिला कर प्रयोग करे मां भागवती की कृपा से पूर्वजन्म जनितआपके दुर्योग एवं   व्यवधान समाप्त हो एवं   आपकी मनोकामना पूरी हो ऐसी शुभ कामना सहित || षष्ठी के दिन विशेष रूप से कात्यायनी के मन्त्र का २८ आहुति / १०८ आहुति हवन कर...

कलश पर नारियल रखने की शास्त्रोक्त विधि क्या है जानिए

हमे श्रद्धा विश्वास समर्पित प्रयास करने के बाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं , क्योकि हिन्दू धर्म श्रेष्ठ कोटी का विज्ञान सम्मत है ।इसकी प्रक्रिया , विधि या तकनीक का पालन अनुसरण परमावश्यक है । नारियल का अधिकाधिक प्रयोग पुजा अर्चना मे होता है।नारियल रखने की विधि सुविधा की दृष्टि से प्रचलित होगई॥ मेरे ज्ञान  मे कलश मे उल्टा सीधा नारियल फसाकर रखने की विधि का प्रमाण अब तक नहीं आया | यदि कोई सुविज्ञ जानकारी रखते हो तो स्वागत है । नारियल को मोटा भाग पूजा करने वाले की ओर होना चाहिए। कलश पर नारियल रखने की प्रमाणिक विधि क्या है ? अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए , उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै प्राची मुखं वित्त्नाश्नाय , तस्माच्छुभम सम्मुख नारिकेलम अधोमुखम शत्रु विवर्धनाए कलश पर - नारियल का बड़ा हिस्सा नीचे मुख कर रखा जाए ( पतला हिस्सा पूछ वाला कलश के उपरी भाग पर रखा जाए ) तो उसे शत्रुओं की वृद्धि होती है * ( कार्य सफलता में बाधाएं आती है संघर्ष , अपयश , चिंता , हानि , सहज हैशत्रु या विरोधी तन , मन धन सर्व दृष्टि से घातक होते है ) उर्ध्वस्य वक्त्रं बहुरोग वृद्ध्यै कलश ...